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Mahalakshmi Stuti for Wealth & Prosperity

Mahalakshmi Stuti for Wealth & Prosperity

लक्ष्मी स्तुतिः आर्थिक समस्या मुक्ति पाना चाहते है, तो शुक्रवार से शुरु करे

आर्थिक अड़चनों को नष्ट करने वाली लक्ष्मी स्तुति, देवी लक्ष्मी का शक्तिशाली स्तोत्र माना जाता है। देवी लक्ष्मी को धन, समृद्धि, सुख, और वैभव की देवी माना जाता है। लक्ष्मी स्तुति का पाठ नियमित रूप से करने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है। यह स्तुति विशेष रूप से धन और वैभव की प्राप्ति के लिए की जाती है।

संपूर्ण लक्ष्मी स्तुति अर्थ सहित

श्लोक 1:
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोऽस्तु ते॥

अर्थ:
हे सर्वमंगल देने वाली, सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली, हे शिवा, त्र्यम्बक की पत्नी गौरी, नारायणी देवी, आपको मेरा प्रणाम है।

श्लोक 2:
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरि।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥

अर्थ:
हे देवी, जो सब कुछ जानने वाली, सबकी इच्छाओं को पूर्ण करने वाली, सभी बुराइयों का नाश करने वाली, सभी दुखों को हरने वाली महालक्ष्मी हैं, आपको मेरा प्रणाम है।

श्लोक 3:
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मन्त्रमूर्ते सदा देवी महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥

अर्थ:
हे देवी, जो सिद्धि और बुद्धि देने वाली, भौतिक सुख और मोक्ष प्रदान करने वाली, और सदैव मंत्रस्वरूपा हैं, उन महालक्ष्मी को मेरा प्रणाम है।

श्लोक 4:
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥

अर्थ:
हे देवी, जो आदि और अंत से परे हैं, जो आदिशक्ति और महेश्वरी हैं, जो योग से उत्पन्न हुई हैं, उन महालक्ष्मी को मेरा प्रणाम है।

श्लोक 5:
स्थूलसूक्ष्ममहाराुद्रे महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥

अर्थ:
हे देवी, जो स्थूल और सूक्ष्म रूप में भी अत्यंत शक्तिशाली हैं, जो महान पापों को नष्ट करती हैं, उन महालक्ष्मी को मेरा प्रणाम है।

श्लोक 6:
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥

अर्थ:
हे देवी, जो पद्मासन में विराजमान हैं, जो परब्रह्म की स्वरूपा हैं, जो परमेश्वरी और जगत की माता हैं, उन महालक्ष्मी को मेरा प्रणाम है।

श्लोक 7:
श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥

अर्थ:
हे देवी, जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जो विभिन्न आभूषणों से विभूषित हैं, जो सम्पूर्ण जगत में विराजमान हैं और जगत की माता हैं, उन महालक्ष्मी को मेरा प्रणाम है।

श्लोक 8:
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा॥

अर्थ:
जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति के साथ महालक्ष्मी अष्टकम का पाठ करता है, उसे सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं और वह सदा राज्य (समृद्धि और सफलता) प्राप्त करता है।

लाभ

  1. धन की प्राप्ति: लक्ष्मी स्तुति का पाठ करने से व्यक्ति को धन और वैभव की प्राप्ति होती है।
  2. समृद्धि: यह स्तुति घर में समृद्धि और खुशहाली लाती है।
  3. सफलता: इसका पाठ करने से सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
  4. शांति: मानसिक शांति और संतुलन की प्राप्ति होती है।
  5. स्वास्थ्य: यह स्तुति स्वास्थ्य में सुधार लाती है और बीमारियों से मुक्ति दिलाती है।
  6. संतान सुख: संतान सुख और परिवार में खुशहाली की प्राप्ति होती है।
  7. अकाल मृत्यु से रक्षा: इसका पाठ करने से अकाल मृत्यु से सुरक्षा मिलती है।
  8. पारिवारिक कलह का अंत: परिवार में शांति और प्रेम की प्राप्ति होती है।
  9. सकारात्मक ऊर्जा: घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  10. आध्यात्मिक उन्नति: व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है।
  11. भयमुक्ति: सभी प्रकार के भय से मुक्ति प्राप्त होती है।
  12. व्यापार में सफलता: व्यापार में वृद्धि और सफलता प्राप्त होती है।
  13. कर्ज से मुक्ति: कर्ज और ऋण से मुक्ति प्राप्त होती है।
  14. यश और कीर्ति: समाज में यश और कीर्ति की प्राप्ति होती है।
  15. दुष्टों से रक्षा: दुष्ट आत्माओं और बुरी शक्तियों से सुरक्षा मिलती है।
  16. विद्या प्राप्ति: विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
  17. विवाह में सफलता: विवाह में आने वाली बाधाओं का निवारण होता है।
  18. सुख-संपत्ति: सुख-संपत्ति की वृद्धि होती है।
  19. सुखद जीवन: जीवन में सुख और संतोष की प्राप्ति होती है।
  20. धार्मिक उन्नति: धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति होती है।

विधि

  1. दिन और अवधि: लक्ष्मी स्तुति का पाठ विशेष रूप से शुक्रवार के दिन करना शुभ माना जाता है। यह पाठ 41 दिनों तक निरंतर किया जा सकता है।
  2. समय: इसका पाठ सुबह और शाम को करना अत्यधिक लाभकारी होता है। विशेष रूप से ब्रह्म मुहूर्त में (सुबह 4 से 6 बजे) इसका पाठ करना अत्यधिक शुभ होता है।
  3. मुहूर्त: शुभ मुहूर्त जैसे दीपावली, अक्षय तृतीया, और शरद पूर्णिमा के दिन इसका प्रारंभ करना विशेष लाभकारी होता है।
  4. स्थान: पाठ के लिए स्वच्छ और शांत स्थान का चयन करें। पूजा के स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर लें।
  5. पूजा सामग्री: पूजा के लिए देवी लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र, चावल, फूल, कुमकुम, दीपक, धूप, नैवेद्य (मिठाई) आदि का प्रयोग करें।

नियम

  1. भक्ति और श्रद्धा: लक्ष्मी स्तुति का पाठ पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ करना चाहिए।
  2. शुद्धता: पाठ के समय शारीरिक और मानसिक शुद्धता बनाए रखें।
  3. नियमितता: लक्ष्मी स्तुति का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए। अगर किसी कारणवश एक दिन पाठ न हो पाए, तो अगले दिन दोगुना पाठ करें।
  4. संयम: सात्विक आहार ग्रहण करें और संयम का पालन करें।
  5. विशेष व्रत: शुक्रवार के दिन व्रत रखकर लक्ष्मी स्तुति का पाठ करना विशेष फलदायी होता है।
  6. गुप्त साधना: साधना को गुप्त रखना चाहिए। अधिक प्रचार-प्रसार से बचें।
  7. आचरण: अच्छे आचरण और सत्कर्मों का पालन करें।
  8. द्रव्य दान: पाठ के पश्चात निर्धनों और ब्राह्मणों को दान करें।
  9. दोष मुक्त आचरण: शराब, मांसाहार, और अन्य दोषपूर्ण आचरण से बचें।
  10. स्वच्छता: पाठ के समय और स्थान की स्वच्छता का ध्यान रखें।

Kamakhya sadhana shivir

सावधानियां

  1. आस्था: पाठ को श्रद्धा और विश्वास के साथ करना चाहिए। बिना आस्था के किया गया पाठ फलदायी नहीं होता।
  2. शुद्धता: मानसिक और शारीरिक शुद्धता बनाए रखें। अपवित्र वस्त्रों में पाठ नहीं करना चाहिए।
  3. भोजन नियम: पाठ के समय सात्विक आहार का पालन करें। तामसिक भोजन से बचें।
  4. ध्यान और एकाग्रता: पाठ के समय ध्यान और एकाग्रता बनाए रखें। विचलित मन से पाठ न करें।
  5. विनम्रता: देवी लक्ष्मी की स्तुति करते समय विनम्रता का पालन करें। अहंकार या गर्व से बचें।

Spiritual store

लक्ष्मी स्तुति से जुड़े सामान्य प्रश्न

  1. प्रश्न: लक्ष्मी स्तुति का पाठ किस उद्देश्य से किया जाता है?
    उत्तर: इसका पाठ धन, समृद्धि और देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
  2. प्रश्न: लक्ष्मी स्तुति का पाठ किस दिन करना शुभ होता है?
    उत्तर: शुक्रवार के दिन इसका पाठ करना विशेष शुभ माना जाता है।
  3. प्रश्न: क्या लक्ष्मी स्तुति का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है?
    उत्तर: हाँ, लेकिन सुबह और शाम का समय विशेष शुभ होता है।
  4. प्रश्न: क्या लक्ष्मी स्तुति का पाठ 41 दिनों तक किया जाना चाहिए?
    उत्तर: हाँ, 41 दिनों तक इसका पाठ करना शुभ और फलदायी होता है।
  5. प्रश्न: क्या लक्ष्मी स्तुति का पाठ घर की समृद्धि के लिए किया जा सकता है?
    उत्तर: हाँ, यह पाठ घर की समृद्धि और खुशहाली के लिए अत्यधिक प्रभावशाली है।
  6. प्रश्न: क्या लक्ष्मी स्तुति का पाठ व्यवसाय में वृद्धि के लिए किया जा सकता है?
    उत्तर: हाँ, यह व्यवसाय में सफलता और वृद्धि के लिए लाभकारी है।
  7. प्रश्न: क्या लक्ष्मी स्तुति का पाठ केवल महिलाओं के लिए होता है?
    उत्तर: नहीं, इसका पाठ पुरुष और महिलाएं दोनों कर सकते हैं।
  8. प्रश्न: क्या लक्ष्मी स्तुति का पाठ करने से कर्ज से मुक्ति मिलती है?
    उत्तर: हाँ, इसका पाठ कर्ज और आर्थिक संकट से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है।
  9. प्रश्न: क्या लक्ष्मी स्तुति का पाठ करने से शत्रुओं से रक्षा होती है?
    उत्तर: हाँ, यह शत्रुओं से रक्षा करता है और उनके प्रकोप से बचाता है।
  10. प्रश्न: क्या लक्ष्मी स्तुति का पाठ बिना किसी विशेष उद्देश्य के किया जा सकता है?
    उत्तर: हाँ, इसे नियमित पूजा के अंग के रूप में भी किया जा सकता है।
  11. प्रश्न: क्या लक्ष्मी स्तुति का पाठ अन्य स्तोत्रों के साथ किया जा सकता है?
    उत्तर: हाँ, इसे अन्य स्तोत्रों के साथ संयोजन में भी किया जा सकता है।

Lakshmi Ashtak for Wealth & Prosperity

Lakshmi Ashtak for Wealth & Prosperity

लक्ष्मी अष्टकम्ः सुख समृद्धि से भर दे!

आर्थिक सुख देने वाली लक्ष्मी अष्टकम् एक पवित्र स्तोत्र है जो देवी लक्ष्मी को समर्पित है। लक्ष्मी अष्टकम् में आठ श्लोक होते हैं, जिनमें देवी लक्ष्मी की महिमा और उनके आशीर्वाद की प्रार्थना की जाती है। इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में धन, समृद्धि, सुख और शांति की प्राप्ति होती है। लक्ष्मी अष्टकम् का पाठ विशेष रूप से धन और वैभव की देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

संपूर्ण लक्ष्मी अष्टकम् व उसका अर्थ

श्लोक 1:

नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥

श्लोक 2:

नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥

अर्थ:
हे महामाया, जो श्रीपीठ पर विराजमान हैं, जिनकी पूजा देवताओं द्वारा की जाती है, जिनके हाथों में शंख, चक्र और गदा हैं, उन महालक्ष्मी को मेरा नमस्कार है।

श्लोक 3:

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरि।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥

श्लोक 4:

सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मन्त्रमूर्ते सदा देवी महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥

श्लोक 5:

आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥

श्लोक 6:

स्थूलसूक्ष्ममहाराुद्रे महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥

श्लोक 7:

पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥

श्लोक 8:

श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥

फलश्रुति:

महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा॥

संपूर्ण अर्थ

  • हे देवी, जो गरुड़ पर आरूढ़ हैं और कोलासुर के भय को नष्ट करने वाली हैं, जो सभी पापों को हरती हैं, उन महालक्ष्मी को मेरा नमस्कार है।
  • हे देवी, जो सर्वज्ञ (सब कुछ जानने वाली) हैं, जो सभी वरदान देने वाली और सभी दुष्टों के भय को नष्ट करने वाली हैं, जो सभी दुखों को हरती हैं, उन महालक्ष्मी को मेरा नमस्कार है।
  • हे देवी, जो सिद्धि और बुद्धि देने वाली हैं, जो भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करती हैं, जो मंत्रस्वरूपा हैं, उन महालक्ष्मी को मेरा नमस्कार है।
  • हे देवी, जो आदि और अंत से परे हैं, जो आदि शक्ति और महेश्वरी (शक्ति की सर्वोच्च देवी) हैं, जो योग से उत्पन्न हुई हैं, उन महालक्ष्मी को मेरा नमस्कार है।
  • हे देवी, जो स्थूल (स्थूल रूप में) और सूक्ष्म (सूक्ष्म रूप में) हैं, जो महान शक्ति की स्वामिनी और महादुरगामी हैं, जो सभी पापों का नाश करती हैं, उन महालक्ष्मी को मेरा नमस्कार है।
  • हे देवी, जो पद्मासन में विराजमान हैं, जो परब्रह्म की स्वरूपा हैं, जो परमेश्वरी और जगत की माता हैं, उन महालक्ष्मी को मेरा नमस्कार है।
  • हे देवी, जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जो विभिन्न आभूषणों से विभूषित हैं, जो सम्पूर्ण जगत में विराजमान हैं और जगत की माता हैं, उन महालक्ष्मी को मेरा नमस्कार है।
  • जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति के साथ महालक्ष्मी अष्टकम का पाठ करता है, उसे सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं और वह सदा राज्य (समृद्धि और सफलता) प्राप्त करता है।

लाभ

  1. धन की प्राप्ति: लक्ष्मी अष्टकम् का पाठ धन और वैभव की देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है, जिससे धन की प्राप्ति होती है।
  2. समृद्धि: इसका नियमित पाठ घर में समृद्धि और खुशहाली लाता है।
  3. सफलता: व्यक्ति को सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
  4. शांति: मानसिक शांति और संतुलन की प्राप्ति होती है।
  5. स्वास्थ्य: इसका पाठ करने से स्वास्थ्य में सुधार होता है और बीमारियों से मुक्ति मिलती है।
  6. संतान सुख: संतान सुख और परिवार में खुशहाली की प्राप्ति होती है।
  7. अकाल मृत्यु से रक्षा: इसका पाठ करने से अकाल मृत्यु से सुरक्षा मिलती है।
  8. पारिवारिक कलह का अंत: परिवार में शांति और प्रेम की प्राप्ति होती है।
  9. सकारात्मक ऊर्जा: घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  10. आध्यात्मिक उन्नति: व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है।
  11. भयमुक्ति: सभी प्रकार के भय से मुक्ति प्राप्त होती है।
  12. व्यापार में सफलता: व्यापार में वृद्धि और सफलता प्राप्त होती है।
  13. कर्ज से मुक्ति: कर्ज और ऋण से मुक्ति प्राप्त होती है।
  14. यश और कीर्ति: समाज में यश और कीर्ति की प्राप्ति होती है।
  15. दुष्टों से रक्षा: दुष्ट आत्माओं और बुरी शक्तियों से सुरक्षा मिलती है।
  16. विद्या प्राप्ति: विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
  17. विवाह में सफलता: विवाह में आने वाली बाधाओं का निवारण होता है।
  18. सुख-संपत्ति: सुख-संपत्ति की वृद्धि होती है।
  19. सुखद जीवन: जीवन में सुख और संतोष की प्राप्ति होती है।
  20. धार्मिक उन्नति: धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति होती है।

विधि

  1. दिन और अवधि: लक्ष्मी अष्टकम् का पाठ विशेष रूप से शुक्रवार के दिन करना शुभ माना जाता है। यह पाठ 41 दिनों तक निरंतर किया जा सकता है।
  2. समय: इसका पाठ सुबह और शाम को करना अत्यधिक लाभकारी होता है। विशेष रूप से ब्रह्म मुहूर्त में (सुबह 4 से 6 बजे) इसका पाठ करना अत्यधिक शुभ होता है।
  3. मुहूर्त: शुभ मुहूर्त जैसे दीपावली, अक्षय तृतीया, और शरद पूर्णिमा के दिन इसका प्रारंभ करना विशेष लाभकारी होता है।
  4. स्थान: पाठ के लिए स्वच्छ और शांत स्थान का चयन करें। पूजा के स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर लें।
  5. पूजा सामग्री: पूजा के लिए देवी लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र, चावल, फूल, कुमकुम, दीपक, धूप, नैवेद्य (मिठाई) आदि का प्रयोग करें।

नियम

  1. भक्ति और श्रद्धा: लक्ष्मी अष्टकम् का पाठ पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ करना चाहिए।
  2. शुद्धता: पाठ के समय शारीरिक और मानसिक शुद्धता बनाए रखें।
  3. नियमितता: लक्ष्मी अष्टकम् का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए। अगर किसी कारणवश एक दिन पाठ न हो पाए, तो अगले दिन दोगुना पाठ करें।
  4. संयम: सात्विक आहार ग्रहण करें और संयम का पालन करें।
  5. विशेष व्रत: शुक्रवार के दिन व्रत रखकर लक्ष्मी अष्टकम् का पाठ करना विशेष फलदायी होता है।
  6. गुप्त साधना: साधना को गुप्त रखना चाहिए। अधिक प्रचार-प्रसार से बचें।
  7. आचरण: अच्छे आचरण और सत्कर्मों का पालन करें।
  8. द्रव्य दान: पाठ के पश्चात निर्धनों और ब्राह्मणों को दान करें।
  9. दोष मुक्त आचरण: शराब, मांसाहार, और अन्य दोषपूर्ण आचरण से बचें।
  10. स्वच्छता: पाठ के समय और स्थान की स्वच्छता का ध्यान रखें।

kamakhya sadhana shivir

सावधानियां:

