Dasha mata- for removing family obstacles

दशा माता की पूजा साधना मुहुर्थ- तिथि 4 अप्रैल दिन गुरुवार को है। चैत्र मात्र के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को दशा माता की पूजा साधना व्रत को किया जाता है, कहा जाता है कि दशा माता की पूजा साधना और व्रत करने से घर की दशा में सुधार आता है और दरिद्रता, वाद-विवाद, क्लेश व घर मे आने वाली हर तरह की समस्य का अंत होता है। इस दिन घर की महिलाएं कच्चे सूत का 10 तार का डोरा बनाकर उसमें 10 गांठे लगाती हैं और फिर उसे लेकर पीपल के वृक्ष की पूजा अर्चना करती हैं। इस व्रत में डोरे का विशेष महत्व होता है क्योंकि यह दशा माता का डोरा कहलाता है, जिसे महिलाएं साल भर तक गले में धारण करती हैं।

दशा माता की पूजा विधि और महत्त्व के बारे में जानने के लिए, निम्नलिखित चरणों का पालन करें:

  1. स्नान: पूजा की शुरुआत में स्नान करें और शुद्ध वस्त्र पहनें।
  2. कलश स्थापना: पूजा स्थल पर कलश स्थापित करें। कलश में पानी डालें, सुपारी, नारियल, चंदन, कुमकुम, अक्षत, इलायची, धूप, दीप, नौवें कुआँ के पानी से भरा तांबा, और कुछ धार्मिक पुस्तकें रखें।
  3. कलश पूजा: कलश पूजन करें।
  4. गणेश पूजा: गणेश जी की पूजा करें।
  5. देवी पूजा: दशा माता की मूर्ति के सामने आसन पर बैठें और पूजा करें।
  6. मंत्र जाप: “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं दशायै नमः” मंत्र का जाप करें।
  7. प्रार्थना: अंत में, दशा माता से अपनी मनोकामनाएं मांगें और पूजा को समाप्त करें।

दशा माता की पूजा का महत्त्व है क्योंकि इससे व्यक्ति को संतुष्टि, समृद्धि, स्थिरता और सफलता प्राप्त होती है। ये देवी के नौ रूपों की पूजा के रूप में मानी जाती है।

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