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Vaishno Devi gupta Chalisa paath for prosperity

Vaishno Devi gupta Chalisa paath for prosperity

सुरक्षा व सुखमय जीवन के लिये वैष्णो देवी चालीसा एक महत्वपूर्ण हिन्दू भक्ति पाठ है, जो माता वैष्णो देवी की स्तुति और महिमा का वर्णन करता है। वैष्णो देवी, माँ दुर्गा का एक रूप हैं और उन्हें शक्ति, भक्ति, और करूणा की देवी माना जाता है। वैष्णो देवी चालीसा के नियमित पाठ से भक्तों को माँ वैष्णो देवी की कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन में सुख-समृद्धि, शांति और संतोष का संचार होता है।

चालीसा

॥ दोहा ॥
जय जय श्री माता वैष्णवी, करत सदा जयकार।
चालीसा बाणी दिव्य है, जो पाठ करे सुखकार॥

जय जय श्री माता वैष्णवी, शक्ति रूपिनी।
पर्वतवासी परम कृपा, करुणा मूर्ति धानी॥

जयति जयति जगदंबिका, पालन रूप धारी।
जयति जयति भवानी माता, संकट हार नारी॥

अद्भुत रूप धरि माताजी, भक्तन पर स्नेह।
करत सदा वंदन तुम्हें, भक्त चरण कमलेह॥

तेरी महिमा अपरम्पार, जो नित ध्यान लगावे।
मनवांछित फल प्राप्त करे, संकट सब मिटावे॥

अष्टभुजा धारी मां वैष्णवी, पहाड़ों पर वासी।
सर्वज्ञानी सर्वशक्ति, भवभय हारिनी प्रासी॥

नाम जपें जो भक्त तेरे, होते सफल काम।
तेरे दर पे शीश झुका, पाएं संतोष अभिराम॥

जगदंबा मां वैष्णवी, संकट सब हरना।
सच्चे दिल से पुकारो, भक्तन को तारना॥

शरण में तेरे आके, सब दुख दर्द मिटावे।
माँ वैष्णवी के चरणों में, आनंद सुख पावे॥

तेरी महिमा न्यारी है, सारा जग है जानत।
तेरी शरण में आके, दुःख संताप मिटावत॥

लाभ

  1. मानसिक शांति: वैष्णो देवी चालीसा का पाठ करने से मन में शांति और स्थिरता आती है।
  2. आध्यात्मिक प्रगति: यह आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वालों के लिए लाभदायक होता है।
  3. स्वास्थ्य लाभ: इससे स्वास्थ्य में सुधार होता है और बीमारियों से मुक्ति मिलती है।
  4. सकारात्मक ऊर्जा: वैष्णो देवी चालीसा पढ़ने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  5. धन-संपत्ति: आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
  6. संकटों से मुक्ति: जीवन के संकटों और समस्याओं का समाधान होता है।
  7. संतान सुख: जिन लोगों को संतान सुख की प्राप्ति नहीं हो रही, उनके लिए यह लाभदायक है।
  8. दांपत्य जीवन में सुख: वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
  9. भय का नाश: सभी प्रकार के भय और अज्ञानता का नाश होता है।
  10. शत्रुओं का नाश: दुश्मनों और विरोधियों से रक्षा होती है।
  11. ईश्वरीय कृपा: माँ वैष्णो देवी की कृपा प्राप्त होती है।
  12. धार्मिक लाभ: धर्म-कर्म में रुचि बढ़ती है।
  13. आत्मविश्वास में वृद्धि: आत्मविश्वास और साहस में वृद्धि होती है।
  14. मुक्ति का मार्ग: मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
  15. शक्ति और साहस: मानसिक और शारीरिक शक्ति में वृद्धि होती है।
  16. धैर्य और सहनशीलता: जीवन में धैर्य और सहनशीलता आती है।
  17. विद्या और ज्ञान: ज्ञान और विद्या की प्राप्ति होती है।
  18. समाज में प्रतिष्ठा: समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती है।
  19. कर्मों का फल: अच्छे कर्मों का फल शीघ्र ही प्राप्त होता है।
  20. सकारात्मक दृष्टिकोण: जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित होता है।

ष्णो देवी चालीसा पाठ विधि

  1. साफ-सफाई: पाठ करने से पहले स्नान करके साफ कपड़े पहनें।
  2. पूजा स्थान: एक शांत और साफ स्थान पर माँ वैष्णो देवी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  3. प्रारंभिक मंत्र: वैष्णो देवी चालीसा पाठ शुरू करने से पहले गणेश वंदना और अन्य प्रारंभिक मंत्रों का पाठ करें।
  4. दीप प्रज्वलन: दीपक जलाएं और अगरबत्ती जलाएं।
  5. आसन: स्वच्छ आसन पर बैठकर पाठ करें।
  6. जल और पुष्प: एक लोटा जल और पुष्प माँ वैष्णो देवी के चरणों में अर्पित करें।
  7. संकल्प: एक छोटा संकल्प लें कि आप यह पाठ किस उद्देश्य से कर रहे हैं।
  8. पाठ: पूरे मनोयोग से वैष्णो देवी चालीसा का पाठ करें।
  9. आरती: पाठ समाप्त होने के बाद वैष्णो देवी आरती करें।
  10. प्रसाद: अंत में सभी को प्रसाद वितरित करें।

दिन, अवधि और मुहुर्त

  • दिन: किसी भी दिन वैष्णो देवी चालीसा का पाठ किया जा सकता है, लेकिन विशेष रूप से शुक्रवार को करना अधिक शुभ माना जाता है।
  • अवधि: किसी विशेष अवसर पर या नियमित रूप से दैनिक रूप में भी किया जा सकता है।
  • मुहुर्त: ब्रह्म मुहुर्त (सुबह 4-6 बजे) में पाठ करना सबसे अच्छा माना जाता है। इसके अलावा, संध्या समय (शाम 6-8 बजे) में भी पाठ किया जा सकता है।

नियम

  1. शुद्धता: शरीर, मन और वाणी की शुद्धता का ध्यान रखें।
  2. संकल्प: बिना किसी विक्षेप के पाठ करें।
  3. समय: नियमित समय पर पाठ करें।
  4. आसन: एक निश्चित स्थान पर बैठकर पाठ करें।
  5. भक्ति: पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ पाठ करें।
  6. नियमितता: नियमित रूप से पाठ करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  7. प्रसाद: पाठ के बाद प्रसाद का वितरण अवश्य करें।

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वैष्णो देवी चालीसा पाठ सावधानियां

  1. ध्यान: पाठ करते समय मन को एकाग्र रखें और इधर-उधर की बातें न सोचें।
  2. स्थिरता: एक ही स्थान पर बैठकर पाठ करें, बार-बार उठना नहीं चाहिए।
  3. समय: नियमित समय पर पाठ करें, समय का उल्लंघन न करें।
  4. श्रद्धा: पाठ करते समय माँ वैष्णो देवी के प्रति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखें।
  5. साफ-सफाई: पाठ करने के स्थान को साफ और पवित्र रखें।
  6. साधना: अन्य किसी साधना में विघ्न न डालें।
  7. ध्यान: पाठ करते समय ध्यान और प्राणायाम का भी अभ्यास करें।
  8. धूम्रपान: पाठ के दौरान धूम्रपान, शराब आदि का सेवन न करें।
  9. वाणी: अपशब्दों का प्रयोग न करें।
  10. सात्विक आहार: सात्विक भोजन का सेवन करें।

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वैष्णो देवी चालीसा पाठ सामान्य प्रश्न

  1. वैष्णो देवी चालीसा क्या है?
    वैष्णो देवी चालीसा माँ वैष्णो देवी की स्तुति और महिमा का वर्णन करने वाला भक्ति पाठ है।
  2. वैष्णो देवी चालीसा का पाठ कब करना चाहिए?
    किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन विशेष रूप से शुक्रवार को करना शुभ माना जाता है।
  3. वैष्णो देवी चालीसा का पाठ कैसे करना चाहिए?
    शुद्धता और श्रद्धा के साथ, नियमित समय पर, साफ-सुथरे स्थान पर, संकल्प लेकर पाठ करें।
  4. वैष्णो देवी चालीसा के पाठ से क्या लाभ होते हैं?
    मानसिक शांति, स्वास्थ्य लाभ, आर्थिक समृद्धि, संतान सुख, भय का नाश आदि अनेक लाभ होते हैं।
  5. क्या वैष्णो देवी चालीसा का पाठ विशेष अवसरों पर ही करना चाहिए?
    नहीं, वैष्णो देवी चालीसा का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है, विशेष अवसरों पर इसका महत्व और बढ़ जाता है।
  6. वैष्णो देवी के प्रमुख रूप कौन-कौन से हैं?
    माँ वैष्णो देवी के प्रमुख रूप हैं – दुर्गा, काली, सरस्वती, लक्ष्मी।
  7. वैष्णो देवी चालीसा का पाठ कितनी बार करना चाहिए?
    अपनी श्रद्धा और समय के अनुसार, दैनिक या साप्ताहिक रूप से कर सकते हैं।
  8. क्या वैष्णो देवी चालीसा का पाठ करने से शत्रु बाधा दूर होती है?
    हां, वैष्णो देवी चालीसा का पाठ करने से शत्रुओं का नाश होता है और सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं।
  9. क्या वैष्णो देवी चालीसा का पाठ करने से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है?
    हां, वैष्णो देवी चालीसा का पाठ करने से धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है और आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
  10. क्या वैष्णो देवी चालीसा का पाठ करने से सभी समस्याओं का समाधान होता है?
    हां, वैष्णो देवी चालीसा का पाठ करने से जीवन की अनेक समस्याओं का समाधान होता है।

Parvati gupta Chalisa paath for wishes

Parvati gupta Chalisa paath for wishes

सुख-समृद्धि व सौभाग्य का आशिर्वाद देने वाली पार्वती चालीसा एक महत्वपूर्ण हिन्दू भक्ति पाठ है, जो माता पार्वती की स्तुति और महिमा का वर्णन करता है। माँ पार्वती, भगवान शिव की पत्नी और गणेश तथा कार्तिकेय की माता हैं। उन्हें शक्ति, भक्ति, और करूणा की देवी माना जाता है। पार्वती चालीसा के नियमित पाठ से भक्तों को माँ पार्वती की कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन में सुख-समृद्धि, शांति और संतोष का संचार होता है।

चालीसा

॥ दोहा ॥
श्री गणपति गुरु ध्याइ कर, आरंभ करौं पाठ।
श्री पार्वती चालीसा सुन, हरौ क्लेश विकार॥
जय जय गिरिवर राज किशोरी। जय महेश मुख चंद चकोरी॥

