Buy now

spot_img
spot_img
Home Blog Page 72

Rudra gayatri mantra for wealth & peace

Rudra gayatri mantra भगवान शिव की आराधना का एक प्रमुख मंत्र है। इसे रुद्र गायत्री या शिव गायत्री मंत्र के नाम से जाना जाता है। यह मंत्र भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने और जीवन में शांति और समृद्धि लाने के लिए जाप किया जाता है। इस मंत्र में भगवान शिव के रुद्र रूप की स्तुति की जाती है।

मंत्र

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि।
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
OM TATPURUSHAAY VIDYAMAHE MAHAADEVAAY DHEEMAHI TANNO RUDRAH PRACHODAYAAT.

लाभ

  1. शांति और मानसिक स्थिरता: इस मंत्र का जाप मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त करने में सहायक होता है।
  2. धन की प्राप्ति: इसे नियमित जाप करने से आर्थिक समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है।
  3. स्वास्थ्य में सुधार: रुद्र गायत्री मंत्र का जाप शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करता है।
  4. नकारात्मक ऊर्जा से बचाव: इस मंत्र का जाप नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से बचाव करता है।
  5. आध्यात्मिक उन्नति: यह मंत्र आध्यात्मिक उन्नति और आत्मज्ञान की प्राप्ति में सहायक होता है।
  6. शत्रुओं से रक्षा: रुद्र गायत्री मंत्र का जाप शत्रुओं से रक्षा करता है।
  7. कर्म सुधार: इस मंत्र का जाप हमारे कर्मों को सुधारने और जीवन को सकारात्मक दिशा देने में मदद करता है।
  8. सकारात्मकता का संचार: रुद्र गायत्री मंत्र का जाप सकारात्मकता और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।
  9. अज्ञानता का नाश: यह मंत्र अज्ञानता और अंधकार का नाश करता है।
  10. कष्टों से मुक्ति: रुद्र गायत्री मंत्र का जाप सभी प्रकार के कष्टों और दुखों से मुक्ति दिलाता है।
  11. आयु वृद्धि: यह मंत्र आयु वृद्धि और दीर्घायु का वरदान देता है।
  12. विवाह में बाधा निवारण: इस मंत्र का जाप विवाह में आने वाली बाधाओं को दूर करता है।
  13. संतान प्राप्ति: रुद्र गायत्री मंत्र का जाप संतान सुख की प्राप्ति में सहायक होता है।
  14. स्वाभाविक आकर्षण: इस मंत्र का जाप स्वाभाविक आकर्षण और आकर्षक व्यक्तित्व प्रदान करता है।
  15. न्याय और सत्य: रुद्र गायत्री मंत्र का जाप न्याय और सत्य के मार्ग पर चलने में मदद करता है।
  16. भाग्यवृद्धि: यह मंत्र भाग्यवृद्धि और शुभ कार्यों की प्राप्ति में सहायक होता है।
  17. मुक्ति: रुद्र गायत्री मंत्र का जाप अंततः मोक्ष या मुक्ति की प्राप्ति में सहायक होता है।

रुद्र गायत्री मंत्र के जाप की विधि

  1. शुद्धता और स्वच्छता: मंत्र जाप से पहले शारीरिक और मानसिक शुद्धता आवश्यक है।
  2. स्नान: स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनें और पूजा स्थल पर जाएं।
  3. पूजा स्थल: एक शांत और स्वच्छ स्थान पर पूजा स्थल तैयार करें।
  4. आसन: एक आरामदायक आसन पर बैठें और अपनी पीठ को सीधा रखें।
  5. ध्यान: अपनी आँखें बंद करें और भगवान शिव के रुद्र रूप का ध्यान करें।
  6. मंत्र जाप: मंत्र का उच्चारण शुद्ध और स्पष्ट रूप से करें।
  7. माल का उपयोग: रुद्राक्ष माला का उपयोग करते हुए मंत्र का जाप करें।
  8. संकल्प: जाप शुरू करने से पहले संकल्प लें कि आप किस उद्देश्य के लिए मंत्र जाप कर रहे हैं।
  9. नियमितता: नियमित रूप से इस मंत्र का जाप करें।
  10. शांत मन: मन को शांत और स्थिर रखें और पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ मंत्र का जाप करें।

Kamakhya sadhana shivir

सावधानियाँ

  1. शुद्धता का पालन: मंत्र जाप के दौरान शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
  2. सही उच्चारण: मंत्र का उच्चारण सही और स्पष्ट हो, ताकि उसका पूरा प्रभाव प्राप्त हो सके।
  3. सही समय: सुबह और शाम के समय मंत्र जाप करना अधिक फलदायी होता है।
  4. ध्यान की विधि: ध्यान के समय किसी भी प्रकार की विक्षेपित विचारों से दूर रहें।
  5. शांति का माहौल: मंत्र जाप के समय शांति का माहौल बनाए रखें और किसी भी प्रकार के शोर-शराबे से दूर रहें।
  6. भक्ति और श्रद्धा: मंत्र जाप पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ करें।
  7. आसन का चयन: ऐसे आसन का चयन करें जिसमें आप लंबे समय तक आराम से बैठ सकें।
  8. दिशा का ध्यान: मंत्र जाप के समय पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
  9. नियमितता: मंत्र जाप में नियमितता बनाए रखें, बीच-बीच में अंतराल न डालें।
  10. व्रत और उपवास: मंत्र जाप के दिन व्रत और उपवास करना अधिक लाभकारी हो सकता है।

Online store

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न 1: रुद्र गायत्री मंत्र क्या है?

उत्तर: रुद्र गायत्री मंत्र भगवान शिव के रुद्र रूप की स्तुति करने वाला एक प्रमुख मंत्र है। इसे जपने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में शांति, समृद्धि और सुरक्षा का अनुभव होता है।

प्रश्न 2: रुद्र गायत्री मंत्र का पाठ कैसे करें?

उत्तर: रुद्र गायत्री मंत्र का पाठ करने के लिए निम्नलिखित विधि अपनाएं:

  1. स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
  2. एक शांत और स्वच्छ स्थान पर बैठें।
  3. पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
  4. रुद्राक्ष माला का उपयोग करते हुए मंत्र का जाप करें।
  5. मंत्र का उच्चारण शुद्ध और स्पष्ट हो।

प्रश्न 3: रुद्र गायत्री मंत्र का उच्चारण कैसे करें?

उत्तर: रुद्र गायत्री मंत्र का उच्चारण इस प्रकार करें:

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि।
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

प्रश्न 4: रुद्र गायत्री मंत्र का जाप कब करना चाहिए?

उत्तर: रुद्र गायत्री मंत्र का जाप सुबह और शाम के समय करना सबसे अधिक फलदायी होता है। इन समयों पर मन अधिक शांति और स्थिरता में रहता है।

प्रश्न 5: क्या रुद्र गायत्री मंत्र का जाप किसी विशेष उद्देश्य के लिए किया जा सकता है?

उत्तर: हाँ, रुद्र गायत्री मंत्र का जाप विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है जैसे कि मानसिक शांति, आर्थिक समृद्धि, स्वास्थ्य सुधार, शत्रुओं से रक्षा, और आध्यात्मिक उन्नति आदि।

प्रश्न 6: क्या रुद्र गायत्री मंत्र का जाप करने से कोई सावधानियाँ बरतनी चाहिए?

उत्तर: हाँ, मंत्र जाप के दौरान निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी चाहिए:

  1. शुद्धता का पालन करें।
  2. सही उच्चारण करें।
  3. शांत और स्वच्छ माहौल में जाप करें।
  4. नियमितता बनाए रखें।
  5. पूर्ण भक्ति और श्रद्धा के साथ जाप करें।

प्रश्न 7: रुद्र गायत्री मंत्र का जाप कितनी बार करना चाहिए?

उत्तर: सामान्यतः इस मंत्र का जाप 108 बार करना उत्तम माना जाता है। आप रुद्राक्ष माला का उपयोग करके जाप कर सकते हैं।

Aprajita mantra for victory & protection

अपराजिता मंत्र परिचय

अपराजिता देवी दुर्गा का एक रूप हैं, जिन्हें अजेयता और विजय की देवी माना जाता है। ‘अपराजिता’ का अर्थ है ‘जो कभी पराजित नहीं हो सकती’। यह देवी दुर्गा का ऐसा रूप है जो जीवन में सभी प्रकार की चुनौतियों और संकटों पर विजय प्राप्त करने के लिए आराधना की जाती है।

मंत्र:

॥ॐ ह्रीं क्लीं अपराजिते नमः॥

अपराजिता मंत्र के लाभ

  1. सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति: यह मंत्र जीवन में आने वाली सभी बाधाओं और विघ्नों को दूर करने में सहायक होता है।
  2. विजय की प्राप्ति: अपराजिता मंत्र का जाप करने से सभी कार्यों में विजय प्राप्त होती है।
  3. साहस और शक्ति का विकास: यह मंत्र साधक को मानसिक और शारीरिक साहस प्रदान करता है।
  4. दुश्मनों से रक्षा: यह मंत्र दुश्मनों से सुरक्षा प्रदान करता है और उनके षडयंत्रों को विफल करता है।
  5. आत्मविश्वास में वृद्धि: अपराजिता मंत्र के नियमित जाप से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  6. धन और समृद्धि: इस मंत्र का जाप करने से आर्थिक समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है।
  7. स्वास्थ्य लाभ: यह मंत्र शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में सहायक होता है।
  8. सकारात्मक ऊर्जा: अपराजिता मंत्र सकारात्मक ऊर्जा और वातावरण का संचार करता है।
  9. शत्रुओं पर विजय: शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए इस मंत्र का प्रयोग किया जाता है।
  10. मानसिक शांति: यह मंत्र मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
  11. संतान सुख: अपराजिता मंत्र के जाप से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
  12. कार्य में सफलता: कार्यों में सफलता और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
  13. परिवार की रक्षा: यह मंत्र परिवार के सदस्यों की सुरक्षा और समृद्धि के लिए किया जाता है।
  14. आध्यात्मिक विकास: साधक के आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है।
  15. सौभाग्य की प्राप्ति: यह मंत्र साधक को सौभाग्य और खुशहाली प्रदान करता है।
  16. विवाह में सफलता: विवाह में आने वाली बाधाओं को दूर करने में सहायक होता है।
  17. व्यवसाय में वृद्धि: व्यापार और व्यवसाय में वृद्धि के लिए अपराजिता मंत्र का जाप किया जाता है।
  18. किस्मत का उदय: साधक की किस्मत को उदित करने में सहायक होता है।
  19. अनिष्ट शक्तियों से रक्षा: यह मंत्र साधक को अनिष्ट शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जा से बचाता है।
  20. शक्ति और सामर्थ्य: यह मंत्र साधक को अत्यधिक शक्ति और सामर्थ्य प्रदान करता है।

विधि

  1. स्नान और शुद्धिकरण: सर्वप्रथम सुबह स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
  2. पूजा स्थल की तैयारी: पूजा स्थल को साफ-सुथरा करें और अपराजिता देवी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  3. दीप प्रज्वलन: दीपक जलाएं और अगरबत्ती लगाएं।
  4. संकल्प: पूजा का संकल्प लें और अपने उद्देश्य को मन में स्थापित करें।
  5. ध्यान: अपराजिता देवी का ध्यान करें और मंत्र का जाप आरंभ करें।
  6. मंत्र जाप: अपराजिता मंत्र का 108 बार जाप करें।
  7. अभिषेक: देवी को जल, दूध, और पंचामृत से अभिषेक करें।
  8. नैवेद्य: देवी को फल, मिठाई और अन्य नैवेद्य अर्पित करें।
  9. आरती: अपराजिता देवी की आरती करें और प्रसाद वितरित करें।
  10. ध्यान: अंत में देवी का ध्यान करें और उनसे प्रार्थना करें कि वह आपकी सभी बाधाओं को दूर करें और आपको विजय प्रदान करें।

Kamakhya sadhana shivir

सावधानियाँ

  1. शुद्धता का ध्यान रखें: पूजा स्थल और स्वयं की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
  2. मन की एकाग्रता: मंत्र जाप करते समय मन को एकाग्र रखें।
  3. समय का पालन: नियमित रूप से एक निश्चित समय पर मंत्र जाप करें।
  4. शुद्ध वस्त्र धारण करें: पूजा के समय शुद्ध और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  5. संकल्प की दृढ़ता: संकल्प को मन में दृढ़ रखें और पूर्ण श्रद्धा के साथ मंत्र का जाप करें।
  6. व्रत और उपवास: यदि संभव हो तो विशेष दिन व्रत और उपवास रखें।
  7. आहार और व्यवहार: सात्विक आहार ग्रहण करें और अपने व्यवहार में संयम रखें।
  8. नकारात्मक विचारों से बचें: नकारात्मक विचारों से बचें और सकारात्मक सोच रखें।
  9. भक्ति और श्रद्धा: पूर्ण भक्ति और श्रद्धा के साथ देवी अपराजिता की आराधना करें।
  10. मंत्र उच्चारण: मंत्र का सही उच्चारण और उच्च स्वर में जाप करें।

Spiritual store

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. अपराजिता मंत्र क्या है?