  1. आस्था: पाठ को श्रद्धा और विश्वास के साथ करना चाहिए। बिना आस्था के किया गया पाठ फलदायी नहीं होता।
  2. शुद्धता: मानसिक और शारीरिक शुद्धता बनाए रखें। अपवित्र वस्त्रों में पाठ नहीं करना चाहिए।
  3. भोजन नियम: पाठ के समय सात्विक आहार का पालन करें। तामसिक भोजन से बचें।
  4. ध्यान और एकाग्रता: पाठ के समय ध्यान और एकाग्रता बनाए रखें। विचलित मन से पाठ न करें।
  5. विनम्रता: देवी लक्ष्मी की स्तुति करते समय विनम्रता का पालन करें। अहंकार या गर्व से बचें।

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लक्ष्मी अष्टकम् से जुड़े सामान्य प्रश्न

  1. प्रश्न: लक्ष्मी अष्टकम् का पाठ किस उद्देश्य से किया जाता है?
    उत्तर: इसका पाठ धन, समृद्धि और देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
  2. प्रश्न: लक्ष्मी अष्टकम् का पाठ किस दिन करना शुभ होता है?
    उत्तर: शुक्रवार के दिन इसका पाठ करना विशेष शुभ माना जाता है।
  3. प्रश्न: क्या लक्ष्मी अष्टकम् का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है?
    उत्तर: हाँ, लेकिन सुबह और शाम का समय विशेष शुभ होता है।
  4. प्रश्न: क्या लक्ष्मी अष्टकम् का पाठ 41 दिनों तक किया जाना चाहिए?
    उत्तर: हाँ, 41 दिनों तक इसका पाठ करना शुभ और फलदायी होता है।
  5. प्रश्न: क्या लक्ष्मी अष्टकम् का पाठ घर की समृद्धि के लिए किया जा सकता है?
    उत्तर: हाँ, यह पाठ घर की समृद्धि और खुशहाली के लिए अत्यधिक प्रभावशाली है।
  6. प्रश्न: क्या लक्ष्मी अष्टकम् का पाठ व्यवसाय में वृद्धि के लिए किया जा सकता है?
    उत्तर: हाँ, यह व्यवसाय में सफलता और वृद्धि के लिए लाभकारी है।
  7. प्रश्न: क्या लक्ष्मी अष्टकम् का पाठ केवल महिलाओं के लिए होता है?
    उत्तर: नहीं, इसका पाठ पुरुष और महिलाएं दोनों कर सकते हैं।
  8. प्रश्न: क्या लक्ष्मी अष्टकम् का पाठ करने से कर्ज से मुक्ति मिलती है?
    उत्तर: हाँ, इसका पाठ कर्ज और आर्थिक संकट से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है।
  9. प्रश्न: क्या लक्ष्मी अष्टकम् का पाठ करने से शत्रुओं से रक्षा होती है?
    उत्तर: हाँ, यह शत्रुओं से रक्षा करता है और उनके प्रकोप से बचाता है।
  10. प्रश्न: क्या लक्ष्मी अष्टकम् का पाठ बिना किसी विशेष उद्देश्य के किया जा सकता है?
    उत्तर: हाँ, इसे नियमित पूजा के अंग के रूप में भी किया जा सकता है।
  11. प्रश्न: क्या लक्ष्मी अष्टकम् का पाठ अन्य स्तोत्रों के साथ किया जा सकता है?
    उत्तर: हाँ, इसे अन्य स्तोत्रों के साथ संयोजन में भी किया जा सकता है।

Devi Kavacham- Protection from all directions

Devi Kavacham- Protection from all directions

देवी कवचम्: पूरे परिवार के साथ आपकी सुरक्षा

रक्षा करने वाली देवी कवचम् एक महत्वपूर्ण संस्कृत श्लोक है, जो दुर्गा सप्तशती (चंडी पाठ) का अंग है। यह कवच देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की स्तुति करता है और उनकी सुरक्षा, आशीर्वाद, और कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। यह माना जाता है कि देवी कवचम् का पाठ करने से व्यक्ति की चारों दिशाओं से सुरक्षा होती है और उसे सभी प्रकार की विपत्तियों और दुखों से मुक्ति मिलती है।

संपूर्ण देवी कवचम् व उसका अर्थ:

श्लोक 1: विनियोग

ॐ अस्य श्री चण्डी कवचस्य।
ब्रह्मा ऋषिः। अनुष्टुप् छन्दः।
चामुण्डा देवता। अंगन्यासोक्तमातरो बीजम्।
दिग्बन्ध देवतास्तत्त्वम्। श्रीजगदम्बा प्रीत्यर्थे सप्तशती पाठांङ्गत्वेन जपे विनियोगः॥

अर्थ:
इस चण्डी कवच का ऋषि ब्रह्मा है, छन्द अनुष्टुप् है, चामुण्डा देवी इसकी देवता हैं। यह कवच अंगों की रक्षा के लिए है और इसे विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए जपने का विधान है।

कवचम्

ॐ नमश्चण्डिकायै॥

मार्कण्डेय उवाच।

यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्। यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥

ब्रह्मोवाच।

अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्। देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥

पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः। उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥

अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे। विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥

न तेषां जायते किञ्चिदशुभं रणसङ्कटे। नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि॥

यैस्तु देवीस्मृताः नित्यं देवा वा शत्रुभिः सह। जयं प्राप्नोति संग्रामे न तेषां जायते भयम्॥

ऋषिरुवाच।

प्रयाणे वाजिनं ध्यायेत्कुमारं स्कन्दमातृकम्। एवं युध्यते शत्रुभिः संग्रामे जयमाप्नुयात्॥

मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्। पठन्ति कवचं पुण्यं यस्तु शत्रुक्षयं व्रजेत्॥

सर्वरक्षाकरं पुण्यं सर्वसम्पत्प्रदायकम्। सर्वतज्जयमाप्नोति वंशपुष्टिं प्रजायते॥

धनधान्यसमृद्धिस्तु प्रजासम्पत्प्रवर्धते। पाठे ते देवि ते भक्त्या श्वेतं च दधि सर्पिषः॥

ततः सिद्धिर्भवेद्देवि सर्वकार्येषु निश्चलाम्। त्रैलोक्ये वशमाप्नोति पुण्यं यशोऽवाप्नुयात्॥

संपूर्ण अर्थ

चण्डिका देवी को नमस्कार है।

मार्कण्डेय ऋषि कहते हैं, “हे पितामह, वह जो इस संसार में अत्यंत गुप्त और सर्व रक्षा करने वाला है, जो किसी को भी नहीं बताया गया है, कृपया मुझे बताएं।”

ब्रह्मा जी कहते हैं, “हे महर्षि, यह सबसे गुप्त और सब प्राणियों के लिए कल्याणकारी देवी का कवच है। इसे सुनो।”

देवी के प्रथम रूप शैलपुत्री हैं, द्वितीय रूप ब्रह्मचारिणी हैं, तृतीय रूप चन्द्रघण्टा और चतुर्थ रूप कूष्माण्डा हैं।

पंचम रूप स्कन्दमाता हैं, षष्ठम रूप कात्यायनी, सप्तम रूप कालरात्रि और अष्टम रूप महागौरी हैं।

नवम रूप सिद्धिदात्री है। ये नव दुर्गा के नाम ब्रह्मा जी द्वारा बताए गए हैं।

जो अग्नि में जल रहे हों, शत्रुओं के मध्य युद्ध में हों, संकट में हों, वे भयभीत होकर इन नामों का स्मरण करें।

उन लोगों को युद्ध के संकट में, या अन्य किसी प्रकार की विपत्ति में, किसी प्रकार का अनिष्ट नहीं होता। उन्हें शोक, दुःख, या भय की प्राप्ति नहीं होती।

जो व्यक्ति नित्य देवी का स्मरण करते हैं, वे चाहे युद्ध में हों, वे सदैव विजयी होते हैं और उन्हें भय की प्राप्ति नहीं होती।

ऋषिरुवाच

ऋषि कहते हैं, “यात्रा के समय स्कन्दमाता के पुत्र कुमार कार्तिकेय का ध्यान करना चाहिए। ऐसा करने से युद्ध में शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।”

मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन जैसे कार्यों के लिए इस पवित्र कवच का पाठ करना चाहिए। इससे शत्रुओं का नाश होता है।

यह कवच सर्वरक्षाकर है और सभी प्रकार की सम्पत्ति देने वाला है। इसका पाठ करने से व्यक्ति को सर्वत्र विजय मिलती है और उसका वंश पुष्ट होता है।

इस कवच का पाठ करने से धन, धान्य, और संतान की प्राप्ति होती है। देवी के प्रति भक्ति से श्वेत वस्त्र, दधि (दही), और घी की आहुति दें।

ऐसा करने से देवी सिद्धि प्रदान करती हैं और व्यक्ति के सभी कार्य सफल होते हैं। उसे तीनों लोकों में विजय प्राप्त होती है और वह पुण्य और यश का भागी बनता है।

लाभ

  1. सर्व रक्षण: देवी कवचम् का पाठ व्यक्ति को चारों दिशाओं से सुरक्षा प्रदान करता है।
  2. धन-संपत्ति: इसका पाठ करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है।
  3. शत्रु विजय: शत्रुओं से मुक्ति और विजय प्राप्त होती है।
  4. मानसिक शांति: इसका नियमित पाठ मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करता है।
  5. संतान सुख: संतान सुख और वंश वृद्धि के लिए लाभकारी है।
  6. सम्पूर्ण सफलता: यह कवच जीवन के सभी कार्यों में सफलता सुनिश्चित करता है।
  7. स्वास्थ्य लाभ: इसके पाठ से स्वास्थ्य में सुधार होता है और बीमारियों से मुक्ति मिलती है।
  8. भयमुक्ति: यह कवच सभी प्रकार के भय से मुक्ति दिलाता है।
  9. अलौकिक शक्ति: देवी की कृपा से अलौकिक शक्तियों की प्राप्ति होती है।
  10. प्रभुत्व प्राप्ति: समाज में सम्मान और प्रभुत्व की प्राप्ति होती है।
  11. दुष्टों से रक्षा: दुष्ट आत्माओं और बुरी शक्तियों से सुरक्षा मिलती है।
  12. भौतिक समृद्धि: सभी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति होती है।
  13. आध्यात्मिक उन्नति: व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है।
  14. विपत्ति से रक्षा: यह कवच व्यक्ति को सभी प्रकार की विपत्तियों से सुरक्षित रखता है।
  15. शांति और समृद्धि: इसके नियमित पाठ से घर में शांति और समृद्धि बनी रहती है।

विधि

  1. दिन और अवधि: देवी कवचम् का पाठ किसी भी दिन प्रारंभ किया जा सकता है, लेकिन विशेष रूप से मंगलवार और शुक्रवार को शुभ माना जाता है। यह पाठ ४१ दिनों तक लगातार किया जा सकता है।
  2. समय: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह ४ से ६ बजे) इसका पाठ करने का सबसे शुभ समय माना जाता है।
  3. मुहूर्त: देवी के किसी भी शुभ पर्व या नवरात्रि के समय इसका प्रारंभ करना अत्यंत लाभकारी होता है।
  4. स्थान: पाठ को शुद्ध, शांत और स्वच्छ स्थान पर करना चाहिए।
  5. पूजा सामग्री: देवी कवचम् के पाठ के समय धूप, दीप, फूल, चंदन और नैवेद्य (भोग) अर्पित करना चाहिए।

नियम

  1. गुप्त साधना: साधना को गुप्त रखना चाहिए और केवल वही लोग इसके बारे में जानें, जिन पर आप भरोसा करते हैं।
  2. शुद्धता: पाठ के समय मानसिक और शारीरिक शुद्धता बनाए रखें।
  3. नियमितता: नियमित रूप से पाठ करना चाहिए। अगर किसी कारणवश एक दिन छूट जाए, तो पुनः शुरुआत करें।
  4. संयम: पाठ के समय संयमित और सात्विक आहार लेना चाहिए।
  5. सद्गुणों का पालन: साधना के समय सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अन्य सद्गुणों का पालन करें।

Kamakhya sadhana shivir

सावधानियां

  1. आस्था: पाठ को श्रद्धा और आस्था के साथ करना चाहिए।
  2. विनम्रता: देवी की स्तुति करते समय अहंकार या गर्व नहीं करना चाहिए।
  3. भोजन नियम: पाठ के समय हल्का और सात्विक भोजन करें।
  4. विशेष परिस्थिति: बीमार या कमजोर स्थिति में पाठ ना करें।
  5. मंत्र शुद्धि: मंत्रों का उच्चारण शुद्धता के साथ करना चाहिए। गलत उच्चारण से बचें।

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देवी कवचम् से जुड़े सामान्य प्रश्न

  1. प्रश्न: देवी कवचम् का पाठ किस उद्देश्य से किया जाता है?
    उत्तर: देवी कवचम् का पाठ सुरक्षा, शांति, समृद्धि और देवी की कृपा प्राप्ति के लिए किया जाता है।
  2. प्रश्न: क्या देवी कवचम् का पाठ किसी विशेष दिन करना चाहिए?
    उत्तर: हाँ, मंगलवार या शुक्रवार को पाठ प्रारंभ करना शुभ माना जाता है।
  3. प्रश्न: क्या देवी कवचम् का पाठ अकेले किया जा सकता है?
    उत्तर: हाँ, देवी कवचम् का पाठ अकेले भी किया जा सकता है, लेकिन नियम और संयम का पालन आवश्यक है।
  4. प्रश्न: क्या देवी कवचम् का पाठ रात में किया जा सकता है?
    उत्तर: हाँ, लेकिन ब्रह्म मुहूर्त में पाठ करना अधिक शुभ माना जाता है।
  5. प्रश्न: क्या देवी कवचम् का पाठ करने के बाद किसी को बताना चाहिए?
    उत्तर: नहीं, साधना को गुप्त रखना चाहिए।
  6. प्रश्न: देवी कवचम् का पाठ कितने समय तक करना चाहिए?
    उत्तर: देवी कवचम् का पाठ ४१ दिनों तक निरंतर करना शुभ होता है।
  7. प्रश्न: क्या देवी कवचम् का पाठ करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं?
    उत्तर: श्रद्धा और विश्वास के साथ किया गया पाठ सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति दिलाता है।
  8. प्रश्न: क्या पाठ के समय विशेष वस्त्र पहनने चाहिए?
    उत्तर: शुद्ध और स्वच्छ वस्त्र पहनना चाहिए। सफेद या लाल वस्त्र पहनना अधिक शुभ माना जाता है।
  9. प्रश्न: क्या देवी कवचम् का पाठ केवल नवरात्रि में किया जा सकता है?
    उत्तर: नहीं, इसे किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन नवरात्रि में इसका विशेष महत्व होता है।
  10. प्रश्न: क्या बच्चों के लिए देवी कवचम् का पाठ शुभ होता है?
    उत्तर: हाँ, बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए यह अत्यंत शुभ होता है।
  11. प्रश्न: क्या देवी कवचम् का पाठ करने से शत्रु बाधा दूर होती है?
    उत्तर: हाँ, यह कवच शत्रुओं से रक्षा करता है और उनकी बाधाओं को दूर करता है।

Mahishasur Mardini Strot for Strong Protection

Mahishasur Mardini Strot for Strong Protection

महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र – जो शत्रुओं को आपसे दूर रखे

शत्रु को नष्ट करने वाली महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र, देवी दुर्गा की महिमा का वर्णन करने वाला एक प्रसिद्ध स्तोत्र है। यह स्तोत्र विशेष रूप से देवी के महिषासुर का वध करने के महान कार्य को स्मरण करता है। महिषासुर एक बलशाली राक्षस था जिसे देवी दुर्गा ने युद्ध में पराजित किया था। यह स्तोत्र आदिशक्ति दुर्गा के अद्वितीय साहस, शक्ति और करुणा का गुणगान करता है।

स्तोत्र और उसका अर्थ:

महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र देवी दुर्गा की स्तुति में रचित एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है, जिसमें उनकी शक्ति, सौंदर्य, और उनकी विजय का वर्णन किया गया है। इसमें देवी दुर्गा के महिषासुर का वध करने की महिमा का बखान है। यह स्तोत्र भक्तों के लिए अत्यधिक प्रभावशाली और प्रेरणादायक माना जाता है।

श्लोक १:

अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते। गिरिवरविन्ध्य शिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते। भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते। जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

श्लोक २:

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते। त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते। दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिंधुसुते। जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

श्लोक ३:

अयि जगदम्ब मधम्ब कदम्बवनप्रियवासिनि हासरते। शिखरिशिरोमणि तुङ्गहिमालयशृङ्गनिजालयमध्यमते। मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते। जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

श्लोक ४:

अयि शतमखादि शिरोऽधिनिकृत्य शिरः फलदानकृतप्रमते। दुरितदुरीहदुराशयदुर्मति दानवदूतकृतान्तमते। दुरितदुरीहदुराशयदुर्मति दानवदूतकृतान्तमते। जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

श्लोक ५:

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते। त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते। दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिंधुसुते। जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

श्लोक ६:

अयि शरनाम्रणि तुङ्गहिमालयशृङ्गनिजालयमध्यमते। मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते। जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

श्लोक ७:

अयि कमलवासिनि सम्भवसन्निधिकुलविलासिनि तुल्यमते। मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते। जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

श्लोक ८:

अयि हरिरमणविलासिनि हसिकुलमहिषासुरमर्दिनि देवते। शिखरिशिरोमणि तुङ्गहिमालयशृङ्गनिजालयमध्यमते। मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते। जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

संपूर्ण अर्थ १-४

हे पर्वतराज हिमालय की पुत्री, आप संपूर्ण पृथ्वी को आनंदित करने वाली हैं, आप विश्व को मोहित करने वाली हैं। आपको नंदी द्वारा वंदित किया जाता है। आप महान पर्वत विंध्य के शिखर पर निवास करती हैं, और भगवान विष्णु के साथ खेल करती हैं। आप महादेव (शिव) के परिवार की देवी हैं, जिनका परिवार विशाल और शुभ कार्यों से भरा हुआ है। महिषासुर का वध करने वाली देवी दुर्गा, आपकी जय हो!

