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How to Perform Yogini Akadashi Vrat

How to Perform Yogini Akadashi Vrat

योगिनी एकादशी व्रत- पाप नष्ट कर अध्यात्मिक उन्नति करे

योगिनी एकादशी व्रत हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है जिसे आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से पापों से मुक्ति दिलाने और समस्त इच्छाओं की पूर्ति करने वाला माना जाता है। योगिनी एकादशी का वर्णन पुराणों में विशेष स्थान रखता है और इसे सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति का व्रत माना जाता है।

योगिनी एकादशी व्रत कथा

भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को योगिनी एकादशी की कथा सुनाई। इस कथा के अनुसार, अलकापुरी नगरी में कुबेर नामक राजा का राज्य था। कुबेर शिव जी के परम भक्त थे और उनका एक माली था, जिसका नाम हेममाली था। हेममाली का कार्य राजा के लिए पूजा हेतु पुष्प लाना था।

हेममाली का विवाह विशालाक्षी नामक स्त्री से हुआ था। वह अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम करता था। एक दिन, हेममाली अपनी पत्नी के साथ समय बिताने में इतना खो गया कि वह राजा के लिए पुष्प लाना भूल गया। राजा कुबेर ने हेममाली को बुलाया, लेकिन जब उसे पता चला कि वह अपने कर्तव्यों में लापरवाही कर रहा है, तो वह अत्यंत क्रोधित हो गया।

राजा का श्राप और हेममाली की पीड़ा

क्रोध में आकर, राजा कुबेर ने हेममाली को श्राप दिया। राजा ने कहा कि वह कुष्ठ रोग से ग्रस्त होकर वन में भटकता रहेगा और अपने पापों का प्रायश्चित करेगा। श्राप मिलते ही, हेममाली का शरीर कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गया। उसकी अवस्था दयनीय हो गई, और वह दुखी होकर वन में चला गया।

हेममाली ने कई दिनों तक दुख सहा और पीड़ा में भटकता रहा। एक दिन, वह महर्षि मार्कंडेय के आश्रम में पहुंचा और अपनी सारी व्यथा सुनाई। महर्षि मार्कंडेय ने उसकी समस्या को समझा और उसे समाधान का मार्ग बताया।

महर्षि मार्कंडेय की सलाह और हेममाली का उद्धार

महर्षि मार्कंडेय ने हेममाली को योगिनी एकादशी व्रत करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि इस व्रत से सारे पाप धुल जाते हैं और रोगों से मुक्ति मिलती है।

योगिनी एकादशी व्रत की विधि

योगिनी एकादशी व्रत को विधिपूर्वक करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस व्रत की विधि निम्नलिखित है:

व्रत की पूर्व संध्या

  1. स्नान और शुद्धता: व्रत की पूर्व संध्या को स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें और मन को शुद्ध एवं पवित्र रखें।
  2. संकल्प: संध्याकाल में भगवान विष्णु की पूजा करें और अगले दिन एकादशी व्रत का संकल्प लें।

व्रत के दिन

  1. स्नान और पूजा: एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करें। उन्हें तुलसी दल, फल, पुष्प, धूप-दीप आदि अर्पित करें।
  2. व्रत का पालन: दिनभर निराहार (बिना अन्न ग्रहण किए) रहें और भगवान विष्णु के नाम का जाप करें। यदि संभव हो तो निर्जल व्रत रखें, अन्यथा जल और फलाहार ले सकते हैं।
  3. ध्यान और कथा: दिनभर भगवान विष्णु का ध्यान करें और योगिनी एकादशी व्रत कथा का पाठ या श्रवण करें।
  4. सत्संग और सेवा: इस दिन सत्संग का आयोजन करें और गरीबों, जरूरतमंदों को दान-दक्षिणा दें।
  5. रात्रि जागरण: रात्रि में भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहें और जागरण करें।
  6. मंत्रः “ॐ ह्रीं योगिनेश्वरी क्लीं विष्णुवे नमः” “OM HREEM YOGINESHWARI KLEEM VISHNUVE NAMAHA”

व्रत के अगले दिन (द्वादशी)

  1. पारणा: द्वादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके पूजा करें और व्रत का पारण करें। पारण के समय भगवान विष्णु को नैवेद्य अर्पित करें और फिर स्वयं भोजन ग्रहण करें।

योगिनी एकादशी व्रत का महत्व

योगिनी एकादशी व्रत का अत्यंत धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। यह व्रत व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार के लाभ पहुंचाता है:

  1. पापों से मुक्ति: इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  2. स्वास्थ्य लाभ: योगिनी एकादशी व्रत करने से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते हैं।
  3. धन और समृद्धि: इस व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन में धन और समृद्धि का आगमन होता है।
  4. सुख-शांति: यह व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति और संतोष की प्राप्ति होती है।
  5. भक्ति और श्रद्धा: इस व्रत से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति की भक्ति और श्रद्धा में वृद्धि होती है।

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योगिनी एकादशी व्रत के नियम

योगिनी एकादशी व्रत के कुछ विशेष नियम होते हैं जिनका पालन करना आवश्यक होता है:

  1. अहिंसा: इस दिन अहिंसा का पालन करें और किसी भी प्रकार की हिंसा से दूर रहें।
  2. सात्विक भोजन: यदि फलाहार करना हो तो सात्विक और शुद्ध भोजन का सेवन करें।
  3. व्रत की शुद्धता: व्रत के दिन शारीरिक और मानसिक शुद्धता का ध्यान रखें।
  4. सत्य व्रत: इस दिन असत्य भाषण, छल-कपट आदि से दूर रहें और सत्य का पालन करें।
  5. भक्ति और ध्यान: भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहें और अधिक से अधिक समय ध्यान और जाप में बिताएं।

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अंत मे

योगिनी एकादशी व्रत का अत्यंत महत्व है और यह व्रत व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि लाने में सहायक होता है। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है। अतः योगिनी एकादशी व्रत को श्रद्धा और भक्ति के साथ करना चाहिए और इसके समस्त लाभ प्राप्त करने के लिए नियमों का पालन करना आवश्यक है।

Kaal ashtami mantra for strong protection

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कालाष्टमी के बारे मे

कालाष्टमी भगवान काल भैरव की पूजा का महत्वपूर्ण दिन है। यह दिन हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, और विशेष रूप से कृष्ण पक्ष की अष्टमी को महत्व दिया जाता है। काल भैरव को समय और मृत्यु के देवता के रूप में पूजा जाता है। उनकी पूजा से व्यक्ति को भय और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है।

कालाष्टमी मंत्र

"ॐ भ्रं कालभैरवाय नमः" या "ॐ भ्रं भैरवाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु ह्रीं ॐ नमः"
"OM BHRAM KAALBHAIRAVAAY NAMAHA" or "OM BHRAM BHAIRAVAAY AAPADA UDDHAARANAAY KURU KURU HREEM NAMAHA"

कालाष्टमी मंत्र का महत्व

कालाष्टमी के दिन भगवान काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। इस दिन श्रद्धालु व्रत रखते हैं, काल भैरव की कथा सुनते हैं, और उनके मंत्रों का जाप करते हैं। काल भैरव की पूजा से समस्त पापों का नाश होता है और व्यक्ति को सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है।

कालाष्टमी मंत्र के लाभ

  1. भयमुक्ति: काल भैरव के मंत्र का जाप करने से व्यक्ति के मन से सभी प्रकार के भय का नाश होता है।
  2. नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा: काल भैरव की पूजा और मंत्र जाप से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  3. शत्रु नाश: इस मंत्र का नियमित जाप करने से शत्रुओं से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति की रक्षा होती है।
  4. संकटों से मुक्ति: काल भैरव की कृपा से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं।
  5. धन प्राप्ति: इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को आर्थिक संकटों से मुक्ति मिलती है और धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है।
  6. मानसिक शांति: काल भैरव की पूजा से मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है।
  7. स्वास्थ्य लाभ: इस मंत्र के जाप से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का समाधान होता है और व्यक्ति को उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त होता है।
  8. यात्रा की सुरक्षा: यात्रा करते समय इस मंत्र का जाप करने से सुरक्षित यात्रा होती है और दुर्घटनाओं से बचाव होता है।
  9. रक्षा कवच: यह मंत्र व्यक्ति के लिए एक रक्षा कवच का कार्य करता है और उसे हर प्रकार की बुरी नजर से बचाता है।
  10. आध्यात्मिक उन्नति: काल भैरव की पूजा से आध्यात्मिक उन्नति होती है और व्यक्ति का मन स्थिर होता है।
  11. अत्याचार से मुक्ति: यह मंत्र अत्याचारों और अन्याय से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है।
  12. समय प्रबंधन: काल भैरव समय के देवता हैं, उनकी पूजा और मंत्र जाप से व्यक्ति को समय प्रबंधन में मदद मिलती है।
  13. सफलता प्राप्ति: इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
  14. परिवार की रक्षा: परिवार की सुख-शांति और सुरक्षा के लिए इस मंत्र का जाप अत्यंत लाभकारी है।
  15. विध्न नाश: काल भैरव की कृपा से जीवन में आने वाले सभी विध्न और बाधाओं का नाश होता है।
  16. आत्मबल की वृद्धि: इस मंत्र का नियमित जाप करने से व्यक्ति के आत्मबल में वृद्धि होती है।
  17. संतान सुख: इस मंत्र के जाप से संतान प्राप्ति और संतान की उन्नति में भी सहायता मिलती है।
  18. विवाह संबंधी समस्याओं का समाधान: काल भैरव की पूजा से विवाह संबंधी सभी समस्याओं का समाधान होता है।
  19. मानसिक रोगों से मुक्ति: मानसिक रोगों से पीड़ित व्यक्ति को इस मंत्र के जाप से लाभ प्राप्त होता है।
  20. सदगति प्राप्ति: काल भैरव की पूजा और मंत्र जाप से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कालाष्टमी की पूजा विधि

