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Varahi Yakshini Mantra for wishes

वाराही यक्षिणी / Varahi Yakshini Mantra for wishes

सिद्धियां व मनोकामना पूर्ण करने वाली वाराही यक्षिणी एक शक्तिशाली यक्षिणी हैं जो अपने साधकों को आध्यात्मिक उन्नति और सिद्धियों की प्राप्ति में मदद करती हैं। वह धन, समृद्धि, सुख, शांति और सर्वाधिकार की प्राप्ति के लिए उपासना की जाती हैं। उन्हें भय, चिंता, और संकटों से मुक्ति मिलती हैं और उन्हें रक्षा और सुरक्षा का अनुभव होता हैं। वाराही यक्षिणी की उपासना से साधक अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जाते हैं और सफलता की ऊंचाइयों को छूने में समर्थ होते हैं।

वाराही यक्षिणी मंत्र और उसका संपूर्ण अर्थ

मंत्र: ॐ ह्रीं वाराही कार्य सिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा

इस मंत्र का अर्थ है:

  • : यह ब्रह्मांड की मूल ध्वनि है और हर प्रकार की ऊर्जा का स्रोत है।
  • ह्रीं: यह शक्ति बीज मंत्र है, जो देवी की अनंत शक्ति को जागृत करता है।
  • वाराही: यह देवी वाराही का नाम है, जो कार्य सिद्धि की देवी मानी जाती हैं।
  • कार्य सिद्धिं कुरु कुरु: इसका अर्थ है “मेरे कार्यों को सिद्ध करो, सिद्ध करो।”
  • स्वाहा: यह शब्द संपूर्णता और समर्पण का प्रतीक है।

वाराही यक्षिणी मंत्र के लाभ

  1. कार्य सिद्धि: यह मंत्र हर कार्य को सफल बनाता है।
  2. आध्यात्मिक उन्नति: यह मंत्र व्यक्ति की आध्यात्मिक चेतना को बढ़ाता है।
  3. शत्रु नाश: यह मंत्र शत्रुओं को नष्ट करता है।
  4. धन और समृद्धि: मंत्र का जप धन और समृद्धि को आकर्षित करता है।
  5. सौभाग्य: जीवन में सौभाग्य लाने में सहायक होता है।
  6. स्वास्थ्य: मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारता है।
  7. सकारात्मक ऊर्जा: जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और उत्साह भरता है।
  8. रिश्तों में सुधार: पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को मजबूत करता है।
  9. आत्मविश्वास: आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को बढ़ाता है।
  10. धार्मिकता: धर्म और अध्यात्म में रुचि को प्रगाढ़ करता है।
  11. कर्मों की शुद्धि: पिछले कर्मों के दोषों को मिटाता है।
  12. मानसिक शांति: तनाव और चिंता को दूर करता है।
  13. सफलता: जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने में मदद करता है।
  14. आकर्षण: व्यक्ति को अधिक आकर्षक बनाता है।
  15. संतान प्राप्ति: संतान प्राप्ति में सहायक होता है।
  16. भयमुक्ति: भय और असुरक्षा की भावना को दूर करता है।
  17. आध्यात्मिक मार्गदर्शन: सच्चे मार्गदर्शक की ओर ले जाता है।
  18. कर्म सुधार: अच्छे कर्म करने की प्रेरणा देता है।
  19. सपनों की पूर्ति: इच्छाओं और सपनों को साकार करने में मदद करता है।
  20. दुष्ट शक्तियों से रक्षा: नकारात्मक और दुष्ट शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है।

मंत्र विधि

दिन

वाराही यक्षिणी मंत्र का जप किसी भी दिन शुरू किया जा सकता है, लेकिन विशेषतः मंगलवार और शुक्रवार का दिन इस कार्य के लिए अधिक शुभ माना जाता है।

अवधि

मंत्र जप की अवधि 11 से 21 दिन की हो सकती है। इस दौरान नियमित रूप से मंत्र जप करना आवश्यक है।

मुहुर्थ

प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) या संध्याकाल (शाम 6 से 8 बजे) को मंत्र जप का सर्वोत्तम समय माना जाता है।

सामग्री

  1. वाराही यक्षिणी की प्रतिमा या चित्र
  2. पुष्प (खासकर लाल फूल)
  3. धूप/अगरबत्ती
  4. दीपक (घी का दीपक सर्वोत्तम होता है)
  5. आसन (साफ और पवित्र स्थान पर बैठने के लिए)
  6. जल पात्र
  7. मौली (रक्षा सूत्र)

वाराही यक्षिणी मंत्र जप

मंत्र जप की अवधि 11 से 21 दिन तक होनी चाहिए। रोजाना नियमित समय पर मंत्र जप करना आवश्यक है।

वाराही यक्षिणी मंत्र जप संख्या

मंत्र जप की संख्या एक माला यानी 108 बार से लेकर 11 माला यानी 1188 मंत्र रोज जप करना चाहिए।

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मंत्र जप के नियम

  1. स्नान: जप से पहले स्नान कर लें।
  2. पवित्र स्थान: पवित्र और शांति वाले स्थान पर बैठें।
  3. आसन: एक साफ और पवित्र आसन का प्रयोग करें।
  4. समर्पण भाव: पूर्ण समर्पण भाव और एकाग्रता के साथ मंत्र जप करें।
  5. रोजाना नियमित समय: रोजाना एक ही समय पर मंत्र जप करें।
  6. माला: रुद्राक्ष या लाल चंदन की माला का प्रयोग करें।
  7. ध्यान: वाराही यक्षिणी का ध्यान करते हुए मंत्र जप करें।
  8. सकारात्मक सोच: जप के दौरान सकारात्मक सोच और भाव रखें।
  9. नियमितता: जप को नियमित रूप से करें, बिना किसी दिन का छोड़ें।
  10. स्वच्छता: जप के स्थान और आसन की स्वच्छता का ध्यान रखें।
  11. द्रव्य: जप के दौरान या बाद में वाराही यक्षिणी को नैवेद्य (भोग) अर्पित करें।
  12. लाल पुष्प: वाराही यक्षिणी को लाल पुष्प अर्पित करें।
  13. धूप-दीप: धूप-दीप जलाकर वाराही यक्षिणी की आरती करें।
  14. मौन: जप के समय मौन रहें और बाहरी विचारों से बचें।
  15. श्रद्धा: श्रद्धा और विश्वास के साथ मंत्र जप करें।
  16. धैर्य: मंत्र के फलों के लिए धैर्य रखें, तुरंत परिणाम की अपेक्षा न करें।
  17. शुद्धि: मानसिक और शारीरिक शुद्धि बनाए रखें।
  18. व्रत: मंत्र जप के दौरान व्रत का पालन करें, यदि संभव हो तो।
  19. सहजता: सहज और सरल मन से मंत्र जप करें।
  20. ध्यान और ध्यान: जप के बाद कुछ समय ध्यान करें और वाराही यक्षिणी के चरणों में ध्यान लगाएं।

Kamakhya sadhana shivir

वाराही यक्षिणी मंत्र जप सावधानी

  1. ध्यान और एकाग्रता: जप के दौरान ध्यान भटकने से बचें।
  2. सही उच्चारण: मंत्र का उच्चारण सही और स्पष्ट होना चाहिए।
  3. नियमितता: जप को बिना किसी व्यवधान के नियमित रूप से करें।
  4. शुद्धता: जप के स्थान और आसन की स्वच्छता बनाए रखें।
  5. समय का पालन: रोजाना एक ही समय पर जप करें।
  6. धैर्य: धैर्य रखें और जल्दबाजी में न हों।
  7. सकारात्मकता: सकारात्मक और शांत मन से जप करें।
  8. विचार शुद्धि: नकारात्मक विचारों से बचें।
  9. सामग्री का ध्यान: जप के लिए आवश्यक सामग्री जैसे माला, आसन आदि का ध्यान रखें।
  10. शारीरिक स्थिति: स्वस्थ और संयमित शारीरिक स्थिति में जप करें।
  11. पर्यावरण: शांति और सकारात्मक ऊर्जा वाले स्थान पर जप करें।
  12. संवेदना: जप के दौरान संवेदनशीलता और श्रद्धा बनाए रखें।
  13. धर्म और नियम: धर्म और नियमों का पालन करें।
  14. नियमित अभ्यास: नियमित अभ्यास से मंत्र जप का प्रभाव बढ़ता है।
  15. प्रेरणा: स्वयं को प्रेरित और उत्साहित रखें।
  16. भक्ति: भक्ति और श्रद्धा के साथ जप करें।
  17. समर्पण: पूरी तरह से वाराही यक्षिणी के प्रति समर्पित रहें।
  18. संतुलन: शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाए रखें।
  19. स्वस्थ भोजन: स्वास्थ्यवर्धक और सात्विक भोजन का सेवन करें।
  20. सहजता: जप को सहज और सरल बनाएं।

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वाराही यक्षिणी मंत्र से संबंधित प्रश्न-उत्तर

प्रश्न: मंत्र जप के दौरान किन चीजों का त्याग करना चाहिए?
उत्तर: नकारात्मक विचार, आलस्य, अव्यवस्थित जीवनशैली, और अधार्मिक कर्मों का त्याग करना चाहिए।।

प्रश्न: वाराही यक्षिणी कौन हैं?
उत्तर: वाराही यक्षिणी देवी दुर्गा का एक रूप हैं और दस महाविद्याओं में से एक मानी जाती हैं।

प्रश्न: वाराही यक्षिणी मंत्र क्या है? उत्तर: ॐ ह्रीं वाराही कार्य सिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा।

प्रश्न: इस मंत्र का अर्थ क्या है?
उत्तर: यह मंत्र देवी वाराही से कार्य सिद्धि की प्रार्थना करता है।

प्रश्न: वाराही यक्षिणी मंत्र के लाभ क्या हैं?
उत्तर: यह कार्य सिद्धि, शत्रु नाश, धन, स्वास्थ्य, और सौभाग्य प्रदान करता है।

प्रश्न: मंत्र जप की विधि क्या है?
उत्तर: प्रातःकाल या संध्याकाल में, साफ और पवित्र स्थान पर, स्नान करके, एकाग्रता और श्रद्धा के साथ जप करना चाहिए।

प्रश्न: मंत्र जप की अवधि क्या होनी चाहिए?
उत्तर: 11 से 21 दिन तक रोजाना जप करना चाहिए।

प्रश्न: मंत्र जप की संख्या क्या होनी चाहिए?
उत्तर: एक माला यानी 108 बार से लेकर 11 माला यानी 1188 मंत्र रोज जप करना चाहिए।

प्रश्न: जप के दौरान किस सामग्री का उपयोग करना चाहिए?
उत्तर: वाराही यक्षिणी की प्रतिमा या चित्र, पुष्प, धूप/अगरबत्ती, दीपक, आसन, जल पात्र, मौली।

प्रश्न: क्या मंत्र जप के दौरान व्रत का पालन करना चाहिए?
उत्तर: हाँ, यदि संभव हो तो व्रत का पालन करना चाहिए।

प्रश्न: मंत्र जप के बाद क्या करना चाहिए?
उत्तर: जप के बाद ध्यान करें और वाराही यक्षिणी के चरणों में ध्यान लगाएं।

प्रश्न: वाराही यक्षिणी मंत्र के कौन-कौन से बीज मंत्र शामिल हैं?
उत्तर: ह्रीं बीज मंत्र शामिल है।

Shrinath ji mantra for future protection happiness fortune

Shrinath ji mantra for future protection for happiness and good fortune

सब पर अपनी कृपा बरसाने वाले श्रीनाथ जी को भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप माना जाता है। वे विशेषतः नाथद्वारा, राजस्थान में पूजे जाते हैं। उनका स्वरूप गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाले श्रीकृष्ण के रूप में है। श्रीनाथ जी का भव्य मंदिर नाथद्वारा में स्थित है जहाँ प्रतिदिन हजारों भक्त उनका दर्शन करने आते हैं। श्रीनाथ जी के मुख्य मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में किया गया था।

श्रीनाथ जी मंत्र और उसका संपूर्ण अर्थ

मंत्र: ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीनाथाय नमः

इस मंत्र का अर्थ है:

  • : यह ब्रह्मांड की मूल ध्वनि है और हर प्रकार की ऊर्जा का स्रोत है।
  • श्रीं: यह लक्ष्मी बीज मंत्र है, जो धन, समृद्धि और सौभाग्य को आकर्षित करता है।
  • ह्रीं: यह बीज मंत्र शक्ति, प्रेम, और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रतीक है।
  • क्लीं: यह काम बीज मंत्र है, जो आकर्षण और संबंधों को मजबूत करता है।
  • श्रीनाथाय नमः: इसका अर्थ है “श्रीनाथ जी को नमस्कार”।