अपराजिता मंत्र देवी दुर्गा के एक रूप की आराधना के लिए जाप किया जाता है। यह मंत्र साधक को अजेय और विजयी बनाने में सहायक होता है।

2. अपराजिता मंत्र का क्या महत्व है?

यह मंत्र जीवन में आने वाली सभी बाधाओं और संकटों को दूर करने, शत्रुओं से रक्षा, आत्मविश्वास में वृद्धि, आर्थिक समृद्धि, और मानसिक शांति प्रदान करने में महत्वपूर्ण है।

3. अपराजिता मंत्र कब जाप करना चाहिए?

सुबह स्नान के बाद या संध्याकाल में पूजा स्थल पर शुद्ध वस्त्र धारण कर मंत्र जाप करना सबसे उत्तम माना जाता है।

4. अपराजिता मंत्र का जाप कितनी बार करना चाहिए?

मंत्र का जाप 108 बार या इसकी गुणक संख्या में करना चाहिए। नियमित जाप से अधिक लाभ प्राप्त होते हैं।

5. अपराजिता मंत्र के जाप के लिए कौन-कौन सी सामग्री चाहिए?

पूजा स्थल, अपराजिता देवी की प्रतिमा या चित्र, दीपक, अगरबत्ती, जल, दूध, पंचामृत, फल, मिठाई, और नैवेद्य सामग्री चाहिए।

6. क्या अपराजिता मंत्र का जाप किसी विशेष दिन करना चाहिए?

हां, नवरात्रि, मंगलवार, और शुक्रवार के दिन अपराजिता मंत्र का जाप विशेष फलदायी माना जाता है।

7. क्या अपराजिता मंत्र का जाप घर पर किया जा सकता है?

हां, अपराजिता मंत्र का जाप घर पर शुद्ध वातावरण में किया जा सकता है।

8. अपराजिता मंत्र के जाप के दौरान कौन-कौन सी सावधानियाँ बरतनी चाहिए?

पूजा स्थल और स्वयं की शुद्धता का ध्यान रखें, मंत्र का सही उच्चारण करें, नकारात्मक विचारों से बचें, और पूर्ण भक्ति और श्रद्धा के साथ जाप करें।

9. क्या अपराजिता मंत्र के जाप से शत्रुओं से मुक्ति मिलती है?

हां, यह मंत्र दुश्मनों से सुरक्षा प्रदान करता है और उनके षडयंत्रों को विफल करता है।

Shri rama tarak mantra for wealth & success

ये मंत्र साधना, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण साधना मानी जाती है, जो भगवान राम के प्रति श्रद्धा और भक्ति को प्रकट करने के लिए की जाती है। यह साधना विशेष रूप से जीवन की कठिनाइयों को दूर करने और आत्मिक शांति प्राप्त करने के लिए की जाती है।

राम तारक मंत्र

राम तारक मंत्र इस प्रकार है:
“ॐ रीं रामाय नमः”

साधना की विधि

1. साधना का समय और स्थान

  • समय: ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) या संध्या समय (शाम 6 से 8 बजे) सबसे उपयुक्त माना जाता है।
  • स्थान: शांत और स्वच्छ स्थान चुनें। साधना के लिए पूजा स्थल को तैयार करें।

2. तैयारी

  • स्नान: सबसे पहले, स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • आसन: एक स्वच्छ आसन पर बैठें। पीले या सफेद वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।

3. पूजा स्थल की तैयारी

  • भगवान राम की प्रतिमा या चित्र: पूजा स्थल पर भगवान राम की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  • दीप और धूप: दीपक जलाएं और धूप या अगरबत्ती लगाएं।
  • पुष्प और नैवेद्य: भगवान राम को पुष्प, फल, मिठाई आदि अर्पित करें।

4. मंत्र जाप की विधि

  • मंत्र का उच्चारण: “ॐ रामाय नमः” मंत्र का जाप करें।
  • माला का उपयोग: 108 मनकों की माला का उपयोग करके मंत्र का जाप करें। कम से कम एक माला (108 बार) मंत्र का जाप करें। जाप संख्या को धीरे-धीरे बढ़ाया जा सकता है।
  • ध्यान: मंत्र जाप के बाद कुछ समय भगवान राम के ध्यान में बिताएं। उनकी लीलाओं और गुणों का स्मरण करें।

5. आरती और प्रार्थना

  • आरती: मंत्र जाप और ध्यान के बाद भगवान राम की आरती करें।
  • प्रार्थना: भगवान राम से अपनी इच्छाओं और समस्याओं के निवारण की प्रार्थना करें।

Kamakahya sadhana shivir

साधना के लाभ

  1. आध्यात्मिक शांति: राम तारक मंत्र साधना से मन को शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।
  2. कष्टों का निवारण: जीवन की समस्याएं और कष्ट दूर होते हैं।
  3. आध्यात्मिक उन्नति: साधक की आत्मिक उन्नति होती है और भगवान राम की कृपा प्राप्त होती है।
  4. सकारात्मक ऊर्जा: साधना से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।
  5. सफलता और समृद्धि: साधना करने से जीवन में सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है।

Online store

श्रीं राम तारक मंत्र साधना पृश्न उत्तर

प्रश्न 1: राम तारक मंत्र क्या है?
उत्तर: राम तारक मंत्र “ॐ रामाय नमः” है। यह मंत्र भगवान राम को समर्पित है और इसका जाप करने से भक्त को शांति, सुख, और समृद्धि प्राप्त होती है।

प्रश्न 2: राम तारक मंत्र साधना का समय क्या है?
उत्तर: राम तारक मंत्र साधना के लिए सबसे उपयुक्त समय ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) या संध्या समय (शाम 6 से 8 बजे) होता है। इन समयों में वातावरण शांत और पवित्र होता है, जिससे साधना का प्रभाव अधिक होता है।

प्रश्न 3: राम तारक मंत्र साधना के लाभ क्या हैं?
उत्तर: राम तारक मंत्र साधना से मानसिक शांति, आत्मिक उन्नति, जीवन की समस्याओं का निवारण, सकारात्मक ऊर्जा का संचार, और सफलता तथा समृद्धि प्राप्त होती है।

प्रश्न 4: साधना के दौरान कौन से आसन का उपयोग करना चाहिए?
उत्तर: साधना के लिए पद्मासन, सुखासन, या वज्रासन का उपयोग किया जा सकता है। यह सुनिश्चित करें कि आसन स्वच्छ और आरामदायक हो।

प्रश्न 5: राम तारक मंत्र साधना के लिए माला का उपयोग कैसे करें?
उत्तर: 108 मनकों की माला का उपयोग करें। माला को दाएं हाथ की उंगलियों से पकड़ें और हर मनके पर मंत्र “ॐ रामाय नमः” का जाप करें। माला के सिरों को पार न करें, माला को उलटा घुमाकर पुनः जाप करें।

प्रश्न 6: क्या मंत्र जाप के लिए विशेष दिशा का महत्व है?
उत्तर: हां, मंत्र जाप के लिए पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना शुभ माना जाता है। यह दिशाएँ सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती हैं।


Pitra mantra for Ancestors blessing

अगर आप संतान की समस्या, विवाह की समस्या, नजर (evil eye) दोष, ब्लैकमेजिक, तंत्र बाधा व आपके पने आपसे दूर होने लगे तो हर अमावस्या को पित्र मंत्र का जाप करे या फिर पित्र पूजा अवश्य करवायें।

पित्र मंत्र:

ॐ ह्रीं पितृ देवाय नमः

लाभ:

  1. पितरों की शांति: पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष रूप से प्रभावी होता है।
  2. कर्म दोष निवारण: पितृ दोष को दूर करता है और जीवन में सुख-समृद्धि लाता है।
  3. पारिवारिक कलह समाप्ति: परिवार में चल रहे कलह और विवाद को समाप्त करता है।
  4. संतान सुख: संतान प्राप्ति के लिए अत्यंत लाभकारी है।
  5. वास्तु दोष निवारण: घर के वास्तु दोष को दूर करता है।
  6. स्वास्थ्य लाभ: स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को दूर करता है।
  7. आर्थिक उन्नति: आर्थिक स्थिति में सुधार करता है।
  8. पेशेवर सफलता: कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
  9. आत्मशांति: मानसिक शांति और स्थिरता मिलती है।
  10. दुर्घटनाओं से बचाव: अनहोनी और दुर्घटनाओं से बचाव करता है।
  11. आध्यात्मिक विकास: आत्मिक उन्नति और आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ती है।
  12. नकारात्मक ऊर्जा का नाश: नकारात्मक ऊर्जा और बाधाओं को समाप्त करता है।
  13. पूर्वजों का आशीर्वाद: पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  14. प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा: प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा करता है।
  15. धन की प्राप्ति: धन की प्राप्ति में सहायता करता है।
  16. विद्या और ज्ञान: विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
  17. समाज में प्रतिष्ठा: समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा बढ़ती है।
  18. दीर्घायु: दीर्घायु और स्वस्थ जीवन मिलता है।
  19. धर्म और कर्तव्य का पालन: धर्म और कर्तव्य के प्रति जागरूकता बढ़ती है।
  20. विवाह में सफलता: विवाह संबंधी समस्याओं का समाधान करता है।

विधि:

  1. स्नान और स्वच्छता: सबसे पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. स्थान: शांत और पवित्र स्थान का चयन करें।
  3. पूजन सामग्री: पितरों के चित्र या प्रतिमा के सामने दीपक, धूप, फूल, और ताजे जल का उपयोग करें।
  4. मंत्र जाप: मंत्र का जाप 108 बार करें। जाप के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें।
  5. तर्पण: पितरों को जल अर्पित करें और तर्पण की क्रिया करें।
  6. ध्यान: पितरों का ध्यान करते हुए, पूर्ण श्रद्धा और समर्पण के साथ मंत्र का जाप करें।
  7. अर्पण: मंत्र जाप के बाद पितरों के लिए कुछ भोजन या विशेष सामग्री अर्पित करें।

Kamakhya sadhana shivir

सावधानियां:

  1. शुद्धता: मंत्र जाप के समय और स्थान की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
  2. समर्पण: मंत्र का जाप पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ करें।
  3. नियमितता: इस मंत्र का जाप नियमित रूप से करें, जिससे अधिकतम लाभ प्राप्त हो सकें।
  4. भोजन: जाप के पहले और बाद में सात्विक भोजन ग्रहण करें।
  5. व्रत और नियम: यदि संभव हो, तो विशेष तिथियों (अमावस्या, पितृ पक्ष) पर व्रत रखें और नियमपूर्वक पूजा करें।
  6. समय: प्रातःकाल और संध्या के समय मंत्र जाप करना सर्वोत्तम होता है।
  7. ध्यान: जाप के दौरान अन्य विचारों से मन को मुक्त रखें और पितरों का ध्यान करें।
  8. श्राद्ध कर्म: पितरों के श्राद्ध कर्म को उचित विधि से संपन्न करें।
  9. शुद्ध आचरण: जाप के दौरान और उसके बाद शुद्ध आचरण रखें।
  10. सकारात्मक सोच: सकारात्मक सोच और विश्वास के साथ मंत्र का जाप करें।

Spiritual store

पितृ मंत्र: पृश्न उत्तर

1. पितृ मंत्र क्या है?

