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First Shravan somavar puja? How to perform

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श्रावण का पहला सोमवार को बेलपत्र के साथ पूजा कैसे करे?

श्रावण सोमवार को बेलपत्र के साथ भगवान शिव की पूजा करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। बेलपत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है और इसे अर्पित करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यहाँ श्रावण सोमवार को बेलपत्र के साथ पूजा करने की विधि दी गई है:

बेलपत्र के साथ पूजा विधि

1. प्रातःकाल उठना और स्नान:

  • प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान करें।
  • स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा के लिए तैयार हों।

2. पूजन स्थल की सफाई:

  • पूजन स्थल की सफाई करें और वहाँ गंगाजल छिड़कें।
  • शिवलिंग को साफ करें और उसे पवित्र जल से स्नान कराएं।

3. शिवलिंग का अभिषेक:

  • शिवलिंग का जल, दूध, दही, घी, शहद और गंगा जल से अभिषेक करें।
  • अभिषेक करते समय “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें।

4. बेलपत्र अर्पण:

  • बेलपत्र को स्वच्छ पानी से धोकर साफ करें।
  • बेलपत्र अर्पित करते समय ध्यान रखें कि उसमें तीन पत्तियाँ हों और वे कहीं से भी कटे-फटे न हों।
  • बेलपत्र पर हल्दी और चंदन का टीका लगाएं।
  • शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित करते समय “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें।

5. फूल और धतूरा अर्पण:

  • शिवलिंग पर अन्य फूल, धतूरा और आक के फूल अर्पित करें।

6. धूप और दीप जलाना:

  • धूप और दीप जलाएं। पूजा के दौरान धूप और दीप जलाने से वातावरण पवित्र और सुगंधित होता है।

7. मंत्र जाप:

  • ॥ॐ ह्रौं महादेवाय ह्रौं नमः॥
  • शिव लिंग मुद्रा लगायें
  • इस मंत्र का जाप ११ माला या कम से कम ३० मिनट तक जप करे

8. रुद्राभिषेक:

  • रुद्राभिषेक करें, जिसमें रुद्र सूक्त का पाठ किया जाता है। यह भगवान शिव की अत्यंत प्रभावशाली पूजा है और इससे विशेष फल की प्राप्ति होती है।

9. प्रसाद वितरण:

  • पूजा के बाद प्रसाद बांटें और स्वयं भी ग्रहण करें।
  • प्रसाद में फल, मिठाई और पंचामृत शामिल कर सकते हैं।

10. व्रत का पालन:

  • इस दिन व्रत रखें और एक समय फलाहार ग्रहण करें। यदि संभव हो तो निराहार रहें, अन्यथा फल, दूध, और जल का सेवन करें।

11. ध्यान और भजन:

  • भगवान शिव के ध्यान में समय बिताएं और शिव भजन गाएं।
  • इससे मन को शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है।

12. दान और सेवा:

  • इस दिन ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को दान दें।
  • इससे पुण्य की प्राप्ति होती है और भगवान शिव की कृपा बरसती है।

बेलपत्र अर्पण करते समय ध्यान रखने योग्य बातें

  1. स्वच्छता: बेलपत्र को स्वच्छ पानी से धोकर साफ करें।
  2. कटे-फटे न हों: बेलपत्र पर कहीं से भी कटे-फटे न हों।
  3. तीन पत्तियाँ: बेलपत्र में तीन पत्तियाँ होनी चाहिए।
  4. पूजन के बाद प्रसाद: बेलपत्र अर्पण के बाद भगवान शिव को भोग लगाएं और प्रसाद वितरण करें।
  5. मंत्र उच्चारण: बेलपत्र अर्पित करते समय “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें।

श्रावण सोमवार व्रत के नियम

श्रावण सोमवार व्रत भगवान शिव की उपासना का एक महत्वपूर्ण पर्व है। इस व्रत को सही तरीके से और श्रद्धा के साथ करना चाहिए। यहाँ श्रावण सोमवार व्रत के कुछ महत्वपूर्ण नियम दिए गए हैं:

1. ब्रह्म मुहूर्त में उठना:

  • श्रावण सोमवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान करें।
  • स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पवित्र मन से पूजा की तैयारी करें।

2. शुद्धता:

  • व्रत के दौरान शारीरिक और मानसिक शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
  • पूजा स्थल और पूजा सामग्री की शुद्धता सुनिश्चित करें।

3. शिवलिंग की पूजा:

  • शिवलिंग का जल, दूध, दही, घी, शहद, और गंगा जल से अभिषेक करें।
  • अभिषेक करते समय “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें।

4. बेलपत्र का प्रयोग:

  • बेलपत्र भगवान शिव को अर्पित करें। बेलपत्र को साफ पानी से धोकर और उसमें तीन पत्तियाँ होनी चाहिए।

5. फलाहार या निराहार व्रत:

  • व्रत के दौरान फलाहार करें या निराहार रहें। अगर निराहार नहीं रह सकते तो फल, दूध, और जल का सेवन करें।
  • अन्न और अनाज से परहेज करें।

6. मंत्र जाप:

  • “ॐ नमः शिवाय” और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।
  • मंत्र जाप कम से कम 108 बार करें।

7. ध्यान और भजन:

  • भगवान शिव के ध्यान में समय बिताएं और शिव भजन गाएं।
  • इससे मानसिक शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है।

8. दान और सेवा:

  • व्रत के दिन ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को दान दें।
  • इससे पुण्य की प्राप्ति होती है और भगवान शिव की कृपा बरसती है।

9. सात्विक आहार:

  • व्रत के दौरान सात्विक आहार का सेवन करें।
  • प्याज, लहसुन, और तामसिक खाद्य पदार्थों से परहेज करें।

10. संध्या पूजा:

  • संध्या के समय पुनः पूजा करें और आरती करें।
  • भगवान शिव को धूप, दीप, और नैवेद्य अर्पित करें।

11. व्रत की कथा:

  • व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। इससे व्रत का महत्व और लाभ समझ में आता है।

12. परिवार के साथ पूजा:

  • परिवार के साथ मिलकर पूजा करें और सभी को व्रत के महत्व के बारे में बताएं।
  • इससे परिवार में एकता और प्रेम बढ़ता है।

Shiva mantra vidhi

श्रावण सोमवार व्रत के लाभ

श्रावण सोमवार व्रत भगवान शिव की उपासना के लिए महत्वपूर्ण पर्व है। इस व्रत का पालन करने से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। यहाँ श्रावण सोमवार व्रत के प्रमुख लाभ दिए गए हैं:

1. मनोकामना पूर्ति:

  • भगवान शिव की कृपा से सभी इच्छाएं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। श्रावण सोमवार व्रत करने से व्यक्ति की सभी मनोवांछित इच्छाओं की पूर्ति होती है।

2. स्वास्थ्य लाभ:

  • श्रावण सोमवार व्रत करने से स्वास्थ्य में सुधार होता है। भगवान शिव की उपासना से बीमारियों और रोगों से मुक्ति मिलती है।

3. आर्थिक समृद्धि:

  • इस व्रत से आर्थिक संकट दूर होते हैं और व्यक्ति को आर्थिक समृद्धि प्राप्त होती है। भगवान शिव की कृपा से धन-धान्य की प्राप्ति होती है।

4. संकटों से मुक्ति:

  • श्रावण सोमवार व्रत करने से जीवन के सभी संकट और कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है। भगवान शिव की पूजा से सभी संकट समाप्त हो जाते हैं।

5. विवाह में सफलता:

  • जिन व्यक्तियों का विवाह नहीं हो पा रहा है, वे इस व्रत का पालन करें। भगवान शिव की कृपा से विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं और शीघ्र ही विवाह संपन्न होता है।

6. मानसिक शांति:

  • श्रावण सोमवार व्रत करने से मानसिक शांति मिलती है। भगवान शिव की उपासना से मन शांत और स्थिर होता है।

7. संतान सुख:

  • इस व्रत का पालन करने से संतान सुख प्राप्त होता है। जिन दंपत्तियों को संतान प्राप्ति में समस्या हो रही हो, उन्हें यह व्रत करना चाहिए।

8. शत्रुओं से सुरक्षा:

  • श्रावण सोमवार व्रत करने से शत्रुओं से सुरक्षा मिलती है। भगवान शिव की कृपा से शत्रु परास्त होते हैं और सुरक्षा प्राप्त होती है।