श्रीनाथ जी मंत्र के लाभ

  1. आध्यात्मिक उन्नति: यह मंत्र व्यक्ति की आध्यात्मिक चेतना को बढ़ाता है।
  2. आंतरिक शांति: यह मन और आत्मा को शांति प्रदान करता है।
  3. धन और समृद्धि: मंत्र का जप धन और समृद्धि को आकर्षित करता है।
  4. सौभाग्य: जीवन में सौभाग्य लाने में सहायक होता है।
  5. स्वास्थ्य: मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारता है।
  6. सकारात्मक ऊर्जा: जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और उत्साह भरता है।
  7. रिश्तों में सुधार: पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को मजबूत करता है।
  8. आत्मविश्वास: आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को बढ़ाता है।
  9. धार्मिकता: धर्म और अध्यात्म में रुचि को प्रगाढ़ करता है।
  10. कर्मों की शुद्धि: पिछले कर्मों के दोषों को मिटाता है।
  11. मानसिक शांति: तनाव और चिंता को दूर करता है।
  12. सफलता: जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने में मदद करता है।
  13. आकर्षण: व्यक्ति को अधिक आकर्षक बनाता है।
  14. संतान प्राप्ति: संतान प्राप्ति में सहायक होता है।
  15. भयमुक्ति: भय और असुरक्षा की भावना को दूर करता है।
  16. आध्यात्मिक मार्गदर्शन: सच्चे मार्गदर्शक की ओर ले जाता है।
  17. कर्म सुधार: अच्छे कर्म करने की प्रेरणा देता है।
  18. सपनों की पूर्ति: इच्छाओं और सपनों को साकार करने में मदद करता है।
  19. दुष्ट शक्तियों से रक्षा: नकारात्मक और दुष्ट शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है।
  20. शांति और संतोष: जीवन में शांति और संतोष की भावना उत्पन्न करता है।

मंत्र विधि

दिन

श्रीनाथ जी मंत्र का जप किसी भी दिन शुरू किया जा सकता है, लेकिन विशेषतः शुक्रवार और एकादशी का दिन इस कार्य के लिए अधिक शुभ माना जाता है।

अवधि

मंत्र जप की अवधि 11 से 21 दिन की हो सकती है। इस दौरान नियमित रूप से मंत्र जप करना आवश्यक है।

मुहुर्थ

प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) या संध्याकाल (शाम 6 से 8 बजे) को मंत्र जप का सर्वोत्तम समय माना जाता है।

सामग्री

  1. श्रीनाथ जी की प्रतिमा या चित्र
  2. पुष्प (खासकर तुलसी या गुलाब के फूल)
  3. धूप/अगरबत्ती
  4. दीपक (घी का दीपक सर्वोत्तम होता है)
  5. आसन (साफ और पवित्र स्थान पर बैठने के लिए)
  6. जल पात्र
  7. मौली (रक्षा सूत्र)

श्रीनाथ जी मंत्र जप

मंत्र जप की अवधि 11 से 21 दिन तक होनी चाहिए। रोजाना नियमित समय पर मंत्र जप करना आवश्यक है।

श्रीनाथ जी मंत्र जप संख्या

मंत्र जप की संख्या एक माला यानी 108 बार से लेकर 11 माला यानी 1188 मंत्र रोज जप करना चाहिए।

जप के नियम

  1. स्नान: जप से पहले स्नान कर लें।
  2. पवित्र स्थान: पवित्र और शांति वाले स्थान पर बैठें।
  3. आसन: एक साफ और पवित्र आसन का प्रयोग करें।
  4. समर्पण भाव: पूर्ण समर्पण भाव और एकाग्रता के साथ मंत्र जप करें।
  5. रोजाना नियमित समय: रोजाना एक ही समय पर मंत्र जप करें।
  6. माला: रुद्राक्ष या तुलसी की माला का प्रयोग करें।
  7. ध्यान: श्रीनाथ जी का ध्यान करते हुए मंत्र जप करें।
  8. सकारात्मक सोच: जप के दौरान सकारात्मक सोच और भाव रखें।
  9. नियमितता: जप को नियमित रूप से करें, बिना किसी दिन का छोड़ें।
  10. स्वच्छता: जप के स्थान और आसन की स्वच्छता का ध्यान रखें।
  11. द्रव्य: जप के दौरान या बाद में श्रीनाथ जी को नैवेद्य (भोग) अर्पित करें।
  12. तुलसी दल: श्रीनाथ जी को तुलसी दल चढ़ाना अति शुभ माना जाता है।
  13. धूप-दीप: धूप-दीप जलाकर श्रीनाथ जी की आरती करें।
  14. मौन: जप के समय मौन रहें और बाहरी विचारों से बचें।
  15. श्रद्धा: श्रद्धा और विश्वास के साथ मंत्र जप करें।
  16. धैर्य: मंत्र के फलों के लिए धैर्य रखें, तुरंत परिणाम की अपेक्षा न करें।
  17. शुद्धि: मानसिक और शारीरिक शुद्धि बनाए रखें।
  18. व्रत: मंत्र जप के दौरान व्रत का पालन करें, यदि संभव हो तो।
  19. सहजता: सहज और सरल मन से मंत्र जप करें।
  20. ध्यान और ध्यान: जप के बाद कुछ समय ध्यान करें और श्रीनाथ जी के चरणों में ध्यान लगाएं।

Kamakhya sadhana shivir

मंत्र जप सावधानी

  1. ध्यान और एकाग्रता: जप के दौरान ध्यान भटकने से बचें।
  2. सही उच्चारण: मंत्र का उच्चारण सही और स्पष्ट होना चाहिए।
  3. नियमितता: जप को बिना किसी व्यवधान के नियमित रूप से करें।
  4. शुद्धता: जप के स्थान और आसन की स्वच्छता बनाए रखें।
  5. समय का पालन: रोजाना एक ही समय पर जप करें।
  6. धैर्य: धैर्य रखें और जल्दबाजी में न हों।
  7. सकारात्मकता: सकारात्मक और शांत मन से जप करें।
  8. विचार शुद्धि: नकारात्मक विचारों से बचें।
  9. सामग्री का ध्यान: जप के लिए आवश्यक सामग्री जैसे माला, आसन आदि का ध्यान रखें।
  10. शारीरिक स्थिति: स्वस्थ और संयमित शारीरिक स्थिति में जप करें।
  11. पर्यावरण: शांति और सकारात्मक ऊर्जा वाले स्थान पर जप करें।
  12. संवेदना: जप के दौरान संवेदनशीलता और श्रद्धा बनाए रखें।
  13. धर्म और नियम: धर्म और नियमों का पालन करें।
  14. नियमित अभ्यास: नियमित अभ्यास से मंत्र जप का प्रभाव बढ़ता है।
  15. प्रेरणा: स्वयं को प्रेरित और उत्साहित रखें।
  16. भक्ति: भक्ति और श्रद्धा के साथ जप करें।
  17. समर्पण: पूरी तरह से श्रीनाथ जी के प्रति समर्पित रहें।
  18. संतुलन: शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाए रखें।
  19. स्वस्थ भोजन: स्वास्थ्यवर्धक और सात्विक भोजन का सेवन करें।
  20. सहजता: जप को सहज और सरल बनाएं।

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श्रीनाथ जी मंत्र से संबंधित प्रश्न-उत्तर

प्रश्न: मंत्र जप के दौरान किन चीजों का त्याग करना चाहिए?
उत्तर: नकारात्मक विचार, आलस्य, अव्यवस्थित जीवनशैली, और अधार्मिक कर्मों का त्याग करना चाहिए।की आराधना और पूजा में समर्पित हैं। इस मंत्र को नियमित रूप से जाप करने से उपरोक्त लाभ प्राप्त हो सकते हैं।

प्रश्न: श्रीनाथ जी कौन हैं?
उत्तर: श्रीनाथ जी भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप हैं जो गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाले रूप में पूजे जाते हैं।

प्रश्न: श्रीनाथ जी मंत्र क्या है?
उत्तर: ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीनाथाय नमः।

प्रश्न: इस मंत्र का अर्थ क्या है?
उत्तर: इस मंत्र में ब्रह्मांड की ध्वनि, लक्ष्मी बीज, शक्ति बीज, और काम बीज के साथ श्रीनाथ जी को नमस्कार किया जाता है।

प्रश्न: श्रीनाथ जी मंत्र के लाभ क्या हैं?
उत्तर: यह आध्यात्मिक उन्नति, आंतरिक शांति, धन और समृद्धि, सौभाग्य, और स्वास्थ्य प्रदान करता है।

प्रश्न: मंत्र जप की विधि क्या है?
उत्तर: प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त या संध्याकाल में, साफ और पवित्र स्थान पर, स्नान करके, एकाग्रता और श्रद्धा के साथ जप करना चाहिए।

प्रश्न: मंत्र जप की अवधि क्या होनी चाहिए?
उत्तर: 11 से 21 दिन तक रोजाना जप करना चाहिए।

प्रश्न: मंत्र जप की संख्या क्या होनी चाहिए?
उत्तर: एक माला यानी 108 बार से लेकर 11 माला यानी 1188 मंत्र रोज जप करना चाहिए।

प्रश्न: क्या मंत्र जप के दौरान व्रत का पालन करना चाहिए?
उत्तर: हाँ, यदि संभव हो तो व्रत का पालन करना चाहिए।

प्रश्न: श्रीनाथ जी मंत्र के कौन-कौन से बीज मंत्र शामिल हैं?
उत्तर: श्रीं, ह्रीं, और क्लीं बीज मंत्र शामिल हैं।

प्रश्न: श्रीनाथ जी के मंदिर कहाँ स्थित है?
उत्तर: नाथद्वारा, राजस्थान में श्रीनाथ जी का मुख्य मंदिर स्थित है।

प्रश्न: श्रीनाथ जी के स्वरूप की विशेषता क्या है?
उत्तर: श्रीनाथ जी का स्वरूप गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाले श्रीकृष्ण के रूप में है।

Shri sukta paath for money attraction

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श्री सूक्त पाठ – धन, समृद्धि और वैभव प्राप्ति के लिए प्रभावशाली विधि

आर्थिक समस्या से छुटकारा दिलाने वाले श्री सूक्त एक वैदिक स्तोत्र है जिसमें देवी लक्ष्मी की स्तुति की गई है। यह ऋग्वेद में पाया जाता है और इसे समृद्धि, शांति और सौभाग्य की देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए पढ़ा जाता है। श्री सूक्त का पाठ धन, ऐश्वर्य, वैभव, और सभी प्रकार के सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए किया जाता है।

संपूर्ण श्री सूक्त

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्॥

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम्।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम्॥

कांसोस्मि तां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मे स्थिता पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्॥

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पद्मिनीं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे॥

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः॥

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्कीर्तिमृद्धिं ददातु मे॥

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्वेदमाश्रिताम्॥

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्॥

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः॥

कर्दमेन प्रजाभूता मयि संभव कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्॥

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवि मातरं श्रियं वासय मे कुले॥

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्॥

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत्॥

पद्मानने पद्म ऊरू पद्माक्षि पद्मसम्भवे।
त्वं मां भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्॥

अश्वदायै गोदायै धनदायै महाधने।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे॥

पुत्रपौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवे रथम्।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे॥

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्योधनं वसुः।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमस्तु ते॥

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः॥

न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्सदा॥

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्॥

श्री सूक्त पाठ के लाभ

  1. धन की प्राप्ति: श्री सूक्त का पाठ करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और धन-सम्पदा में वृद्धि होती है।
  2. समृद्धि: इस पाठ से घर में समृद्धि आती है और परिवार में खुशहाली बनी रहती है।
  3. शांति: मानसिक शांति और तनाव से मुक्ति मिलती है।
  4. स्वास्थ्य: अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है और रोगों से मुक्ति मिलती है।
  5. सुख-शांति: घर में सुख-शांति बनी रहती है और परिवार में प्रेम और एकता बढ़ती है।
  6. वैभव: इस पाठ से जीवन में वैभव और ऐश्वर्य आता है।
  7. भय नाश: सभी प्रकार के भय और डर से मुक्ति मिलती है।
  8. शत्रु नाश: शत्रुओं का नाश होता है और उनके कुकर्मों से रक्षा होती है।
  9. कर्मों का शुद्धिकरण: पिछले जन्मों के कर्म दोषों का निवारण होता है।
  10. धार्मिक स्थिरता: धार्मिक स्थिरता और श्रद्धा को बढ़ावा मिलता है।
  11. सकारात्मक ऊर्जा: जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  12. आकर्षण शक्ति: व्यक्तित्व में आकर्षण और चार्म बढ़ता है।
  13. आत्मबल: आत्मबल और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  14. भयमुक्ति: भय, डर और आशंकाओं से मुक्ति मिलती है।
  15. सफलता: हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है।
  16. आनंद: जीवन में आनंद और उत्साह बना रहता है।
  17. आध्यात्मिक जागरण: आंतरिक जागरण और आध्यात्मिक विकास होता है।
  18. धन का संचय: धन का संचय होता है और आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
  19. कर्ज से मुक्ति: कर्ज से मुक्ति मिलती है और वित्तीय स्थिरता प्राप्त होती है।
  20. सभी इच्छाओं की पूर्ति: देवी लक्ष्मी की कृपा से सभी इच्छाएं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

