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Vidveshan Yantra – How to Make Yantra?

Vidveshan Yantra - How to Make Yantra?

विद्वेषण यंत्र कैसे बनाएं – शत्रुओं से बचाव और सकारात्मक ऊर्जा का रहस्य

विद्वेषण यंत्र एक ऐसा अद्भुत और पारंपरिक साधन है, जो परिवार को शत्रुओं, बुरी संगत और भटकाव से बचाने में मदद करता है। इस यंत्र का उपयोग सदियों से हमारी संस्कृति में किया जाता रहा है, और यह आपकी समस्याओं का समाधान करते हुए सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।

महत्वपूर्ण लाभ

  1. परिवार को शत्रुओं से सुरक्षा: यह आपके परिवार को बाहरी शत्रुओं से सुरक्षित रखता है।
  2. गलत दिशा से बचाव: यदि कोई व्यक्ति आपके परिवार के सदस्य को गलत राह पर ले जा रहा है, तो यह यंत्र प्रभावी है।
  3. बुरी संगत से बचाव: यह यंत्र परिवार के किसी सदस्य को बुरी संगत से बचाने का उपाय है।
  4. दुष्ट प्रवृत्तियों से रक्षा: यह नकारात्मक ऊर्जा और दुष्ट प्रभावों को दूर करता है।
  5. आपको बहकाने वाले लोगों से बचाव: अगर कोई आपको या आपके परिवार को बहकाने की कोशिश कर रहा है, तो यह यंत्र कारगर है।
  6. सदस्यों के बीच प्रेम बनाए रखना: परिवार में प्रेम और एकता बनाए रखने में सहायक।
  7. आत्मविश्वास में वृद्धि: यह सकारात्मक ऊर्जा प्रदान कर आत्मविश्वास बढ़ाता है।
  8. ग्रह दोषों का निवारण: यंत्र ग्रहण के समय किए गए दोषों को शांत करता है।
  9. धन-हानि से सुरक्षा: यह यंत्र आर्थिक समस्याओं और नुकसान से बचाता है।
  10. शांति और स्थिरता: परिवार के वातावरण में शांति बनाए रखता है।
  11. नजर दोष से बचाव: बुरी नजर और अकारण कष्टों से बचाने का उपाय है।
  12. सकारात्मक ऊर्जा का संचार: यह यंत्र आपके घर में सकारात्मकता लाने में सहायक है।

Aghor lakshmi sadhana shivir


सामग्री और निर्माण की विधि

सामग्री

विद्वेषण यंत्र बनाने के लिए आपको निम्न सामग्री चाहिए:

  • भोजपत्र या सफेद कागज
  • स्याही के लिए काजल और कोयला
  • कलम के लिए कनेल की लकड़ी या अगरबत्ती की लकड़ी

Get mantra diksha


यंत्र बनाने की विधि

  1. समय का चयन: किसी भी शनिवार या ग्रहण के दिन सूर्यास्त के बाद इस प्रक्रिया को शुरू करें।
  2. सामग्री तैयार करें: एक कमरे में लाइट्स बंद करें और सरसों के तेल का दीपक या मोमबत्ती जलाएं।
  3. स्याही बनाएं: एक कटोरी में काजल और कोयला मिलाकर थोड़ा पानी मिलाएं।
  4. यंत्र का निर्माण: कनेल की लकड़ी से भोजपत्र या कागज पर दिए गए तरीके से यंत्र बनाएं।
  5. मंत्र जाप: यंत्र तैयार होने के बाद 25 मिनट मंत्र का जाप करें। ॥ॐ रं रं आदित्याय क्लीं वषट्॥
  6. पूजा स्थान पर रखें: यंत्र को लैमिनेट करके अपने पूजाघर में रखें।

Vidveshan yakshini sadhana with diksha


अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

1. विद्वेषण यंत्र क्या है?

विद्वेषण यंत्र एक पारंपरिक उपाय है, जिसका उपयोग परिवार को शत्रुओं और नकारात्मक प्रभावों से बचाने के लिए किया जाता है।

2. विद्वेषण यंत्र बनाने में कितना समय लगता है?

यह प्रक्रिया लगभग 30-45 मिनट में पूरी हो जाती है, जिसमें यंत्र निर्माण और मंत्र जाप शामिल हैं।

3. क्या यह यंत्र सभी समस्याओं का समाधान कर सकता है?

यह यंत्र विशेष रूप से शत्रु निवारण, परिवार की सुरक्षा और सकारात्मक ऊर्जा के लिए उपयोगी है।

4. यंत्र को पूजाघर में रखने का क्या महत्व है?

पूजाघर में रखने से यंत्र की शक्ति बढ़ती है और यह आपकी रक्षा करता है।

5. क्या यह यंत्र हर व्यक्ति के लिए प्रभावी है?

हाँ, इसे सही विधि से बनाने और उपयोग करने पर हर व्यक्ति को लाभ होता है।

6. क्या यंत्र बनाने के लिए विशेष सामग्री जरूरी है?

हाँ, भोजपत्र, काजल और कनेल की लकड़ी जैसी सामग्री जरूरी है।

7. क्या इसे ग्रहण के अलावा अन्य समय पर बनाया जा सकता है?

ग्रहण या शनिवार का समय सबसे शुभ होता है, लेकिन विशेष परिस्थितियों में इसे अन्य दिनों में भी बनाया जा सकता है।

8. क्या यह यंत्र बच्चों के लिए भी उपयोगी है?

बिल्कुल, यह बच्चों को बुरी नजर और गलत संगत से बचाने में मदद करता है।

9. क्या मंत्र जाप करना अनिवार्य है?

हां, मंत्र जाप से यंत्र में ऊर्जा का संचार होता है।

10. यंत्र बनाने में कौन-कौन से मंत्रों का उपयोग होता है?

यंत्र निर्माण में उपयोग किए जाने वाले मंत्र विशेष धार्मिक ग्रंथों पर आधारित होते हैं।


अंत मे

विद्वेषण यंत्र आपके परिवार और जीवन को शत्रुओं और नकारात्मक प्रभावों से बचाने का एक प्रभावी माध्यम है। इसे सही विधि से तैयार करके, आप अपने जीवन में शांति, स्थिरता और सकारात्मकता ला सकते हैं।

याद रखे – अच्छी नीयत ही साफलता दिलाती है।


Shri Ayappa Chalisa path for Wealth & Prosperity

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श्री अयप्पा चालीसा पाठ: पूरी विधि, लाभ, और सावधानियाँ

श्री अयप्पा चालीसा पाठ हिंदू धर्म में अद्वितीय स्थान रखता है। यह पाठ भक्तों के लिए आस्था और ऊर्जा का स्रोत है। भगवान अयप्पा को समर्पित यह चालीसा पाठ उनकी कृपा प्राप्त करने का माध्यम है। श्री अयप्पा चालीसा पाठ का नियमित रूप से पाठ करने से मानसिक शांति और जीवन में सकारात्मकता आती है।

भगवान अयप्पा को सच्चे हृदय से समर्पित यह चालीसा पाठ हमें कठिन परिस्थितियों में मार्ग दिखाता है। यह साधना हमें बुराईयों से बचाती है और जीवन में धर्म और सत्य का अनुसरण करने की प्रेरणा देती है।


संपूर्ण श्री अयप्पा चालीसा पाठ

दोहा
श्री गणेश गुरु गौरी, चरण सरन मैं आय।
करहुं कृपा अय्यप्पा स्वामी, संकट दूर हटाय॥

चौपाई

  1. ध्यान धरूं श्री अय्यप्पा का।
    जिनसे मिटे संताप हमारा॥
    करुणामय स्वामी शरण तुम्हारी।
    कृपा करूं जीवन उधारी॥
  2. शिखर पर मंदिर सुहावना।
    सत्य धर्म का है ठिकाना॥
    सब तीर्थों से न्यारा तेरा।
    दर्शन कर हर दुख बसेरा॥
  3. हरि के अंश तुम्हीं अवतारी।
    शत्रु नाशक करुणा बारी॥
    अय्यप्पा दीनों के पालन।
    भक्त हृदय में सदा विराजन॥
  4. कष्ट मिटाते, भोग लगाते।
    स्वामी जग में प्रेम जगाते॥
    ध्यान करें जो सच्चे मन से।
    उन पर कृपा हो पल भर में॥
  5. तीर्थ का यह रूप निराला।
    सब भक्तों को देता सहारा॥
    नाम जपें तो पुण्य मिलेगा।
    स्वामी से सब कष्ट हरेगा॥
  6. स्वर्ण मुकुट सुशोभित मस्तक।
    प्रभु अय्यप्पा का दिव्य वरदहस्त॥
    सागर पार जो भक्त बुलाते।
    उन पर दया दृष्टि बरसाते॥
  7. सिंघासन पर विराजे स्वामी।
    भाल पर तिलक, तेज अनामी॥
    भक्तों के संकट हरते रहते।
    मन में भक्ति दीप जलाते॥
  8. मंत्र जपें, मंदिर में जाएं।
    सब दुःखों का नाश कराएं॥
    सच्चे मन से जो अरज करता।
    स्वामी उसकी चिंता हरता॥