9. आध्यात्मिक उन्नति:

  • इस व्रत से आध्यात्मिक उन्नति होती है। भगवान शिव की उपासना से आध्यात्मिक ज्ञान और ऊर्जा मिलती है।

10. परिवारिक सुख:

  • श्रावण सोमवार व्रत करने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है। भगवान शिव की कृपा से परिवारिक जीवन में खुशहाली आती है।

11. व्रत से पुण्य लाभ:

  • श्रावण सोमवार व्रत करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत के फलस्वरूप व्यक्ति को जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है।

12. सकारात्मक ऊर्जा:

  • इस व्रत का पालन करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। भगवान शिव की पूजा से घर और वातावरण में सकारात्मकता बनी रहती है।

13. कर्मों का शुद्धिकरण:

  • श्रावण सोमवार व्रत करने से कर्मों का शुद्धिकरण होता है। भगवान शिव की कृपा से व्यक्ति के पाप कर्म समाप्त हो जाते हैं।

14. भाग्य में वृद्धि:

  • इस व्रत से भाग्य में वृद्धि होती है। भगवान शिव की कृपा से व्यक्ति का भाग्य उदय होता है और उसे सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त होती है।

15. मोक्ष की प्राप्ति:

  • श्रावण सोमवार व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान शिव की उपासना से व्यक्ति को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

श्रावण सोमवार व्रत के इन लाभों को प्राप्त करने के लिए व्रत का पालन श्रद्धा और नियमों के साथ करना चाहिए। भगवान शिव की कृपा से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि का आगमन होता है।

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श्रावण सोमवार व्रत: सामान्य प्रश्न

1. श्रावण सोमवार व्रत क्या है?

श्रावण सोमवार व्रत भगवान शिव की उपासना का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो श्रावण महीने के प्रत्येक सोमवार को मनाया जाता है। इस दिन शिवलिंग की विशेष पूजा और व्रत किया जाता है।

2. श्रावण सोमवार व्रत का महत्व क्या है?

श्रावण सोमवार व्रत का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से समस्त इच्छाएं पूरी होती हैं, स्वास्थ्य लाभ मिलता है, आर्थिक समृद्धि होती है, और जीवन के सभी संकट दूर होते हैं।

3. श्रावण सोमवार व्रत कैसे रखें?

श्रावण सोमवार व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र धारण करें, शिवलिंग की पूजा करें, जल, दूध, दही, घी, शहद, और गंगा जल से अभिषेक करें, और व्रत रखें।

4. श्रावण सोमवार व्रत के क्या लाभ हैं?

श्रावण सोमवार व्रत के लाभों में मनोकामना पूर्ति, स्वास्थ्य लाभ, आर्थिक समृद्धि, संकटों से मुक्ति, विवाह में विलंब दूर होना, मानसिक शांति, संतान सुख, शत्रुओं से सुरक्षा, आध्यात्मिक उन्नति, और परिवारिक सुख शामिल हैं।

5. क्या श्रावण सोमवार व्रत में फलाहार किया जा सकता है?

हाँ, श्रावण सोमवार व्रत में फलाहार किया जा सकता है। यदि संभव हो तो निराहार रहें, अन्यथा फल, दूध, और जल का सेवन करें।

6. श्रावण सोमवार व्रत में कौन से मंत्र का जाप करें?

श्रावण सोमवार व्रत में “ॐ नमः शिवाय” और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें। इससे भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

7. श्रावण सोमवार व्रत में किन चीजों से बचना चाहिए?

श्रावण सोमवार व्रत में झूठ बोलने, किसी को दुख पहुंचाने, और अन्न का सेवन करने से बचना चाहिए। इसके अलावा, शारीरिक और मानसिक शुद्धता का ध्यान रखें।

8. श्रावण सोमवार व्रत में शिवलिंग की पूजा कैसे करें?

शिवलिंग की पूजा में जल, दूध, दही, घी, शहद, और गंगा जल से अभिषेक करें, बेलपत्र, धतूरा, आक, और फूल अर्पित करें, धूप और दीप जलाएं, और मंत्र जाप करें।

9. श्रावण सोमवार व्रत की कथा क्या है?