देवी, आप देवताओं पर कृपा करने वाली, असुरों का नाश करने वाली और अपने भक्तों के आनंद में प्रसन्न रहने वाली हैं। आप तीनों लोकों का पालन करने वाली हैं और भगवान शंकर को प्रसन्न करती हैं। आप पापों को नष्ट करने वाली हैं और घोष (शत्रुओं की चीख) में प्रसन्न रहती हैं। आप दनु के पुत्रों के क्रोध को शांत करती हैं, दिति के पुत्रों के अहंकार को नष्ट करती हैं। महिषासुर का वध करने वाली देवी दुर्गा, आपकी जय हो!

हे जगदम्बा, आप प्रेम और ममता की मूर्ति हैं, कदम्ब वन में रहने में आनंदित होती हैं और सदा मुस्कान धारण करती हैं। आप हिमालय पर्वत के शिखरों पर निवास करती हैं और आपके मधुर वचन हर किसी के लिए मधुर हैं। आपने मधु और कैटभ नामक दैत्यों का नाश किया और राक्षसों का वध करने में कुशल हैं। महिषासुर का वध करने वाली देवी दुर्गा, आपकी जय हो!

हे देवी, आप इन्द्र और अन्य देवताओं के शत्रुओं का सिर काटकर उनकी इच्छाओं को पूर्ण करने वाली हैं। आप दुष्ट प्रवृत्तियों और दानवों के क्रूर विचारों को नष्ट करने में सक्षम हैं। आप उनकी बुरी योजनाओं और कुटिल विचारों का अंत करती हैं। महिषासुर का वध करने वाली देवी दुर्गा, आपकी जय हो!

संपूर्ण अर्थ ४-८

देवी, आप देवताओं पर कृपा करने वाली, असुरों का नाश करने वाली और अपने भक्तों के आनंद में प्रसन्न रहने वाली हैं। आप तीनों लोकों का पालन करने वाली हैं और भगवान शंकर को प्रसन्न करती हैं। आप पापों को नष्ट करने वाली हैं और घोष (शत्रुओं की चीख) में प्रसन्न रहती हैं। आप दनु के पुत्रों के क्रोध को शांत करती हैं, दिति के पुत्रों के अहंकार को नष्ट करती हैं। महिषासुर का वध करने वाली देवी दुर्गा, आपकी जय हो!

हे देवी, आप हिमालय पर्वत के शिखरों पर निवास करती हैं और आपकी मधुर वाणी सबके हृदय को मोह लेती है। आप मधु और कैटभ जैसे दैत्यों का संहार करने में सक्षम हैं। महिषासुर का वध करने वाली देवी दुर्गा, आपकी जय हो!

देवी, आप कमल वन में निवास करती हैं, और आप सभी जीवों की उत्पत्ति का आधार हैं। आप मधु और कैटभ जैसे दुष्टों का नाश करती हैं। महिषासुर का वध करने वाली देवी दुर्गा, आपकी जय हो!

हे देवी, आप भगवान विष्णु की प्रिया हैं, और आप महिषासुर जैसे राक्षसों का वध करती हैं। आप हिमालय के शिखरों पर निवास करती हैं और आपकी मधुर वाणी सबको प्रिय है। महिषासुर का वध करने वाली देवी दुर्गा, आपकी जय हो!

स्तोत्र के लाभ

  1. आध्यात्मिक उन्नति: इस स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है।
  2. साहस और शक्ति: शक्ति का गुणगान करते हुए यह स्तोत्र व्यक्ति को भी साहस और शक्ति प्रदान करता है।
  3. रक्षा और संरक्षण: इस स्तोत्र का पाठ व्यक्ति को नकारात्मक शक्तियों और बुराईयों से रक्षा करता है।
  4. धार्मिक उन्नति: यह स्तोत्र भक्त को धार्मिकता और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
  5. मानसिक शांति: इस स्तोत्र का नियमित पाठ मानसिक शांति और संतोष प्रदान करता है।
  6. समस्याओं का समाधान: देवी दुर्गा की कृपा से यह स्तोत्र समस्याओं का समाधान करने में सहायक होता है।
  7. विपत्तियों से मुक्ति: यह स्तोत्र भक्त को विपत्तियों और कष्टों से मुक्ति दिलाता है।
  8. स्वास्थ्य लाभ: इस स्तोत्र का प्रभाव व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक होता है।
  9. सकारात्मक ऊर्जा: यह स्तोत्र व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
  10. भय और चिंता का नाश: इस स्तोत्र का पाठ भय और चिंता को दूर करता है और आत्म-विश्वास बढ़ाता है।
  11. सद्बुद्धि का विकास: यह स्तोत्र व्यक्ति को सद्बुद्धि और विवेक प्रदान करता है।
  12. धन और समृद्धि: देवी दुर्गा की कृपा से यह स्तोत्र धन और समृद्धि का वरदान देता है।
  13. संकल्प की दृढ़ता: यह स्तोत्र व्यक्ति के संकल्प को मजबूत बनाता है।
  14. ईश्वर के प्रति भक्ति: यह स्तोत्र व्यक्ति के भीतर ईश्वर के प्रति भक्ति और श्रद्धा का विकास करता है।
  15. कुल का कल्याण: यह स्तोत्र न केवल पाठक बल्कि उसके पूरे परिवार और वंश का कल्याण करता है।

विधि

  1. दिन: इस स्तोत्र को किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन विशेष रूप से मंगलवार, शुक्रवार और नवरात्रि के दिनों में इसका विशेष महत्व होता है।
  2. अवधि: इस स्तोत्र की साधना की अवधि 41 दिनों तक हो सकती है। इस दौरान इसे प्रतिदिन एक निश्चित समय पर करना चाहिए।
  3. मुहूर्त: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4:00 से 6:00 बजे) इस स्तोत्र के पाठ के लिए सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। इस समय वातावरण शुद्ध और शांत होता है, जिससे साधना का प्रभाव बढ़ता है।

नियम

  1. शुद्धि और साफ-सफाई: स्तोत्र पाठ से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। पूजा स्थल को भी शुद्ध और साफ रखना आवश्यक है।
  2. एकाग्रता: इस स्तोत्र के पाठ के दौरान मन को देवी दुर्गा के स्वरूप पर एकाग्र रखना चाहिए। बाहरी विकर्षणों से दूर रहकर देवी के रूप का ध्यान करना चाहिए।
  3. संयम और सात्विकता: साधना के दौरान संयम और सात्विकता का पालन करना चाहिए। सात्विक भोजन करना, असत्य, हिंसा आदि से बचना चाहिए।
  4. नियमितता: इस स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए। अगर 41 दिनों की साधना कर रहे हैं, तो इसे किसी भी दिन छोड़े बिना प्रतिदिन करना चाहिए।
  5. गुप्तता: साधना और पूजा को गुप्त रखना चाहिए। इसे दूसरों को न बताकर देवी के प्रति समर्पण और श्रद्धा भाव बनाए रखना चाहिए।
  6. आरती और दीपक: स्तोत्र पाठ के बाद देवी दुर्गा की आरती करें और दीपक जलाकर उनकी कृपा का ध्यान करें।
  7. प्रसाद: साधना के बाद देवी को प्रसाद अर्पित करें और उसे परिवार के सदस्यों में बांटें।

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सावधानी

  1. नियमितता में विघ्न न डालें: साधना के दौरान किसी भी प्रकार की नियमितता में विघ्न न डालें। इसे एक निश्चित समय पर और नियमपूर्वक करें।
  2. ध्यान में एकाग्रता: स्तोत्र के दौरान ध्यान को भटकने न दें। मन को देवी के स्वरूप में स्थिर रखने का प्रयास करें।
  3. शुद्धता बनाए रखें: साधना के समय तन-मन की शुद्धता का ध्यान रखें। किसी भी प्रकार की नकारात्मकता को अपने अंदर प्रवेश न करने दें।
  4. आशंका से बचें: इस स्तोत्र की साधना में श्रद्धा और विश्वास रखें। किसी भी प्रकार की आशंका या शंका को मन में स्थान न दें।
  5. सात्विक जीवनशैली: साधना के दौरान सात्विक जीवनशैली का पालन करें। अहिंसा, सत्य, और संयम का जीवन जीने का प्रयास करें।

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सामान्य प्रश्न

  1. महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र किसने रचा है?
    • इस स्तोत्र का रचनाकार आदि शंकराचार्य माने जाते हैं।
  2. इस स्तोत्र का पाठ किसके लिए लाभकारी है?
    • यह स्तोत्र सभी के लिए लाभकारी है, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो मानसिक शांति, साहस, और शक्ति की खोज में हैं।
  3. क्या इस स्तोत्र का पाठ किसी विशेष दिन करना चाहिए?
    • हां, यह स्तोत्र विशेष रूप से मंगलवार, शुक्रवार, और नवरात्रि के दिनों में अधिक फलदायी माना जाता है।
  4. इस स्तोत्र के पाठ से क्या लाभ होते हैं?
    • इस स्तोत्र के पाठ से मानसिक शांति, साहस, शक्ति, और विपत्तियों से मुक्ति मिलती है।
  5. क्या इस स्तोत्र का पाठ ब्रह्म मुहूर्त में ही करना चाहिए?
    • हां, ब्रह्म मुहूर्त में इसका पाठ करना अधिक फलदायी माना जाता है, लेकिन इसे अन्य समय पर भी किया जा सकता है।
  6. क्या इस स्तोत्र का पाठ करने के लिए किसी विशेष तैयारी की आवश्यकता है?
    • हां, स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और एक शांत और पवित्र स्थान का चयन करें।
  7. क्या इस स्तोत्र का पाठ महिलाओं द्वारा किया जा सकता है?
    • हां, महिलाएं भी इस स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं और देवी की कृपा प्राप्त कर सकती हैं।
  8. क्या इस स्तोत्र का पाठ समूह में किया जा सकता है?
    • हां, इसे समूह में भी किया जा सकता है, लेकिन व्यक्तिगत साधना का विशेष महत्व होता है।
  9. क्या इस स्तोत्र का पाठ करने से भय और चिंता दूर होती है?
    • हां, इस स्तोत्र के पाठ से भय और चिंता का नाश होता है और आत्म-विश्वास बढ़ता है।
  10. क्या इस स्तोत्र का पाठ करने से शारीरिक कष्ट दूर होते हैं?
    • हां, देवी की कृपा से यह स्तोत्र शारीरिक कष्टों से मुक्ति दिलाता है।

“Shri Ramchandra Krapalu Bhajaman” Spiritual Growth

"Shri Ramchandra Krapalu Bhajaman" for Spiritual Growth

श्रीरामचन्द्र कृपालु भजमन्ः जो मन को अलौकिक आनंद से भर दे!

“श्रीरामचन्द्र कृपालु भजमन्” यह अध्यात्मिक उन्नति प्रदान करने वाला एक अत्यंत प्रसिद्ध और लोकप्रिय भजन है, जिसका पाठ करना, हर तरह की मुसीबते व बाधाओं को दूर करना होता है। यह भजन संत तुलसीदास द्वारा रचित “रामचरितमानस” से लिया गया है और भगवान श्रीराम की करुणा, दया और कृपा का वर्णन करता है। भक्तगण इस भजन को बड़े श्रद्धा भाव से गाते हैं, और यह उनके जीवन में शांति, समृद्धि और सुख-शांति लाने का माध्यम माना जाता है।

संपूर्ण “श्रीरामचन्द्र कृपालु भजमन्” भजन का अर्थ के साथ

भजन:

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन, हरण भव भय दारुणम्।
नवकंज-लोचन, कंज-मुख, कर कंज, पद कंजारुणम्॥१॥

कन्दर्प अगणित अमित छवि, नवनील-नीरद सुंदरम्।
पट पीतमानहु तडित रुचि, शुचि नौमि जनक सुतावरम्॥२॥

भजु दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनम्।
रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल चन्द्र दशरथ नन्दनम्॥३॥

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणम्।
आजानुभुज शर चापधर सङ्ग्राम जित खरदूषणम्॥४॥

इति वदति तुलसीदास शङ्कर शेष मुनि मन रञ्जनम्।
मम हृदय कञ्ज निवास कुरु कामादि खलदल गंजनम्॥५॥

भजु दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनम्।
रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल चन्द्र दशरथ नन्दनम्॥६॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन, हरण भव भय दारुणम्।
नवकंज-लोचन, कंज-मुख, कर कंज, पद कंजारुणम्॥७॥

संपूर्ण अर्थ

हे मन, श्रीरामचन्द्रजी का भजन करो। वे संसार के भय को दूर करने वाले हैं। जिनकी आँखें नवकंज के समान, मुख कमल के समान, हाथ कमल के समान और पैर कमल के समान हैं।

भगवान श्रीरामचन्द्रजी की सुंदरता अनगिनत कामदेवों से भी बढ़कर है। उनका रंग नया नीला बादल जैसा सुंदर है। वे पीले वस्त्र पहनते हैं जो बिजली की तरह चमकते हैं। ऐसे पवित्र स्वरूप को मैं प्रणाम करता हूँ, जो जनकपुत्री सीता के प्रिय हैं।

हे मन, उस श्रीराम का भजन करो जो दीनों के बन्धु, सूर्य के समान तेजस्वी और दानव-दैत्य वंश का नाश करने वाले हैं। वे रघुकुल के आनंद के मूल, कोशल राज्य के चंद्रमा और दशरथजी के पुत्र हैं।

श्रीराम के सिर पर मुकुट, कानों में कुण्डल, और माथे पर सुंदर तिलक है। उनके शरीर पर भव्य आभूषण सुशोभित हैं। उनकी भुजाएँ घुटनों तक लंबी हैं, वे धनुष-बाण धारण करते हैं, और उन्होंने युद्ध में खर और दूषण जैसे राक्षसों को जीत लिया है।

तुलसीदास कहते हैं, भगवान राम शंकर (शिव), शेषनाग, और सभी मुनियों के मन को प्रसन्न करने वाले हैं। वे मेरे हृदय रूपी कमल में निवास करें और काम-क्रोध जैसे दुश्मनों का नाश करें।

हे मन, उस श्रीराम का भजन करो जो दीनों के बन्धु, सूर्य के समान तेजस्वी और दानव-दैत्य वंश का नाश करने वाले हैं। वे रघुकुल के आनंद के मूल, कोशल राज्य के चंद्रमा और दशरथजी के पुत्र हैं।

हे मन, श्रीरामचन्द्रजी का भजन करो। वे संसार के भय को दूर करने वाले हैं। जिनकी आँखें नवकंज के समान, मुख कमल के समान, हाथ कमल के समान और पैर कमल के समान हैं।

श्रीरामचन्द्र कृपालु भजमन् के लाभ

  1. आध्यात्मिक शांति: इस भजन का नियमित रूप से पाठ करने से मन में शांति और संतोष की अनुभूति होती है। यह भजन मन को शांत और स्थिर करता है।
  2. भय और संकटों का नाश: यह भजन भवभय यानी संसारिक कष्टों और संकटों को दूर करने में सहायक माना जाता है।
  3. प्रेम और करुणा की भावना: भजन में भगवान श्रीराम की कृपा का गुणगान किया जाता है, जिससे व्यक्ति के हृदय में प्रेम और करुणा का भाव जागृत होता है।
  4. आत्म-विश्वास में वृद्धि: भगवान श्रीराम के गुणों का ध्यान करने से व्यक्ति में आत्म-विश्वास और साहस का विकास होता है।
  5. मानसिक संतुलन: नियमित रूप से इस भजन का जप करने से मानसिक संतुलन और आत्म-संयम प्राप्त होता है।
  6. धार्मिक उन्नति: यह भजन भगवान श्रीराम की स्तुति के माध्यम से व्यक्ति को धार्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है।
  7. परिवारिक सुख: इस भजन का नियमित पाठ करने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।
  8. स्वास्थ्य लाभ: इस भजन का प्रभाव मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। यह तन-मन को स्वस्थ और निरोगी बनाता है।
  9. समस्याओं का समाधान: यह भजन समस्याओं का समाधान ढूंढने में सहायक होता है और व्यक्ति को कठिनाइयों से उबरने की शक्ति देता है।
  10. आध्यात्मिक जागृति: इस भजन के माध्यम से व्यक्ति में आध्यात्मिक जागृति होती है और उसे भगवान के प्रति श्रद्धा और भक्ति का अनुभव होता है।
  11. विपरीत परिस्थितियों में साहस: यह भजन कठिन समय में भी व्यक्ति को साहस और धैर्य प्रदान करता है।
  12. सकारात्मक सोच: भजन का नियमित जप व्यक्ति के भीतर सकारात्मक सोच और दृष्टिकोण का विकास करता है।
  13. दैनिक तनाव का निवारण: यह भजन दैनिक जीवन के तनाव और चिंता को दूर करने में सहायक होता है।
  14. भक्ति का विकास: यह भजन व्यक्ति के भीतर भक्ति और धार्मिकता का विकास करता है।
  15. दिव्य शक्ति का अनुभव: यह भजन व्यक्ति को दिव्य शक्ति का अनुभव कराता है और उसे ईश्वर के प्रति समर्पण का भाव सिखाता है।

श्रीरामचन्द्र कृपालु भजमन् विधि

इस भजन की साधना के लिए निम्नलिखित विधि का पालन किया जा सकता है:

  1. दिन: इस भजन को प्रतिदिन किया जा सकता है। किसी भी विशेष दिन का चयन करने की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु मंगलवार और शनिवार को इसका विशेष महत्व है।
  2. अवधि: इस भजन की साधना की अवधि 41 दिनों तक हो सकती है। इस अवधि के दौरान इसे प्रतिदिन एक निश्चित समय पर करना चाहिए।
  3. मुहूर्त: सुबह के समय, ब्रह्म मुहूर्त (4:00 से 6:00 बजे) इस भजन की साधना के लिए सर्वोत्तम समय माना जाता है। इस समय मन शांत और वातावरण शुद्ध होता है, जो साधना को प्रभावी बनाता है।