श्री सूक्त पाठ की विधि

दिन और अवधि

  • श्री सूक्त का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन शुक्रवार का दिन विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
  • ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे के बीच) श्री सूक्त का पाठ करने के लिए सबसे उत्तम समय है।

मुहूर्त

  • ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे के बीच) और संध्या समय (शाम 6 से 8 बजे के बीच) पाठ के लिए उत्तम समय होते हैं।
  • पूर्णिमा और अमावस्या के दिन भी श्री सूक्त का पाठ करना लाभकारी होता है।

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नियम और सावधानियां

  1. शुद्धता: पाठ से पहले शुद्ध जल से स्नान कर लेना चाहिए।
  2. स्थान: पाठ के लिए साफ और पवित्र स्थान का चयन करें।
  3. वस्त्र: साफ और सादे वस्त्र पहनें, विशेष रूप से सफेद या पीले वस्त्र।
  4. भोग: देवी लक्ष्मी को फूल, फल, मिठाई और नारियल का भोग अर्पित करें।
  5. आसन: कंबल या कुश का आसन प्रयोग करें।
  6. संकल्प: पाठ शुरू करने से पहले मन में संकल्प लें और देवी का ध्यान करें।
  7. ध्यान: पाठ के दौरान मन को एकाग्र रखें और देवी की छवि का ध्यान करें।
  8. प्रसाद: पाठ के बाद प्रसाद को सभी में बांटें।
  9. संकल्प पूर्ति: पाठ के दौरान या बाद में अपनी मनोकामना देवी के समक्ष प्रकट करें।
  10. भक्ति: पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव से पाठ करें।

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श्री सूक्त पाठ FAQ

  1. श्री सूक्त का पाठ क्यों करना चाहिए?
    • श्री सूक्त का पाठ करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, जिससे धन, समृद्धि और शांति प्राप्त होती है।
  2. श्री सूक्त का पाठ किस समय करना चाहिए?
    • ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे के बीच) और संध्या समय (शाम 6 से 8 बजे के बीच) पाठ के लिए उत्तम समय होते हैं।
  3. क्या श्री सूक्त का पाठ केवल शुक्रवार को ही किया जा सकता है?
    • नहीं, श्री सूक्त का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन शुक्रवार का दिन विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
  4. पाठ के लिए कौन से वस्त्र पहनने चाहिए?
    • साफ और सादे वस्त्र, विशेष रूप से सफेद या पीले वस्त्र पहनने चाहिए।
  5. क्या श्री सूक्त का पाठ करने से आर्थिक समस्याएं हल होती हैं?
    • हां, देवी लक्ष्मी की कृपा से आर्थिक समस्याओं का समाधान होता है और धन की प्राप्ति होती है।
  6. क्या पाठ के दौरान किसी विशेष स्थान का चयन करना चाहिए?
    • हां, साफ और पवित्र स्थान का चयन करें।
  7. क्या श्री सूक्त का पाठ करने से मानसिक शांति मिलती है?
    • हां, मानसिक तनाव और चिंता से मुक्ति मिलती है और मन को शांति मिलती है।
  8. क्या श्री सूक्त का पाठ करने से शत्रु नाश होता है?
    • हां, इस पाठ से शत्रुओं का नाश होता है और उनके कुकर्मों से रक्षा होती है।
  9. क्या श्री सूक्त का पाठ करने से आध्यात्मिक उन्नति होती है?
    • हां, इस पाठ से आध्यात्मिक उन्नति होती है और आत्मिक शांति मिलती है।
  10. क्या इस पाठ का पाठ करने से संतान सुख प्राप्त होता है?
    • हां, संतान सुख से वंचित महिलाओं के लिए यह पाठ अत्यंत फलदायी होता है।
  11. क्या इस पाठ का पाठ करने से विद्या प्राप्ति होती है?
    • हां, विद्यार्थी जो इस पाठ का पाठ करते हैं, उन्हें विद्या में सफलता मिलती है।

अंत मे

श्री सूक्त एक अत्यंत प्रभावशाली वैदिक स्तोत्र है जिसका नियमित पाठ करने से भक्तों को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। देवी लक्ष्मी की कृपा से धन, ऐश्वर्य, समृद्धि, शांति, और मानसिक संतुलन प्राप्त होता है। पाठ के दौरान शुद्धता, भक्ति, और नियमों का पालन अत्यंत आवश्यक है ताकि देवी की कृपा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त हो सके। श्री सूक्त का पाठ करने से जीवन में सभी प्रकार की कठिनाइयों और समस्याओं का समाधान होता है और देवी लक्ष्मी की अनंत कृपा प्राप्त होती है।

Chakshushi Yakshini Mantra for Chakra & Wisdom

चाक्षुषी यक्षिणी / Chakshushi Yakshini Mantra for Chakra & Wisdom

चक्र जाग्रत करने वाली चाक्षुषी यक्षिणी एक प्रमुख यक्षिणी देवी हैं जो चाक्षुष मन्त्र से संबंधित हैं। इन्हें देवी या यक्षिणी के रूप में पूजा जाता है और इनका मंत्र जाप किया जाता है उन्हें विविध प्रकार के लाभ प्राप्त हो सकते हैं। चाक्षुषी यक्षिणी मंत्र का जप साधक के जीवन में दृष्टि, स्वास्थ्य, और समृद्धि लाने में सहायक होता है।

चाक्षुषी यक्षिणी मंत्र व उसका संपूर्ण अर्थ

मंत्र: “ॐ ह्रीं क्रीं चाक्षुषी यक्षिणे क्लीं फट्ट”

अर्थ:

  • ॐ: यह बीज मंत्र ब्रह्मांड की ध्वनि है और सभी मंत्रों का आरंभ इससे होता है।
  • ह्रीं: यह बीज मंत्र देवी की शक्ति को दर्शाता है।
  • क्रीं: यह बीज मंत्र तंत्र साधना और शक्ति का प्रतीक है।
  • चाक्षुषी यक्षिणे: चाक्षुषी यक्षिणी को संबोधित करता है।
  • क्लीं: यह बीज मंत्र आकर्षण और मोहकता का प्रतीक है।
  • फट्ट: यह बीज मंत्र समापन का संकेत देता है और मंत्र की सुरक्षा का संकेत है।

चाक्षुषी यक्षिणी मंत्र के लाभ

  1. दृष्टि में सुधार: दृष्टि की समस्याओं से मुक्ति।
  2. समृद्धि: साधक को धन और वैभव की प्राप्ति होती है।
  3. आकर्षण: व्यक्तित्व में आकर्षण बढ़ता है।
  4. सुरक्षा: नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से रक्षा।
  5. मानसिक शांति: तनाव और चिंता से मुक्ति।
  6. सफलता: कार्यों में सफलता मिलती है।
  7. स्वास्थ्य: अच्छे स्वास्थ्य का वरदान।
  8. शत्रु नाश: शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
  9. मनोकामना पूर्ति: इच्छाओं की पूर्ति होती है।
  10. अध्यात्मिक उन्नति: आत्मा की उन्नति होती है।
  11. प्रेम और सौहार्द: रिश्तों में मधुरता आती है।
  12. वाणी की शक्ति: वाणी में मिठास और प्रभाव बढ़ता है।
  13. साहस: डर और भय से मुक्ति मिलती है।
  14. ज्ञान: विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
  15. संतान सुख: संतान प्राप्ति और उनकी उन्नति होती है।
  16. व्यापार में वृद्धि: व्यापार में उन्नति होती है।
  17. समाज में प्रतिष्ठा: समाज में मान-सम्मान बढ़ता है।
  18. बाधा निवारण: जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति।
  19. धैर्य: धैर्य और सहनशक्ति में वृद्धि।
  20. सुख-शांति: जीवन में सुख और शांति का अनुभव होता है।

मंत्र विधि

दिन, अवधि, और मुहूर्त

  • दिन: किसी शुभ दिन या विशेष तिथि पर प्रारंभ करें।
  • अवधि: 11 से 21 दिन तक रोज जप करें।
  • मुहूर्त: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) सबसे उत्तम होता है।

सामग्री

  • सफेद वस्त्र
  • आसन (कुश, रेशमी, या ऊनी)
  • चाक्षुषी यक्षिणी की मूर्ति या चित्र
  • धूप, दीप, और नैवेद्य
  • पुष्प, चंदन, कुमकुम
  • जल पात्र

जप संख्या

  • एक माला: 108 बार
  • 11 माला: 1188 बार रोज जप करें

मंत्र जप के नियम

  1. पवित्रता: साधना स्थान की पवित्रता का ध्यान रखें।
  2. नियमितता: नियमित रूप से निश्चित समय पर जप करें।
  3. संकल्प: जप प्रारंभ करने से पहले संकल्प लें।
  4. ध्यान: जप करते समय चाक्षुषी यक्षिणी का ध्यान करें।
  5. शुद्धि: शारीरिक और मानसिक शुद्धि बनाए रखें।
  6. सात्विक भोजन: सात्विक भोजन का सेवन करें।
  7. स्मरण: दिन में अन्य समयों में भी देवी का स्मरण करें।
  8. आसन: आसन पर स्थिर बैठकर जप करें।
  9. संयम: ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  10. एकाग्रता: ध्यान और एकाग्रता बनाए रखें।

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मंत्र जप सावधानी

  1. अपवित्र स्थान पर जप न करें।
  2. जप करते समय अनावश्यक बातों से बचें।
  3. जप के दौरान कोई नकारात्मक विचार मन में न आने दें।
  4. सात्विक और शुद्ध आचरण बनाए रखें।
  5. ध्यान भंग होने से बचें।
  6. विशिष्ट अवधि में मंत्र जप पूरा करें।
  7. पूजा और जप के नियमों का पालन करें।
  8. किसी भी प्रकार के मादक पदार्थों का सेवन न करें।
  9. अपशब्दों और कटु वचनों से बचें।
  10. शांति और संयम बनाए रखें।

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चाक्षुषी यक्षिणी मंत्र से संबंधित प्रश्न उत्तर

  1. चाक्षुषी यक्षिणी कौन हैं?
    चाक्षुषी यक्षिणी एक दिव्य देवी हैं जिनकी पूजा और मंत्र जाप से दृष्टि संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
  2. चाक्षुषी यक्षिणी मंत्र का क्या अर्थ है?
    यह मंत्र देवी चाक्षुषी यक्षिणी को समर्पित है और विभिन्न शक्तियों का आह्वान करता है।
  3. इस मंत्र का जप कब करना चाहिए?
    ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) सबसे उत्तम समय है।
  4. इस मंत्र का जप कितने दिनों तक करना चाहिए?
    11 से 21 दिनों तक नियमित रूप से जप करें।
  5. इस मंत्र का जप कितनी बार करना चाहिए?
    एक माला (108 बार) से लेकर 11 माला (1188 बार) तक रोज जप करें।
  6. मंत्र जप के लिए क्या सामग्री चाहिए?
    सफेद वस्त्र, आसन, चाक्षुषी यक्षिणी की मूर्ति या चित्र, धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, चंदन, कुमकुम, और जल पात्र।
  7. मंत्र जप के लिए कौन सा आसन प्रयोग करना चाहिए?
    कुश, रेशमी, या ऊनी आसन प्रयोग करें।
  8. क्या मंत्र जप के समय भोजन का विशेष ध्यान रखना चाहिए?
    हां, सात्विक भोजन का सेवन करें।
  9. मंत्र जप के लिए कौन से नियम पालन करने चाहिए?
    पवित्रता, नियमितता, संकल्प, ध्यान, शुद्धि, संयम, और एकाग्रता बनाए रखें।
  10. मंत्र जप के दौरान कौन सी सावधानियाँ बरतनी चाहिए?
    अपवित्र स्थान पर जप न करें, नकारात्मक विचार न आने दें, मादक पदार्थों का सेवन न करें।
  11. मंत्र जप के लाभ क्या हैं?
    दृष्टि में सुधार, समृद्धि, आकर्षण, सुरक्षा, मानसिक शांति, सफलता, स्वास्थ्य, शत्रु नाश, मनोकामना पूर्ति आदि।
  12. क्या चाक्षुषी यक्षिणी मंत्र से शत्रु नाश होता है?
    हां, यह मंत्र शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में सहायक होता है।
  13. इस मंत्र से क्या मानसिक शांति मिलती है?
    हां, यह मंत्र तनाव और चिंता से मुक्ति दिलाता है।
  14. क्या यह मंत्र व्यापार में उन्नति दिलाता है?
    हां, यह मंत्र व्यापार में वृद्धि और उन्नति दिलाता है।