  1. स्नान और शुद्धि: सबसे पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. पूजा स्थल की तैयारी: पूजा स्थल को शुद्ध करें और वहाँ काल भैरव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
  3. दीप प्रज्वलित करें: दीपक जलाकर भगवान काल भैरव का ध्यान करें।
  4. पुष्प अर्पण करें: भगवान को फूल, धूप, और दीप अर्पित करें।
  5. मंत्र जाप करें: काल भैरव मंत्र का जाप ५४० बार करें।
  6. भोग लगाएं: भगवान को नैवेद्य (भोग) अर्पित करें और प्रसाद वितरित करें।
  7. आरती करें: काल भैरव की आरती करें और उनकी स्तुति करें।
  8. प्रसाद ग्रहण करें: अंत में, प्रसाद ग्रहण करें और परिवार के सदस्यों में बाँटें।

कालाष्टमी का दिन

  • दिन: हर महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी (अष्टमी तिथि)
  • मास: हर माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, पर विशेष रूप से फाल्गुन और आश्वयुज मास की कालाष्टमी महत्वपूर्ण मानी जाती है।

मुहुर्थ (अवधि)

  • अष्टमी तिथि की शुरुआत: सूर्योदय के बाद अष्टमी तिथि की शुरुआत होती है।
  • अष्टमी तिथि का समाप्ति: अष्टमी तिथि रात को समाप्त होती है।
  • पूजा का समय: पूजा का सबसे अच्छा समय अष्टमी तिथि की मध्यरात्रि होता है, लेकिन दिन के समय भी पूजा की जा सकती है। यदि मध्यरात्रि में पूजा नहीं कर सकते, तो दिन के समय भी पूजा कर सकते हैं।

पूजा की अवधि

  • मूल पूजा: पूजा आमतौर पर अष्टमी तिथि के दिन एक बार की जाती है। लेकिन विशेष अवसरों पर इसे पूरे दिन भी किया जा सकता है।
  • सप्टमी से अष्टमी: पूजा का सबसे शुभ समय अष्टमी तिथि के दिन शाम को होता है। पूजा की अवधि लगभग 1-2 घंटे की होती है, लेकिन आप अपनी सुविधानुसार समय बढ़ा सकते हैं।

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पूजा के नियम

  1. पवित्रता: पूजा से पहले स्नान करें और साफ वस्त्र पहनें।
  2. स्थल चयन: पूजा एक साफ-सुथरी जगह पर करें। अगर घर में कोई विशेष पूजा स्थल है, तो वही स्थान उपयुक्त रहेगा।
  3. सामग्री: पूजा के लिए फूल, दीपक, कुमकुम, अक्षत (चावल), जल, नैवेद्य (भोग), और अगरबत्ती का उपयोग करें।
  4. पुजा विधि:
    • सबसे पहले भगवान शिव की प्रतिमा या चित्र की पूजा करें।
    • दीपक जलाएं और उनका आह्वान करें।
    • मंत्रों का जाप करें और पूजा के दौरान भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करें।
    • नैवेद्य अर्पित करें और समाप्ति पर भगवान को धन्यवाद दें।
  5. उपवास: कुछ भक्त उपवास भी रखते हैं, लेकिन यह वैकल्पिक है। उपवास रखने वाले फल और पानी का सेवन कर सकते हैं।

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काल भैरव के मंत्र का नियमित जाप साधक के मन को शांत करता है और आत्मविश्वास में वृद्धि करता है। इससे व्यक्ति के भीतर साहस और शक्ति का संचार होता है। काल भैरव के आशीर्वाद से साधक को सभी प्रकार की भय, असुरक्षा और विपत्तियों से मुक्ति मिलती है।

Tantric women of Kamrup and their powers

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कामरूप की तांत्रिक महिलाएं – रहस्य, शक्ति और परंपरा

कामरूप, जो वर्तमान असम राज्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, प्राचीन काल से ही तांत्रिक परंपराओं और साधनाओं का केंद्र रहा है। यहाँ की तांत्रिक महिलाएं विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं, जो अपने अद्वितीय ज्ञान और शक्तियों के लिए जानी जाती हैं। कामरूप की तांत्रिक महिलाएं न केवल साधारण साधिकाएं हैं, बल्कि वे समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और विभिन्न आध्यात्मिक और सांसारिक उद्देश्यों के लिए तांत्रिक क्रियाओं का प्रदर्शन करती हैं। सैकडो वर्ष पहले कुछ महिलायें जो समाज के बिपरीत विचारधार रखती थी, तंत्र के क्षेत्र मे कदम रखकर अध्यात्म की उचाईयों को छुआ। इस लेख में, हम कामरूप की तांत्रिक महिलाओं के बारे में विस्तार से जानेंगे।

तांत्रिक परंपरा का केंद्र

कामरूप का इतिहास तांत्रिक साधनाओं और मंत्रों से भरा हुआ है। यह क्षेत्र तंत्र और मंत्र के अभ्यास के लिए प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध है। कामाख्या मंदिर, जो कामरूप का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, तांत्रिक साधनाओं का मुख्य केंद्र है। यहाँ की तांत्रिक महिलाएं, जिन्हें साधिकाएं या योगिनियाँ कहा जाता है, इस पवित्र स्थल पर अपनी साधनाओं का अभ्यास करती हैं और अपने अद्वितीय ज्ञान को संजोए रखती हैं।

तांत्रिक महिलाएं – ज्ञान और शक्ति का संगम

कामरूप की तांत्रिक महिलाएं अपनी आध्यात्मिक और तांत्रिक शक्तियों के लिए जानी जाती हैं। वे विभिन्न मंत्रों, यंत्रों और तंत्रों का प्रयोग करके साधनाएं करती हैं और अपने इष्ट देवताओं की कृपा प्राप्त करती हैं। उनकी साधनाएं न केवल व्यक्तिगत उन्नति के लिए होती हैं, बल्कि वे समाज और समुदाय के कल्याण के लिए भी तंत्र-मंत्र का प्रयोग करती हैं।

तांत्रिक साधनाओं के प्रमुख पहलू

  1. मंत्र साधना: मंत्र साधना तांत्रिक साधनाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। तांत्रिक महिलाएं विभिन्न मंत्रों का उच्चारण करती हैं और उनसे शक्ति प्राप्त करती हैं। मंत्रों का सही उच्चारण और नियमपूर्वक साधना करने से विशेष सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
  2. यंत्र साधना: यंत्र साधना में तांत्रिक महिलाएं विभिन्न यंत्रों का प्रयोग करती हैं। ये यंत्र विशेष रूप से तैयार किए जाते हैं और उनमें विशेष शक्ति होती है। यंत्रों का सही प्रयोग और उनकी पूजा करने से विभिन्न उद्देश्यों की सिद्धि होती है।
  3. तंत्र साधना: तंत्र साधना में तांत्रिक महिलाएं विभिन्न तंत्र क्रियाओं का प्रयोग करती हैं। इनमें हवन, पूजा, और अन्य धार्मिक क्रियाएं शामिल होती हैं। तंत्र साधना से विशेष शक्तियाँ और सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।

तांत्रिक महिलाओं का समाज में योगदान

कामरूप की तांत्रिक महिलाएं समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे न केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शक होती हैं, बल्कि विभिन्न समस्याओं का समाधान भी प्रदान करती हैं। उनके ज्ञान और शक्तियों का समाज के कल्याण में महत्वपूर्ण योगदान होता है।

