महाकाली चालीसा एक भक्तिगीत है जो देवी काली की स्तुति और आराधना के लिए गाया जाता है। देवी काली को शक्ति और विनाश की देवी माना जाता है। वे बुराइयों का नाश करने वाली, दुश्मनों को पराजित करने वाली और भक्तों को संरक्षण देने वाली देवी हैं। महाकाली का स्वरूप भयानक और शक्तिशाली होता है, जिसमें वे चार हाथों में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं और उनके गले में नरमुंडों की माला होती है।
महाकाली चालीसा
॥दोहा॥
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो अम्बे दुख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥
॥चौपाई॥
शशि ललाट मुख महा विशाल।
नेत्र लाल भृकुटि विकराल॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुंदरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिव शंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हे नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरा रूप लक्ष्मी जग माही।
श्री नारायण अंग समाही॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दया सिंधु दीजे मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥
॥दोहा॥
मातु रूप महाकाली धारा।
देव सभी है स्तुति तुम्हारा॥
॥चौपाई॥
मातंगिनी धूमावती माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजे।
जाको देख काल डर भाजे॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हीयो सूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुं लोक में डंका बाजत॥
शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ संतन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥
अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म मरन तिनकी छुट जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछतायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रकट कृपा तुम करि माई।
शंकर के तब कष्ट मिटाई॥
श्री महाकाल काली के रूपा।
जगत मातु तेरा यहि स्वरूपा॥
श्री महाकाल काली के रूपा।
जगत मातु तेरा यहि स्वरूपा॥
जो कोई यह पढ़े स्तुति हमारी।
तारे संकट होय सुखारी॥
॥दोहा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।
शक्ति रूप को सुमिरन लावे॥
कहैं अष्टमी को कीजै पूजन।
सदा रहें मम कृपा सुबोजन॥
महाकाली चालीसा के लाभ
- भय का नाश: महाकाली चालीसा का पाठ करने से सभी प्रकार के भय और चिंता का नाश होता है।
- शत्रु पर विजय: शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
- संकटों से मुक्ति: जीवन के सभी संकटों से मुक्ति मिलती है।
- सकारात्मक ऊर्जा: जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक उन्नति और आत्मा की शुद्धि होती है।
- स्वास्थ्य लाभ: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- परिवार में शांति: परिवार में शांति और सौहार्द्र बना रहता है।
- धन और समृद्धि: आर्थिक समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है।
- मन की शांति: मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।
- सभी इच्छाओं की पूर्ति: भक्तों की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
- सद्गुणों की वृद्धि: जीवन में सद्गुणों की वृद्धि होती है।
- बाधाओं का निवारण: जीवन में आने वाली बाधाओं का निवारण होता है।
- शक्ति और साहस: शक्ति और साहस में वृद्धि होती है।
- मृत्यु के भय का नाश: मृत्यु के भय का नाश होता है।
- सदगति प्राप्ति: मृत्यु के बाद सदगति प्राप्त होती है।
- कष्टों का निवारण: जीवन के कष्टों का निवारण होता है।
- अशुभ शक्तियों से बचाव: अशुभ शक्तियों और बुरी नज़र से बचाव होता है।
- विवाह में अड़चनें दूर होती हैं: विवाह में आने वाली अड़चनें दूर होती हैं।
- बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार: बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- माता की कृपा: महाकाली की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
महाकाली चालीसा पाठ विधि (दिन, अवधि, मुहूर्त)
दिन: महाकाली चालीसा का पाठ विशेष रूप से मंगलवार और शनिवार के दिन किया जाता है, क्योंकि यह दिन देवी काली को समर्पित माने जाते हैं।
अवधि: यह पाठ लगभग 15-20 मिनट का होता है। इसे प्रातः काल और सायं काल में करना उत्तम होता है।
मुहूर्त:
- प्रातः काल: सूर्योदय के समय (सुबह 4 से 6 बजे के बीच)।
- सायं काल: सूर्यास्त के समय (शाम 6 से 8 बजे के बीच)।
महाकाली चालीसा विधि
- स्नान: सबसे पहले स्नान करें और स्वच्छ कपड़े पहनें।
- स्थान: पूजा के लिए एक शांत और स्वच्छ स्थान चुनें।
- आसन: किसी आसन पर बैठ जाएं (कुशासन या सफेद वस्त्र का आसन)।
- दीप जलाएं: दीपक जलाएं और कुछ धूप या अगरबत्ती जलाएं।
- पूजा सामग्री: फूल, अक्षत (चावल), चंदन, और नैवेद्य (प्रसाद) रखें।
- महाकाली मंत्र: सबसे पहले महाकाली मंत्र का 3 बार जाप करें।
- चालीसा पाठ: फिर महाकाली चालीसा का पाठ करें।
- आरती: पाठ समाप्त होने के बाद आरती करें और प्रसाद वितरण करें।
- प्रणाम: अंत में माता महाकाली को प्रणाम करें और अपनी प्रार्थना रखें।