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मतंग भैरव / Matang Bhairav Mantra for wishes

मतंग भैरव मंत्र साधना – दुर्भाग्य से मुक्ति और सफलता की कुंजी

इच्छा पूरी करने वाले महाविद्या मातंगी के भैरव “मतंग भैरव” एक प्रमुख भैरव अवतार है जो सभी तरह की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले माने जाते है। और शक्ति, साहस, सफलता और वीरता का प्रतीक मतंग भैरव हर तरह का सुख प्रदान करते है। मतंग भैरव भगवान शिव का उग्र और शक्तिशाली रूप हैं। भैरव को हिंदू धर्म में रक्षक और न्यायाधीश के रूप में जाना जाता है। वे विशेष रूप से तांत्रिक साधना में महत्वपूर्ण माने जाते हैं। मतंग भैरव का स्वरूप भयंकर होता है, जिसमें वे त्रिशूल, खड्ग, और डमरू धारण किए होते हैं। उनका वाहन कुत्ता है और वे रात्रि के समय के देवता माने जाते हैं। उनकी साधना से व्यक्ति को अद्वितीय शक्ति और सिद्धियों की प्राप्ति होती है।

मतंग भैरव मंत्र और उसका संपूर्ण अर्थ

मंत्र: ॐ भ्रं मतंग भैरवाय कार्य सिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा

इस मंत्र का अर्थ है:

  • : ब्रह्मांड की मूल ध्वनि, हर प्रकार की ऊर्जा का स्रोत।
  • भ्रं: यह मतंग भैरव का बीज मंत्र है।
  • मतंग भैरवाय: मतंग भैरव को समर्पित।
  • कार्य सिद्धिं कुरु कुरु: “मेरे कार्यों को सिद्ध करो, सिद्ध करो।”
  • स्वाहा: संपूर्णता और समर्पण का प्रतीक।

मतंग भैरव मंत्र के लाभ

  1. कार्य सिद्धि: हर प्रकार के कार्यों की सफलता।
  2. आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक जागरण और उन्नति।
  3. शत्रु नाश: शत्रुओं का नाश और बुराई से सुरक्षा।
  4. धन और समृद्धि: आर्थिक समृद्धि और धन की प्राप्ति।
  5. सौभाग्य: जीवन में सौभाग्य और सफलता।
  6. स्वास्थ्य: मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार।
  7. सकारात्मक ऊर्जा: सकारात्मक ऊर्जा और उत्साह का संचार।
  8. रिश्तों में सुधार: पारिवारिक और सामाजिक संबंधों में सुधार।
  9. आत्मविश्वास: आत्मविश्वास और आत्मसम्मान की वृद्धि।
  10. धार्मिकता: धर्म और अध्यात्म में रुचि और श्रद्धा।
  11. कर्मों की शुद्धि: पिछले कर्मों के दोषों की शुद्धि।
  12. मानसिक शांति: मानसिक शांति और स्थिरता।
  13. सफलता: जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता।
  14. आकर्षण: व्यक्ति को आकर्षक बनाना।
  15. संतान प्राप्ति: संतान प्राप्ति में सहायता।
  16. भयमुक्ति: भय और असुरक्षा से मुक्ति।
  17. आध्यात्मिक मार्गदर्शन: सच्चे मार्ग पर मार्गदर्शन।
  18. कर्म सुधार: अच्छे कर्म करने की प्रेरणा।
  19. सपनों की पूर्ति: इच्छाओं और सपनों की पूर्ति।
  20. दुष्ट शक्तियों से रक्षा: नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा।

मंत्र विधि

दिन

मतंग भैरव मंत्र का जप किसी भी दिन शुरू किया जा सकता है, लेकिन विशेषतः मंगलवार, शनिवार, या अष्टमी का दिन शुभ माना जाता है।

अवधि

मंत्र जप की अवधि 11 से 21 दिन होनी चाहिए। इस दौरान नियमित रूप से मंत्र जप करना आवश्यक है।

मुहुर्थ

प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) या संध्याकाल (शाम 6 से 8 बजे) को मंत्र जप का सर्वोत्तम समय माना जाता है।

सामग्री

  1. मतंग भैरव की प्रतिमा या चित्र
  2. पुष्प (खासकर लाल और काले फूल)
  3. धूप/अगरबत्ती
  4. दीपक (घी का दीपक सर्वोत्तम होता है)
  5. आसन (साफ और पवित्र स्थान पर बैठने के लिए)
  6. जल पात्र
  7. मौली (रक्षा सूत्र)

मतंग भैरव मंत्र जप

मंत्र जप की अवधि 11 से 21 दिन तक होनी चाहिए। रोजाना नियमित समय पर मंत्र जप करना आवश्यक है।