Vasudhara Yakshini Mantra For Money Attraction

वसुधारा यक्षिणी / Vasudhara Yakshini Mantra

वसुधारा यक्षिणी मंत्र – धन और स्थिरता पाने का शक्तिशाली उपाय

वसुधारा यक्षिणी का मंत्र धन, समृद्धि और भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए अत्यधिक शक्तिशाली माना जाता है। इस मंत्र का नियमित जाप आर्थिक समृद्धि, स्थिरता और जीवन में धन के स्रोतों को बढ़ाने के लिए किया जाता है। वसुधारा देवी यक्षिणी का संबंध भूमि, धन, और समृद्धि से है। वसुधारा यक्षिणी मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को न केवल आर्थिक लाभ होता है, बल्कि उसकी जीवनशैली भी स्थिर और संपन्न बनती है।

मंत्र और उसका अर्थ

मंत्र:

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वसुधारा यक्षिणे नमः

अर्थ:

  • : ब्रह्मांड की मूल ध्वनि, जिससे सभी शक्तियों की उत्पत्ति होती है।
  • ह्रीं: यह बीज मंत्र देवी की शक्ति का प्रतीक है।
  • श्रीं: धन और समृद्धि का बीज मंत्र है।
  • क्लीं: आकर्षण और शक्ति का बीज मंत्र है।
  • वसुधारा यक्षिणे: वसुधारा देवी का आवाहन, जो धन और संपत्ति प्रदान करती हैं।
  • नमः: नमस्कार, सम्मान और समर्पण।

इस मंत्र का उच्चारण करते समय साधक वसुधारा देवी की कृपा से आर्थिक समृद्धि, स्थिरता और शुभ फल की कामना करता है।

वसुधारा यक्षिणी मंत्र के लाभ

  1. धन प्राप्ति के नए स्रोत खुलते हैं।
  2. व्यापार में वृद्धि होती है।
  3. रोजगार के नए अवसर प्राप्त होते हैं।
  4. परिवार में समृद्धि और शांति आती है।
  5. कर्ज से मुक्ति मिलती है।
  6. आर्थिक योजनाएं सफल होती हैं।
  7. जीवन में स्थायित्व आता है।
  8. निवेश में लाभ मिलता है।
  9. घर में धन का प्रवाह बना रहता है।
  10. अचल संपत्ति के सौदे सफल होते हैं।
  11. व्यापार में नया उत्साह और उन्नति होती है।
  12. मानसिक शांति और आर्थिक स्थिरता मिलती है।
  13. गरीबी और आर्थिक संकट से छुटकारा मिलता है।
  14. जीवन में भौतिक सुख-सुविधाओं का आगमन होता है।
  15. धन का अनावश्यक अपव्यय रुकता है।
  16. उधारी और कर्ज चुकाने में सफलता मिलती है।
  17. समाज में प्रतिष्ठा और सम्मान में वृद्धि होती है।

मंत्र जप विधि

दिन और अवधि

  • दिन: मंत्र का जाप शुक्रवार से शुरू करें। यह दिन धन और समृद्धि का प्रतीक है।
  • अवधि: मंत्र जप 11 से 21 दिन तक नियमित रूप से करना चाहिए।
  • मुहूर्त: मंत्र का जाप प्रातःकाल या रात्रिकाल में किया जा सकता है, जब वातावरण शांत हो।

सामग्री

  1. पीले या लाल कपड़े पहनें।
  2. पीले आसन पर बैठें।
  3. मूंगे की माला का उपयोग करें।
  4. वसुधारा देवी की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
  5. धूप, चंदन और फल का भोग लगाएं।

जप संख्या

मंत्र का जाप प्रतिदिन 11 माला (1188 मंत्र) करना चाहिए।


मंत्र जप के नियम

  1. साधक की उम्र 20 वर्ष से ऊपर होनी चाहिए।
  2. स्त्री और पुरुष दोनों इस मंत्र का जाप कर सकते हैं।
  3. जाप के दौरान नीले या काले कपड़े न पहनें।
  4. धूम्रपान, मांसाहार, और मदिरा का सेवन न करें।
  5. पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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जप के समय सावधानियां

  • मंत्र जप के दौरान मानसिक शांति बनाए रखें।
  • मंत्र का उच्चारण स्पष्ट और धीमे स्वर में करें।
  • मन को एकाग्र रखें और ध्यान भटकने न दें।
  • वसुधारा यक्षिणी की कृपा पाने के लिए पूर्ण श्रद्धा और समर्पण आवश्यक है।
  • आस-पास का वातावरण स्वच्छ और शांत रखें।

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वसुधारा यक्षिणी मंत्र से संबंधित प्रश्न-उत्तर

1. वसुधारा यक्षिणी मंत्र क्यों जपें?

वसुधारा यक्षिणी मंत्र आर्थिक समृद्धि, स्थिरता और धन के प्रवाह को बढ़ाने के लिए जपा जाता है। यह मंत्र धन के स्रोतों को खोलता है और वित्तीय कठिनाइयों को दूर करता है।

2. मंत्र का जाप किस समय करना चाहिए?

मंत्र का जाप प्रातःकाल या रात्रिकाल में करना श्रेष्ठ होता है, जब वातावरण शांति और एकाग्रता से भरा हो। शुक्रवार को शुरू करना विशेष लाभकारी माना जाता है।

3. मंत्र जाप के लिए कौन सी माला का उपयोग करें?

मूंगे की माला का उपयोग सबसे अच्छा माना जाता है।

4. मंत्र जाप की अवधि कितनी होनी चाहिए?

मंत्र का जाप लगातार 11 से 21 दिनों तक करना चाहिए।

5. क्या मंत्र जाप के दौरान कोई विशेष कपड़े पहनने चाहिए?

हाँ, जाप के समय पीले या लाल कपड़े पहनने चाहिए। नीले या काले कपड़े न पहनें।

6. क्या मंत्र जाप के दौरान खान-पान पर ध्यान देना चाहिए?

हाँ, मांसाहार, धूम्रपान और मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। सात्विक आहार ग्रहण करें।

7. क्या महिलाएं भी यह मंत्र जप सकती हैं?

हाँ, महिलाएं भी इस मंत्र का जाप कर सकती हैं, लेकिन विशेष नियमों का पालन करना जरूरी है।

8. मंत्र जाप के समय कौन से आसन पर बैठना चाहिए?

पीले रंग के आसन पर बैठकर जाप करना चाहिए।

9. क्या मंत्र जाप से कर्ज से मुक्ति मिल सकती है?

हाँ, यह मंत्र कर्ज से मुक्ति दिलाने में भी सहायक होता है।

10. क्या मंत्र जाप से व्यापार में वृद्धि होती है?

हाँ, इस मंत्र के जाप से व्यापार में उन्नति और सफलता मिलती है।

11. क्या यह मंत्र सभी के लिए है?

हाँ, यह मंत्र सभी के लिए है, बशर्ते कि साधक आवश्यक नियमों का पालन करे।

12. मंत्र जाप के दौरान क्या मानसिक स्थिति होनी चाहिए?

मंत्र जाप के दौरान साधक को एकाग्र और शांत रहना चाहिए, जिससे वह पूर्ण फल प्राप्त कर सके।

Vibhrama Yakshini Mantra for Kaam shakti & Wealth

विभ्रामा यक्षिणी / Vibhrama Yakshini Mantra for Kaam shakti & Wealth

विभ्रामा यक्षिणी मंत्र – शक्तिशाली साधना से पाएं आकर्षण और सफलता

Vibhrama Yakshini Mantra – कामशक्ति व धन प्रदान करने वाली विभ्रामा यक्षिणी मनुष्य के ग्रहस्थ जीवन को सुखमय बनाती है। विभ्रामा यक्षिणी एक प्रमुख यक्षिणी देवी हैं जो काम, धन, और समृद्धि के लिए जानी जाती हैं। उनका मंत्र और पूजा-अर्चना करने के लिए नियमित ध्यान और साधना की जाती है। ध्यानपूर्वक और नियमित अनुष्ठान करने से उनकी कृपा प्राप्त हो सकती है।

विभ्रामा यक्षिणी मंत्र व उसका संपूर्ण अर्थ

मंत्र: “ॐ ह्रीं क्रीं विभ्रामा यक्षिणे क्लीं फट्ट”

अर्थ:

  • ॐ: यह बीज मंत्र ब्रह्मांड की ध्वनि है और सभी मंत्रों का आरंभ इससे होता है।
  • ह्रीं: यह बीज मंत्र देवी की शक्ति को दर्शाता है।
  • क्रीं: यह बीज मंत्र तंत्र साधना और शक्ति का प्रतीक है।
  • विभ्रामा यक्षिणे: विभ्रामा यक्षिणी को संबोधित करता है।
  • क्लीं: यह बीज मंत्र आकर्षण और मोहकता का प्रतीक है।
  • फट्ट: यह बीज मंत्र समापन का संकेत देता है और मंत्र की सुरक्षा का संकेत है।

विभ्रामा यक्षिणी मंत्र के लाभ

  1. समृद्धि: साधक को धन और वैभव की प्राप्ति होती है।
  2. आकर्षण: व्यक्तित्व में आकर्षण बढ़ता है।
  3. सुरक्षा: नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से रक्षा।
  4. मानसिक शांति: तनाव और चिंता से मुक्ति।
  5. सफलता: कार्यों में सफलता मिलती है।
  6. स्वास्थ्य: अच्छे स्वास्थ्य का वरदान।
  7. शत्रु नाश: शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
  8. मनोकामना पूर्ति: इच्छाओं की पूर्ति होती है।
  9. अध्यात्मिक उन्नति: आत्मा की उन्नति होती है।
  10. प्रेम और सौहार्द: रिश्तों में मधुरता आती है।
  11. वाणी की शक्ति: वाणी में मिठास और प्रभाव बढ़ता है।
  12. साहस: डर और भय से मुक्ति मिलती है।
  13. ज्ञान: विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
  14. संतान सुख: संतान प्राप्ति और उनकी उन्नति होती है।
  15. व्यापार में वृद्धि: व्यापार में उन्नति होती है।
  16. समाज में प्रतिष्ठा: समाज में मान-सम्मान बढ़ता है।
  17. बाधा निवारण: जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति।
  18. धैर्य: धैर्य और सहनशक्ति में वृद्धि।
  19. आध्यात्मिक शक्तियों की प्राप्ति: साधक को विशेष आध्यात्मिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।
  20. सुख-शांति: जीवन में सुख और शांति का अनुभव होता है।

मंत्र विधि

दिन, अवधि, और मुहूर्त

  • दिन: किसी शुभ दिन या विशेष तिथि पर प्रारंभ करें।
  • अवधि: 11 से 21 दिन तक रोज जप करें।
  • मुहूर्त: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) सबसे उत्तम होता है।

सामग्री

  • सफेद वस्त्र
  • आसन (कुश, रेशमी, या ऊनी)
  • विभ्रामा यक्षिणी की मूर्ति या चित्र
  • धूप, दीप, और नैवेद्य
  • पुष्प, चंदन, कुमकुम
  • जल पात्र

जप संख्या

  • एक माला: 108 बार
  • 11 माला: 1188 बार रोज जप करें

मंत्र जप के नियम

  1. पवित्रता: साधना स्थान की पवित्रता का ध्यान रखें।
  2. नियमितता: नियमित रूप से निश्चित समय पर जप करें।
  3. संकल्प: जप प्रारंभ करने से पहले संकल्प लें।
  4. ध्यान: जप करते समय विभ्रामा यक्षिणी का ध्यान करें।
  5. शुद्धि: शारीरिक और मानसिक शुद्धि बनाए रखें।
  6. सात्विक भोजन: सात्विक भोजन का सेवन करें।
  7. स्मरण: दिन में अन्य समयों में भी देवी का स्मरण करें।
  8. आसन: आसन पर स्थिर बैठकर जप करें।
  9. संयम: ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  10. एकाग्रता: ध्यान और एकाग्रता बनाए रखें।

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मंत्र जप सावधानी

  1. अपवित्र स्थान पर जप न करें।
  2. जप करते समय अनावश्यक बातों से बचें।
  3. जप के दौरान कोई नकारात्मक विचार मन में न आने दें।
  4. सात्विक और शुद्ध आचरण बनाए रखें।
  5. ध्यान भंग होने से बचें।
  6. विशिष्ट अवधि में मंत्र जप पूरा करें।
  7. पूजा और जप के नियमों का पालन करें।
  8. किसी भी प्रकार के मादक पदार्थों का सेवन न करें।
  9. अपशब्दों और कटु वचनों से बचें।
  10. शांति और संयम बनाए रखें।

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विभ्रामा यक्षिणी मंत्र से संबंधित प्रश्न उत्तर