जय उमा मंगल करिहारी। जय गंगा त्रिपथग प्रवाहिनी॥

जय गिरिजा अष्टभुजा धारी। जय जय स्यांम राम कल्याणी॥

जय शिवानी, जय जय अति प्रियँ। जय जगदम्बा त्रिपुर भैरवी॥

जय महेश मुख चंद की जोड़ी। जय गिरिराज किशोरी अति गोरी॥

जय आद्या शक्ति जगदम्बे। जय जगदम्बा दानव दल खम्बे॥

जय अम्बे जय अम्बे सुखधामिनी। जय जय अति मंगल गुणखानी॥

नवनिधि को सुख देने वाली। दुःख दारिद्र्य विनाशिनी काली॥

सहस्र चंद्रदिवाकर गाता। विष्णु सदा यह जाप सुनाता॥

महालक्ष्मी तुम ही भवानी। आदि रूप समस्त भुवानी॥

राम सुमिरि सिय मानस पूजा। नित नवनीत वृतिका दूजा॥

ध्यान जोत जपत अनूपा। शम्भु करे सादर यह धूपा॥

सोमनाथ ध्यान धरत निशिदिन। जान सदा तेरी महिमा वदन॥

कंचन थार कपूर की बाती। हरिकर ध्यान धरत रघुराती॥

हर हर शम्भु जय अंबिके देवी। जय गोरी शिव मुनि मन बेवी॥

नाथ ध्यान धरि ध्यान लगावत। जो यह चालीसा गावे॥

सकल मनोरथ फल पावे॥

लाभ

  1. मानसिक शांति: पार्वती चालीसा का पाठ करने से मन में शांति और स्थिरता आती है।
  2. आध्यात्मिक प्रगति: यह आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वालों के लिए लाभदायक होता है।
  3. स्वास्थ्य लाभ: इससे स्वास्थ्य में सुधार होता है और बीमारियों से मुक्ति मिलती है।
  4. सकारात्मक ऊर्जा: पार्वती चालीसा पढ़ने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  5. धन-संपत्ति: आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
  6. संकटों से मुक्ति: जीवन के संकटों और समस्याओं का समाधान होता है।
  7. संतान सुख: जिन लोगों को संतान सुख की प्राप्ति नहीं हो रही, उनके लिए यह लाभदायक है।
  8. दांपत्य जीवन में सुख: वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
  9. भय का नाश: सभी प्रकार के भय और अज्ञानता का नाश होता है।
  10. शत्रुओं का नाश: दुश्मनों और विरोधियों से रक्षा होती है।
  11. ईश्वरीय कृपा: माँ पार्वती की कृपा प्राप्त होती है।
  12. धार्मिक लाभ: धर्म-कर्म में रुचि बढ़ती है।
  13. आत्मविश्वास में वृद्धि: आत्मविश्वास और साहस में वृद्धि होती है।
  14. मुक्ति का मार्ग: मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
  15. शक्ति और साहस: मानसिक और शारीरिक शक्ति में वृद्धि होती है।
  16. धैर्य और सहनशीलता: जीवन में धैर्य और सहनशीलता आती है।
  17. विद्या और ज्ञान: ज्ञान और विद्या की प्राप्ति होती है।
  18. समाज में प्रतिष्ठा: समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती है।
  19. कर्मों का फल: अच्छे कर्मों का फल शीघ्र ही प्राप्त होता है।
  20. सकारात्मक दृष्टिकोण: जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित होता है।

पाठ विधि

  1. साफ-सफाई: पाठ करने से पहले स्नान करके साफ कपड़े पहनें।
  2. पूजा स्थान: एक शांत और साफ स्थान पर माँ पार्वती की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  3. प्रारंभिक मंत्र: पार्वती चालीसा पाठ शुरू करने से पहले गणेश वंदना और अन्य प्रारंभिक मंत्रों का पाठ करें।
  4. दीप प्रज्वलन: दीपक जलाएं और अगरबत्ती जलाएं।
  5. आसन: स्वच्छ आसन पर बैठकर पाठ करें।
  6. जल और पुष्प: एक लोटा जल और पुष्प माँ पार्वती के चरणों में अर्पित करें।
  7. संकल्प: एक छोटा संकल्प लें कि आप यह पाठ किस उद्देश्य से कर रहे हैं।
  8. पाठ: पूरे मनोयोग से पार्वती चालीसा का पाठ करें।
  9. आरती: पाठ समाप्त होने के बाद पार्वती आरती करें।
  10. प्रसाद: अंत में सभी को प्रसाद वितरित करें।

दिन, अवधि और मुहुर्त

  • दिन: किसी भी दिन पार्वती चालीसा का पाठ किया जा सकता है, लेकिन विशेष रूप से सोमवार और शुक्रवार को करना अधिक शुभ माना जाता है।
  • अवधि: किसी विशेष अवसर पर या नियमित रूप से दैनिक रूप में भी किया जा सकता है।
  • मुहुर्त: ब्रह्म मुहुर्त (सुबह 4-6 बजे) में पाठ करना सबसे अच्छा माना जाता है। इसके अलावा, संध्या समय (शाम 6-8 बजे) में भी पाठ किया जा सकता है।

नियम

  1. शुद्धता: शरीर, मन और वाणी की शुद्धता का ध्यान रखें।
  2. संकल्प: बिना किसी विक्षेप के पाठ करें।
  3. समय: नियमित समय पर पाठ करें।
  4. आसन: एक निश्चित स्थान पर बैठकर पाठ करें।
  5. भक्ति: पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ पाठ करें।
  6. नियमितता: नियमित रूप से पाठ करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  7. प्रसाद: पाठ के बाद प्रसाद का वितरण अवश्य करें।

Get mantra diksha

सावधानियां

  1. ध्यान: पाठ करते समय मन को एकाग्र रखें और इधर-उधर की बातें न सोचें।
  2. स्थिरता: एक ही स्थान पर बैठकर पाठ करें, बार-बार उठना नहीं चाहिए।
  3. समय: नियमित समय पर पाठ करें, समय का उल्लंघन न करें।
  4. श्रद्धा: पाठ करते समय माँ पार्वती के प्रति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखें।
  5. साफ-सफाई: पाठ करने के स्थान को साफ और पवित्र रखें।
  6. साधना: अन्य किसी साधना में विघ्न न डालें।
  7. ध्यान: पाठ करते समय ध्यान और प्राणायाम का भी अभ्यास करें।
  8. धूम्रपान: पाठ के दौरान धूम्रपान, शराब आदि का सेवन न करें।
  9. वाणी: अपशब्दों का प्रयोग न करें।
  10. सात्विक आहार: सात्विक भोजन का सेवन करें।

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पार्वती चालीसा पाठ- सामान्य प्रश्न

  1. पार्वती चालीसा क्या है?
    पार्वती चालीसा माँ पार्वती की स्तुति और महिमा का वर्णन करने वाला भक्ति पाठ है।
  2. पार्वती चालीसा का पाठ कब करना चाहिए?
    किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन विशेष रूप से सोमवार और शुक्रवार को करना शुभ माना जाता है।
  3. पार्वती चालीसा का पाठ कैसे करना चाहिए?
    शुद्धता और श्रद्धा के साथ, नियमित समय पर, साफ-सुथरे स्थान पर, संकल्प लेकर पाठ करें।
  4. पार्वती चालीसा के पाठ से क्या लाभ होते हैं?
    मानसिक शांति, स्वास्थ्य लाभ, आर्थिक समृद्धि, संतान सुख, भय का नाश आदि अनेक लाभ होते हैं।
  5. क्या पार्वती चालीसा का पाठ विशेष अवसरों पर ही करना चाहिए?
    नहीं, पार्वती चालीसा का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है, विशेष अवसरों पर इसका महत्व और बढ़ जाता है।
  6. पार्वती के प्रमुख रूप कौन-कौन से हैं?
    माँ पार्वती के प्रमुख रूप हैं – दुर्गा, काली, उमा, गौरी, आदि शक्ति।
  7. पार्वती चालीसा का पाठ कितनी बार करना चाहिए?
    अपनी श्रद्धा और समय के अनुसार, दैनिक या साप्ताहिक रूप से कर सकते हैं।
  8. क्या पार्वती चालीसा का पाठ करने से शत्रु बाधा दूर होती है?
    हां, पार्वती चालीसा का पाठ करने से शत्रुओं का नाश होता है और सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं।
  9. क्या पार्वती चालीसा का पाठ करने से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है?
    हां, पार्वती चालीसा का पाठ करने से धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है और आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
  10. क्या पार्वती चालीसा का पाठ करने से सभी समस्याओं का समाधान होता है?
    हां, पार्वती चालीसा का पाठ करने से जीवन की अनेक समस्याओं का समाधान होता है।
  11. पार्वती चालीसा का पाठ करने के लिए कौन-कौन से नियम हैं?
    शुद्धता, नियमितता, श्रद्धा, समय का पालन आदि नियम हैं।

Navdurga gupta Chalisa paath for wealth & prosperity

Navdurga gupta Chalisa paath for wealth & prosperity

माता की कृपा दिलाने वाली नवदुर्गा चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन में सुख, समृद्धि, और सफलता की प्राप्ति होती है। चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को दुर्गम कार्यों में सफलता प्राप्त होती है और उन्हें विघ्नों से निजात मिलती है। इस चालीसा के पाठ से व्यक्ति का मानसिक स्थिति मजबूत होता है और उन्हें आत्मविश्वास मिलता है। नवदुर्गा चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक रूप से सुखी और संतुलित जीवन प्राप्त होता है।

नवदुर्गा हिन्दू धर्म में माँ दुर्गा के नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये नौ रूप हैं – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्री। नवरात्रि के नौ दिनों में प्रत्येक दिन इन रूपों की पूजा की जाती है। इन नौ रूपों का महत्व और शक्ति विभिन्न तंत्र-मंत्र, योग-साधना, और धार्मिक अनुष्ठानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

नवदुर्गा चालीसा

ये चालीसा एक महत्वपूर्ण भक्ति पाठ है जिसमें नवदुर्गा के नौ रूपों की महिमा और स्तुति का वर्णन है। इसे नियमित रूप से पढ़ने से भक्तों को माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन में सुख-समृद्धि, शांति और संतोष आता है।

