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Aparajita Mantra – Path to Prosperity & Protection

Aparajita Mantra - Path to Prosperity & Protection

माता अपराजिता मंत्र: शक्ति, विजय और सुरक्षा का स्रोत

माता अपराजिता मंत्र: अपराजिता माता शक्ति और विजय का प्रतीक मानी जाती हैं, जो समस्त प्रकार के संकटों का नाश कर भक्तों की रक्षा करती हैं। अपराजिता मंत्र से जीवन में बाधाओं का नाश और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस विशेष मंत्र साधना में माता का आह्वान कर उनके आशीर्वाद से आत्मिक और भौतिक लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।

माता अपराजिता कौन है?

माता अपराजिता (Aparajita Mata) हिन्दू धर्म में एक देवी के रूप में पूजी जाती हैं। उनका नाम ‘अपराजिता’ का अर्थ ही है ‘जो कभी हारती नहीं हैं’, अर्थात् अजेय या अविजेय। माता अपराजिता को शक्ति और विजय की देवी के रूप में माना जाता है, और उन्हें बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। देवी अपराजिता की पूजा विशेष रूप से नवरात्रि में की जाती है, जब भक्त उनकी आराधना से साहस, शक्ति, और मनोबल प्राप्त करते हैं। ऐसा विश्वास है कि माता अपराजिता की कृपा से सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं और जीवन में सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।

अपराजिता माता का वर्णन कई पौराणिक कथाओं में मिलता है, जहाँ वे असुरों और बुराई के विरुद्ध लड़ते हुए शक्ति का स्वरूप बनकर प्रकट होती हैं। उनकी आराधना से शत्रुओं पर विजय, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

विनियोग मंत्र व अर्थ

विनियोग मंत्र: “ॐ ह्रीं क्रीं अपराजितायै नमः।”
अर्थ: मैं अपराजिता माता का आह्वान करता हूँ, जो मुझे हर प्रकार की जीत, साहस और आत्मबल प्रदान करती हैं।

दिग्बंधन मंत्र व अर्थ

मंत्र: “ॐ ह्रीं क्रीं अपराजिते सर्वत्र दिशां मम् रक्षा कुरु कुरु हुं फट्।”
अर्थ: हे माता अपराजिता! आप दसों दिशाओं में मेरी रक्षा करें और हर प्रकार के संकट से मेरी रक्षा करें।

अपराजिता मंत्र का संपूर्ण अर्थ

मंत्र: ॐ ह्रीं क्रीं अपराजिते सर्वत्र दिशां मम् रक्षा कुरु कुरु हुं फट्।

  1. : यह ध्वनि सृष्टि की मूल ध्वनि मानी जाती है, जो ब्रह्मांड की ऊर्जा का प्रतीक है। इसे हर मंत्र की शुरुआत में लिया जाता है क्योंकि यह सकारात्मकता और दिव्यता का प्रतिनिधित्व करता है।
  2. ह्रीं: यह एक बीज मंत्र है, जो शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है। यह ध्यान और साधना में एकाग्रता बढ़ाने में मदद करता है।
  3. क्रीं: यह भी एक बीज मंत्र है, जो देवी शक्ति का प्रतीक है। यह भक्त को साहस, विश्वास और मानसिक शक्ति प्रदान करता है।
  4. अपराजिते: इस शब्द का अर्थ है ‘जो कभी हार नहीं मानती’ या ‘अजेय’। यह माता अपराजिता के अजेय स्वरूप को दर्शाता है।
  5. सर्वत्र: इसका अर्थ है ‘हर जगह’ या ‘सभी दिशाओं में’। यह इस बात का संकेत है कि माता अपराजिता की कृपा और सुरक्षा सभी स्थानों पर उपलब्ध है।
  6. दिशां: इसका अर्थ है ‘दिशाएं’। यह शब्द उन सभी दिशाओं का उल्लेख करता है जहां सुरक्षा की आवश्यकता है।
  7. मम्: इसका अर्थ है ‘मेरी’। यह व्यक्तिगत रूप से सुरक्षा की प्रार्थना को दर्शाता है।
  8. रक्षा: इसका अर्थ है ‘रक्षा’ या ‘सुरक्षा’। यहां भक्त माता से अपने प्रति सुरक्षा की प्रार्थना कर रहा है।
  9. कुरु कुरु: यह एक अनुरोध या आह्वान है, जिसका अर्थ है ‘करें, कृपया’। यह माता से अपनी कृपा और रक्षा को सक्रिय करने की प्रार्थना है।
  10. हुं: यह एक शक्तिशाली ध्वनि है जो ध्यान और साधना में ऊर्जा का संचार करती है।
  11. फट्: यह मंत्र का अंतिम भाग है, जो किसी प्रकार की नकारात्मकता को दूर करने का संकेत देता है।

संपूर्ण अर्थ

इस मंत्र का संपूर्ण अर्थ है: “हे माता अपराजिता! आप हर दिशा में मेरी रक्षा करें। मैं आपकी शक्ति का आह्वान करता हूँ ताकि आप मुझे सभी प्रकार की बाधाओं और संकटों से सुरक्षित रखें।”

यह मंत्र आत्मविश्वास, सुरक्षा, और विजय की भावना को जागृत करता है, जिससे साधक अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन महसूस कर सकता है।

जप काल में इन चीजों का सेवन बढ़ाएं

मंत्र साधना के दौरान सात्विक भोजन करें, जैसे दूध, फल, सूखे मेवे। हरी सब्जियाँ, साबुत अनाज और पंचामृत का सेवन भी लाभकारी है।

अपराजिता मंत्र जप के लाभ

  1. आत्मबल में वृद्धि
  2. मनोबल का संचार
  3. शत्रुओं से रक्षा
  4. रोगों से मुक्ति
  5. परिवार में सुख-शांति
  6. आर्थिक समृद्धि
  7. विजय का आशीर्वाद
  8. आंतरिक शांति
  9. मानसिक शक्ति में वृद्धि
  10. जीवन में नकारात्मकता का नाश
  11. व्यवसाय में सफलता
  12. संकटों से सुरक्षा
  13. आत्मविश्वास में वृद्धि
  14. करियर में प्रगति
  15. असुरक्षित महसूस न होना
  16. जीवन में संतुलन
  17. आध्यात्मिक उन्नति
  18. जीवन में स्थिरता

पूजा सामग्री व मंत्र विधि

सामग्री: एक पीला वस्त्र, लाल पुष्प, कुमकुम, दीपक, कपूर, ताजे फल, मिठाई, गंगा जल, और सफेद चन्दन।
विधि: मंत्र जप के लिए शुभ मुहूर्त में सुबह 5 बजे से 7 बजे के बीच। साधना 21 दिनों तक प्रतिदिन 20 मिनट करें।
जप का दिन: पूर्णिमा, नवरात्रि के नौ दिन, या किसी शुभ तिथि में प्रारम्भ करें।

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जप नियम

  • आयु 20 वर्ष से अधिक हो।
  • पुरुष और महिला दोनों कर सकते हैं।
  • नीले और काले रंग के वस्त्र न पहनें।
  • धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार से दूर रहें।
  • जप के दौरान पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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जप सावधानियाँ

मंत्र साधना में पूर्ण एकाग्रता और शुद्धता बनाए रखें। किसी भी प्रकार की नकारात्मकता से बचें और संयमित दिनचर्या अपनाएँ।

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माता अपराजिता मंत्र से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर

प्रश्न 1: अपराजिता मंत्र का क्या लाभ है?

उत्तर: अपराजिता मंत्र से आत्मबल, साहस और सभी संकटों से मुक्ति मिलती है।

प्रश्न 2: क्या कोई भी इस मंत्र का जप कर सकता है?

उत्तर: हाँ, 20 वर्ष से अधिक आयु के स्त्री-पुरुष इसे कर सकते हैं।

प्रश्न 3: मंत्र जप का उपयुक्त समय कौन सा है?

उत्तर: सुबह 5 से 7 बजे के बीच सबसे उपयुक्त माना गया है।

प्रश्न 4: मंत्र साधना में क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?

उत्तर: शुद्धता, सात्विकता और संयम आवश्यक हैं।

प्रश्न 5: मंत्र जप में कितने दिन लगते हैं?

उत्तर: इसे 21 दिनों तक 20 मिनट प्रतिदिन करना चाहिए।

प्रश्न 6: इस मंत्र के जप में कौन-से वस्त्र पहनने चाहिए?

उत्तर: हल्के रंग के वस्त्र, जैसे सफेद या पीले पहनें।

प्रश्न 7: क्या जप में कोई विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है?

उत्तर: हाँ, लाल पुष्प, दीपक, कपूर, और सफेद चन्दन आवश्यक सामग्री में शामिल हैं।

प्रश्न 8: अपराजिता माता के कौन से गुण पूजनीय हैं?

उत्तर: उनकी अजेयता, शक्ति, और रक्षात्मक गुण पूजनीय हैं।

प्रश्न 9: क्या मंत्र जप के दौरान व्रत भी रखना चाहिए?

उत्तर: व्रत रखना लाभकारी होता है, पर अनिवार्य नहीं है।

प्रश्न 10: क्या मंत्र जप में परिवार के सदस्यों की भागीदारी हो सकती है?

उत्तर: हाँ, सभी सदस्य पूजा में शामिल हो सकते हैं।

प्रश्न 11: अपराजिता माता किस प्रकार की बाधाओं से मुक्ति देती हैं?

उत्तर: आर्थिक, मानसिक, शारीरिक और शत्रुओं से।

प्रश्न 12: क्या इस मंत्र का जप विशेष अवसरों पर ही करना चाहिए?

उत्तर: शुभ अवसरों पर करने से अधिक लाभकारी होता है, पर इसे किसी भी समय किया जा सकता है।

Tulsi Kavacham Path for Peace & Prosperity

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तुलसी कवचम्: जीवन में शांति और सुरक्षा का दिव्य कवच

तुलसी कवचम् पाठ हिन्दू धर्म में अत्यधिक पवित्र और लाभकारी माना गया है। यह कवच विभिन्न परेशानियों से सुरक्षा प्रदान करता है और जीवन में शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति लाता है। तुलसी माता को लक्ष्मी का अवतार माना गया है और तुलसी कवचम् उनके संरक्षण को प्राप्त करने का एक अद्भुत साधन है।

तुलसी कवचम् का संपूर्ण पाठ और अर्थ

यहां तुलसी कवचम् का संपूर्ण पाठ प्रस्तुत किया गया है, जो तुलसी माता की कृपा प्राप्त करने और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा हेतु अत्यंत शक्तिशाली माना गया है:

तुलसी कवचम् संपूर्ण पाठ

ॐ अस्य श्री तुलसी कवच स्तोत्र महा मन्त्रस्य
श्री सदाशिव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः,
श्री तुलसी देवता,
श्री तुलसी प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।

ध्यानम्

वन्दे अहं तुलसीदेवीं, वृन्दा वनमलामिनीम्।
याम् दृष्ट्वा पापिनो मर्त्या, मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषात्॥

मूल पाठ

  1. ॐ श्री तुलस्यै कवचं पुण्यं सर्वसौख्यप्रदायकम्।
    यः पठेत् प्रातरुत्थाय स भवेत्सर्वकामदः॥
  2. तुलस्याः पत्त्रमाधाय स षोडशपलानि च।
    धारणात् पापसंहारं तुलस्याः कवचं स्मरेत्॥
  3. यत्र यत्र स्थितो देवि यत्र यत्र वसाम्यहम्।
    तत्र तत्र सदा रक्षां कुरु मे सर्वतोऽमलाम्॥
  4. अग्रतः पातु मां देवी पृष्ठे पातु यशस्विनी।
    पार्श्वयोः पातु मां नित्यं तुलसी सर्वतः शुभा॥
  5. सदा मां पातु सर्वांगं तुलसी शुभदायिनी।
    कण्ठे च बन्धयेन्नित्यं कवचं पापनाशनम्॥
  6. भुजयोः पातु मां नित्यम् बाहुमध्ये शुभप्रदा।
    करयोः पातु मां नित्यम् तुलसी सर्वतः शुभा॥
  7. ऊर्ध्वं पातु शिवा देवी अधस्ताच्च यशस्विनी।
    तुलसी पातु सर्वत्र सर्वाङ्गे सर्वदा शुभा॥
  8. इदं तुलसीकवचं पुण्यं यो धीमां पठति नित्यशः।
    स सर्वं दुर्गमं तरते तुलसीद्वारकृपाबलात्॥
  9. सर्वसौख्यमवाप्नोति दीर्घायुं पुत्रपौत्रिणम्।
    कण्ठे धारयते यस्मिन् श्रीकवचं शुचिस्मृतम्॥
  10. इति श्री नारदपुराणे तुलसीकवचम् संपूर्णम्॥