  1. स्वास्थ्य और चिकित्सा: तांत्रिक महिलाएं विभिन्न बीमारियों और समस्याओं का समाधान करती हैं। वे जड़ी-बूटियों और मंत्रों का प्रयोग करके लोगों को स्वास्थ्य लाभ प्रदान करती हैं।
  2. मानसिक और भावनात्मक सहायता: तांत्रिक महिलाएं मानसिक और भावनात्मक समस्याओं का समाधान भी करती हैं। वे ध्यान, योग और अन्य तांत्रिक विधियों का प्रयोग करके लोगों को मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करती हैं।
  3. समाज सुधार: तांत्रिक महिलाएं समाज सुधार के कार्यों में भी शामिल होती हैं। वे शिक्षा, स्वास्थ्य, और समाज के अन्य क्षेत्रों में योगदान देती हैं।

तांत्रिक परंपराओं की चुनौतियाँ

कामरूप की तांत्रिक महिलाएं अपने ज्ञान और परंपराओं को बनाए रखने के लिए विभिन्न चुनौतियों का सामना करती हैं। आधुनिक युग में तंत्र-मंत्र और साधनाओं के प्रति लोगों की धारणाएं बदल रही हैं। ऐसे में तांत्रिक परंपराओं को जीवित रखना और उनका सही प्रचार-प्रसार करना एक बड़ी चुनौती है।

तांत्रिक परंपराओं को बनाए रखना

  1. शिक्षा और प्रशिक्षण: तांत्रिक परंपराओं को जीवित रखने के लिए शिक्षा और प्रशिक्षण महत्वपूर्ण है। तांत्रिक महिलाएं अपने ज्ञान को नई पीढ़ी को प्रदान करती हैं और उन्हें तांत्रिक साधनाओं में प्रशिक्षित करती हैं।
  2. धार्मिक आयोजन: तांत्रिक परंपराओं को बनाए रखने के लिए विभिन्न धार्मिक आयोजनों का आयोजन किया जाता है। इन आयोजनों में तांत्रिक महिलाएं अपने ज्ञान और साधनाओं का प्रदर्शन करती हैं और लोगों को उनके महत्व के बारे में जागरूक करती हैं।
  3. समाज में जागरूकता: तांत्रिक परंपराओं के प्रति समाज में जागरूकता फैलाना भी महत्वपूर्ण है। तांत्रिक महिलाएं अपने कार्यों और योगदान के माध्यम से समाज में तंत्र-मंत्र और साधनाओं के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण पैदा करती हैं।

Know more about kamakhya mantra

इतिहास की प्रसिद्ध तांत्रिक महिलाएं

कामरूप की तांत्रिक परंपरा में कई प्रमुख महिलाओं ने अपना योगदान दिया है। हालांकि, तांत्रिक साधनाएं और साधिकाएं अक्सर गुप्त रूप से काम करती हैं और उनके नाम व्यापक रूप से ज्ञात नहीं होते। फिर भी, कुछ प्रमुख तांत्रिक महिलाओं के नाम और उनके योगदान के बारे में जानकारी दी जा रही है:

  1. योगिनी नीलांजना:
    • योगिनी नीलांजना कामरूप की एक प्रमुख तांत्रिक महिला थीं। वे अपनी गहन साधनाओं और शक्तियों के लिए जानी जाती थीं। उनके द्वारा किए गए तांत्रिक अनुष्ठान आज भी प्रसिद्ध हैं।
  2. तांत्रिका भुवनेश्वरी देवी:
    • भुवनेश्वरी देवी एक प्रसिद्ध तांत्रिक थीं, जिन्होंने अपने ज्ञान और साधनाओं से अनेक लोगों को लाभ पहुँचाया। वे विशेष रूप से कामाख्या मंदिर से जुड़ी हुई थीं और वहाँ अपनी साधनाओं का प्रदर्शन करती थीं।
  3. माहेश्वरी साधिका:
    • माहेश्वरी साधिका एक और महत्वपूर्ण तांत्रिक महिला थीं, जो कामरूप में अपनी शक्तियों और ज्ञान के लिए सम्मानित थीं। उनकी साधनाएं और अनुष्ठान आज भी अनुकरणीय माने जाते हैं।
  4. तारा देवी:
    • तारा देवी एक प्रमुख तांत्रिक थीं, जिन्होंने कामरूप में विभिन्न तांत्रिक साधनाओं का प्रदर्शन किया। वे अपनी शक्तियों से जानी जाती थीं और अनेक भक्त उनके पास अपनी समस्याओं का समाधान पाने के लिए आते थे।
  5. काली साधिका अदिति:
    • अदिति एक प्रसिद्ध काली साधिका थीं, जिन्होंने तांत्रिक साधनाओं के माध्यम से अनेक लोगों की सहायता की। वे विशेष रूप से काली उपासना में माहिर थीं और उनकी साधनाएं गुप्त रूप से होती थीं।
  6. तांत्रिका कमला देवी:
    • कमला देवी एक प्रसिद्ध तांत्रिक महिला थीं, जो अपनी योग साधनाओं और तांत्रिक क्रियाओं के लिए जानी जाती थीं। वे अपने अनुयायियों को विशेष तांत्रिक ज्ञान और विधियों का प्रशिक्षण देती थीं।
  7. महायोगिनी राधा:
    • राधा महायोगिनी एक प्रमुख तांत्रिक महिला थीं, जो अपने साधनाओं और योग क्रियाओं के लिए प्रसिद्ध थीं। उनका योगदान तांत्रिक परंपरा में अमूल्य माना जाता है।

कामरूप की तांत्रिक परंपरा में महिलाओं ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनकी साधनाएं और ज्ञान समाज में विभिन्न समस्याओं का समाधान प्रदान करने में सहायक रही हैं। तांत्रिक महिलाओं के नाम और उनकी कहानियाँ हमें उनकी शक्ति, समर्पण और ज्ञान का अनुभव कराती हैं। यद्यपि तांत्रिक साधनाओं का अभ्यास गुप्त रूप से होता है, लेकिन इन प्रमुख तांत्रिक महिलाओं के योगदान को याद रखना और उनके ज्ञान को संजोए रखना महत्वपूर्ण है।

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अंत में

कामरूप की तांत्रिक महिलाएं अपनी अद्वितीय शक्तियों और ज्ञान के लिए जानी जाती हैं। वे तांत्रिक साधनाओं के माध्यम से समाज में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं और विभिन्न समस्याओं का समाधान प्रदान करती हैं। हालांकि, आधुनिक युग में तांत्रिक परंपराओं को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है, लेकिन शिक्षा, प्रशिक्षण और जागरूकता के माध्यम से इन परंपराओं को जीवित रखा जा सकता है। कामरूप की तांत्रिक महिलाएं न केवल अपने ज्ञान और शक्तियों को संजोए रखती हैं, बल्कि वे समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए निरंतर प्रयासरत रहती हैं। उनके योगदान को मान्यता देना और उनके ज्ञान का सही उपयोग करना हमारे समाज के लिए महत्वपूर्ण है।

Mahakali sadhana shivir at vajreshwari

Mahakali sadhana shivir at vajreshwari

पृथम महाविद्या महाकाली साधना एक अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावशाली साधना है। महाकाली देवी को समय की देवी माना जाता है, और उनकी पूजा के माध्यम से साधक को असीम शक्ति और साहस प्राप्त होता है। यह साधना भय, शत्रुओं और नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्ति दिलाने के लिए की जाती है।

महाकाली साधना शिविर

साधना का समय और स्थान

  • साधना को किसी शुभ मुहूर्त में प्रारंभ करें।
  • साधना का स्थान स्वच्छ और शांत होना चाहिए।
  • साधना के लिए रात का समय सबसे उत्तम माना जाता है, विशेषकर अमावस्या या नवमी की रात।
  • इसके अलावा किसी भी मंगलवार, शनिवार, ग्रहण या अमावस्या से इस साधना की शुरुवात कर सकते है।

आवश्यक सामग्री

  • काली माँ की प्रतिमा या तस्वीर।
  • लाल या काले रंग का आसन।
  • धूप, दीप, पुष्प, नारियल, कुमकुम, चंदन।
  • काले तिल और गुड़ का प्रसाद।
  • महाकाली का बीज मंत्र: “ॐ क्रीं काली”।

Know more about kali kavacham

साधना की प्रक्रिया

  • स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • महाकाली की प्रतिमा या तस्वीर के सामने लाल या काले रंग का आसन बिछाएं।
  • दीपक जलाकर, धूप और अगरबत्ती अर्पित करें।
  • पुष्प, कुमकुम, और चंदन से महाकाली की पूजा करें।
  • काले तिल और गुड़ का प्रसाद चढ़ाएं।
  • महाकाली का बीज मंत्र “ॐ क्रीं कालिकाये क्रीं नमः” “OM KREEM KAALIKAAYE KREEM NAMAHA” का 540 बार जाप करें। यह जप २१ दिन तक करे।
  • साधना के बाद महाकाली से प्रार्थना करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
  • २१ दिन के बाद किसी गरीब को अन्न दान करे।
  • अगर विधिवत तरीके से साधना करना चाहते है, तो साधना शिविर मे भाग लेना चाहिये।
  • इस शिविर मे आप प्रत्यक्ष आकर भाग ले सकते है या ऑनलाईन भी भाग ले सकते है।