  1. विभ्रामा यक्षिणी कौन हैं?
    विभ्रामा यक्षिणी एक दिव्य देवी हैं जिनकी पूजा और मंत्र जाप से कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं।
  2. विभ्रामा यक्षिणी मंत्र का क्या अर्थ है?
    यह मंत्र देवी विभ्रामा यक्षिणी को समर्पित है और विभिन्न शक्तियों का आह्वान करता है।
  3. इस मंत्र का जप कब करना चाहिए?
    ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) सबसे उत्तम समय है।
  4. इस मंत्र का जप कितने दिनों तक करना चाहिए?
    11 से 21 दिनों तक नियमित रूप से जप करें।
  5. इस मंत्र का जप कितनी बार करना चाहिए?
    एक माला (108 बार) से लेकर 11 माला (1188 बार) तक रोज जप करें।
  6. मंत्र जप के लिए क्या सामग्री चाहिए?
    सफेद वस्त्र, आसन, विभ्रामा यक्षिणी की मूर्ति या चित्र, धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, चंदन, कुमकुम, और जल पात्र।
  7. मंत्र जप के लिए कौन सा आसन प्रयोग करना चाहिए?
    कुश, रेशमी, या ऊनी आसन प्रयोग करें।
  8. क्या मंत्र जप के समय भोजन का विशेष ध्यान रखना चाहिए?
    हां, सात्विक भोजन का सेवन करें।
  9. मंत्र जप के लिए कौन से नियम पालन करने चाहिए?
    पवित्रता, नियमितता, संकल्प, ध्यान, शुद्धि, संयम, और एकाग्रता बनाए रखें।
  10. मंत्र जप के दौरान कौन सी सावधानियाँ बरतनी चाहिए?
    अपवित्र स्थान पर जप न करें, नकारात्मक विचार न आने दें, मादक पदार्थों का सेवन न करें।
  11. मंत्र जप के लाभ क्या हैं?
    समृद्धि, आकर्षण, सुरक्षा, मानसिक शांति, सफलता, स्वास्थ्य, शत्रु नाश, मनोकामना पूर्ति आदि।
  12. क्या विभ्रामा यक्षिणी मंत्र से शत्रु नाश होता है?
    हां, यह मंत्र शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में सहायक होता है।

Vichitra Yakshini Mantra for happiness & good fortune

विचित्र यक्षिणी / Vichitra Yakshini Mantra for happiness and good fortune

विचित्रा यक्षिणी मंत्र – अलौकिक सिद्धियों और रहस्यमयी शक्तियों का स्रोत

सुख व सौभाग्य देने वाली विचित्रा यक्षिणी (Vichitra Yakshini) का उल्लेख हिंदू धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। विचित्रा यक्षिणी एक प्रमुख यक्षिणी देवी हैं जो अपार संपत्ति, सौभाग्य, और सुख की प्राप्ति के लिए पूजनीय मानी जाती हैं। यह यक्षिणी अत्यंत मायावी और अद्भुत शक्तियों से युक्त मानी जाती हैं

विचित्रा यक्षिणी मंत्र व उसका संपूर्ण अर्थ

मंत्र: “ॐ ह्रीं क्रीं विचित्र यक्षिणे क्लीं फट्ट”

अर्थ:

  • ॐ: यह बीज मंत्र ब्रह्मांड की ध्वनि है और सभी मंत्रों का आरंभ इससे होता है।
  • ह्रीं: यह बीज मंत्र देवी की शक्ति को दर्शाता है।
  • क्रीं: यह बीज मंत्र तंत्र साधना और शक्ति का प्रतीक है।
  • विचित्र यक्षिणे: विचित्र यक्षिणी को संबोधित करता है।
  • क्लीं: यह बीज मंत्र आकर्षण और मोहकता का प्रतीक है।
  • फट्ट: यह बीज मंत्र समापन का संकेत देता है और मंत्र की सुरक्षा का संकेत है।

विचित्रा यक्षिणी मंत्र के लाभ

  1. समृद्धि: साधक को धन और वैभव की प्राप्ति होती है।
  2. आकर्षण: व्यक्तित्व में आकर्षण बढ़ता है।
  3. सुरक्षा: नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से रक्षा।
  4. मानसिक शांति: तनाव और चिंता से मुक्ति।
  5. सफलता: कार्यों में सफलता मिलती है।
  6. स्वास्थ्य: अच्छे स्वास्थ्य का वरदान।
  7. शत्रु नाश: शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
  8. मनोकामना पूर्ति: इच्छाओं की पूर्ति होती है।
  9. अध्यात्मिक उन्नति: आत्मा की उन्नति होती है।
  10. प्रेम और सौहार्द: रिश्तों में मधुरता आती है।
  11. वाणी की शक्ति: वाणी में मिठास और प्रभाव बढ़ता है।
  12. साहस: डर और भय से मुक्ति मिलती है।
  13. ज्ञान: विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
  14. संतान सुख: संतान प्राप्ति और उनकी उन्नति होती है।
  15. व्यापार में वृद्धि: व्यापार में उन्नति होती है।
  16. समाज में प्रतिष्ठा: समाज में मान-सम्मान बढ़ता है।
  17. बाधा निवारण: जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति।
  18. धैर्य: धैर्य और सहनशक्ति में वृद्धि।
  19. आध्यात्मिक शक्तियों की प्राप्ति: साधक को विशेष आध्यात्मिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।
  20. सुख-शांति: जीवन में सुख और शांति का अनुभव होता है।

मंत्र विधि

दिन, अवधि, और मुहूर्त

  • दिन: किसी शुभ दिन या विशेष तिथि पर प्रारंभ करें।
  • अवधि: 11 से 21 दिन तक रोज जप करें।
  • मुहूर्त: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) सबसे उत्तम होता है।

सामग्री

  • सफेद वस्त्र
  • आसन (कुश, रेशमी, या ऊनी)
  • विचित्र यक्षिणी की मूर्ति या चित्र
  • धूप, दीप, और नैवेद्य
  • पुष्प, चंदन, कुमकुम
  • जल पात्र

मंत्र जप संख्या

  • एक माला: 108 बार
  • 11 माला: 1188 बार रोज जप करें

मंत्र जप के नियम

  1. पवित्रता: साधना स्थान की पवित्रता का ध्यान रखें।
  2. नियमितता: नियमित रूप से निश्चित समय पर जप करें।
  3. संकल्प: जप प्रारंभ करने से पहले संकल्प लें।
  4. ध्यान: जप करते समय विचित्र यक्षिणी का ध्यान करें।
  5. शुद्धि: शारीरिक और मानसिक शुद्धि बनाए रखें।
  6. सात्विक भोजन: सात्विक भोजन का सेवन करें।
  7. स्मरण: दिन में अन्य समयों में भी देवी का स्मरण करें।
  8. आसन: आसन पर स्थिर बैठकर जप करें।
  9. संयम: ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  10. एकाग्रता: ध्यान और एकाग्रता बनाए रखें।

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मंत्र जप सावधानी

  1. अपवित्र स्थान पर जप न करें।
  2. जप करते समय अनावश्यक बातों से बचें।
  3. जप के दौरान कोई नकारात्मक विचार मन में न आने दें।
  4. सात्विक और शुद्ध आचरण बनाए रखें।
  5. ध्यान भंग होने से बचें।
  6. विशिष्ट अवधि में मंत्र जप पूरा करें।
  7. पूजा और जप के नियमों का पालन करें।
  8. किसी भी प्रकार के मादक पदार्थों का सेवन न करें।
  9. अपशब्दों और कटु वचनों से बचें।
  10. शांति और संयम बनाए रखें।

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विचित्रा यक्षिणी मंत्र से संबंधित प्रश्न उत्तर

  1. विचित्र यक्षिणी कौन हैं?
    विचित्र यक्षिणी एक दिव्य देवी हैं जिनकी पूजा और मंत्र जाप से कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं।
  2. विचित्र यक्षिणी मंत्र का क्या अर्थ है?
    यह मंत्र देवी विचित्र यक्षिणी को समर्पित है और विभिन्न शक्तियों का आह्वान करता है।
  3. इस मंत्र का जप कब करना चाहिए?
    ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) सबसे उत्तम समय है।
  4. इस मंत्र का जप कितने दिनों तक करना चाहिए?
    11 से 21 दिनों तक नियमित रूप से जप करें।
  5. इस मंत्र का जप कितनी बार करना चाहिए?
    एक माला (108 बार) से लेकर 11 माला (1188 बार) तक रोज जप करें।
  6. मंत्र जप के लिए क्या सामग्री चाहिए?
    सफेद वस्त्र, आसन, विचित्र यक्षिणी की मूर्ति या चित्र, धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, चंदन, कुमकुम, और जल पात्र।
  7. मंत्र जप के लिए कौन सा आसन प्रयोग करना चाहिए?
    कुश, रेशमी, या ऊनी आसन प्रयोग करें।
  8. क्या मंत्र जप के समय भोजन का विशेष ध्यान रखना चाहिए?
    हां, सात्विक भोजन का सेवन करें।
  9. मंत्र जप के लिए कौन से नियम पालन करने चाहिए?
    पवित्रता, नियमितता, संकल्प, ध्यान, शुद्धि, संयम, और एकाग्रता बनाए रखें।
  10. मंत्र जप करते समय कौन सी सावधानियाँ बरतनी चाहिए?
    अपवित्र स्थान पर जप न करें, नकारात्मक विचार न आने दें, मादक पदार्थों का सेवन न करें।
  11. मंत्र जप के लाभ क्या हैं?
    समृद्धि, आकर्षण, सुरक्षा, मानसिक शांति, सफलता, स्वास्थ्य, शत्रु नाश, मनोकामना पूर्ति आदि।

Kamini Yakshini Mantra for Attraction & Antiaging

Kamini Yakshini Mantra for Attraction & Antiaging

कमिनी यक्षिणी मंत्र – शक्ति और सौंदर्य की प्राप्ति का सरल मार्ग

कामिनी यक्षिणी को सौंदर्य, आकर्षण, प्रेम और समृद्धि की देवी माना जाता है। उनकी साधना से साधक को जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की उन्नति प्राप्त होती है। कामिनी यक्षिणी का आह्वान करने से साधक के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है।

मंत्र व उसका संपूर्ण अर्थ

कामिनी यक्षिणी का मंत्र “ॐ ह्रीं क्रीं कामिनी यक्षिणेश्वरी स्वाहा” है। इस मंत्र का अर्थ है:

  • : यह परमात्मा, ब्रह्मांडीय ध्वनि, और संपूर्णता का प्रतीक है।
  • ह्रीं: यह बीज मंत्र है जो विशेष ऊर्जा का वाहक है।
  • क्रीं: यह बीज मंत्र शक्ति और क्रिया का प्रतीक है।
  • कामिनी: कामिनी देवी का आह्वान करता है, जो सौंदर्य और आकर्षण की देवी हैं।
  • यक्षिणेश्वरी: यक्षिणी देवी का आह्वान करता है, जो सौंदर्य, धन और समृद्धि की देवी हैं।
  • स्वाहा: यह समर्पण और पूर्णता का प्रतीक है।

इस प्रकार, यह मंत्र कामिनी यक्षिणी देवी को नमन और आह्वान करता है।

मंत्र के लाभ

  1. धन की प्राप्ति: इस मंत्र का जाप करने से साधक को धन और संपत्ति की प्राप्ति होती है।
  2. सौंदर्य और आकर्षण: साधक में सौंदर्य और आकर्षण का संचार होता है।
  3. संपत्ति का वर्धन: साधक के घर में संपत्ति और ऐश्वर्य का वर्धन होता है।
  4. सुख-शांति: जीवन में सुख और शांति का अनुभव होता है।
  5. समृद्धि: साधक के जीवन में समृद्धि का आगमन होता है।
  6. विवाह में सफलता: विवाह संबंधित समस्याओं का समाधान और सफलता मिलती है।
  7. प्रेम और स्नेह: प्रेम और स्नेह में वृद्धि होती है।
  8. स्वास्थ्य में सुधार: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  9. व्यवसाय में सफलता: व्यवसाय में प्रगति और सफलता प्राप्त होती है।
  10. मनोकामना पूर्ति: साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  11. विपत्तियों से रक्षा: विपत्तियों और बाधाओं से रक्षा होती है।
  12. शत्रु नाश: शत्रुओं का नाश और उनका प्रभाव समाप्त होता है।
  13. आत्मविश्वास में वृद्धि: साधक के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  14. धार्मिक उन्नति: साधक की आध्यात्मिक यात्रा को प्रगति प्रदान करता है।
  15. नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा: नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से रक्षा करता है।
  16. परिवार में सुख-शांति: परिवार में सुख और शांति का वातावरण बनाता है।
  17. कानूनी मामलों में विजय: अदालत के मामलों में सफलता दिलाता है।
  18. धार्मिक अनुष्ठानों में सफलता: धार्मिक कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
  19. प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा: भूकंप, तूफान, बाढ़ आदि से रक्षा।
  20. सकारात्मक ऊर्जा का संचार: घर और आसपास की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।