पितृ मंत्र भगवान शिव को समर्पित एक विशेष मंत्र है जो पितरों की आत्मा की शांति और उनके आशीर्वाद के लिए जपा जाता है।

2. इस मंत्र का जाप कब करना चाहिए?

पितृ मंत्र का जाप प्रातःकाल या संध्या के समय करना श्रेष्ठ माना जाता है। विशेषकर पितृ पक्ष और अमावस्या के दिन इसका जाप अत्यंत लाभकारी होता है।

3. इस मंत्र का जाप कितनी बार करना चाहिए?

इस मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करना चाहिए। इसके लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग कर सकते हैं।

4. क्या इस मंत्र का जाप किसी विशेष स्थान पर करना चाहिए?

मंत्र का जाप एक शांत और पवित्र स्थान पर करना चाहिए, जहां ध्यान भंग न हो। घर में पूजा स्थल या किसी मंदिर में भी जाप कर सकते हैं।

5. मंत्र जाप के लिए कौन-कौन से वस्त्र पहनने चाहिए?

स्वच्छ और सफेद या हल्के रंग के वस्त्र पहनना श्रेष्ठ माना जाता है। ध्यान रखें कि वस्त्र पूरी तरह से साफ हों।

6. क्या इस मंत्र का जाप करने के लिए कुछ विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है?

हाँ, मंत्र जाप के दौरान पितरों की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक, धूप, फूल, ताजे जल और तर्पण के लिए अन्न या जल का उपयोग करें।

7. क्या इस मंत्र का जाप करने के लिए व्रत रखना आवश्यक है?

व्रत रखना अनिवार्य नहीं है, लेकिन पितृ पक्ष और अमावस्या के दिन व्रत रखना और नियमपूर्वक पूजा करना अधिक लाभकारी हो सकता है।

8. क्या इस मंत्र का जाप करने से सभी प्रकार के पितृ दोष समाप्त हो जाते हैं?

इस मंत्र का जाप करने से पितृ दोष की शांति होती है और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

9. क्या इस मंत्र का जाप नियमित रूप से करना चाहिए?

हाँ, इस मंत्र का जाप नियमित रूप से करना चाहिए, जिससे अधिकतम लाभ प्राप्त हो सकें और पितरों का आशीर्वाद हमेशा बना रहे।

10. क्या इस मंत्र का जाप करते समय कुछ विशेष नियमों का पालन करना चाहिए?

हाँ, मंत्र जाप के समय शुद्धता, श्रद्धा, और ध्यान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। शुद्ध आचरण और सात्विक भोजन का सेवन भी आवश्यक है।

11. क्या पितृ मंत्र का जाप किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है?

हाँ, कोई भी व्यक्ति इस मंत्र का जाप कर सकता है, चाहे वह किसी भी आयु, लिंग या सामाजिक पृष्ठभूमि का हो।

12. इस मंत्र का जाप करने से अन्य क्या-क्या लाभ होते हैं?

इस मंत्र का जाप करने से पारिवारिक कलह समाप्त होता है, आर्थिक स्थिति में सुधार होता है, स्वास्थ्य लाभ मिलता है, और संतान सुख की प्राप्ति होती है।

13. मंत्र जाप के दौरान क्या ध्यान रखना चाहिए?

मंत्र जाप के दौरान मन को एकाग्रचित्त रखना चाहिए और पितरों का ध्यान करते हुए पूर्ण श्रद्धा और समर्पण के साथ जाप करना चाहिए।

14. क्या पितृ मंत्र का जाप किसी विशेष तिथि पर करना अधिक प्रभावी होता है?

हाँ, पितृ पक्ष, अमावस्या, और श्राद्ध के दिनों में पितृ मंत्र का जाप करना अधिक प्रभावी होता है।

15. क्या इस मंत्र का जाप करने से पारिवारिक सुख-शांति प्राप्त होती है?

हाँ, इस मंत्र का जाप करने से पारिवारिक सुख-शांति प्राप्त होती है और घर में समृद्धि आती है।

16. क्या पितृ मंत्र का जाप करते समय कुछ विशेष सामग्री अर्पित करनी चाहिए?

हाँ, पितरों के लिए जल, दूध, फल, और विशेष सामग्री अर्पित करनी चाहिए।

17. क्या इस मंत्र का जाप करते समय ध्यान का महत्व है?

हाँ, मंत्र जाप के दौरान ध्यान का विशेष महत्व है। इससे मन की शांति और आत्मिक उन्नति होती है।

18. क्या पितृ मंत्र का जाप करने से विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है?

हाँ, इस मंत्र का जाप करने से विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है और व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती है।

19. क्या इस मंत्र का जाप करने से समाज में प्रतिष्ठा बढ़ती है?

हाँ, इस मंत्र का जाप करने से समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा बढ़ती है।

20. क्या पितृ मंत्र का जाप करने से दीर्घायु प्राप्त होती है?

हाँ, इस मंत्र का जाप करने से दीर्घायु और स्वस्थ जीवन मिलता है।

अंत में:

पितृ मंत्र का जाप पितरों की आत्मा की शांति और अपने जीवन में सुख-समृद्धि लाने के लिए अत्यंत प्रभावी होता है। इसके नियमित जाप से पितृ दोष दूर होता है और पारिवारिक सुख-शांति प्राप्त होती है। मंत्र जाप करते समय पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजन और ध्यान करना चाहिए।

Rin Mukteshwar Mahadev mantra debt

Rin Mukteshwar Mahadev mantra debt

ऋण मुक्तेश्वर महादेवाय के इस मंत्र का जप करने पर भौतिक व ग्रहस्थ की सभी अड़चने समाप्त होने लगती है। हर तरह के कर्ज की समस्या से मुक्त करने वाले भगवान ऋण मुक्तेश्वर महादेव के मंत्र का जप हर ग्रहस्थ ब्यक्ति को करना चाहिये।

ऋण मुक्तेश्वर महादेवाय मंत्र

ॐ ह्रौं ऋण मुक्तेश्वर महादेवाय नमः॥

लाभ

  1. आर्थिक संकटों से मुक्ति: इस मंत्र का नियमित जाप करने से आर्थिक संकटों से मुक्ति मिलती है और धन की प्राप्ति होती है।
  2. कर्ज से छुटकारा: जो लोग भारी कर्ज के बोझ से दबे होते हैं, उनके लिए यह मंत्र विशेष रूप से लाभकारी होता है।
  3. शांति और समृद्धि: इस मंत्र का जाप करने से मन की शांति मिलती है और घर में समृद्धि आती है।
  4. विवादों का समाधान: यह मंत्र जीवन में आने वाले विभिन्न प्रकार के विवादों और संघर्षों का समाधान करने में सहायक होता है।

विधि

  1. स्नान और स्वच्छता: सबसे पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. मंत्र का जाप: शांत और साफ स्थान पर बैठकर इस मंत्र का 108 बार जाप करें। जाप के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग कर सकते हैं।
  3. भगवान शिव की आराधना: महादेव की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं और उन्हें जल, दूध, फूल और बेलपत्र अर्पित करें।
  4. ध्यान: मंत्र जाप के दौरान मन को एकाग्रचित्त रखें और भगवान शिव का ध्यान करें।
  5. समाप्ति: जाप समाप्ति के बाद महादेव की आरती करें और प्रसाद ग्रहण करें।

Kamakhya sadhana shivir

ऋण मुक्तेश्वर महादेवाय -सावधानियां

  1. शुद्धता: मंत्र जाप के समय और स्थान की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
  2. समर्पण: मंत्र का जाप पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ करें।
  3. नियमितता: इस मंत्र का जाप नियमित रूप से करें, जिससे अधिकतम लाभ प्राप्त हो सकें।
  4. भोजन: जाप के पहले और बाद में सात्विक भोजन ग्रहण करें।
  5. व्रत और नियम: यदि संभव हो, तो सोमवार का व्रत रखें और नियमपूर्वक पूजा करें।

Online store

ऋण मुक्तेश्वर महादेव मंत्र: FAQs

1. ऋण मुक्तेश्वर महादेव मंत्र क्या है?

ऋण मुक्तेश्वर महादेव मंत्र भगवान शिव को समर्पित एक विशेष मंत्र है। इसका जप कर्ज मुक्ति के लिए किया जाता है।
इस मंत्र का उच्चारण ऋण भार से पीड़ित व्यक्ति के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। यह शिवजी की कृपा पाने का तरीका है।

2. यह मंत्र क्यों इतना प्रभावशाली माना जाता है?

भगवान शिव को सभी बाधाओं और ऋणों से मुक्ति दिलाने वाला देव कहा गया है।
ऋण मुक्तेश्वर महादेव मंत्र का नियमित जप व्यक्ति को आर्थिक संकटों से उबारता है।

3. मंत्र का सही उच्चारण क्या है?

“ॐ ऋण मुक्तेश्वर महादेवाय नमः”
इस मंत्र का उच्चारण स्पष्ट और सही तरीके से करना आवश्यक है।

4. इस मंत्र का अर्थ क्या है?

मंत्र का अर्थ है – “भगवान महादेव, जो ऋण मुक्त करने वाले हैं, उन्हें मेरा नमन।”
यह शिवजी की स्तुति करते हुए ऋण भार से मुक्ति की प्रार्थना है।

5. कब और कैसे इस मंत्र का जाप करना चाहिए?

सुबह या संध्या के समय शुद्ध मन और शरीर से जप करें।
रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना उत्तम होता है।

6. कितने दिनों तक मंत्र का जाप करना चाहिए?

9, 11 या 18 दिनों तक मंत्र का जाप करने का विधान है।
समर्पण और श्रद्धा से किया गया जप अधिक फलदायी होता है।

7. क्या मंत्र जाप के लिए विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है?

हां, रुद्राक्ष माला, शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, अक्षत और गाय का कच्चा दूध चढ़ाएं।

8. इस मंत्र का जाप कौन कर सकता है?

कोई भी व्यक्ति, चाहे महिला हो या पुरुष, इस मंत्र का जाप कर सकता है।
शुद्ध मन से शिवजी की आराधना करें।

9. क्या कोई विशेष दिन इस मंत्र के लिए शुभ है?

सोमवार और महाशिवरात्रि जैसे शुभ दिन इस मंत्र जप के लिए सर्वोत्तम माने गए हैं।

10. मंत्र जाप में कौन से नियमों का पालन करें?

शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
मांसाहार और नशे से दूर रहें।
एकाग्रचित होकर जप करें।

11. मंत्र का जाप करते समय कौन सी सावधानियां रखनी चाहिए?