दोहा

शरण में उनकी जो कोई आता।
कष्ट सभी को स्वामी मिटाता॥
प्रेम-भक्ति से जो भी गाए।
उसके जीवन में सुख आए॥

चालीसा का अर्थ
चालीसा पाठ में छुपे हर श्लोक का अर्थ आध्यात्मिक और मानसिक शांति प्रदान करता है। यह भक्तों को दिव्य प्रेरणा देता है।


लाभ

  1. जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  2. कठिन समय में साहस और आत्मविश्वास मिलता है।
  3. भगवान अयप्पा का आशीर्वाद मिलता है।
  4. मनोबल और मानसिक शांति में वृद्धि होती है।
  5. तनाव और चिंता से मुक्ति मिलती है।
  6. साधना में एकाग्रता बढ़ती है।
  7. आध्यात्मिक ज्ञान में बढ़ोतरी होती है।
  8. बाधाओं का अंत होता है।
  9. घर में शांति और समृद्धि आती है।
  10. स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  11. सफलता प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
  12. परिवार में प्रेम और एकता बढ़ती है।
  13. नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।
  14. ईश्वर के प्रति भक्ति मजबूत होती है।
  15. जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
  16. साधना में स्थायित्व प्राप्त होता है।
  17. आत्मा को परम शांति मिलती है।

श्री अयप्पा चालीसा पाठ की विधि

  • दिन: यह पाठ किसी भी पवित्र दिन से शुरू किया जा सकता है।
  • अवधि: 41 दिन लगातार पाठ करना लाभकारी होता है।
  • मुहूर्त: प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त सर्वोत्तम होता है।

पाठ प्रारंभ करने से पहले स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें। भगवान अयप्पा की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाकर ध्यान करें।

Aghor lakshmi sadhana shivir


नियम

  1. चालीसा पाठ हमेशा श्रद्धा और भक्ति के साथ करें।
  2. साधना को गुप्त रखें और दिखावा न करें।
  3. पाठ के दौरान शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
  4. नियमित समय पर पाठ करना जरूरी है।
  5. मानसिक एकाग्रता बनाए रखें।
  6. भोजन सात्विक और शुद्ध रखें।
  7. किसी भी प्रकार के नकारात्मक विचारों से बचें।

Get mantra diksha


श्री अयप्पा चालीसा पाठ के दौरान सावधानियां

  1. साधना के दौरान व्यर्थ बातचीत से बचें।
  2. पाठ के बीच में रुकावट न आने दें।
  3. मन को शांत और स्थिर रखें।
  4. किसी प्रकार की अनुचित गतिविधि से दूर रहें।
  5. पाठ स्थल को स्वच्छ रखें।
  6. मोबाइल या अन्य उपकरणों का उपयोग न करें।
  7. चालीसा पाठ को आदरपूर्वक और समर्पण से करें।

Narsimha sadhana with diksha


श्री अयप्पा चालीसा पाठ: प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1: श्री अयप्पा चालीसा पाठ क्यों किया जाता है?

उत्तर: यह पाठ मानसिक शांति और भगवान अयप्पा की कृपा पाने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 2: इसे कितने दिनों तक करना चाहिए?

उत्तर: इसे 41 दिनों तक नियमित रूप से करना चाहिए।

प्रश्न 3: पाठ का सही समय कौन सा है?

उत्तर: प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में इसे करना सर्वोत्तम है।

प्रश्न 4: क्या साधना को गुप्त रखना चाहिए?

उत्तर: हां, साधना को गुप्त रखना अति आवश्यक है।

प्रश्न 5: क्या कोई विशेष भोजन करना चाहिए?

उत्तर: सात्विक और शुद्ध भोजन का ही सेवन करें।

प्रश्न 6: पाठ के क्या लाभ हैं?

उत्तर: मानसिक शांति, बाधाओं का नाश, और ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है।

प्रश्न 7: क्या पाठ के दौरान ध्यान देना जरूरी है?

उत्तर: हां, ध्यान और एकाग्रता साधना का मुख्य भाग है।

प्रश्न 8: क्या महिलाएं चालीसा पाठ कर सकती हैं?

उत्तर: हां, श्रद्धा और नियम से महिलाएं भी यह पाठ कर सकती हैं।

प्रश्न 9: क्या पाठ किसी भी दिन शुरू कर सकते हैं?

उत्तर: हां, लेकिन शुभ दिन चुनना अधिक लाभकारी है।

प्रश्न 10: क्या पाठ का प्रभाव तुरंत दिखता है?

उत्तर: यह व्यक्ति की श्रद्धा और भक्ति पर निर्भर करता है।


Narasimha Chalisa – Powerful Ritual for Protection & Peace

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नरसिंह चालीसा पाठ: सुरक्षा व शांती

नरसिंह चालीसा पाठ भगवान नरसिंह की कृपा प्राप्त करने का दिव्य माध्यम है। यह पाठ भक्तों को संकटों से मुक्ति दिलाने और जीवन में शांति और सुरक्षा प्रदान करने के लिए किया जाता है। भगवान नरसिंह विष्णु के उग्र अवतार हैं, जिन्होंने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए हिरण्यकश्यप का वध किया।

इस पाठ से भक्त अपने जीवन की समस्याओं से छुटकारा पाते हैं और भगवान की कृपा प्राप्त करते हैं। इस पाठ को श्रद्धा और नियम से करने पर न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि ईश्वर के प्रति भक्ति और विश्वास भी प्रगाढ़ होता है।


संपूर्ण नरसिंह चालीसा पाठ व उसका अर्थ

श्री नरसिंह चालीसा

दोहा:
नमो नरसिंहाय देवाय, सर्वदुःख निवारक।
भक्तों की रक्षा करें, हर कष्ट को टालक।

चौपाई:

जय नरसिंह भगवान महान।
हिरण्यकश्यप दैत्य संहारक जान॥
आपकी महिमा अपरंपार।
भक्त प्रह्लाद के पालनहार॥

चरण कमल में जिनके वास।
उनका कटे भवसागर त्रास॥
शरणागत के तुम हो रक्षक।
त्रैलोक्य के पालनकर्ता भक्षक॥

दैत्यों के लिए भयंकर रूप।
भक्तों को देते अनोखा भूप॥
सिंह के समान तेज है आपका।
भक्तों के लिए कोमल मन आपका॥

हिरण्यकश्यप को जो मारा।
प्रह्लाद को दिया सुख सारा॥
त्रिलोकी की रक्षा करते।
अपने भक्तों से प्रेम करते॥

आपकी कृपा से मिटते संताप।
भक्तजनों को देते आप तपो-जाप॥
आपकी लीला अपरंपार।
संसार में भक्तों के पालनहार॥

सिंह शरीर और मानव मस्तक।
विनाशकारी रूप, दैत्य के वधक॥
सिंह नाद से कंपन हो जग।
त्रिलोक में जय-जयकार लग॥

नरसिंह अवतार अद्भुत अनोखा।
भक्तों के लिए वरदान अनोखा॥
भयमुक्त करें आपका नाम।
आप हो विष्णु का उग्र धाम॥

आपकी शरण में सुख ही सुख।
भय मिटता है, कष्ट हो दूर॥
भक्त प्रह्लाद के पालनहार।
जय नरसिंह, जग पालनहार॥

अर्थ

  1. जय नरसिंह भगवान महान: नरसिंह भगवान की महिमा गाते हुए उनके अद्वितीय रूप और शक्ति का गुणगान।
  2. हिरण्यकश्यप दैत्य संहारक जान: भगवान ने अपने उग्र रूप में हिरण्यकश्यप को नष्ट कर भक्त प्रह्लाद की रक्षा की।
  3. भक्तों के लिए कोमल मन: भगवान नरसिंह का हृदय अपने भक्तों के लिए करुणामय और दयालु है।
  4. सिंह नाद से कंपन हो जग: भगवान नरसिंह के नाद से समस्त ब्रह्मांड कांप उठता है।
  5. आपकी शरण में सुख ही सुख: भगवान नरसिंह की शरण में जाने से हर प्रकार के दुःख और भय दूर होते हैं।

लाभ

  1. भय और संकट से मुक्ति मिलती है।
  2. जीवन में शांति और सुरक्षा का अनुभव होता है।
  3. मन को स्थिरता और शुद्धता प्राप्त होती है।
  4. दुष्ट शक्तियों का नाश होता है।
  5. मानसिक तनाव कम होता है।
  6. आर्थिक समृद्धि प्राप्त होती है।
  7. स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  8. परिवार में सुख और शांति बनी रहती है।
  9. शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
  10. आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  11. भक्त के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  12. भगवान नरसिंह की कृपा से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।
  13. घर में आध्यात्मिक वातावरण बनता है।
  14. बाधाओं और कठिनाइयों का अंत होता है।
  15. पवित्रता और भक्ति की अनुभूति होती है।
  16. भगवान नरसिंह का दिव्य संरक्षण मिलता है।
  17. मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।

विधि

दिन: किसी भी शुभ दिन या मंगलवार और शनिवार को आरंभ करें।

अवधि: 41 दिनों तक नियमित रूप से करें।

मुहूर्त: ब्रह्ममुहूर्त या सूर्यास्त के बाद का समय सबसे उपयुक्त है।

Aghor lakshmi sadhana shivir


नियम

  1. चालीसा पाठ को गुप्त रखें।
  2. शुद्ध मन और शरीर से पाठ करें।
  3. पाठ से पहले भगवान नरसिंह की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाएं।
  4. सफेद या पीले वस्त्र पहनें।
  5. पाठ के दौरान ध्यान भगवान नरसिंह पर केंद्रित रखें।
  6. भोजन में सात्विकता का पालन करें।