मतंग भैरव मंत्र जप संख्या

मंत्र जप की संख्या एक माला यानी 108 बार से लेकर 11 माला यानी 1188 मंत्र रोज जप करना चाहिए।

मतंग भैरव मंत्र जप के नियम

  1. स्नान: जप से पहले स्नान कर लें।
  2. पवित्र स्थान: पवित्र और शांत स्थान पर बैठें।
  3. आसन: एक साफ और पवित्र आसन का प्रयोग करें।
  4. समर्पण भाव: पूर्ण समर्पण भाव और एकाग्रता के साथ मंत्र जप करें।
  5. रोजाना नियमित समय: रोजाना एक ही समय पर मंत्र जप करें।
  6. माला: रुद्राक्ष या लाल चंदन की माला का प्रयोग करें।
  7. ध्यान: मतंग भैरव का ध्यान करते हुए मंत्र जप करें।
  8. सकारात्मक सोच: जप के दौरान सकारात्मक सोच और भाव रखें।
  9. नियमितता: जप को नियमित रूप से करें, बिना किसी दिन का छोड़ें।
  10. स्वच्छता: जप के स्थान और आसन की स्वच्छता का ध्यान रखें।
  11. द्रव्य: जप के दौरान या बाद में मतंग भैरव को नैवेद्य (भोग) अर्पित करें।
  12. लाल पुष्प: मतंग भैरव को लाल और काले पुष्प अर्पित करें।
  13. धूप-दीप: धूप-दीप जलाकर मतंग भैरव की आरती करें।
  14. मौन: जप के समय मौन रहें और बाहरी विचारों से बचें।
  15. श्रद्धा: श्रद्धा और विश्वास के साथ मंत्र जप करें।
  16. धैर्य: मंत्र के फलों के लिए धैर्य रखें, तुरंत परिणाम की अपेक्षा न करें।
  17. शुद्धि: मानसिक और शारीरिक शुद्धि बनाए रखें।
  18. व्रत: मंत्र जप के दौरान व्रत का पालन करें, यदि संभव हो तो।
  19. सहजता: सहज और सरल मन से मंत्र जप करें।
  20. ध्यान और ध्यान: जप के बाद कुछ समय ध्यान करें और मतंग भैरव के चरणों में ध्यान लगाएं।

मतंग भैरव मंत्र जप सावधानी

  1. ध्यान और एकाग्रता: जप के दौरान ध्यान भटकने से बचें।
  2. सही उच्चारण: मंत्र का उच्चारण सही और स्पष्ट होना चाहिए।
  3. नियमितता: जप को बिना किसी व्यवधान के नियमित रूप से करें।
  4. शुद्धता: जप के स्थान और आसन की स्वच्छता बनाए रखें।
  5. समय का पालन: रोजाना एक ही समय पर जप करें।
  6. धैर्य: धैर्य रखें और जल्दबाजी में न हों।
  7. सकारात्मकता: सकारात्मक और शांत मन से जप करें।
  8. विचार शुद्धि: नकारात्मक विचारों से बचें।
  9. सामग्री का ध्यान: जप के लिए आवश्यक सामग्री जैसे माला, आसन आदि का ध्यान रखें।
  10. शारीरिक स्थिति: स्वस्थ और संयमित शारीरिक स्थिति में जप करें।
  11. पर्यावरण: शांति और सकारात्मक ऊर्जा वाले स्थान पर जप करें।
  12. संवेदना: जप के दौरान संवेदनशीलता और श्रद्धा बनाए रखें।
  13. धर्म और नियम: धर्म और नियमों का पालन करें।
  14. नियमित अभ्यास: नियमित अभ्यास से मंत्र जप का प्रभाव बढ़ता है।
  15. प्रेरणा: स्वयं को प्रेरित और उत्साहित रखें।
  16. भक्ति: भक्ति और श्रद्धा के साथ जप करें।
  17. समर्पण: पूरी तरह से मतंग भैरव के प्रति समर्पित रहें।
  18. संतुलन: शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाए रखें।
  19. स्वस्थ भोजन: स्वास्थ्यवर्धक और सात्विक भोजन का सेवन करें।
  20. सहजता: जप को सहज और सरल बनाएं।