Get mantra diksha

नियम

  1. शुद्धि और साफ-सफाई: साधना से पहले, स्नान कर शुद्ध और स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। पूजा स्थल को भी शुद्ध और स्वच्छ रखना आवश्यक है।
  2. एकाग्रता: इस भजन की साधना के दौरान मन को एकाग्र रखना चाहिए। बाहरी विकर्षणों से दूर रहकर भगवान श्रीराम के स्वरूप और उनकी कृपा का ध्यान करना चाहिए।
  3. संयम और सात्विकता: साधना के दौरान संयम और सात्विकता का पालन करना चाहिए। आहार में सात्विक भोजन का सेवन करना, और असत्य, हिंसा आदि से बचना चाहिए।
  4. नियमितता: इस भजन की साधना को नियमित रूप से करना चाहिए। यदि 41 दिनों की साधना कर रहे हैं, तो इसे किसी भी दिन छोड़े बिना प्रतिदिन करना चाहिए।
  5. गुप्तता: साधना और पूजा को गुप्त रखना चाहिए। इसे दूसरों को न बताकर भगवान के प्रति समर्पण और श्रद्धा भाव बनाए रखना चाहिए।
  6. आरती और दीपक: भजन के बाद भगवान श्रीराम की आरती करें और दीपक जलाकर भगवान का ध्यान करें।
  7. प्रसाद: साधना के बाद भगवान को प्रसाद अर्पित करें और उसे परिवार के सदस्यों में बांटें।

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सावधानी

  1. नियमितता में विघ्न न डालें: साधना के दौरान किसी भी प्रकार की नियमितता में विघ्न न डालें। इसे एक निश्चित समय पर और नियमपूर्वक करें।
  2. ध्यान में एकाग्रता: भजन के दौरान ध्यान को भटकने न दें। मन को भगवान श्रीराम के स्वरूप में स्थिर रखने का प्रयास करें।
  3. शुद्धता बनाए रखें: साधना के समय तन-मन की शुद्धता का ध्यान रखें। किसी भी प्रकार की नकारात्मकता को अपने अंदर प्रवेश न करने दें।
  4. आशंका से बचें: इस भजन की साधना में श्रद्धा और विश्वास रखें। किसी भी प्रकार की आशंका या शंका को मन में स्थान न दें।
  5. सात्विक जीवनशैली: साधना के दौरान सात्विक जीवनशैली का पालन करें। अहिंसा, सत्य, और संयम का जीवन जीने का प्रयास करें।

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श्रीरामचन्द्र कृपालु भजमन् के सामान्य प्रश्न

  1. श्रीरामचन्द्र कृपालु भजमन् किसने रचा है?
    • यह भजन गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित है, जिन्होंने “रामचरितमानस” भी लिखा था।
  2. इस भजन का सबसे प्रमुख लाभ क्या है?
    • यह भजन भक्तों को भगवान श्रीराम की कृपा प्राप्त करने और मानसिक शांति पाने में सहायता करता है।
  3. इस भजन को करने का सबसे अच्छा समय क्या है?
    • इस भजन को सुबह के समय, विशेषकर ब्रह्म मुहूर्त में करना सर्वोत्तम माना जाता है।
  4. क्या इस भजन को किसी विशेष दिन पर करना चाहिए?
    • इसे प्रतिदिन किया जा सकता है, लेकिन मंगलवार और शनिवार का विशेष महत्व है।
  5. क्या इस भजन के लिए कोई विशेष साधना विधि है?
    • हां, इस भजन की साधना 41 दिनों तक नियमित रूप से एक निश्चित समय पर की जा सकती है।
  6. क्या इस भजन को गुप्त रखना आवश्यक है?
    • साधना और पूजा को गुप्त रखना श्रेयस्कर माना गया है, ताकि साधना में किसी प्रकार का विघ्न न आए।
  7. इस भजन का प्रभाव कैसे महसूस किया जा सकता है?
    • इसका प्रभाव मानसिक शांति, आत्म-विश्वास, और आध्यात्मिक जागृति के रूप में महसूस किया जा सकता है।
  8. क्या इस भजन से स्वास्थ्य लाभ भी होते हैं?
    • हां, यह भजन मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को उत्तम बनाए रखने में सहायक है।
  9. क्या इस भजन को सुनने से भी लाभ मिलता है?
    • हां, इस भजन को सुनने से भी शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
  10. क्या इस भजन के साथ किसी और मंत्र का भी जप किया जा सकता है?
    • इसे अकेले ही किया जाना चाहिए, लेकिन यदि आप चाहें तो अन्य राम-नाम मंत्रों का भी जप कर सकते हैं।
  11. क्या इस भजन को केवल हिन्दू धर्म के लोग ही कर सकते हैं?
    • यह भजन किसी भी धर्म के व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है जो भगवान श्रीराम में आस्था रखता हो।

Ramcharitmanas- Spiritual Growth

Ramcharitmanas- Spiritual Growth

अध्यात्मिक ज्ञान फैलाने वाला रामचरितमानस गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित एक प्रसिद्ध महाकाव्य है, जो भारतीय साहित्य और भक्ति परंपरा का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह ग्रंथ भगवान श्रीराम के जीवन, आदर्शों और लीलाओं का सुंदर वर्णन करता है।

रामचरितमानस की रचना

रामचरितमानस का रचनाकाल 16वीं सदी के आसपास माना जाता है। इसे अवधी भाषा में लिखा गया है और इसे तुलसीदासजी ने लगभग दो वर्षों में काशी (वर्तमान वाराणसी) में पूरा किया। इस ग्रंथ को ‘तुलसी रामायण’ के नाम से भी जाना जाता है।

  1. बालकाण्ड: भगवान राम के जन्म और बाल्यकाल का वर्णन। इसमें राम जन्म, विश्वामित्र का आगमन, राम और लक्ष्मण का ताड़का वध, अहिल्या उद्धार और सीता स्वयंवर का वर्णन है।
  2. अयोध्याकाण्ड: राम के अयोध्या में राज्याभिषेक की तैयारी, कैकेयी द्वारा राम का वनवास, और राम, सीता, और लक्ष्मण का वन गमन।
  3. अरण्यकाण्ड: वनवास का काल, शूर्पणखा की घटना, खर-दूषण वध, सीता हरण और राम और लक्ष्मण की खोज।
  4. किष्किन्धाकाण्ड: राम और हनुमान की मित्रता, सुग्रीव का राज्याभिषेक, और सीता की खोज के लिए वानर सेना का प्रस्थान।
  5. सुन्दरकाण्ड: हनुमानजी द्वारा लंका में सीता का पता लगाना, लंका दहन और राम को सीता की सूचना देना।
  6. लंकाकाण्ड: राम-रावण युद्ध, रावण वध, और सीता का उद्धार।
  7. उत्तरकाण्ड: राम के अयोध्या वापसी, रामराज्य की स्थापना, और राम के अंतिम दिनों का वर्णन।

मुख्य पात्र

  • भगवान राम: इस महाकाव्य के मुख्य पात्र हैं, जिन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में चित्रित किया गया है।
  • सीता: राम की पत्नी और इस कथा की आदर्श नारी पात्र।
  • लक्ष्मण: राम के छोटे भाई, जो हमेशा उनके साथ रहते हैं।
  • हनुमान: राम के भक्त और सबसे प्रमुख सहयोगी।
  • रावण: लंका के राजा और इस कथा के मुख्य खलनायक।

महत्व

रामचरितमानस केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक आदर्शों का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत भी है। यह ग्रंथ भगवान राम के जीवन के आदर्शों को प्रस्तुत करता है, जैसे कि सत्य, धर्म, करुणा, कर्तव्य, और मर्यादा का पालन। इस ग्रंथ के माध्यम से तुलसीदास ने समाज को धार्मिकता और नैतिकता का मार्ग दिखाया है।

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मुख्य संदेश

  1. धर्म और कर्तव्य: रामचरितमानस में धर्म का पालन और कर्तव्यों का निर्वहन प्रमुखता से बताया गया है।
  2. भक्ति: भगवान राम की भक्ति को सर्वोच्च माना गया है। हनुमानजी की भक्ति का वर्णन इस ग्रंथ का एक प्रमुख अंश है।
  3. मर्यादा और सदाचार: रामचरितमानस में जीवन में मर्यादा और सदाचार का पालन करने की महत्ता बताई गई है।
  4. क्षमा और करुणा: क्षमा और करुणा के गुणों का महत्व दर्शाया गया है, जो राम और अन्य पात्रों के माध्यम से प्रदर्शित होते हैं।

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महत्व

रामचरितमानस का अध्ययन करने से व्यक्ति को नैतिकता, धर्म, और जीवन के आदर्शों के बारे में महत्वपूर्ण ज्ञान प्राप्त होता है। यह ग्रंथ जीवन में आने वाली चुनौतियों और समस्याओं का सामना करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। रामचरितमानस का पाठ करने से मन की शांति, मानसिक स्थिरता और भगवान के प्रति भक्ति की भावना जागृत होती है।

रामचरितमानस भारतीय संस्कृति और धर्म का एक अद्वितीय ग्रंथ है। इसका अध्ययन और पाठ व्यक्ति के जीवन को सही दिशा में प्रेरित करता है। यह न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि एक ऐसा साहित्यिक रत्न है जो जीवन की गहरी सच्चाइयों और आदर्शों को उजागर करता है। रामचरितमानस के माध्यम से तुलसीदासजी ने भगवान राम की लीलाओं और आदर्शों को जन-जन तक पहुँचाया और इसे सम्पूर्ण विश्व में एक अमूल्य धरोहर के रूप में स्थापित किया।

Shri Ramashtak Strot for Wealth & Prosperity

Shri Ramashtak Strot for Wealth & Prosperity

रामाष्टकम् स्त्रोत् सुरक्षा व शांती के लिये

रामाष्टकम् एक प्रसिद्ध स्तोत्र है जो भगवान श्रीराम की स्तुति में रचा गया है। यह स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है, जो हिंदू धर्म के महान दार्शनिक और संत थे। रामाष्टकम् में आठ श्लोक होते हैं, जिसमें भगवान राम के दिव्य गुणों, चरित्र और उनके आदर्श जीवन की महिमा का वर्णन किया गया है।

इसका पाठ नियमित रूप से करने से मन को शांति मिलती है और भगवान राम की कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र भक्तों के लिए आत्म-साक्षात्कार और भगवान के प्रति समर्पण का माध्यम है।

संपूर्ण रामाष्टकम् और उसका अर्थ

रामाष्टकम्

श्लोक 1:

भजे विशेषसंसारं रामं राजीवलोचनम्।
रघुवीरं करुणार्णवं गुणनिधिं गिराम् पतिम्॥

अर्थ:
मैं उन भगवान राम की आराधना करता हूँ, जो विशेष संसार (माया) से परे हैं, जिनकी आँखें कमल के समान हैं, जो रघुवंश के वीर, करुणा के सागर, गुणों के निधान और वाणी के स्वामी हैं।

श्लोक 2:

व्रतस्नानादिकं चित्तं सुलभं मे मनोभवम्।
करुणार्णव रामं मे शरणं भव सदा प्रिया॥

अर्थ:
मैं व्रत, स्नान आदि के द्वारा पवित्र मन को प्राप्त करता हूँ और उन करुणा के सागर राम की शरण में जाता हूँ, जो सदा प्रिय हैं।

श्लोक 3:

नमोऽस्तु रामाय सलक्षणाय देवानुकूलाय दयालवे च।
नमः प्रसन्नाय शशीधराय रक्षोवधाय अनुवृद्धिधाय॥

अर्थ:
श्रीराम, जो सभी शुभ लक्षणों से युक्त हैं, देवताओं के अनुकूल और दयालु हैं, उन्हें प्रणाम है। जो चंद्रमा के समान प्रसन्न हैं और राक्षसों का वध करने वाले हैं, उन्हें भी प्रणाम है।

श्लोक 4:

रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः॥

अर्थ:
मैं राम, रामभद्र, रामचन्द्र, रघुनाथ और सीता के पति श्रीराम को नमस्कार करता हूँ, जो वेधस (विधाता) हैं।

श्लोक 5:

नामस्मरणादेव रामनाम मनःक्लेशः।
स्वप्रसादेन संतुष्टिं ददासि कर्णिकायते॥

अर्थ:
राम के नाम का स्मरण करने मात्र से मन के कष्ट दूर हो जाते हैं। आपकी कृपा से संतुष्टि प्राप्त होती है, जैसे कमल का फूल खिलता है।

श्लोक 6:

नमोऽस्तु रामाय हृषीकेशाय धर्मपतये च धीमते।
नमः सदा भक्तिरसालवे नमः सीताकान्ताय सुभीते॥

अर्थ:
हृषीकेश राम, जो धर्म के पति और बुद्धिमान हैं, उन्हें प्रणाम है। मैं सदा भक्तिरस के सागर, सीता के प्रिय और सुरक्षित राम को प्रणाम करता हूँ।

श्लोक 7:

अर्थ:
करुणासागर, रघुकुल के राम, जो करुणा के निधान हैं, उनकी शरण में मैं सदा रहता हूँ और उन्हें प्रणाम करता हूँ।

श्लोक 8:

प्रणम्य शिरसा रामं जया रामं नमाम्यहम्।
रामार्चायायते रामं नमः सीता प्रियायते॥

अर्थ:
मैं सिर झुका कर श्रीराम को प्रणाम करता हूँ, जो जय के दाता हैं। मैं राम की आराधना करता हूँ और सीता के प्रिय राम को प्रणाम करता हूँ।

लाभ

  1. मानसिक शांति: रामाष्टकम् का नियमित पाठ करने से मन को शांति मिलती है और मानसिक तनाव दूर होता है।
  2. आध्यात्मिक उन्नति: यह स्तोत्र व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है और उसे भगवान राम की कृपा प्राप्त होती है।
  3. भक्तिपूर्ण जीवन: रामाष्टकम् का पाठ भक्तिपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा देता है।
  4. धार्मिक स्थिरता: यह स्तोत्र धार्मिक और आत्मिक स्थिरता प्रदान करता है।
  5. सद्गुणों का विकास: रामाष्टकम् के पाठ से व्यक्ति के भीतर सद्गुणों का विकास होता है।
  6. पापों का नाश: रामाष्टकम् का पाठ पापों के नाश में सहायक होता है।
  7. वाणी में मधुरता: इस स्तोत्र का पाठ वाणी में मधुरता लाता है।
  8. दुखों का निवारण: यह स्तोत्र दुखों और कष्टों का निवारण करता है।
  9. शत्रु बाधा से मुक्ति: रामाष्टकम् का पाठ शत्रु बाधा से मुक्ति दिलाता है।
  10. आत्मविश्वास में वृद्धि: यह स्तोत्र आत्मविश्वास में वृद्धि करता है।
  11. स्वास्थ्य लाभ: रामाष्टकम् का पाठ करने से स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  12. सकारात्मक ऊर्जा का संचार: इस स्तोत्र का पाठ सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
  13. धन-समृद्धि की प्राप्ति: रामाष्टकम् का पाठ करने से धन-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
  14. पारिवारिक सुख-शांति: यह स्तोत्र पारिवारिक सुख-शांति को बढ़ावा देता है।
  15. शुभ फल की प्राप्ति: रामाष्टकम् का पाठ शुभ फलों की प्राप्ति में सहायक होता है।
  16. मोक्ष की प्राप्ति: यह स्तोत्र मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
  17. धर्म मार्ग पर चलने की प्रेरणा: रामाष्टकम् का पाठ धर्म मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
  18. संकटों का निवारण: यह स्तोत्र संकटों का निवारण करता है।
  19. ईश्वर के प्रति समर्पण: रामाष्टकम् का पाठ ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना को जागृत करता है।
  20. ज्ञान की प्राप्ति: इस स्तोत्र का पाठ करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है।

विधि

  1. दिन: रामाष्टकम् का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन इसे मंगलवार और शनिवार को करना विशेष लाभकारी माना जाता है।
  2. अवधि: इसे नियमित रूप से किया जा सकता है, लेकिन यदि आप किसी विशेष कार्य या संकट से मुक्ति के लिए इसे कर रहे हैं, तो इसे 9 या 21 दिन तक लगातार करें।
  3. मुहूर्त: रामाष्टकम् का पाठ सुबह के समय करना सबसे उत्तम माना जाता है, लेकिन इसे दिन के किसी भी समय किया जा सकता है।
  4. विधि: सबसे पहले स्नान करके पवित्र हो जाएं। एक स्वच्छ स्थान पर आसन लगाकर बैठें। श्रीराम का ध्यान करें और फिर रामाष्टकम् का पाठ करें।
  5. प्रसाद: पाठ के बाद भगवान राम को ताजे फल, फूल और मिठाई का प्रसाद चढ़ाएं।

नियम

  1. शुद्धता: पाठ करने से पहले शारीरिक और मानसिक शुद्धता बनाए रखें।
  2. श्रद्धा: रामाष्टकम् का पाठ पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करें।
  3. ध्यान: पाठ के दौरान भगवान राम का ध्यान करते रहें।
  4. स्थान: पाठ का स्थान स्वच्छ और शांत होना चाहिए।
  5. समय: नियमित समय पर पाठ करने का प्रयास करें।
  6. मंत्र का उच्चारण: मंत्र का उच्चारण शुद्ध और स्पष्ट होना चाहिए।
  7. प्रसाद: पाठ के बाद प्रसाद का वितरण करें।

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सावधानियां

  1. ध्यानभंग न करें: पाठ के दौरान ध्यानभंग न हो, इसका ध्यान रखें।
  2. आसन: पाठ के लिए आसन का प्रयोग करें, सीधे भूमि पर न बैठें।
  3. ध्वनि: पाठ की ध्वनि मध्यम होनी चाहिए, बहुत ऊँची या धीमी नहीं।
  4. शब्दों की शुद्धता: श्लोकों का उच्चारण सही ढंग से करें।
  5. भक्ति भाव: पाठ के दौरान भक्ति भाव बनाए रखें।

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रामाष्टकम् के सामान्य प्रश्न