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सावधानियां

  1. अशुद्ध मन या स्थान पर पाठ न करें।
  2. अधूरी श्रद्धा से पाठ करने से बचें।
  3. पाठ के दौरान बीच में रुकावट न करें।
  4. चालीसा पाठ के नियमों का उल्लंघन न करें।
  5. किसी भी नकारात्मक विचार को मन में न आने दें।

Narsimha sadhana with diksha for protection


नरसिंह चालीसा पाठ के प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1: नरसिंह चालीसा पाठ क्या है? उत्तर: यह भगवान नरसिंह को समर्पित 40 छंदों का भक्ति पाठ है।

प्रश्न 2: यह पाठ किसके लिए उपयुक्त है? उत्तर: जो व्यक्ति भय, संकट या शत्रुओं से मुक्ति चाहते हैं।

प्रश्न 3: इसे कितने दिन करना चाहिए? उत्तर: नियमित रूप से 41 दिन करना उत्तम है।

प्रश्न 4: किस समय करना चाहिए? उत्तर: ब्रह्ममुहूर्त या सूर्यास्त के बाद।

प्रश्न 5: क्या पाठ गुप्त रखना आवश्यक है? उत्तर: हां, यह साधना की गोपनीयता बनाए रखना महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 6: क्या विशेष वस्त्र पहनने चाहिए? उत्तर: सफेद या पीले वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।

प्रश्न 7: क्या पाठ के दौरान भोग लगाना चाहिए? उत्तर: हां, फल, दूध, और मिठाई का भोग लगाएं।

प्रश्न 8: क्या इसे घर पर कर सकते हैं? उत्तर: हां, घर के शांत और पवित्र स्थान पर कर सकते हैं।

प्रश्न 9: क्या इसे मंदिर में करना अनिवार्य है? उत्तर: नहीं, लेकिन मंदिर में करना अधिक लाभकारी हो सकता है।

प्रश्न 10: क्या बच्चों को शामिल किया जा सकता है? उत्तर: हां, बच्चों को संस्कार और भक्ति सिखाने के लिए।

प्रश्न 11: क्या पाठ के दौरान मंत्र भी जप सकते हैं? उत्तर: हां, नरसिंह मंत्र का जप कर सकते हैं।

प्रश्न 12: क्या इसका प्रभाव तुरंत दिखता है? उत्तर: श्रद्धा और विश्वास के अनुसार परिणाम मिलता है।


Chandra Chalisa Path – Mental Peace & Mind Control

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चंद्र चालीसा पाठ – शीतलता और शांति

चंद्र चालीसा पाठ जीवन में शांति, मानसिक स्थिरता और समृद्धि लाने वाला एक अद्भुत आध्यात्मिक उपाय है। यह पाठ चंद्र ग्रह की कृपा पाने और मन के असंतुलन को समाप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली है। चंद्र देव, जिन्हें शीतलता और भावनाओं का स्वामी माना जाता है, उनकी कृपा से जीवन में सुख-शांति आती है। चंद्र चालीसा पाठ के माध्यम से मनुष्य अपनी आंतरिक शक्तियों को जागृत कर सकता है और मानसिक संतुलन बनाए रख सकता है। यह पाठ न केवल आध्यात्मिक शांति देता है, बल्कि दैनिक जीवन की समस्याओं से भी मुक्ति दिलाता है।


संपूर्ण चंद्र चालीसा पाठ व उसका अर्थ

संपूर्ण चंद्र चालीसा

॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

॥चालीसा॥

चंद्र तेज धर आप सदा, करुणा सिंधु भगवान।
धवल रूप मन मोहिनी, चमत्कार गुण खान॥1॥

शीतलता के देव तुम, मन को देते छांव।
ग्रह दोष सब हरते हो, देते शुभ फल दांव॥2॥

चमक तुम्हारी अद्भुत, जीवन का आधार।
सौम्यता के प्रतीक तुम, करते सब उद्धार॥3॥

शिव शंकर के मस्तक पर, शोभा बढ़ाते आप।
निशा के स्वामी चंद्र देव, कृपा करो अब आप॥4॥

रात्रि में दिखते हो, उज्जवल रूप महान।
जग को देते ज्योति तुम, सब करते कल्याण॥5॥

कृष्ण पक्ष में घटते हो, शुक्ल पक्ष में बढ़ते।
पूर्णिमा का रूप तुम्हारा, चित्त को सुख देते॥6॥

तुमसे होते ज्वार-भाटा, जल में रहते प्राण।
तुमसे ही है बंधुता, यह सृष्टि का विधान॥7॥

शीतल किरणों से भरते, मन में प्रेम अपार।
ज्योतिष में हो श्रेष्ठतम, भाग्य बनाते संवार॥8॥

चंद्र देव की साधना, हर दुख को हरती।
जीवन में लाती शांति, राह नई दिखलाती॥9॥

शिव प्रिय चंद्र देव तुम, साधक को दो ध्यान।
करो कृपा अब देवता, पूर्ण करो अरमान॥10॥

चंद्र दोष जो होते हैं, उनसे मुक्त कराएं।
मन का संतुलन देकर, जीवन सुखमय बनाएं॥11॥

सफेद वस्त्र धारण कर, साधक करे अराध।
धूप, दीप और अक्षत से, हो तुम शीघ्र प्रसन्न॥12॥

श्रद्धा से जो जपे तुम्हें, संकट हरते आप।
चंद्र चालीसा पाठ से, पूर्ण हों सब ताप॥13॥

तुमसे ही संतुलित होता, जीवन का आधार।
तुम बिन शांति न होती, कृपा करो अब अपार॥14॥

करते जो आराधना, उनके कष्ट मिटाते।
सफलता का आशीष देकर, जीवन में खुशियां लाते॥15॥

तुम्हीं से जल का प्रवाह, प्रकृति की शान।
तुम्हारी कृपा से होता, सृष्टि का उत्थान॥16॥

चंद्र देव अब कृपा करो, साधक की अरज सुनो।
चालीसा का यह पाठ सदा, भक्ति में रमण करो॥17॥

॥दोहा॥
जय जय चंद्र देव प्रभु, सब पर करो उपकार।
कष्ट मिटाओ भक्त के, जीवन हो सुखमय अपार॥


चंद्र चालीसा पाठ के लाभ

  1. मानसिक शांति प्राप्त होती है।
  2. भावनात्मक संतुलन बनाए रखता है।
  3. चंद्र ग्रह के दोष शांत होते हैं।
  4. सौंदर्य और आकर्षण में वृद्धि होती है।
  5. विवाह में आने वाली बाधाएं समाप्त होती हैं।
  6. पारिवारिक कलह का नाश होता है।
  7. मन की चंचलता कम होती है।
  8. स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  9. व्यापार में वृद्धि होती है।
  10. दांपत्य जीवन सुखमय बनता है।
  11. ध्यान और साधना में सहायता मिलती है।
  12. शत्रुओं से मुक्ति मिलती है।
  13. ग्रहण दोष समाप्त होता है।
  14. बच्चों की पढ़ाई में सुधार होता है।
  15. आत्मविश्वास बढ़ता है।
  16. शुभ कार्यों में सफलता मिलती है।
  17. समृद्धि और खुशहाली बढ़ती है।

चंद्र चालीसा पाठ की विधि

दिन और अवधि

  • दिन: सोमवार को पाठ प्रारंभ करें।
  • अवधि: 41 दिन तक नियमित करें।
  • मुहूर्त: प्रातः काल सूर्योदय से पहले का समय सर्वोत्तम है।

विधि

  1. स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  2. सफेद वस्त्र या आसन का उपयोग करें।
  3. चांदी की थाली में दीपक जलाएं।
  4. चंद्र देव का ध्यान कर चालीसा पाठ करें।
  5. चावल और सफेद फूल अर्पित करें।

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नियम

  1. पूजा और साधना को गुप्त रखें।
  2. ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  3. शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करें।
  4. साधना के दौरान शराब और मांसाहार से बचें।
  5. पाठ करते समय मन को एकाग्र रखें।
  6. घर का शांत और स्वच्छ स्थान चुनें।
  7. सूर्योदय से पहले पाठ करें।
  8. ध्यान के समय सफेद मोमबत्ती जलाएं।

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सावधानियां

  1. साधना को सार्वजनिक न करें।
  2. पाठ के समय मोबाइल और अन्य उपकरण बंद रखें।
  3. सफेद वस्त्र पहनना अनिवार्य है।
  4. गंदे और अस्वच्छ स्थान पर पाठ न करें।
  5. बिना स्नान किए पाठ न करें।
  6. साधना के समय किसी अन्य कार्य में मन न लगाएं।
  7. चंद्र चालीसा पाठ के दौरान अशुद्ध विचारों से बचें।

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चंद्र चालीसा पाठ से जुड़े प्रश्न और उनके उत्तर

प्रश्न 1: चंद्र चालीसा पाठ कब करना चाहिए?