तुलसी कवचम् पाठ का अर्थ

  • तुलसी कवच की महिमा: यह कवच अत्यंत पवित्र और सुखदायक है। जो इसे प्रतिदिन प्रातःकाल पाठ करता है, उसे सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  • तुलसी का स्मरण और धारण: तुलसी के पत्तों के साथ इस कवच का ध्यान करने से पापों का नाश होता है और नकारात्मकता से मुक्ति मिलती है।
  • सर्वत्र रक्षा: जहां भी साधक निवास करता है, तुलसी माता वहां उसकी सभी दिशाओं से रक्षा करती हैं।
  • दिशाओं में रक्षा: तुलसी माता आगे, पीछे, और बगल से साधक की रक्षा करती हैं। वे हर दिशा से साधक को शुभता प्रदान करती हैं।
  • संपूर्ण अंगों की रक्षा: तुलसी माता का कवच व्यक्ति के शरीर के हर अंग की नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है।
  • जीवन की सुख-शांति: इस कवच का नियमित पाठ करने से साधक कठिनाइयों से पार पा लेता है, सुख-शांति और दीर्घायु प्राप्त करता है, और उसके परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
  • तुलसी की कृपा: इस कवच के प्रभाव से व्यक्ति को तुलसी माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे रोग, शत्रु और विपत्तियां दूर होती हैं।

    तुलसी कवचम् का यह पाठ व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक सुरक्षा प्रदान करता है और उसे सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देता है।ती है, जिससे रोग, शत्रु और विपत्तियों से मुक्ति मिलती है और जीवन में शांति, समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है।

    तुलसी कवचम् पाठ के लाभ

    1. मानसिक शांति प्राप्त होती है।
    2. घर में समृद्धि और सुख की वृद्धि होती है।
    3. रोगों से मुक्ति मिलती है।
    4. जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
    5. कार्यों में सफलता मिलती है।
    6. शत्रुओं से रक्षा होती है।
    7. संतान सुख प्राप्त होता है।
    8. मन की स्थिरता बनी रहती है।
    9. जीवन में कठिनाइयों का अंत होता है।
    10. आध्यात्मिक उन्नति होती है।
    11. पारिवारिक सुख में वृद्धि होती है।
    12. आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
    13. तनाव और चिंता से मुक्ति मिलती है।
    14. घर में शांति और समृद्धि का वास होता है।
    15. तुलसी माता की कृपा प्राप्त होती है।

    तुलसी कवचम् साधना विधि

    दिन और अवधि

    • अवधि: 41 दिन
    • दिन: सोमवार या गुरुवार
    • मूहूर्त: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे के बीच)

    पूजा विधि

    • तुलसी के पौधे के सामने दीपक जलाएं।
    • तुलसी कवचम् का पाठ करें।
    • अंत में तुलसी माता से प्रार्थना करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।

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    तुलसी कवचम् साधना के नियम

    1. साधना को गुप्त रखें – साधना करते समय इसे किसी से साझा न करें।
    2. आहार – साधना के दौरान सात्विक आहार का पालन करें।
    3. व्रत – साधना की अवधि में उपवास का पालन करें।

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    सावधानियां

    तुलसी कवचम् का पाठ करते समय पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ करना चाहिए। किसी प्रकार की नकारात्मक भावना से इस पाठ का लाभ नहीं मिलता है।

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    तुलसी कवचम् – प्रश्न और उनके उत्तर

    1. तुलसी कवचम् क्या है?

    तुलसी कवचम् एक पवित्र मन्त्र है जो नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा प्रदान करता है।

    2. तुलसी कवचम् का पाठ कैसे किया जाता है?

    इसका पाठ तुलसी माता के सामने दीपक जलाकर किया जाता है।

    3. तुलसी कवचम् से क्या लाभ मिलता है?

    यह मानसिक शांति, समृद्धि, और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है।

    4. तुलसी कवचम् का पाठ कितने दिन करना चाहिए?

    इसे 41 दिनों तक करना उत्तम माना गया है।

    5. तुलसी कवचम् का कौन सा समय सर्वोत्तम है?

    ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) इसका उत्तम समय है।

    6. क्या तुलसी कवचम् साधना को गुप्त रखना चाहिए?

    हां, इसे गुप्त रखना उचित होता है।

    7. क्या तुलसी कवचम् का पाठ किसी भी दिन कर सकते हैं?

    हाँ, लेकिन सोमवार और गुरुवार सबसे उत्तम माने गए हैं।

    8. क्या तुलसी कवचम् से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है?

    हां, यह आर्थिक स्थिति में सुधार लाने में सहायक है।

    9. क्या तुलसी कवचम् का पाठ करते समय व्रत रखना चाहिए?

    हां, व्रत रखना अत्यधिक लाभकारी होता है।

    10. तुलसी कवचम् का कौन सा उद्देश्य है?

    इसका उद्देश्य नकारात्मकता से सुरक्षा और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करना है।

    11. क्या तुलसी कवचम् का पाठ करते समय किसी विशेष दिशा में बैठना चाहिए?

    हाँ, पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना लाभकारी होता है।

    12. क्या तुलसी कवचम् सभी के लिए लाभकारी है?

    हाँ, यह सभी के लिए लाभकारी है।

    Tulsi Stotra Path- Nectar of Health, Prosperity, & Peace

    Tulsi Stotra Path- Nectar of Health, Prosperity, & Peace

    तुलसी स्तोत्र: स्वास्थ्य, समृद्धि और माता लक्ष्मी की कृपा

    तुलसी स्तोत्र पाठ भगवान विष्णु को प्रसन्न करने, शांति, सुख, और समृद्धि प्राप्ति का मार्ग माना गया है। तुलसी माता का पूजन भारतीय परंपरा का महत्वपूर्ण अंग है, और श्री तुलसी स्तोत्र उनका गुणगान करते हुए उनके आशीर्वाद की प्राप्ति हेतु किया जाता है। इस स्तोत्र के नियम, विधि, लाभ और सावधानियों का पालन करने से साधक को अद्वितीय लाभ प्राप्त होते हैं।

    स्तोत्र के लाभ (Benefits of Tulsi Stotra)

    1. सभी पापों का नाश – तुलसी स्तोत्र का नियमित पाठ साधक के सभी पापों को नष्ट करता है।
    2. भगवान विष्णु का आशीर्वाद – यह स्तोत्र भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है और उनके आशीर्वाद से साधक का जीवन सुखमय होता है।
    3. आरोग्य की प्राप्ति – तुलसी स्तोत्र का पाठ शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य प्रदान करता है।
    4. धन और समृद्धि – तुलसी स्तोत्र का पाठ व्यक्ति को धन, सुख-समृद्धि, और ऐश्वर्य प्रदान करता है।
    5. बाधाओं का नाश – जीवन में आने वाली सभी बाधाओं का अंत होता है।
    6. यमराज भय का नाश – यमराज का भय दूर होता है और मृत्यु के पश्चात मोक्ष प्राप्त होता है।
    7. भयमुक्ति – जीवन से सभी प्रकार के भय और अशुभ शक्तियों का अंत होता है।
    8. शुभ फल की प्राप्ति – जीवन में शुभ फल और समृद्धि की वृद्धि होती है।
    9. अंतर्मन की शांति – मन को शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।
    10. सकारात्मकता की वृद्धि – तुलसी के आशीर्वाद से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
    11. दिव्य शक्तियों का आशीर्वाद – सभी देवताओं की कृपा साधक पर बनी रहती है।
    12. बुरी नजर से बचाव – यह स्तोत्र व्यक्ति को बुरी नजर से बचाता है।
    13. दीर्घायु का वरदान – इसका पाठ दीर्घायु और स्वस्थ जीवन प्रदान करता है।
    14. पारिवारिक कल्याण – परिवार में सुख-शांति और प्रेम बना रहता है।
    15. मनोवांछित फल की प्राप्ति – साधक को अपनी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
    16. विवाह में बाधाओं का अंत – अविवाहित व्यक्तियों को विवाह में आ रही अड़चनें दूर होती हैं।
    17. साधना में सफलता – यह स्तोत्र साधक की साधना को सिद्धि में बदलता है।

    श्री तुलसी स्तोत्रम् व उसका अर्थ

    श्री तुलसी स्तोत्रम्‌

    नमो नमः तुलसीकृष्णप्रिया नमो नमः।
    नमो नमः तुलसीसत्यव्रता नमो नमः॥

    नमः तुलस्यतिसुयक्षामलायै नमो नमः।
    नमः सुशीले सुखदे शुभदे नमो नमः॥

    तुलस्यमृतजन्मासि सदा त्वं केशवप्रिय।
    केशवस्य त्वया नित्यं भविता वसतिर्लता॥

    तुलसी पतु मां नित्यं सर्वापद्भ्यो नमोऽस्तुते।
    यन्मूले सर्वतीर्थानि यन्नाग्रे सर्वदेवताः॥

    यन्मध्ये सर्ववेदाश्च तुलसी त्वां नमाम्यहम्‌।
    तुलस्यै त्वां नमस्तुभ्यं यमदूतो न पश्यति॥

    तुलस्यां सकला देवा वसन्ति सततं यतः।
    अतस्तां पूजयाम्यद्य यमराजभयापहा॥

    लक्ष्मीप्रिय नमस्तुभ्यं नमो विष्णुप्रियाङ्गने।
    नमो जन्मसहाये च नमः पापप्रणाशिनि॥

    नमः पुण्ये नमो पूर्णे नमः शुभफलप्रदे।
    नमो विष्णुक्रमे ज्ञेये तुलसी त्वां नमोऽस्तुते॥

    श्री तुलसी स्तोत्रम्‌ का अर्थ

    • हे तुलसी! आप भगवान श्रीकृष्ण को अत्यंत प्रिय हैं। मैं आपको बार-बार प्रणाम करता हूँ। आप सत्यव्रत (सच्ची और पवित्र प्रतिज्ञा धारण करने वाली) हैं। आपको मेरा बार-बार प्रणाम है।
    • हे तुलसी! आपकी शुद्धता अद्वितीय है। आपको प्रणाम है। हे सुशील (सरल स्वभाव वाली), सुख देने वाली, शुभफल देने वाली तुलसी माता, आपको बार-बार प्रणाम।
    • हे तुलसी! आप अमृत रूपी जन्म धारण करने वाली हैं और सदा भगवान केशव (विष्णु) को प्रिय हैं। आप भगवान केशव का नित्य वास स्थान बनती हैं।
    • हे तुलसी माता! आप मेरी हर समय रक्षा करें और मुझे सभी विपत्तियों से बचाएं। मैं आपको बार-बार प्रणाम करता हूँ।
    • आपके मूल (जड़ों) में समस्त तीर्थ और आपके अग्रभाग में समस्त देवताओं का वास है। आपके मध्यभाग में समस्त वेद हैं। हे तुलसी माता, मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
    • हे तुलसी माता! जो व्यक्ति आपका पूजन करता है, उसे यमदूत नहीं देख सकते।
    • क्योंकि तुलसी में सभी देवताओं का वास है, इसलिए मैं आपकी पूजा करता हूँ। आपकी पूजा से यमराज का भय समाप्त हो जाता है।
    • हे लक्ष्मी प्रिय तुलसी! आपको नमस्कार है। आप भगवान विष्णु की प्रिय हैं।
    • हे पापों का नाश करने वाली तुलसी माता! मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
    • हे पुण्य रूपी और पूर्णता देने वाली तुलसी माता, मैं आपको प्रणाम करता हूँ। आप शुभ फल देने वाली हैं और विष्णु का अनुसरण करती हैं। आपको प्रणाम।
    • इस स्तोत्र में तुलसी माता की महिमा का वर्णन किया गया है, और उन्हें सच्चाई, शुद्धता, सुख, और शुभता का प्रतीक माना गया है। तुलसी माता का पूजन करने से यमराज का भय नहीं रहता और सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

    तुलसी स्तोत्र पाठ विधि (Method of Chanting Tulsi Stotra)

    दिन और अवधि का निर्धारण

    तुलसी स्तोत्र का पाठ शुभ मुहूर्त या प्रातः काल करना सर्वोत्तम है। इसे 41 दिनों तक लगातार करने से विशेष लाभ मिलता है।

    पूजा विधि

    • तुलसी माता का पूजन – तुलसी के पौधे के समीप दीया जलाकर तुलसी माता का आह्वान करें।
    • साधक का शुद्धिकरण – स्नान के बाद शुद्ध वस्त्र पहनें।
    • स्तोत्र पाठ – तुलसी स्तोत्र को पूर्ण मनोयोग से 108 बार जपें।
    • भोग अर्पण – पाठ के बाद तुलसी को जल अर्पित करें और भगवान विष्णु को भोग लगाएं।

    तुलसी स्तोत्र के नियम (Rules for Tulsi Stotra Chanting)

    • गुप्त साधना – अपनी साधना को गोपनीय रखें, दूसरों को न बताएं।
    • शुद्ध आचरण – इस दौरान मन, वचन और कर्म से शुद्ध रहना आवश्यक है।
    • सात्विक भोजन – इस अवधि में सात्विक आहार ग्रहण करें।

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    तुलसी स्तोत्र पाठ में सावधानियां (Precautions in Chanting Tulsi Stotra)