साधना बुकिं

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महाकाली साधना के लाभ

क्रमांकलाभविवरण
1भय से मुक्तिसभी प्रकार के भय और चिंता से मुक्ति।
2शत्रु पर विजयशत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
3नकारात्मक ऊर्जानकारात्मक ऊर्जाओं का समाप्ति।
4आत्मविश्वास में वृद्धिआत्मविश्वास और साहस में वृद्धि।
5स्वास्थ्य में सुधारशारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार।
6समस्याओं का समाधानजीवन की समस्याओं का समाधान।
7धन और समृद्धिआर्थिक स्थिति में सुधार और समृद्धि।
8मानसिक शांतिमन की शांति और स्थिरता।
9अज्ञात संकटों से रक्षाअज्ञात संकटों और दुर्घटनाओं से सुरक्षा।
10कष्टों से मुक्तिजीवन के दुख और कष्टों से मुक्ति।
11आध्यात्मिक उन्नतिआध्यात्मिक उन्नति और आत्मज्ञान।
12परिवारिकपरिवार में सुख-शांति और समृद्धि।
13विवाह विवाह में आ रही अड़चनों का निवारण।
14संतान प्राप्तिनि:संतान दंपतियों को संतान प्राप्ति।
15भूत-प्रेत बाधाभूत-प्रेत बाधाओं से मुक्ति।
16महिलाओं के लिएविवाहित महिलाओं के जीवन में शांति और समृद्धि।
17व्यापार में उन्नतिव्यापार में सफलता और उन्नति।
18जीवन में स्थायित्वजीवन में स्थायित्व और संतुलन।
19सिद्धियों की प्राप्तिविभिन्न प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति।
20पारिवारिक कलह परिवार में हो रही कलह और झगड़ों का निवारण।
21सफलता और प्रसिद्धिजीवन के हर क्षेत्र में सफलता और प्रसिद्धि।
22संकटों से मुक्तिविभिन्न प्रकार के संकटों से मुक्ति।
23सकारात्मक सोचसकारात्मक सोच और दृष्टिकोण का विकास।
24आध्यात्मिक ज्ञानगहरे आध्यात्मिक ज्ञान और समझ की प्राप्ति।
25बाधाओं का निवारणजीवन की सभी प्रकार की बाधाओं का निवारण।

महाकाली साधना एक अद्वितीय और प्रभावशाली साधना है जो साधक को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता, शांति और समृद्धि प्रदान करती है। सही विधि और श्रद्धा से की गई साधना अवश्य फलदायी होती है।

Ambuvachi fair in asam kamakhya

Ambuvachi fair in asam kamakhya

अम्बुवाची मेला असम के गुवाहाटी में स्थित प्रसिद्ध कामाख्या देवी मंदिर में मनाया जाता है। यह मेला कामाख्या देवी की पवित्रता और उनकी महिमा को मान्यता देने के लिए मनाया जाता है। अम्बुवाची मेला वर्ष के चार सबसे महत्वपूर्ण तांत्रिक त्योहारों में से एक माना जाता है और यह वर्ष के सबसे बड़े तांत्रिक मेले में से एक है।

अम्बुवाची मेला को देवी के वार्षिक मासिक धर्म के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस समय के दौरान, मंदिर के गर्भगृह को तीन दिनों के लिए बंद कर दिया जाता है और चौथे दिन इसे फिर से खोला जाता है। यह मेला आमतौर पर जून महीने के दौरान आता है।

मेले के दौरान भक्तजन और साधक कामाख्या देवी के दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं। इस मेले में तांत्रिक, साधु, साध्वी, और श्रद्धालु सभी शामिल होते हैं और विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।

अम्बुवाची मेले के दौरान क्या करें

  1. पूजा और अनुष्ठान: कामाख्या मंदिर में विशेष पूजा और अनुष्ठान होते हैं। इसमें भाग लेना शुभ माना जाता है।
  2. साधु-संतों से आशीर्वाद: मेले में कई तांत्रिक और साधु-संत आते हैं, उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना।
  3. ध्यान और साधना: इस पवित्र समय में ध्यान और साधना करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।
  4. भजन-कीर्तन: भक्तिमय वातावरण में भजन-कीर्तन करना।
  5. मंत्रः “ॐ क्लीं क्लीं कामख्या क्लीं क्लीं नमः” “OM KLEEM KLEEM KAMAKHYA KLEEM KLEEM NAMAHA”

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अम्बुवाची मेले के दौरान क्या न करें:

  1. निरादर: मंदिर और इसके परिसर का निरादर न करें। यह एक पवित्र स्थल है और यहां के नियमों का पालन करना अनिवार्य है।
  2. विवाद: मेले के दौरान किसी भी प्रकार के विवाद या झगड़े में न उलझें।
  3. अनुचित व्यवहार: पवित्र स्थान पर अनुचित व्यवहार या शब्दों का प्रयोग न करें।

अम्बुवाची मेला एक अद्वितीय और पवित्र अवसर है जो तांत्रिक और भक्तिमय जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस अवसर पर कामाख्या देवी की कृपा प्राप्त करने का अनोखा अवसर मिलता है।

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Navnath mantra for health wealth & prosperity

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नवनाथ मंत्र क्या है?

सबकी इच्छा पूरी करने वाली नवनाथ मंत्र एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक मंत्र है जो नवनाथ संप्रदाय के अनुयायियों द्वारा जप किया जाता है। नवनाथों को नौ महान योगियों के रूप में जाना जाता है, जिन्हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है। इन योगियों ने समाज में आध्यात्मिक ज्ञान और योग साधना का प्रचार-प्रसार किया।

नवनाथ मंत्र का उच्चारण करने से भक्तों को मन की शांति, शारीरिक स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। यह मंत्र विशेष रूप से आत्मशुद्धि और मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रभावी माना जाता है।

नवनाथ मंत्र

“ॐ नमो आदिनाथाय,
ॐ नमो मच्छिंद्रनाथाय,
ॐ नमो गोरक्षनाथाय,
ॐ नमो जलंधरनाथाय,
ॐ नमो कानिफनाथाय,
ॐ नमो भर्तृहरिनाथाय,
ॐ नमो रेवणनाथाय,
ॐ नमो नागनाथाय,
ॐ नमो चौरंगीनाथाय।”

इस मंत्र का नियमित जप करने से साधक को नवनाथों की कृपा प्राप्त होती है और जीवन की विभिन्न कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है। इसे सुबह और शाम के समय शुद्ध स्थान पर बैठकर किया जाता है। जप के समय मन को शांत और एकाग्र रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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लाभ जो नवनाथ मंत्र के नियमित जप से प्राप्त होते हैं

  1. मानसिक शांति: यह मंत्र मानसिक तनाव और चिंता को कम करता है, जिससे मानसिक शांति प्राप्त होती है।
  2. आध्यात्मिक उन्नति: नवनाथ मंत्र का जप साधक को आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है और आत्मज्ञान प्राप्त करने में मदद करता है।
  3. शारीरिक स्वास्थ्य: नियमित जप से शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है और रोगों से बचाव होता है।
  4. आत्मविश्वास में वृद्धि: यह मंत्र आत्मविश्वास और साहस को बढ़ाता है, जिससे जीवन में कठिनाइयों का सामना करना आसान होता है।
  5. कुंडलिनी जागरण: नवनाथ मंत्र का नियमित जप कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने में सहायक होता है।
  6. शुभ फल: जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में शुभ फल प्राप्त होते हैं, जैसे धन, समृद्धि और सफलता।
  7. दुष्ट आत्माओं से सुरक्षा: यह मंत्र दुष्ट आत्माओं और नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा प्रदान करता है।
  8. परिवार में सुख-शांति: मंत्र का जप करने से परिवार में सुख-शांति और सामंजस्य बना रहता है।
  9. विचारों की शुद्धि: यह मंत्र विचारों को शुद्ध करता है और नकारात्मक विचारों को दूर करता है।
  10. मनोबल बढ़ाना: यह मंत्र साधक के मनोबल को बढ़ाता है और जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करता है।
  11. आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति: मंत्र का जप करने से साधक को गहन आध्यात्मिक ज्ञान और दिव्य अनुभव प्राप्त होते हैं।
  12. मोक्ष की प्राप्ति: नवनाथ मंत्र का निरंतर जप साधक को मोक्ष की ओर अग्रसर करता है, जिससे जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।