उत्तर: सोमवार को सूर्योदय से पहले चंद्र चालीसा पाठ करना सबसे उत्तम है।

प्रश्न 2: क्या 41 दिन के अलावा भी पाठ किया जा सकता है?

उत्तर: हां, इसे जीवनभर नियमित रूप से किया जा सकता है।

प्रश्न 3: चंद्र चालीसा पाठ से क्या लाभ होता है?

उत्तर: मानसिक शांति, भावनात्मक संतुलन और जीवन में खुशहाली प्राप्त होती है।

प्रश्न 4: क्या इस पाठ को गुप्त रखना जरूरी है?

उत्तर: हां, साधना को गुप्त रखने से अधिक फल प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 5: क्या स्त्रियां चंद्र चालीसा पाठ कर सकती हैं?

उत्तर: हां, स्त्रियां भी इसे कर सकती हैं।

प्रश्न 6: क्या पाठ के दौरान किसी विशेष आसन का उपयोग करना चाहिए?

उत्तर: सफेद रंग का आसन सर्वोत्तम है।

प्रश्न 7: क्या पाठ के दौरान भोग लगाना आवश्यक है?

उत्तर: हां, सफेद मिठाई और चावल अर्पित करना शुभ माना जाता है।

प्रश्न 8: क्या चंद्र चालीसा पाठ से ग्रहण दोष समाप्त होता है?

उत्तर: हां, यह पाठ ग्रहण दोष को शांत करता है।

प्रश्न 9: चंद्र चालीसा पाठ के लिए कौन से रंग के वस्त्र पहनने चाहिए?

उत्तर: सफेद रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।

प्रश्न 10: क्या पाठ के दौरान कोई मंत्र भी जपना चाहिए?

उत्तर: चालीसा पाठ के दौरान चंद्र मंत्र जपना शुभ होता है।

प्रश्न 11: क्या पाठ के दौरान दीपक जलाना अनिवार्य है?

उत्तर: हां, चांदी के दीपक में घी का दीपक जलाना शुभ होता है।

प्रश्न 12: क्या चंद्र चालीसा पाठ से विवाह में बाधा दूर होती है?

उत्तर: हां, यह पाठ विवाह में आने वाली बाधाओं को समाप्त करता है।


Lord Kshetrapal – Protector of Land, Rituals & Benefits

Lord Kshetrapal - Protector of Land, Rituals & Benefits

भगवान क्षेत्रपाल – भूमि, समृद्धि और शांति के रक्षक

भगवान क्षेत्रपाल हिंदू धर्म के एक पूजनीय देवता हैं, जिन्हें गांव और क्षेत्र की रक्षा का संरक्षक माना जाता है। वे सामान्यतः ग्राम्य देवी-देवताओं के साथ पूजे जाते हैं और भूमि तथा कृषि की उन्नति के प्रतीक हैं।


लाभ

  1. भूमि की सुरक्षा: भूमि विवादों और अपशकुन से बचाव।
  2. कृषि में उन्नति: फसलों की वृद्धि और प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा।
  3. आर्थिक समृद्धि: व्यापार और कार्यक्षेत्र में लाभ।
  4. नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति: बुरी शक्तियों और नजर दोष से बचाव।
  5. परिवार की शांति: परिवार में झगड़ों का समाधान।
  6. बीमारियों का निवारण: स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का समाधान।
  7. संपत्ति का विस्तार: नए प्रोजेक्ट और भूमि खरीद में सफलता।
  8. गांव की रक्षा: प्राकृतिक आपदाओं और बाहरी खतरों से बचाव।
  9. मन की शांति: ध्यान और मानसिक शांति में सहायता।
  10. आध्यात्मिक उन्नति: आंतरिक विकास और साधना में मदद।
  11. दुश्मनों से बचाव: शत्रुओं की बुरी योजनाओं का विफल होना।
  12. धार्मिक उन्नति: संस्कार और परंपराओं का पालन।

क्षेत्रपाल पूजा का मंत्र

मंत्र:
“ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं क्षेत्रपालाय स्वाहा।”

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पूजा विधि

  1. शुभ मुहूर्त में पूजा प्रारंभ करें।
  2. स्वच्छ भूमि पर क्षेत्रपाल का चित्र या प्रतिमा रखें।
  3. पंचामृत और जल से अभिषेक करें।
  4. दीप, अगरबत्ती, और फूल अर्पित करें।
  5. मंत्र जप करें (कम से कम 108 बार)।
  6. नैवेद्य अर्पित कर आरती करें।

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पूजा का शुभ मुहूर्त

  • दैनिक मुहूर्त: प्रातःकाल (6:00 AM से 8:00 AM)
  • विशेष दिन: मंगलवार, अमावस्या, या पूर्णिमा।

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सामान्य प्रश्न

  1. भगवान क्षेत्रपाल कौन हैं?
    भगवान क्षेत्रपाल भूमि और क्षेत्र के रक्षक देवता हैं।
  2. क्या क्षेत्रपाल पूजा सभी कर सकते हैं?
    हां, यह पूजा सभी के लिए फलदायी है।
  3. पूजा के लिए कौन-सा समय सर्वोत्तम है?
    प्रातःकाल या शुभ तिथि।
  4. क्या विशेष सामग्री चाहिए?
    हां, दीप, अगरबत्ती, फूल, और नैवेद्य।
  5. मंत्र कितनी बार जपें?
    कम से कम 108 बार।
  6. क्या क्षेत्रपाल पूजा में गायत्री मंत्र का उपयोग हो सकता है?
    क्षेत्रपाल मंत्र का उपयोग अधिक प्रभावी है।
  7. पूजा में कितने लोग शामिल हो सकते हैं?
    यह व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से की जा सकती है।
  8. क्या क्षेत्रपाल पूजा से भूमि विवाद सुलझ सकते हैं?
    हां, सकारात्मक ऊर्जा भूमि विवादों को सुलझाने में मदद करती है।
  9. क्या इस पूजा से आर्थिक लाभ होता है?
    हां, यह समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती है।
  10. कितनी बार पूजा करें?
    मासिक, विशेषतः अमावस्या और पूर्णिमा पर।

Aashapura Mata – Divine Rituals, Powerful Endless Benefits

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आशापुरा माता: कृपा, पूजा विधि, मंत्र और अद्भुत लाभ

आशापुरा माता को लोकदेवी और भक्तों की इच्छाएं पूरी करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। इनका मुख्य मंदिर गुजरात और राजस्थान में स्थित है। माता का नाम ‘आशापुरा’ इस तथ्य को दर्शाता है कि वे अपने भक्तों की सभी आशाओं को पूरा करती हैं।

लाभ

  1. मनोकामनाओं की पूर्ति।
  2. पारिवारिक सुख-शांति।
  3. धन-समृद्धि में वृद्धि।
  4. शत्रु बाधाओं से मुक्ति।
  5. स्वास्थ्य लाभ और रोगों से छुटकारा।
  6. विवाह संबंधी समस्याओं का समाधान।
  7. संतान प्राप्ति।
  8. मानसिक तनाव से मुक्ति।
  9. आध्यात्मिक उन्नति।
  10. व्यवसाय में सफलता।
  11. यात्रा में सुरक्षा।
  12. नकारात्मक ऊर्जाओं से रक्षा।

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मंत्र

“ॐ ह्रीं आशापूरायै नमः।”
इस मंत्र का 108 बार जाप करने से माता की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।

पूजा विधि

  1. प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. माता की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीपक जलाएं।
  3. पुष्प, अक्षत और चंदन अर्पित करें।
  4. मंत्र का जाप करें।
  5. प्रसाद चढ़ाकर भक्तों में बांटें।

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पूजा का शुभ मुहूर्त

आशापुरा माता की पूजा के लिए मंगलवार और शुक्रवार विशेष शुभ माने जाते हैं। सूर्योदय और प्रदोष काल श्रेष्ठ समय हैं।

FAQ

  1. आशापुरा माता कौन हैं?
    आशापुरा माता लोकदेवी हैं, जो भक्तों की इच्छाएं पूरी करती हैं।
  2. माता की पूजा कब करें?
    मंगलवार और शुक्रवार को पूजा शुभ मानी जाती है।
  3. मुख्य मंदिर कहां है?
    गुजरात के कच्छ और राजस्थान में।
  4. मंत्र जाप कितनी बार करें?
    108 बार।
  5. माता को क्या अर्पित करें?
    पुष्प, अक्षत, चंदन और प्रसाद।
  6. माता की कृपा से क्या लाभ हैं?
    मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  7. क्या विशेष मुहूर्त की आवश्यकता है?
    हां, सूर्योदय या प्रदोष काल में करें।
  8. क्या आशापुरा माता व्रत रखते हैं?
    हां, श्रद्धालु उपवास रखते हैं।
  9. क्या मंदिर जाना आवश्यक है?
    आवश्यक नहीं, घर पर भी पूजा हो सकती है।
  10. पूजा कितने दिन करें?
    9 दिनों तक नवरात्रि में करना शुभ माना जाता है।

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अंत मे

आशापुरा माता की आराधना से जीवन में सुख-शांति और सफलता मिलती है। उनका आशीर्वाद सभी समस्याओं का समाधान करता है।