    • शुद्धता का ध्यान – पाठ करते समय शरीर और मन की शुद्धता बनाए रखें।
    • तुलसी का अनादर न करें – तुलसी पत्तों को रात में न तोड़ें और उनका उपयोग करने से पहले भगवान को अर्पित करें।
    • भोग लगाने में सावधानी – तुलसी स्तोत्र के पाठ के बाद भोग में तुलसी पत्तियों का उपयोग करें।

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    तुलसी स्तोत्र: प्रश्न-उत्तर

    प्रश्न 1: तुलसी स्तोत्र का क्या महत्व है?
    उत्तर: तुलसी स्तोत्र भगवान विष्णु का प्रिय है। इसे पढ़ने से व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं और उसे शांति व समृद्धि प्राप्त होती है।

    प्रश्न 2: तुलसी स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए?
    उत्तर: तुलसी स्तोत्र का पाठ प्रातः काल करना श्रेष्ठ माना गया है, लेकिन शुभ मुहूर्त में भी कर सकते हैं।

    प्रश्न 3: तुलसी स्तोत्र का पाठ कितने दिनों तक करना चाहिए?
    उत्तर: तुलसी स्तोत्र का पाठ 41 दिनों तक करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है।

    प्रश्न 4: क्या तुलसी स्तोत्र साधना को गुप्त रखना चाहिए?
    उत्तर: हाँ, तुलसी स्तोत्र की साधना को गुप्त रखना चाहिए ताकि इसका प्रभाव साधक पर विशेष रूप से हो।

    प्रश्न 5: क्या साधना के दौरान कोई विशेष आहार लेना चाहिए?
    उत्तर: साधना के दौरान सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए ताकि साधना की शुद्धता बनी रहे।

    प्रश्न 6: तुलसी स्तोत्र किस प्रकार की बाधाओं का नाश करता है?
    उत्तर: तुलसी स्तोत्र सभी प्रकार की जीवन की बाधाओं और कष्टों को समाप्त करता है।

    प्रश्न 7: क्या तुलसी स्तोत्र का पाठ यमराज के भय को समाप्त करता है?
    उत्तर: हाँ, तुलसी स्तोत्र का पाठ यमराज के भय को समाप्त कर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।

    प्रश्न 8: तुलसी स्तोत्र किसे प्रसन्न करता है?
    उत्तर: तुलसी स्तोत्र भगवान विष्णु को अत्यंत प्रसन्न करता है।

    प्रश्न 9: तुलसी स्तोत्र के पाठ से क्या शारीरिक लाभ होते हैं?
    उत्तर: तुलसी स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।

    प्रश्न 10: तुलसी स्तोत्र में किस प्रकार की शक्ति निहित है?
    उत्तर: तुलसी स्तोत्र में पवित्रता, शुद्धि और दिव्यता की शक्ति है जो साधक को भयमुक्त करती है।

    प्रश्न 11: क्या तुलसी स्तोत्र सभी इच्छाओं को पूर्ण कर सकता है?
    उत्तर: हाँ, तुलसी स्तोत्र का नियमित पाठ साधक की मनोवांछित इच्छाओं की पूर्ति करता है।

    प्रश्न 12: क्या तुलसी स्तोत्र के पाठ के बाद कोई विशेष भोग अर्पण करना चाहिए?
    उत्तर: हाँ, पाठ के बाद तुलसी पत्तियों का भोग भगवान विष्णु को अर्पित करना चाहिए।

    Tulsi Chalisa Path – Unlock Peace and Prosperity

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    तुलसी चालीसा पाठ के अद्भुत लाभ और विधि: कैसे प्राप्त करें माता का आशीर्वाद

    तुलसी चालीसा पाठ एक आध्यात्मिक साधना है जो जीवन में शांति, समृद्धि और मानसिक स्थिरता लाती है। तुलसीदास जी की भक्ति और राम प्रेम से प्रेरित, यह चालीसा भक्तों के लिए एक मार्गदर्शक है। श्रद्धा और सच्चे मन से इसका पाठ करने से न केवल धार्मिक लाभ होता है, बल्कि सकारात्मक ऊर्जा और भक्तिभाव की वृद्धि होती है।

    तुलसी चालीसा

    दोहा:

    श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधार।
    बरनऊं रघुवर बिमल जसु, जो दायक फल चार॥
    बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
    बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार॥

    चौपाई:

    जयति जयति तुलसी सरोजा।
    राम प्रेम लखि सब दुख भोगा॥
    हनुमत सेवी मोरी गाथा।
    वंदनीय तुलसी गाथा॥

    कृपा करो संतन के स्वामी।
    हरहु कलुष अमर बलदामी॥
    भक्तिन के अनन्य निकेत।
    राम प्रेम झर केहि चित्त रेत॥

    करुणा सुन्दर प्रभु रस देखो।
    मोह नाशक अविनाशी लेखो॥
    दीन सनेही तुलसीदास।
    मनो कामना पूरी देव पास॥

    तुलसी चालीसा पाठ के लाभ

    1. आध्यात्मिक शांति – मानसिक तनाव से मुक्ति दिलाता है।
    2. रामभक्ति में वृद्धि – हृदय में भगवान राम की भक्ति का संचार करता है।
    3. बुद्धि एवं बल की प्राप्ति – बुद्धि को तेज और मन को स्थिर बनाता है।
    4. सकारात्मक ऊर्जा का संचार – नकारात्मकता को दूर करता है।
    5. धन और सुख में वृद्धि – आर्थिक समस्याओं से मुक्ति दिलाता है।
    6. शत्रुओं से रक्षा – बुरी शक्तियों और शत्रुओं से सुरक्षा प्रदान करता है।
    7. सफलता का मार्ग – कार्यों में सफलता प्राप्त करने में सहायक है।
    8. अवसाद एवं चिंता से राहत – मानसिक शांति और आत्मबल प्रदान करता है।
    9. संतान सुख – संतान प्राप्ति में सहायक है।
    10. स्वास्थ्य में सुधार – स्वास्थ्य समस्याओं में राहत मिलती है।
    11. भय से मुक्ति – भय और अज्ञात डर को दूर करता है।
    12. घर में सुख-शांति – परिवार में प्रेम और सामंजस्य लाता है।
    13. सकारात्मक सोच – नकारात्मक विचारों को दूर कर सकारात्मकता को बढ़ाता है।
    14. सफलता का मंत्र – कार्यों में सफलता की राह खोलता है।
    15. मनोकामना पूर्ति – इच्छाओं की पूर्ति होती है।
    16. भविष्य की सुरक्षा – जीवन में आने वाली कठिनाइयों से बचाता है।
    17. धार्मिक उन्नति – आध्यात्मिक मार्ग पर उन्नति होती है।

    तुलसी चालीसा पाठ विधि

    तुलसी चालीसा पाठ का अनुसरण करना सरल है, परंतु नियमितता आवश्यक है।

    • दिन: तुलसी पूजन, मंगलवार या शनिवार से शुरू करना शुभ माना जाता है।
    • अवधि: चालीसा पाठ को ४१ दिनों तक निरंतर करना चाहिए।
    • मुहुर्त: सूर्योदय के समय तुलसी चालीसा का पाठ अत्यंत लाभकारी होता है।

    शुद्ध हृदय से, शांत स्थान पर बैठकर तुलसी चालीसा का पाठ करें। दीपक जलाएं, और तुलसी माता या राम की तस्वीर के सामने बैठें। चालीसा का पाठ करते समय मन एकाग्र रखें, और पूरे भाव से भक्ति करें।

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    तुलसी चालीसा पाठ के नियम

    1. साधना गुप्त रखें: अपनी साधना और पूजा दूसरों के सामने न करें।
    2. शुद्धता का पालन: पाठ करने से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
    3. समर्पण भाव: तुलसी चालीसा का पाठ पूरी श्रद्धा और समर्पण से करें।
    4. अनुशासन: पाठ के दौरान भटकाव से बचें और अनुशासन बनाए रखें।
    5. नियमितता: ४१ दिन तक निरंतर पाठ करें, एक भी दिन न छोड़ें।
    6. संयम: साधना के दौरान संयमित रहें और सकारात्मक विचार बनाए रखें।

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    तुलसी चालीसा पाठ में सावधानियाँ

    1. निरंतरता का पालन करें – बीच में पाठ छोड़ना उचित नहीं है।
    2. भक्तिभाव में कमी न हो – भक्ति और श्रद्धा में कोई कमी न आने दें।
    3. अनुचित समय पर पाठ न करें – रात्रि में या गलत समय पर पाठ न करें।
    4. बाहरी बाधाओं से बचें – पाठ करते समय मन को अन्य विचारों से दूर रखें।
    5. अपराध से बचें – किसी के प्रति दुर्भाव न रखें; साफ हृदय से पाठ करें।

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    तुलसी चालीसा पाठ: प्रश्न और उत्तर

    प्रश्न: तुलसी चालीसा पाठ कब से शुरू करना चाहिए?

    उत्तर: तुलसी चालीसा पाठ मंगलवार या शनिवार से शुरू करना शुभ माना जाता है। इससे शीघ्र लाभ मिलता है।

    प्रश्न: तुलसी चालीसा का पाठ कितने दिनों तक करना चाहिए?

    उत्तर: तुलसी चालीसा का पाठ ४१ दिनों तक लगातार करना चाहिए, इससे सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।

    प्रश्न: क्या तुलसी चालीसा पाठ के दौरान कोई विशेष नियम है?

    उत्तर: हां, पाठ से पहले स्नान करना, स्वच्छ वस्त्र पहनना, और साधना को गुप्त रखना आवश्यक है।

    प्रश्न: तुलसी चालीसा का पाठ किस समय करना चाहिए?

    उत्तर: सुबह के समय, सूर्योदय से पूर्व पाठ करना सबसे शुभ माना गया है।

    प्रश्न: क्या पाठ के दौरान कोई बाधाएं आ सकती हैं?

    उत्तर: हां, मानसिक और बाहरी बाधाएं आ सकती हैं। एकाग्रता बनाए रखना आवश्यक है।

    प्रश्न: क्या तुलसी चालीसा पाठ से सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं?

    उत्तर: हां, शुद्ध हृदय से ४१ दिन पाठ करने से मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।

    प्रश्न: क्या इस पाठ को परिवार के सभी सदस्य कर सकते हैं?

    उत्तर: हां, परिवार के सभी सदस्य कर सकते हैं। इससे घर में सुख-शांति आती है।

    प्रश्न: क्या पाठ को बीच में छोड़ना उचित है?

    उत्तर: नहीं, बीच में पाठ छोड़ने से लाभ नहीं मिलता है। निरंतरता आवश्यक है।

    प्रश्न: तुलसी चालीसा का पाठ करते समय दीपक जलाना क्यों जरूरी है?

    उत्तर: दीपक जलाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और ध्यान केंद्रित रहता है।

    प्रश्न: क्या तुलसी चालीसा का पाठ करने से स्वास्थ्य लाभ होता है?

    उत्तर: हां, यह पाठ मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार लाता है।

    प्रश्न: क्या चालीसा पाठ के दौरान मौन रहना आवश्यक है?

    उत्तर: हां, मौन और एकाग्रता से पाठ का प्रभाव बढ़ता है।

    प्रश्न: तुलसी चालीसा पाठ के लाभ कब से मिलते हैं?