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नवनाथ मंत्र के इन लाभों को प्राप्त करने के लिए नियमितता और विश्वास के साथ इसका जप करना आवश्यक है। इसे शुद्ध मन और श्रद्धा के साथ किया जाना चाहिए।

Angarak ganesha chaturthi vrat for success

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अंगारक गणेश चतुर्थी व्रत- सभी तरह की नकारात्मक उर्जा नष्ट करे

कार्य को सफल बनाने वाली अंगारक गणेश चतुर्थी एक विशेष और महत्वपूर्ण तिथि है जो भगवान श्री गणेश को समर्पित है। इस दिन का महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है क्योंकि यह चतुर्थी मंगलवार के दिन पड़ती है। ‘अंगारक’ का अर्थ होता है ‘मंगल ग्रह’ और ‘गणेश चतुर्थी’ भगवान गणेश की उपासना के लिए विशेष दिन है। जब ये दोनों संयोग होते हैं, तब इसे ‘अंगारक गणेश चतुर्थी’ कहा जाता है।

व्रत का महत्व

  1. विघ्नों का नाश: इस दिन भगवान गणेश की पूजा विशेष रूप से विघ्नों और बाधाओं को दूर करने के लिए की जाती है। यह माना जाता है कि अंगारक गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा करने से जीवन की सभी समस्याएँ और विघ्न दूर होते हैं।
  2. मंगलकारी फल: इस दिन की गई पूजा से मंगलकारी फल प्राप्त होते हैं। मंगल ग्रह के अशुभ प्रभावों को शांत करने के लिए भी यह दिन महत्वपूर्ण है।
  3. धन-धान्य की प्राप्ति: अंगारक गणेश चतुर्थी के दिन व्रत और पूजा करने से धन, धान्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

व्रत विधि

  1. व्रत: इस दिन भक्त गणेश जी का व्रत रखते हैं और निर्जला या फलाहार व्रत रखते हैं।
  2. पूजा: प्रातः काल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीप जलाएं। गणेश जी को सिंदूर, दूर्वा, लड्डू, और मोदक का भोग लगाएं।
  3. मंत्र: गणेश मंत्रों का जाप करें, जैसे – “ॐ गं गणपतये क्लीं नमः” “OM GAMM GANAPATAYE KLEEM NAMAHA” या “वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ, निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा”।
  4. आरती: गणेश जी की आरती करें और भोग को सबमें बांटें।
  5. दान: इस दिन दान का विशेष महत्व है। जरुरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करें।

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व्रत कथा का महत्व

गणेश चतुर्थी व्रत और कथा का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। यह व्रत भगवान गणेश को समर्पित है। इसे श्रद्धा और विश्वास के साथ करने से इच्छित फल प्राप्त होता है। व्रत और कथा से जुड़ा महत्व इस प्रकार है:

  1. संकट हरता
    गणेश चतुर्थी व्रत से जीवन के सभी संकट और बाधाएं दूर होती हैं।
  2. सुख-समृद्धि का आगमन
    व्रत और कथा करने से घर में सुख, समृद्धि और शांति आती है।
  3. मनोकामना पूर्ति
    जो भक्त सच्चे मन से व्रत करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  4. विद्या और बुद्धि की प्राप्ति
    भगवान गणेश को विद्या और बुद्धि के देवता माना जाता है। इस व्रत से ज्ञान में वृद्धि होती है।
  5. शुभ कार्यों में सफलता
    गणेश चतुर्थी व्रत से विवाह, व्यापार या अन्य शुभ कार्यों में सफलता मिलती है।
  6. पापों का नाश
    कथा सुनने और व्रत करने से पूर्व जन्मों के पाप भी समाप्त हो जाते हैं।
  7. आरोग्य का वरदान
    गणेश जी की कृपा से स्वास्थ्य समस्याएं समाप्त होती हैं।
  8. परिवार में सुख और मेलजोल
    व्रत से पारिवारिक रिश्तों में प्रेम और सौहार्द बढ़ता है।

गणेश चतुर्थी व्रत करने के बाद कथा सुनना अत्यंत शुभ माना जाता है। कथा से भगवान गणेश का आशीर्वाद मिलता है। श्रद्धा और नियमपूर्वक व्रत रखने से भगवान गणेश जीवन को मंगलमय बनाते हैं।

व्रत कथा

गणेश चतुर्थी व्रत कथा का पालन करने से भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त होता है। कथा सुनने से सभी बाधाएं दूर होती हैं। इस कथा का महत्व और विवरण इस प्रकार है:

  1. कथा की शुरुआत
    प्राचीन समय में एक गरीब ब्राह्मण दंपत्ति थे। उनकी कोई संतान नहीं थी।
  2. गरीबी और दुःख
    ब्राह्मण और उसकी पत्नी गरीबी और दुःख से पीड़ित थे। वे भगवान गणेश की उपासना करते थे।
  3. गणेश जी का वरदान
    एक दिन गणेश जी ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए। उन्होंने गणेश चतुर्थी का व्रत करने को कहा।
  4. व्रत का विधि-विधान
    ब्राह्मण दंपत्ति ने श्रद्धा से व्रत किया। उन्होंने भगवान गणेश की पूजा और चतुर्थी व्रत कथा सुनी।
  5. संकटों का अंत
    व्रत करने के बाद उनकी सभी समस्याएं समाप्त हो गईं। उनके जीवन में सुख-समृद्धि लौट आई।
  6. संतान का जन्म
    गणेश जी के आशीर्वाद से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। परिवार में खुशियां आ गईं।
  7. कथा का संदेश
    गणेश चतुर्थी व्रत से जीवन के सभी संकट समाप्त होते हैं। इच्छित फल और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
  8. व्रत का प्रभाव
    इस कथा को सुनने और व्रत करने से व्यक्ति के पाप समाप्त होते हैं। उसे भगवान गणेश की कृपा मिलती है।

गणेश चतुर्थी व्रत कथा को श्रद्धा और विश्वास से सुनने का विशेष महत्व है। इससे जीवन मंगलमय बनता है।

Ganesha Sadhana

अंगारक गणेश चतुर्थी व्रत के प्रमुख लाभ

अंगारक गणेश चतुर्थी का व्रत मंगलवार को पड़ने वाली चतुर्थी के दिन किया जाता है। यह व्रत भगवान गणेश को अत्यंत प्रिय है और इसके कई लाभ होते हैं।

  1. संकटों का नाश
    व्रत करने से जीवन के सभी संकट, बाधाएं और विघ्न दूर हो जाते हैं।
  2. मनोकामना पूर्ति
    यह व्रत सभी इच्छाओं को पूर्ण करता है और भक्त की मनोकामनाओं को पूरा करता है।
  3. सुख-समृद्धि की प्राप्ति
    व्रत से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
  4. कर्ज से मुक्ति
    अंगारक चतुर्थी व्रत करने से कर्ज जल्दी समाप्त होता है।
  5. शत्रुओं पर विजय
    व्रत से शत्रु पर विजय प्राप्त होती है और जीवन में सुरक्षा बढ़ती है।
  6. नौकरी में सफलता
    इस व्रत से करियर में उन्नति और नई नौकरी पाने में सहायता मिलती है।
  7. व्यापार में लाभ
    व्यापारी इस व्रत से अपने व्यवसाय में वृद्धि और लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
  8. विद्या और बुद्धि में वृद्धि
    विद्यार्थी और ज्ञान प्राप्ति के इच्छुक लोगों को इस व्रत से बुद्धि और विद्या में लाभ मिलता है।
  9. आरोग्य का वरदान
    यह व्रत शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।
  10. संतान सुख
    व्रत करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
  11. पारिवारिक सुख
    परिवार में प्रेम और सौहार्द बढ़ता है।
  12. धार्मिक पुण्य
    व्रत से धार्मिक पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  13. नकारात्मक ऊर्जा से बचाव
    व्रत से घर और जीवन में नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।
  14. आत्मविश्वास में वृद्धि
    व्रत से मानसिक शक्ति और आत्मविश्वास बढ़ता है।
  15. भगवान गणेश का आशीर्वाद
    यह व्रत भगवान गणेश की विशेष कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने का माध्यम है।
  16. अंगारक चतुर्थी व्रत से जीवन मंगलमय और सुखद बनता है।

Nirjala ekadashi vrat for wish

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निर्जला एकादशी व्रत- मनोकामना पूर्ण करने वाला व्रत

निर्जला एकादशी व्रत, जिसे भीमसेनी एकादशी व्रत या पांडव निर्जला एकादशी व्रत के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण एकादशी व्रत है। यह ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन व्रत रखने वाले भक्त बिना पानी पिए पूरे दिन और रात उपवास रखते हैं, इसलिए इसे “निर्जला” (बिना जल के) एकादशी कहा जाता है।