Indrani Mata – Unlock Success, Harmony & Abundance

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इंद्राणी माता की कृपा से जीवन में समृद्धि, शांति और सफलता प्राप्त करने की विधि

इंद्राणी माता, जिन्हें शचि देवी भी कहा जाता है, देवी इंद्र की पत्नी और देवताओं की रानी हैं। वह शक्ति, समृद्धि और सौभाग्य की देवी मानी जाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, वह अदिति और ऋषि कश्यप की पुत्री हैं। इंद्राणी माता को अपने भक्तों की रक्षा और उनके जीवन में सुख-समृद्धि लाने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है।


लाभ

  1. मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति।
  2. समृद्धि और धन वृद्धि।
  3. पारिवारिक सुख और सद्भाव।
  4. बाधाओं से मुक्ति।
  5. कार्यक्षेत्र में सफलता।
  6. बीमारियों से राहत।
  7. वैवाहिक जीवन में स्थिरता।
  8. नकारात्मक ऊर्जा से बचाव।
  9. बच्चों की उन्नति और सुरक्षा।
  10. यात्रा में सुरक्षा।
  11. मनोकामनाओं की पूर्ति।
  12. दीर्घायु और स्वास्थ्य।

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इंद्राणी माता की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त

  1. दिन: शुक्रवार और पूर्णिमा तिथि को इंद्राणी माता की पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
  2. प्रातः काल: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4:30 बजे से 6:00 बजे तक) पूजा के लिए सर्वोत्तम समय है।
  3. अभिजीत मुहूर्त: दोपहर के समय (लगभग 11:45 बजे से 12:30 बजे तक) पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है।
  4. संध्या समय: सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में पूजा भी शुभ मानी जाती है।
  5. चंद्रमा की स्थिति: जब चंद्रमा रोहिणी, मृगशिरा, या पुष्य नक्षत्र में होता है, तो यह समय विशेष रूप से प्रभावी होता है।
  6. त्रयोदशी, चतुर्दशी, और पूर्णिमा: ये तिथियां इंद्राणी माता की पूजा के लिए उत्तम मानी जाती हैं।

नोट:
शुभ मुहूर्त में पूजा करने से इंद्राणी माता का आशीर्वाद शीघ्र प्राप्त होता है। पंचांग के अनुसार मुहूर्त की पुष्टि अवश्य करें।

इंद्राणी माता का मंत्र

“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शचि देव्यै नमः।”

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पूजा विधि

  1. प्रातः स्नान के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें।
  2. देवी इंद्राणी की प्रतिमा या तस्वीर के सामने दीप जलाएं।
  3. मंत्र का 108 बार जाप करें।
  4. प्रसाद में गुड़ और नारियल अर्पित करें।
  5. माता को पीले फूल चढ़ाएं।
  6. पूजा के अंत में आरती करें।

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इंद्राणी माता से जुड़े सामान्य प्रश्न

  1. इंद्राणी माता कौन हैं?
    इंद्राणी माता इंद्र देव की पत्नी और देवताओं की रानी हैं। वह शक्ति और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं।
  2. इंद्राणी माता की पूजा का क्या महत्व है?
    उनकी पूजा से बाधाओं का नाश होता है, समृद्धि बढ़ती है, और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
  3. इंद्राणी माता की पूजा का शुभ दिन कौन-सा है?
    शुक्रवार और पूर्णिमा तिथि को उनकी पूजा विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है।
  4. क्या इंद्राणी माता का व्रत रखा जा सकता है?
    हां, भक्त इंद्राणी माता का व्रत रखते हैं, विशेषकर महिलाओं के लिए यह व्रत कल्याणकारी माना जाता है।
  5. पूजा में कौन-से मंत्र का जाप करें?
    “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शचि देव्यै नमः” मंत्र का 108 बार जाप करना शुभ होता है।
  6. इंद्राणी माता को कौन-से फूल प्रिय हैं?
    उन्हें पीले और सफेद रंग के फूल विशेष रूप से प्रिय हैं।
  7. क्या इंद्राणी माता की पूजा धन और समृद्धि बढ़ाने में सहायक है?
    हां, उनकी कृपा से जीवन में धन और समृद्धि का आगमन होता है।
  8. इंद्राणी माता की पूजा में कौन-सा प्रसाद अर्पित करें?
    उन्हें गुड़, नारियल और पीले मिठाई का भोग लगाना शुभ माना जाता है।
  9. क्या विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है?
    पूजा में दीपक, पीले फूल, चंदन, और प्रसाद की आवश्यकता होती है।
  10. क्या पूजा घर पर की जा सकती है?
    हां, घर पर स्वच्छता और नियमों का पालन करते हुए उनकी पूजा की जा सकती है।

Riddhi Siddhi Mata – Embrace Wealth & Wisdom

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ऋद्धि सिद्धि माता: समृद्धि, सफलता और शांति का रहस्य

ऋद्धि सिद्धि माता, भगवान गणेश की दो शक्तियों का प्रतीक हैं। ऋद्धि समृद्धि और उन्नति का प्रतीक है, जबकि सिद्धि सफलता और पूर्णता की द्योतक है। इन्हें पूजा करने से जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक संतुलन प्राप्त होता है। ऋद्धि सिद्धि माता की कृपा से सुख-समृद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है।

लाभ

  1. आर्थिक समृद्धि में वृद्धि होती है।
  2. परिवार में शांति और स्नेह बढ़ता है।
  3. मानसिक तनाव कम होता है।
  4. व्यापार और करियर में सफलता मिलती है।
  5. ज्ञान और बुद्धि का विकास होता है।
  6. अवरोध दूर होते हैं।
  7. आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
  8. शत्रु बाधाएं समाप्त होती हैं।
  9. सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  10. विवाह संबंधी समस्याएं हल होती हैं।
  11. बच्चों की प्रगति में सहायक होती हैं।
  12. जीवन में स्थायित्व आता है।

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ऋद्धि सिद्धि माता का मंत्र

“ॐ ऋद्धि सिद्धि सहिताय नमः”
इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार रोज जाप करें।

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पूजा विधि

  1. प्रातः स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहनें।
  2. भगवान गणेश और ऋद्धि सिद्धि माता की प्रतिमा स्थापित करें।
  3. दीपक जलाकर मंत्र जाप करें।
  4. माता को मिठाई और फल अर्पित करें।
  5. अंत में आरती करें और प्रार्थना करें।
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सामान्य प्रश्न

  1. ऋद्धि सिद्धि माता की पूजा कौन कर सकता है?
  2. पूजा के लिए शुभ समय कौन सा है?
  3. क्या व्रत के दौरान यह पूजा की जा सकती है?
  4. पूजा में कौन-कौन से सामग्री चाहिए?
  5. क्या महिलाओं को पूजा करने की अनुमति है?
  6. मंत्र जाप का सही समय क्या है?
  7. पूजा में दीपक का महत्व क्या है?
  8. क्या केवल मंत्र जाप करने से लाभ मिलेगा?
  9. बच्चों की पढ़ाई में कैसे मदद करती हैं?
  10. कितने दिन पूजा करनी चाहिए?

अंत मे

ऋद्धि सिद्धि माता की पूजा जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का अद्भुत साधन है। नियमित पूजा से सफलता, समृद्धि और शांति प्राप्त होती है।

Swaha Devi – The Spiritual Bridge to Divine Energy

Swaha Devi - The Spiritual Bridge to Divine Energy

स्वाहा देवी: यज्ञीय परंपरा की अधिष्ठात्री और उनकी पौराणिक कथा

स्वाहा देवी वैदिक परंपरा में एक प्रमुख देवी के रूप में मानी जाती हैं। वे यज्ञ और अग्नि से जुड़ी देवी हैं। यज्ञ में आहुति के साथ “स्वाहा” शब्द का उच्चारण उनकी उपस्थिति का प्रतीक है। यह शब्द आहुति को शुद्ध और पवित्र बनाता है, जिससे वह अग्नि देव के माध्यम से देवताओं तक पहुँचती है।

देवी को अग्नि देवता की शक्ति और उनकी पत्नी के रूप में भी पूजा जाता है। वैदिक अनुष्ठानों में “स्वाहा” का उच्चारण आवश्यक होता है। देवी का नाम पूर्णता और सफलता का प्रतीक है।


महिमा और महत्व

स्वाहा देवी की उपस्थिति के बिना यज्ञ अधूरा माना जाता है। वे आहुति को शुद्ध करती हैं और उसे देवताओं तक पहुँचाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, वे दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। उनका विवाह अग्नि देव से हुआ, जिनके साथ उन्होंने यज्ञीय परंपरा को सुदृढ़ किया।


संपूर्ण कथा

स्वाहा देवी वैदिक और पौराणिक धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण देवी मानी जाती हैं। वे अग्नि देवता की पत्नी और यज्ञीय कर्म की अधिष्ठात्री देवी हैं। हर यज्ञ, हवन, और वैदिक अनुष्ठान में स्वाहा का उच्चारण अनिवार्य है। स्वाहा देवी को पवित्रता, समर्पण, और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। उनकी कथा विभिन्न पौराणिक ग्रंथों में विस्तृत रूप से वर्णित है।