चालीसा

१ जय गिरिवर राज किशोरी। जय महेश मुख चंद चकोरी॥

जय गंगा मइया जटाधारी। जय उमा मंगल करिहारी॥

२ जय अंबिका भवानी जगदम्बे। जय गोरी शंकर प्रिय अम्बे॥

जय शिवानि, जय जय अति प्रियँ। जय जगदम्बा त्रिपुर भैरवी॥

३ जय मातेश्वरी, सृष्टि विधात्री। जय तारे अद्वैत रूपा॥

जय महेश मुख चंद की जोड़ी। जय गिरिराज किशोरी अति गोरी॥

४ जय आद्या शक्ति जगदम्बे। जय जगदम्बा दानव दल खम्बे॥

जय अंबे जय अंबे सुखधामिनी। जय जय अति मंगल गुणखानी॥

५ नवनिधि को सुख देने वाली। दुःख दारिद्र्य विनाशिनी काली॥

सहस्र चंद्रदिवाकर गाता। विष्णु सदा यह जाप सुनाता॥

६ महालक्ष्मी तुम ही भवानी। आदि रूप समस्त भुवानी॥

राम सुमिरि सिय मानस पूजा। नित नवनीत वृतिका दूजा॥

७ ध्यान जोत जपत अनूपा। शम्भु करे सादर यह धूपा॥

सोमनाथ ध्यान धरत निशिदिन। जान सदा तेरी महिमा वदन॥

८ कंचन थार कपूर की बाती। हरिकर ध्यान धरत रघुराती॥

हर हर शम्भु जय अंबिके देवी। जय गोरी शिव मुनि मन बेवी॥

९ नाथ ध्यान धरि ध्यान लगावत। जो यह चालीसा गावे॥

सकल मनोरथ फल पावे॥

लाभ

  1. शांति और मानसिक संतुलन: नवदुर्गा चालीसा का पाठ करने से मन में शांति और स्थिरता आती है।
  2. आध्यात्मिक प्रगति: यह आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वालों के लिए लाभदायक होता है।
  3. स्वास्थ्य लाभ: इससे स्वास्थ्य में सुधार होता है और बीमारियों से मुक्ति मिलती है।
  4. सकारात्मक ऊर्जा: नवदुर्गा चालीसा पढ़ने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  5. धन-संपत्ति: आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
  6. संकटों से मुक्ति: जीवन के संकटों और समस्याओं का समाधान होता है।
  7. संतान सुख: जिन लोगों को संतान सुख की प्राप्ति नहीं हो रही, उनके लिए यह लाभदायक है।
  8. दांपत्य जीवन में सुख: वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
  9. भय का नाश: सभी प्रकार के भय और अज्ञानता का नाश होता है।
  10. शत्रुओं का नाश: दुश्मनों और विरोधियों से रक्षा होती है।
  11. ईश्वरीय कृपा: माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है।
  12. धार्मिक लाभ: धर्म-कर्म में रुचि बढ़ती है।
  13. आत्मविश्वास में वृद्धि: आत्मविश्वास और साहस में वृद्धि होती है।
  14. मुक्ति का मार्ग: मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
  15. शक्ति और साहस: मानसिक और शारीरिक शक्ति में वृद्धि होती है।
  16. धैर्य और सहनशीलता: जीवन में धैर्य और सहनशीलता आती है।
  17. विद्या और ज्ञान: ज्ञान और विद्या की प्राप्ति होती है।
  18. समाज में प्रतिष्ठा: समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती है।
  19. कर्मों का फल: अच्छे कर्मों का फल शीघ्र ही प्राप्त होता है।
  20. सकारात्मक दृष्टिकोण: जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित होता है।

विधि

  1. साफ-सफाई: पाठ करने से पहले स्नान करके साफ कपड़े पहनें।
  2. पूजा स्थान: एक शांत और साफ स्थान पर माँ दुर्गा की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  3. प्रारंभिक मंत्र: नवदुर्गा चालीसा पाठ शुरू करने से पहले गणेश वंदना और दुर्गा चालीसा का संक्षिप्त पाठ करें।
  4. दीप प्रज्वलन: दीपक जलाएं और अगरबत्ती जलाएं।
  5. आसन: स्वच्छ आसन पर बैठकर पाठ करें।
  6. जल और पुष्प: एक लोटा जल और पुष्प माँ दुर्गा के चरणों में अर्पित करें।
  7. संकल्प: एक छोटा संकल्प लें कि आप यह पाठ किस उद्देश्य से कर रहे हैं।
  8. पाठ: पूरे मनोयोग से नवदुर्गा चालीसा का पाठ करें।
  9. आरती: पाठ समाप्त होने के बाद दुर्गा आरती करें।
  10. प्रसाद: अंत में सभी को प्रसाद वितरित करें।

दिन, अवधि और मुहुर्थ

  • दिन: किसी भी दिन नवदुर्गा चालीसा का पाठ किया जा सकता है, लेकिन विशेष रूप से मंगलवार और शुक्रवार को करना अधिक शुभ माना जाता है।
  • अवधि: नवरात्रि के नौ दिनों में प्रतिदिन पाठ करना अत्यंत लाभकारी होता है।
  • मुहुर्थ: ब्रह्म मुहुर्त (सुबह 4-6 बजे) में पाठ करना सबसे अच्छा माना जाता है। इसके अलावा, संध्या समय (शाम 6-8 बजे) में भी पाठ किया जा सकता है।

नियम

  1. शुद्धता: शरीर, मन और वाणी की शुद्धता का ध्यान रखें।
  2. संकल्प: बिना किसी विक्षेप के पाठ करें।
  3. समय: नियमित समय पर पाठ करें।
  4. आसन: एक निश्चित स्थान पर बैठकर पाठ करें।
  5. भक्ति: पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ पाठ करें।
  6. नियमितता: नियमित रूप से पाठ करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  7. प्रसाद: पाठ के बाद प्रसाद का वितरण अवश्य करें।

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नवदुर्गा चालीसा पाठ सावधानियां

  1. ध्यान: पाठ करते समय मन को एकाग्र रखें और इधर-उधर की बातें न सोचें।
  2. स्थिरता: एक ही स्थान पर बैठकर पाठ करें, बार-बार उठना नहीं चाहिए।
  3. समय: नियमित समय पर पाठ करें, समय का उल्लंघन न करें।
  4. श्रद्धा: पाठ करते समय माँ दुर्गा के प्रति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखें।
  5. साफ-सफाई: पाठ करने के स्थान को साफ और पवित्र रखें।
  6. साधना: अन्य किसी साधना में विघ्न न डालें।
  7. ध्यान: पाठ करते समय ध्यान और प्राणायाम का भी अभ्यास करें।
  8. धूम्रपान: पाठ के दौरान धूम्रपान, शराब आदि का सेवन न करें।
  9. वाणी: अपशब्दों का प्रयोग न करें।
  10. सात्विक आहार: सात्विक भोजन का सेवन करें।

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नवदुर्गा चालीसा पाठ- सामान्य प्रश्न

  1. नवदुर्गा चालीसा क्या है?
    नवदुर्गा चालीसा माँ दुर्गा के नौ रूपों की स्तुति और महिमा का वर्णन करने वाला भक्ति पाठ है।
  2. नवदुर्गा चालीसा का पाठ कब करना चाहिए?
    किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन विशेष रूप से मंगलवार और शुक्रवार को करना शुभ माना जाता है।
  3. नवदुर्गा चालीसा का पाठ कैसे करना चाहिए?
    शुद्धता और श्रद्धा के साथ, नियमित समय पर, साफ-सुथरे स्थान पर, संकल्प लेकर पाठ करें।
  4. नवदुर्गा चालीसा के पाठ से क्या लाभ होते हैं?
    मानसिक शांति, स्वास्थ्य लाभ, आर्थिक समृद्धि, संतान सुख, भय का नाश आदि अनेक लाभ होते हैं।
  5. क्या नवदुर्गा चालीसा का पाठ नवरात्रि में ही करना चाहिए?
    नहीं, नवदुर्गा चालीसा का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन नवरात्रि में इसका विशेष महत्व होता है।
  6. नवदुर्गा के नौ रूप कौन-कौन से हैं?
    शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्री।
  7. नवदुर्गा चालीसा पाठ का समय क्या होना चाहिए?
    ब्रह्म मुहुर्त (सुबह 4-6 बजे) और संध्या समय (शाम 6-8 बजे) में पाठ करना सबसे अच्छा माना जाता है।
  8. क्या नवदुर्गा चालीसा का पाठ एक बार में ही करना चाहिए?
    हां, पाठ को बिना किसी बाधा के एक बार में पूरा करना चाहिए।
  9. क्या नवदुर्गा चालीसा का पाठ करते समय कोई विशेष विधि होती है?
    हां, साफ-सफाई, दीप प्रज्वलन, जल और पुष्प अर्पित करना आदि शामिल हैं।
  10. क्या नवदुर्गा चालीसा का पाठ करने से सभी समस्याओं का समाधान होता है?
  11. हां, नवदुर्गा चालीसा का पाठ करने से जीवन के अनेक संकटों और समस्याओं का समाधान होता है।

Baglamukhi gupta Chalisa paath for hidden enemy

Baglamukhi gupta Chalisa paath for hidden enemy

छुपे हुये शत्रो से बचाने वाली बगलामुखी चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को बगलामुखी माता की कृपा के साथ हर तरह की सुरक्षा मिलती है. यह चालीसा कोर्ट-केस, विवाद और विघ्नों से छुटकारा पाने में सहायक होती है और अन्य लाभों के साथ ही समृद्धि और सफलता की प्राप्ति में मदद करती है। इस चालीसा के पाठ से शत्रुओं और अशुभ ताकतों से रक्षा मिलती है और व्यक्ति का जीवन सुरक्षित रहता है। बगलामुखी चालीसा के पाठ से व्यक्ति को आत्मविश्वास और साहस की भावना प्राप्त होती है और उसे अच्छे कर्मों के लिए प्रेरित किया जाता है।

बगलामुखी

बगलामुखी माता, जिन्हें बगलामुखी देवी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म की दस महाविद्याओं में से एक हैं। इन्हें स्तंभन शक्ति की देवी माना जाता है, जो शत्रुओं को निष्क्रिय कर देती हैं और भक्तों की रक्षा करती हैं। बगलामुखी माता की पूजा विशेष रूप से शत्रुओं के नाश और विपत्तियों से बचाव के लिए की जाती है।

चालीसा

श्री बगलामुखी माता चालीसा

दोहा:
जय बगलामुखी देवी, जय जय जगदंबे।
शत्रु संकट हरन कर, वंदन करूं अंबे॥

चौपाई:
जयति जयति बगलामुखी माता, 
शत्रु विनाशिनी वरदात।

पीतांबर धारिणी माते, 
शुभ्र वस्त्र शोभित राते॥

त्रिशूल कमल खड्ग विराजे, 
शुभ्र केश मुकुट छवि साजे।

शत्रु संहारक तुंम हो माई, 
भक्तन की रक्षा कराई॥

जगत पालन हारिणी माता, 
भक्तन की तुंम हो त्राता॥

सभी दु:ख हर लावो माते, 
सुख सम्पत्ति दियो वरदाते॥

बगलामुखी तुंम हो बलशाली, 
शत्रु दलन की हो तुम प्याली॥

शत्रु हरण कर दियो सुख दाता, 
सर्व संकट नाश कर त्राता॥

ध्यान धरूं मैं तुंम्हारा, 
सभी संकट हरन हारा॥

जो भी भक्त तुंम्हें ध्यावे, 
सभी संकट दूर भगावे॥

शत्रु बाधा दूर हो जाए, 
सुख शांति का वास हो पाए॥

तंत्र मंत्र से रक्षा होई, 
भक्तन का कल्याण कर होई॥

बगलामुखी माता की आरती, 
सभी संकट दूर हो भारती॥

जय जय बगलामुखी माई, 
भक्तन की तुंम हो सहाई॥

दोहा:
जय बगलामुखी देवी, जय जय जगदंबे।
शत्रु संकट हरन कर, वंदन करूं अंबे॥

लाभ

  1. शत्रु विनाश: शत्रुओं का नाश होता है और वे निष्क्रिय हो जाते हैं।
  2. विपत्तियों से रक्षा: जीवन में आने वाली विपत्तियों से रक्षा होती है।
  3. कानूनी मामलों में जीत: कानूनी मामलों में सफलता प्राप्त होती है।
  4. आत्मविश्वास में वृद्धि: आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और मनोबल बढ़ता है।
  5. नकारात्मक ऊर्जा का नाश: नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  6. आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक उन्नति होती है और ध्यान में वृद्धि होती है।
  7. धनलाभ: धनलाभ होता है और आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
  8. शारीरिक स्वास्थ्य: शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
  9. मानसिक शांति: मानसिक शांति प्राप्त होती है और तनाव कम होता है।
  10. सुख-शांति: परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
  11. संतान सुख: संतान सुख की प्राप्ति होती है।
  12. सफलता: कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
  13. संपत्ति: संपत्ति में वृद्धि होती है।
  14. कर्ज मुक्ति: कर्ज से मुक्ति मिलती है।
  15. शत्रु बाधा से मुक्ति: शत्रुओं की बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
  16. सकारात्मक दृष्टिकोण: जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास होता है।
  17. संकल्पशक्ति में वृद्धि: संकल्पशक्ति में वृद्धि होती है और मनोबल बढ़ता है।
  18. धैर्य और साहस: धैर्य और साहस में वृद्धि होती है।
  19. आध्यात्मिक शक्ति: आध्यात्मिक शक्ति का विकास होता है।
  20. गृहस्थ सुख: गृहस्थ जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।