मतंग भैरव मंत्र से संबंधित प्रश्न-उत्तर

  1. प्रश्न: मतंग भैरव कौन हैं?
    उत्तर: मतंग भैरव भगवान शिव का उग्र और शक्तिशाली रूप हैं।
  2. प्रश्न: मतंग भैरव मंत्र क्या है?
    उत्तर: ॐ भ्रं मतंग भैरवाय कार्य सिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा।
  3. प्रश्न: इस मंत्र का अर्थ क्या है?
    उत्तर: यह मंत्र मतंग भैरव से कार्य सिद्धि की प्रार्थना करता है।
  4. प्रश्न: मतंग भैरव मंत्र के लाभ क्या हैं?
    उत्तर: यह कार्य सिद्धि, शत्रु नाश, धन, स्वास्थ्य, और सौभाग्य प्रदान करता है।
  5. प्रश्न: मंत्र जप की विधि क्या है?
    उत्तर: प्रातःकाल या संध्याकाल में, साफ और पवित्र स्थान पर, स्नान करके, एकाग्रता और श्रद्धा के साथ जप करना चाहिए।
  6. प्रश्न: मंत्र जप की अवधि क्या होनी चाहिए?
    उत्तर: 11 से 21 दिन तक रोजाना जप करना चाहिए।
  7. प्रश्न: मंत्र जप की संख्या क्या होनी चाहिए?
    उत्तर: एक माला यानी 108 बार से लेकर 11 माला यानी 1188 मंत्र रोज जप करना चाहिए।
  8. प्रश्न: जप के दौरान किस सामग्री का उपयोग करना चाहिए?
    उत्तर: मतंग भैरव की प्रतिमा या चित्र, पुष्प, धूप/अगरबत्ती, दीपक, आसन, जल पात्र, मौली।
  9. प्रश्न: मंत्र जप के नियम क्या हैं?
    उत्तर: स्नान, पवित्र स्थान, आसन, समर्पण भाव, रोजाना नियमित समय, माला का प्रयोग, ध्यान, सकारात्मक सोच, नियमितता, स्वच्छता, द्रव्य अर्पण, लाल पुष्प चढ़ाना, धूप-दीप जलाना, मौन रहना, श्रद्धा और धैर्य बनाए रखना।
  10. प्रश्न: मंत्र जप के दौरान कौन सी सावधानियाँ रखनी चाहिए?
    उत्तर: ध्यान और एकाग्रता, सही उच्चारण, नियमितता, शुद्धता, समय का पालन, धैर्य, सकारात्मकता, विचार शुद्धि, सामग्री का ध्यान, शारीरिक स्थिति, पर्यावरण, संवेदना, धर्म और नियमों का पालन।
  11. प्रश्न: क्या मंत्र जप के दौरान व्रत का पालन करना चाहिए?
    उत्तर: हाँ, यदि संभव हो तो व्रत का पालन करना चाहिए।
  12. प्रश्न: मंत्र जप के बाद क्या करना चाहिए?
    उत्तर: जप के बाद ध्यान करें और मतंग भैरव के चरणों में ध्यान लगाएं।
  13. प्रश्न: मतंग भैरव मंत्र के कौन-कौन से बीज मंत्र शामिल हैं?
    उत्तर: भ्रं बीज मंत्र शामिल है।
  14. प्रश्न: मतंग भैरव का प्रमुख मंदिर कहाँ स्थित है?
    उत्तर: मतंग भैरव का प्रमुख मंदिर तिरुवन्नामलाई, तमिलनाडु में स्थित है।
  15. प्रश्न: मतंग भैरव का स्वरूप कैसा होता है?
    उत्तर: मतंग भैरव का स्वरूप भयंकर होता है, जिसमें वे त्रिशूल, खड्ग, और डमरू धारण किए होते हैं।
  16. प्रश्न: मंत्र जप का सर्वोत्तम समय क्या है?
    उत्तर: प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) और संध्याकाल (शाम 6 से 8 बजे) को मंत्र जप का सर्वोत्तम समय माना जाता है।
  17. प्रश्न: मतंग भैरव मंत्र के जप से कौन-कौन से दोष मिटते हैं?
    उत्तर: पिछले कर्मों के दोष, तनाव, चिंता, भय, और असुरक्षा की भावना मिटती है।
  18. प्रश्न: मतंग भैरव मंत्र जप करने से किस प्रकार के रिश्तों में सुधार होता है?
    उत्तर: पारिवारिक और सामाजिक संबंधों में सुधार होता है।
  19. प्रश्न: क्या मतंग भैरव मंत्र जप से संतान प्राप्ति में मदद मिलती है?
    उत्तर: हाँ, मतंग भैरव मंत्र जप से संतान प्राप्ति में सहायता मिलती है।
  20. प्रश्न: मंत्र जप के दौरान किन चीजों का त्याग करना चाहिए?
    उत्तर: नकारात्मक विचार, आलस्य, अव्यवस्थित जीवनशैली, और अधार्मिक कर्मों का त्याग करना चाहिए।
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