मंत्र विधि

कामिनी यक्षिणी मंत्र के जाप की विधि निम्नलिखित है:

दिन और अवधि

  1. दिन: इस मंत्र का जाप किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन विशेष रूप से शुक्रवार को अधिक प्रभावी माना जाता है।
  2. अवधि: 11 से 21 दिनों तक इस मंत्र का निरंतर जाप करना चाहिए।
  3. मुहूर्त: ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) और रात्रि के समय (रात्रि 10 से 12 बजे) जाप के लिए उत्तम माने जाते हैं।

सामग्री

  1. माला: रुद्राक्ष, स्फटिक या लाल चंदन की माला का उपयोग किया जा सकता है।
  2. दीपक: तिल के तेल या घी का दीपक जलाना चाहिए।
  3. अगरबत्ती: अगरबत्ती या धूप का प्रयोग करें।
  4. आसन: कुश का आसन या लाल कपड़े का आसन उत्तम होता है।
  5. जल और फूल: एक पात्र में जल और पुष्प रखें।

संख्या

  1. प्रारंभिक संख्या: प्रतिदिन एक माला (108 मंत्र) से प्रारंभ करें।
  2. वृद्धि: धीरे-धीरे मंत्र संख्या बढ़ाकर 11 माला (1188 मंत्र) प्रतिदिन करें।
  3. नियमितता: 11 से 21 दिनों तक नियमित रूप से जाप करें।

नियम

  1. शुद्धि: जाप करने से पहले शरीर और मन को शुद्ध करें। स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. आसन: आसन पर बैठकर स्थिर और शांत मन से मंत्र जाप करें।
  3. माला का प्रयोग: माला को दाएं हाथ में लेकर अनामिका और अंगूठे से जाप करें। तर्जनी का प्रयोग न करें।
  4. संकल्प: जाप से पहले संकल्प लें और कामिनी यक्षिणी देवी को प्रणाम करें।
  5. समय और संख्या: समय और संख्या का पालन करें। बीच में रुकावट न आने दें।

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मंत्र जप की सावधानियाँ

  1. अशुद्धि से बचें: जाप करते समय अशुद्ध विचार और कार्यों से दूर रहें।
  2. अनुशासन: समय और संख्या का पालन करें। बीच में रुकावट न आने दें।
  3. शुद्ध स्थान: जाप के लिए स्वच्छ और शांत स्थान का चयन करें।
  4. धैर्य: धैर्य और विश्वास बनाए रखें। जल्दी परिणाम की अपेक्षा न करें।
  5. दिशा: उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके जाप करें।

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मंत्र से संबंधित प्रश्न उत्तर

  1. कामिनी यक्षिणी कौन हैं?
    कामिनी यक्षिणी सौंदर्य, आकर्षण, प्रेम और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं।
  2. कामिनी यक्षिणी मंत्र का अर्थ क्या है?
    यह मंत्र कामिनी यक्षिणी देवी को नमन और आह्वान करता है।
  3. इस मंत्र का जाप कब किया जाना चाहिए?
    विशेष रूप से शुक्रवार को उपयुक्त माना जाता है।
  4. मंत्र जाप के लिए कौन सी माला उपयुक्त है?
    रुद्राक्ष, स्फटिक या लाल चंदन की माला उत्तम होती है।
  5. मंत्र जाप से क्या लाभ होते हैं?
    धन की प्राप्ति, सौंदर्य और आकर्षण, संपत्ति का वर्धन आदि लाभ होते हैं।
  6. क्या मंत्र जाप के लिए विशेष दिशा का पालन करना चाहिए?
    हां, उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके जाप करना चाहिए।
  7. जाप के दौरान क्या सावधानी रखनी चाहिए?
    अशुद्ध विचार और कार्यों से दूर रहना चाहिए।
  8. मंत्र जाप की अवधि कितनी होनी चाहिए?
    11 से 21 दिनों तक नियमित रूप से जाप करना चाहिए।
  9. क्या मंत्र जाप से स्वास्थ्य में सुधार होता है?
    हां, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  10. क्या मंत्र जाप से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है?
    हां, यह नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से रक्षा करता है।
  11. मंत्र जाप के लिए क्या सामग्री आवश्यक है?
    रुद्राक्ष माला, दीपक, अगरबत्ती, आसन, जल और फूल आवश्यक हैं।

Varuni Yakshini Mantra for Wealth

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वारुणी यक्षिणी मंत्र – धन, सौभाग्य और समृद्धि के लिए एक शक्तिशाली साधना

स्वभाव पर नियंत्रण करने वाली वारुणी यक्षिणी एक प्रमुख यक्षिणी देवी हैं जो जल तत्व से संबंधित हैं। उन्हें अक्सर जल से संबंधित कार्यों और मुद्दों में सहायक माना जाता है। वारुणी यक्षिणी का संबंध समुद्र और जल तत्व से होता है। उन्हें समुद्र और जल की देवी भी कहा जाता है। वारुणी यक्षिणी की साधना से साधक को जीवन में धन, संपत्ति, ऐश्वर्य और समृद्धि प्राप्त होती है। उनकी कृपा से साधक के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है।

वारुणी यक्षिणी मंत्र व उसका संपूर्ण अर्थ

वारुणी यक्षिणी का मंत्र “ॐ ह्रीं क्रीं वारुणी यक्षिणेश्वरी स्वाहा” है। इस मंत्र का अर्थ है:

  • : यह परमात्मा, ब्रह्मांडीय ध्वनि, और संपूर्णता का प्रतीक है।
  • ह्रीं: यह बीज मंत्र है जो विशेष उर्जा का वाहक है।
  • क्रीं: यह बीज मंत्र शक्ति और क्रिया का प्रतीक है।
  • वारुणी: वारुणी देवी का आह्वान करता है, जो जल और समुद्र की देवी हैं।
  • यक्षिणेश्वरी: यक्षिणी देवी का आह्वान करता है, जो सौंदर्य, धन और समृद्धि की देवी हैं।
  • स्वाहा: यह समर्पण और पूर्णता का प्रतीक है।

इस प्रकार, यह मंत्र वारुणी यक्षिणी देवी को नमन और आह्वान करता है।

मंत्र के लाभ

  1. धन की प्राप्ति: इस मंत्र का जाप करने से साधक को धन और संपत्ति की प्राप्ति होती है।
  2. सौंदर्य और आकर्षण: साधक में सौंदर्य और आकर्षण का संचार होता है।
  3. संपत्ति का वर्धन: साधक के घर में संपत्ति और ऐश्वर्य का वर्धन होता है।
  4. सुख-शांति: जीवन में सुख और शांति का अनुभव होता है।
  5. समृद्धि: साधक के जीवन में समृद्धि का आगमन होता है।
  6. विवाह में सफलता: विवाह संबंधित समस्याओं का समाधान और सफलता मिलती है।
  7. प्रेम और स्नेह: प्रेम और स्नेह में वृद्धि होती है।
  8. स्वास्थ्य में सुधार: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  9. व्यवसाय में सफलता: व्यवसाय में प्रगति और सफलता प्राप्त होती है।
  10. मनोकामना पूर्ति: साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  11. विपत्तियों से रक्षा: विपत्तियों और बाधाओं से रक्षा होती है।
  12. शत्रु नाश: शत्रुओं का नाश और उनका प्रभाव समाप्त होता है।
  13. आत्मविश्वास में वृद्धि: साधक के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  14. धार्मिक उन्नति: साधक की आध्यात्मिक यात्रा को प्रगति प्रदान करता है।
  15. नकारात्मक उर्जा से सुरक्षा: नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से रक्षा करता है।
  16. परिवार में सुख-शांति: परिवार में सुख और शांति का वातावरण बनाता है।
  17. कानूनी मामलों में विजय: अदालत के मामलों में सफलता दिलाता है।
  18. धार्मिक अनुष्ठानों में सफलता: धार्मिक कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
  19. प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा: भूकंप, तूफान, बाढ़ आदि से रक्षा।
  20. सकारात्मक ऊर्जा का संचार: घर और आसपास की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।

मंत्र विधि

वारुणी यक्षिणी मंत्र के जाप की विधि निम्नलिखित है:

दिन और अवधि

  1. दिन: इस मंत्र का जाप किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन विशेष रूप से शुक्रवार को अधिक प्रभावी माना जाता है।
  2. अवधि: 11 से 21 दिनों तक इस मंत्र का निरंतर जाप करना चाहिए।
  3. मुहुर्त: ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) और रात्रि के समय (रात्रि 10 से 12 बजे) जाप के लिए उत्तम माने जाते हैं।

सामग्री

  1. माला: रुद्राक्ष, स्फटिक या लाल चंदन की माला का उपयोग किया जा सकता है।
  2. दीपक: तिल के तेल या घी का दीपक जलाना चाहिए।
  3. अगरबत्ती: अगरबत्ती या धूप का प्रयोग करें।
  4. आसन: कुश का आसन या लाल कपड़े का आसन उत्तम होता है।
  5. जल और फूल: एक पात्र में जल और पुष्प रखें।

जप संख्या

  1. प्रारंभिक संख्या: प्रतिदिन एक माला (108 मंत्र) से प्रारंभ करें।
  2. वृद्धि: धीरे-धीरे मंत्र संख्या बढ़ाकर 11 माला (1188 मंत्र) प्रतिदिन करें।
  3. नियमितता: 11 से 21 दिनों तक नियमित रूप से जाप करें।

नियम

  1. शुद्धि: जाप करने से पहले शरीर और मन को शुद्ध करें। स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. आसन: आसन पर बैठकर स्थिर और शांत मन से मंत्र जाप करें।
  3. माला का प्रयोग: माला को दाएं हाथ में लेकर अनामिका और अंगूठे से जाप करें। तर्जनी का प्रयोग न करें।
  4. संकल्प: जाप से पहले संकल्प लें और वारुणी यक्षिणी देवी को प्रणाम करें।
  5. समय और संख्या: समय और संख्या का पालन करें। बीच में रुकावट न आने दें।

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मंत्र जप की सावधानियाँ

  1. अशुद्धि से बचें: जाप करते समय अशुद्ध विचार और कार्यों से दूर रहें।
  2. अनुशासन: समय और संख्या का पालन करें। बीच में रुकावट न आने दें।
  3. शुद्ध स्थान: जाप के लिए स्वच्छ और शांत स्थान का चयन करें।
  4. धैर्य: धैर्य और विश्वास बनाए रखें। जल्दी परिणाम की अपेक्षा न करें।
  5. दिशा: उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके जाप करें।

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मंत्र से संबंधित प्रश्न उत्तर

  1. वारुणी यक्षिणी कौन हैं?
    वारुणी यक्षिणी समुद्र और जल की देवी मानी जाती हैं।
  2. वारुणी यक्षिणी मंत्र का अर्थ क्या है?
    यह मंत्र वारुणी यक्षिणी देवी को नमन और आह्वान करता है।
  3. इस मंत्र का जाप कब किया जाना चाहिए?
    विशेष रूप से शुक्रवार को उपयुक्त माना जाता है।
  4. मंत्र जाप के लिए कौन सी माला उपयुक्त है?
    रुद्राक्ष, स्फटिक या लाल चंदन की माला उत्तम होती है।
  5. मंत्र जाप से क्या लाभ होते हैं?
    धन की प्राप्ति, सौंदर्य और आकर्षण, संपत्ति का वर्धन आदि लाभ होते हैं।
  6. क्या मंत्र जाप के लिए विशेष दिशा का पालन करना चाहिए?
    हां, उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके जाप करना चाहिए।
  7. जाप के दौरान क्या सावधानी रखनी चाहिए?
    अशुद्ध विचार और कार्यों से दूर रहना चाहिए।
  8. मंत्र जाप की अवधि कितनी होनी चाहिए?
    11 से 21 दिनों तक नियमित रूप से जाप करना चाहिए।
  9. क्या मंत्र जाप से स्वास्थ्य में सुधार होता है?
    हां, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  10. क्या मंत्र जाप से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है?
    हां, यह नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से रक्षा करता है।
  11. मंत्र जाप के लिए क्या सामग्री आवश्यक है?
    रुद्राक्ष माला, दीपक, अगरबत्ती, आसन, जल और फूल आवश्यक हैं।
  12. क्या मंत्र जाप से दुर्घटनाओं से सुरक्षा मिलती है?
    हां, दुर्घटनाओं और अप्रिय घटनाओं से सुरक्षा मिलती है।