गलत उच्चारण न करें।
व्रत-नियमों का पालन करें।
शिवलिंग पर जल या दूध चढ़ाते समय भावना शुद्ध रखें।

12. इस मंत्र के जप से क्या लाभ प्राप्त होते हैं?

  • परिवार में समृद्धि और सुख-शांति
  • कर्ज से मुक्ति
  • आर्थिक संकटों का समाधान

Guru purnima Puja vidhi & importance

guru-purnima

गुरु पूर्णिमा- Thu, 10 Jul, 2025

गुरु पूर्णिमा एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है, जो गुरु के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है।
यह पर्व विशेष रूप से शिक्षकों, आध्यात्मिक गुरुओं और मार्गदर्शकों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का दिन है। गुरु पूर्णिमा आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व महर्षि वेदव्यास के जन्मदिन के रूप में भी प्रसिद्ध है।
महर्षि वेदव्यास ने वेदों का संकलन किया था और हमें ज्ञान का मार्ग दिखाया। 2025 में गुरु पूर्णिमा का पर्व 10 जुलाई को मनाया जाएगा।

गुरु पूर्णिमा का महत्व

भारतीय संस्कृति में गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है। यह पर्व गुरुओं के प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करने का अवसर देता है।
गुरु शब्द का अर्थ है “अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला”। गुरु हमें अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाते हैं।
गुरु की भूमिका केवल शिक्षा तक सीमित नहीं होती। वे जीवन के हर क्षेत्र में हमारा मार्गदर्शन करते हैं।
यह पर्व हमें गुरुओं के प्रति आभार व्यक्त करने की प्रेरणा देता है।

गुरु की भूमिका

गुरु हमारे जीवन में एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं। वे हमें सही दिशा दिखाकर सफल जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।
शिक्षा, व्यवहार, और जीवन के कठिन समय में गुरु ही हमें संभालते हैं। वे अज्ञान को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं।
गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त करना असंभव है। यह पर्व गुरुओं के अमूल्य योगदान को स्वीकारने का अवसर है।

गुरु पूर्णिमा हमें क्या सिखाती है?

यह का पर्व हमें विनम्रता और कृतज्ञता सिखाता है। यह हमें अपने गुरुओं का सम्मान करने और उनसे आशीर्वाद लेने की प्रेरणा देता है।
गुरु की कृपा से जीवन में सफलता, ज्ञान और आध्यात्मिक उन्नति संभव है।
गुरु हमें अंधकार से निकालकर प्रकाशमय जीवन की ओर ले जाते हैं।

संदेश

यह पर्व हमें बताता है कि ज्ञान का आदर करना चाहिए और अपने गुरुओं की शिक्षाओं को जीवन में उतारना चाहिए।
गुरु का सम्मान करना हमारी परंपरा और संस्कृति का हिस्सा है।
गुरु पूर्णिमा का पर्व हमें अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का सुनहरा अवसर देता है।

विधि

  1. प्रातःकाल स्नान: इस दिन प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. गुरु पूजा: अपने गुरु की तस्वीर या मूर्ति को एक स्वच्छ स्थान पर स्थापित करें।
  3. पूजा सामग्री: पूजा के लिए फूल, धूप, दीप, चंदन, कुमकुम, अक्षत, फल, मिठाई आदि का उपयोग करें।
  4. मंत्र जाप: गुरु मंत्र का जाप करें। यदि आपके गुरु ने कोई विशेष मंत्र दिया है, तो उसका जाप करें।
  5. गुरु का आशीर्वाद: गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करें और उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करें।
  6. भोजन वितरण: इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्र दान करें।
  7. सत्संग: गुरु के उपदेशों का श्रवण करें और सत्संग का आयोजन करें।
  8. भजन-कीर्तन: गुरु की महिमा में भजन-कीर्तन करें और उनके प्रति अपनी भक्ति प्रकट करें।

Kamakhya sadhana shivir

गुरु पूर्णिमा के लाभ

  1. आध्यात्मिक विकास: गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा करने से व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास होता है और वह ज्ञान के मार्ग पर अग्रसर होता है।
  2. गुरु की कृपा: इस दिन गुरु की पूजा और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने से जीवन में सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है।
  3. ज्ञान की प्राप्ति: गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को ज्ञान और बुद्धिमत्ता की प्राप्ति होती है।
  4. स्वास्थ्य लाभ: गुरु की कृपा से व्यक्ति को अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  5. मानसिक शांति: गुरु पूजा करने से मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।
  6. समाज में सम्मान: गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करने से व्यक्ति को समाज में सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
  7. धार्मिक उन्नति: गुरु पूजा करने से व्यक्ति की धार्मिक उन्नति होती है और वह धर्म के मार्ग पर चलता है।
  8. अवसाद से मुक्ति: गुरु की कृपा से व्यक्ति को अवसाद और मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है।
  9. सकारात्मक ऊर्जा: गुरु पूजा से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है जो जीवन में सकारात्मकता लाता है।
  10. परिवार में सुख-शांति: गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।
  11. आध्यात्मिक मार्गदर्शन: गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु का मार्गदर्शन प्राप्त करने से व्यक्ति को जीवन में सही दिशा मिलती है।
  12. धन की प्राप्ति: गुरु की कृपा से व्यक्ति को धन और संपत्ति की प्राप्ति होती है।
  13. विपत्तियों से मुक्ति: गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करने से व्यक्ति को विपत्तियों और संकटों से मुक्ति मिलती है।
  14. गुरु मंत्रः ॐ गुं गुरुभ्योः नमः

Spiritual shop

गुरु पूर्णिमा से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. गुरु पूर्णिमा क्या है?

गुरु पूर्णिमा एक पवित्र हिंदू पर्व है, जो गुरु के प्रति सम्मान और कृतज्ञता प्रकट करने के लिए मनाया जाता है।
यह दिन विशेष रूप से शिक्षकों, आध्यात्मिक गुरुओं और मार्गदर्शकों के लिए समर्पित होता है।

2. गुरु पूर्णिमा कब मनाई जाती है?

गुरु पूर्णिमा आषाढ़ महीने की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है।
2025 में गुरु पूर्णिमा का पर्व 10 जुलाई को मनाया जाएगा।

3. गुरु शब्द का क्या अर्थ है?

गुरु शब्द का अर्थ है “अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला”।
गुरु हमें अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाते हैं।

4. गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है?

गुरु पूर्णिमा महर्षि वेदव्यास के जन्मदिवस के रूप में मनाई जाती है। उन्होंने वेदों का संकलन कर हमें अमूल्य ज्ञान दिया।
यह पर्व गुरुओं के प्रति सम्मान व्यक्त करने का अवसर देता है।

5. गुरु पूर्णिमा का महत्व क्या है?

यह पर्व गुरुओं की महत्ता और उनके मार्गदर्शन को स्वीकारने का दिन है।
गुरु हमें जीवन के हर क्षेत्र में सही दिशा दिखाते हैं।

6. गुरु पूर्णिमा का इतिहास क्या है?

महर्षि वेदव्यास, जिन्होंने चार वेदों का संकलन किया, का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को हुआ था।
तभी से यह पर्व मनाया जाता है।

7. गुरु पूर्णिमा किनके लिए मनाई जाती है?

यह पर्व शास्त्रों के ज्ञाता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु, माता-पिता और मार्गदर्शकों के सम्मान में मनाया जाता है।

8. गुरु पूर्णिमा का धार्मिक महत्व क्या है?

गुरु पूर्णिमा का उल्लेख पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।
यह आध्यात्मिक जागरूकता का पर्व भी माना जाता है।

9. गुरु पूर्णिमा पर क्या करना चाहिए?

गुरुओं का आशीर्वाद लें, पूजा करें और उनके बताए मार्ग का पालन करने का संकल्प लें।
दान-पुण्य भी करें।

10. क्या गुरु पूर्णिमा केवल हिंदू धर्म में मनाई जाती है?

नहीं, गुरु पूर्णिमा बौद्ध धर्म और जैन धर्म में भी विशेष स्थान रखती है।
यह सार्वभौमिक रूप से गुरुओं का सम्मान करती है।

11. गुरु पूर्णिमा पर कौन-सी पूजा की जाती है?

शिव पूजा, गुरुदेव की मूर्ति या तस्वीर का पूजन, और वेद पाठ करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।

12. गुरु पूर्णिमा का आधुनिक जीवन में क्या महत्व है?

आज के समय में गुरु पूर्णिमा हमें शिक्षकों और मार्गदर्शकों के योगदान को याद करने और उनका आशीर्वाद लेने का अवसर देती है।

अंत में

  • गुरु पूर्णिमा का पर्व हमारे जीवन में गुरुओं के महत्व और उनकी भूमिका की याद दिलाता है।
  • यह दिन हमें अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है।
  • 2024 में गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई को मनाई जाएगी।
  • इस दिन हमें अपने गुरुओं की पूजा कर उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का संकल्प लेना चाहिए।
  • गुरु पूर्णिमा के व्रत और पूजा से हमें अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।
  • यह पर्व हमें आध्यात्मिक और सामाजिक उन्नति के मार्ग पर अग्रसर करता है।
  • गुरु की कृपा से जीवन में सफलता, समृद्धि और शांति प्राप्त होती है।
  • गुरु पूर्णिमा मनाकर हम अपने गुरुओं के प्रति श्रद्धा और भक्ति प्रकट करते हैं।
  • इस अवसर पर हमें अपने गुरुओं की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।

Skanda shashthi vrat for wishes

Skanda shashthi vrat for wishes

सुब्रह्मण्य षष्ठी: 26.11.2025

स्कंद षष्ठी, जिसे सुब्रह्मण्य षष्ठी भी कहा जाता है, ये आषाण शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है। हिंदू धर्म में भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की पूजा का एक प्रमुख पर्व है। भगवान कार्तिकेय, जिन्हें मुरुगन, सुब्रह्मण्य, और षण्मुख भी कहा जाता है, भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं। उन्हें युद्ध के देवता और ज्ञान के प्रदाता माना जाता है। स्कंद षष्ठी का पर्व विशेष रूप से तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

स्कंद षष्ठी मुहुर्थ २०२५

भगवान कार्तिकेय (मुरुगन) को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। 2025 में स्कंद षष्ठी के मुख्य तिथियां इस प्रकार हैं:

  • 4 जनवरी 2025 (शनिवार)
    षष्ठी तिथि प्रारंभ: सुबह 10:30 (4 जनवरी)
    समाप्त: सुबह 8:45 (5 जनवरी)
  • 3 फरवरी 2025 (सोमवार)
    षष्ठी तिथि प्रारंभ: रात 7:22 (2 फरवरी)
    समाप्त: शाम 5:07 (3 फरवरी)
  • 4 मार्च 2025 (मंगलवार)
    षष्ठी तिथि प्रारंभ: सुबह 3:46 (4 मार्च)
    समाप्त: रात 1:21 (5 मार्च)
  • 2 अप्रैल 2025 (बुधवार)
    षष्ठी तिथि प्रारंभ: दोपहर 1:19 (2 अप्रैल)
    समाप्त: सुबह 11:11 (3 अप्रैल)
  • 2 मई 2025 (शुक्रवार)
    षष्ठी तिथि प्रारंभ: रात 10:44 (1 मई)
    समाप्त: रात 9:21 (2 मई)
  • 31 मई 2025 (शनिवार)
    षष्ठी तिथि प्रारंभ: सुबह 9:45 (31 मई)
    समाप्त: सुबह 9:29 (1 जून)
  • 30 जून 2025 (सोमवार)
    षष्ठी तिथि प्रारंभ: रात 10:53 (29 जून)
    समाप्त: रात 11:50 (30 जून)
  • 29 जुलाई 2025 (मंगलवार)
    षष्ठी तिथि प्रारंभ: दोपहर 2:16 (29 जुलाई)
    समाप्त: शाम 4:11 (30 जुलाई)
  • 28 अगस्त 2025 (गुरुवार)
    षष्ठी तिथि प्रारंभ: सुबह 7:26 (28 अगस्त)
    समाप्त: सुबह 9:51 (29 अगस्त)
  • 27 सितंबर 2025 (शनिवार)
    षष्ठी तिथि प्रारंभ: रात 1:33 (27 सितंबर)
    समाप्त: सुबह 3:57 (28 सितंबर)
  • 27 अक्टूबर 2025 (सोमवार)
    (सूरसम्हारम – स्कंद षष्ठी व्रत का समापन)
    षष्ठी तिथि प्रारंभ: रात 7:34 (26 अक्टूबर)
    समाप्त: रात 9:29 (27 अक्टूबर)
  • 25 नवंबर 2025 (मंगलवार)
    (सुब्रह्मण्य षष्ठी)
    षष्ठी तिथि प्रारंभ: सुबह 11:26 (25 नवंबर)
    समाप्त: दोपहर 12:31 (26 नवंबर)
  • 25 दिसंबर 2025 (गुरुवार)
    षष्ठी तिथि प्रारंभ: रात 2:12 (25 दिसंबर)
    समाप्त: रात 2:13 (26 दिसंबर)