निर्जल एकादशी का महत्व

  1. धार्मिक महत्व: मान्यता है कि निर्जल एकादशी का व्रत करने से सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  2. आध्यात्मिक लाभ: निर्जल एकादशी व्रत करने से व्यक्ति की आत्मा की शुद्धि होती है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
  3. पौराणिक कथा: इस व्रत का सम्बन्ध महाभारत काल से है, जब भीम ने इसे रखा था। भीम, जो खाना खाने के बहुत शौकीन थे, ने एक दिन नारद मुनि की सलाह पर यह कठिन व्रत रखा और उन्हें इसका पूर्ण फल मिला।

व्रत विधि

  1. व्रत का संकल्प: व्रत की पूर्व संध्या पर ही यह संकल्प लें कि आप निर्जल एकादशी व्रत करेंगे।
  2. स्नान और पूजा: प्रातः काल स्नान कर के भगवान विष्णु की पूजा करें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और ध्यान करें।
  3. निर्जला उपवास: पूरे दिन और रात बिना जल और भोजन के उपवास रखें। यह व्रत शुद्ध भाव और दृढ़ निश्चय से करना चाहिए।
  4. भगवान विष्णु का भजन: दिन भर भगवान विष्णु के भजन और कीर्तन करें।
  5. द्वादशी को पारण: द्वादशी के दिन ब्राह्मण भोजन करवा कर और उन्हें दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करें।

निर्जला एकादशी व्रत का महत्व

निर्जला एकादशी व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत साल की सबसे कठिन एकादशी मानी जाती है क्योंकि इसमें व्रती को पूरे दिन बिना अन्न और जल के रहना होता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति को सभी एकादशियों के व्रत का पुण्य प्राप्त होता है।

निर्जला एकादशी व्रत विशेष रूप से भीमसेन द्वारा किए गए व्रत के कारण प्रसिद्ध है, इसीलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की उपासना और उनके नाम का कीर्तन करना अत्यंत फलदायी होता है। निर्जला एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के समस्त पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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निर्जला एकादशी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, भीमसेन को व्रत रखना कठिन लगता था। महाभारत के पांडवों में भीमसेन को खाने-पीने का अत्यधिक शौक था। युधिष्ठिर और द्रौपदी ने भीमसेन से एकादशी व्रत करने का आग्रह किया, लेकिन भीम अपनी भूख के कारण इसे नहीं कर पाते थे।

भीमसेन ने इस समस्या को लेकर महर्षि व्यास से समाधान मांगा। महर्षि व्यास ने भीमसेन को निर्जला एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि यदि भीम इस व्रत को एक दिन बिना जल और अन्न ग्रहण किए रखते हैं, तो उन्हें सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होगा।

भीमसेन का व्रत और मोक्ष प्राप्ति

भीमसेन ने महर्षि व्यास के कहे अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत रखा और अपनी हर तरह की मनोकामना पूर्ण की।

निर्जला एकादशी व्रत सावधानियां

  • इस व्रत को करने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होना आवश्यक है।
  • यदि स्वास्थ्य अनुमति नहीं देता है तो पानी पीकर या फलाहार करके भी यह व्रत किया जा सकता है, परन्तु इसका पूर्ण फल नहीं मिलेगा।

निर्जल एकादशी व्रत को करने से व्यक्ति को भगवान विष्णु की अपार कृपा प्राप्त होती है और जीवन में शांति, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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निर्जला एकादशी व्रत से लाभ

  1. मोक्ष की प्राप्ति: निर्जल एकादशी व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत सभी पापों का नाश कर व्यक्ति को भगवान विष्णु के परम धाम की ओर अग्रसर करता है।
  2. धर्म और पुण्य की प्राप्ति: इस व्रत के फलस्वरूप व्यक्ति को अपार धर्म और पुण्य की प्राप्ति होती है। इससे समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होता है।
  3. आत्मा की शुद्धि: निर्जल एकादशी व्रत से आत्मा की शुद्धि होती है। व्यक्ति के मन और मस्तिष्क को शांति मिलती है और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
  4. स्वास्थ्य लाभ: व्रत करने से शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन होता है, जिससे स्वास्थ्य में सुधार होता है और विभिन्न बीमारियों से बचाव होता है।
  5. सकारात्मक ऊर्जा: इस व्रत से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं।
  6. भक्तिभाव में वृद्धि: व्रत करने से भगवान विष्णु के प्रति भक्तिभाव में वृद्धि होती है और उनके प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास उत्पन्न होता है।
  7. पारिवारिक समृद्धि: निर्जल एकादशी व्रत से पारिवारिक समृद्धि और सुख-शांति में वृद्धि होती है। भगवान विष्णु की कृपा से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
  8. आध्यात्मिक जागरूकता: व्रत से आध्यात्मिक जागरूकता और ज्ञान में वृद्धि होती है। व्यक्ति जीवन के महत्वपूर्ण आध्यात्मिक सत्यों को समझने में सक्षम होता है।
  9. पापों का नाश: इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होता है। यह व्रत व्यक्ति को पवित्र और निष्कलंक बनाता है।
  10. मनोबल में वृद्धि: निर्जल एकादशी व्रत से मनोबल और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। व्यक्ति जीवन की चुनौतियों का सामना दृढ़ता से कर पाता है।
  11. आयु वृद्धि: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से आयु में वृद्धि होती है और व्यक्ति दीर्घायु होता है।
  12. सुख और शांति: इस व्रत के पालन से जीवन में सुख और शांति का संचार होता है। व्यक्ति के जीवन में आनंद और संतोष का भाव बना रहता है।

निर्जल एकादशी व्रत से व्यक्ति के जीवन में शांति, समृद्धि, स्वास्थ्य, और आध्यात्मिक उन्नति होती है, जिससे उसका जीवन सुखमय और सफल बनता है।

Sparshamani kali mantra for wealth & protection

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स्पर्श मणि महाकाली साधना मंत्र एक शक्तिशाली साधना है, जो माता महाकाली की उपासना से जुड़ी है।
इस साधना में ‘स्पर्श मणि’ (क्रिस्टल बॉल) का प्रयोग विशेष ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

स्पर्श मणि महाकाली साधना का महत्व

  1. रक्षा और सुरक्षा: यह साधना बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जा से बचाव करती है।
  2. धन और समृद्धि: महाकाली की कृपा से साधक को धन और ऐश्वर्य प्राप्त होता है।
  3. शत्रुओं से मुक्ति: साधना से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
  4. स्वास्थ्य और आरोग्य: महाकाली की उपासना से साधक को अच्छा स्वास्थ्य मिलता है।
  5. आध्यात्मिक उन्नति: साधक आध्यात्मिक रूप से उन्नति प्राप्त करता है।

स्पर्श मणि महाकाली साधना की विधि

  1. स्थान चयन: शांत और पवित्र स्थान का चयन करें।
  2. महाकाली का आह्वान: महाकाली की प्रतिमा या तस्वीर के समक्ष बैठकर आह्वान करें।
  3. स्पर्श मणि का प्रयोग: स्पर्श मणि को अपने सामने रखें और मंत्रों से अभिमंत्रित करें।
  4. मंत्र जाप: “ॐ क्रीं काली” या “ॐ जयंती मंगला काली…” जैसे मंत्रों का जाप करें।
  5. ध्यान और एकाग्रता: महाकाली का ध्यान करते हुए उनकी कृपा की अनुभूति करें।

मंत्र व उसका अर्थ

॥ॐ क्रीं क्रीं स्पर्श मणि कालिके सर्व बाधा स्तंभय स्वाहा॥
OM HREEM KREEM KREEM SPARSHA MANI KALIKE SARVA BADHA STAMBHAY SVAHA

मंत्र का अर्थ:

  1. ॐ (Om): यह ब्रह्मांडीय ध्वनि है, जो ऊर्जा और शांति का प्रतीक है।
  2. क्रीं (Kreem): यह बीज मंत्र महाकाली का प्रतीक है, जो शक्ति, रक्षा और नकारात्मकता का नाश करता है।
  3. स्पर्श मणि (Sparsha Mani): यह अद्वितीय मणि है, जो विशेष ऊर्जा और महाकाली की कृपा को आकर्षित करती है।
  4. कालिके (Kalike): महाकाली का आह्वान, जो विनाशकारी और पुनः सृजनकारी ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती हैं।
  5. सर्व बाधा स्तंभय (Sarva Badha Stambhay): सभी बाधाओं को रोकने और जीवन में शांति लाने का आह्वान।
  6. स्वाहा (Swaha): यह समर्पण और मंत्र की पूर्णता का प्रतीक है।

संक्षिप्त अर्थ:

इस मंत्र के माध्यम से साधक महाकाली का आह्वान करता है कि वे अपनी दिव्य शक्ति से जीवन की सभी बाधाओं को रोकें। यह मंत्र सुरक्षा, नकारात्मकता का नाश, और शांति प्रदान करता है।