Mohini Yakshini Mantra For Attraction

मोहिनी यक्षिणी / Mohini Yakshini Mantra

मोहिनी यक्षिणी मंत्र – आकर्षण और सफलता प्राप्त करने की अद्भुत साधना

मोहिनी यक्षिणी एक अद्भुत और रहस्यमय देवी मानी जाती हैं। उनके साधक को विशेष सौंदर्य, आकर्षण, और मनोबल की प्राप्ति होती है। मोहिनी यक्षिणी मंत्र साधना द्वारा व्यक्ति अपने जीवन में सफलताएं प्राप्त करता है, विशेषकर सामाजिक और व्यक्तिगत संबंधों में। यह मंत्र न केवल व्यक्ति को आकर्षण प्रदान करता है, बल्कि आत्मविश्वास में भी वृद्धि करता है।

मंत्र और उसका अर्थ

मंत्र:

ॐ ह्रीं क्लीं ऐं वज्रमोहिनी यक्षिणी स्वाहा

अर्थ:

  • “ॐ” ब्रह्मांडीय ध्वनि का प्रतीक है।
  • “ह्रीं” मन और हृदय की शक्ति।
  • “क्लीं” आकर्षण और प्रेम।
  • “ऐं” विद्या और ज्ञान का प्रतीक।
  • “वज्र” शक्ति का द्योतक।
  • “मोहिनी यक्षिणी” मोहिनी देवी का आह्वान।
  • “स्वाहा” समर्पण और सफलता का प्रतीक।

मोहिनी यक्षिणी मंत्र के लाभ

  1. आकर्षण शक्ति में वृद्धि।
  2. सामाजिक जीवन में सफलता।
  3. प्रेम संबंधों में मजबूती।
  4. व्यापार में लाभ।
  5. मानसिक शांति।
  6. आत्मविश्वास में वृद्धि।
  7. विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण।
  8. पति-पत्नी संबंधों में सुधार।
  9. सौंदर्य और आभा में वृद्धि।
  10. कठिनाइयों का समाधान।
  11. शत्रुओं से मुक्ति।
  12. कार्यक्षेत्र में सफलता।
  13. आध्यात्मिक उन्नति।
  14. स्वास्थ्य में सुधार।
  15. तनाव से मुक्ति।
  16. पारिवारिक सुख में वृद्धि।
  17. जीवन में शांति और समृद्धि।

मंत्र विधि

मोहिनी यक्षिणी मंत्र साधना के लिए उपयुक्त दिन, मुहुर्त, और प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक होता है। यह साधना व्यक्ति की मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए होती है, और निम्नलिखित विधि द्वारा इसे सफलतापूर्वक किया जा सकता है:

दिन और मुहूर्त:

  • शुभ दिन: शुक्रवार का दिन विशेष रूप से उत्तम माना जाता है।
  • शुभ मुहूर्त: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 बजे से 6 बजे) सबसे शुभ समय होता है।
  • अवधि: मंत्र जाप का समय 11 से 21 दिन तक होता है।

मंत्र जाप की संख्या:

  • रोज़ाना 11 माला यानी कुल 1188 मंत्र का जाप करें।

आवश्यक सामग्री:

  1. शुद्ध आसन (कुश का आसन उत्तम होता है)।
  2. घी का दीपक।
  3. सफेद या पीले रंग के वस्त्र।
  4. सुगंधित धूप और पुष्प।
  5. स्फटिक की माला या रुद्राक्ष माला।

मंत्र जाप के नियम

  1. 20 वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्ति ही यह साधना कर सकते हैं।
  2. पुरुष और महिला दोनों साधना कर सकते हैं।
  3. नीले और काले वस्त्र पहनने से बचें।
  4. धूम्रपान, मद्यपान, पान और मांसाहार का त्याग करें।
  5. ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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जप के दौरान सावधानियां

  • साधना में मन की शुद्धता और स्थिरता आवश्यक है।
  • मंत्र जाप के दौरान किसी भी प्रकार की नकारात्मक सोच से बचें।
  • साधना के दिनों में किसी से विवाद न करें।
  • मंत्र जाप के स्थान को पवित्र रखें और एक ही स्थान पर बैठकर जाप करें।

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मोहिनी यक्षिणी मंत्र प्रश्न उत्तर

1. मोहिनी यक्षिणी मंत्र का उद्देश्य क्या है?

उत्तर: मोहिनी यक्षिणी मंत्र का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को आकर्षण शक्ति, आत्मविश्वास, और सफलता प्रदान करना है।

2. क्या इस मंत्र को किसी भी उम्र का व्यक्ति जप सकता है?

उत्तर: नहीं, इस मंत्र को केवल 20 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति ही जप सकते हैं।

3. इस मंत्र का जाप कब करना चाहिए?

उत्तर: इस मंत्र का जाप ब्रह्म मुहूर्त में करना चाहिए, जो सुबह 4 से 6 बजे तक होता है।

4. क्या मंत्र जाप के लिए विशेष कपड़े पहनने चाहिए?

उत्तर: हां, मंत्र जाप के समय सफेद या पीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए। नीले और काले रंग के वस्त्र वर्जित हैं।

5. क्या महिला और पुरुष दोनों यह मंत्र जप सकते हैं?

उत्तर: हां, महिला और पुरुष दोनों इस मंत्र का जाप कर सकते हैं।

6. मंत्र जाप के दौरान किस प्रकार के भोजन का सेवन करना चाहिए?

उत्तर: साधना के दौरान सात्विक भोजन का सेवन करें और मांसाहार, धूम्रपान, मद्यपान से बचें।

7. मंत्र जाप की अवधि कितनी होनी चाहिए?

उत्तर: मंत्र जाप की अवधि 11 से 21 दिन तक होती है, जिसमें प्रतिदिन 11 माला का जाप करना होता है।

8. मंत्र जाप के लिए कौन सी माला का प्रयोग करना चाहिए?

उत्तर: स्फटिक माला या रुद्राक्ष माला का उपयोग मंत्र जाप के लिए सर्वोत्तम है।

9. मंत्र जाप के दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

उत्तर: मंत्र जाप के दौरान मन को शुद्ध और स्थिर रखें, किसी प्रकार की नकारात्मकता से बचें।

10. क्या मंत्र जाप के स्थान पर विशेष ध्यान देना चाहिए?

उत्तर: हां, मंत्र जाप का स्थान पवित्र होना चाहिए और एक ही स्थान पर प्रतिदिन जाप करें।

11. क्या साधना के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है?

उत्तर: हां, साधना के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है।

12. मंत्र जाप के बाद क्या करना चाहिए?

उत्तर: मंत्र जाप के बाद देवी को धन्यवाद दें और साधना को समर्पण भाव से समाप्त करें।

Yakshini Mantra For Money Protector

यक्षिणी / Yakshini Mantra Money Protector

धन संपत्ति की रक्षा करने वाली यक्षिणी एक प्राचीन तांत्रिक शक्ति हैं जो खजानों, समृद्धि, और सुख की देवी के रूप में पूजा जाता है। यक्षिणी को देवी लक्ष्मी का ही एक रूप माना जाता है और उन्हें सौंदर्य, धन, संपत्ति, ऐश्वर्य, और समृद्धि की देवी के रूप में पूजा जाता है। यक्षिणी की पूजा और साधना करने से व्यक्ति के जीवन में धन, संपत्ति और समृद्धि का वास होता है। उनकी कृपा से साधक के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है।

यक्षिणी मंत्र व उसका संपूर्ण अर्थ

यक्षिणी का मंत्र “ॐ ह्रीं क्रीं यक्षिणेश्वरी नमः” है। इस मंत्र का अर्थ है:

  • : यह परमात्मा, ब्रह्मांडीय ध्वनि, और संपूर्णता का प्रतीक है।
  • ह्रीं: यह बीज मंत्र है जो विशेष उर्जा का वाहक है।
  • क्रीं: यह बीज मंत्र शक्ति और क्रिया का प्रतीक है।
  • यक्षिणेश्वरी: यक्षिणी देवी का आह्वान करता है, जो सौंदर्य, धन और समृद्धि की देवी हैं।
  • नमः: नमस्कार या प्रणाम का प्रतीक है।

इस प्रकार, यह मंत्र यक्षिणी देवी को नमन और आह्वान करता है।

मंत्र के लाभ

  1. धन की प्राप्ति: इस मंत्र का जाप करने से साधक को धन और संपत्ति की प्राप्ति होती है।
  2. सौंदर्य और आकर्षण: साधक में सौंदर्य और आकर्षण का संचार होता है।
  3. संपत्ति का वर्धन: साधक के घर में संपत्ति और ऐश्वर्य का वर्धन होता है।
  4. सुख-शांति: जीवन में सुख और शांति का अनुभव होता है।
  5. समृद्धि: साधक के जीवन में समृद्धि का आगमन होता है।
  6. विवाह में सफलता: विवाह संबंधित समस्याओं का समाधान और सफलता मिलती है।
  7. प्रेम और स्नेह: प्रेम और स्नेह में वृद्धि होती है।
  8. स्वास्थ्य में सुधार: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  9. व्यवसाय में सफलता: व्यवसाय में प्रगति और सफलता प्राप्त होती है।
  10. मनोकामना पूर्ति: साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  11. विपत्तियों से रक्षा: विपत्तियों और बाधाओं से रक्षा होती है।
  12. शत्रु नाश: शत्रुओं का नाश और उनका प्रभाव समाप्त होता है।
  13. आत्मविश्वास में वृद्धि: साधक के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  14. धार्मिक उन्नति: साधक की आध्यात्मिक यात्रा को प्रगति प्रदान करता है।
  15. नकारात्मक उर्जा से सुरक्षा: नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से रक्षा करता है।
  16. परिवार में सुख-शांति: परिवार में सुख और शांति का वातावरण बनाता है।
  17. कानूनी मामलों में विजय: अदालत के मामलों में सफलता दिलाता है।
  18. धार्मिक अनुष्ठानों में सफलता: धार्मिक कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
  19. प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा: भूकंप, तूफान, बाढ़ आदि से रक्षा।
  20. सकारात्मक ऊर्जा का संचार: घर और आसपास की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।

मंत्र विधि

यक्षिणी मंत्र के जाप की विधि निम्नलिखित है:

दिन और अवधि

  1. दिन: इस मंत्र का जाप किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन विशेष रूप से शुक्रवार को अधिक प्रभावी माना जाता है।
  2. अवधि: 11 से 21 दिनों तक इस मंत्र का निरंतर जाप करना चाहिए।
  3. मुहुर्त: ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) और रात्रि के समय (रात्रि 10 से 12 बजे) जाप के लिए उत्तम माने जाते हैं।

सामग्री

  1. माला: रुद्राक्ष, स्फटिक या लाल चंदन की माला का उपयोग किया जा सकता है।
  2. दीपक: तिल के तेल या घी का दीपक जलाना चाहिए।
  3. अगरबत्ती: अगरबत्ती या धूप का प्रयोग करें।
  4. आसन: कुश का आसन या लाल कपड़े का आसन उत्तम होता है।
  5. जल और फूल: एक पात्र में जल और पुष्प रखें।

जप संख्या

  1. प्रारंभिक संख्या: प्रतिदिन एक माला (108 मंत्र) से प्रारंभ करें।
  2. वृद्धि: धीरे-धीरे मंत्र संख्या बढ़ाकर 11 माला (1188 मंत्र) प्रतिदिन करें।
  3. नियमितता: 11 से 21 दिनों तक नियमित रूप से जाप करें।

नियम

  1. शुद्धि: जाप करने से पहले शरीर और मन को शुद्ध करें। स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. आसन: आसन पर बैठकर स्थिर और शांत मन से मंत्र जाप करें।
  3. माला का प्रयोग: माला को दाएं हाथ में लेकर अनामिका और अंगूठे से जाप करें। तर्जनी का प्रयोग न करें।
  4. संकल्प: जाप से पहले संकल्प लें और यक्षिणी देवी को प्रणाम करें।
  5. समय और संख्या: समय और संख्या का पालन करें। बीच में रुकावट न आने दें।

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मंत्र जप की सावधानियाँ

  1. अशुद्धि से बचें: जाप करते समय अशुद्ध विचार और कार्यों से दूर रहें।
  2. अनुशासन: समय और संख्या का पालन करें। बीच में रुकावट न आने दें।
  3. शुद्ध स्थान: जाप के लिए स्वच्छ और शांत स्थान का चयन करें।
  4. धैर्य: धैर्य और विश्वास बनाए रखें। जल्दी परिणाम की अपेक्षा न करें।
  5. दिशा: उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके जाप करें।

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मंत्र से संबंधित प्रश्न उत्तर