स्कंद षष्ठी का पौराणिक महत्व

पौराणिक कथा के अनुसार, तारकासुर नामक एक दानव ने भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया कि उसे केवल भगवान शिव के पुत्र ही पराजित कर सकते हैं। उस समय भगवान शिव का विवाह नहीं हुआ था और कोई पुत्र भी नहीं था। तारकासुर ने अपने वरदान का गलत उपयोग करके तीनों लोकों में आतंक मचाना शुरू कर दिया। देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की, और अंततः भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ और उनके पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ। कार्तिकेय ने बड़े होने पर तारकासुर का वध किया। इस घटना की स्मृति में स्कंद षष्ठी पर्व मनाया जाता है।

महत्व

स्कंद षष्ठी का व्रत करने से व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। इस व्रत से साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उसे भगवान कार्तिकेय का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह व्रत विशेष रूप से संतान सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए किया जाता है।

पूजा विधि

स्कंद षष्ठी व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है:

  1. प्रातःकाल स्नान: व्रत के दिन प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. मूर्ति या चित्र स्थापना: भगवान कार्तिकेय की मूर्ति या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित करें।
  3. ध्यान: भगवान कार्तिकेय का ध्यान करें और उन्हें पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) से स्नान कराएं।
  4. पूजा सामग्री: पूजा में पुष्प, धूप, दीप, चंदन, कुमकुम, अक्षत, फल, नैवेद्य (प्रसाद) आदि का उपयोग करें।
  5. मंत्र जप: स्कंद षष्ठी व्रत के दौरान भगवान कार्तिकेय के मंत्रों का जप करें। प्रमुख मंत्र इस प्रकार हैं:
  • “ॐ षण्मुखाय नमः”
  • “ॐ सुब्रह्मण्याय नमः”
  • “ॐ स्कंदाय नमः”
  1. कथा वाचन: स्कंद षष्ठी की कथा का वाचन करें। इसमें तारकासुर वध और भगवान कार्तिकेय के जीवन से संबंधित घटनाओं का वर्णन होता है।
  2. आरती: पूजा के अंत में भगवान कार्तिकेय की आरती करें और भोग अर्पित करें।
  3. व्रत कथा: स्कंद षष्ठी व्रत कथा सुनें या पढ़ें, जिसमें भगवान कार्तिकेय की लीलाओं और उनकी उपासना का महत्व बताया गया हो।
  4. भोजन: व्रतधारी दिनभर निराहार रह सकते हैं या फलाहार कर सकते हैं। संध्या समय पूजा के पश्चात भोजन ग्रहण करें।

व्रत के लाभ

  1. स्वास्थ्य लाभ: इस व्रत के करने से साधक को अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  2. संतान सुख: जिन दंपतियों को संतान की प्राप्ति में बाधाएं आ रही हों, उन्हें इस व्रत को विधिपूर्वक करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
  3. मानसिक शांति: इस व्रत के करने से मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है।
  4. आध्यात्मिक विकास: व्रतधारी का आध्यात्मिक विकास होता है और उसे भगवान कार्तिकेय की कृपा प्राप्त होती है।
  5. समृद्धि: इस व्रत को करने से साधक के जीवन में समृद्धि और खुशहाली आती है।
  6. विवाह में सफलता: जो अविवाहित युवक-युवतियां शीघ्र विवाह की इच्छा रखते हैं, उन्हें भी इस व्रत के करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं।

व्रत कथा

स्कंद षष्ठी की व्रत कथा इस प्रकार है:

एक समय की बात है, जब तारकासुर नामक दानव ने तीनों लोकों में आतंक मचाया हुआ था। उसकी अत्याचारों से त्रस्त होकर देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की। भगवान शिव ने अपने पुत्र कार्तिकेय को देवताओं की रक्षा के लिए भेजा। कार्तिकेय ने अपनी बुद्धि और पराक्रम से तारकासुर को युद्ध में पराजित किया और उसका वध किया। इस घटना की स्मृति में स्कंद षष्ठी पर्व मनाया जाता है। इस व्रत को करने से साधक को भगवान कार्तिकेय का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उसके सभी कष्ट दूर होते हैं।

Kamakhya sadhana shivir

स्कंद षष्ठी के दौरान विशेष आयोजन

तमिलनाडु में विशेष रूप से स्कंद षष्ठी के दौरान बड़े-बड़े आयोजन होते हैं। यहां के मंदिरों में भव्य पूजा, यज्ञ, और धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। तीर्थयात्री भगवान कार्तिकेय के मंदिरों में जाकर उनकी विशेष पूजा और अभिषेक करते हैं। इस दिन कावड़ यात्रा का भी आयोजन होता है, जिसमें भक्तगण पवित्र जल लेकर भगवान कार्तिकेय के मंदिरों में अभिषेक करने जाते हैं।

Spiritual store

भगवान स्कंद (कार्तिकेय) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न 1: भगवान स्कंद कौन हैं?

उत्तर: भगवान स्कंद, जिन्हें कार्तिकेय, मुरुगन, सुब्रह्मण्य और षण्मुख भी कहा जाता है, भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं। वे युद्ध, विजय, ज्ञान, और शक्ति के देवता माने जाते हैं।

प्रश्न 2: स्कंद षष्ठी का क्या महत्व है?

उत्तर: स्कंद षष्ठी भगवान स्कंद के सम्मान में मनाया जाने वाला पर्व है। यह पर्व विशेष रूप से भगवान स्कंद द्वारा तारकासुर नामक दानव का वध करने की स्मृति में मनाया जाता है। इसे संतान सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए मनाया जाता है।

प्रश्न 3: स्कंद षष्ठी का व्रत कैसे किया जाता है?

उत्तर: स्कंद षष्ठी का व्रत प्रातःकाल स्नान करके, भगवान स्कंद की मूर्ति या चित्र की स्थापना करके, पंचामृत से स्नान कराकर, पूजा सामग्री जैसे पुष्प, धूप, दीप, चंदन, कुमकुम, अक्षत, फल आदि का उपयोग करके, मंत्र जप, कथा वाचन, और आरती करने के पश्चात किया जाता है। व्रतधारी दिनभर निराहार रह सकते हैं या फलाहार कर सकते हैं।

प्रश्न 4: भगवान स्कंद का स्वरूप कैसा है?

उत्तर: भगवान स्कंद के छह मुख (षण्मुख) होते हैं, उनकी बारह भुजाएं होती हैं, जिनमें वे विभिन्न आयुध धारण करते हैं। उनका वाहन मयूर है और उनके ध्वज पर मुर्गा अंकित होता है। वे शक्ति और ज्ञान के प्रतीक हैं।

प्रश्न 5: स्कंद षष्ठी व्रत के क्या लाभ हैं?

उत्तर: स्कंद षष्ठी व्रत के अनेक लाभ हैं, जैसे कि स्वास्थ्य, संतान सुख, मानसिक शांति, आध्यात्मिक विकास, समृद्धि, और विवाह में सफलता। यह व्रत भगवान स्कंद की कृपा प्राप्त करने और जीवन में सुख-शांति लाने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 6: स्कंद षष्ठी का व्रत किस दिन मनाया जाता है?

उत्तर: स्कंद षष्ठी व्रत प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। विशेष रूप से, कार्तिक माह में आने वाली स्कंद षष्ठी का महत्व अधिक होता है।

प्रश्न 7: भगवान स्कंद का प्रमुख मंत्र कौन सा है?

उत्तर: भगवान स्कंद के प्रमुख मंत्र इस प्रकार हैं:

  • “ॐ षण्मुखाय नमः”
  • “ॐ सुब्रह्मण्याय नमः”
  • “ॐ स्कंदाय नमः”

प्रश्न 8: भगवान स्कंद की पूजा में किन वस्त्रों का उपयोग करना चाहिए?

उत्तर: भगवान स्कंद की पूजा में स्वच्छ और नए वस्त्र धारण करना चाहिए। विशेष रूप से सफेद या पीले रंग के वस्त्र शुभ माने जाते हैं।

प्रश्न 9: स्कंद षष्ठी के दिन क्या विशेष भोज्य पदार्थ बनाए जाते हैं?

उत्तर: स्कंद षष्ठी के दिन भगवान स्कंद को विशेष रूप से फल, मिठाई, पंचामृत, और अन्य सात्विक भोज्य पदार्थों का भोग अर्पित किया जाता है। दक्षिण भारत में विशेष रूप से पंचामृतम और विभिन्न प्रकार की प्रसादम तैयार की जाती हैं।

प्रश्न 10: स्कंद षष्ठी व्रत के दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

उत्तर: स्कंद षष्ठी व्रत के दौरान संयमित और सात्विक आहार का पालन करें, भगवान स्कंद की भक्ति और पूजा में मन लगाएं, और व्रत की विधि का पूर्ण पालन करें। व्रत के दौरान किसी प्रकार के नकारात्मक विचारों या कर्मों से बचें।

प्रश्न 11: भगवान स्कंद के अन्य प्रमुख तीर्थ स्थल कौन से हैं?

उत्तर: भगवान स्कंद के प्रमुख तीर्थ स्थल इस प्रकार हैं:

  • तिरुपरंकुंद्रम मंदिर (तमिलनाडु)
  • पलानी मुरुगन मंदिर (तमिलनाडु)
  • स्वामिमलाई मुरुगन मंदिर (तमिलनाडु)
  • तिरुचेंदूर मुरुगन मंदिर (तमिलनाडु)
  • थानिकाई वेल मंदिर (मलेशिया)
  • बट्टु मुरुगन मंदिर (सिंगापुर)

प्रश्न 12: क्या महिलाएं भी स्कंद षष्ठी व्रत कर सकती हैं?

उत्तर: हां, महिलाएं भी स्कंद षष्ठी व्रत कर सकती हैं। इस व्रत को करने से महिलाओं को विशेष रूप से संतान सुख और स्वास्थ्य का लाभ प्राप्त होता है।

प्रश्न 13: स्कंद षष्ठी व्रत कथा का क्या महत्व है?

उत्तर: स्कंद षष्ठी व्रत कथा भगवान स्कंद के जीवन और उनके द्वारा तारकासुर दानव के वध की कथा का वर्णन करती है। इस कथा का वाचन करने से व्रतधारी को भगवान स्कंद की कृपा प्राप्त होती है और उसके जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।

प्रश्न 14: स्कंद षष्ठी का पर्व विशेष रूप से कहाँ मनाया जाता है?