  1. रामाष्टकम् क्या है?
    • रामाष्टकम् भगवान राम की स्तुति में रचा गया एक प्रसिद्ध स्तोत्र है, जिसमें आठ श्लोक होते हैं।
  2. रामाष्टकम् का पाठ कैसे किया जाता है?
    • स्नान कर पवित्र होकर, आसन लगाकर, भगवान राम का ध्यान करते हुए रामाष्टकम् का पाठ किया जाता है।
  3. रामाष्टकम् किसने रचा है?
    • इसे आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है।
  4. रामाष्टकम् का पाठ कब करना चाहिए?
    • इसे किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन मंगलवार और शनिवार को करना विशेष लाभकारी है।
  5. रामाष्टकम् का पाठ कितने दिन तक करना चाहिए?
    • इसे नियमित रूप से किया जा सकता है, या विशेष प्रयोजन से 9 या 21 दिन तक।
  6. क्या रामाष्टकम् का पाठ करने के लिए किसी विशेष मुहूर्त की आवश्यकता है?
    • नहीं, इसे किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन सुबह का समय सबसे उत्तम है।
  7. रामाष्टकम् का पाठ करने से क्या लाभ होता है?
    • मानसिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति, पारिवारिक सुख-शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  8. क्या रामाष्टकम् का पाठ घर पर किया जा सकता है?
    • हां, इसे घर पर भी किया जा सकता है, बशर्ते स्थान स्वच्छ और शांत हो।
  9. क्या रामाष्टकम् का पाठ विशेष विधि से किया जाना चाहिए?
    • हां, पाठ से पहले स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र पहनें और आसन पर बैठकर पाठ करें।
  10. क्या रामाष्टकम् का पाठ किसी विशेष उद्देश्य से किया जा सकता है?
    • हां, इसे किसी विशेष कार्य की सिद्धि या संकट से मुक्ति के लिए किया जा सकता है।
  11. रामाष्टकम् का पाठ कितनी बार करना चाहिए?
    • इसे रोज़ाना एक बार पाठ करना उचित होता है।
  12. रामाष्टकम् के पाठ के दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
    • शुद्धता, श्रद्धा और ध्यान का ध्यान रखना चाहिए।
  13. रामाष्टकम् का पाठ किस प्रकार से फलदायक होता है?
    • यह स्तोत्र भक्त के मन में भक्ति, श्रद्धा और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।

Rama Raksha Strot for Peace & Prosperity

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राम रक्षा स्तोत्र: सुख शांती व मोक्ष प्राप्ति

परिवार मे सुख समृद्धि बढाने वाला राम रक्षा स्तोत्र एक अत्यंत पवित्र और प्रभावशाली स्तोत्र है, जिसका पाठ भगवान श्रीराम से रक्षा एवं आशीर्वाद पाने के लिए किया जाता है। यह स्तोत्र भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त, ऋषि बुधकौशिक द्वारा रचित है। इस स्तोत्र का महत्व इतना अधिक है कि इसे नियमित रूप से करने वाले व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता, शांति और सुरक्षा प्राप्त होती है।

राम रक्षा स्तोत्र का संपूर्ण पाठ

संपूर्ण राम रक्षा स्तोत्र और उसका अर्थ

राम रक्षा स्तोत्र भगवान श्रीराम की स्तुति और सुरक्षा के लिए एक अत्यंत पवित्र और प्रभावशाली स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान श्रीराम के भक्त बुधकौशिक ऋषि द्वारा रचित है। यहाँ संपूर्ण राम रक्षा स्तोत्र और उसका सरल अर्थ प्रस्तुत किया गया है:

राम रक्षा स्तोत्रम्

ध्यानम्:

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं  
पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्।  
वामाङ्कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं  
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलं रामचन्द्रम्॥

अर्थ:
मैं भगवान श्रीराम का ध्यान करता हूँ, जिनके दीर्घ बाहु हैं, जो धनुष और बाण धारण किए हुए हैं, पीतांबर धारण किए हुए हैं, जिनकी आँखें कमल के समान हैं, जिनके वामभाग में माता सीता स्थित हैं, और जिनके श्यामल शरीर पर विविध आभूषणों की शोभा है।

चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्।  
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्॥

अर्थ:
रघुनाथ श्रीराम का चरित्र असंख्य कथाओं में विस्तृत है, और इसके एक-एक अक्षर के पाठ से महापापों का नाश होता है।

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्।  
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम्॥

अर्थ:
नीलकमल के समान श्यामल वर्ण, कमल के समान नेत्रों वाले श्रीराम का ध्यान करें, जो जानकी और लक्ष्मण के साथ हैं और जिनके सिर पर जटामुकुट की शोभा है।

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्।  
स्वलीलया जगत्त्रातुं आविर्भूतं अजं विभुम्॥

अर्थ:
जो तलवार, तरकश और धनुष-बाण धारण किए हुए हैं, जो राक्षसों के संहारक हैं, जिन्होंने अपनी लीला से संसार की रक्षा के लिए अवतार लिया है, ऐसे अजन्मा और सर्वव्यापी श्रीराम की आराधना करें।

रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्।

अर्थ:
समझदार व्यक्ति को राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए, जो पापों का नाश करने वाली और सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाली है।

स्त्रोत के श्लोक और उनका अर्थ:

  1. श्लोक 1:
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः।  
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती॥

अर्थ:
मेरे सिर की रक्षा श्रीराम करें, जो राघव हैं; मेरे ललाट की रक्षा दशरथ के पुत्र करें; मेरी आँखों की रक्षा कौसल्या नंदन करें, और कानों की रक्षा विश्वामित्र के प्रिय राम करें।

  1. श्लोक 2:
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः।  
जिव्हां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः॥

अर्थ:
मेरे नासिका की रक्षा यज्ञों के रक्षक श्रीराम करें; मुख की रक्षा लक्ष्मण के प्रिय भाई करें; जिव्हा की रक्षा विद्या के भंडार राम करें, और गले की रक्षा भरत के आदरणीय राम करें।

  1. श्लोक 3:
स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः।  
करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित्॥

अर्थ:
मेरे कंधों की रक्षा दिव्य शस्त्रों वाले श्रीराम करें; भुजाओं की रक्षा शिव का धनुष तोड़ने वाले राम करें; हाथों की रक्षा सीता के पति राम करें, और हृदय की रक्षा परशुराम को जीतने वाले राम करें।

  1. श्लोक 4:
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः।  
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः॥

अर्थ:
मेरे मध्य भाग की रक्षा खर के वध करने वाले राम करें; नाभि की रक्षा जाम्बवान के सहायक राम करें; कटि की रक्षा सुग्रीव के स्वामी राम करें, और जंघाओं की रक्षा हनुमान के प्रभु राम करें।

  1. श्लोक 5:
ऊरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत्।  
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तकः॥

अर्थ:
मेरी जंघाओं की रक्षा रघुकुल श्रेष्ठ राम करें, जो राक्षसों के कुल का नाश करने वाले हैं; घुटनों की रक्षा सेतु बनाने वाले राम करें, और पिंडलियों की रक्षा रावण के वध करने वाले राम करें।

  1. श्लोक 6:
पादौ बिभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः।

अर्थ:
मेरे पैरों की रक्षा विभीषण को राज्य प्रदान करने वाले राम करें, और सम्पूर्ण शरीर की रक्षा सर्वव्यापी राम करें।

  1. श्लोक 7:
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्।  
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्॥

अर्थ:
जो भी पुण्यात्मा इस राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता है, वह दीर्घायु, सुखी, संतानवान, विजयी और विनम्र होता है।

  1. श्लोक 8:
पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः।  
न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः॥

अर्थ:
पाताल, पृथ्वी, और आकाश में विचरण करने वाले या गुप्त रूप से कार्य करने वाले राक्षस भी राम नाम से रक्षित व्यक्ति को देख नहीं सकते।

  1. श्लोक 9:
रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वास्मरन्।  
नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति॥

अर्थ:
जो व्यक्ति राम, रामभद्र, और रामचन्द्र का स्मरण करता है, वह पापों से मुक्त रहता है और भोग तथा मोक्ष दोनों प्राप्त करता है।

  1. श्लोक 10:
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्।  
यः कण्ठे धारयेद्यस्तु तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः॥

अर्थ:
जो व्यक्ति इस जगत-विजेता मंत्र “राम” का जाप करता है और उसे अपने कंठ में धारण करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

  1. श्लोक 11:
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्।  
अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमङ्गलम्॥

अर्थ:
जो इस वज्र के समान अजेय राम कवच का स्मरण करता है, उसे जीवन में अविरल आज्ञा और सर्वत्र विजय और मंगल की प्राप्ति होती है।

  1. श्लोक 12:
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः।  
तथा लिखितवान् प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः॥

अर्थ:
भगवान शिव ने स्वप्न में बुधकौशिक को इस राम रक्षा स्तोत्र की प्रेरणा दी, और उन्होंने प्रातःकाल उठकर इसे लिखा।

  1. श्लोक 13:
आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्।  
अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान् स नः प्रभुः॥

अर्थ:
भगवान श्रीराम कल्पवृक्षों के समान आरामी, सभी संकटों का नाश करने वाले, तीनों लोकों के सुंदरतम,

और लक्ष्मी के स्वामी हैं। वे ही हमारे प्रभु हैं।

  1. श्लोक 14:
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ।  
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ॥

अर्थ:
भगवान राम और लक्ष्मण, दोनों ही तरुण, रूपवान, सुकुमार, महान बलशाली, विशाल कमल के समान नेत्रों वाले, और चीर व कृष्णमृगचर्म धारण किए हुए हैं।

  1. श्लोक 15:
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ।  
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ॥

अर्थ:
ये दोनों राम और लक्ष्मण फल-मूल का आहार करने वाले, दान्त (इंद्रियों को वश में रखने वाले), तपस्वी, ब्रह्मचारी, और दशरथ के पुत्र और भाई हैं।

  1. श्लोक 16:
शरण्यौ सर्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्।  
रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ॥

अर्थ:
रघुकुल के श्रेष्ठ राम और लक्ष्मण, जो सभी प्राणियों के शरणदाता और सभी धनुर्धारियों में श्रेष्ठ हैं, और राक्षसों के कुल का नाश करने वाले हैं, हमारी रक्षा करें।

  1. श्लोक 17:
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङ्गिनौ।  
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम्॥

अर्थ:
राम और लक्ष्मण, जो सदैव सज्जित धनुष-बाण लिए रहते हैं, उनके तुणीर सदैव बाणों से भरे होते हैं। वे दोनों भाई मेरी रक्षा के लिए मेरे आगे-आगे पथ पर सदैव चलते रहें।

  1. श्लोक 18:
सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा।  
गच्छन् मनोरथान्नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः॥

अर्थ:
सज्जित, कवचधारी, खड्ग और धनुष-बाण धारण किए हुए श्रीराम लक्ष्मण के साथ हमें हमारे मनोरथ प्राप्त करते हुए हर मार्ग पर हमारी रक्षा करें।

  1. श्लोक 19:
रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली।  
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः॥

अर्थ:
शूरवीर राम, जो दशरथ के पुत्र हैं, लक्ष्मण के अनुगामी, बलशाली, काकुत्स्थ, संपूर्ण पुरुष, कौसल्या के पुत्र और रघुकुल के उत्तम हैं।

  1. श्लोक 20:
वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः।  
जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेय पराक्रमः॥

अर्थ:
राम, जिन्हें वेद और वेदांत जानते हैं, जो यज्ञ के ईश्वर, पुराणों के पुरुषोत्तम, जानकी के प्रिय, श्रीमान, और अपार पराक्रम वाले हैं।

  1. श्लोक 21:
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः।  
अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः॥

अर्थ:
इस प्रकार जो भक्त श्रद्धा सहित प्रतिदिन इस राम रक्षा स्तोत्र का जप करता है, वह अश्वमेध यज्ञ से अधिक पुण्य प्राप्त करता है, इसमें कोई संदेह नहीं।

  1. श्लोक 22:
रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम्।  
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नराः॥

अर्थ:
जो लोग नीले कमल के समान श्यामल, कमल नेत्रों वाले, पीले वस्त्रधारी श्रीराम का दिव्य नामों से स्तुति करते हैं, वे संसार में बंधन रहित हो जाते हैं।

  1. श्लोक 23:
रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्।  
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्॥  
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्।  
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्॥

अर्थ:
मैं राम को वंदन करता हूँ, जो लक्ष्मण के अग्रज, रघुवंश के श्रेष्ठ, सीता के पति, सुंदर, काकुत्स्थ, करुणा के सागर, गुणों के निधान, ब्राह्मणों के प्रिय, धर्मपरायण, सत्य प्रतिज्ञ, दशरथ के पुत्र, श्याम वर्ण, शांति के मूर्तिमान स्वरूप, लोकों के मनमोहक, रघुकुल के तिलक और रावण के शत्रु हैं।

  1. श्लोक 24:
रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे।  
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः॥

अर्थ:
मैं राम, रामभद्र, रामचन्द्र, वेधस, रघुनाथ, नाथ और सीता के पति राम को नमन करता हूँ।

  1. श्लोक 25:
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम।  
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम॥  
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम।  
श्रीराम राम शरणं भव राम राम॥

अर्थ:
हे श्रीराम, हे रघुकुल नंदन राम, हे भरत के अग्रज राम, हे रणधीर राम, हे श्रीराम, मुझे आपकी शरण प्राप्त हो।

  1. श्लोक 26:
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि।  
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।  
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि।  
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये॥

अर्थ:
मैं मन, वचन और कर्म से श्रीरामचन्द्र के चरणों का स्मरण करता हूँ, उनका गान करता हूँ, और उन्हें शिर से प्रणाम करता हूँ। मैं श्रीरामचन्द्र के चरणों में शरण लेता हूँ।

  1. श्लोक 27:
माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः।  
स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः।  
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुः।  
नान्यं जाने नैव जाने न जाने॥

अर्थ:
मेरे माता-पिता, स्वामी, सखा और सर्वस्व रामचन्द्र ही हैं। मैं रामचन्द्र के अतिरिक्त किसी को नहीं जानता, और न ही जानना चाहता हूँ।

  1. श्लोक 28:
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा।  
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम्॥

अर्थ:
मैं उस रघुनंदन श्रीराम को प्रणाम करता हूँ, जिनके दक्षिण में लक्ष्मण और बाईं ओर जनकनंदिनी सीता हैं, और जिनके आगे हनुमान हैं।

  1. श्लोक 29:
लोकाभिरामं रणरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।  
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥

अर्थ:
जो लोकों के मन को भाने वाले, युद्ध में धीर, कमल के समान नेत्रों वाले, रघुवंश के नायक, करुणा के रूप और करुणाकर रामचन्द्र हैं, उनकी शरण मैं प्राप्त करता हूँ।

“`
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्य

राम रक्षा स्तोत्र के लाभ

  1. सुरक्षा प्रदान करना: यह स्तोत्र पढ़ने वाले को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सुरक्षा प्रदान करता है।
  2. सकारात्मक ऊर्जा का संचार: इसके नियमित पाठ से घर और व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  3. संकटों से मुक्ति: जीवन में आने वाली हर प्रकार की कठिनाइयों और संकटों से रक्षा करता है।
  4. मन की शांति: इसका पाठ करने से मन को शांति और स्थिरता मिलती है।
  5. आत्मबल में वृद्धि: यह स्तोत्र आत्मबल और आत्मविश्वास में वृद्धि करता है।
  6. शत्रुओं से रक्षा: शत्रुओं और विरोधियों से रक्षा करने में सहायक होता है।
  7. परिवार की सुरक्षा: परिवार के सभी सदस्यों की सुरक्षा करता है।
  8. सपनों में डर से मुक्ति: इससे रात में बुरे सपनों से मुक्ति मिलती है।
  9. धन की प्राप्ति: आर्थिक समृद्धि और स्थिरता लाने में सहायक होता है।
  10. स्वास्थ्य में सुधार: स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को दूर करने में मददगार होता है।
  11. विद्या और ज्ञान की प्राप्ति: यह विद्या, ज्ञान और बुद्धिमत्ता में वृद्धि करता है।
  12. आध्यात्मिक उन्नति: आत्मज्ञान और आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है।
  13. समाज में प्रतिष्ठा: समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।
  14. दुखों का नाश: इसके नियमित पाठ से व्यक्ति के दुख और कष्ट दूर होते हैं।
  15. सफलता की प्राप्ति: जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने में सहायक होता है।
  16. विवाह में बाधाओं का निवारण: विवाह में आने वाली बाधाओं को दूर करता है।
  17. संतान प्राप्ति: संतान सुख की प्राप्ति के लिए भी इसका पाठ लाभकारी होता है।
  18. विवादों का समाधान: पारिवारिक और सामाजिक विवादों को सुलझाने में मदद करता है।
  19. धार्मिक और आध्यात्मिक सुरक्षा: धर्म और आध्यात्मिक क्षेत्र में व्यक्ति को मजबूत बनाता है।
  20. मानसिक शक्ति: मानसिक शक्ति और स्थिरता में वृद्धि करता है।

राम रक्षा स्तोत्र की विधि

पाठ करने की विधि:

  1. समय का चयन: राम रक्षा स्तोत्र का पाठ प्रातःकाल (सुबह) और संध्याकाल (शाम) में करना उत्तम माना जाता है। ब्रह्ममुहूर्त में (सुबह 4-6 बजे) किया गया पाठ विशेष फलदायी होता है।
  2. शुद्धि: पाठ से पहले शुद्धि का ध्यान रखें। स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  3. पूजा स्थल: भगवान श्रीराम की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठकर पाठ करें। अगर संभव हो तो रामायण या श्रीरामचरितमानस का भी पूजन करें।
  4. आरम्भ: पाठ की शुरुआत भगवान गणेश और भगवान श्रीराम की वंदना से करें। इसके बाद राम रक्षा स्तोत्र का पाठ आरम्भ करें।
  5. संख्या: इसका पाठ प्रतिदिन 1, 3, 5, 7, या 11 बार किया जा सकता है।
  6. संकल्प: पाठ के पहले एक संकल्प लें कि आप किस उद्देश्य से इसका पाठ कर रहे हैं।
  7. सभी श्लोकों का पाठ: संपूर्ण राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करें। यदि संभव हो तो इसे संस्कृत में ही पढ़ें।
  8. ध्यान: पाठ करते समय भगवान श्रीराम के स्वरूप का ध्यान करें।
  9. भोजन: पाठ से पहले तामसिक (गंदा या भारी) भोजन न करें। सात्विक भोजन करें।
  10. समर्पण: अंत में भगवान श्रीराम को समर्पित करें और उनके आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करें।