    उत्तर: नियमित पाठ से कुछ ही दिनों में लाभ महसूस होने लगता है।

    Tulsi Mantra – Spiritual Source of Wealth, Peace, and Happiness

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    तुलसी मंत्र का जप: एक सरल मार्ग से पाएं समृद्धि और खुशहाली

    तुलसी मंत्र एक अत्यंत शक्तिशाली और दिव्य जाप है, जो माता लक्ष्मी के स्वरूप को समर्पित है। भारतीय संस्कृति में तुलसी को पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। यह सिर्फ एक औषधीय पौधा नहीं, बल्कि देवी लक्ष्मी का अवतार भी है। तुलसी के पौधे की पूजा करने से घर में सुख, शांति और धन का वास होता है।

    तुलसी मंत्र का जप करने से न केवल मानसिक शांति प्राप्त होती है, बल्कि यह समृद्धि, स्वास्थ्य और खुशहाली को भी बढ़ावा देता है। इस मंत्र का उच्चारण श्रद्धालुओं को हर प्रकार की समस्याओं से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है।

    तुलसी मंत्र व उसका संपूर्ण अर्थ

    तुलसी मंत्र का पाठ करना भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। यह मंत्र माँ तुलसी को समर्पित है, जिन्हें देवी लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। यहाँ तुलसी मंत्र का पाठ और उसका संपूर्ण अर्थ प्रस्तुत किया गया है:

    मंत्र:
    ॥ ॐ ह्रीं श्रीं तुलसेश्वरी महालक्ष्मी नमः॥

    मंत्र का अर्थ:

    • : यह प्राचीन और दिव्य ध्वनि है, जो समस्त ब्रह्मांड की उत्पत्ति और सृष्टि का प्रतीक है। इसे सब चीजों का मूल माना जाता है।
    • ह्रीं: यह बीज मंत्र है, जो समृद्धि और सफलता की प्राप्ति का प्रतीक है। यह लक्ष्मी माता की शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
    • श्रीं: यह भी एक बीज मंत्र है, जो धन और वैभव को आकर्षित करता है। इसे देवी लक्ष्मी के पूजन में विशेष रूप से उच्चारित किया जाता है।
    • तुलसेश्वरी: यह शब्द देवी तुलसी को संबोधित करता है, जो समर्पण और भक्ति का प्रतीक है। तुलसी देवी की आराधना से भक्तों को विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
    • महालक्ष्मी: यह देवी लक्ष्मी के महान स्वरूप का उल्लेख करता है। यह शब्द समृद्धि, धन, स्वास्थ्य, और शांति का प्रतीक है।
    • नमः: यह एक प्रणाम है, जिसका अर्थ है “मैं आपको प्रणाम करता हूँ”। यह सम्मान और श्रद्धा का प्रदर्शन है।

    संपूर्ण अर्थ:

    यह मंत्र माँ तुलसी, जिन्हें देवी लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है, की आराधना के लिए है। इसके जप से भक्तों को समृद्धि, सुख, और शांति की प्राप्ति होती है। इस मंत्र का नियमित जप करने से व्यक्ति अपने जीवन में हर प्रकार की बाधाओं से मुक्त होता है और माँ तुलसी का आशीर्वाद प्राप्त करता है। यह मंत्र मानसिक और भौतिक समृद्धि के लिए अत्यधिक प्रभावी माना जाता है।

    इस प्रकार, तुलसी मंत्र का उच्चारण भक्तों को जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, धन, और सफलता के मार्ग पर अग्रसर करने में सहायक होता है।

    जप काल में इन चीजों का सेवन अधिक करें
    जप के दौरान तुलसी के पत्तों का सेवन, मिश्री, और पंचामृत विशेष लाभकारी माने जाते हैं। इनसे शरीर पवित्र रहता है और मन शांत होता है।

    तुलसी मंत्र जप के लाभ

    1. मानसिक शांति
    2. धन-धान्य में वृद्धि
    3. रोगों से मुक्ति
    4. नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा
    5. पारिवारिक सौहार्द में वृद्धि
    6. ईश्वरीय कृपा की प्राप्ति
    7. संकटों से मुक्ति
    8. कार्यों में सफलता
    9. स्थायी समृद्धि
    10. घर में सुख-शांति
    11. विवाह में अनुकूलता
    12. जीवन में सकारात्मकता
    13. व्यवसाय में उन्नति
    14. नशा और दुर्व्यसन से बचाव
    15. शत्रुओं से सुरक्षा
    16. सौंदर्य और स्वास्थ्य में वृद्धि
    17. मन की स्थिरता
    18. इच्छाओं की पूर्ति

    पूजा सामग्री और मंत्र विधि

    • पूजा सामग्री: तुलसी पत्ते, चंदन, धूप, दीपक, पुष्प, गंगाजल, और तांबे का कलश
    • मंत्र जप का शुभ दिन: तुलस पूजन, शुक्रवार या मंगलवार
    • मंत्र जप अवधि: 9 दिन, प्रतिदिन 20 मिनट
    • मुहुर्त: प्रातःकाल या संध्या समय

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    तुलसी मंत्र जप के नियम

    1. आयु: 20 वर्ष से ऊपर
    2. किसी भी जाति, धर्म, स्त्री या पुरुष कर सकते हैं।
    3. नीले या काले वस्त्र न पहनें।
    4. धूम्रपान, मद्यपान, मांसाहार से बचें।
    5. ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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    मंत्र जप की सावधानियाँ

    जप के दौरान किसी नकारात्मक विचार को न आने दें। मन को एकाग्र रखें, और शांत वातावरण में ही बैठें।

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    तुलसी मंत्र से जुड़े प्रश्न और उनके उत्तर

    प्रश्न 1: तुलसी मंत्र से क्या लाभ होता है?
    उत्तर: तुलसी मंत्र के जप से मानसिक शांति, धन-संपत्ति की प्राप्ति, और स्वास्थ्य लाभ होता है।

    प्रश्न 2: तुलसी मंत्र का सर्वोत्तम समय कौन सा है?
    उत्तर: प्रातःकाल और संध्या का समय मंत्र जप के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।

    प्रश्न 3: क्या स्त्री भी तुलसी मंत्र जप कर सकती हैं?
    उत्तर: हां, किसी भी धर्म, जाति की स्त्री या पुरुष इस मंत्र का जप कर सकते हैं।

    प्रश्न 4: क्या विशेष वस्त्र पहनने की आवश्यकता होती है?
    उत्तर: सफेद या हल्के रंग के कपड़े पहनें; नीले या काले कपड़े से बचें।

    प्रश्न 5: क्या तुलसी के पौधे का होना अनिवार्य है?
    उत्तर: तुलसी के पौधे की उपस्थिति से ऊर्जा बढ़ती है, परंतु इसकी अनिवार्यता नहीं है।

    प्रश्न 6: मंत्र जप के दौरान कौन-सी चीजें ग्रहण करें?
    उत्तर: पंचामृत, तुलसी पत्ते, और मिश्री का सेवन करें।

    प्रश्न 7: मंत्र जप के कितने दिन बाद लाभ मिलने लगता है?
    उत्तर: नियमित 9 दिन के जप के बाद लाभ मिलने लगता है।

    प्रश्न 8: क्या तुलसी मंत्र से स्वास्थ्य लाभ भी होता है?
    उत्तर: हां, यह शरीर को पवित्रता और ऊर्जा प्रदान करता है।

    प्रश्न 9: मंत्र जप के लिए कौन सा आसन सर्वोत्तम है?
    उत्तर: कुश के आसन पर बैठकर जप करना श्रेष्ठ माना गया है।

    प्रश्न 10: क्या नकारात्मकता से सुरक्षा मिलती है?
    उत्तर: हां, तुलसी मंत्र जप नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा प्रदान करता है।

    प्रश्न 11: क्या परिवार की उन्नति में सहायक है?
    उत्तर: हां, इस मंत्र का जप करने से पारिवारिक सुख-शांति में वृद्धि होती है।

    प्रश्न 12: क्या धन की प्राप्ति होती है?
    उत्तर: नियमित जप से माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और धन में वृद्धि होती है।

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    तुलसी विवाह पूजन २०२४: विधि, सामग्री, मुहूर्त और इसके लाभ

    तुलसी विवाह हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र पर्व है, जिसे कार्तिक मास में देवउठनी एकादशी या द्वादशी को मनाया जाता है। इस दिन माता तुलसी का विवाह भगवान शालिग्राम (भगवान विष्णु का रूप) के साथ संपन्न होता है। तुलसी विवाह करने से व्यक्ति के जीवन में समृद्धि, सौभाग्य, और सुख-शांति आती है।

    तुलसी विवाह पूजन का मुहूर्त 2024

    तुलसी विवाह का पर्व वर्ष 2024 में 13 नवंबर को मनाया जाएगा। इस दिन का महत्व इसलिए भी है कि यह देवउठनी एकादशी के अगले दिन, यानि भगवान विष्णु के चतुर्मास से जागरण के बाद, आता है। इस दिन को शुभ विवाह के आरंभ का प्रतीक माना जाता है।

    तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त:

    • द्वादशी तिथि 12 नवंबर को शाम 4:04 बजे से शुरू होकर 13 नवंबर को दोपहर 1:01 बजे समाप्त होगी।
    • शुभ मुहूर्त 13 नवंबर को गोधूलि बेला में शाम 5:28 से 5:55 तक है।
    • इसके अतिरिक्त, कई लोग तुलसी विवाह का अनुष्ठान देवउठनी एकादशी (12 नवंबर) की शाम 5:29 से 5:55 बजे के बीच भी कर सकते हैं।

    इस दिन शालिग्राम (भगवान विष्णु का प्रतीक) और तुलसी माता का विवाह संपन्न कर, भगवान विष्णु को प्रसन्न करने की परंपरा है।

    तुलसी विवाह पूजन सामग्री

    • तुलसी के पौधे: तुलसी विवाह का मुख्य अंग
    • शालिग्राम: भगवान विष्णु का प्रतीक
    • फूल और माला: तुलसी और शालिग्राम के लिए
    • रोली, चंदन, अक्षत: पूजा की शुद्धता के लिए
    • दीपक, धूप, दीपक बत्ती: आरती में उपयोग के लिए
    • मेवा, फल, मिठाई: प्रसाद के लिए

    तुलसी विवाह की पूजन विधि और मंत्र

    विधि

    1. तुलसी और शालिग्राम की मूर्ति को पानी से स्नान कराएं।
    2. दोनों को फूलों की माला पहनाकर, तिलक लगाएं।
    3. शालिग्राम और तुलसी के पौधे का विवाह संपन्न कराएं।

    मंत्र:

    “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय तुलसी दामोदराय नमः”

    तुलसी विवाह में क्या खाएं और क्या न खाएं

    पूजन के दिन प्याज, लहसुन और मांसाहार का सेवन वर्जित होता है। केवल सात्विक भोजन, जैसे कि फल, दूध, और हल्के अनाज का उपयोग करें।

    तुलसी विवाह पूजन के लाभ

    1. सुख-समृद्धि: तुलसी विवाह से परिवार में सुख और समृद्धि का वास होता है।
    2. धन-संपत्ति में वृद्धि: आर्थिक स्थिति में सुधार और धन का आगमन होता है।
    3. रोगों से मुक्ति: तुलसी की पूजा से रोग दूर होते हैं और स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
    4. संतान सुख: संतानहीन दंपतियों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।
    5. वैवाहिक जीवन में मधुरता: पति-पत्नी के बीच प्रेम और सामंजस्य बढ़ता है।
    6. सुखद जीवन: जीवन में सुखद अनुभव और समृद्धि बनी रहती है।
    7. घर में सकारात्मकता: तुलसी विवाह से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
    8. अकाल मृत्यु से रक्षा: आकस्मिक मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है।
    9. पारिवारिक प्रेम और सामंजस्य: परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम और एकता बढ़ती है।
    10. पितृ दोष से मुक्ति: तुलसी विवाह पितृ दोष से राहत दिलाता है।
    11. दुर्भाग्य से छुटकारा: दुर्भाग्य और नकारात्मक प्रभाव समाप्त होते हैं।
    12. शांति की प्राप्ति: मन में शांति का अनुभव होता है।
    13. विवाह बाधाओं से मुक्ति: विवाह में आने वाली बाधाओं का नाश होता है।
    14. संतोष की प्राप्ति: जीवन में संतोष और संतुलन बना रहता है।
    15. बुरी आदतों से मुक्ति: परिवार के सदस्यों में बुरी आदतों का अंत होता है।
    16. प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा: घर-परिवार पर आने वाली प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव कम होता है।
    17. समर्पण की भावना: तुलसी पूजा से व्यक्ति में भक्ति और समर्पण की भावना बढ़ती है।
    18. वृक्षारोपण का आशीर्वाद: तुलसी को संरक्षण देकर प्रकृति को सहेजने का पुण्य मिलता है।

    तुलसी विवाह पूजन के नियम और सावधानियाँ

    पूजा करते समय साफ-सुथरी स्थिति रखें। तुलसी विवाह करने के समय हाथ-पैर साफ रखें और संकल्प के साथ पूजा करें।

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    तुलसी विवाह में देवी भोग

    तुलसी माता को खीर, मिष्ठान्न और फल का भोग लगाएं। भोग से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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    पूजन की शुरुआत और समाप्ति

    पूजा का प्रारंभ गणेश पूजन से करें, और अंत में आरती उतारकर प्रसाद का वितरण करें।

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    तुलसी विवाह से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

    तुलसी विवाह का मुख्य उद्देश्य क्या है?
    पारिवारिक सुख, समृद्धि, और आशीर्वाद प्राप्त करना, साथ ही प्रकृति संरक्षण में योगदान देना।

    तुलसी विवाह कब मनाया जाता है?
    कार्तिक शुक्ल एकादशी या द्वादशी को तुलसी विवाह का आयोजन होता है, जो देवउठनी एकादशी के दिन आता है।

    तुलसी विवाह का धार्मिक महत्व क्या है?
    तुलसी विवाह का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है; इसे भगवान विष्णु और तुलसी माता का पवित्र मिलन माना जाता है।

    तुलसी विवाह में किन देवी-देवताओं की पूजा होती है?
    तुलसी माता और भगवान शालिग्राम (विष्णु) का विवाह संपन्न किया जाता है। गणेश पूजा से शुरुआत की जाती है।

    तुलसी विवाह में क्या सामग्री चाहिए?
    तुलसी के पौधे, शालिग्राम, फूल, माला, चंदन, धूप, दीप, फल, मिठाई, और प्रसाद की आवश्यकता होती है।