Know more about kali kavacham

स्पर्श मणि महाकाली साधना के लाभ

  1. समस्त प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा और बुराईयों से मुक्ति
  2. साधक को मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त होती है
  3. धन, समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति
  4. शत्रुओं से मुक्ति और सुरक्षा
  5. आध्यात्मिक उन्नति और उच्च स्तर की साधना का अनुभव

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स्पर्श मणि महाकाली साधना को सही विधि और पूर्ण निष्ठा के साथ करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

Sparsh mani maha kali

Vat purnima vrat – Prosperity & Good fortune

Vat purnima vrat - Prosperity & Good fortune

वट पूर्णिमा व्रत २०२५- सुख सैभाग्य बढायें

सौभाग्यवती का आशिर्वाद देने वाली वट पूर्णिमा व्रत हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। इस व्रत का आयोजन ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन होता है। यह मुहुर्थ मंगलवार १० जून २०२५ को है। यह व्रत वट वृक्ष (बरगद का पेड़) की पूजा के रूप में किया जाता है और इसे अखंड सौभाग्य, दीर्घायु, और परिवार की समृद्धि के लिए किया जाता है।

वट पूर्णिमा व्रत की पूजा विधि

  1. स्नान और पूजा की तैयारी: प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा के लिए वट वृक्ष के पास जाएं या घर पर ही किसी बर्तन में वट वृक्ष की टहनी रखें।
  2. व्रत का संकल्प: व्रत का संकल्प लें और भगवान गणेश का ध्यान करें।
  3. वट वृक्ष की पूजा: वट वृक्ष की जड़ में जल, दूध, और पवित्र गंगा जल अर्पित करें। इसके बाद वृक्ष के चारों ओर धागा (कच्चा सूत) लपेटें और तीन या सात बार वृक्ष की परिक्रमा करें।
  4. पूजन सामग्री: पूजा के लिए धूप, दीप, नैवेद्य, रोली, मौली, सिंदूर, चावल, फल, मिठाई, और सुहाग की सामग्री (चूड़ी, बिंदी, मेहंदी आदि) का उपयोग करें।
  5. कथा सुनना या पढ़ना: व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। यह कथा सावित्री और सत्यवान की कहानी पर आधारित होती है जिसमें सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस पाया था।
  6. आरती और प्रार्थना: पूजा के अंत में वट वृक्ष की आरती करें और भगवान से अपने परिवार की सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।

व्रत का महत्व

  • पति की लंबी उम्र: वट पूर्णिमा व्रत करने से पति की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना की जाती है।
  • अखंड सौभाग्य: व्रत करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य प्राप्त होता है और उनके वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
  • पारिवारिक समृद्धि: व्रत करने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।

सावधानियां

  • व्रत का पालन पूरी श्रद्धा और नियमों के साथ करना चाहिए।
  • पूजा के दौरान मन को शांत और एकाग्र रखें।
  • इस दिन व्रत रखने वाली महिलाओं को निराहार रहना चाहिए, केवल फलाहार किया जा सकता है।
  • मंत्रः “ॐ ऐं श्रीं क्रीं सर्व इच्छा पुर्तिं देही देही नमः” “OM AIM SHREEM SARVA ICHCHHA PURTIM DEHI DEHI NAMAHA”

Know about rama ekadashi vrat

वट पूर्णिमा व्रत की संपूर्ण कथा

प्राचीन काल में मद्र देश के राजा अश्वपति और रानी मलविका संतान प्राप्ति के लिए कठोर तप कर रहे थे।
उनकी तपस्या के फलस्वरूप उन्हें सावित्री नाम की अत्यंत सुंदर, बुद्धिमान और गुणी कन्या का वरदान मिला।
जब सावित्री विवाह योग्य हुई, राजा अश्वपति ने उसे स्वयं वर चुनने का अधिकार प्रदान किया।

सावित्री और सत्यवान की कथा

सावित्री ने सत्यवान नामक राजकुमार को अपने जीवनसाथी के रूप में चुना।
सत्यवान अपने अंधे पिता के साथ जंगल में साधारण जीवन व्यतीत कर रहा था।
सत्यवान की सबसे बड़ी समस्या यह थी कि उसकी शेष आयु केवल एक वर्ष बची थी।
सावित्री ने इसे अपनी नियति मानकर सत्यवान से विवाह करने का दृढ़ निश्चय किया।
राजा अश्वपति और अन्य लोगों ने सावित्री को इसके परिणामों के बारे में चेतावनी दी।
इसके बावजूद सावित्री अपने निर्णय पर अडिग रही और सत्यवान से विवाह किया।

सत्यवान की मृत्यु का दिन

विवाह के बाद सावित्री सत्यवान के साथ जंगल में रहने लगी और उसकी सेवा में लग गई।
सत्यवान अत्यंत बुद्धिमान और धर्मपरायण व्यक्ति था, लेकिन उसकी अल्पायु सावित्री के लिए चुनौती बनी।
सत्यवान के जीवन का अंतिम दिन आ गया, और वह लकड़ी काटने जंगल गया।
सावित्री भी उसके साथ जंगल गई, जहाँ सत्यवान अचानक गिर पड़ा और बेहोश हो गया।

यमराज से संवाद

सत्यवान की आत्मा लेने के लिए यमराज वहां पहुंचे।
सावित्री ने यमराज का पीछा किया और उनसे सत्यवान की आत्मा को न ले जाने की प्रार्थना की।
सावित्री की तप, निष्ठा और तर्क शक्ति ने यमराज को प्रभावित कर दिया।
यमराज ने सावित्री को तीन वरदान देने का निर्णय लिया।
सावित्री ने अपने ससुर के नेत्रों की ज्योति और राज्य वापस मांगा।
तीसरे वरदान में उसने सत्यवान के साथ लंबी आयु का वरदान मांगा।

यमराज ने सावित्री की भक्ति और निष्ठा से प्रसन्न होकर सत्यवान का जीवन वापस कर दिया।
इस प्रकार सावित्री ने अपनी बुद्धिमत्ता और दृढ़ता से अपने पति को मृत्यु से बचा लिया।
वट पूर्णिमा व्रत इसी कथा से जुड़ा है, जो पतिव्रता धर्म और निष्ठा का प्रतीक है।

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वट पूर्णिमा व्रत सामान्य प्रश्न

1. वट पूर्णिमा व्रत क्या है?
वट पूर्णिमा व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। इसमें वट (बड़) वृक्ष की पूजा होती है।

2. वट पूर्णिमा व्रत कब मनाया जाता है?
यह व्रत ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत में प्रचलित है।

3. इस व्रत का धार्मिक महत्व क्या है?
धार्मिक मान्यता है कि सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे यमराज से अपने पति सत्यवान के जीवन को वापस लिया था, इसलिए इसे व्रत में पूजनीय माना गया है।

4. व्रत की पूजा विधि क्या है?
व्रतधारी महिलाएं वट वृक्ष के चारों ओर धागा लपेटकर उसकी पूजा करती हैं, साथ ही सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती और सुनाती हैं।

5. व्रत के दिन उपवास का नियम क्या है?
इस दिन विवाहित महिलाएं उपवास रखती हैं, और संध्या के समय व्रत खोलती हैं। व्रत के दौरान फलाहार किया जाता है।

6. व्रत से किस प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं?
वट पूर्णिमा व्रत करने से पति की लंबी उम्र, स्वस्थ जीवन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसे महिलाओं के सोलह श्रृंगार का भाग भी माना जाता है।

7. क्या अविवाहित महिलाएं भी यह व्रत कर सकती हैं?
यह व्रत मुख्यतः विवाहित महिलाओं द्वारा किया जाता है, लेकिन अविवाहित महिलाएं भी अपने भावी पति के लिए इसे कर सकती हैं।

8. सावित्री और सत्यवान की कथा का महत्व क्या है?
सावित्री की तपस्या और अपने पति के प्रति समर्पण को इस व्रत का आधार माना गया है, जिससे यह दांपत्य जीवन में स्थिरता और प्रेम का प्रतीक है।

Kheer bhavani vrat for wealth & prosperity

Kheer bhavani vrat for wealth & prosperity

क्षीर भवानी व्रत- सुख-समृद्धि और शांति का प्रतीक

खीर भवानी एक प्रसिद्ध हिंदू देवी हैं जिनकी पूजा मुख्य रूप से कश्मीर क्षेत्र में की जाती है। खीर भवानी मंदिर कश्मीर के तुलमुल्ला गाँव में स्थित है और यह मंदिर देवी राग्या भगवती को समर्पित है, जिन्हें खीर भवानी के नाम से भी जाना जाता है। देवी राग्या भगवती का खीर भवानी नाम इसलिए पड़ा क्योंकि उन्हें खीर (चावल और दूध से बना एक मीठा व्यंजन) का भोग अर्पित किया जाता है।