उत्तर: स्कंद षष्ठी का पर्व विशेष रूप से दक्षिण भारत में, विशेष रूप से तमिलनाडु, केरल, और कर्नाटक में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसके अलावा, मलेशिया, सिंगापुर और श्रीलंका में भी यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।

प्रश्न 15: क्या स्कंद षष्ठी व्रत केवल विशेष अवसरों पर ही किया जाता है?

उत्तर: स्कंद षष्ठी व्रत को मासिक रूप से शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जा सकता है। हालांकि, कार्तिक माह में आने वाली स्कंद षष्ठी का विशेष महत्व होता है और इसे विशेष धूमधाम से मनाया जाता है।

अंत में

स्कंद षष्ठी व्रत भगवान कार्तिकेय की उपासना का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो साधक को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से साधक के जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और स्वास्थ्य का वास होता है। भगवान कार्तिकेय की कृपा से साधक के सभी कष्ट दूर होते हैं और उसे जीवन में सफलता प्राप्त होती है। इस प्रकार, स्कंद षष्ठी व्रत हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और हमें भगवान कार्तिकेय की भक्ति की ओर अग्रसर करता है।

Adya kali Mantra-strong protection

Adya kali-strong protection

Adya kali, जिन्हें आदि शक्ति के रूप में भी जाना जाता है, हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। वह शक्ति, तंत्र, और भक्ति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। आदि का अर्थ होता है “प्रथम” या “मूल” और काली का अर्थ है “काली” या “अंधकार”। इस प्रकार, आद्या काली का अर्थ होता है “प्रथम काली” या “मूल काली”।

आद्या काली को आमतौर पर एक अर्धनग्न, काले रंग की देवी के रूप में चित्रित किया जाता है। उनका शरीर भयानक होता है, जो चार हाथों से युक्त होता है। उनकी एक हाथ में खड्ग (तलवार), दूसरे में एक कटा हुआ सिर, तीसरे में अभय मुद्रा और चौथे में वर मुद्रा होती है। उनके गले में खोपड़ियों की माला और कमर में कटी हुई हाथों की माला होती है। वह अपने विशाल, लाल जीभ को बाहर निकाले हुए होती हैं और उनके चेहरे पर भयंकर हंसी होती है।

आद्या काली की पूजा मुख्य रूप से बंगाल, ओडिशा, असम, और त्रिपुरा में की जाती है। उनकी आराधना शक्ति पूजा और तांत्रिक साधना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उन्हें शक्ति का पूर्ण और अपरिमेय स्वरूप माना जाता है, जो संपूर्ण ब्रह्मांड की सृजन, संरक्षण और संहार करती हैं।

उत्पत्ति और इतिहास

आद्या काली की उत्पत्ति का उल्लेख विभिन्न पुराणों और तंत्र ग्रंथों में मिलता है। कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों के बीच भयंकर युद्ध हुआ, तब देवता महादेव (शिव) के पास सहायता के लिए गए। महादेव ने आदि शक्ति को आवाहन किया, जिन्होंने काली का रूप धारण किया और असुरों का संहार किया।

कहा जाता है कि आद्या काली ने रक्तबीज नामक असुर का वध किया, जो प्रत्येक बूंद के गिरने पर नया असुर उत्पन्न कर देता था। काली ने अपनी जीभ से उसका सारा रक्त पी लिया और इस प्रकार असुरों का संहार किया।

आद्या काली की आराधना और पूजा विधि

आद्या काली की पूजा मुख्य रूप से काली पूजा, दीवाली, और नवरात्रि के समय की जाती है। उनकी आराधना तंत्र और मंत्र द्वारा की जाती है।

पूजा सामग्री:

  • काली माता की मूर्ति या चित्र
  • लाल और काले वस्त्र
  • पुष्पमाला (लाल और काले फूल)
  • धूप और दीपक
  • नैवेद्य (फल, मिठाई, नारियल)
  • सिंदूर और कुमकुम
  • बेल पत्र

पूजा विधि:

  1. सर्वप्रथम, पूजा स्थल को शुद्ध और स्वच्छ करें।
  2. काली माता की मूर्ति या चित्र को स्थापित करें और उन्हें लाल और काले वस्त्र पहनाएं।
  3. धूप और दीप जलाकर माता का ध्यान करें।
  4. पुष्प, बेल पत्र, और नैवेद्य अर्पित करें।
  5. काली माता के 108 नामों का जाप करें।
  6. आद्या काली के विशेष मंत्र का जाप करें:
   ॐ क्रीं आद्या कालिकायै क्रीं नमः "OM KREEM AADYA KAALIKAAYE KREEM NAMAHA"
  1. अंत में, माता से अपने और अपने परिवार की रक्षा, समृद्धि और शांति की प्रार्थना करें।

प्रमुख मंदिर

भारत में आद्या काली के कई प्रमुख मंदिर हैं जहाँ भक्तगण उनकी आराधना करने जाते हैं:

  • कालीघाट मंदिर, कोलकाता, पश्चिम बंगाल
  • दक्षिणेश्वर काली मंदिर, कोलकाता, पश्चिम बंगाल
  • कालिका माता मंदिर, पावागढ़, गुजरात
  • कामाख्या मंदिर, गुवाहाटी, असम

महत्व

आद्या काली का महत्व केवल तांत्रिक साधना में ही नहीं, बल्कि सामान्य भक्ति और आस्था में भी है। उन्हें ब्रह्मांड की माँ और सभी जीवों की रक्षक माना जाता है। उनका काला रंग अज्ञान और अंधकार का प्रतीक है, जिसे वह अपने ज्ञान और प्रकाश से नष्ट करती हैं।

इनका आशीर्वाद प्राप्त करने से जीवन में आने वाली बाधाओं और संकटों का निवारण होता है। वह अपने भक्तों को अजेय शक्ति और साहस प्रदान करती हैं।

आद्या काली की भक्ति से जीवन में संतुलन, शांति और समृद्धि आती है। वह अपने भक्तों को जीवन के हर पहलू में मार्गदर्शन करती हैं और उनकी रक्षा करती हैं।

Kamakhya sadhana shivir

आद्या काली के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. आद्या काली कौन हैं?

आद्या काली हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं, जिन्हें आदि शक्ति के रूप में भी जाना जाता है। वह शक्ति, तंत्र, और भक्ति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और संपूर्ण ब्रह्मांड की सृजन, संरक्षण और संहार करती हैं।

2. आद्या काली का अर्थ क्या है?

आद्या काली का अर्थ होता है “प्रथम काली” या “मूल काली”। “आद्य” का अर्थ होता है “प्रथम” या “मूल” और “काली” का अर्थ है “काली” या “अंधकार”।

3. आद्या काली की पूजा कब की जाती है?

आद्या काली की पूजा मुख्य रूप से काली पूजा, दीवाली, और नवरात्रि के समय की जाती है। उनकी आराधना तंत्र और मंत्र द्वारा की जाती है।

4. आद्या काली की पूजा कैसे की जाती है?

आद्या काली की पूजा विधि में उनकी मूर्ति या चित्र को लाल और काले वस्त्र पहनाना, धूप और दीप जलाना, पुष्पमाला और नैवेद्य अर्पित करना, और विशेष मंत्रों का जाप करना शामिल है।

5. आद्या काली की आराधना से क्या लाभ होते हैं?

आद्या काली की आराधना करने से जीवन में आने वाली बाधाओं और संकटों का निवारण होता है। वह अपने भक्तों को अजेय शक्ति, साहस, संतुलन, शांति, और समृद्धि प्रदान करती हैं।

6. आद्या काली की पूजा के लिए कौन सी सामग्री की आवश्यकता होती है?

पूजा सामग्री में काली माता की मूर्ति या चित्र, लाल और काले वस्त्र, पुष्पमाला, धूप, दीपक, नैवेद्य, सिंदूर, कुमकुम, और बेल पत्र शामिल हैं।

7. आद्या काली के प्रमुख मंदिर कौन-कौन से हैं?

भारत में आद्या काली के कई प्रमुख मंदिर हैं, जैसे:

  • कालीघाट मंदिर, कोलकाता, पश्चिम बंगाल
  • दक्षिणेश्वर काली मंदिर, कोलकाता, पश्चिम बंगाल
  • कालिका माता मंदिर, पावागढ़, गुजरात
  • कामाख्या मंदिर, गुवाहाटी, असम

8. आद्या काली की उत्पत्ति की कथा क्या है?

आद्या काली की उत्पत्ति का उल्लेख विभिन्न पुराणों और तंत्र ग्रंथों में मिलता है। कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों के बीच भयंकर युद्ध हुआ, तब महादेव ने आदि शक्ति को आवाहन किया, जिन्होंने काली का रूप धारण किया और असुरों का संहार किया।

Spiritual store

Puri rath yatra 2025 for spiritual power

Puri rath yatra 2024 for spiritual power

पुरी रथ यात्रा – 27 जून से ५ जुलाई २०२५

पुरी रथ यात्रा – 27 जून से 5 जुलाई 2025

पुरी रथ यात्रा, जिसे श्री जगन्नाथ रथ यात्रा कहा जाता है, ओडिशा के पुरी शहर का प्रमुख आध्यात्मिक हिंदू त्योहार है।

यह यात्रा हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया (जून-जुलाई) के महीने में आयोजित की जाती है। वर्ष 2025 में यह 27 जून से 5 जुलाई तक मनाई जाएगी।

इस अवसर पर भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के विशाल रथ खींचे जाते हैं। यह आयोजन धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है।

रथ यात्रा का महत्व और इतिहास

पुरी रथ यात्रा का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ स्वयं इसमें भाग लेकर भक्तों को दर्शन देते हैं।

जगन्नाथ का अर्थ है “जगत का स्वामी,” और उन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। रथ यात्रा का उल्लेख विभिन्न पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।

यह परंपरा करीब 11वीं शताब्दी से चली आ रही है।

अध्यात्मिक दृष्टिकोण

यह समय आध्यात्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इन दिनों भगवान जगन्नाथ की पूजा, साधना और उपासना से इच्छाएं पूरी होती हैं।

यात्रा की प्रक्रिया

रथ यात्रा की प्रक्रिया बहुत ही विशिष्ट और धार्मिक अनुशासन से भरी होती है। यात्रा की शुरुआत भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथों के निर्माण से होती है। इन रथों का निर्माण विशेष प्रकार की लकड़ी से किया जाता है और इनकी सजावट बहुत ही भव्य और आकर्षक होती है।

  • गुंडिचा यात्रा: यह यात्रा का मुख्य आकर्षण होता है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को उनके मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है। यह यात्रा करीब 3 किलोमीटर लंबी होती है और हजारों भक्त इस यात्रा में भाग लेते हैं।
  • हेरा पंचमी: यह यात्रा के पांचवें दिन मनाई जाती है, जिसमें देवी लक्ष्मी का रथ गुंडिचा मंदिर की ओर जाता है। यह माना जाता है कि देवी लक्ष्मी अपने पति भगवान जगन्नाथ को वापस जगन्नाथ मंदिर लाने के लिए आती हैं।
  • बहुदा यात्रा: यह यात्रा का अंतिम दिन होता है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को गुंडिचा मंदिर से वापस उनके मुख्य मंदिर लाया जाता है।

रथों का के बारे में

रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ बनाए जाते हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है:

  • नंदीघोष: भगवान जगन्नाथ का रथ, जिसे ‘गरुड़ध्वज’ या ‘कपिलध्वज’ भी कहा जाता है। इस रथ की ऊंचाई 45.6 फीट होती है और इसमें 16 पहिए होते हैं।
  • तालध्वज: भगवान बलभद्र का रथ, जिसे ‘लांगलध्वज’ भी कहा जाता है। इस रथ की ऊंचाई 45 फीट होती है और इसमें 14 पहिए होते हैं।
  • दर्पदलन: देवी सुभद्रा का रथ, जिसे ‘पद्मध्वज’ या ‘देवदलन’ भी कहा जाता है। इस रथ की ऊंचाई 44.6 फीट होती है और इसमें 12 पहिए होते हैं।

यात्रा का सांस्कृतिक महत्व

  • पुरी रथ यात्रा का धार्मिक के साथ सांस्कृतिक महत्व भी बहुत अधिक है। इस दौरान पुरी शहर में भव्य मेला लगता है।
  • यह मेला स्थानीय कलाकारों, हस्तशिल्पियों और व्यापारियों को बड़ा मंच प्रदान करता है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में नृत्य, संगीत और नाटक शामिल होते हैं।
  • इन कार्यक्रमों से भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रदर्शन होता है।

सामाजिक दृष्टिकोण

रथ यात्रा का सामाजिक दृष्टिकोण भी महत्वपूर्ण है। इस यात्रा में लाखों लोग भाग लेते हैं, जिनमें विभिन्न वर्गों, समुदायों और धार्मिक आस्थाओं के लोग शामिल होते हैं। यह यात्रा सभी के लिए एक समान अवसर प्रदान करती है, जहां वे भगवान के दर्शन कर सकते हैं और उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं। इस यात्रा के दौरान समाज में एकता, भाईचारा और सद्भावना का संदेश फैलता है।

पर्यावरण और स्वच्छता

पुरी रथ यात्रा के दौरान पर्यावरण और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। यात्रा के आयोजक और स्थानीय प्रशासन इस बात का ध्यान रखते हैं कि यात्रा के दौरान शहर और मंदिर परिसर की स्वच्छता बनाए रखी जाए। इसके लिए विशेष सफाई अभियान चलाए जाते हैं और कचरा प्रबंधन के लिए विशेष प्रबंध किए जाते हैं।

Spiritual store

यात्रा की चुनौतियाँ

रथ यात्रा के आयोजन के दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। लाखों भक्तों की भीड़ को नियंत्रित करना, यात्रा के दौरान सुरक्षा सुनिश्चित करना और भक्तों की सुविधा के लिए उचित प्रबंध करना प्रमुख चुनौतियाँ होती हैं। इसके अलावा, रथों का निर्माण और उनकी सजावट भी एक महत्वपूर्ण कार्य होता है, जिसमें कुशल कारीगरों और कलाकारों की आवश्यकता होती है।

Kamakhya sadhana shivir

पुरी रथ यात्रा पर (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

1. रथ यात्रा क्या है?
यह भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की भव्य रथ यात्रा है।

2. रथ यात्रा कब होती है?
यह आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होती है।

3. रथ यात्रा कहां आयोजित होती है?
मुख्य आयोजन ओडिशा के पुरी शहर में होता है।

4. रथ यात्रा की शुरुआत कैसे होती है?
रथ यात्रा जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर गुंडिचा मंदिर तक जाती है।

5. रथ यात्रा कितने दिनों की होती है?
रथ यात्रा नौ दिनों तक चलती है।

6. कौन-कौन से रथ यात्रा में शामिल होते हैं?
भगवान जगन्नाथ के रथ “नंदीघोष”, बलभद्र के रथ “तालध्वज” और सुभद्रा के रथ “दर्पदलन” होते हैं।

7. रथों को कौन खींचता है?
हजारों श्रद्धालु मिलकर भगवान के रथों को खींचते हैं।

8. गुंडिचा मंदिर क्या है?
गुंडिचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है।

9. भगवान रथ पर क्यों सवार होते हैं?
भगवान भक्तों को दर्शन देने और उनके साथ भ्रमण करने के लिए सवार होते हैं।

10. रथ यात्रा का धार्मिक महत्व क्या है?
रथ यात्रा मोक्ष प्राप्ति और भगवान के आशीर्वाद का प्रतीक है।

11. क्या बाहरी लोग रथ यात्रा में शामिल हो सकते हैं?
जी हां, दुनिया भर के श्रद्धालु इसमें शामिल हो सकते हैं।

12. क्या रथ यात्रा का सीधा प्रसारण होता है?
जी हां, कई चैनल रथ यात्रा का सीधा प्रसारण करते हैं।

अंत में

  • पुरी रथ यात्रा धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार है। यह भगवान जगन्नाथ की भक्ति का प्रतीक है।
  • यह त्योहार भारतीय संस्कृति की विविधता और समाज की एकता को दर्शाता है। हर साल लाखों भक्त इसमें भाग लेते हैं।
  • भक्त भगवान जगन्नाथ की कृपा प्राप्त करने के लिए यात्रा में शामिल होते हैं। पुरी शहर में इस दौरान उत्सव का माहौल रहता है।
  • पूरे शहर में भक्ति, प्रेम और सद्भावना की भावना व्याप्त होती है।

Matangi sadhana for fulfil your dreams

Matangi sadhana for fulfil your dreams

महाविद्या भुवनेश्वरी साधना एक प्रकार की प्रमुख साधना मानी जाती है जिसका मुख्य उद्देश्य भगवती भुवनेश्वरी (भुवनेश्वरी देवी) की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करना है। इस साधना से मनुष्य की योग्यता कई गुना बढ जाती है। अगर आप अपने जीवन मे कुछ बडा करना चाहते है तो भुवनेश्वरी साधना करना अनिवार्य है। इस साधना के द्वारा कई लाभ मिलते जैसे कि:

  1. मानसिक शांति: भुवनेश्वरी साधना से मानसिक तनाव और चिंता कम होती है और व्यक्ति में शांति का अनुभव होता है।
  2. समृद्धि: इस साधना से आर्थिक और सामाजिक समृद्धि की प्राप्ति होती है।
  3. स्वास्थ्य: भुवनेश्वरी साधना से शरीर के रोग दूर होते हैं और स्वास्थ्य बना रहता है।
  4. सुख-शांति: इस साधना से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और परिवार के सभी सदस्यों के बीच समरसता आती है।
  5. संबंधों की सुधार: भुवनेश्वरी साधना से संबंधों में मेलजोल और समरसता आती है और विवादों का समाधान होता है।
  6. कामना पूर्ति: इस साधना से अपनी सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं और व्यक्ति की इच्छाओं की प्राप्ति होती है।
  7. साधक के गुणों का विकास: भुवनेश्वरी साधना से साधक के गुणों में सुधार होता है और उसमें धैर्य, संयम, और सहिष्णुता जैसे गुण विकसित होते हैं।
  8. आत्म-विश्वास: इस साधना से आत्म-विश्वास मजबूत होता है और व्यक्ति अपनी क्षमताओं में विश्वास करने लगता है।
  9. धार्मिक उत्थान: भुवनेश्वरी साधना से धार्मिक उत्थान होता है और व्यक्ति का आत्मा के प्रति समर्पण बढ़ता है।
  10. कल्याणकारी सेवा: इस साधना से व्यक्ति का भला करने की भावना बढ़ती है और वह समाज में कल्याणकारी सेवा करने के लिए प्रेरित होता है।
  11. अध्यात्मिक विकास: भुवनेश्वरी साधना से व्यक्ति का अध्यात्मिक विकास होता है और उसका आत्मा के साथ संबंध मजबूत होता है।
  12. समस्याओं का हल: इस साधना से समस्याओं का निवारण होता है और व्यक्ति की जीवन में समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है।

Here’s a structured outline for your Matangi Sadhana Mantra content:

मातंगी साधना मंत्र

मातंगी देवी को तंत्र साधना में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। वे विद्या, कला और संगीत की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। मातंगी साधना से साधक को आध्यात्मिक और भौतिक उन्नति प्राप्त होती है। यह साधना मानसिक शांति और आत्म-साक्षात्कार के लिए अत्यंत लाभकारी है।

मातंगी मंत्र का जाप करने से व्यक्ति की बुद्धि का विकास होता है। साधक की वाणी में विशेष प्रभाव और आकर्षण आ जाता है। यह साधना उच्च आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने के लिए की जाती है। मातंगी साधना विशेष रूप से उन व्यक्तियों के लिए लाभकारी होती है जो शिक्षा, संगीत या कला के क्षेत्र में सफलता चाहते हैं।

साधना के दौरान मंत्रों का सही उच्चारण अत्यधिक महत्वपूर्ण है। मातंगी मंत्र जाप में साधक को पूर्ण एकाग्रता बनाए रखनी होती है। मातंगी मंत्र साधना में अनुशासन और नियमों का पालन भी आवश्यक होता है। यह साधना आत्मिक उन्नति के साथ-साथ सांसारिक इच्छाओं को भी पूरा करने में सहायक होती है।

MANTRA- “OM HREEM MAATANGESHWARI NAMAHA”

“ॐ ह्रीं ऐं क्लीं मातंग्यै नमः।”

इस मंत्र का 11 माला 11 दिन जाप करना चाहिए। नियमित रूप से इस मंत्र का जाप साधक के जीवन में शुभता लाता है।

Know more about matangi kavach

Spiritual Store

मातंगी मंत्र प्रश्न और उत्तर

प्र. 1: मातंगी साधना क्यों की जाती है?
मातंगी साधना बुद्धि, वाणी और कला के विकास के लिए की जाती है।

प्र. 2: इस साधना के लाभ क्या हैं?
साधना से आत्मबल, आकर्षण और मानसिक शांति प्राप्त होती है।

प्र. 3: मंत्र कितनी बार जपना चाहिए?
मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए।

प्र. 4: क्या मातंगी साधना हर कोई कर सकता है?
हाँ, योग्य गुरु की देखरेख में साधना हर कोई कर सकता है।

प्र. 5: इस साधना के लिए कौन सा दिन शुभ होता है?
पूर्णिमा और बुधवार इस साधना के लिए शुभ माने जाते हैं।

प्र. 6: साधना में किस दिशा की ओर मुख करना चाहिए?
उत्तर दिशा की ओर मुख करके साधना करना शुभ होता है।

प्र. 7: क्या साधना के दौरान नियमों का पालन करना आवश्यक है?
जी हाँ, नियम और अनुशासन का पालन साधना में सफलता दिलाता है।

प्र. 8: मातंगी साधना के लिए कौन सा समय सर्वोत्तम है?
सुबह ब्रह्म मुहूर्त का समय सर्वोत्तम माना जाता है।

प्र. 9: क्या इस साधना से सांसारिक इच्छाएं पूरी होती हैं?
हाँ, साधना से व्यक्ति की इच्छाएं पूरी हो सकती हैं।

प्र. 10: मातंगी साधना में कौन से नियम आवश्यक हैं?
साधना के दौरान संयम और नियमों का पालन अनिवार्य है।

प्र. 11: साधना कितने दिनों तक करनी चाहिए?
यह साधना कम से कम 41 दिनों तक निरंतर करनी चाहिए।

प्र. 12: क्या साधना के दौरान विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है?
साधना के लिए विशेष सामग्री जैसे पीले वस्त्र और हरे रंग की माला का उपयोग किया जाता है।

Devshayani ekadashi vrat for all wish

Devshayani ekadashi vrat for all wish

देवशयनी एकादशी व्रत-17 july 2025

Dev shayani ekadashi vrat हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इसे आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन मनाया जाता है। इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं, जिसे ‘चतुर्मास’ कहा जाता है। इस व्रत का पालन करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है, और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