    क्या तुलसी विवाह सिर्फ शादीशुदा जोड़े ही कर सकते हैं?
    नहीं, तुलसी विवाह किसी भी भक्त द्वारा किया जा सकता है; इसके लिए विवाहित होना आवश्यक नहीं है।

    तुलसी विवाह में क्या प्रसाद चढ़ाया जाता है?
    तुलसी माता को खीर, फल, और मिठाई का भोग लगाया जाता है।

    तुलसी विवाह का मुहूर्त कैसे निकाला जाता है?
    पूजा के लिए शुभ मुहूर्त कार्तिक एकादशी या द्वादशी को पंडितों से परामर्श कर निकाला जाता है।

    तुलसी विवाह में क्या वर्जित होता है?
    मांस, लहसुन और प्याज जैसे तामसिक चीजों का सेवन वर्जित है। सात्विक भोजन करना चाहिए।

    तुलसी विवाह का प्रभाव कितना समय तक रहता है?
    तुलसी विवाह का पुण्य फल पूरे वर्ष तक प्रभावी रहता है और जीवन में सुख-शांति लाता है।

    क्या तुलसी विवाह के दिन उपवास करना चाहिए?
    यह श्रद्धानुसार है; कुछ लोग उपवास रखते हैं, जबकि कुछ लोग केवल सात्विक भोजन करते हैं।

    तुलसी विवाह कितने प्रकार से किया जा सकता है?
    तुलसी विवाह मंदिर में, घर में, या किसी सामूहिक कार्यक्रम में किया जा सकता है।

    Ratipriya Yakshini Mantra – Unveiling Bliss, Attraction & Power

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    रतिप्रिया यक्षिणी मंत्र: हर तरह का सुख देने वाली यक्षिणी

    रतिप्रिया यक्षिणी मंत्र का साधक को जीवन में अनेकों प्रकार के सुख, समृद्धि, यौवन, और आकर्षण प्रदान करने वाला माना गया है। यह मंत्र विशेषतः पौरुष शक्ति, विवाहित जीवन में प्रेम और सुख, और सौंदर्य में वृद्धि के लिए प्रसिद्ध है। रतिप्रिया यक्षिणी के आह्वान से साधक को जीवन में न केवल भौतिक सुख बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक संतोष की प्राप्ति होती है।

    दसों दिशाओं का दिग्बंधन मंत्र व उसका अर्थ

    दिग्बंधन मंत्र साधना में सुरक्षा का प्रतीक होता है। यह मंत्र दसों दिशाओं में सुरक्षात्मक घेरा बनाकर साधक को बुरी ऊर्जा से सुरक्षित करता है।

    मंत्र:
    “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं दिग्बंधाय नमः”

    अर्थ: इस मंत्र से चारों दिशाओं में सुरक्षा का आवाहन होता है ताकि साधक बिना किसी विघ्न के साधना कर सके।

    रतिप्रिया यक्षिणी मंत्र का संपूर्ण अर्थ:

    “॥ॐ ह्रीं रतिप्रिये क्लीं स्वाहा॥”

    इस मंत्र का अर्थ अत्यंत गहन और प्रभावशाली है।

    • : यह शब्द परम तत्व का प्रतीक है, जो सम्पूर्ण सृष्टि की ऊर्जा का स्रोत है। इसे साधक के भीतर आध्यात्मिक शक्ति जगाने के लिए मंत्र में सम्मिलित किया गया है।
    • ह्रीं: इस बीज मंत्र में प्रेम, आकर्षण और शक्ति की संपूर्ण ऊर्जा संचित होती है। यह शक्ति, आकर्षण और आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक है।
    • रतिप्रिये: रति प्रेम की देवी मानी जाती हैं, और “रतिप्रिये” यक्षिणी को प्रेम, आकर्षण, और सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है। यह शब्द साधक को प्रेम और सुख प्राप्ति में सहायता करता है।
    • क्लीं: क्लीं बीज मंत्र में कामना, आकर्षण और शक्ति का संयोजन है। यह साधक की इच्छाओं को सिद्ध करने और आकर्षण शक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है।
    • स्वाहा: यह शब्द आहुति या पूर्णता का प्रतीक है। मंत्र के अंत में स्वाहा का उच्चारण साधना को पूर्णता और सफलता की ओर ले जाता है।

    संक्षेप में, यह मंत्र साधक के जीवन में प्रेम, आकर्षण, सौंदर्य और सुख को आमंत्रित करता है। इसे करने से साधक को मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक संतुलन मिलता है, जिससे जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक लाभ की प्राप्ति होती है।

    जप के दौरान इन चीजों का सेवन अधिक करें

    साधना के दौरान कुछ विशेष चीजों का सेवन साधक की ऊर्जा और एकाग्रता को बढ़ा सकता है। जैसे:

    • दूध और शुद्ध घी
    • मेवे जैसे बादाम, अखरोट
    • मौसमी फल

    इन चीजों का सेवन साधक की ऊर्जा को बढ़ाता है और मंत्र में शक्ति संचारित करता है।

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    रतिप्रिया यक्षिणी मंत्र के लाभ

    रतिप्रिया यक्षिणी मंत्र साधना से साधक को कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। इस मंत्र के नियमित जप से जीवन में प्रेम, आकर्षण और सुख का संचार होता है। यहाँ इस मंत्र के प्रमुख लाभ दिए गए हैं:

    1. यौवन शक्ति: साधक में यौवन और ताजगी बनी रहती है।
    2. पौरुष शक्ति: यह मंत्र शारीरिक और मानसिक बल में वृद्धि करता है।
    3. विवाहित जीवन का सुख: विवाहित जीवन में प्रेम और आपसी सामंजस्य बढ़ता है।
    4. आकर्षण शक्ति: साधक की आकर्षण क्षमता में बढ़ोतरी होती है, जिससे लोग उसकी ओर खिंचे चले आते हैं।
    5. सौंदर्य में वृद्धि: साधक के चेहरे पर तेज और सौंदर्य में वृद्धि होती है।
    6. बुढ़ापे को रोकने की शक्ति: मंत्र साधना से साधक में युवा ऊर्जा का संचार होता है और उम्र बढ़ने की प्रक्रिया धीमी होती है।
    7. प्रेम में सफलता: यह मंत्र साधक को प्रेम संबंधों में सफलता दिलाने में सहायक होता है।
    8. मानसिक संतुलन: साधक को मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है।
    9. आध्यात्मिक उन्नति: साधक के भीतर आध्यात्मिक जागृति का संचार होता है।
    10. आत्मविश्वास में वृद्धि: साधक का आत्मविश्वास बढ़ता है जिससे वह हर परिस्थिति का सामना करने में सक्षम होता है।
    11. जीवन में सुख और समृद्धि: साधक के जीवन में भौतिक सुख-समृद्धि बढ़ती है।
    12. सकारात्मकता: साधक के आस-पास सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
    13. रोग प्रतिरोधक क्षमता: साधना से शारीरिक रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है।
    14. संबंधों में मधुरता: यह मंत्र साधक के पारिवारिक और सामाजिक संबंधों में प्रेम और मधुरता लाता है।
    15. बाधाओं का निवारण: साधक के मार्ग में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं।
    16. धन की प्राप्ति: साधक को आर्थिक समृद्धि और धन लाभ का अनुभव होता है।
    17. मनचाहा जीवनसाथी: अविवाहित साधक को मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त होने में सहूलियत मिलती है।
    18. अशुभ प्रभावों से सुरक्षा: यह मंत्र साधक को नकारात्मक ऊर्जाओं से बचाकर सुरक्षा प्रदान करता है।

    पूजन सामग्री व मंत्र विधि

    आवश्यक सामग्री: लाल या गुलाबी पुष्प, केसर, चंदन, कपूर, शुद्ध घी का दीपक, पवित्र जल, विशेष रूप से नई माला।

    जप की अवधि, दिन, मुहूर्त: मंत्र का जप किसी शुभ दिन से प्रारंभ करें और 20 मिनट तक 11 दिन तक इसे करें।

    सावधानियाँ: साधक को यह ध्यान रखना चाहिए कि इस दौरान नीले और काले वस्त्र न पहनें, धूम्रपान, मद्यपान, और मांसाहार से दूर रहें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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    जप के नियम व सावधानियाँ

    • 20 वर्ष से अधिक उम्र के स्त्री-पुरुष यह जप कर सकते हैं।
    • नीले, काले कपड़े न पहनें।
    • धूम्रपान, मद्यपान, और मांसाहार का सेवन न करें।
    • ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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    प्रश्न-उत्तर: रतिप्रिया यक्षिणी मंत्र से संबंधित

    प्रश्न 1: क्या रतिप्रिया यक्षिणी मंत्र का जप सभी कर सकते हैं?
    उत्तर: हां, इसे 20 वर्ष से अधिक उम्र के स्त्री और पुरुष कर सकते हैं, लेकिन उन्हें इस दौरान खास नियमों का पालन करना चाहिए।

    प्रश्न 2: मंत्र का जप कब और कितने दिनों तक करना चाहिए?
    उत्तर: मंत्र का जप सुबह या रात के शांत समय में 11 दिन तक रोज 20 मिनट करना चाहिए।

    प्रश्न 3: इस मंत्र से क्या-क्या लाभ प्राप्त हो सकते हैं?
    उत्तर: इस मंत्र से यौवन शक्ति, आकर्षण शक्ति, विवाहित जीवन का सुख, पौरुष शक्ति, और सौंदर्य में वृद्धि होती है।

    प्रश्न 4: इस साधना में कौन-कौन से नियमों का पालन करना आवश्यक है?
    उत्तर: साधक को ब्रह्मचर्य के साथ और मद्यपान-धूम्रपान से दूर रहना चाहिए। काले और नीले वस्त्र भी वर्जित हैं।

    प्रश्न 5: क्या साधना के दौरान कोई विशेष भोजन करना चाहिए?
    उत्तर: हां, दूध, मेवे, और मौसमी फलों का सेवन करना ऊर्जा को बढ़ाता है।

    प्रश्न 6: क्या जप के समय दिग्बंधन आवश्यक है?
    उत्तर: हां, दिग्बंधन मंत्र से जप के दौरान सुरक्षा मिलती है।

    प्रश्न 7: क्या साधना के लिए विशेष मुहूर्त की आवश्यकता है?
    उत्तर: शुभ दिन या पुष्य नक्षत्र में प्रारंभ करना लाभकारी माना जाता है।

    प्रश्न 8: इस मंत्र का विनियोग क्या है?
    उत्तर: यह प्रेम, आकर्षण और सुख की प्राप्ति के लिए किया जाता है।

    प्रश्न 9: क्या मंत्र जाप के दौरान विशेष आसन जरूरी है?
    उत्तर: हां, कुश या ऊनी आसन पर बैठना उचित माना जाता है।

    प्रश्न 10: साधना में कौन से पुष्प उपयोगी हैं?
    उत्तर: लाल और गुलाबी पुष्प का उपयोग इस साधना में लाभकारी है।

    प्रश्न 11: क्या मंत्र के उच्चारण में शुद्धता का ध्यान आवश्यक है?
    उत्तर: हां, शुद्ध उच्चारण से मंत्र का प्रभाव बढ़ता है।

    प्रश्न 12: क्या मंत्र साधना के बाद विशेष आहार-विहार अपनाना चाहिए?
    उत्तर: हां, सात्विक भोजन और संयमित जीवन मंत्र की शक्ति को बनाए रखने में सहायक है।

    Bhuwaneshwari Mantra for Prosperity & Abundance

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    भुवनेश्वरी मंत्र: आपकी मनोकामनाओं की पूर्ति का मार्ग

    भुवनेश्वरी मंत्र देवी भुवनेश्वरी को समर्पित है, जो भौतिक सुखों, वाक् सिद्धी, आकर्षण और मनोकामना पूर्ति में सहायक मानी जाती हैं। यह मंत्र अपने अनुयायियों को धन, सौंदर्य, प्रसिद्धि और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने का सामर्थ्य प्रदान करता है। भुवनेश्वरी मंत्र को सही विधि और नियमों के अनुसार जपने से व्यक्ति अपने जीवन में सकारात्मकता और ऐश्वर्य की ओर अग्रसर होता है।

    दसों दिशाओं का दिग्बंधन मंत्र व अर्थ

    दिग्बंधन मंत्र:
    “॥ ॐ ह्रां ह्रीं हुं फट् ॥”

    अर्थ: यह मंत्र दसों दिशाओं की सुरक्षा हेतु है। इसका उच्चारण करने से चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का घेरा बनता है।

    भुवनेश्वरी मंत्र का संपूर्ण अर्थ

    मंत्र:
    “॥ ॐ ह्रां ह्रीं भुवनेश्वरी क्लीं स्वाहा ॥”

    मंत्र का अर्थ:

    1. ॐ (Om):
      यह ध्वनि ब्रह्मांड की मूल ध्वनि मानी जाती है। इसे सभी मंत्रों की शुरुआत में रखा जाता है, क्योंकि यह सभी ऊर्जा और शक्तियों का प्रतीक है।
    2. ह्रां (Hraam):
      यह बीज मंत्र, देवी की शक्ति और ऊर्जा को जागृत करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह साधक को उनके जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति में सहायता करता है।
    3. ह्रीं (Hriim):
      यह मंत्र का दूसरा बीज स्वरूप है, जो देवी के आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति का प्रतीक है। यह साधक के मन की शांति और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाने में मदद करता है।
    4. भुवनेश्वरी (Bhuvaneshwari):
      देवी भुवनेश्वरी, विश्व की सृष्टि और संरक्षण का प्रतीक मानी जाती हैं। वे भौतिक सुख और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करती हैं। यह शब्द उनके सर्वोच्च रूप का संकेत करता है।
    5. क्लीं (Kleem):
      यह मंत्र का आकर्षण बीज है। इसका अर्थ है इच्छाओं और भौतिक सुखों को आकर्षित करना। यह प्रेम, धन और अन्य इच्छाओं को प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी है।
    6. स्वाहा (Swaha):
      यह शब्द मंत्र का समापन करता है और बलिदान, समर्पण और देवी को अर्पण का प्रतीक है। यह शब्द यह दर्शाता है कि साधक अपनी इच्छाओं और अर्पण को देवी के चरणों में समर्पित करता है।

    संपूर्ण अर्थ:

    भुवनेश्वरी मंत्र का संपूर्ण अर्थ इस प्रकार है:
    “हे देवी भुवनेश्वरी, जो इस विश्व की सृष्टि, पालन और संहार की शक्तियों की अधिष्ठात्री हैं, आपके प्रति मेरा समर्पण है। मैं आपके दिव्य नाम का जप करता हूँ, ताकि आपकी शक्ति मुझे वाक् सिद्धि, भौतिक सुख और मनोकामनाओं की पूर्ति में सहायक हो।”

    यह मंत्र साधक को मानसिक, भौतिक और आध्यात्मिक स्तर पर समृद्धि की ओर ले जाता है, जिससे वे जीवन में हर प्रकार की सफलता और सुख को प्राप्त कर सकें।

    जप के दौरान सेवन में वृद्धि करें

    जप काल में सादे भोजन और सत्वगुण से भरी वस्तुओं का सेवन करें। फल, दूध, हल्दी, शुद्ध घी, और शहद विशेष रूप से लाभकारी माने जाते हैं।

    भुवनेश्वरी मंत्र जप से लाभ

    1. वाक् सिद्धि प्राप्ति
    2. आकर्षण शक्ति में वृद्धि
    3. मनोकामनाओं की पूर्ति
    4. शत्रु पर विजय
    5. धन लाभ
    6. शांति और मानसिक स्थिरता
    7. आत्मबल में वृद्धि
    8. पारिवारिक सौहार्द्र
    9. विवाह में सफलता
    10. आध्यात्मिक उन्नति
    11. स्वास्थ्य में सुधार
    12. सौंदर्य वृद्धि
    13. आत्मविश्वास में वृद्धि
    14. करियर में सफलता
    15. कार्यों में शुभता
    16. समाज में मान-सम्मान
    17. सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि
    18. तनाव से मुक्ति

    पूजन सामग्री व मंत्र विधि

    पूजन सामग्री में देवी की तस्वीर, लाल पुष्प, चंदन, धूप, दीप, कपूर, और घी का दीपक आवश्यक है।

    मंत्र जप का दिन, अवधि, मुहूर्त

    मंत्र जप मंगलवार या शुक्रवार से प्रारंभ करें, 20 मिनट प्रतिदिन 11 दिनों तक जप करें। ब्रह्म मुहूर्त या संध्या काल में जप अधिक प्रभावी होता है।

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    मंत्र जप के नियम

    1. उम्र: 20 वर्ष से ऊपर
    2. वस्त्र: सफेद या लाल वस्त्र धारण करें, नीले या काले कपड़े न पहनें
    3. आहार व आचरण: धूम्रपान, मद्यपान, और मांसाहार से बचें; ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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    जप के दौरान सावधानियाँ

    • जप के समय एकाग्रता बनाए रखें|
    • देवालय में शांत मन से जप करें।

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    भुवनेश्वरी मंत्र से संबंधित प्रश्न-उत्तर

    प्रश्न 1: भुवनेश्वरी मंत्र क्या है?
    उत्तर: भुवनेश्वरी मंत्र एक शक्तिशाली मंत्र है जो देवी भुवनेश्वरी को समर्पित है। यह साधक को भौतिक सुख, मानसिक शांति और मनोकामनाओं की पूर्ति में सहायक होता है।

    प्रश्न 2: इस मंत्र का जप कैसे करें?
    उत्तर: मंत्र का जप शांत स्थान पर, सफेद या लाल वस्त्र पहनकर, ध्यानपूर्वक करना चाहिए। 20 मिनट तक प्रतिदिन जप करें और इसे 11 दिनों तक जारी रखें।

    प्रश्न 3: क्या इस मंत्र से वाक् सिद्धि मिल सकती है?
    उत्तर: हां, भुवनेश्वरी मंत्र से वाक् सिद्धि प्राप्त होती है, जिससे व्यक्ति की वाणी में प्रभाव और आकर्षण बढ़ता है।

    प्रश्न 4: जप के समय किन चीजों से बचना चाहिए?
    उत्तर: जप के समय धूम्रपान, मद्यपान, और मांसाहार से बचना चाहिए। साथ ही, ब्लू या ब्लैक कपड़े नहीं पहनने चाहिए।

    प्रश्न 5: भुवनेश्वरी मंत्र का जप कब करना चाहिए?
    उत्तर: भुवनेश्वरी मंत्र का जप मंगलवार या शुक्रवार को शुरू करना सबसे शुभ माना जाता है।

    प्रश्न 6: क्या महिलाएं भी इस मंत्र का जप कर सकती हैं?
    उत्तर: हां, महिलाएं भी इस मंत्र का जप कर सकती हैं, बशर्ते वे 20 वर्ष से ऊपर हों।

    प्रश्न 7: क्या इस मंत्र का जप समूह में किया जा सकता है?
    उत्तर: हां, इसे समूह में भी किया जा सकता है, जिससे ऊर्जा का प्रभाव बढ़ता है।

    प्रश्न 8: मंत्र जप के दौरान क्या सामग्री चाहिए?
    उत्तर: जप के दौरान देवी की तस्वीर, लाल पुष्प, धूप, दीपक, कपूर और घी की आवश्यकता होती है।

    प्रश्न 9: क्या भुवनेश्वरी मंत्र से धन लाभ होता है?
    उत्तर: हां, इस मंत्र का जप करने से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

    प्रश्न 10: क्या यह मंत्र सभी के लिए है?
    उत्तर: हां, यह मंत्र सभी के लिए है, लेकिन 20 वर्ष से ऊपर की आयु होना आवश्यक है।

    प्रश्न 11: भुवनेश्वरी मंत्र के जप से क्या लाभ होते हैं?
    उत्तर: इस मंत्र के जप से वाक् सिद्धि, आकर्षण शक्ति, मनोकामना पूर्ति, शत्रु पर विजय और मानसिक शांति जैसे लाभ होते हैं।

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    स्वर्णरेखा यक्षिणी मंत्र: भौतिक सुख, संपन्नता और सफलता प्राप्ति का रहस्य

    स्वर्णरेखा यक्षिणी मंत्र का जाप उन साधकों के लिए है जो आर्थिक, भौतिक और मानसिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए इसे धारण करना चाहते हैं। इस यक्षिणी मंत्र की महिमा अनेक धर्म ग्रंथों में की गई है और यह साधना करने वालों को अलौकिक शक्ति एवं संपन्नता का आशीर्वाद देती है।

    दिग्बंधन मंत्र और उसका अर्थ

    मंत्र: “ॐ आपदध्वं दिशाश्वॆहिनिदानं पांतां मा सर्वतो दिशो”
    अर्थ: यह मंत्र दसों दिशाओं की रक्षा करते हुए, साधक के चारों ओर सुरक्षा कवच का निर्माण करता है।

    स्वर्णरेखा यक्षिणी मंत्र और उसका संपूर्ण अर्थ

    मंत्र: “ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रः स्वर्णरेखा यक्षिणे क्लीं स्वाहा”

    संपूर्ण अर्थ:

    यह मंत्र विशेष रूप से धन, समृद्धि, सौभाग्य और मानसिक शांति को आकर्षित करने के लिए साधकों द्वारा जपा जाता है। इसके शब्द-चयन और ध्वनि तरंगें जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं, जो साधक के भीतर आत्मविश्वास और शांति को बढ़ाती हैं। इस मंत्र में हर बीजाक्षर का एक विशिष्ट अर्थ और शक्ति है:

    1. – यह ईश्वर का पवित्र शब्द है, जो आध्यात्मिक जागरण और ध्यान के लिए उपयोगी है।
    2. ह्रां, ह्रीं, ह्रूं, ह्रः – ये बीजाक्षर यक्षिणी की अलौकिक शक्ति को जाग्रत करते हैं, जो साधक के जीवन में समृद्धि और उन्नति के द्वार खोलने में सहायक होते हैं।
    3. स्वर्णरेखा – इस शब्द का सीधा अर्थ है “सुनहरी रेखा,” जो संपन्नता और ऐश्वर्य का प्रतीक है। यह यक्षिणी साधना द्वारा साधक के जीवन में सौभाग्य और धन की उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
    4. क्लीं – यह बीज मंत्र प्रेम, आकर्षण और अनुकूलता का प्रतीक है। साधना के दौरान इसका जाप साधक की सभी इच्छाओं को पूर्ण करने में सहायक होता है।
    5. स्वाहा – यह मंत्र का अंतिम शब्द है, जो मंत्र को सिद्धि प्रदान करता है और इसके लाभों को स्थायी बनाता है।

    संक्षिप्त रूप में, यह मंत्र यक्षिणी की कृपा से साधक के जीवन में सौभाग्य, सुख, समृद्धि, और शांति की स्थापना करता है। इसके नियमित जप से साधक को भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति होती है।

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    जप काल में सेवन करने योग्य आहार

    स्वर्णरेखा यक्षिणी मंत्र साधना के दौरान विशेष आहार का सेवन करना साधना की सफलता और साधक की ऊर्जा को बढ़ाने में सहायक होता है। इन आहारों का सेवन साधक के शरीर और मन को स्थिरता और शांति प्रदान करता है, जिससे साधना में ध्यान केंद्रित और उन्नत किया जा सके। जप काल में निम्नलिखित आहार का सेवन विशेष रूप से लाभकारी माना गया है:

    1. दूध और दूध से बने पदार्थ: दूध में सकारात्मक ऊर्जा और शांति प्रदान करने की शक्ति होती है। इसका नियमित सेवन साधक की मानसिक शक्ति और ऊर्जा को बढ़ाता है।
    2. फल: ताजे फल जैसे केला, सेब, अनार, और पपीता आदि साधक की आंतरिक ऊर्जा को बढ़ाते हैं और शरीर को तरोताजा रखते हैं।
    3. सूखे मेवे: काजू, बादाम, किशमिश, अखरोट जैसे सूखे मेवे का सेवन साधक की मानसिक स्थिरता बढ़ाने और ध्यान केंद्रित करने में सहायक होता है। यह दिमागी थकान को दूर करते हैं और ऊर्जा प्रदान करते हैं।
    4. हरी सब्जियां: पालक, मेथी, और अन्य हरी सब्जियां शरीर को पोषण देती हैं, जिससे साधक का शरीर स्वस्थ और ऊर्जावान बना रहता है।
    5. ताजा और हल्का भोजन: साधना के दौरान साधक को ताजे और हल्के भोजन का सेवन करना चाहिए, जैसे खिचड़ी, दलिया, सूप, आदि, जो पाचन में आसान हो और शरीर में भारीपन न लाए।
    6. शुद्ध जल: साधना के दौरान पर्याप्त मात्रा में जल का सेवन करना आवश्यक है। यह शरीर को शुद्ध रखता है और साधना के दौरान उत्पन्न ऊर्जा को संतुलित करता है।

    इन आहारों का सेवन साधक की साधना को शक्ति प्रदान करता है और शरीर व मन को संतुलित रखता है, जिससे साधक के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है।

    स्वर्णरेखा यक्षिणी साधना के लाभ

    1. धन-संपत्ति में वृद्धि
    2. मानसिक शांति
    3. व्यवसाय में उन्नति
    4. रिश्तों में सुधार
    5. शत्रुओं पर विजय
    6. ऋण मुक्ति
    7. करियर में उन्नति
    8. आत्मबल वृद्धि
    9. सौभाग्य की प्राप्ति
    10. मनोकामना पूर्ण
    11. अद्वितीय आकर्षण शक्ति
    12. स्वस्थ और सफल जीवन
    13. सिद्धि प्राप्ति
    14. दैवीय शक्ति का अनुभव
    15. आर्थिक सुरक्षा
    16. मन की शांति
    17. करुणा और दया की वृद्धि
    18. सकारात्मकता और आंतरिक स्थिरता