विधि

  1. तैयारी: पूजा के दिन सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. पूजा स्थल: पूजा के लिए एक स्वच्छ स्थान चुनें और वहाँ बगलामुखी माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  3. सामग्री: पूजा के लिए पीले फूल, धूप, दीप, अक्षत, हल्दी, चावल, नैवेद्य आदि की व्यवस्था करें।
  4. आरंभ: सबसे पहले गणेश जी का ध्यान करें और फिर बगलामुखी माता की पूजा आरंभ करें।
  5. मंत्र जप: बगलामुखी माता के मंत्र का जाप करें।
  6. चालीसा पाठ: बगलामुखी माता चालीसा का पाठ करें।
  7. आरती: बगलामुखी माता की आरती उतारें।
  8. प्रसाद: पूजा के बाद प्रसाद का वितरण करें और खुद भी ग्रहण करें।
  9. व्रत: व्रत रखने वाले दिन फलाहार करें और अन्न का सेवन न करें।

दिन, मुहूर्त और अवधि

  • दिन: बगलामुखी जयंती या विशेष रूप से मंगलवार और शनिवार को बगलामुखी माता की पूजा की जाती है।
  • मुहूर्त: पूजा का शुभ मुहूर्त रात्री का होता है।
  • अवधि: पूजा की अवधि लगभग 1-2 घंटे की होती है।

नियम

  1. पूजा के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  2. स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें।
  3. व्रत का पालन करें और केवल फलाहार करें।
  4. पूजा के दौरान मन को शुद्ध और शांत रखें।
  5. श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा करें।

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सावधानियां

  1. पूजा के लिए स्वच्छ और शांत वातावरण का चयन करें।
  2. पूजा के दौरान किसी प्रकार की नकारात्मकता को मन में न आने दें।
  3. व्रत का पालन पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ करें।
  4. पूजा के बाद प्रसाद को सभी के साथ बांटें और खुद भी ग्रहण करें।
  5. किसी भी प्रकार की अशुद्धता से बचें।

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महत्वपूर्ण प्रश्न

बगलामुखी माता कौन हैं?
ये माता स्तंभन शक्ति की देवी हैं जो शत्रुओं को निष्क्रिय कर देती हैं और भक्तों की रक्षा करती हैं।

इनकी माता की पूजा कब की जाती है?
बगलामुखी जयंती, मंगलवार और शनिवार के दिन बगलामुखी माता की पूजा की जाती है।

बगलामुखी माता की पूजा के लिए कौन-कौन सी सामग्री चाहिए?
पीले फूल, धूप, दीप, अक्षत, हल्दी, चावल, नैवेद्य आदि की आवश्यकता होती है।

बगलामुखी माता की पूजा का क्या महत्व है?
माता की पूजा करने से शत्रु विनाश, विपत्तियों से रक्षा, और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।

बगलामुखी माता की आरती कब करनी चाहिए?
बगलामुखी माता की आरती पूजा के अंत में की जाती है।

क्या बगलामुखी माता की पूजा के दौरान व्रत रखना आवश्यक है?
हां, बगलामुखी माता की पूजा के दौरान व्रत रखना शुभ माना जाता है।

बगलामुखी माता चालीसा का क्या महत्व है?
माता चालीसा का नियमित पाठ करने से माता की कृपा प्राप्त होती है।

बगलामुखी माता की पूजा के दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
स्वच्छता, शुद्धता, और मन की शांति का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

बगलामुखी माता की पूजा के बाद प्रसाद कैसे बांटना चाहिए?
प्रसाद को सभी के साथ बांटें और खुद भी ग्रहण करें।

बगलामुखी माता की पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है?
रात्री का समय शुभ माना जाता है।

बगलामुखी माता की पूजा के दौरान किन सावधानियों का पालन करना चाहिए?
स्वच्छता का ध्यान रखें, अशुद्धता से बचें, और मन को शांत और शुद्ध रखें।

Sheetla Mata Chalisa paath for health

Sheetla Mata gupta Chalisa paath for health

घर परिवार को सुखमय जीवन देने वाली श्री शीतला माता चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को शीतला माता की कृपा प्राप्त होती है और उनकी रक्षा में सुरक्षा मिलती है। यह चालीसा भक्ति और निष्काम कर्म की भावना को उत्तेजित करती है और व्यक्ति को दुःख और संकट से मुक्ति प्राप्त होती है। शीतला माता चालीसा के पाठ से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और व्यक्ति को सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस चालीसा के पाठ से रोग और बीमारियों से रक्षा मिलती है और व्यक्ति का जीवन सुरक्षित रहता है।

शीतला माता को हिंदू धर्म में विशेष मान्यता प्राप्त है। यह देवी रोगों की देवी मानी जाती हैं और विशेष रूप से चेचक (गर्मिया) से बचाव के लिए पूजा जाती हैं। शीतला माता का पूजन और व्रत करने से व्यक्ति को विभिन्न बीमारियों से रक्षा मिलती है और जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होती है।

चालीसा

शीतला माता चालीसा का पाठ विशेष रूप से शीतला माता के व्रत और पूजन के दौरान किया जाता है। इसका नियमित पाठ करने से माता की कृपा प्राप्त होती है और रोगों से मुक्ति मिलती है।

श्री शीतला माता चालीसा

दोहा:
जय शीतला माता दीन दयाला।
भक्तन को देत सुख बिनवां साला॥

चौपाई:
जय शीतला माता, जय सुख दाता।
जग में सुख संपति को दाता॥

तुम ही हो पालनहार,
सकल दुख दूर होई निवार॥

तुम हो जग में सुख का आधार,
दीन दुखी के हो सहारा॥

सब पर तुम हो ममता धारी,
जग में तुम हो भवानी महारानी॥

कई नामों से तुम जानी जाती,
सर्व रोगों की हो तुंम हरणी॥

शीतला माता तुंम हो प्यारी,
सब जगत की हो रखवारी॥

तुमको जो सुमिरन करता,
सकल दुःख हरि लेता॥

सच्चे दिल से जो ध्यावे,
विपदा से मुक्ति पावे॥

शीतल करत सब जग,
तुम हो सुख की सागर॥

सर्दी गर्मी दूर करावे,
रोग दोष सब हर लावे॥

जो कोई ध्याये सच्चे मन से,
सभी दुख दूर करावे॥

शीतला माता तुम हो प्यारी,
सब जगत की हो रखवारी॥

नित नवमी को जो पूजा करे,
सभी सुख संपति धरे॥

शीतला माता तुम बिन कोई नहीं सहाई,
सच्चे मन से पूजा कराई॥

सारी विघ्न हर लावे,
सुख शांति घर पावे॥

जो कोई भक्त तुम्हारा,
विपदा से वो न हो हारा॥

शीतला माता का पाठ करे,
वो सब दुख से निस्तारे॥

माता तुंम हो जग की माता,
सब जगत की हो रक्षक दाता॥

सच्चे मन से जो तुंम्हें ध्यावे,
सभी दुख दूर करावे॥

शीतला माता की आरती उतारे,
सुख शांति सब जगत पावे॥

शीतला माता की महिमा न्यारी,
सभी सुख संपति धारी॥

जो कोई नित भक्ति करे,
सभी संकट हर ले॥

जय शीतला माता की जयकार,
सभी संकट दूर होइं बारंबार॥

दोहा:
जय शीतला माता दीन दयाला।
भक्तन को देत सुख बिनवां साला॥

लाभ

  1. रोगों से मुक्ति: शीतला माता की पूजा करने से विभिन्न रोगों से मुक्ति मिलती है।
  2. सुख-शांति: परिवार में सुख और शांति बनी रहती है।
  3. संपत्ति: आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और संपत्ति में वृद्धि होती है।
  4. शारीरिक स्वास्थ्य: शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
  5. मानसिक शांति: मानसिक शांति प्राप्त होती है और तनाव कम होता है।
  6. दुखों का नाश: जीवन के सभी दुखों का नाश होता है।
  7. सफलता: कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
  8. संतान सुख: संतान सुख की प्राप्ति होती है।
  9. शत्रु नाश: शत्रुओं का नाश होता है और वे परास्त होते हैं।
  10. दीर्घायु: दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
  11. सकारात्मक ऊर्जा: सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  12. धनलाभ: धनलाभ होता है और धन में वृद्धि होती है।
  13. कर्ज मुक्ति: कर्ज से मुक्ति मिलती है।
  14. विवाह में सफलता: विवाह में आ रही बाधाओं का नाश होता है।
  15. आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक उन्नति होती है।
  16. घर में सुख-समृद्धि: घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
  17. मन्नत पूर्ण होती है: मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
  18. प्रभु कृपा: भगवान की कृपा प्राप्त होती है।
  19. परिवार में कलह का नाश: परिवार में कलह का नाश होता है।
  20. स्वास्थ्य में सुधार: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।

विधि

  1. तैयारी: पूजा के दिन सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. पूजा स्थल: पूजा के लिए एक स्वच्छ स्थान चुनें और वहाँ शीतला माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  3. सामग्री: पूजा के लिए फल, फूल, धूप, दीप, अक्षत, रोली, चावल, नैवेद्य आदि की व्यवस्था करें।
  4. आरंभ: सबसे पहले गणेश जी का ध्यान करें और फिर शीतला माता की पूजा आरंभ करें।
  5. मंत्र जप: शीतला माता के मंत्र का जाप करें।
  6. चालीसा पाठ: शीतला माता चालीसा का पाठ करें।
  7. आरती: शीतला माता की आरती उतारें।
  8. प्रसाद: पूजा के बाद प्रसाद का वितरण करें और खुद भी ग्रहण करें।
  9. व्रत: व्रत रखने वाले दिन फलाहार करें और अन्न का सेवन न करें।

दिन, मुहूर्त और अवधि

  • दिन: शीतला सप्तमी या अष्टमी को शीतला माता की पूजा की जाती है।
  • मुहूर्त: पूजा का शुभ मुहूर्त सूर्योदय के बाद और दोपहर से पहले का होता है।
  • अवधि: पूजा की अवधि लगभग 1-2 घंटे की होती है।

नियम

  1. पूजा के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  2. स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें।
  3. व्रत का पालन करें और केवल फलाहार करें।
  4. पूजा के दौरान मन को शुद्ध और शांत रखें।
  5. श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा करें।

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सावधानियां

  1. पूजा के लिए स्वच्छ और शांत वातावरण का चयन करें।
  2. पूजा के दौरान किसी प्रकार की नकारात्मकता को मन में न आने दें।
  3. व्रत का पालन पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ करें।
  4. पूजा के बाद प्रसाद को सभी के साथ बांटें और खुद भी ग्रहण करें।
  5. किसी भी प्रकार की अशुद्धता से बचें।