नियम

  1. नियमितता: राम रक्षा स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करें। इसे बीच-बीच में बंद न करें।
  2. सच्ची श्रद्धा: पाठ करते समय मन में सच्ची श्रद्धा और विश्वास रखें।
  3. शुद्धता: पाठ के समय शरीर, मन और स्थान की शुद्धता का ध्यान रखें।
  4. सावधानी: पाठ के दौरान असभ्य या अनावश्यक विचारों से बचें।
  5. ध्यान: पाठ करते समय भगवान श्रीराम के प्रति ध्यान केंद्रित रखें।
  6. सात्विक आहार: पाठ के दौरान सात्विक आहार लें और मांसाहार से बचें।
  7. अनुशासन: नियमित समय और स्थान का पालन करें।
  8. सात्विक विचार: पढ़ने के दौरान और उसके बाद सात्विक और सकारात्मक विचार रखें।
  9. व्रत: विशेष उद्देश्यों के लिए पाठ के साथ व्रत भी रख सकते हैं।
  10. परिवार के लिए पाठ: परिवार के सदस्यों के लिए भी इसका पाठ करें, इससे पूरे परिवार को लाभ होता है।

Kamakhya sadhana shivir

राम रक्षा स्तोत्र पढ़ते समय सावधानियाँ

  1. पवित्रता बनाए रखें: पाठ के समय शरीर और मन की पवित्रता बनाए रखें।
  2. समय का पालन: निर्धारित समय पर ही पाठ करें।
  3. ध्यान और एकाग्रता: पाठ करते समय ध्यान और एकाग्रता बनाए रखें, अन्यथा इसका प्रभाव कम हो सकता है।
  4. सही उच्चारण: श्लोकों का सही उच्चारण करें। यदि उच्चारण में कठिनाई हो तो किसी विद्वान की मदद लें।
  5. आसनों का ध्यान: पाठ करते समय आरामदायक और स्थिर आसन पर बैठें।
  6. व्रत और उपवास: यदि आप व्रत या उपवास कर रहे हैं तो केवल सात्विक आहार लें।
  7. सामाजिक अनुशासन: पाठ के समय शांति बनाए रखें और अनावश्यक बातचीत से बचें।
  8. भोजन का नियम: पाठ से पहले और बाद में तामसिक भोजन न करें। सात्विक भोजन करें।
  9. अधूरी पाठ न छोड़ें: यदि एक बार पाठ शुरू कर दिया है तो उसे बीच में अधूरा न छोड़ें।
  10. अशुभ समय में न करें: किसी अशुभ समय, जैसे अमावस्या की रात या ग्रहण के दौरान पाठ न करें।

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राम रक्षा स्तोत्र – पृश्न उत्तर

  1. राम रक्षा स्तोत्र का क्या महत्व है?
    यह स्तोत्र भगवान श्रीराम की कृपा और सुरक्षा प्राप्त करने का एक साधन है। इसे नियमित रूप से पढ़ने से व्यक्ति को हर प्रकार की कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है।
  2. क्या यह स्तोत्र किसी भी समय पढ़ा जा सकता है?
    हाँ, लेकिन प्रातःकाल या संध्याकाल में इसका पाठ करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।
  3. राम रक्षा स्तोत्र को पढ़ने के लिए कौन-सी भाषा उपयुक्त है?
    यह स्तोत्र संस्कृत में लिखा गया है, लेकिन आप इसे अपनी सुविधा के अनुसार हिंदी, अंग्रेज़ी या किसी भी अन्य भाषा में पढ़ सकते हैं।
  4. क्या महिलाएं भी राम रक्षा स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं?
    हाँ, महिलाएं भी इसका पाठ कर सकती हैं और उन्हें भी इसका लाभ प्राप्त होता है।
  5. क्या इसका पाठ करने से इच्छित फल मिलता है?
    हाँ, इसे श्रद्धा और विश्वास के साथ करने से इच्छित फल की प्राप्ति होती है।
  6. क्या किसी विशेष पूजा सामग्री की आवश्यकता होती है?
    नहीं, लेकिन आप भगवान श्रीराम की मूर्ति या तस्वीर के सामने धूप, दीप, फूल आदि का प्रयोग कर सकते हैं।
  7. क्या इसे पाठ के दौरान व्रत करना आवश्यक है?
    व्रत करना आवश्यक नहीं है, लेकिन विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए आप व्रत कर सकते हैं।
  8. क्या इसका पाठ घर के बाहर भी किया जा सकता है?
    हाँ, इसे आप किसी भी पवित्र स्थान पर कर सकते हैं।
  9. इसका पाठ कितनी बार करना चाहिए?
    इसे प्रतिदिन एक बार, तीन बार, सात बार, या 11 बार किया जा सकता है।
  10. राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने के लिए कौन-सा दिन शुभ होता है?
    इसे किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन मंगलवार और शनिवार को विशेष लाभकारी माना जाता है।
  11. राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से कौन-से कष्ट दूर होते हैं?
    यह शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और आध्यात्मिक सभी प्रकार के कष्टों को दूर करता है।
  12. क्या यह स्तोत्र शत्रुओं से रक्षा करता है?
    हाँ, इसका पाठ शत्रुओं से सुरक्षा प्रदान करता है।
  13. क्या इसके पाठ से परिवार की सुरक्षा होती है?
    हाँ, इसके पाठ से पूरे परिवार की सुरक्षा होती है।
  14. राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करते समय किस दिशा में बैठना चाहिए?
    पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना शुभ माना जाता है।
  15. क्या यह स्तोत्र बच्चों के लिए भी लाभकारी है?
    हाँ, बच्चों के लिए भी यह स्तोत्र अत्यंत लाभकारी होता है।
  16. क्या इसका पाठ रात में किया जा सकता है?
    हाँ, इसे रात में भी किया जा सकता है, विशेषकर यदि आपको डरावने सपने आते हों।
  17. क्या इसके पाठ के लिए किसी विशेष अनुष्ठान की आवश्यकता है?
    नहीं, इसे साधारण रूप से भी किया जा सकता है, लेकिन आप अनुष्ठान के साथ भी इसे कर सकते हैं।
  18. क्या इसके पाठ से रोगों से मुक्ति मिलती है?
    हाँ, इसके पाठ से स्वास्थ्य में सुधार और रोगों से मुक्ति मिलती है।
  19. क्या राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से धन की प्राप्ति होती है?
    हाँ, यह आर्थिक समस्याओं को दूर करता है और समृद्धि लाता है।
  20. राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करते समय क्या सावधानी रखनी चाहिए?
    सही उच्चारण, पवित्रता, और ध्यान की एकाग्रता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

Narayana Kavach Path for Strong Protection

Narayana Kavach Path for Strong Protection

नारायण कवच पाठ- चारों दिशाओं से सुरक्षा

परिवार की रक्षा करने वाला नारायण कवच श्रीमद्भागवत महापुराण के छठे स्कंध के अठारहवें अध्याय में वर्णित है। यह कवच विशेष रूप से भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे उनके भक्तों के रक्षात्मक कवच के रूप में माना जाता है। यह कवच पाठ दुष्ट आत्माओं, नकारात्मक ऊर्जाओं, और शत्रुओं से सुरक्षा प्रदान करता है। नारायण कवच की शक्ति का उल्लेख पुराणों में विस्तृत रूप से किया गया है।

श्री नारायण कवच

  1. ॐ श्री नारायण: कवचं वक्ष्ये श्रुणुष्व मुनिसत्तम। योगस्य प्रथमान् मुख्यं साङ्ख्यस्य च प्रधानत:।। अर्थ: हे मुनिश्रेष्ठ! अब मैं आपको नारायण कवच के बारे में बताने जा रहा हूँ। यह योग और सांख्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  2. यत्कृता: ब्रह्मणा पूर्वमजेनाद्य सुरर्षिणा। रक्षार्थं सर्वभूतानां भूतमात्रविनाशकम्।। अर्थ: भगवान ब्रह्मा ने सर्वप्रथम इस कवच की रचना की थी। इसका उद्देश्य समस्त प्राणियों की रक्षा करना और नकारात्मक तत्वों का विनाश करना है।
  3. धातारि विश्वसृजि विश्वं व्यवत्यस्थदामाश्रितम्। संसारस्तितये पुम्भ्यां सर्वानुग्रहकातर:।। अर्थ: भगवान विष्णु, जो इस संसार के सृजनकर्ता और पालनकर्ता हैं, उन्होंने इस कवच का निर्माण इस संसार की सुरक्षा और सभी जीवों के कल्याण के लिए किया है।
  4. विष्णु: पातु मम प्राणान्मन:शक्तिं यश: श्रियम्। वक्रेण नेत्रयोश्चक्षु: शिखया तु ललाटकम्।। अर्थ: भगवान विष्णु मेरे प्राण, मन, शक्ति, यश और श्री की रक्षा करें। मेरी आँखों की दृष्टि और ललाट की शिखा की रक्षा वे अपने दिव्य दृष्टिकोण से करें।
  5. सृष्टि स्थित्यन्तकृद्विष्णुर्विश्वस्य जगतो महान्। महानुभावो महान्यः परमात्मा गतिस्पृहा।। अर्थ: भगवान विष्णु, जो सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार करते हैं, वे ही इस जगत के महान स्वामी और परमात्मा हैं।
  6. द्रव्यं कर्म च कालं च स्वभावं जीवमेव च। यच्छक्त्याहृत्संपन्नो मम पातु श्रियं यश:।। अर्थ: वे भगवान विष्णु, जो द्रव्य, कर्म, काल, स्वभाव और जीव के स्वामी हैं, मेरी श्री और यश की रक्षा करें।
  7. महत्तत्त्वादयश्चैव विकाराः पुम्भ्यांस्थिताः। रक्षां नो धारयेद्यस्य पद्मगर्भो महानुभू:।। अर्थ: भगवान विष्णु, जो महत्तत्त्व और पुम्भ्यांस्थित विकारों के रक्षक हैं, वे हमारे शरीर और मन की रक्षा करें।
  8. सांख्ययोगाय योगस्य पुरुषार्थार्थमात्मन:। मोक्षधर्मा यथा चान्ये रक्षां मे तदनुग्रहात्।। अर्थ: भगवान विष्णु, जो सांख्ययोग और पुरुषार्थ के ज्ञाता हैं, मेरी आत्मा की रक्षा करें। मोक्षधर्म का पालन करके वे मुझे अपना अनुग्रह प्रदान करें।
  9. अद्याप्यनन्तरो विष्णु: सर्वज्ञश्च महेश्वर:। रक्षां करोतु सर्वत्र मम दिव्येन चक्षुषा।। अर्थ: भगवान विष्णु, जो अनन्त और सर्वज्ञ हैं, वे अपनी दिव्य दृष्टि से सर्वत्र मेरी रक्षा करें।
  10. सर्वत: पातु मां विष्णुर्दिवा सूर्याग्निविग्रह:। रात्रौ नक्षत्र रूपेण सोपरो नामनोयम:।। अर्थ: भगवान विष्णु, जो दिन में सूर्य और अग्नि के रूप में हैं, मेरी दिनभर रक्षा करें। रात में, जो नक्षत्रों के रूप में हैं, वे मेरी रात की रक्षा करें।
  11. नारायण: प्रहृत्यैतन्मया संकल्पितं शुभम्। सर्वभूतात्मभावेन मम पातु श्रियं हरि:।। अर्थ: भगवान नारायण, जो सभी प्राणियों के आत्मा हैं, मेरी रक्षा करें और मुझे श्री का वरदान दें।
  12. तस्याहं सर्वकालेषु मा स्मारयतु पौरुषम्। यथा भवेत्सदा तात्मा मे शरण्यं हृदाश्रय:।। अर्थ: भगवान विष्णु, जो मेरे रक्षक हैं, वे मुझे हर समय याद दिलाएं कि मेरी आत्मा का शरणस्थल वे ही हैं।
  13. हरि: सर्वात्मना विष्णु: सर्वज्ञो ह्यच्युत: प्रभु:। सर्वेभ्यो रक्षतां विष्णुर्मधुसूदन एव हि।। अर्थ: भगवान विष्णु, जो सर्वज्ञ, अच्युत, और प्रभु हैं, वे सभी दिशाओं से मेरी रक्षा करें।
  14. संसारधर्मतो मुक्तं नारायणं स्वयंजगत्। प्रपद्येऽहं सदा विष्णुं नारायणं सदा हरिम्।। अर्थ: संसार के धर्मों से मुक्त, नारायण, जो स्वयंसृष्टि के स्वामी हैं, मैं हमेशा उनकी शरण में जाता हूँ।
  15. अमृतं शाश्वतं विष्णुं सर्वात्मानं शरण्यम्। अनन्तविक्रमं विष्णुं प्रपद्येऽहं सदा विभुम्।। अर्थ: मैं भगवान विष्णु, जो अमृत, शाश्वत, सर्वात्मा, शरणागत के रक्षक, और अनन्त शक्ति के धनी हैं, उनकी शरण में जाता हूँ।
  16. नारायणं हृषीकेशं पातु मां सर्वतो हरि:। इति ते कथितं विप्र नारायण कवचं शुभम्।। अर्थ: भगवान नारायण, जो हृषीकेश हैं, हरि हैं, वे सभी दिशाओं से मेरी रक्षा करें। हे विप्र! मैंने आपको शुभ नारायण कवच बताया।

लाभ

  1. रक्षा कवच: नारायण कवच भगवान विष्णु का कवच है जो सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा, दुष्ट आत्माओं, और शत्रुओं से सुरक्षा प्रदान करता है।
  2. आध्यात्मिक उन्नति: यह कवच भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति में सहायता करता है और उन्हें मोक्ष की दिशा में अग्रसर करता है।
  3. आत्मबल में वृद्धि: नारायण कवच का नियमित पाठ करने से आत्मबल और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  4. शारीरिक स्वास्थ्य: इस कवच का पाठ करने से शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है और बीमारियों से मुक्ति मिलती है।
  5. मन की शांति: नारायण कवच का जाप करने से मन को शांति मिलती है और तनाव से मुक्ति मिलती है।
  6. धन और समृद्धि: यह कवच भक्तों को आर्थिक समृद्धि और धन प्राप्ति में सहायता करता है।
  7. शत्रुओं का नाश: इस कवच का पाठ करने से शत्रुओं की बुरी नजर और उनकी योजनाओं का नाश होता है।
  8. भयमुक्ति: नारायण कवच का पाठ करने से भय और असुरक्षा की भावनाएं समाप्त होती हैं।
  9. परिवार की सुरक्षा: यह कवच परिवार के सदस्यों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
  10. सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह: नारायण कवच का पाठ सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ाता है।
  11. बाधाओं का नाश: यह कवच जीवन में आने वाली सभी प्रकार की बाधाओं का नाश करता है।
  12. मनोकामनाओं की पूर्ति: भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उन्हें जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
  13. धार्मिक उन्नति: यह कवच धार्मिक उन्नति में भी सहायता करता है और भक्तों को भगवान के प्रति समर्पण में बढ़ावा देता है।
  14. अकाल मृत्यु से रक्षा: नारायण कवच का पाठ अकाल मृत्यु से भी रक्षा करता है।
  15. भाग्य में वृद्धि: यह कवच भाग्य में वृद्धि करता है और जीवन में सौभाग्य लाता है।
  16. घर में शांति और समृद्धि: इस कवच का पाठ करने से घर में शांति और समृद्धि का वास होता है।
  17. दुष्ट ग्रहों का निवारण: यह कवच दुष्ट ग्रहों के प्रभाव को कम करता है और सकारात्मक ग्रहों का प्रभाव बढ़ाता है।
  18. सर्व बाधा मुक्ति: इस कवच का पाठ करने से सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
  19. विद्या और ज्ञान: नारायण कवच का पाठ करने से विद्या और ज्ञान में वृद्धि होती है।
  20. सर्व पापों से मुक्ति: यह कवच पापों का नाश करता है और भक्तों को पवित्रता प्रदान करता है।

विधि

नारायण कवच का पाठ करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन करना चाहिए:

  1. सही दिन: नारायण कवच का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन गुरुवार और एकादशी के दिन इसे विशेष रूप से किया जाता है।
  2. शुभ मुहूर्त: इसे शुभ मुहूर्त में किया जाना चाहिए, विशेष रूप से ब्रह्म मुहूर्त में इसका पाठ करना अत्यंत लाभकारी होता है।
  3. शुद्धता: पाठ करने से पहले शरीर, मन और स्थान की शुद्धि करनी चाहिए। स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और एक पवित्र स्थान पर बैठें।
  4. आरंभ: भगवान विष्णु की तस्वीर या मूर्ति के सामने दीप जलाकर और फल-फूल अर्पित करके इस पाठ को शुरू करें।
  5. ध्यान: नारायण कवच पाठ करने से पहले भगवान विष्णु का ध्यान करें और उनसे प्रार्थना करें कि वे आपकी रक्षा करें।
  6. अवधि: नारायण कवच का पाठ जितना संभव हो, रोजाना करना चाहिए। अगर रोजाना संभव न हो, तो इसे कम से कम 11 दिन या 21 दिन तक लगातार करना चाहिए।
  7. पाठ की संख्या: नारायण कवच का पाठ 3, 7 या 11 बार किया जा सकता है। इसके अलावा, संकल्प लेकर 108 बार भी पाठ किया जा सकता है।
  8. समापन: पाठ के बाद भगवान विष्णु को प्रणाम करें और उन्हें धन्यवाद दें।

नियम

  1. शुद्धता का पालन: नारायण कवच का पाठ शुद्धता के साथ करना चाहिए। इसका अर्थ है कि पाठ के समय मन, शरीर और स्थान की शुद्धता होनी चाहिए।
  2. संयम: पाठ के दौरान संयम का पालन करें। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि पाठ के समय कोई व्याकुलता या अशुद्ध विचार न हों।
  3. ध्यान: पाठ के समय ध्यान भगवान विष्णु पर केंद्रित होना चाहिए। किसी भी प्रकार का विचलन पाठ की शक्ति को कम कर सकता है।
  4. नियमितता: नारायण कवच का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए। यदि इसे नियमित रूप से किया जाए, तो इसके प्रभाव अधिक गहरे होते हैं।
  5. संकल्प: पाठ करने से पहले संकल्प करें कि आप यह पाठ भगवान नारायण की कृपा प्राप्त करने के लिए कर रहे हैं।
  6. सविधि: नारायण कवच का पाठ विधिपूर्वक करना चाहिए। अनियमित या असावधानीपूर्वक किया गया पाठ प्रभावहीन हो सकता है।
  7. उचित समय: पाठ के लिए उचित समय का चयन करें। ब्रह्म मुहूर्त, सुबह का समय और शांतिपूर्ण वातावरण उत्तम होते हैं।

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सावधानियां

  1. अवसाद और नकारात्मकता से बचें: नारायण कवच का पाठ करते समय नकारात्मक विचारों और अवसाद से बचें। इससे पाठ की शक्ति कम हो सकती है।
  2. नियमितता की कमी: यदि आपने एक बार नारायण कवच का पाठ शुरू किया है, तो इसे नियमित रूप से करना चाहिए। बीच में इसे छोड़ना उचित नहीं है।
  3. प्रसाद का सेवन: पाठ के बाद प्रसाद को ग्रहण करें, जो भगवान विष्णु को अर्पित किया गया हो। यह प्रसाद ऊर्जा और शक्ति देता है।
  4. असावधानी से बचें: पाठ करते समय किसी भी प्रकार की असावधानी से बचें। इसका प्रभाव कम हो सकता है।

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सामान्य प्रश्न

नारायण कवच क्या है?