देवशयनी एकादशी का महत्व

देवशयनी एकादशी का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यह दिन भगवान विष्णु की शयन के लिए प्रसिद्ध है। भगवान विष्णु चार महीने के लिए क्षीरसागर में शयन करते हैं। इस दौरान, पृथ्वी पर भगवान शिव और अन्य देवताओं द्वारा सृष्टि का संचालन किया जाता है। चतुर्मास में विवाह, नए कार्य और शुभ कार्य करने की मनाही होती है।

व्रत की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, सत्ययुग में मान्धाता नामक एक राजा था। उसकी प्रजा बहुत सुखी थी, लेकिन एक समय राज्य में भारी अकाल पड़ा। प्रजा दुखी और पीड़ित हो गई। राजा ने मुनि अंगिरा से इस समस्या का समाधान पूछा। मुनि ने बताया कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी का व्रत करने से इस समस्या का समाधान हो जाएगा। राजा ने विधि पूर्वक व्रत किया, जिससे राज्य में फिर से सुख, शांति और समृद्धि आई।

व्रत विधि

1. व्रत की पूर्व संध्या:
व्रत से एक दिन पहले साधक को एक संकल्प लेना चाहिए और शाम को हल्का और सात्विक भोजन करना चाहिए।

2. व्रत का दिन:
व्रत के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान कर लेना चाहिए। स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। पूजा में भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के सामने धूप, दीप, पुष्प, फल, पंचामृत आदि अर्पित करना चाहिए।

3. पूजा विधि:
भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद चंदन, हल्दी, कुमकुम, फूलों की माला, और वस्त्र अर्पित करें। भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। प्रसाद में फल, मिठाई और तुलसी पत्र अर्पित करें।

4. दिन भर उपवास:
दिनभर व्रत रखें और अन्न का सेवन न करें। फलाहार या दूध का सेवन कर सकते हैं। दिनभर भगवान विष्णु के नाम का स्मरण और मंत्र जाप करें।

5. रात्रि जागरण:
रात्रि में भगवान विष्णु की कथा सुनें और भजन-कीर्तन करें। जागरण करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है।

6. व्रत का पारण:
अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दें। इसके बाद स्वयं व्रत का पारण करें।

व्रत का लाभ

देवशयनी एकादशी व्रत का पालन करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत विशेष रूप से पापों का नाश करने वाला और मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है। इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। इसके साथ ही यह व्रत चार महीनों के चतुर्मास के प्रारंभ का संकेत भी है, जो साधना और तपस्या के लिए महत्वपूर्ण समय माना जाता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यह व्रत लाभकारी है। इस समय वर्षा ऋतु का प्रारंभ होता है, जिससे पाचन तंत्र कमजोर हो जाता है। उपवास रखने से पाचन तंत्र को आराम मिलता है और शरीर से विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं। इसके अलावा, मानसिक शांति और आध्यात्मिकता में वृद्धि होती है।

देवशयनी एकादशी और चतुर्मास

चतुर्मास के चार महीने धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। इस समय साधक ध्यान, साधना और तपस्या में अधिक समय बिताते हैं। यह समय आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए आदर्श माना जाता है। इस दौरान विवाह, गृह प्रवेश और अन्य शुभ कार्य नहीं किए जाते। चतुर्मास के दौरान साधक को सात्विक आहार और आचरण का पालन करना चाहिए।

धार्मिक ग्रंथों में वर्णन

धार्मिक ग्रंथों में देवशयनी एकादशी का विस्तृत वर्णन मिलता है। पद्म पुराण, स्कंद पुराण, और विष्णु पुराण में इस व्रत की महिमा का वर्णन किया गया है। भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों और उनकी लीलाओं का वर्णन भी इस व्रत के साथ जुड़ा हुआ है।

Know more about rama ekadashi vrat

विशेष परंपराएं

देवशयनी एकादशी के दिन विभिन्न मंदिरों में विशेष पूजा और अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु के मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। भजन-कीर्तन, प्रवचन और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। इस दिन विशेष रूप से तुलसी का पूजन भी किया जाता है, क्योंकि तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है।

Spiritual Store

देवशयनी एकादशी व्रत के विषय में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. देवशयनी एकादशी कब मनाई जाती है?

उत्तर: देवशयनी एकादशी व्रत आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। यह आमतौर पर जून या जुलाई के महीने में पड़ती है।

2. देवशयनी एकादशी का क्या महत्व है?

उत्तर: देवशयनी एकादशी का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं, जिसे ‘चतुर्मास’ कहा जाता है। इस व्रत का पालन करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है, और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

3. व्रत की पूजा विधि क्या है?

उत्तर:

  • प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के सामने धूप, दीप, पुष्प, फल, पंचामृत आदि अर्पित करें।
  • पंचामृत से भगवान विष्णु का अभिषेक करें और चंदन, हल्दी, कुमकुम, फूलों की माला, और वस्त्र अर्पित करें।
  • विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें।
  • फल, मिठाई और तुलसी पत्र का प्रसाद अर्पित करें।
  • रात्रि में जागरण कर भजन-कीर्तन करें।

4. क्या इस दिन उपवास रखना आवश्यक है?

उत्तर: हाँ, देवशयनी एकादशी के दिन उपवास रखना आवश्यक माना जाता है। आप फलाहार या दूध का सेवन कर सकते हैं। दिनभर भगवान विष्णु के नाम का स्मरण और मंत्र जाप करें।

5. व्रत का पारण कब और कैसे किया जाता है?

उत्तर: व्रत का पारण अगले दिन द्वादशी को किया जाता है। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दें। इसके बाद स्वयं व्रत का पारण करें।

6. देवशयनी एकादशी व्रत के क्या लाभ हैं?

उत्तर: इस व्रत का पालन करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत पापों का नाश करने वाला और मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है। इसके अलावा, यह व्रत चार महीनों के चतुर्मास के प्रारंभ का संकेत भी है, जो साधना और तपस्या के लिए महत्वपूर्ण समय माना जाता है।

7. क्या चतुर्मास के दौरान विवाह और अन्य शुभ कार्य किए जा सकते हैं?

उत्तर: नहीं, चतुर्मास के दौरान विवाह, गृह प्रवेश और अन्य शुभ कार्य नहीं किए जाते। यह समय साधना, ध्यान और तपस्या के लिए समर्पित होता है।

8. क्या देवशयनी एकादशी व्रत का वैज्ञानिक महत्व भी है?

उत्तर: हाँ, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह व्रत लाभकारी है। इस समय वर्षा ऋतु का प्रारंभ होता है, जिससे पाचन तंत्र कमजोर हो जाता है। उपवास रखने से पाचन तंत्र को आराम मिलता है और शरीर से विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं। इसके अलावा, मानसिक शांति और आध्यात्मिकता में वृद्धि होती है।

9. व्रत के दिन कौन-कौन से मंत्रों का जाप करना चाहिए?

उत्तर: व्रत के दिन भगवान विष्णु के निम्नलिखित मंत्रों का जाप करना शुभ माना जाता है:

  • ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमो नमः
  • ॐ विष्णवे नमो नमः
  • ॐ नारायणाय नमो नमः
  • विष्णु सहस्रनाम का पाठ भी अत्यंत शुभ होता है।

10. क्या व्रत का पालन महिलाएं भी कर सकती हैं?

उत्तर: हाँ, देवशयनी एकादशी व्रत का पालन महिलाएं और पुरुष दोनों कर सकते हैं। इसका पालन करने से परिवार में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।

11. क्या तुलसी का पूजन करना आवश्यक है?

उत्तर: हाँ, देवशयनी एकादशी के दिन तुलसी का पूजन विशेष रूप से किया जाता है क्योंकि तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है।

12. व्रत के दौरान क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?

उत्तर: व्रत के दौरान सात्विक आहार और आचरण का पालन करें। नकारात्मक विचारों और कार्यों से बचें। भगवान विष्णु की भक्ति और साधना में मन लगाएं।

Hanuman sabar mantra sadhana for success

Hanuman sabar mantra sadhana for success

हनुमान साबर साधना- मन की इच्छा पूरी करने वाला

हनुमान साबर साधना एक विशेष साधना है जो भगवान हनुमान की कृपा प्राप्त करने के लिए की जाती है। यह साधना सामान्य विधि से की जाती है और इसमें कुछ विशेष मंत्रों का प्रयोग किया जाता है। हनुमान साबर साधना का उद्देश्य है साधक को बल, साहस, और आत्मविश्वास प्रदान करना। इसे करने से साधक के जीवन में सभी प्रकार की बाधाएँ दूर होती हैं और उसे सफलता, शांति, और समृद्धि प्राप्त होती है। साबर मंत्र पढने मे अजीब होते है लेकिन कार्य मे बहुत ही अचूक माने जाते है।

हनुमान साबर मंत्र व उसका अर्थ

मंत्र:
"ॐ हं हनुमंते करो हमारे काज,
जो ना करे, तो माता अंजनी की आन।"

अर्थ:
हे हनुमान जी, हमारे कार्यों को पूरा करने में मदद करें। यदि आप हमारी सहायता न करें, तो माता अंजनी की शपथ है। यह एक भक्तिपूर्ण निवेदन है, जिसमें साधक हनुमान जी से अपने कार्यों की पूर्ति के लिए विनम्र प्रार्थना कर रहा है।

हनुमान साबर साधना विधि
  1. साधना के दिन: मंगलवार और शनिवार को साधना प्रारंभ करना शुभ माना जाता है।
  2. साधना का समय: ब्रह्ममुहूर्त या रात्रि 12 बजे का समय सबसे उत्तम है।
  3. साधना का स्थान: एकांत और शुद्ध स्थान पर साधना करें। मंदिर या पूजा कक्ष सबसे उत्तम स्थान है।
  4. आसन: कुशा का आसन प्रयोग करें।
  5. वस्त्र: लाल वस्त्र पहनें और लाल आसन का प्रयोग करें।
  6. पूजा सामग्री: लाल फूल, सिंदूर, चमेली का तेल, दीपक, अगरबत्ती, पान के पत्ते, सुपारी, गुड़, और हनुमान जी की मूर्ति या चित्र।

Know more about hanuman chalisa

हनुमान सबर साधना के लाभ

  1. साहस और बल: साधना से साधक में साहस और बल की वृद्धि होती है।
  2. भय नाश: साधना करने से सभी प्रकार के भय दूर होते हैं।
  3. स्वास्थ्य: साधक को उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त होता है।
  4. आध्यात्मिक उन्नति: साधक की आध्यात्मिक उन्नति होती है।
  5. संकट निवारण: सभी प्रकार के संकटों का निवारण होता है।
  6. विजय: साधक को सभी कार्यों में विजय प्राप्त होती है।
  7. धन प्राप्ति: साधना से धन की प्राप्ति होती है।
  8. कष्टों का नाश: साधक के सभी कष्टों का नाश होता है।
  9. मन की शांति: साधक को मन की शांति प्राप्त होती है।
  10. शत्रु नाश: साधक के शत्रुओं का नाश होता है।
  11. बुद्धि वृद्धि: साधक की बुद्धि में वृद्धि होती है।
  12. रोग नाश: सभी प्रकार के रोगों का नाश होता है।
  13. कार्य सिद्धि: साधक के सभी कार्य सिद्ध होते हैं।
  14. विवाह में सफलता: विवाह में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं।
  15. परिवार की सुख-शांति: परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
  16. दुर्घटना नाश: दुर्घटनाओं से रक्षा होती है।
  17. कर्ज मुक्ति: कर्ज से मुक्ति प्राप्त होती है।
  18. भाग्य वृद्धि: साधक का भाग्य चमकता है।
  19. ज्ञान प्राप्ति: साधक को ज्ञान की प्राप्ति होती है।
  20. आत्मविश्वास: साधक में आत्मविश्वास की वृद्धि होती है।

Spiritual store