श्रावण सोमवार व्रत की कथा में भगवान शिव की महिमा और उनके भक्तों की कथा होती है। यह कथा व्रत के दौरान पढ़ी या सुनी जाती है और इससे व्रत का महत्व समझ में आता है।

10. श्रावण सोमवार व्रत के लिए कौन सा समय उपयुक्त है?

श्रावण सोमवार व्रत के लिए ब्रह्म मुहूर्त सबसे उपयुक्त समय है। इस समय में पूजा और व्रत करने से अधिक लाभ प्राप्त होते हैं।

11. क्या श्रावण सोमवार व्रत केवल महिलाओं द्वारा किया जाता है?

नहीं, श्रावण सोमवार व्रत स्त्री और पुरुष दोनों द्वारा किया जा सकता है। इस व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा सभी को प्राप्त होती है।

12. श्रावण सोमवार व्रत में कौन से पूजन सामग्री का उपयोग करें?

श्रावण सोमवार व्रत में जल, दूध, दही, घी, शहद, गंगा जल, बेलपत्र, धतूरा, आक, फूल, धूप, दीप, और प्रसाद का उपयोग करें।

Shravan somavar vrat for wishes & wealth

श्रावण सोमवार व्रत

Shravan Month हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है, खासकर भगवान शिव की उपासना के लिए। इस महीने में शिवलिंग की पूजा और व्रत करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। श्रावण सोमवार व्रत अत्यंत फलदायी माना जाता है और इसे पूरी श्रद्धा और नियम से पालन किया जाना चाहिए।

व्रत विधि

1. प्रातःकाल उठना:

श्रावण सोमवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठना अत्यंत शुभ माना जाता है। प्रातःकाल उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

2. पूजन स्थल की सफाई:

पूजा स्थल की सफाई करें और वहां पर गंगाजल छिड़कें। शिवलिंग को साफ करें और उसे पवित्र जल से स्नान कराएं।

3. शिवलिंग का अभिषेक:

शिवलिंग का अभिषेक करें। अभिषेक के लिए जल, दूध, दही, घी, शहद, और गंगा जल का उपयोग करें। इनसे शिवलिंग को स्नान कराएं।

4. बिल्वपत्र अर्पण:

शिवलिंग पर बिल्वपत्र, धतूरा, आक, और फूल अर्पित करें। बिल्वपत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है और इसे अर्पित करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।

5. धूप और दीप:

धूप और दीप जलाएं। पूजा के दौरान धूप और दीप जलाने से वातावरण पवित्र और सुगंधित होता है, जिससे मन को शांति मिलती है।

6. मंत्र जाप:

“ॐ नमः शिवाय” या “ॐ ह्रौं शिवाय ह्रौं नमः” मंत्र का जाप करें। इस मंत्र का जाप कम से कम ५४० बार करें। इसके अलावा, महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी किया जा सकता है।

7. रुद्राभिषेक:

रुद्राभिषेक करें, जिसमें रुद्र सूक्त का पाठ किया जाता है। यह भगवान शिव की अत्यंत प्रभावशाली पूजा है और इससे विशेष फल की प्राप्ति होती है।

8. प्रसाद वितरण:

पूजा के बाद प्रसाद बांटें और स्वयं भी ग्रहण करें। प्रसाद में फल, मिठाई और पंचामृत शामिल कर सकते हैं।

9. व्रत का पालन:

इस दिन व्रत रखें और एक समय फलाहार ग्रहण करें। यदि संभव हो तो निराहार रहें, अन्यथा फल, दूध, और जल का सेवन करें।

10. ध्यान और भजन:

भगवान शिव के ध्यान में समय बिताएं और शिव भजन गाएं। इससे मन को शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है।

11. दान और सेवा:

इस दिन ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को दान दें। इससे पुण्य की प्राप्ति होती है और भगवान शिव की कृपा बरसती है।