    स्वर्णरेखा यक्षिणी मंत्र साधना सामग्री और तिलक विधि

    सामग्री: एक चम्मच अष्टगंध, हल्दी, घी का दीपक, पीला आसन।

    1. पीले आसन पर बैठें और सामने दीपक जलाएं।
    2. शक्ति मुद्रा में २० मिनट तक प्रतिदिन १८ दिनों तक मंत्र का जप करें।
    3. १८वें दिन अन्नदान करें।
    4. हल्दी और अष्टगंध में घी मिलाकर तिलक बनाएं, कार्य से बाहर जाने से पहले यह तिलक लगाएं। माथे पर न लगा सकें तो गले या कान के पीछे लगाएं।

    मंत्र जप के दिन, अवधि और मुहूर्त

    साधना का शुभारंभ शुक्ल पक्ष के गुरुवार को किया जाए। २० मिनट तक रोज १८ दिनों तक जाप करें।

    स्वर्णरेखा यक्षिणी मंत्र जप के नियम

    • आयु २० वर्ष से ऊपर होनी चाहिए।
    • स्त्री-पुरुष दोनों जप कर सकते हैं।
    • नीले और काले वस्त्र न पहनें।
    • धूम्रपान, मद्यपान, और मांसाहार से दूर रहें।
    • ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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    सावधानियाँ

    • साधना के समय पूर्ण श्रद्धा और संयम रखें।
    • गलत विचारों और अविश्वास से दूर रहें।

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    स्वर्णरेखा यक्षिणी मंत्र से संबंधित प्रश्नोत्तर

    प्रश्न: क्या तिलक को विशेष कार्य में बाहर निकलने से पहले ही लगाना है?
    उत्तर: हां, यह तिलक विशेष कार्य में सफलता दिलाने में सहायक होता है।

    प्रश्न: स्वर्णरेखा यक्षिणी मंत्र का उद्देश्य क्या है?
    उत्तर: यह मंत्र साधक को भौतिक सुख, समृद्धि, और आत्मबल प्राप्ति के लिए है।

    प्रश्न: इस मंत्र का जाप कौन कर सकता है?
    उत्तर: २० वर्ष से ऊपर के स्त्री-पुरुष दोनों इस मंत्र का जाप कर सकते हैं, लेकिन संयमित जीवनशैली आवश्यक है।

    प्रश्न: मंत्र जाप के दौरान कौन से वस्त्र पहनने चाहिए?
    उत्तर: सफेद या पीले रंग के वस्त्र पहनें। नीले और काले कपड़े पहनने से बचें।

    प्रश्न: साधना के दौरान कौन से आहार का सेवन करना चाहिए?
    उत्तर: दूध, फल, सूखे मेवे और शाकाहारी भोजन का सेवन करें।

    प्रश्न: क्या मंत्र जप के समय किसी खास दिन या मुहूर्त का पालन करना चाहिए?
    उत्तर: मंत्र का आरंभ शुक्ल पक्ष के गुरुवार को करना शुभ माना जाता है।

    प्रश्न: मंत्र का प्रभाव कब तक रहता है?
    उत्तर: उचित जप विधि और संयम के साथ किया गया मंत्र दीर्घकालिक लाभ प्रदान करता है।

    प्रश्न: मंत्र जाप की अवधि क्या होनी चाहिए?
    उत्तर: प्रतिदिन २० मिनट तक १८ दिनों तक इस मंत्र का जाप करें।

    प्रश्न: क्या जप के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक है?
    उत्तर: हां, साधना में सफलता के लिए ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक है।

    प्रश्न: क्या मंत्र जप के दौरान धूम्रपान या मद्यपान कर सकते हैं?
    उत्तर: नहीं, यह साधना के नियमों का उल्लंघन होगा और लाभ प्राप्त नहीं होंगे।

    प्रश्न: क्या साधना के बाद कोई विशेष दान करना चाहिए?
    उत्तर: १८वें दिन अन्नदान करना अति शुभ माना जाता है।

    प्रश्न: साधना के लिए कौन सी मुद्रा का प्रयोग करना चाहिए?
    उत्तर: शक्ति मुद्रा में बैठकर जाप करें।

    Bhuvaneshwari Beej Mantra – Magic of Hreem

    Bhuvaneshwari Beej Mantra - Magic of Hreem

    भुवनेश्वरी बीज मंत्र: जाप के नियम, सावधानियाँ और विशेष आहार

    भुवनेश्वरी बीज (Beej) मंत्र “॥ह्रीं॥” देवी भुवनेश्वरी को समर्पित एक अत्यंत शक्तिशाली मंत्र है। देवी भुवनेश्वरी, सृष्टि की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं और उनके बीज मंत्र का जाप करने से साधक के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, शांति और समृद्धि का संचार होता है।

    मंत्र व अर्थ: भुवनेश्वरी बीज मंत्र

    “॥ह्रीं॥”

    “ह्रीं” शब्द में देवी भुवनेश्वरी की शक्ति संचित है। “ह्रीं” में छिपी हर ध्वनि एक विशेष ऊर्जा का संचार करती है जो साधक के मन, आत्मा और पूरे शरीर को जाग्रत कर देती है। यह मंत्र देवी की कृपा और आशीर्वाद को आकर्षित करता है, जिससे साधक का जीवन सुखमय और समृद्ध बनता है।

    भुवनेश्वरी बीज मंत्र जाप के अद्भुत फायदे

    1. मानसिक शांति और स्थिरता मिलती है।
    2. आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
    3. नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा मिलती है।
    4. ध्यान में एकाग्रता आती है।
    5. आर्थिक समृद्धि प्राप्त होती है।
    6. शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
    7. संबंधों में मधुरता आती है।
    8. आध्यात्मिक उन्नति होती है।
    9. भय और असुरक्षा दूर होती है।
    10. कष्ट और बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
    11. घर में सुख-शांति का माहौल बनता है।
    12. नकारात्मक विचार दूर होते हैं।
    13. जीवन में नई ऊर्जा का संचार होता है।
    14. शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
    15. देवी की कृपा से नए अवसर प्राप्त होते हैं।
    16. साधक को देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

    जप के समय विशेष आहार

    भुवनेश्वरी बीज मंत्र का जाप करते समय साधक के आहार में शुद्धता और सात्विकता होनी चाहिए, जिससे शरीर और मन को शक्ति और शांति मिले। यहां जप के समय उपयुक्त आहार और उन खाद्य पदार्थों की सूची दी गई है जिनका सेवन लाभकारी माना गया है:

    1. फल

    • सेब, केला, अनार, नारंगी, पपीता, और मौसमी जैसे ताजे फलों का सेवन करें। ये मन को शांत रखते हैं और शरीर में ऊर्जा का संचार करते हैं।

    2. सूखे मेवे

    • बादाम, काजू, किशमिश, अंजीर जैसे सूखे मेवे ऊर्जा प्रदान करते हैं और शरीर को मजबूत बनाते हैं, जो जप के दौरान मन को स्थिर रखते हैं।

    3. दूध और दुग्ध उत्पाद

    • गाय का दूध, दही और घर में बने मक्खन का सेवन करें। यह सात्विक आहार माना जाता है जो साधना में मन को एकाग्र करता है।

    4. हरी सब्जियाँ

    • लौकी, तोरी, पालक, और अन्य ताजे हरे पत्तेदार सब्जियों का सेवन करें। ये शरीर को शुद्ध रखती हैं और मानसिक स्पष्टता देती हैं।

    5. खिचड़ी और हल्का भोजन

    • मूंग दाल और चावल की खिचड़ी एक सुपाच्य और हल्का भोजन है, जिसे जप के दौरान सेवन किया जा सकता है। इससे शरीर में हल्कापन बना रहता है।

    6. शुद्ध पानी और हर्बल चाय

    • जप के समय हाइड्रेशन बनाए रखें। गुनगुना पानी और तुलसी, अदरक से बनी हर्बल चाय का सेवन करें।

    इन सात्विक आहारों का सेवन भुवनेश्वरी बीज मंत्र जाप के दौरान साधक को मानसिक और शारीरिक संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है, जिससे साधना में सिद्धि और शांति प्राप्त होती है।

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    मंत्र जप के नियम

    1. आयु: 18 वर्ष के ऊपर।
    2. जप समय: प्रतिदिन 10 मिनट।
    3. उपयुक्त कपड़े: ब्लू और ब्लैक कपड़े न पहनें।
    4. परहेज: धूम्रपान, मद्यपान, और मांसाहार का सेवन न करें।
    5. आचरण: ब्रह्मचर्य का पालन करें।
    6. स्त्री और पुरुष: दोनों जप कर सकते हैं।

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    मंत्र जप सावधानियाँ

    • जप का उचित दिन: मंगलवार, पूर्णिमा या नवरात्रि में।
    • उचित समय: सूर्योदय या सूर्यास्त के समय।

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    भुवनेश्वरी बीज मंत्र – अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न और उत्तर

    प्रश्न 1: भुवनेश्वरी बीज मंत्र क्या है?

    उत्तर: भुवनेश्वरी बीज मंत्र “॥ह्रीं॥” एक शक्तिशाली मंत्र है जो देवी भुवनेश्वरी की कृपा प्राप्त करने में सहायक है।

    प्रश्न 2: भुवनेश्वरी बीज मंत्र का जाप कौन कर सकता है?

    उत्तर: कोई भी 18 वर्ष से अधिक का व्यक्ति, चाहे स्त्री हो या पुरुष, इस मंत्र का जाप कर सकता है।

    प्रश्न 3: इस मंत्र का जाप किस समय करना चाहिए?

    उत्तर: सूर्योदय और सूर्यास्त का समय मंत्र जाप के लिए उत्तम माना गया है।

    प्रश्न 4: क्या मंत्र जाप के दौरान कोई विशेष कपड़े पहनने चाहिए?

    उत्तर: हाँ, मंत्र जाप के दौरान ब्लू और ब्लैक कपड़े न पहनें; सफेद या हल्के रंगों के वस्त्र उपयुक्त हैं।

    प्रश्न 5: क्या मंत्र जाप में धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार की मनाही है?

    उत्तर: हाँ, इनसे परहेज करना चाहिए क्योंकि ये साधना में रुकावट डालते हैं।

    प्रश्न 6: क्या मंत्र जाप के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक है?

    उत्तर: हाँ, ब्रह्मचर्य का पालन मंत्र की शक्ति को बढ़ाता है।

    प्रश्न 7: मंत्र का जाप कितने समय के लिए करें?

    उत्तर: शुरुआत में 10 मिनट रोज जाप करना उचित है।

    प्रश्न 8: क्या इस मंत्र का जाप विशेष दिनों पर करना चाहिए?

    उत्तर: पूर्णिमा और नवरात्रि जैसे विशेष दिनों पर जाप करना अधिक लाभकारी है।

    प्रश्न 9: इस मंत्र का जाप किस प्रकार के आहार के साथ करना चाहिए?

    उत्तर: हल्का और सात्विक आहार जैसे फल, सूखे मेवे, और दूध का सेवन करें।

    प्रश्न 10: क्या इस मंत्र से कोई मनोकामना पूरी हो सकती है?

    उत्तर: हाँ, भक्तिपूर्वक जाप से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

    प्रश्न 11: मंत्र जाप में कौन सी सावधानियाँ बरतनी चाहिए?

    उत्तर: नियमितता, ब्रह्मचर्य, और सकारात्मक मानसिकता बनाए रखें।

    प्रश्न 12: क्या इस मंत्र का जाप घर पर किया जा सकता है?