  • नारायण कवच एक पवित्र धार्मिक पाठ है जो भगवान विष्णु की आराधना और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

नारायण कवच का पाठ कब करना चाहिए?

  • इसका पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन गुरुवार और एकादशी को इसका विशेष महत्व है।

क्या नारायण कवच पाठ किसी विशेष समय पर करना चाहिए?

  • हां, ब्रह्म मुहूर्त में इसका पाठ करना सबसे शुभ माना जाता है।

नारायण कवच कितनी बार पढ़ना चाहिए?

  • यह तीन, सात या 11 बार पढ़ा जा सकता है, या संकल्प के अनुसार 108 बार भी पढ़ा जा सकता है।

महिलाएं नारायण कवच का पाठ कर सकती हैं?

  • हां, महिलाएं भी नारायण कवच का पाठ कर सकती हैं।

क्या नारायण कवच का पाठ घर में किया जा सकता है?

  • हां, यह पाठ घर में किया जा सकता है।

क्या नारायण कवच का पाठ केवल विष्णु भक्तों के लिए है?

  • नहीं, कोई भी भक्त जो भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करना चाहता है, इसका पाठ कर सकता है।

नारायण कवच का पाठ करने के लिए कौन से नियम पालन करने चाहिए?

  • शुद्धता, संयम, ध्यान, और नियमितता का पालन करना चाहिए।

क्या नारायण कवच का पाठ धन और समृद्धि के लिए किया जा सकता है?

  • हां, यह पाठ धन और समृद्धि प्राप्त करने में सहायता करता है।

नारायण कवच का पाठ कितनी अवधि तक करना चाहिए?

  • इसे जितना संभव हो, रोजाना किया जाना चाहिए। कम से कम 11 या 21 दिनों तक नियमित पाठ करना लाभकारी होता है।

क्या नारायण कवच का पाठ स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है?

  • हां, इसका पाठ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी है।

नारायण कवच का पाठ करते समय कौन से मंत्र का जाप करना चाहिए?

  • ॐ नमो नारायणाय मंत्र का जाप करना लाभकारी होता है।

Vishnu Ashtakam: Protection from fear and evil forces

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श्रीविष्णु अष्टकम्: शत्रु व बुरी नज़र से सुरक्षा

सबकी सुरक्षा करने वाला श्रीविष्णु अष्टकम् एक पवित्र और प्रसिद्ध स्तोत्र है, जो भगवान विष्णु के आठ श्लोकों का एक संग्रह है। यह स्तोत्र भगवान विष्णु की महिमा का वर्णन करता है और उनके विविध गुणों को समर्पित है। भगवान विष्णु को संपूर्ण ब्रह्मांड का पालनहार और रक्षक माना जाता है, और उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करने के लिए श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ किया जाता है।

श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि आती है। यह स्तोत्र भक्तों के बीच अत्यंत लोकप्रिय है और इसे नियमित रूप से पढ़ा जाता है।

श्रीविष्णु अष्टकम् का संपूर्ण पाठ और उसका हिंदी में अर्थ

  • श्लोक 1: शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं, विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्। लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्, वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
  • श्लोक 2: शशाङ्कचूडामणिनां वज्राङ्कुशकुटारिकाम्। शङ्खचक्रगदापद्मान्धारयन्तं शङ्करम्॥
  • श्लोक 3: कवचेन समायुक्तं लोहिताङ्गं पितामहम्। चतुर्भुजं ब्रह्मशिरः स्थिरमनन्दितं हसन्॥
  • श्लोक 4: शशाङ्कवत् तु दधतं पद्मावणिसदास्पदः। वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
  • श्लोक 5: शङ्खचक्रधरं देवं क्षीराब्धिसयिनं हरिम्। लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्॥
  • श्लोक 6: सर्वदेवमयं नाथं विश्वेशं विश्वरूपिणम्। शान्ताकारं भवभयहरं वन्दे विष्णुं हरिं प्रभुम्॥
  • श्लोक 7: शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशम्। वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
  • श्लोक 8: शङ्खचक्रधरं देवं क्षीराब्धिसयिनं हरिम्। वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

संपूर्ण अर्थ १ से ४ श्लोक

मैं भगवान विष्णु को नमन करता हूँ, जिनका स्वरूप शांति से परिपूर्ण है, जो शेषनाग पर शयन करते हैं, जिनके नाभि से कमल उत्पन्न होता है, जो देवताओं के राजा हैं, और जिनका रंग मेघ के समान है। वे लक्ष्मी के प्रियतम, कमलनयन, और योगियों के ध्यान में आने वाले हैं। वे संसार के भय का नाश करते हैं और सभी लोकों के एकमात्र नाथ हैं।

वह भगवान विष्णु हैं जो अपने मस्तक पर चंद्रमा को धारण करते हैं और जिनके हाथों में वज्र, अंकुश, कुल्हाड़ी, शंख, चक्र, गदा और पद्म हैं। वे शंकर (शिव) के समान पूज्य और शक्तिशाली हैं।

भगवान विष्णु कवच (रक्षा कवच) से सुसज्जित हैं और उनके अंग लालिमा लिए हुए हैं। वे चतुर्भुज धारी हैं और ब्रह्मा के सिर पर स्थित हैं। उनकी हंसी उनके आनंदमय स्वरूप को प्रकट करती है।

भगवान विष्णु के मस्तक पर शशांक (चंद्रमा) की तरह चमक रही है और वे पद्म (कमल) में निवास करते हैं। वे संसार के भय का नाश करने वाले हैं और सभी लोकों के एकमात्र स्वामी हैं, उन्हें मेरा प्रणाम है।

संपूर्ण अर्थ ५ से ८ श्लोक

भगवान विष्णु, जो शंख और चक्र धारण करते हैं, जो क्षीर सागर (दूध के समुद्र) में शयन करते हैं, जो लक्ष्मी के प्रियतम और कमलनयन हैं, और जो योगियों के ध्यान में आते हैं, उन्हें मेरा नमन है।

मैं भगवान विष्णु को प्रणाम करता हूँ, जो सभी देवताओं में समाहित हैं, जो विश्वेश्वर (विश्व के स्वामी) और विश्वरूपधारी हैं। उनका स्वरूप शांतिदायक है और वे संसार के भय को हरने वाले प्रभु हैं।

भगवान विष्णु, जिनका स्वरूप शांति से परिपूर्ण है, जो शेषनाग पर शयन करते हैं और जिनके नाभि से कमल उत्पन्न होता है, जो देवताओं के राजा हैं, और जो संसार के भय को हरने वाले हैं, उन्हें प्रणाम है।

भगवान विष्णु, जो शंख और चक्र धारण करते हैं, जो क्षीर सागर में शयन करते हैं, और जो सभी लोकों के एकमात्र नाथ हैं, उन्हें मेरा नमन है।

लाभ

श्रीविष्णु अष्टकम् का नियमित पाठ करने से अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। यहाँ पर 15 मुख्य लाभ दिए जा रहे हैं:

  1. आध्यात्मिक उन्नति: श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में सहायता करता है और उसे मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।
  2. मानसिक शांति: इसका नियमित पाठ मन को शांति प्रदान करता है और तनाव से मुक्ति दिलाता है।
  3. रोगों से मुक्ति: इसके पाठ से शरीर स्वस्थ रहता है और बीमारियों से मुक्ति मिलती है।
  4. धन और समृद्धि की प्राप्ति: श्रीविष्णु अष्टकम् के पाठ से धन, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
  5. कठिनाइयों से रक्षा: जीवन में आने वाली कठिनाइयों और संकटों से बचाव के लिए यह स्तोत्र अत्यंत प्रभावी होता है।
  6. पारिवारिक सुख: इसके नियमित पाठ से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
  7. कार्य में सफलता: श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ कार्यक्षेत्र में सफलता दिलाने में सहायक होता है।
  8. भाग्य वृद्धि: श्रीविष्णु अष्टकम् के पाठ से भाग्य में वृद्धि होती है और जीवन में शुभ फल प्राप्त होते हैं।
  9. विवाह और संतान सुख: जो व्यक्ति विवाह या संतान सुख की प्राप्ति चाहते हैं, उनके लिए यह स्तोत्र अत्यंत लाभकारी है।
  10. भय का नाश: इसका पाठ व्यक्ति को किसी भी प्रकार के भय से मुक्त करता है।
  11. दुष्ट शक्तियों से रक्षा: श्रीविष्णु अष्टकम् के पाठ से व्यक्ति पर किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा या बुरी नजर का प्रभाव नहीं होता।
  12. ध्यान में एकाग्रता: इस स्तोत्र का पाठ ध्यान में एकाग्रता को बढ़ाता है और मन को स्थिर करता है।
  13. सद्बुद्धि की प्राप्ति: यह पाठ व्यक्ति को सद्बुद्धि प्रदान करता है और उसे सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।

विधि

श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ करने के लिए विशेष विधि का पालन किया जाता है। इसका पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन शुभ मुहूर्त में इसका पाठ करना अधिक फलदायक होता है।

दिन: श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन इसे एकादशी, पूर्णिमा, या किसी विशेष त्योहार के दिन, जैसे वैकुंठ एकादशी, के दिन करना अधिक शुभ माना जाता है।

अवधि: श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ 41 दिनों तक नियमित रूप से किया जाता है। इस अवधि के दौरान सात्विक जीवनशैली का पालन करना चाहिए और पूजा का पूरा ध्यान रखना चाहिए।

मुहूर्त: सुबह के समय ब्रह्ममुहूर्त (4:00 बजे से 6:00 बजे तक) में इसका पाठ करना अत्यंत फलदायक होता है।

नियम

श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ करते समय कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक होता है:

  1. शुद्धता: पाठ करने से पहले स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को भी स्वच्छ रखें।
  2. आसन: पाठ करते समय किसी पवित्र आसन पर बैठें, जैसे कि कुशासन, और स्थिरता के साथ पाठ करें।
  3. ध्यान: पाठ के दौरान भगवान विष्णु का ध्यान करें और उनकी छवि या मूर्ति के सामने दीपक जलाएं।
  4. भक्तिभाव: पाठ के दौरान भगवान विष्णु के प्रति पूर्ण श्रद्धा और भक्ति बनाए रखें।
  5. मौन: पाठ करते समय मौन रहें और साधना को गुप्त रखें। इसे दूसरों के सामने प्रकट न करें।
  6. नियमितता: पाठ को नियमित रूप से 41 दिनों तक करें। अगर किसी कारणवश एक दिन छुट जाए तो पुनः शुरू करें।
  7. सात्विक आहार: इस अवधि के दौरान सात्विक और शुद्ध आहार का सेवन करें और मांसाहार और नशे से दूर रहें।
  8. संगीत: यदि संभव हो, तो पाठ के दौरान मधुर संगीत या भजन का वातावरण बनाएं।
  9. ध्यान का अभ्यास: पाठ के बाद कुछ समय ध्यान में बिताएं, जिससे मन और आत्मा को शांति मिल सके।
  10. व्रत: यदि संभव हो तो पाठ के दौरान व्रत का पालन करें, जिससे साधना का प्रभाव बढ़े।

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सावधानियाँ

श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ करते समय कुछ सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए:

  1. सात्विक आहार: पाठ के दौरान सात्विक और शुद्ध आहार का सेवन करें। मांसाहार और नशे से दूर रहें।
  2. ब्रह्मचर्य: पाठ के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  3. अधूरी साधना: साधना को अधूरा छोड़ने से बचें। इसे 41 दिनों तक नियमित रूप से करें।
  4. समय की पाबंदी: पाठ को नियमित समय पर ही करें, जिससे मन एकाग्र रहेगा।
  5. मन की शुद्धता: पाठ के दौरान मन को शांत और शुद्ध रखें, नकारात्मक विचारों से बचें।

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श्रीविष्णु अष्टकम् के सामान्य प्रश्न

1. श्रीविष्णु अष्टकम् क्या है?

  • यह भगवान विष्णु के आठ श्लोकों का संग्रह है, जो उनकी महिमा और गुणों का वर्णन करता है।

2. श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ कब करना चाहिए?

  • इसे किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन ब्रह्ममुहूर्त में इसका पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

3. क्या श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ किसी विशेष अवसर पर किया जा सकता है?

  • हां, इसे एकादशी, पूर्णिमा, या वैकुंठ एकादशी के दिन विशेष रूप से किया जाता है।

4. श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ कितनी बार करना चाहिए?

  • इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ एक बार या अधिक बार करना चाहिए। नियमित रूप से 41 दिनों तक इसका पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है।

5. श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ किसे करना चाहिए?

  • कोई भी व्यक्ति, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, जो भगवान विष्णु के प्रति श्रद्धा रखता हो, इसका पाठ कर सकता है।

6. क्या श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ उपवास के साथ करना आवश्यक है?

  • उपवास करना अनिवार्य नहीं है, लेकिन यदि संभव हो तो उपवास के साथ पाठ करने से इसका प्रभाव बढ़ता है।

7. श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ किस प्रकार करना चाहिए?

  • पाठ को शांत और शुद्ध वातावरण में, भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए, ध्यानपूर्वक करें।

8. श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ करने से क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए?

  • पाठ के दौरान किसी भी प्रकार की अशुद्धि से बचें, साफ वस्त्र पहनें, और मन को शुद्ध रखें।

9. क्या श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ साधारण दिनों में भी किया जा सकता है?

  • हां, इसे साधारण दिनों में भी किया जा सकता है। यह किसी विशेष दिन पर निर्भर नहीं करता है।

10. श्रीविष्णु अष्टकम् का पाठ करने के बाद क्या करना चाहिए?

  • पाठ के बाद भगवान विष्णु को फूल, जल, और प्रसाद अर्पित करें और उनसे प्रार्थना करें।

Govinashtakam for Wealth Peace & Attraction

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गोविंदाष्टकम्: जीवन का हर सिख भोग आपके कदमों मे!

गोविंदाष्टकम् एक अत्यंत पवित्र और श्रद्धेय व सुख देने वाला स्तोत्र है जो भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का गान करता है। ‘गोविंद’ भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण का एक प्रमुख नाम है, और ‘अष्टक’ का अर्थ है आठ श्लोकों का समूह। गोविंदाष्टकम् स्तोत्र का पाठ भक्तों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय है और इसे भक्ति, प्रेम और श्रद्धा के साथ किया जाता है।

इसकी रचना का श्रेय आदि शंकराचार्य को दिया जाता है, जो एक महान दार्शनिक, योगी और अद्वैत वेदांत के संस्थापक माने जाते हैं। इस स्तोत्र में भगवान श्रीकृष्ण के आठ रूपों का वर्णन है, जो उनके अद्वितीय और दिव्य गुणों का विवरण करते हैं।

गोविंदाष्टकम् का संपूर्ण पाठ और उसका हिंदी अर्थ

श्लोक 1:
गोविन्द गोविन्द गोविन्द गोविन्दा,
नारायणं नारायणं वासुदेवं।
विष्णुं हृषीकेशं जनार्दनं च,
सर्वेषं सर्वेषं नमामि श्रीकृष्णम्॥

श्लोक 2:
देवेश देवं सुरमौलि चक्रं,
श्रीवत्सलक्ष्मं कमलालयन्तम्।
कृष्णं मदानन्दमचिन्त्यरूपं,
वन्देऽहमाद्यं पुरुषं पुराणम्॥

श्लोक 3:
जगन्निवासं व्रजवासजालं,
श्रीनन्दनन्दं यशोदान्तरङ्गम्।
परात्मरूपं मनसा स्मराणं,
वन्देऽहमाद्यं पुरुषं पुराणम्॥

श्लोक 4:
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे,
हे नाथ नारायण वासुदेवा।
जिव्हा हृदयं नयनांघ्रिपद्मे,
नमोऽस्तु ते श्री पुरुषोत्तमाय॥

श्लोक 5:
सत्यं शिवं सुन्दरमादिदेवं,
नन्दात्मजं वासुदेवं नताः स्म।
श्रीमन् नारायणं कृष्णमाद्यं,
प्रपन्ना अस्मि हरे पुरुषोत्तमं॥

श्लोक 6:
श्रीगोविन्दमभिषेच्यमधुत्मं,
श्रीरामचन्द्रं पिबन्ति ते नु।
कृष्णस्य पादांभुजमाश्रितं सदा,
नमोऽस्तु ते नारायणाय पूर्णाय॥

श्लोक 7:
नमोऽस्तु ते वासुदेवाय विष्णवे,
नमः श्रीकृष्णाय माधवाय च।
हे नारायणाय च गोविन्दाय,
नमोऽस्तु ते पुरुषोत्तमाय॥

श्लोक 8:
नमोऽस्तु ते नारायणाय पूर्णाय, नमोऽस्तु ते श्री हरे वासुदेवाय।
नमोऽस्तु ते सर्वगताय साधवे, नमोऽस्तु ते गोविन्दाय वेधसे॥

संपूर्ण अर्थ

भगवान गोविंद, नारायण, वासुदेव, विष्णु, हृषीकेश, और जनार्दन को प्रणाम करता हूँ, जो सभी प्राणियों के रक्षक और सृष्टि के आधार हैं।