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शीतला माता पूजा से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न

  1. शीतला माता कौन हैं?
    शीतला माता रोगों की देवी हैं, जिन्हें विशेष रूप से चेचक (गर्मिया) से बचाव के लिए पूजा जाता है।
  2. शीतला माता की पूजा कब की जाती है?
    शीतला सप्तमी या अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा की जाती है।
  3. शीतला माता की पूजा के लिए कौन-कौन सी सामग्री चाहिए?
    फल, फूल, धूप, दीप, अक्षत, रोली, चावल, नैवेद्य आदि की आवश्यकता होती है।
  4. शीतला माता की पूजा का क्या महत्व है?
    शीतला माता की पूजा करने से रोगों से मुक्ति, सुख-शांति, और आर्थिक समृद्धि प्राप्त होती है।
  5. शीतला माता का मंत्र क्या है?
    शीतला माता के मंत्र (ॐ ऐं ह्रीं शीतलामाते मम् रक्षय कुरु कुरु नमः) का नियमित जाप करने से विशेष लाभ होते हैं।
  6. शीतला माता की आरती कब करनी चाहिए?
    शीतला माता की आरती पूजा के अंत में की जाती है।
  7. क्या शीतला माता की पूजा के दौरान व्रत रखना आवश्यक है?
    हां, शीतला माता की पूजा के दौरान व्रत रखना शुभ माना जाता है।
  8. शीतला माता चालीसा का क्या महत्व है?
    शीतला माता चालीसा का नियमित पाठ करने से माता की कृपा प्राप्त होती है।
  9. शीतला माता की पूजा के दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
    स्वच्छता, शुद्धता, और मन की शांति का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  10. शीतला माता की पूजा के बाद प्रसाद कैसे बांटना चाहिए?
    प्रसाद को सभी के साथ बांटें और खुद भी ग्रहण करें।
  11. शीतला माता की पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है? सूर्योदय के बाद और दोपहर से पहले का समय शुभ माना जाता है।
  12. शीतला माता की पूजा कितनी अवधि में करनी चाहिए?
    लगभग 1-2 घंटे की अवधि में पूजा पूरी की जा सकती है।
  13. शीतला माता की पूजा के क्या लाभ होते हैं?
    रोगों से मुक्ति, सुख-शांति, संपत्ति में वृद्धि, और शत्रु नाश जैसे लाभ प्राप्त होते हैं।

Maha shivaratri Rules

Maha Shivaratri Niyam

महाशिवरात्रि के दिन इस नियम का पालन करके अपने आपको पूरी तरह से भगवान शिव की पूजा मे लीन कर देना चाहिये।

  • क्रोध और नकारात्मक विचार: महाशिवरात्रि के दिन क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष और नकारात्मक विचारों से दूर रहना चाहिए। मन में शांति और सकारात्मकता बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
  • मांसाहार और मदिरापान: इस दिन मांसाहार और मदिरापान से पूरी तरह से परहेज करना चाहिए।
  • झूठ बोलना और धोखा देना: महाशिवरात्रि के दिन सत्य बोलना और दूसरों के साथ ईमानदारी से व्यवहार करना महत्वपूर्ण है।
  • बालों में कंघी और तेल लगाना: इस दिन बालों में कंघी और तेल नहीं लगाना चाहिए।
  • दिन में सोना: महाशिवरात्रि के दिन जागरण करना और भगवान शिव का भजन करना महत्वपूर्ण है।
  • दूसरों को परेशान करना: इस दिन किसी भी प्राणी को परेशान नहीं करना चाहिए, दान पुण्य करना उत्तम है।
  • जूठे बर्तन का उपयोग: महाशिवरात्रि के दिन जूठे बर्तन का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  • शिवलिंग पर भस्म लगाना: भस्म केवल योगी और संन्यासी ही लगाते हैं। यदि आप इनमें से नहीं हैं, तो शिवलिंग पर भस्म न लगाएं।
  • शिवलिंग को स्पर्श करना: महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग को स्पर्श करने से बचना चाहिए।
  • महिलाओं के लिए: महाशिवरात्रि के दिन महिलाओं को रजस्वला होने पर व्रत नहीं रखना चाहिए।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये नियम केवल मार्गदर्शन के लिए हैं।

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Frequently Asked Questions

1. महाशिवरात्रि क्या है?

महाशिवरात्रि हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जो भगवान शिव की आराधना के लिए समर्पित है। यह फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है।

2. महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है?

महाशिवरात्रि भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की रात के रूप में मनाई जाती है। यह दिन शिव भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि इसे भगवान शिव की पूजा और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का पर्व माना जाता है।

3. महाशिवरात्रि के दिन क्या किया जाता है?

इस दिन भक्तगण व्रत रखते हैं, शिवलिंग का अभिषेक करते हैं, पूजा और आरती करते हैं, और रातभर जागरण कर भजन-कीर्तन करते हैं।

4. महाशिवरात्रि का व्रत कैसे रखा जाता है?

व्रत सूर्योदय से शुरू होकर अगले दिन सूर्योदय तक चलता है। इसमें पूरे दिन और रात उपवास किया जाता है, और शिवलिंग की पूजा की जाती है। व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है।

5. महाशिवरात्रि की पूजा विधि क्या है?

  1. स्नान: स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहनें।
  2. शिवलिंग का अभिषेक: गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अभिषेक करें।
  3. फूल और बेलपत्र: शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा, और फूल चढ़ाएं।
  4. धूप-दीप: धूप और दीप जलाएं।
  5. मंत्र जाप: ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप करें।
  6. आरती: शिव जी की आरती करें।
  7. जागरण: पूरी रात जागरण करें और भजन-कीर्तन करें।

6. महाशिवरात्रि का महत्व क्या है?

महाशिवरात्रि का महत्व भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने, जीवन में सुख-समृद्धि लाने, और सभी पापों का नाश करने में है। इस दिन की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है।

7. महाशिवरात्रि की पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है?

महाशिवरात्रि की पूजा रातभर की जाती है और चार पहरों में विभाजित होती है:

  • पहला पहर: रात 6 बजे से 9 बजे तक
  • दूसरा पहर: रात 9 बजे से 12 बजे तक
  • तीसरा पहर: रात 12 बजे से 3 बजे तक
  • चौथा पहर: रात 3 बजे से सुबह 6 बजे तक

8. महाशिवरात्रि का व्रत कौन रख सकता है?

महाशिवरात्रि का व्रत कोई भी व्यक्ति, चाहे महिला हो या पुरुष, रख सकता है। इसे बच्चों और बुजुर्गों के लिए भी सुरक्षित माना जाता है।

9. क्या महाशिवरात्रि के दिन विशेष भोजन बनाया जाता है?

महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति फल, दूध, और उपवास के अन्य पदार्थों का सेवन करते हैं। कुछ लोग साबूदाना खिचड़ी, फलाहारी आलू, और सिंघाड़े का आटा से बने पकवान भी खाते हैं।

10. महाशिवरात्रि पर कौन से मंत्र का जाप करना चाहिए?

महाशिवरात्रि पर “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके अलावा, शिव पंचाक्षर स्तोत्र और रुद्राष्टक का पाठ भी किया जा सकता है।

11. क्या महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर जल चढ़ाना अनिवार्य है?

हां, शिवलिंग पर जल चढ़ाना महाशिवरात्रि के दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। यह भगवान शिव को शीतलता प्रदान करने का प्रतीक है।

12. क्या महाशिवरात्रि पर कोई विशेष कहानी सुनाई जाती है?

महाशिवरात्रि के दिन शिव पुराण, शिव विवाह की कथा, और अन्य शिव संबंधित कहानियां सुनाई जाती हैं।

13. क्या महाशिवरात्रि का व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं?

मान्यता है कि महाशिवरात्रि का व्रत रखने और भगवान शिव की सच्ची भक्ति करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

14. क्या महाशिवरात्रि पर किसी विशेष दिशा में बैठकर पूजा करनी चाहिए?

महाशिवरात्रि पर उत्तर दिशा की ओर मुख करके पूजा करना शुभ माना जाता है।

15. क्या महाशिवरात्रि पर जागरण करना आवश्यक है?

हां, महाशिवरात्रि पर जागरण करना भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए आवश्यक माना जाता है।

16. महाशिवरात्रि के दिन क्या करना वर्जित है?

महाशिवरात्रि के दिन तामसिक भोजन (मांस, मछली, प्याज, लहसुन) का सेवन वर्जित है। साथ ही, किसी भी प्रकार की नकारात्मक गतिविधियों से बचना चाहिए।

17. महाशिवरात्रि पर भगवान शिव के कौन से रूप की पूजा की जाती है?

महाशिवरात्रि पर शिवलिंग के रूप में भगवान शिव की पूजा की जाती है।

18. क्या महाशिवरात्रि के दिन मंदिर जाना आवश्यक है?

मंदिर जाना शुभ माना जाता है, लेकिन यदि संभव न हो तो घर पर भी शिवलिंग की पूजा की जा सकती है।

19. महाशिवरात्रि का व्रत कैसे तोड़ा जाता है?

व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद फल, दूध, और अन्य सात्विक भोजन से किया जाता है।

20. क्या महाशिवरात्रि पर दान करना शुभ माना जाता है?

हां, महाशिवरात्रि पर दान करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। यह पुण्य और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का एक माध्यम है।

महाशिवरात्रि का व्रत और पूजा विधि का पालन करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सभी प्रकार के सुख, शांति और समृद्धि का संचार होता है।

Maha shivaratri puja for family peace

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भक्तो की मनोकामना पूर्ण करने वाला दिन महाशिवरात्रि हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो भगवान शिव को समर्पित है। यह त्योहार हर साल फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। महाशिवरात्रि का अर्थ है “भगवान शिव की रात्रि”। इस दिन भगवान शिव की पूजा, व्रत, ध्यान, और भक्ति की जाती है।

महाशिवरात्रि के दिन लोग उम्मीद करते हैं कि भगवान शिव उनके अपनी भक्ति को स्वीकार करेंगे और उन्हें अपनी कृपा से आशीर्वाद देंगे। इस दिन कई लोग निराहार व्रत रखते हैं और पूजा आदि करते हैं।

Maha shivaratri pujan Booking

वर्णन

महाशिवरात्रि हिंदू धर्म में भगवान शिव की आराधना का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन शिव भक्त दिनभर व्रत रखते हैं और रात भर जागरण कर भगवान शिव की पूजा करते हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था और इस दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं।

लाभ

  1. सभी पापों का नाश: महाशिवरात्रि का व्रत और पूजा करने से सभी पापों का नाश होता है।
  2. आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक उन्नति और आत्मा की शुद्धि होती है।
  3. सुख और समृद्धि: परिवार में सुख और समृद्धि का संचार होता है।
  4. रोगों से मुक्ति: शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है।
  5. विवाह में सुख: विवाह में आने वाली समस्याओं का निवारण होता है और दांपत्य जीवन में सुख आता है।
  6. शत्रुओं पर विजय: शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
  7. मनोकामनाओं की पूर्ति: भक्तों की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
  8. आध्यात्मिक जागरण: आध्यात्मिक जागरण और ध्यान की शक्ति मिलती है।
  9. मृत्यु के भय का नाश: मृत्यु के भय का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  10. धन और समृद्धि: आर्थिक समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है।
  11. कष्टों का निवारण: जीवन के कष्टों का निवारण होता है।
  12. सकारात्मक ऊर्जा: जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  13. बाधाओं का निवारण: जीवन में आने वाली बाधाओं का निवारण होता है।
  14. भय का नाश: सभी प्रकार के भय और चिंता का नाश होता है।
  15. सद्गुणों की वृद्धि: जीवन में सद्गुणों की वृद्धि होती है।
  16. शांति और स्थिरता: मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।
  17. परिवार में शांति: परिवार में शांति और सौहार्द्र बना रहता है।
  18. शिव कृपा: भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
  19. आयुर्वृद्धि: दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की प्राप्ति होती है।
  20. ज्ञान की प्राप्ति: ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति होती है।