देवी की उत्पत्ति

स्वाहा देवी दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। जब ब्रह्मांड में यज्ञीय परंपरा आरंभ हुई, तो देवताओं को आहुति प्राप्त करने में कठिनाई होने लगी। यह समस्या तब उत्पन्न हुई जब ऋषियों द्वारा दी गई आहुति देवताओं तक नहीं पहुँच रही थी। इस समस्या को सुलझाने के लिए ब्रह्मा ने स्वाहा देवी को उत्पन्न किया और उन्हें वरदान दिया कि हर यज्ञ में उनका नाम लिया जाएगा।

स्वाहा देवी का नाम हर आहुति के साथ जोड़ने से यज्ञीय ऊर्जा सक्रिय हो गई। उनके माध्यम से आहुति देवताओं तक पहुँची और यज्ञीय परंपरा सुचारु रूप से चलने लगी।


अग्नि देव और स्वाहा देवी का विवाह

अग्नि देव, जो यज्ञ के अधिपति हैं, ने स्वाहा देवी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। विवाह के पश्चात स्वाहा देवी ने अग्नि देव को अधिक शक्ति प्रदान की ताकि वे आहुति को शुद्ध कर देवताओं तक पहुँचाने में समर्थ हो सकें। इस पवित्र युगल ने यज्ञीय परंपरा को और मजबूत बनाया।


ऋषि-पत्नियों और स्वाहा देवी की कथा

एक पौराणिक कथा के अनुसार, अग्नि देव ऋषि-पत्नियों के सौंदर्य से मोहित हो गए थे। उन्होंने उनके प्रति आकर्षण व्यक्त किया, लेकिन इस घटना से देवताओं और ऋषियों में असमंजस उत्पन्न हो गया। देवताओं ने स्वाहा देवी से प्रार्थना की कि वे अग्नि देव को उनके कर्तव्यों की याद दिलाएँ।

स्वाहा देवी ने अपनी दिव्य शक्ति से अग्नि देव को संयमित किया। उन्होंने स्वयं ऋषि-पत्नियों का रूप धारण कर अग्नि देव को तृप्त किया और उनकी शक्ति को यज्ञीय कर्म की ओर मोड़ा। इससे यज्ञीय ऊर्जा को नई दिशा मिली।


त्रेता युग में स्वाहा देवी की भूमिका

त्रेता युग में राजा दशरथ ने पुत्रेष्ठि यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में स्वाहा देवी की शक्ति के माध्यम से आहुति देवताओं तक पहुँची। इस यज्ञ के परिणामस्वरूप भगवान श्री राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। यह कथा दर्शाती है कि स्वाहा देवी का योगदान किसी भी यज्ञ की सफलता में कितना महत्वपूर्ण है।

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स्वाहा देवी का यज्ञीय महत्व

  1. यज्ञीय सिद्धि: स्वाहा देवी बिना आहुति देवताओं तक नहीं पहुँचती।
  2. आहुति का शुद्धिकरण: वे आहुति को पवित्र कर देवताओं तक पहुँचाती हैं।
  3. यज्ञ का पूर्ण होना: उनका नाम लिए बिना यज्ञ अधूरा माना जाता है।
  4. अध्यात्मिक जागरण: उनकी कृपा से साधक की ऊर्जा जागृत होती है।

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लाभ जो स्वाहा देवी की कृपा से प्राप्त होते हैं

  1. यज्ञ की सिद्धि और सफलता।
  2. आहुति के शुद्धिकरण से देवताओं की कृपा।
  3. आत्मिक उन्नति और ऊर्जा जागरण।
  4. मन और शरीर की शुद्धि।
  5. कुंडलिनी शक्ति का जागरण।
  6. आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति।
  7. ब्रह्मांडीय ऊर्जा का संतुलन।
  8. समर्पण और तपस्या में वृद्धि।
  9. जीवन में सकारात्मक बदलाव।
  10. मानसिक शांति और स्थिरता।
  11. शत्रुओं से मुक्ति।
  12. आध्यात्मिक साधना में सफलता।

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FAQs

1. स्वाहा देवी का नाम क्यों लिया जाता है?
यज्ञ में आहुति को देवताओं तक पहुँचाने के लिए स्वाहा देवी का नाम लिया जाता है।

2. क्या स्वाहा देवी सभी यज्ञों में अनिवार्य हैं?
हाँ, उनके बिना यज्ञ अधूरा है।

3. स्वाहा देवी की पूजा कैसे की जाती है?
हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित कर प्रत्येक आहुति के साथ “स्वाहा” कहें।

4. क्या वे केवल वैदिक यज्ञों तक सीमित हैं?
नहीं, हवन और पूजा में भी उनकी उपासना होती है।

5. क्या स्वाहा देवी का कोई विशेष मंत्र है?
हाँ, “ॐ स्वाहा देव्यै नमः” मंत्र का जाप करें।

6. क्या स्वाहा देवी का नाम लेना आवश्यक है?
आहुति की सफलता के लिए उनका नाम आवश्यक है।

7. क्या स्वाहा देवी का स्वरूप अग्नि से जुड़ा है?
जी हाँ, वे अग्नि की ज्वाला का प्रतीक हैं।


मुहूर्त: स्वाहा देवी की उपासना का सही समय

स्वाहा देवी की पूजा वसंत पंचमी, माघ पूर्णिमा, और महाशिवरात्रि जैसे विशेष दिनों पर अधिक प्रभावी मानी जाती है।

Tripur Madanakshi Mantra – Unlocking the Power of Attraction

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त्रिपुर मदनाक्षी मंत्र: एक अद्भुत रहस्य

त्रिपुर मदनाक्षी मंत्र एक शक्तिशाली तांत्रिक साधना है, जो आपकी आंतरिक ऊर्जा को जागृत करती है। यह मंत्र जीवन में आकर्षण, शांति और सफलता लाने का माध्यम है। साधक को इस मंत्र का विधिपूर्वक जाप करने से अद्भुत लाभ प्राप्त होते हैं।


विनियोग मंत्र और उसका अर्थ

मूल मंत्र:

“ॐ अस्य श्री त्रिपुर मदनाक्षी मंत्रस्य, ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, महात्रिपुरसुन्दरी देवता, ऐं बीजं, क्लीं शक्तिः, सौः कीलकं, मम सर्वसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः।”

अर्थ: यह मंत्र त्रिपुर मदनाक्षी देवी को समर्पित है। इसका जप साधक के सभी कार्यों की सिद्धि के लिए होता है। इसमें ब्रह्मा ऋषि, गायत्री छंद और महात्रिपुरसुंदरी देवी मुख्यत: सम्मिलित हैं।


दिग्बंधन मंत्र और उसका अर्थ

मूल मंत्र:

“ॐ ह्रीं दिग्बंधनाय नमः।”

अर्थ: इस मंत्र के जाप से साधक अपनी ऊर्जा को सुरक्षित रखता है। यह मंत्र दसों दिशाओं को बांधकर सुरक्षा कवच बनाता है।


त्रिपुर मदनाक्षी मंत्र और उसका संपूर्ण अर्थ

मूल मंत्र:
“ॐ ह्रीं त्रिपुर मदनाक्षे आकर्षय आकर्षय क्लीं नमः।”

संपूर्ण अर्थ:
यह मंत्र त्रिपुर मदनाक्षी देवी का आह्वान है, जो आकर्षण और ऊर्जा की देवी मानी जाती हैं।

  • “ॐ”: यह ब्रह्मांडीय ध्वनि है, जो सकारात्मक ऊर्जा और शांति का स्रोत है।
  • “ह्रीं”: यह बीज मंत्र है, जो आध्यात्मिक शक्ति और देवी की कृपा को प्रकट करता है।
  • “त्रिपुर मदनाक्षे”: यह त्रिपुर देवी के उस स्वरूप को इंगित करता है जो मन और आकर्षण पर नियंत्रण रखती हैं।
  • “आकर्षय आकर्षय”: साधक यहां देवी से अनुरोध करता है कि वे उसके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और आकर्षण को बढ़ाएं।
  • “क्लीं”: यह बीज मंत्र प्रेम, समर्पण और आनंद का प्रतीक है।
  • “नमः”: यह समर्पण और नमन का भाव व्यक्त करता है।

भावार्थ:
हे त्रिपुर मदनाक्षी देवी, आपको नमन करता हूं। कृपया मुझे अपने दिव्य आकर्षण और कृपा से आशीर्वाद दें। मेरे जीवन में समृद्धि, प्रेम, और सकारात्मकता का संचार करें। यह मंत्र साधक के मन, शरीर और आत्मा को देवी की शक्ति से जोड़ने का माध्यम है।


जप काल में इन चीजों का सेवन अधिक करें

  1. फलों का रस
  2. सूखे मेवे
  3. मिश्री और पान
  4. तुलसी का जल
  5. सादे भोजन का सेवन

त्रिपुर मदनाक्षी मंत्र के अद्भुत लाभ

  • आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  • व्यक्तित्व में आकर्षण बढ़ता है।
  • रिश्तों में मधुरता आती है।
  • मानसिक शांति प्राप्त होती है।
  • कार्यों में सफलता मिलती है।
  • धन संबंधी परेशानियां दूर होती हैं।
  • शत्रु पर विजय मिलती है।
  • आध्यात्मिक उन्नति होती है।
  • नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा होती है।
  • स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  • प्रेम संबंधों में मजबूती आती है।
  • पारिवारिक जीवन सुखद होता है।
  • ईर्ष्या और द्वेष समाप्त होता है।
  • मनोबल और ऊर्जा बढ़ती है।
  • जीवन में स्थिरता आती है।
  • नई योजनाओं में सफलता मिलती है।
  • बाधाएं दूर होती हैं।
  • जीवन में समृद्धि आती है।