मैं देवताओं के देवता, श्रीकृष्ण को प्रणाम करता हूँ, जिनके सीने पर श्रीवत्स चिन्ह है, और जो कमल में निवास करने वाली लक्ष्मी के साथ हैं। उनका रूप अवर्णनीय और अद्वितीय है, और वे सदा आनंद प्रदान करने वाले हैं।

मैं भगवान श्रीकृष्ण को प्रणाम करता हूँ, जो इस जगत के निवास हैं, व्रज के प्रिय जनों के हृदय में निवास करते हैं, और जिनके रूप का ध्यान मन में करते ही अद्भुत शांति प्राप्त होती है। वे आदि पुरुष और सृष्टि के प्रारंभकर्ता हैं।

हे श्रीकृष्ण, गोविंद, हरे, मुरारी, नाथ, नारायण, वासुदेव, आपको मेरी वाणी, हृदय, नेत्र और चरणों से नमस्कार है। आप सर्वश्रेष्ठ पुरुष हैं।

मैं सच्चाई, शुभता और सुंदरता के आदि देव, नंदनंदन, वासुदेव और नारायण श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित हूँ। आप ही सबके परम पुरुषोत्तम हैं।

मैं उन श्रीकृष्ण को प्रणाम करता हूँ, जिनके चरण कमल का आश्रय लेने पर सभी प्रकार की शांति प्राप्त होती है।

हे वासुदेव, विष्णु, श्रीकृष्ण, माधव, नारायण और गोविंद, आपको प्रणाम है। आप सर्वश्रेष्ठ पुरुष हैं।

मैं नारायण, पूर्ण, श्री हरे, वासुदेव, सर्वव्यापी और साधु श्रीगोविंद को प्रणाम करता हूँ।

लाभ

गोविंदाष्टकम् के नियमित पाठ से कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। यहाँ मुख्य लाभ दिए जा रहे हैं:

  1. आध्यात्मिक उन्नति: गोविंदाष्टकम् का पाठ व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में सहायता करता है और उसे मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।
  2. मानसिक शांति: इसका नियमित पाठ मन को शांति प्रदान करता है और तनाव से मुक्ति दिलाता है।
  3. कठिनाइयों से रक्षा: गोविंदाष्टकम् का पाठ करने से जीवन की कठिनाइयों और संकटों से रक्षा होती है।
  4. धन और समृद्धि की प्राप्ति: इसके पाठ से धन, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
  5. स्वास्थ्य लाभ: इसका पाठ शरीर को स्वस्थ और रोगमुक्त रखने में सहायक होता है।
  6. दुष्ट शक्तियों से रक्षा: गोविंदाष्टकम् के पाठ से व्यक्ति पर किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा या बुरी नजर का प्रभाव नहीं होता।
  7. पारिवारिक सुख: इसका पाठ करने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
  8. विवाह और संतान सुख: जो व्यक्ति विवाह या संतान सुख की प्राप्ति चाहते हैं, उनके लिए यह स्तोत्र अत्यंत लाभकारी है।
  9. कार्य में सफलता: इसका पाठ कार्यक्षेत्र में सफलता दिलाने में सहायक होता है।
  10. भाग्य वृद्धि: गोविंदाष्टकम् के पाठ से भाग्य में वृद्धि होती है और जीवन में शुभ फल प्राप्त होते हैं।
  11. भय का नाश: इसका पाठ व्यक्ति को किसी भी प्रकार के भय से मुक्त करता है।
  12. मुक्ति की प्राप्ति: गोविंदाष्टकम् का नियमित पाठ करने से व्यक्ति को अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  13. भक्तिभाव में वृद्धि: इसका पाठ करने से व्यक्ति के हृदय में भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति की भावना में वृद्धि होती है।
  14. सद्बुद्धि की प्राप्ति: यह पाठ व्यक्ति को सद्बुद्धि प्रदान करता है और उसे सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
  15. ध्यान में एकाग्रता: गोविंदाष्टकम् का पाठ ध्यान में एकाग्रता को बढ़ाता है और मन को स्थिर करता है।

विधि

गोविंदाष्टकम् का पाठ करने के लिए विशेष विधि का पालन किया जाता है। इसका पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन शुभ मुहूर्त में इसका पाठ करना अधिक फलदायक होता है।

दिन: गोविंदाष्टकम् का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन इसे पूर्णिमा, एकादशी या भगवान श्रीकृष्ण के विशेष दिन, जैसे जन्माष्टमी के दिन करना अधिक शुभ माना जाता है।

अवधि: गोविंदाष्टकम् का पाठ 41 दिनों तक नियमित रूप से किया जाता है। इस अवधि के दौरान ब्रह्मचर्य और सात्विक जीवनशैली का पालन करना चाहिए।

मुहूर्त: सुबह के समय ब्रह्ममुहूर्त (4:00 बजे से 6:00 बजे तक) में इसका पाठ करना अत्यंत फलदायक होता है।

नियम

गोविंदाष्टकम् का पाठ करने से पहले कुछ नियमों का पालन करना चाहिए:

  1. शुद्धता: पाठ करने से पहले स्नान करें और शुद्ध वस्त्र पहनें।
  2. भक्तिभाव: पाठ के दौरान भगवान के प्रति पूर्ण भक्तिभाव और श्रद्धा होनी चाहिए।
  3. शांत स्थान: पाठ एकांत और शांत स्थान पर करें।
  4. गुप्त साधना: यदि यह पाठ किसी विशेष उद्देश्य के लिए किया जा रहा है, तो अपनी साधना को गुप्त रखना चाहिए।
  5. ध्यान: पाठ के साथ ध्यान का अभ्यास भी करें, जिससे मन और आत्मा को शांति मिल सके।
  6. व्रत: यदि संभव हो तो पाठ के दौरान व्रत का पालन करें।

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सावधानियाँ

गोविंदाष्टकम् का पाठ करते समय कुछ सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए:

  1. सात्विक आहार: पाठ के दौरान सात्विक और शुद्ध आहार का सेवन करें। मांसाहार और नशे से दूर रहें।
  2. ब्रह्मचर्य: पाठ के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  3. अधूरी साधना: साधना को अधूरा छोड़ने से बचें। इसे 41 दिनों तक नियमित रूप से करें।
  4. समय की पाबंदी: पाठ को नियमित समय पर ही करें, इससे मन एकाग्र रहेगा।
  5. मन की शुद्धता: पाठ के दौरान मन को शांत और शुद्ध रखें, नकारात्मक विचारों से बचें।

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गोविंदाष्टकम् के संबंध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न उत्तर

1. गोविंदाष्टकम् क्या है?

  • उत्तर: गोविंदाष्टकम् भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति में रचित एक प्रार्थना है, जिसमें आठ श्लोक होते हैं। यह श्रीकृष्ण के विभिन्न गुणों और रूपों का वर्णन करता है और उनके प्रति भक्तिभाव को प्रकट करता है।

2. गोविंदाष्टकम् का पाठ कैसे और कब करना चाहिए?

  • उत्तर: गोविंदाष्टकम् का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन सुबह के समय, विशेष रूप से ब्रह्ममुहूर्त में इसका पाठ करना अधिक शुभ माना जाता है। पाठ करने से पहले स्नान करें, शुद्ध वस्त्र धारण करें, और भगवान के प्रति पूर्ण श्रद्धा और समर्पण के साथ इसका पाठ करें।

3. गोविंदाष्टकम् का पाठ करने के क्या लाभ हैं?

  • उत्तर: गोविंदाष्टकम् का पाठ मानसिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति, संकटों से रक्षा, और जीवन में समृद्धि और सुख की प्राप्ति में सहायक होता है। इसके नियमित पाठ से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं।

4. क्या गोविंदाष्टकम् का पाठ विशेष अवसरों पर किया जा सकता है?

  • उत्तर: हां, गोविंदाष्टकम् का पाठ विशेष अवसरों जैसे जन्माष्टमी, एकादशी, पूर्णिमा, या किसी भी धार्मिक उत्सव के दौरान किया जा सकता है। इसे प्रतिदिन नियमित रूप से भी किया जा सकता है।

5. क्या गोविंदाष्टकम् का पाठ उपवास के साथ करना आवश्यक है?

  • उत्तर: उपवास करना अनिवार्य नहीं है, लेकिन यदि संभव हो तो उपवास के साथ गोविंदाष्टकम् का पाठ करने से इसका प्रभाव अधिक बढ़ता है। यह भक्त की क्षमता और श्रद्धा पर निर्भर करता है।

6. गोविंदाष्टकम् का पाठ कितनी बार करना चाहिए?

  • उत्तर: इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ कम से कम एक बार प्रतिदिन करना चाहिए। यदि संभव हो तो इसका तीन, पांच, या सात बार पाठ करना अधिक फलदायक माना जाता है।

7. गोविंदाष्टकम् का पाठ कौन कर सकता है?

  • उत्तर: गोविंदाष्टकम् का पाठ कोई भी कर सकता है, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, जो भगवान श्रीकृष्ण के प्रति श्रद्धा और भक्ति रखता हो।

8. क्या गोविंदाष्टकम् का पाठ किसी विशेष मंत्र के साथ किया जाना चाहिए?

  • उत्तर: गोविंदाष्टकम् का पाठ स्वयं एक पूर्ण स्तोत्र है और इसे अकेले ही किया जा सकता है। हालांकि, आप इसे अन्य श्रीकृष्ण मंत्रों या भजनों के साथ भी जोड़ सकते हैं।

9. गोविंदाष्टकम् के पाठ के लिए कौन से स्थान उपयुक्त हैं?

  • उत्तर: गोविंदाष्टकम् का पाठ मंदिर में, घर के पूजा स्थल पर, या किसी भी पवित्र और शांत स्थान पर किया जा सकता है। यह महत्वपूर्ण है कि पाठ के दौरान वातावरण शांति और पवित्रता से भरा हो।

Vishnu sahastranaam path chanting rules

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विष्णू सहस्त्रनाम पाठ के नियम क्या है?

विष्णु सहस्रनाम का पाठ ४१ दिन नियमित रूप से कोई भी करता है, उसके घर मे सुख समृद्धि बनी रहती है। भगवान विष्णु के एक हजार नामों की श्रृंखला को विष्णू सहस्त्रनाम कहा जाता है। इसका पाठ करने से भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों, गुणों और उनकी महिमा का स्मरण होता है। इन नामों का अर्थ जानना अत्यंत लाभकारी है, क्योंकि इससे भगवान विष्णु की व्यापकता और महानता का एहसास होता है।

इस स्त्रोत के प्रत्येक नाम का अपना महत्व और अर्थ होता है। यहां पर कुछ मुख्य नामों का अर्थ दिया जा रहा है। हालांकि, सम्पूर्ण विष्णु सहस्रनाम को अर्थ सहित समझने के लिए एक विस्तृत पाठ और विश्लेषण की आवश्यकता होती है।

महत्वपूर्ण नामों के अर्थ सहित

  1. विश्वम् – जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड है।
  2. विष्णुः – जो सब कुछ व्याप्त करता है।
  3. वषट्कारः – जो यज्ञ में प्रयोग किया जाने वाला वषट् ध्वनि है।
  4. भूतभव्यभवत्प्रभुः – जो भूतकाल, भविष्य और वर्तमान का स्वामी है।
  5. भूतकृत् – जो सब कुछ उत्पन्न करता है।
  6. भूतभृत् – जो सभी जीवों का पालन-पोषण करता है।
  7. भवः – जो जन्म और सृष्टि का कारण है।
  8. भूतात्मा – जो सभी प्राणियों की आत्मा है।
  9. भूतभावनः – जो सबका पालन करता है।
  10. पूतात्मा – जो परम पवित्र है।
  11. परमात्मा – जो परम आत्मा है।
  12. मुक्तानां परमा गतिः – जो मुक्त व्यक्तियों की परम गति है।
  13. अव्ययः – जो नष्ट नहीं होता।
  14. पुरुषः – जो ब्रह्मांड में व्याप्त है।
  15. साक्षी – जो साक्षी रूप में सब कुछ देखता है।
  16. क्षेत्रज्ञः – जो सभी क्षेत्रों (जीवों) का ज्ञाता है।
  17. अक्षरः – जो अविनाशी है।
  18. योगः – जो योग (साधना का मार्ग) है।
  19. योगविताम् नेता – जो योगियों का नेता है।
  20. प्रधानपुरुषेश्वरः – जो प्रधान और पुरुष का ईश्वर है।

संपूर्ण सूची

विष्णु सहस्रनाम की संपूर्ण सूची में 1000 नाम शामिल हैं। प्रत्येक नाम भगवान विष्णु के किसी विशेष गुण, स्वरूप, या कार्य का प्रतिनिधित्व करता है। संपूर्ण विष्णु सहस्रनाम का पाठ अत्यधिक फलदायक और पुण्यकारी माना जाता है।

महत्त्व

विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से निम्नलिखित लाभ होते हैं:

  1. मनोवांछित फल की प्राप्ति – जीवन की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
  2. दु:खों का नाश – पाठ करने से सभी प्रकार के दुखों का नाश होता है।
  3. स्वास्थ्य लाभ – रोग और बीमारियों से मुक्ति मिलती है।
  4. धन और समृद्धि – भगवान विष्णु की कृपा से धन और समृद्धि प्राप्त होती है।
  5. आध्यात्मिक उन्नति – साधक की आध्यात्मिक उन्नति होती है और वह मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।
  6. शत्रुओं से रक्षा – शत्रुओं से रक्षा और उनके दुष्प्रभाव से मुक्ति मिलती है।
  7. परिवार में सुख-शांति – परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
  8. संतान सुख – निःसंतान दंपति को संतान प्राप्ति होती है।
  9. ज्ञान की प्राप्ति – ज्ञान, विवेक, और बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होती है।
  10. भय का नाश – सभी प्रकार के भय और चिंता का नाश होता है।
  11. शुभ और मंगलकारी – जीवन में शुभ और मंगलकारी घटनाएं होती हैं।
  12. शांति और मानसिक संतुलन – मन को शांति और मानसिक संतुलन प्राप्त होता है।
  13. सभी पापों का नाश – पिछले जन्मों और इस जन्म के पापों का नाश होता है।
  14. भक्ति और श्रद्धा में वृद्धि – भगवान विष्णु के प्रति भक्ति और श्रद्धा में वृद्धि होती है।
  15. सभी कामनाओं की पूर्ति – जीवन की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।
  16. आर्थिक संकट से मुक्ति – आर्थिक संकट और दरिद्रता का नाश होता है।
  17. सभी कष्टों का नाश – जीवन के सभी कष्टों का नाश होता है।
  18. दिव्य दृष्टि – साधक को दिव्य दृष्टि और आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त होते हैं।
  19. संसार के मोह-माया से मुक्ति – संसार के मोह-माया से मुक्ति और भगवान विष्णु के चरणों में स्थिरता प्राप्त होती है।
  20. समस्त ब्रह्मांड की शक्ति प्राप्त होती है – भगवान विष्णु के आशीर्वाद से साधक को समस्त ब्रह्मांड की शक्ति प्राप्त होती है।

विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने की विधि

दिन: विष्णु सहस्रनाम का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन इसे गुरुवार को करना विशेष फलदायी माना जाता है।

अवधि: इसे प्रतिदिन या सप्ताह में एक बार, विशेष रूप से गुरुवार को करना श्रेष्ठ है।

मुहूर्त: प्रातःकाल (ब्रह्म मुहूर्त) में इसका पाठ करना सर्वोत्तम होता है। इसके अलावा, इसे सायंकाल के समय भी किया जा सकता है।

पाठ के समय के नियम

  1. स्वच्छता: पाठ से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. आसन: एक स्थिर और शांत आसन पर बैठें।
  3. मंत्र जप: पाठ करते समय भगवान विष्णु का ध्यान करें और मंत्र जप करें।
  4. नियमितता: इस पाठ को नियमित रूप से करें।
  5. शुद्ध स्थान: विष्णु सहस्रनाम का पाठ एक शुद्ध और शांत स्थान पर करें।

Kamakhya sadhana shivir

पाठ के समय की सावधानियाँ

  1. श्रद्धा और विश्वास: पाठ करते समय श्रद्धा और विश्वास बनाए रखें।
  2. दूषित विचार: दूषित विचारों और क्रोध से बचें।
  3. शुद्धता: पाठ के समय शरीर और मन की शुद्धता बनाए रखें।
  4. समर्पण: भगवान विष्णु के चरणों में पूर्ण समर्पण करें।
  5. ध्यान केंद्रित: पाठ करते समय ध्यान को भटकने न दें।

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विष्णु सहस्रनाम से जुड़े पृश्न उत्तर

विष्णु सहस्रनाम का पाठ कब करना चाहिए?

  • प्रातःकाल (ब्रह्म मुहूर्त) में करना उत्तम है।

क्या विष्णु सहस्रनाम का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है?

  • हाँ, लेकिन गुरुवार को करना विशेष फलदायी है।

विष्णु सहस्रनाम का पाठ कैसे करें?

  • स्वच्छ वस्त्र धारण कर, शांत स्थान पर बैठकर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए पाठ करें।

क्या विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से धन की प्राप्ति होती है?

  • हाँ, भगवान विष्णु की कृपा से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

क्या विष्णु सहस्रनाम का पाठ समूह में किया जा सकता है?

  • हाँ, इसे समूह में भी किया जा सकता है।

विष्णु सहस्रनाम का पाठ कहाँ करना चाहिए?

  • एक शांत और पवित्र स्थान पर।

क्या विष्णु सहस्रनाम का पाठ बच्चों के लिए लाभकारी है?

  • हाँ, बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए।

विष्णु सहस्रनाम का पाठ कितनी बार करना चाहिए?

  • इसे प्रतिदिन एक बार करना उत्तम है।

क्या विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से शत्रुओं से रक्षा होती है?

  • हाँ, शत्रुओं से सुरक्षा मिलती है।

विष्णु सहस्रनाम का पाठ किस प्रकार के लोगों के लिए लाभकारी है?

  • सभी प्रकार के लोग, विशेषकर जो आर्थिक संकट या स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं।

विष्णु सहस्रनाम का पाठ किसी विशेष भाषा में करना चाहिए?

  • इसे संस्कृत या हिंदी भाषा में करना उत्तम है।

क्या विष्णु सहस्रनाम का पाठ किसी विशेष पूजा विधि में शामिल किया जा सकता है?

  • हाँ, इसे अन्य पूजा विधियों के साथ किया जा सकता है।