पूजा विधि

दिन: महाशिवरात्रि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है।

अवधि: यह पर्व दिनभर और रातभर चलता है। व्रत सुबह से लेकर अगले दिन सुबह तक रखा जाता है।

मुहूर्त:

  1. प्रातः काल: सूर्योदय से पहले जागकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
  2. पूजा का समय: पूजा रातभर की जाती है और चार पहरों में विभाजित होती है। हर पहर में अलग-अलग पूजा विधि होती है।
  • पहला पहर: रात 6 बजे से 9 बजे तक
  • दूसरा पहर: रात 9 बजे से 12 बजे तक
  • तीसरा पहर: रात 12 बजे से 3 बजे तक
  • चौथा पहर: रात 3 बजे से सुबह 6 बजे तक

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पूजा विधि:

  1. स्नान: सबसे पहले स्नान करें और स्वच्छ कपड़े पहनें।
  2. स्थान: पूजा के लिए एक स्वच्छ स्थान चुनें, जहां पर शिवलिंग की स्थापना की जाए।
  3. आसन: किसी आसन पर बैठ जाएं (कुशासन या सफेद वस्त्र का आसन)।
  4. शिवलिंग का अभिषेक: शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अभिषेक करें।
  5. फूल और बेलपत्र: शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा, और फूल चढ़ाएं।
  6. धूप-दीप: धूप और दीप जलाएं।
  7. मंत्र जाप: ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप करें।
  8. रुद्राष्टक पाठ: रुद्राष्टक का पाठ करें।
  9. आरती: शिव जी की आरती करें और भोग लगाएं।
  10. जागरण: पूरी रात जागरण करें और भजन-कीर्तन करें।
  11. व्रत का पारण: अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें।

महाशिवरात्रि का व्रत और पूजा विधि का पालन करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सभी प्रकार के सुख, शांति और समृद्धि का संचार होता है।

Mahakali Chalisa paath for protection

Mahakali Chalisa paath for protection

महाकाली चालीसा एक भक्तिगीत है जो देवी काली की स्तुति और आराधना के लिए गाया जाता है। देवी काली को शक्ति और विनाश की देवी माना जाता है। वे बुराइयों का नाश करने वाली, दुश्मनों को पराजित करने वाली और भक्तों को संरक्षण देने वाली देवी हैं। महाकाली का स्वरूप भयानक और शक्तिशाली होता है, जिसमें वे चार हाथों में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं और उनके गले में नरमुंडों की माला होती है।

महाकाली चालीसा

॥दोहा॥
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो अम्बे दुख हरनी॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥

॥चौपाई॥
शशि ललाट मुख महा विशाल।
नेत्र लाल भृकुटि विकराल॥

रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुंदरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिव शंकर प्यारी॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हे नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

धरा रूप लक्ष्मी जग माही।
श्री नारायण अंग समाही॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दया सिंधु दीजे मन आसा॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥

॥दोहा॥

मातु रूप महाकाली धारा।
देव सभी है स्तुति तुम्हारा॥

॥चौपाई॥
मातंगिनी धूमावती माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥

कर में खप्पर खड्ग विराजे।
जाको देख काल डर भाजे॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हीयो सूला॥

नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुं लोक में डंका बाजत॥

शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

परी गाढ़ संतन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥

अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म मरन तिनकी छुट जाई॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछतायो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

भई प्रकट कृपा तुम करि माई।
शंकर के तब कष्ट मिटाई॥

श्री महाकाल काली के रूपा।
जगत मातु तेरा यहि स्वरूपा॥

श्री महाकाल काली के रूपा।
जगत मातु तेरा यहि स्वरूपा॥

जो कोई यह पढ़े स्तुति हमारी।
तारे संकट होय सुखारी॥

॥दोहा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।
शक्ति रूप को सुमिरन लावे॥

कहैं अष्टमी को कीजै पूजन।
सदा रहें मम कृपा सुबोजन॥

महाकाली चालीसा के लाभ

  1. भय का नाश: महाकाली चालीसा का पाठ करने से सभी प्रकार के भय और चिंता का नाश होता है।
  2. शत्रु पर विजय: शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
  3. संकटों से मुक्ति: जीवन के सभी संकटों से मुक्ति मिलती है।
  4. सकारात्मक ऊर्जा: जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  5. आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक उन्नति और आत्मा की शुद्धि होती है।
  6. स्वास्थ्य लाभ: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  7. परिवार में शांति: परिवार में शांति और सौहार्द्र बना रहता है।
  8. धन और समृद्धि: आर्थिक समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है।
  9. मन की शांति: मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।
  10. सभी इच्छाओं की पूर्ति: भक्तों की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
  11. सद्गुणों की वृद्धि: जीवन में सद्गुणों की वृद्धि होती है।
  12. बाधाओं का निवारण: जीवन में आने वाली बाधाओं का निवारण होता है।
  13. शक्ति और साहस: शक्ति और साहस में वृद्धि होती है।
  14. मृत्यु के भय का नाश: मृत्यु के भय का नाश होता है।
  15. सदगति प्राप्ति: मृत्यु के बाद सदगति प्राप्त होती है।
  16. कष्टों का निवारण: जीवन के कष्टों का निवारण होता है।
  17. अशुभ शक्तियों से बचाव: अशुभ शक्तियों और बुरी नज़र से बचाव होता है।
  18. विवाह में अड़चनें दूर होती हैं: विवाह में आने वाली अड़चनें दूर होती हैं।
  19. बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार: बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  20. माता की कृपा: महाकाली की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

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महाकाली चालीसा पाठ विधि (दिन, अवधि, मुहूर्त)

दिन: महाकाली चालीसा का पाठ विशेष रूप से मंगलवार और शनिवार के दिन किया जाता है, क्योंकि यह दिन देवी काली को समर्पित माने जाते हैं।

अवधि: यह पाठ लगभग 15-20 मिनट का होता है। इसे प्रातः काल और सायं काल में करना उत्तम होता है।

मुहूर्त:

  1. प्रातः काल: सूर्योदय के समय (सुबह 4 से 6 बजे के बीच)।
  2. सायं काल: सूर्यास्त के समय (शाम 6 से 8 बजे के बीच)।

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महाकाली चालीसा विधि

  • स्नान: सबसे पहले स्नान करें और स्वच्छ कपड़े पहनें।
  • स्थान: पूजा के लिए एक शांत और स्वच्छ स्थान चुनें।
  • आसन: किसी आसन पर बैठ जाएं (कुशासन या सफेद वस्त्र का आसन)।
  • दीप जलाएं: दीपक जलाएं और कुछ धूप या अगरबत्ती जलाएं।
  • पूजा सामग्री: फूल, अक्षत (चावल), चंदन, और नैवेद्य (प्रसाद) रखें।
  • महाकाली मंत्र: सबसे पहले महाकाली मंत्र का 3 बार जाप करें।
  • चालीसा पाठ: फिर महाकाली चालीसा का पाठ करें।
  • आरती: पाठ समाप्त होने के बाद आरती करें और प्रसाद वितरण करें।
  • प्रणाम: अंत में माता महाकाली को प्रणाम करें और अपनी प्रार्थना रखें।

Santoshi Mata Chalisa paath for peace & prosperity

Santoshi Mata Chalisa paath for peace & prosperity

संतोषी माता को हिंदू धर्म में संतोष, सुख और शांति की देवी के रूप में पूजा जाता है। वे संतोष और संतुष्टि का प्रतीक हैं और माना जाता है कि उनकी पूजा से भक्तों की सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं। संतोषी माता का स्वरूप बहुत ही सौम्य और दिव्य होता है। वे एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में त्रिशूल धारण करती हैं। उनका वाहन सिंह है और वे एक कमल के आसन पर विराजमान होती हैं। उनकी पूजा विशेष रूप से शुक्रवार के दिन की जाती है और संतोषी माता व्रत कथा के माध्यम से उनकी महिमा का गुणगान किया जाता है।

संतोषी माता चालीसा

॥दोहा॥

वंदौ मातु संतोषी चित स्वरूप विशाल।
विघ्न हरण मंगल करन जय जय जगवंदाल॥

॥चौपाई॥

जय जय संतोषी माता।
जग जननी सुखदाता॥

विनय करत कर जोरि।
संतोषी राखौ मोरि॥

जयति जयति जगदंबा।
दुख हरण सुख संपदा॥

त्रिभुवन में है प्रकाश।
तुम्हरो निर्मल हास॥

पावन रूप अनूपा।
मनहर मंगलमूला॥

जगत कष्ट का हारी।
तुम हो कल्याण कारी॥

मंगल करन कृपाला।
संतोषी सुख माला॥

शरणागत की रक्षा।
करत सदा तुम साक्षा॥

निर्धन की तुम साथी।
निर्बल की बलदाता॥

विनय करूं मैं माता।
मोर मनोरथ पूरन॥

जय जग जननी दयाला।
तुम हो कृपा निधि माला॥

संतोषी मैया प्यारी।
तुम हो सुख की धारा॥

दुख हरण मंगल कारी।
पाप ताप विधि हारी॥

मन में भक्ति जगायौ।
तुमने संतोष दिलायौ॥

सर्व मनोरथ पूरन।
करहु कृपा करुना मूरन॥

व्रत ध्यान आराधन।
संकट हरण सुबोधन॥

पूजन में रत रहौं।
तुम्हरी कृपा पावौं॥

संतोषी मैया मेरी।
तुम बिन दुखिया देरी॥

पूर्ण करो मन कामना।
मुक्त करौ सब शामना॥

कृपा करौ जगदंबा।
सुख संपदा तुम सांबा॥

दीनन की दुख हारी।
तुम हो कल्याण कारी॥

जय जय संतोषी माता।
तुम हो सुख संपदा।

॥दोहा॥

भक्ति प्रेम से मातु के, जो यह पाठ करै।
संतोषी सुख संपदा, सदा सर्वदा भरै॥

संतोषी माता चालीसा के लाभ

  1. संतोष की प्राप्ति: संतोषी माता चालीसा का नियमित पाठ करने से जीवन में संतोष और शांति मिलती है।
  2. मन की शांति: मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।
  3. सुख-समृद्धि: परिवार में सुख और समृद्धि का संचार होता है।
  4. सभी इच्छाओं की पूर्ति: भक्तों की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
  5. आर्थिक संकटों से मुक्ति: आर्थिक संकटों से मुक्ति मिलती है और धन की प्राप्ति होती है।
  6. रोगों से मुक्ति: शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है।
  7. संकटों से बचाव: जीवन के सभी संकटों से बचाव होता है।
  8. सकारात्मक ऊर्जा: जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  9. आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक उन्नति और आत्मा की शुद्धि होती है।
  10. परिवार में शांति: परिवार में शांति और सौहार्द्र बना रहता है।
  11. सद्गुणों की वृद्धि: जीवन में सद्गुणों की वृद्धि होती है।
  12. बाधाओं का निवारण: जीवन में आने वाली बाधाओं का निवारण होता है।
  13. शत्रुओं पर विजय: शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
  14. भय का नाश: जीवन में भय और चिंता का नाश होता है।
  15. धैर्य की वृद्धि: धैर्य और सहनशीलता की वृद्धि होती है।
  16. विवाह में अड़चनें दूर होती हैं: विवाह में आने वाली अड़चनें दूर होती हैं।
  17. बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार: बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  18. मित्रों और रिश्तेदारों का सहयोग: मित्रों और रिश्तेदारों का सहयोग मिलता है।
  19. सुखद भविष्य: भविष्य की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति मिलती है।
  20. संतोषी माता की कृपा: संतोषी माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