पूजा सामग्री और मंत्र विधि

पूजा सामग्री:

  • सिंदूर
  • अक्षत
  • दीपक और घी
  • पुष्प (लाल और सफेद)
  • चंदन
  • शुद्ध जल
  • माला (रुद्राक्ष या स्फटिक)

विधि:

  1. एक साफ और शांत स्थान चुनें।
  2. देवी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
  3. पुष्प और चंदन अर्पित करें।
  4. शुद्ध जल से स्नान कर मंत्र जाप करें।
  5. माला से मंत्र का जाप करें।

मंत्र जाप का दिन, अवधि और मुहूर्त

दिन: शुक्रवार और पूर्णिमा का दिन सबसे शुभ माना जाता है।

अवधि: 20 मिनट तक प्रतिदिन 18 दिनों तक जाप करें।

मुहूर्त: ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) जाप के लिए सर्वोत्तम है।

Aghor lakshmi sadhana shivir


मंत्र जाप के नियम

  1. केवल 20 वर्ष से अधिक उम्र के लोग जाप करें।
  2. स्त्री और पुरुष दोनों जाप कर सकते हैं।
  3. काले और नीले रंग के कपड़े न पहनें।
  4. धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार से बचें।
  5. ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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जाप के समय सावधानियां

  • जाप करते समय मन को एकाग्र रखें।
  • स्थान शुद्ध और शांत हो।
  • बिना स्नान किए जाप न करें।
  • अशुद्ध वस्तुओं का स्पर्श न करें।
  • नियमित समय पर जाप करें।

Tripur madnakshi sadhana with diksha


त्रिपुर मदनाक्षी मंत्र से जुड़े प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1: यह मंत्र किस उद्देश्य से किया जाता है? उत्तर: यह मंत्र जीवन में शांति, समृद्धि और आकर्षण बढ़ाने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 2: क्या यह मंत्र स्त्रियां भी कर सकती हैं? उत्तर: हां, स्त्री और पुरुष दोनों यह मंत्र जाप कर सकते हैं।

प्रश्न 3: जाप के लिए कौन सा दिन सबसे शुभ है? उत्तर: शुक्रवार और पूर्णिमा का दिन सबसे शुभ माना जाता है।

प्रश्न 4: जाप के दौरान क्या पहनना चाहिए? उत्तर: सफेद, लाल या पीले रंग के कपड़े पहनें।

प्रश्न 5: मंत्र जाप के लिए कौन सी माला सर्वोत्तम है? उत्तर: रुद्राक्ष या स्फटिक की माला सर्वोत्तम है।

प्रश्न 6: क्या जाप के दौरान अन्य मंत्र भी जप सकते हैं? उत्तर: नहीं, केवल इस मंत्र पर ध्यान केंद्रित करें।

प्रश्न 7: क्या मंत्र जाप में कोई विशेष आसन का उपयोग करना चाहिए? उत्तर: हां, कुशासन या सिद्धासन का उपयोग करें।

प्रश्न 8: क्या जाप के बाद प्रसाद अर्पित करना चाहिए? उत्तर: हां, फल और मिश्री का प्रसाद अर्पित करें।

प्रश्न 9: क्या इस मंत्र का प्रभाव तुरंत दिखता है? उत्तर: साधक की श्रद्धा और नियम पालन पर निर्भर करता है।

प्रश्न 10: क्या जाप के दौरान धूप या दीपक आवश्यक है? उत्तर: हां, दीपक और धूप से वातावरण शुद्ध होता है।

प्रश्न 11: क्या जाप के लिए समूह साधना कर सकते हैं? उत्तर: व्यक्तिगत साधना अधिक प्रभावी मानी जाती है।

प्रश्न 12: क्या जाप के समय ध्यान आवश्यक है? उत्तर: हां, ध्यान से मंत्र की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।

Pushya Nakshatra Mystery – for success

Pushya Nakshatra Mystery - for success

पुष्य नक्षत्र: सफलता, समृद्धि और दान की शक्ति को समझें

पुष्य नक्षत्र भारतीय ज्योतिष में सबसे शुभ और शक्तिशाली नक्षत्रों में से एक माना जाता है। इसे “राजनक्षत्र” भी कहा जाता है, जो समृद्धि, शांति और सफलता का प्रतीक है। जब पुष्य नक्षत्र विभिन्न दिनों में आता है, तो यह अलग-अलग लाभ और विशेषताओं को दर्शाता है। आइए समझते हैं सोम पुष्य से लेकर रवि पुष्य तक की महत्ता और इन दिनों में की जाने वाली उपासना।

सोम पुष्य (सोमवार + पुष्य नक्षत्र)

सोमवार को पुष्य नक्षत्र का योग चंद्रमा की ऊर्जा को बढ़ाता है। इस दिन स्वास्थ्य, मन की शांति और मानसिक शक्ति के लिए शिवलिंग पर जल चढ़ाकर पूजा करें।

भौम पुष्य (मंगलवार + पुष्य नक्षत्र)

मंगलवार को पुष्य नक्षत्र का प्रभाव साहस और शक्ति को बढ़ाता है। हनुमानजी की पूजा और रामचरितमानस का पाठ लाभदायक होता है।

बुध पुष्य (बुधवार + पुष्य नक्षत्र)

बुधवार को पुष्य नक्षत्र व्यापार और शिक्षा में लाभ देता है। गणेशजी की पूजा करें और बुध मंत्र का जाप करें।

गुरु पुष्य (गुरुवार + पुष्य नक्षत्र)

गुरुवार को पुष्य नक्षत्र गुरु ग्रह की कृपा को सक्रिय करता है। विष्णु भगवान की पूजा और दान करने से आशीर्वाद मिलता है।

शुक्र पुष्य (शुक्रवार + पुष्य नक्षत्र)

शुक्रवार को पुष्य नक्षत्र सुख-सौंदर्य और वैवाहिक जीवन को बेहतर बनाता है। देवी लक्ष्मी की पूजा करें और कमल के फूल अर्पित करें।

शनि पुष्य (शनिवार + पुष्य नक्षत्र)

शनिवार को पुष्य नक्षत्र कर्म और न्याय को प्रेरित करता है। शनिदेव की पूजा करें और जरूरतमंदों को दान करें।

रवि पुष्य (रविवार + पुष्य नक्षत्र)

रविवार को पुष्य नक्षत्र आत्मविश्वास और नेतृत्व गुणों को बढ़ावा देता है। सूर्यदेव की पूजा करें और आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।


पुष्य नक्षत्र के दौरान कौन सी पूजा करें?

धन, सफलता, और शांति के लिए गुरु, लक्ष्मी या शिव की पूजा करें। यह समय शुभ कार्यों जैसे खरीदारी, नया व्यवसाय शुरू करने और दान के लिए उपयुक्त होता है।

पुष्य नक्षत्र में दान का महत्व और उपाय

पुष्य नक्षत्र को दान और पुण्य कर्मों के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। इस दिन किए गए दान का फल कई गुना बढ़कर मिलता है। विभिन्न समस्याओं और ग्रह दोषों के निवारण के लिए पुष्य नक्षत्र में दान का महत्व और सुझाव नीचे दिए गए हैं:

दान करने के लाभ

  1. शनि दोष निवारण: शनि पुष्य में काले तिल, सरसों का तेल और लोहे का दान करने से शनि की कृपा प्राप्त होती है।
  2. धन प्राप्ति: गुरु पुष्य में पीली वस्तुओं का दान जैसे चने की दाल, हल्दी और पीले कपड़े से धन वृद्धि होती है।
  3. सुख-शांति: सोम पुष्य में दूध, चावल और सफेद वस्त्र दान करने से घर में शांति और समृद्धि बढ़ती है।
  4. पापों का नाश: रवि पुष्य में गेहूं, गुड़ और तांबे का दान करने से पापों का क्षय होता है।

Aghor lakshmi sadhana shivir

पुष्य नक्षत्र में दान के प्रकार

  1. अनाज दान: चावल, गेहूं, दालें और अन्य अनाज।
  2. वस्त्र दान: सर्दियों में गर्म कपड़े और जरूरतमंदों को पुराने या नए वस्त्र दान करें।
  3. धातु दान: सोना, चांदी, तांबा, लोहे जैसी धातुओं का दान।
  4. वस्त्र और जूते: शनि दोष निवारण के लिए जूते और चप्पलों का दान।
  5. भोजन दान: जरूरतमंदों को भोजन कराना सबसे बड़ा पुण्य कार्य है।

Get mantra diksha

विशेष दान के उपाय

  • गुरु दोष के लिए: पीली मिठाई, चने की दाल और किताबों का दान करें।
  • चंद्रमा की शांति के लिए: दूध, चीनी और मोती।
  • मंगल दोष के लिए: मसूर दाल, गुड़ और लाल कपड़े।
  • राहु-केतु दोष के लिए: नारियल, काले तिल और सफेद चंदन।