खीर भवानी मंदिर का महत्व

  1. स्थान: खीर भवानी मंदिर कश्मीर के गंदरबल जिले में स्थित है। यह मंदिर एक प्राकृतिक जल स्रोत (स्प्रिंग) के पास बना है और इस जल स्रोत का रंग बदलता रहता है, जिसे शुभ और अशुभ संकेतों के रूप में देखा जाता है।
  2. प्राचीनता: मंदिर का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है और इसके निर्माण का उल्लेख राजा राणा जयरथ द्वारा किया गया है। यह मंदिर माँ दुर्गा के अवतार के रूप में पूजित देवी राग्या को समर्पित है।
  3. भोग: मंदिर में खीर का भोग विशेष रूप से चढ़ाया जाता है। यह मान्यता है कि देवी खीर भवानी को खीर का भोग बहुत प्रिय है।

Tulja bhavani mantra vidhi

पूजन विधि

  1. तैयारी:
    • सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
    • देवी खीर भवानी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
  2. पूजा सामग्री:
    • चावल, दूध, चीनी, और सूखे मेवे आदि से खीर बनाएं।
    • धूप, दीप, फूल, चंदन, कुमकुम, नारियल, फल आदि पूजा के लिए रखें।
  3. पूजा विधि:
    • देवी खीर भवानी की मूर्ति या चित्र के सामने घी का दीपक जलाएं।
    • धूप दिखाएं और फिर चंदन, कुमकुम, फूल आदि से पूजन करें।
    • खीर का भोग अर्पित करें और नारियल फोड़ें।
    • मंत्रों का जाप करें और देवी की आरती करें।
  4. प्रसाद वितरण:
    • पूजा के बाद खीर का प्रसाद सभी को बांटें।

खीर भवानी जयंती

  • खीर भवानी जयंती ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है। इस दिन भक्तजन बड़ी संख्या में मंदिर में आते हैं और विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।

माता खीर भवानी की कृपा से मिलने वाले लाभ

  1. धन-धान्य की प्राप्ति: खीर भवानी की पूजा से व्यक्ति के घर में कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती।
  2. आर्थिक सुदृढ़ता: देवी की कृपा से भक्त की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ और स्थिर बनी रहती है।
  3. शांति और समृद्धि: पूजा करने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।
  4. परिवार की खुशहाली: देवी की कृपा से सभी परिवारजन स्वस्थ, खुशहाल और प्रसन्न रहते हैं।
  5. मनोकामनाओं की पूर्ति: नौकरी, विवाह, या संतान प्राप्ति की इच्छाएँ देवी की पूजा से पूर्ण होती हैं।
  6. रोगों से मुक्ति: माता की कृपा से शारीरिक और मानसिक रोग दूर होते हैं और स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  7. बाधाओं से मुक्ति: जीवन में आने वाली बाधाएँ और कठिनाइयाँ देवी की कृपा से समाप्त हो जाती हैं।
  8. शत्रुओं पर विजय: खीर भवानी की पूजा से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और भय समाप्त होता है।
  9. मानसिक शांति: देवी की उपासना से मन को शांति और तनाव से मुक्ति मिलती है।
  10. धैर्य और संतुलन: मानसिक संतुलन और धैर्य बनाए रखने में देवी की कृपा सहायक होती है।
  11. सुखी वैवाहिक जीवन: विवाह के बंधन में बंधे लोग आपसी प्रेम और समझ के साथ सुखी जीवन बिताते हैं।
  12. संतान सुख: माता खीर भवानी की कृपा से संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपत्ति को संतान सुख मिलता है।
  13. पारिवारिक संबंधों में सुधार: देवी की पूजा से परिवार में एकता और संबंधों में सुधार होता है।
  14. व्यवसाय में उन्नति: खीर भवानी की कृपा से व्यापार और व्यवसाय में सफलता और नए अवसर प्राप्त होते हैं।
  15. विद्या और बुद्धि: विद्यार्थियों और ज्ञान प्राप्ति की इच्छा रखने वालों को विद्या और बुद्धि की प्राप्ति होती है।
  16. यात्राओं में सुरक्षा: देवी की कृपा से यात्राएँ सफल और सुरक्षित होती हैं।

मंदिर से जुड़ी मान्यताएँ

  • यह मान्यता है कि देवी खीर भवानी अपने भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी करती हैं।
  • जल स्रोत का रंग बदलना भविष्य में होने वाली घटनाओं का संकेत माना जाता है।

खीर भवानी की पूजा और व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि, और शांति का वास होता है। भक्तों का विश्वास है कि देवी खीर भवानी की कृपा से जीवन की सभी कठिनाइयाँ दूर होती हैं और मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

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Why should Bipreet Pratyangira not be used?

Why should Bipreet Pratyangira not be used?

शत्रु को नुकसान पहुचाने वाली बिपरीत प्रत्यंगिरा देवी तंत्र शास्त्र में एक अत्यंत शक्तिशाली और उग्र देवी मानी जाती हैं। उनका प्रयोग बहुत ही सावधानी पूर्वक और विशिष्ट परिस्थितियों में किया जाता है। बिपरीत प्रत्यंगिरा का प्रयोग करना खतरनाक हो सकता है यदि सही विधि और सावधानियों का पालन न किया जाए।

नुकसान

  1. नुकसानः इस बिपरीत प्रत्यांगिरा की साधना मे आपकी पूरी उर्जा शत्रु के पास चली जाती है, इससे आपके पारिवारिक व आर्थिक व्यवहार मे लगने वाली उर्जा बहुत ही कम रह जाती है, जिससे परिवार मे समस्याये आनी शुरु हो जाती है। वाद विवाद, क्लेश परिवार मे बढ जाते है। पूजा पाठ, साधना मे मन नही लगता।
  2. उग्र शक्ति: बिपरीत प्रत्यंगिरा की शक्ति अत्यंत उग्र और विध्वंसकारी मानी जाती है। गलत तरीके से उनका आह्वान करने पर यह शक्ति नियंत्रित करना कठिन हो सकता है।
  3. आध्यात्मिक अनुशासन: बिपरीत प्रत्यंगिरा के प्रयोग के लिए अत्यधिक आध्यात्मिक अनुशासन और शुद्धता की आवश्यकता होती है। साधक को मानसिक और शारीरिक शुद्धता बनाए रखनी होती है।
  4. सही मार्गदर्शन का अभाव: बिना योग्य गुरु या विशेषज्ञ के मार्गदर्शन के बिपरीत प्रत्यंगिरा का प्रयोग करना बहुत जोखिम भरा हो सकता है। उचित मार्गदर्शन के बिना यह साधना साधक को नुकसान पहुँचा सकती है।
  5. नकारात्मक प्रभाव: यदि साधक से कोई त्रुटि हो जाए तो बिपरीत प्रत्यंगिरा की शक्ति साधक के जीवन में नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है, जैसे स्वास्थ्य समस्याएं, मानसिक तनाव, और अन्य समस्याएँ।
  6. विध्वंसकारी शक्तियों का आह्वान: बिपरीत प्रत्यंगिरा का आह्वान करने से विध्वंसकारी और नकारात्मक शक्तियाँ सक्रिय हो सकती हैं जो साधक के लिए हानिकारक हो सकती हैं।
  7. अनुचित उद्देश्य: यदि बिपरीत प्रत्यंगिरा का प्रयोग अनुचित उद्देश्य के लिए किया जाए तो इसका परिणाम बहुत गंभीर और नकारात्मक हो सकता है।
  8. साधना में कठिनाई: बिपरीत प्रत्यंगिरा की साधना अत्यंत कठिन और जटिल होती है। साधक को इस साधना में संपूर्ण समर्पण और धैर्य की आवश्यकता होती है।
  9. समाज और परिवार पर प्रभाव: बिपरीत प्रत्यंगिरा की साधना से उत्पन्न शक्तियाँ समाज और परिवार पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं।

इसलिए, बिपरीत प्रत्यंगिरा का प्रयोग बहुत ही विशेष परिस्थितियों में और योग्य गुरु के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए। साधक को इस साधना से पहले अपने उद्देश्य और परिणामों के बारे में गंभीरता से विचार कर आगे बढना चाहिए।

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हमारी राय

आपको अधिकार है कि आप अपना व अपने परिवार का हित ध्यान मे रखे, इसलिये प्रत्यांगिरा साधना से अपना व अपने परिवार की सुरक्षा तो कर सकते है लेकिन शत्रुता कि भावना से बिपरीत प्रत्यांगिरा का प्रयोग आपको बहुत ही ज्यादा नुकसान पहुचा सकता है। इसलिये बिपरीत प्रत्यांगिरा का प्रयोग करना अपने दिमाग से निकाल दे।