पाठ विधि (दिन, अवधि, मुहूर्त)

दिन: संतोषी माता चालीसा का पाठ विशेष रूप से शुक्रवार के दिन किया जाता है, क्योंकि यह दिन माता को समर्पित है।

अवधि: यह पाठ लगभग 15-20 मिनट का होता है। इसे प्रातः काल और सायं काल में करना उत्तम होता है।

मुहूर्त:

  1. प्रातः काल: सूर्योदय के समय (सुबह 4 से 6 बजे के बीच)।
  2. सायं काल: सूर्यास्त के समय (शाम 6 से 8 बजे के बीच)।

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संतोषी माता चालीसा विधि

  1. स्नान: सबसे पहले स्नान करें और स्वच्छ कपड़े पहनें।
  2. स्थान: पूजा के लिए एक शांत और स्वच्छ स्थान चुनें।
  3. आसन: किसी आसन पर बैठ जाएं (कुशासन या सफेद वस्त्र का आसन)।
  4. दीप जलाएं: दीपक जलाएं और कुछ धूप या अगरबत्ती जलाएं।
  5. पूजा सामग्री: फूल, अक्षत (चावल), चंदन, और नैवेद्य (प्रसाद) रखें।
  6. संतोषी माता मंत्र: सबसे पहले संतोषी माता मंत्र का 3 बार जाप करें।
   ॐ ऐं ह्रीं संतोषेश्वरी क्लीं नमः॥
  1. चालीसा पाठ: फिर संतोषी माता चालीसा का पाठ करें।
  2. आरती: पाठ समाप्त होने के बाद आरती करें और प्रसाद वितरण करें।
  3. प्रणाम: अंत में माता संतोषी को प्रणाम करें और अपनी प्रार्थना रखें।

संतोषी माता चालीसा का नियमित पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में शुभता, शांति और समृद्धि का संचार होता है।

Annapurna chalisa paath for prosperity

Annapurna chalisa paath for prosperity

माता अन्नपूर्णा को हिंदू धर्म में भोजन और पोषण की देवी के रूप में पूजा जाता है। उनका नाम ‘अन्नपूर्णा’ दो शब्दों ‘अन्न’ (भोजन) और ‘पूर्णा’ (भरपूर) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है “जो भोजन से भरपूर है”। वे भगवान शिव की पत्नी पार्वती का एक रूप हैं और ऐसा माना जाता है कि वे सभी प्राणियों को भोजन और पोषण प्रदान करती हैं।

माता अन्नपूर्णा का स्वरूप अति दिव्य और सुंदर होता है। वे एक हाथ में अनाज का पात्र (अन्न से भरा हुआ कटोरा) और दूसरे हाथ में एक चम्मच (अन्न वितरण हेतु) धारण करती हैं। उनका चेहरा सौम्य और करुणा से परिपूर्ण होता है। उनकी पूजा विशेष रूप से नवरात्रि और अन्नकूट पर्व के दौरान की जाती है।

अन्नपूर्णा चालीसा

॥दोहा॥

जग जननी जय अन्नपूर्णा, जग अन्ना की खान।
जो जन तेरा नाम ले, ता को तजै न धान॥

॥चौपाई॥
जय जय अन्नपूर्णा जग जननी। 
सकल अनादि सृष्टि जन धनी॥

शैलराज तनया भवानी। 
तजि शंकर रूप महरानी॥

कनक भूषण तन सुंदर। 
सजी सर्व सिंगार समुंदर॥

दसन महा उज्जवल सुतारी। 
पारद हिय मंगल करनी॥

अधर महा रुचिर उक्ति प्यारी। 
धनुष अनल वाही शमशानी॥

दिव्य देह महा सौरभ धारा। 
संजीवनी परशु दुख हारा॥

नीलकंठ रूप हरि बाना। 
जगत तारण गिरीजा नाना॥

दोहा॥

नित्य निरंतर भोजन, जग मा तैं वितरण।
तृप्ति पा यश गावत, सब ही तेरा गुन॥

॥चौपाई॥

शुद्ध भाव से जो जन गावें। 
सकल मनोरथ फल पावें॥

जग जननी निज संकट हारी। 
रखै सदा जयती बनवारी॥

धूप दीप नवैद्य चढ़ावें। 
सकल मनोरथ फल पावें॥

अन्नपूर्णा जय जग माते। 
अन्य देह तन वासर रातें॥

तुमहि सर्व स्वरूप दिखाना। 
मन महा मै मातु ठिकाना॥

जो यह अन्नपूर्णा चालीसा। 
सत्य साकार होइ जग ईशा॥

सकल भूख सब ता की मेटें। 
मंगल महा समृद्धि अरु हेतें॥

॥दोहा॥

भूख प्यास सब मेटि कै, जो यह चालीसा गावे।
अन्नपूर्णा जगदंबिका, तृप्ति सदा सुख पावे॥

अन्नपूर्णा चालीसा के लाभ

1. भोजन की कमी नहीं होती: जो लोग नियमित रूप से अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ करते हैं, उनके घर में कभी भी भोजन की कमी नहीं होती।
2. धन और समृद्धि: आर्थिक समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है।
3. भूख और प्यास का निवारण: भूख और प्यास की समस्या से मुक्ति मिलती है।
4. परिवार में सुख-शांति: परिवार में शांति और सौहार्द्र बना रहता है।
5. सकारात्मक ऊर्जा: जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
6. स्वास्थ्य लाभ: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
7. कष्टों से मुक्ति: जीवन के कष्टों और समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
8. अन्न और धान्य की वृद्धि: घर में अन्न और धान्य की वृद्धि होती है।
9. मानसिक शांति: मानसिक शांति और स्थिरता मिलती है।
10. आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक विकास और आत्मा की शुद्धि होती है।
11. शत्रुओं पर विजय: शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
12. स्मरण शक्ति: स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है।
13. सुखद भविष्य: भविष्य की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति मिलती है।
14. मनोबल में वृद्धि: मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ता है।
15. सद्गति प्राप्ति: मृत्यु के बाद सद्गति प्राप्त होती है।
16. प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा: प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा होती है।
17. शुभ फल प्राप्ति: सभी शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
18. अच्छी संगति: अच्छे लोगों की संगति मिलती है और बुरी संगति से बचाव होता है।
19. अन्नपूर्णा देवी की कृपा: देवी अन्नपूर्णा की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
20. अन्नपूर्णा चालीसा के लाभ

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अन्नपूर्णा चालीसा पाठ विधि (दिन, अवधि, मुहूर्त)

दिन: अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन सोमवार और शुक्रवार विशेष रूप से शुभ माने जाते हैं।

अवधि: यह पाठ लगभग 15-20 मिनट का होता है। इसे प्रातः काल और सायं काल में करना उत्तम होता है।

मुहूर्त:
1. प्रातः काल: सूर्योदय के समय (सुबह 4 से 6 बजे के बीच)।
2. सायं काल: सूर्यास्त के समय (शाम 6 से 8 बजे के बीच)।

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अन्नपूर्णा चालीसा विधि

1. स्नान: सबसे पहले स्नान करें और स्वच्छ कपड़े पहनें।
2. स्थान: पूजा के लिए एक शांत और स्वच्छ स्थान चुनें।
3. आसन: किसी आसन पर बैठ जाएं (कुशासन या सफेद वस्त्र का आसन)।
4. दीप जलाएं: दीपक जलाएं और कुछ धूप या अगरबत्ती जलाएं।
5. पूजा सामग्री: फूल, अक्षत (चावल), चंदन, और नैवेद्य (प्रसाद) रखें।
6. अन्नपूर्णा मंत्र: सबसे पहले अन्नपूर्णा मंत्र का 3 बार जाप करें।जीवन में सद्गुणों की वृद्धि होती है।

ॐ अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्करप्राणवल्लभे।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति॥

  1. चालीसा पाठ: फिर अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ करें।
  2. आरती: पाठ समाप्त होने के बाद आरती करें और प्रसाद वितरण करें।
  3. प्रणाम: अंत में माता अन्नपूर्णा को प्रणाम करें और अपनी प्रार्थना रखें।

अन्नपूर्णा चालीसा का नियमित पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में शुभता, शांति और समृद्धि का संचार होता है।

Gayatri gupta chalisa paath for peace & moksha

Gayatri gupta chalisa paath for peace & moksha

गायत्री चालीसा का नियमित पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में शुभता, शांति और समृद्धि का संचार होता है।

चालीसा

गायत्री चालीसा एक लोकप्रिय धार्मिक पाठ है जिसमें 40 चौपाइयाँ होती हैं। इसे नियमित रूप से पढ़ने से व्यक्ति को मानसिक शांति, सकारात्मकता और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।

ॐ श्री गणेशाय नमः ॥
श्री गायत्री चालीसा

जयति जयति जय गायत्री माता।
सद्गुण सद्भाव सुमति विधाता॥

त्रिपदात्रय महाशक्ति धारी।
सर्व जगत की त्राता तुम्हारी॥

सप्त स्वरूपा षड्भुजा वाली।
सकल विश्व की हो रखवाली॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ाऊँ।
सुमन पत्र से तुम्हे मनाऊँ॥