पुष्य नक्षत्र में दान करना न केवल आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाता है, बल्कि यह समाज और धर्म के प्रति आपकी जिम्मेदारी को भी पूरा करता है।

Rati sundari yogini sadhana with diksha


सामान्य प्रश्नों के उत्तर

  1. सोम पुष्य में क्या लाभ होता है?
    सोम पुष्य में स्वास्थ्य, मानसिक शांति और चंद्रमा की ऊर्जा बढ़ाने के लिए शिवजी की पूजा करना लाभदायक है।
  2. गुरु पुष्य का महत्व क्या है?
    गुरु पुष्य में धन, समृद्धि और शिक्षा से संबंधित कार्य करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
  3. पुष्य नक्षत्र में क्या खरीदें?
    धन, गहने, संपत्ति और वाहन खरीदना शुभ होता है। यह नए व्यवसाय के लिए भी उपयुक्त है।
  4. क्या पुष्य नक्षत्र विवाह के लिए शुभ है?
    नहीं, पुष्य नक्षत्र विवाह के लिए शुभ नहीं है। यह व्यापार और खरीदारी के लिए ज्यादा उपयुक्त है।
  5. भौम पुष्य में कौन सी पूजा करें?
    भौम पुष्य में हनुमानजी की पूजा करें और संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ करें।
  6. क्या शनि पुष्य में दान करना जरूरी है?
    हां, शनि पुष्य में गरीबों और जरूरतमंदों को दान करने से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है।
  7. शुक्र पुष्य में क्या उपाय करें?
    शुक्र पुष्य में देवी लक्ष्मी की पूजा करें और घर में शांति व सौंदर्य के लिए सफेद वस्त्र या चावल दान करें।
  8. बुध पुष्य का विशेष महत्व क्या है?
    बुध पुष्य शिक्षा, बुद्धिमत्ता और व्यापार के लिए विशेष रूप से शुभ है। गणेशजी की पूजा करें।
  9. रवि पुष्य में कौन-से मंत्र का जाप करें?
    रवि पुष्य में “ॐ सूर्याय नमः” मंत्र का जाप करें और आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।
  10. पुष्य नक्षत्र में संपत्ति खरीदना शुभ है?
    हां, पुष्य नक्षत्र में जमीन, घर या अन्य संपत्ति खरीदना अत्यंत शुभ माना जाता है।
  11. इस दिन कौन-से रत्न पहनने चाहिए?
    पुष्य नक्षत्र में पुखराज, हीरा, मोती या नीलम रत्न ज्योतिषीय परामर्श के अनुसार धारण करें।
  12. पुष्य नक्षत्र का सबसे शुभ समय कौन-सा है?
    पुष्य नक्षत्र का समय सूर्योदय से लेकर प्रदोष काल तक विशेष रूप से शुभ माना जाता है।

Bhishma Dwadashi Vrat – Auspicious Time Worship & Benefits

Bhishma Dwadashi Vrat - Auspicious Time Worship & Benefits

भीष्म द्वादशी व्रत २०२५: मोक्ष प्राप्ति और पितृ तृप्ति का परम मार्ग

यह व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। यह व्रत विशेष रूप से पितरों की मुक्ति और जीवन में सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भीष्म पितामह ने अपने शरीर का त्याग किया था, इसलिए इसे भीष्म निर्वाण द्वादशी भी कहते हैं। इस व्रत को करने से मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खुलता है।


व्रत का मुहूर्त 2025

इस व्रत का पालन करने के लिए शुभ मुहूर्त का ध्यान रखना आवश्यक है। पंचांग के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि (9 फरवरी २०२५) को यह व्रत किया जाता है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए।


भीष्म द्वादशी व्रत विधि व मंत्र

सामग्री:

  • गंगा जल
  • पंचामृत
  • तुलसी के पत्ते
  • सफेद वस्त्र
  • धूप, दीप
  • चावल, गुड़
  • पंचगव्य

विधि:

  1. प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. भगवान विष्णु और भीष्म पितामह का पूजन करें।
  3. धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें और नीचे दिया गया मंत्र पढ़ें: मंत्र: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः।”
  4. पूरे दिन व्रत रखें और संध्या समय विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
  5. रात्रि में भोग अर्पित कर व्रत कथा का श्रवण करें।

क्या खाएं और क्या न खाएं

खाएं:

  • फल, दूध, मेवा
  • कंद-मूल, मूंगफली
  • साबूदाना, सेंधा नमक
  • तिल-गुड़ के लड्डू

न खाएं:

  • प्याज-लहसुन
  • मसालेदार भोजन
  • अनाज और दाल
  • मांसाहार, मद्यपान

भीष्म द्वादशी व्रत के लाभ

  1. पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
  2. मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  3. घर में सुख-समृद्धि आती है।
  4. दांपत्य जीवन सुखमय होता है।
  5. स्वास्थ्य लाभ होता है।
  6. मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  7. ग्रह दोष समाप्त होते हैं।
  8. दरिद्रता दूर होती है।
  9. कार्यों में सफलता मिलती है।
  10. वंश की उन्नति होती है।
  11. मानसिक शांति मिलती है।
  12. आध्यात्मिक उन्नति होती है।
  13. अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
  14. दान-पुण्य करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
  15. जन्म-जन्मांतर के पाप समाप्त होते हैं।
  16. आयु वृद्धि होती है।
  17. भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।

भीष्म द्वादशी व्रत की संपूर्ण कथा

यह व्रत महाभारत के महान योद्धा भीष्म पितामह को समर्पित है। इस व्रत का पालन माघ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और भीष्म पितामह की पूजा की जाती है।

महाभारत के अनुसार, भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। महाभारत युद्ध के दौरान वे शर-शय्या पर लेटे रहे और माघ शुक्ल द्वादशी के दिन सूर्य उत्तरायण होने पर उन्होंने अपने प्राण त्यागे। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के समक्ष विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ किया, जिसे सुनने मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी कारण यह दिन अत्यंत पवित्र माना जाता है।

भीष्म द्वादशी व्रत करने से पितृ दोष समाप्त होते हैं और व्यक्ति को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रतधारी प्रातः स्नान कर भगवान विष्णु और भीष्म पितामह की पूजा करता है। तिल दान, ब्राह्मण भोज, और गंगा स्नान का विशेष महत्व है। जो व्यक्ति इस दिन उपवास रखकर भीष्म पितामह की कथा सुनता है, उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।


भोग

भगवान को तुलसी दल सहित दूध, पंचामृत, फल और तिल-गुड़ का भोग लगाना चाहिए।

Aghor lakshmi sadhana shivir


शुरुआत और समाप्ति विधि

  • व्रत सूर्योदय से पूर्व स्नान करके संकल्प के साथ शुरू करें।
  • संध्या को पूजा के बाद फलाहार करें।
  • अगले दिन सुबह भगवान विष्णु को भोग लगाकर व्रत समाप्त करें।

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सावधानियाँ

  1. व्रत के दिन मन को शांत रखें।
  2. क्रोध, लोभ और अहंकार से बचें।
  3. झूठ न बोलें और बुरे विचारों से बचें।
  4. रात्रि में सात्विक आहार ही ग्रहण करें।
  5. नशीले पदार्थों का सेवन न करें।

Akhanda dwadashi puja


मंत्र से संबंधित प्रश्न और उत्तर

1. भीष्म द्वादशी व्रत क्यों किया जाता है?

उत्तर: इस व्रत से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और मोक्ष प्राप्त होता है।

2. व्रत में कौन-से मंत्र का जप करें?

उत्तर: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र का जाप करें।

3. व्रत में कौन-से भगवान की पूजा की जाती है?

उत्तर: भगवान विष्णु और भीष्म पितामह की पूजा की जाती है।

4. इस व्रत का शुभ मुहूर्त क्या है?

उत्तर: माघ शुक्ल द्वादशी तिथि को प्रातःकाल व्रत रखें।

5. व्रत के दिन कौन-सा भोग लगाना चाहिए?

उत्तर: तिल-गुड़, पंचामृत और फल का भोग लगाएं।

6. क्या महिलाएं यह व्रत कर सकती हैं?

उत्तर: हां, स्त्री-पुरुष दोनों यह व्रत कर सकते हैं।

7. व्रत करने से कौन-से लाभ होते हैं?

उत्तर: मोक्ष प्राप्ति, पितृ तृप्ति, सुख-समृद्धि आदि लाभ होते हैं।

8. इस व्रत के दिन क्या नहीं खाना चाहिए?

उत्तर: अनाज, प्याज-लहसुन और मांसाहार वर्जित है।

9. क्या व्रत के दिन दूध पी सकते हैं?

उत्तर: हां, दूध और फलाहार ले सकते हैं।

10. भीष्म द्वादशी का आध्यात्मिक महत्व क्या है?

उत्तर: यह व्रत आत्मशुद्धि और मोक्ष प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ माना गया है।

11. क्या इस व्रत में संध्या आरती करनी चाहिए?

उत्तर: हां, संध्या आरती और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।

12. क्या व्रत में केवल जल उपवास किया जा सकता है?

उत्तर: हां, लेकिन फलाहार भी किया जा सकता है।