  1. यक्षिणी कौन हैं?
    यक्षिणी सौंदर्य, धन, संपत्ति, ऐश्वर्य, और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं।
  2. यक्षिणी मंत्र का अर्थ क्या है?
    यह मंत्र यक्षिणी देवी को नमन और आह्वान करता है।
  3. इस मंत्र का जाप कब किया जाना चाहिए?
    विशेष रूप से शुक्रवार को उपयुक्त माना जाता है।
  4. मंत्र जाप के लिए कौन सी माला उपयुक्त है?
    रुद्राक्ष, स्फटिक या लाल चंदन की माला उत्तम होती है।
  5. मंत्र जाप से क्या लाभ होते हैं?
    धन की प्राप्ति, सौंदर्य और आकर्षण, संपत्ति का वर्धन आदि लाभ होते हैं।
  6. क्या मंत्र जाप के लिए विशेष दिशा का पालन करना चाहिए?
    हां, उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके जाप करना चाहिए।
  7. जाप के दौरान क्या सावधानी रखनी चाहिए?
    अशुद्ध विचार और कार्यों से दूर रहना चाहिए।
  8. मंत्र जाप की अवधि कितनी होनी चाहिए?
    11 से 21 दिनों तक नियमित रूप से जाप करना चाहिए।
  9. क्या मंत्र जाप से स्वास्थ्य में सुधार होता है?
    हां, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  10. क्या मंत्र जाप से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है?
    हां, यह नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से रक्षा करता है।
  11. मंत्र जाप के लिए क्या सामग्री आवश्यक है?
    रुद्राक्ष माला, दीपक, अगरबत्ती, आसन, जल और फूल आवश्यक हैं।

Matang Bhairav Mantra for wishes

मतंग भैरव / Matang Bhairav Mantra for wishes

मतंग भैरव मंत्र साधना – दुर्भाग्य से मुक्ति और सफलता की कुंजी

इच्छा पूरी करने वाले महाविद्या मातंगी के भैरव “मतंग भैरव” एक प्रमुख भैरव अवतार है जो सभी तरह की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले माने जाते है। और शक्ति, साहस, सफलता और वीरता का प्रतीक मतंग भैरव हर तरह का सुख प्रदान करते है। मतंग भैरव भगवान शिव का उग्र और शक्तिशाली रूप हैं। भैरव को हिंदू धर्म में रक्षक और न्यायाधीश के रूप में जाना जाता है। वे विशेष रूप से तांत्रिक साधना में महत्वपूर्ण माने जाते हैं। मतंग भैरव का स्वरूप भयंकर होता है, जिसमें वे त्रिशूल, खड्ग, और डमरू धारण किए होते हैं। उनका वाहन कुत्ता है और वे रात्रि के समय के देवता माने जाते हैं। उनकी साधना से व्यक्ति को अद्वितीय शक्ति और सिद्धियों की प्राप्ति होती है।

मतंग भैरव मंत्र और उसका संपूर्ण अर्थ

मंत्र: ॐ भ्रं मतंग भैरवाय कार्य सिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा

इस मंत्र का अर्थ है:

  • : ब्रह्मांड की मूल ध्वनि, हर प्रकार की ऊर्जा का स्रोत।
  • भ्रं: यह मतंग भैरव का बीज मंत्र है।
  • मतंग भैरवाय: मतंग भैरव को समर्पित।
  • कार्य सिद्धिं कुरु कुरु: “मेरे कार्यों को सिद्ध करो, सिद्ध करो।”
  • स्वाहा: संपूर्णता और समर्पण का प्रतीक।

मतंग भैरव मंत्र के लाभ

  1. कार्य सिद्धि: हर प्रकार के कार्यों की सफलता।
  2. आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक जागरण और उन्नति।
  3. शत्रु नाश: शत्रुओं का नाश और बुराई से सुरक्षा।
  4. धन और समृद्धि: आर्थिक समृद्धि और धन की प्राप्ति।
  5. सौभाग्य: जीवन में सौभाग्य और सफलता।
  6. स्वास्थ्य: मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार।
  7. सकारात्मक ऊर्जा: सकारात्मक ऊर्जा और उत्साह का संचार।
  8. रिश्तों में सुधार: पारिवारिक और सामाजिक संबंधों में सुधार।
  9. आत्मविश्वास: आत्मविश्वास और आत्मसम्मान की वृद्धि।
  10. धार्मिकता: धर्म और अध्यात्म में रुचि और श्रद्धा।
  11. कर्मों की शुद्धि: पिछले कर्मों के दोषों की शुद्धि।
  12. मानसिक शांति: मानसिक शांति और स्थिरता।
  13. सफलता: जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता।
  14. आकर्षण: व्यक्ति को आकर्षक बनाना।
  15. संतान प्राप्ति: संतान प्राप्ति में सहायता।
  16. भयमुक्ति: भय और असुरक्षा से मुक्ति।
  17. आध्यात्मिक मार्गदर्शन: सच्चे मार्ग पर मार्गदर्शन।
  18. कर्म सुधार: अच्छे कर्म करने की प्रेरणा।
  19. सपनों की पूर्ति: इच्छाओं और सपनों की पूर्ति।
  20. दुष्ट शक्तियों से रक्षा: नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा।

मंत्र विधि

दिन

मतंग भैरव मंत्र का जप किसी भी दिन शुरू किया जा सकता है, लेकिन विशेषतः मंगलवार, शनिवार, या अष्टमी का दिन शुभ माना जाता है।

अवधि

मंत्र जप की अवधि 11 से 21 दिन होनी चाहिए। इस दौरान नियमित रूप से मंत्र जप करना आवश्यक है।

मुहुर्थ

प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) या संध्याकाल (शाम 6 से 8 बजे) को मंत्र जप का सर्वोत्तम समय माना जाता है।

सामग्री

  1. मतंग भैरव की प्रतिमा या चित्र
  2. पुष्प (खासकर लाल और काले फूल)
  3. धूप/अगरबत्ती
  4. दीपक (घी का दीपक सर्वोत्तम होता है)
  5. आसन (साफ और पवित्र स्थान पर बैठने के लिए)
  6. जल पात्र
  7. मौली (रक्षा सूत्र)

मतंग भैरव मंत्र जप

मंत्र जप की अवधि 11 से 21 दिन तक होनी चाहिए। रोजाना नियमित समय पर मंत्र जप करना आवश्यक है।

मतंग भैरव मंत्र जप संख्या

मंत्र जप की संख्या एक माला यानी 108 बार से लेकर 11 माला यानी 1188 मंत्र रोज जप करना चाहिए।

मंत्र जप के नियम

  1. स्नान: जप से पहले स्नान कर लें।
  2. पवित्र स्थान: पवित्र और शांत स्थान पर बैठें।
  3. आसन: एक साफ और पवित्र आसन का प्रयोग करें।
  4. समर्पण भाव: पूर्ण समर्पण भाव और एकाग्रता के साथ मंत्र जप करें।
  5. रोजाना नियमित समय: रोजाना एक ही समय पर मंत्र जप करें।
  6. माला: रुद्राक्ष या लाल चंदन की माला का प्रयोग करें।
  7. ध्यान: मतंग भैरव का ध्यान करते हुए मंत्र जप करें।
  8. सकारात्मक सोच: जप के दौरान सकारात्मक सोच और भाव रखें।
  9. नियमितता: जप को नियमित रूप से करें, बिना किसी दिन का छोड़ें।
  10. स्वच्छता: जप के स्थान और आसन की स्वच्छता का ध्यान रखें।
  11. द्रव्य: जप के दौरान या बाद में मतंग भैरव को नैवेद्य (भोग) अर्पित करें।
  12. लाल पुष्प: मतंग भैरव को लाल और काले पुष्प अर्पित करें।
  13. धूप-दीप: धूप-दीप जलाकर मतंग भैरव की आरती करें।
  14. मौन: जप के समय मौन रहें और बाहरी विचारों से बचें।
  15. श्रद्धा: श्रद्धा और विश्वास के साथ मंत्र जप करें।
  16. धैर्य: मंत्र के फलों के लिए धैर्य रखें, तुरंत परिणाम की अपेक्षा न करें।
  17. शुद्धि: मानसिक और शारीरिक शुद्धि बनाए रखें।
  18. व्रत: मंत्र जप के दौरान व्रत का पालन करें, यदि संभव हो तो।
  19. सहजता: सहज और सरल मन से मंत्र जप करें।
  20. ध्यान और ध्यान: जप के बाद कुछ समय ध्यान करें और मतंग भैरव के चरणों में ध्यान लगाएं।

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मतंग भैरव मंत्र जप सावधानी

  1. ध्यान और एकाग्रता: जप के दौरान ध्यान भटकने से बचें।
  2. सही उच्चारण: मंत्र का उच्चारण सही और स्पष्ट होना चाहिए।
  3. नियमितता: जप को बिना किसी व्यवधान के नियमित रूप से करें।
  4. शुद्धता: जप के स्थान और आसन की स्वच्छता बनाए रखें।
  5. समय का पालन: रोजाना एक ही समय पर जप करें।
  6. धैर्य: धैर्य रखें और जल्दबाजी में न हों।
  7. सकारात्मकता: सकारात्मक और शांत मन से जप करें।
  8. विचार शुद्धि: नकारात्मक विचारों से बचें।
  9. सामग्री का ध्यान: जप के लिए आवश्यक सामग्री जैसे माला, आसन आदि का ध्यान रखें।
  10. शारीरिक स्थिति: स्वस्थ और संयमित शारीरिक स्थिति में जप करें।
  11. पर्यावरण: शांति और सकारात्मक ऊर्जा वाले स्थान पर जप करें।
  12. संवेदना: जप के दौरान संवेदनशीलता और श्रद्धा बनाए रखें।
  13. धर्म और नियम: धर्म और नियमों का पालन करें।
  14. नियमित अभ्यास: नियमित अभ्यास से मंत्र जप का प्रभाव बढ़ता है।
  15. प्रेरणा: स्वयं को प्रेरित और उत्साहित रखें।
  16. भक्ति: भक्ति और श्रद्धा के साथ जप करें।
  17. समर्पण: पूरी तरह से मतंग भैरव के प्रति समर्पित रहें।
  18. संतुलन: शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाए रखें।
  19. स्वस्थ भोजन: स्वास्थ्यवर्धक और सात्विक भोजन का सेवन करें।
  20. सहजता: जप को सहज और सरल बनाएं।

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मतंग भैरव मंत्र से संबंधित प्रश्न-उत्तर

  1. प्रश्न: मतंग भैरव कौन हैं?
    उत्तर: मतंग भैरव भगवान शिव का उग्र और शक्तिशाली रूप हैं।
  2. प्रश्न: मतंग भैरव मंत्र क्या है?
    उत्तर: ॐ भ्रं मतंग भैरवाय कार्य सिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा।
  3. प्रश्न: इस मंत्र का अर्थ क्या है?
    उत्तर: यह मंत्र मतंग भैरव से कार्य सिद्धि की प्रार्थना करता है।
  4. प्रश्न: मतंग भैरव मंत्र के लाभ क्या हैं?
    उत्तर: यह कार्य सिद्धि, शत्रु नाश, धन, स्वास्थ्य, और सौभाग्य प्रदान करता है।
  5. प्रश्न: मंत्र जप की विधि क्या है?
    उत्तर: प्रातःकाल या संध्याकाल में, साफ और पवित्र स्थान पर, स्नान करके, एकाग्रता और श्रद्धा के साथ जप करना चाहिए।
  6. प्रश्न: मंत्र जप की अवधि क्या होनी चाहिए?
    उत्तर: 11 से 21 दिन तक रोजाना जप करना चाहिए।
  7. प्रश्न: मंत्र जप की संख्या क्या होनी चाहिए?
    उत्तर: एक माला यानी 108 बार से लेकर 11 माला यानी 1188 मंत्र रोज जप करना चाहिए।
  8. प्रश्न: जप के दौरान किस सामग्री का उपयोग करना चाहिए?
    उत्तर: मतंग भैरव की प्रतिमा या चित्र, पुष्प, धूप/अगरबत्ती, दीपक, आसन, जल पात्र, मौली।
  9. प्रश्न: मंत्र जप के नियम क्या हैं?
    उत्तर: स्नान, पवित्र स्थान, आसन, समर्पण भाव, रोजाना नियमित समय, माला का प्रयोग, ध्यान, सकारात्मक सोच, नियमितता, स्वच्छता, द्रव्य अर्पण, लाल पुष्प चढ़ाना, धूप-दीप जलाना, मौन रहना, श्रद्धा और धैर्य बनाए रखना।
  10. प्रश्न: मंत्र जप के दौरान कौन सी सावधानियाँ रखनी चाहिए?
    उत्तर: ध्यान और एकाग्रता, सही उच्चारण, नियमितता, शुद्धता, समय का पालन, धैर्य, सकारात्मकता, विचार शुद्धि, सामग्री का ध्यान, शारीरिक स्थिति, पर्यावरण, संवेदना, धर्म और नियमों का पालन।
  11. प्रश्न: क्या मंत्र जप के दौरान व्रत का पालन करना चाहिए?
    उत्तर: हाँ, यदि संभव हो तो व्रत का पालन करना चाहिए।
  12. प्रश्न: मंत्र जप के बाद क्या करना चाहिए?
    उत्तर: जप के बाद ध्यान करें और मतंग भैरव के चरणों में ध्यान लगाएं।