शुद्ध बुद्धि औ निर्मल मानस।
होवे तुम्हारी कृपा प्रभामय॥

अखिल विश्व निवासिनी माता।
दया दृष्टि से सब सुखदाता॥

वेद त्रयी मम मंत्र पुनीता।
जाप करूँ मैं यथा पुनीता॥

रोग शोक दारिद्र्य मिटावे।
अघ अज्ञान मोह भ्रम हटावे॥

सर्व पाप नष्ट कर डारे।
सर्व दुःख संताप निवारे॥

शुद्ध सत्त्वगुण साधक प्राणी।
धारण करैं अहो वर दानी॥

लक्ष्मी वीणा वर कर धारण।
विपुल धर्म उपकार निवर्तन॥

त्रिपदा सुरसरिता सुखकारी।
शांति प्रज्ञा नीतिनियारी॥

अक्षर चौबीसहिं निज ध्यावा।
जपे नित्य श्रद्धा मन लावा॥

सिद्ध मंत्र जो वेदन रचायो।
महर्षि विश्वामित्र पठायो॥

संपुट पाठ करौं मन लाई।
ध्यान धारि जोशी जप जाई॥

पाठ करौं शुभ संगति साजे।
सकल मनोरथ होय समाजे॥

गायत्री जय जय जप मांही।
पारस मणि समान गुण सांहीं॥

त्राहि त्राहि संकट हरना।
विषम सम संकट को टरना॥

प्रेम सहित निज काज सवारौ।
सकल विघ्न बाधा विनिवारौ॥

मंगल कामना पूरन करिहौं।
दुर्वासना दुष्कर्म टरिहौं॥

सद्गति सुखमय जीव बनायौ।
सकल अघा निदान मिटायौ॥

कामधेनु तुल्य अति सुखकारी।
विष्णुप्रिया ब्रह्माणी माया॥

गायत्री महिमा अति भारी।
जो सत्संगी सो सुखकारी॥

पाठ करै जो मन अनुमाना।
सो पावे धन जन्म निराना॥

सकल कामना ताहि सिद्धि होई।
धर्म नीरस सब संताप खोई॥

साधक सुलभ कष्ट औ दुख नाहीं।
जो यह मंत्र निधि मनमानी॥

सिद्ध साधिका तीनो काल।
पाठ करै सो पावे उरमाल॥

सर्वज्ञ समरथ यह वरदानी।
त्रय तप जापक पुण्यरानी॥

स्वरचित यह चालीसा पद।
जो नर नारी नित्य करै मन।

मन इच्छित फल सो पावै।
कभी न संकटकाल सतावै॥

चतुर्वेद प्रमाण पुराण।
शुभ सुकृत तिथि पावन मान॥

अति पुण्य यह पाठ जो जावे।
निरखत ही फल जाति लावे॥

गायत्री जयति जयति भगवती।
सत्सुकृत पुण्य सुमति सुनीति॥

गायत्री चालीसा के लाभ

  1. मानसिक शांति: गायत्री चालीसा का पाठ करने से मन में शांति और स्थिरता आती है।
  2. ध्यान केंद्रित करना: नियमित रूप से पाठ करने से ध्यान केंद्रित करने की शक्ति बढ़ती है।
  3. नकारात्मक ऊर्जा से बचाव: नकारात्मक ऊर्जा और बुरी दृष्टि से रक्षा होती है।
  4. सकारात्मकता: जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है।
  5. आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक विकास और आत्मा की शुद्धि होती है।
  6. बुद्धि विकास: बुद्धि की वृद्धि होती है और समझ बढ़ती है।
  7. स्वास्थ्य लाभ: मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  8. धन वृद्धि: आर्थिक स्थिति में सुधार और धन की प्राप्ति होती है।
  9. परिवार में सुख-शांति: परिवार में सुख-शांति और सौहार्द्र बना रहता है।
  10. संकटों से मुक्ति: जीवन में आने वाले संकटों से मुक्ति मिलती है।
  11. धार्मिक लाभ: धार्मिक और पुण्य कर्मों में वृद्धि होती है।
  12. शत्रु पर विजय: शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
  13. वास्तु दोष निवारण: घर में वास्तु दोष निवारण होता है।
  14. कार्य में सफलता: हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है।
  15. स्मरण शक्ति: स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है।
  16. सुखद भविष्य: भविष्य की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति मिलती है।
  17. मनोबल में वृद्धि: मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ता है।
  18. पापों से मुक्ति: जीवन के पापों से मुक्ति मिलती है।
  19. शुभ फल प्राप्ति: सभी शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
  20. अच्छी संगति: अच्छे लोगों की संगति मिलती है और बुरी संगति से बचाव होता है।

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पाठ विधि (दिन, अवधि, मुहूर्त)

दिन: गायत्री चालीसा का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन रविवार और गुरुवार विशेष रूप से शुभ माने जाते हैं।

अवधि: यह पाठ लगभग 10-15 मिनट का होता है। इसे ४० दिन तक सूर्योदय और सूर्यास्त के समय करना उत्तम होता है।

मुहूर्त:

  1. प्रातः काल: सूर्योदय के समय (सुबह 4 से 6 बजे के बीच)।
  2. सायं काल: सूर्यास्त के समय (शाम 6 से 8 बजे के बीच)।

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विधि:

  1. स्नान: सबसे पहले स्नान करें और स्वच्छ कपड़े पहनें।
  2. स्थान: पूजा के लिए एक शांत और स्वच्छ स्थान चुनें।
  3. आसन: किसी आसन पर बैठ जाएं (कुशासन या सफेद वस्त्र का आसन)।
  4. दीप जलाएं: दीपक जलाएं और कुछ धूप या अगरबत्ती जलाएं।
  5. पूजा सामग्री: फूल, अक्षत (चावल), चंदन, और नैवेद्य (प्रसाद) रखें।
  6. गायत्री मंत्र: सबसे पहले गायत्री मंत्र का 3 बार जाप करें।
   ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम्।
   भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्॥
  1. चालीसा पाठ: फिर गायत्री चालीसा का पाठ करें।
  2. आरती: पाठ समाप्त होने के बाद आरती करें और प्रसाद वितरण करें।
  3. प्रणाम: अंत में माँ गायत्री को प्रणाम करें और अपनी प्रार्थना रखें।

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कनकधारा स्तोत्र, जिसे आदि शङ्कराचार्य ने रचा है, भगवान लक्ष्मी की कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करता है। इस स्तोत्र को पढ़ने से माता लक्ष्मी की कृपा मिलती है और धन, समृद्धि, और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यहां कनकधारा स्तोत्र का पाठ दिया जा रहा है:

महत्व

कनकधारा लक्ष्मी स्तोत्र आदिशंकराचार्य द्वारा रचित एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है। यह स्तोत्र माँ लक्ष्मी की स्तुति करता है और इसके पाठ से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है।

स्तोत्र

  • 1 अंगं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
    भृंगाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम्।
    अंगीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
    माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः॥1॥
  • 2 मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
    प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
    मालादृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
    सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः॥2॥
  • 3 विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्ष-
    मानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि।
    ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्ध-
    मिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः॥3॥
  • 4 आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दं
    आनन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम्।
    आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
    भूत्याम्बुजं मम भवत्कणिकावदातम्॥4॥
  • 5 बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
    हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
    कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
    कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः॥5॥
  • 6 कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेः
    धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव।
    मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्तिः
    भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः॥6॥
  • 7 प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्
    माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
    मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
    मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः॥7॥
  • 8 दद्याद्दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारां
    अस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे।
    दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं
    नारायणप्रणयिनी नयनाम्बुवाहः॥8॥
  • 9 गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
    शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति।
    सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
    तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै॥9॥
  • 10 श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
    रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै।
    शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
    पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै॥10॥
  • 11 नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
    नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै।
    नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
    नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै॥11॥
  • 12 नमोऽस्तु हेमाम्बुजपीठिकायै
    नमोऽस्तु भूमण्डलनायिकायै।
    नमोऽस्तु देवादिदयापरायै
    नमोऽस्तु शार्ङ्गायुधवल्लभायै॥12॥
  • 13 नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै
    नमोऽस्तु विष्णोरुरसि स्थितायै।
    नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै
    नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै॥13॥
  • 14 नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै
    नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै।
    नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै
    नमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै॥14॥
  • 15 सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
    साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि।
    त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
    मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये॥15॥
  • 16 यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
    सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।
    सन्तनोति वचनाङ्गमानसैः
    त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे॥16॥
  • 17 सरसिजनिलये सरोजहस्ते
    धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
    भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
    त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्॥17॥
  • 18 दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट-
    स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम्।
    प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष-
    लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम्॥18॥
  • 19 कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं
    करुणापूरतराङ्गितैरपाङ्गैः।
    अवलोकय मामकिञ्चनानां
    प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः॥19॥
  • 20 देवि प्रसीद जगदीश्वरि लोकमातः
    कल्याणगात्रि कमलेक्षणजीवनाथे।
    दारिद्र्यभीतिहृदयं शरणागतं मां
    आलोकय प्रतिदिनं सदयैरपाङ्गैः॥20॥

कनकधारा लक्ष्मी स्तोत्र के लाभ

  1. धन-संपत्ति में वृद्धि: आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
  2. समृद्धि: जीवन में समृद्धि और भौतिक सुख की प्राप्ति होती है।
  3. संकट निवारण: जीवन के सभी संकटों का निवारण होता है।
  4. सौभाग्य: सौभाग्य और शुभता की प्राप्ति होती है।
  5. स्वास्थ्य में सुधार: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  6. परिवार में सुख-शांति: परिवार में सुख और शांति बनी रहती है।
  7. व्यापार में उन्नति: व्यापार में वृद्धि और सफलता मिलती है।
  8. कर्ज से मुक्ति: कर्ज से मुक्ति मिलती है।
  9. शत्रु नाशक: शत्रुओं से रक्षा होती है।
  10. प्रसन्नता: मन प्रसन्न रहता है।
  11. विवाह में सफलता: विवाह संबंधी समस्याओं का समाधान होता है।
  12. बुद्धि और ज्ञान: बुद्धि और ज्ञान की वृद्धि होती है।
  13. संकल्प शक्ति: संकल्प शक्ति में वृद्धि होती है।
  14. सकारात्मकता: जीवन में सकारात्मकता आती है।
  15. संतान सुख: संतान सुख की प्राप्ति होती है।
  16. दीर्घायु: दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की प्राप्ति होती है।
  17. मान-सम्मान: समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।
  18. सद्गुण वृद्धि: सद्गुणों की वृद्धि होती है।
  19. आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
  20. विघ्न-बाधा निवारण: सभी प्रकार की विघ्न और बाधाओं का निवारण होता है।

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दिन, अवधि, और मुहूर्त

  • दिन: शुक्रवार और अक्षय तृतीया का दिन माँ लक्ष्मी की पूजा के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
  • अवधि: कनकधारा लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से 21 दिन तक किया जा सकता है। प्रतिदिन कम से कम एक बार इसका पाठ करना चाहिए।
  • मुहूर्त: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 बजे से 6 बजे के बीच) कनकधारा लक्ष्मी स्तोत्र के पाठ के लिए सर्वोत्तम समय है। इसके अतिरिक्त, सुबह और शाम के समय भी पाठ किया जा सकता है।

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कनकधारा लक्ष्मी स्तोत्र पाठ की विधि

  1. स्नान और स्वच्छ वस्त्र: स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. स्थान: एक साफ और शांत स्थान पर बैठें।
  3. दीप जलाना: एक दीपक जलाकर माँ लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र के सामने रखें।
  4. संकल्प: अपने मन में संकल्प लें और माँ लक्ष्मी का ध्यान करें।
  5. आरंभ: ‘ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः’ से पाठ आरंभ करें।
  6. समाप्ति: ‘जय माँ लक्ष्मी’ से पाठ समाप्त करें।
  7. प्रसाद: पाठ के बाद माँ लक्ष्मी को नैवेद्य (प्रसाद) अर्पित करें और फिर उसे सभी में बांटें।
  8. आरती: अंत में माँ लक्ष्मी की आरती करें।

कनकधारा लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ अत्यंत सरल और प्रभावी है। इसके पाठ से भक्तों को माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन में सुख, समृद्धि और धन की वर्षा होती है। कनकधारा लक्ष्मी स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान होता है।म्प्रदायः ।