    उत्तर: हाँ, इसे घर के शुद्ध और शांत स्थान पर किया जा सकता है।

    Tripura Bhairavi Panchakuta Mantra – Unlocking Mystical Benefits

    Tripura Bhairavi Panchakuta Mantra - Unlocking Mystical Benefits

    त्रिपुर भैरवी पंचकूटा मंत्र: शक्ति और सिद्धि प्राप्ति का रहस्यमय मार्ग

    त्रिपुर भैरवी पंचकूटा मंत्र एक अद्भुत शक्ति संपन्न तांत्रिक मंत्र है, जिसका साधना से साधक विभिन्न प्रकार के लाभ प्राप्त कर सकता है। महाविद्या त्रिपुर भैरवी पंचकूटा मंत्र विशेष रूप से कठिन साधनाओं में शक्ति प्राप्ति के लिए प्रयोग में लाया जाता है।

    त्रिपुर भैरवी पंचकूटा मंत्र विनियोग

    विनियोग का अर्थ है, किसी मंत्र का उद्देश्य और उसे किस कार्य के लिए प्रयोग में लाना है। त्रिपुर भैरवी पंचकूटा मंत्र का विनियोग मुख्यतः साधक की आत्मशक्ति को जाग्रत करने, नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने, और तांत्रिक सिद्धि प्राप्ति के लिए किया जाता है। इसके विनियोग से साधना का लक्ष्य स्पष्ट होता है, जिससे साधना अधिक प्रभावकारी बनती है।

    विनियोग मंत्र:

    “ॐ अस्य श्री त्रिपुर भैरवी पंचकूटा मंत्रस्य, शिव ऋषिः, गायत्री छंदः, त्रिपुर भैरवी देवता, शक्तिप्राप्ति सिद्धये जपे विनियोगः॥”

    विनियोग में संकल्प

    1. शिव ऋषि – इस मंत्र के ऋषि भगवान शिव हैं, जो ज्ञान और तांत्रिक शक्तियों के स्वामी हैं।
    2. गायत्री छंद – इस मंत्र का छंद गायत्री है, जो ऊर्जा और प्रकाश का प्रतीक है।
    3. त्रिपुर भैरवी देवता – मंत्र की अधिष्ठात्री देवी त्रिपुर भैरवी हैं, जो शक्तिशाली देवी के रूप में जानी जाती हैं।
    4. शक्तिप्राप्ति सिद्धये – यह मंत्र विशेष रूप से साधक को शक्ति और सिद्धि की प्राप्ति के लिए है।

    मंत्र विनियोग का महत्व

    विनियोग करने से मंत्र जप में मानसिक एकाग्रता बढ़ती है और साधना के दौरान साधक अपने उद्देश्य पर केंद्रित रहता है। त्रिपुर भैरवी पंचकूटा मंत्र का विनियोग करके साधक अपनी साधना को स्पष्ट संकल्प के साथ प्रारंभ कर सकता है, जिससे साधना में अधिक लाभ प्राप्त होता है।

    त्रिपुर भैरवी पंचकूटा मंत्र एवं संपूर्ण अर्थ

    मंत्र: “॥ह् स्रौं ह् स्कल्रीं हस्रौं॥”

    मंत्र के प्रत्येक बीजाक्षर का अर्थ:

    • “ह्”: यह बीजाक्षर शक्ति का प्रतीक है। यह साधक की आंतरिक ऊर्जा को जागृत करता है और उसे आत्मबल प्रदान करता है।
    • “स्रौं”: इस बीजाक्षर में मंत्र का मुख्य सार छिपा है। यह साधक के सभी प्रकार के भय को दूर करता है और आत्मविश्वास प्रदान करता है।
    • “स्कल्रीं”: यह बीज मंत्र साधक की चेतना को जाग्रत करता है। इसे जपने से साधक का मन और विचार शुद्ध होते हैं और वह साधना में पूरी तरह से केंद्रित हो पाता है।
    • “हस्रौं”: यह बीज मंत्र साधक को उसकी इच्छाशक्ति को सशक्त बनाने में सहायता करता है। यह साधना के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करता है और साधक को ऊर्जावान बनाए रखता है।

    मंत्र का संपूर्ण अर्थ:

    इस मंत्र का संपूर्ण अर्थ है कि साधक अपनी आत्मा को शक्ति, साहस और शांति के साथ संजीवित करे। त्रिपुर भैरवी का यह मंत्र साधक को सभी प्रकार की नकारात्मकता से दूर रखता है, उसकी आंतरिक चेतना को जागृत करता है और उसे तांत्रिक शक्तियों के लिए तैयार करता है। यह साधना का एक प्राचीन और शक्तिशाली मंत्र है, जो साधक के जीवन में स्थायित्व, सुरक्षा और आध्यात्मिक प्रगति लाने में सहायक होता है।

    मंत्र जप के लाभ

    1. आत्मबल की प्राप्ति
    2. मानसिक शांति
    3. शत्रुओं से रक्षा
    4. वित्तीय उन्नति
    5. स्वास्थ्य में सुधार
    6. व्यापार में लाभ
    7. पारिवारिक सुख
    8. यश में वृद्धि
    9. बुरी आदतों से मुक्ति
    10. तांत्रिक साधनाओं में सफलता
    11. सिद्धियों की प्राप्ति
    12. भय निवारण
    13. आयु वृद्धि
    14. उच्च ऊर्जा स्तर
    15. ध्यान शक्ति में सुधार
    16. मानसिक स्थिरता

    जप काल में सेवन योग्य आहार

    • ताजे फल, दूध, और सूखे मेवे का सेवन अधिक करें।
    • ज्यादा मसालेदार और तैलीय भोजन से बचें, जिससे साधना में मन एकाग्र रहे।

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    मंत्र जप के नियम

    1. उम्र: मंत्र जप 18 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति करें।
    2. समय: प्रतिदिन 10 मिनट मंत्र का जप करें।
    3. पोशाक: साधना के समय नीले या काले कपड़े न पहनें।
    4. सावधानी: धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार का त्याग करें।
    5. ब्रह्मचर्य: साधना काल में ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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    मंत्र जप के सावधानियाँ

    • समय: सूर्योदय या सूर्यास्त का समय मंत्र जप के लिए उत्तम होता है।
    • स्थान: शुद्ध, शांत और ऊर्जा से भरपूर स्थान पर ही मंत्र जप करें।

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    मंत्र से जुड़े प्रश्न और उत्तर

    प्रश्न 1: क्या त्रिपुर भैरवी पंचकूटा मंत्र में सभी कर सकते हैं?

    उत्तर: हां, 18 वर्ष से ऊपर कोई भी व्यक्ति इस मंत्र का जप कर सकता है।

    प्रश्न 2: क्या मंत्र जप के लिए कोई विशेष स्थान चाहिए?

    उत्तर: हां, शुद्ध और शांत स्थान में जप करना लाभकारी होता है।

    प्रश्न 3: मंत्र जप के क्या लाभ हैं?

    उत्तर: आत्मबल, मानसिक शांति और तांत्रिक सिद्धि आदि लाभ होते हैं।

    प्रश्न 4: क्या साधना में धूम्रपान से बचे रहना चाहिए?

    उत्तर: जी हां, धूम्रपान साधना में बाधा उत्पन्न करता है।

    प्रश्न 5: क्या मंत्र जप में ब्रह्मचर्य आवश्यक है?

    उत्तर: हां, यह साधना में शक्ति बनाए रखने में सहायक है।

    प्रश्न 6: क्या नीले या काले कपड़े पहन सकते हैं?

    उत्तर: मंत्र जप में नीले और काले रंग के कपड़े पहनने की मनाही है।

    प्रश्न 7: साधना का कौन सा समय उत्तम होता है?

    उत्तर: सूर्योदय और सूर्यास्त का समय आदर्श माना गया है।

    प्रश्न 8: क्या मांसाहार से बचना चाहिए?

    उत्तर: जी हां, साधना काल में मांसाहार से बचना चाहिए।

    प्रश्न 9: क्या विशेष पोषण की आवश्यकता होती है?

    उत्तर: फल, दूध और हल्का भोजन साधना में सहायक होता है।

    प्रश्न 10: मंत्र जप कितनी देर करना चाहिए?

    उत्तर: प्रतिदिन 10 मिनट का समय पर्याप्त है।

    प्रश्न 11: क्या स्त्री और पुरुष दोनों कर सकते हैं?

    उत्तर: जी हां, स्त्री और पुरुष दोनों इस साधना का पालन कर सकते हैं।

    प्रश्न 12: क्या यह मंत्र अन्य साधनाओं के लिए सहायक है?

    उत्तर: हां, यह मंत्र साधक की आंतरिक शक्ति बढ़ाता है जो अन्य साधनाओं में भी सहायक है।

    Tripura Bhairavi Mantra- Divine Source of Focus and Strength

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    त्रिपुर भैरवी मंत्र: एकाग्रता और दिव्य शक्ति का अनुभव

    त्रिपुर भैरवी मंत्र (॥हसैं हसकरीं हसैं॥) का उल्लेख तंत्र साधना में किया गया है, जो मन की एकाग्रता, साहस, और आत्मबल को बढ़ाता है। यह मंत्र न केवल मानसिक संतुलन प्रदान करता है, बल्कि आंतरिक शांति व आत्मा की शुद्धि में सहायक सिद्ध होता है।

    त्रिपुर भैरवी मंत्र और उसका संपूर्ण अर्थ

    ॥हसैं हसकरीं हसैं॥

    त्रिपुर भैरवी मंत्र “॥हसैं हसकरीं हसैं॥” की गूढ़ता अत्यधिक शक्तिशाली है। “हसैं” का अर्थ है हंसने की अवस्था, जिसमें मन की नकारात्मकता दूर होती है। “हसकरीं” में क्रोध, चिंता व भय का नाश करने की क्षमता है। यह मंत्र महाविद्या देवी त्रिपुर भैरवी का आह्वान कर साधक को अपनी शक्तियों का बोध कराता है।

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    त्रिपुर भैरवी मंत्र के लाभ

    1. मन पर नियंत्रण – यह मंत्र मानसिक स्थिरता प्रदान करता है।
    2. क्रोध पर नियंत्रण – साधक के क्रोध पर काबू पाने में सहायक।
    3. सहलशीलता – दयालु और संयमित बनाता है।
    4. एकाग्रता में वृद्धि – ध्यान में पूर्ण स्थिरता लाता है।
    5. कार्य में रुचि – हर कार्य में ध्यान लगाना सरल हो जाता है।
    6. शांति का अनुभव – आंतरिक और बाहरी शांति।
    7. तनाव से मुक्ति – मानसिक दबाव से राहत।
    8. साहस में वृद्धि – जीवन में नई ऊर्जा का संचार।
    9. विवेकशक्ति का विकास – सही निर्णय लेने की क्षमता।
    10. प्राकृतिक आकर्षण – साधक में आकर्षण का संचार।
    11. नेगेटिविटी का नाश – नकारात्मकता से दूरी।
    12. आध्यात्मिक उन्नति – आत्मा का उन्नयन।
    13. बाधाओं का नाश – जीवन के संघर्षों से मुक्ति।
    14. सकारात्मक ऊर्जा – सकारात्मक ऊर्जा की वृद्धि।
    15. स्वास्थ्य में सुधार – आंतरिक और बाहरी स्वास्थ्य।
    16. धैर्य और सहनशीलता – संयम व धैर्य में सुधार।

    जप के दौरान सेवन करने योग्य आहार

    त्रिपुर भैरवी मंत्र जप करते समय हल्के और सात्विक आहार का सेवन करना चाहिए। फल, मेवे, और दूध का सेवन मन की एकाग्रता बढ़ाता है। मसालेदार, तले हुए या गरिष्ठ भोजन से बचें।

    त्रिपुर भैरवी मंत्र जप के नियम

    • उम्र – जप के लिए 18 वर्ष से ऊपर की आयु होनी चाहिए।
    • समय – 10 मिनट रोज़ जप करें।
    • लिंग – स्त्री व पुरुष दोनों जप कर सकते हैं।
    • वस्त्र – ब्लू और ब्लैक रंग के कपड़े न पहनें।
    • परहेज – धूम्रपान, मद्यपान, और मासाहार न करें।
    • आचरण – जप के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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    जप सावधानियाँ

    त्रिपुर भैरवी मंत्र का जप करने के लिए शुक्रवार या अमावस्या का दिन सर्वोत्तम माना जाता है। साधना के लिए सुबह 4-6 बजे का समय उपयुक्त है, जब वातावरण शांति से भरपूर होता है।

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    त्रिपुर भैरवी मंत्र के प्रश्न और उत्तर

    प्रश्न: त्रिपुर भैरवी मंत्र क्या है?
    उत्तर: यह एक तांत्रिक मंत्र है जो देवी त्रिपुर भैरवी का आह्वान करता है।

    प्रश्न: इस मंत्र के लाभ क्या हैं?
    उत्तर: यह मानसिक शांति, क्रोध नियंत्रण, और आत्मबल में वृद्धि करता है।

    प्रश्न: क्या किसी विशेष रंग का परहेज है?
    उत्तर: हाँ, नीला और काला कपड़ा पहनने से बचें।

    प्रश्न: मंत्र का जप कब करना चाहिए?
    उत्तर: सुबह 4-6 बजे या अमावस्या को विशेष प्रभावी होता है।

    प्रश्न: जप के लिए उपयुक्त आहार क्या है?
    उत्तर: हल्का और सात्विक भोजन सर्वोत्तम है।

    प्रश्न: क्या 18 वर्ष से कम आयु के लोग इसे जप सकते हैं?
    उत्तर: नहीं, यह मंत्र केवल 18 वर्ष से ऊपर के लिए है।

    प्रश्न: क्या धूम्रपान या मद्यपान की अनुमति है?
    उत्तर: नहीं, जप काल में इनसे परहेज करना चाहिए।

    प्रश्न: मंत्र का प्रभाव कितने समय में दिखता है?
    उत्तर: नियमित अभ्यास से धीरे-धीरे सकारात्मक प्रभाव दिखने लगते हैं।

    प्रश्न: क्या यह मंत्र साधारण व्यक्ति के लिए है?
    उत्तर: हाँ, यह किसी भी साधारण व्यक्ति के लिए उपयुक्त है।

    प्रश्न: क्या एक बार जप छोड़ने पर प्रभाव होता है?
    उत्तर: निरंतरता आवश्यक है; छोड़ने से प्रभाव में कमी आ सकती है।