लाभ

  1. संपूर्ण मनोकामना पूर्ण होती है: श्रावण सोमवार के व्रत से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।
  2. स्वास्थ्य लाभ: भगवान शिव की कृपा से अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
  3. आर्थिक समृद्धि: धन-धान्य की वृद्धि होती है।
  4. संकटों से मुक्ति: जीवन के सभी संकट दूर होते हैं।
  5. विवाह में विलंब दूर होता है: विवाह में आ रही बाधाएं समाप्त होती हैं।
  6. शांति और संतोष: मानसिक शांति और संतोष की प्राप्ति होती है।
  7. संतान सुख: संतान प्राप्ति का वरदान मिलता है।
  8. दुश्मनों से सुरक्षा: शत्रुओं से रक्षा होती है।
  9. आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  10. धार्मिक लाभ: धार्मिक कार्यों में रुचि बढ़ती है।
  11. परिवारिक सुख: परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
  12. सकारात्मक ऊर्जा: घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  13. रोग निवारण: बीमारियों से मुक्ति मिलती है।
  14. मानसिक तनाव दूर होता है: मानसिक तनाव से राहत मिलती है।
  15. विद्या और बुद्धि की प्राप्ति: विद्या और बुद्धि की प्राप्ति होती है।
  16. आकर्षण शक्ति: व्यक्ति में आकर्षण शक्ति बढ़ती है।
  17. धार्मिक ज्ञान: धार्मिक ज्ञान और समझ बढ़ती है।
  18. व्यवसाय में सफलता: व्यवसाय में सफलता मिलती है।
  19. धन की प्राप्ति: धन-धान्य की वृद्धि होती है।
  20. सर्वसिद्धि: जीवन में सर्वसिद्धि की प्राप्ति होती है।

सावधानियाँ

  1. व्रत के नियमों का पालन: व्रत के नियमों का कठोरता से पालन करें। बीच में अन्न या अन्न से बने पदार्थों का सेवन न करें।
  2. शुद्धता का ध्यान: शारीरिक और मानसिक शुद्धता का ध्यान रखें। गलत विचारों और गलत कार्यों से दूर रहें।
  3. नियमित पूजा: नियमित पूजा और ध्यान करें। व्रत के दिन विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा करें।
  4. सत्य बोलें: व्रत के दिन झूठ बोलने और किसी को दुख पहुंचाने से बचें।
  5. ब्राह्मणों का सम्मान: ब्राह्मणों का सम्मान करें और उन्हें दान दें।
  6. स्वच्छता: पूजा स्थल और घर की स्वच्छता का ध्यान रखें।
  7. शिवलिंग की प्रतिष्ठा: शिवलिंग की प्रतिष्ठा करें और उसे साफ-सुथरा रखें।
  8. धार्मिक ग्रंथों का पाठ: धार्मिक ग्रंथों का पाठ करें और भगवान शिव की कथाओं का श्रवण करें।
  9. विनम्रता: व्रत के दौरान विनम्रता और शांति बनाए रखें।
  10. आध्यात्मिक गतिविधियाँ: आध्यात्मिक गतिविधियों में भाग लें और धार्मिक कार्यों में रुचि रखें।

Angha shiv mantra vidhi

नियम

  1. निराहार व्रत: यदि संभव हो तो निराहार व्रत रखें, अन्यथा फल, दूध, और जल का सेवन करें।
  2. शिवलिंग की पूजा: शिवलिंग की पूजा और अभिषेक अवश्य करें।
  3. मंत्र जाप: ओम नमः शिवाय और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।
  4. ध्यान और भजन: भगवान शिव के ध्यान में समय बिताएं और शिव भजन गाएं।
  5. दान और सेवा: ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को दान दें।
  6. पूजा स्थल की स्वच्छता: पूजा स्थल की स्वच्छता बनाए रखें।
  7. सकारात्मक विचार: सकारात्मक विचार रखें और नकारात्मकता से दूर रहें।
  8. परिवार के साथ पूजा: परिवार के साथ मिलकर पूजा करें और श्रावण सोमवार का महत्व समझाएं।
  9. व्रत की कथा: व्रत की कथा का पाठ करें और उसे सुनें।
  10. आध्यात्मिक साहित्य: आध्यात्मिक साहित्य का अध्ययन करें और भगवान शिव की महिमा का गुणगान करें।

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श्रावण सोमवार व्रत: सामान्य प्रश्न

1. श्रावण सोमवार व्रत क्या है?

श्रावण सोमवार व्रत भगवान शिव की उपासना का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो श्रावण महीने के प्रत्येक सोमवार को मनाया जाता है। इस दिन शिवलिंग की विशेष पूजा और व्रत किया जाता है।

2. श्रावण सोमवार व्रत का महत्व क्या है?

श्रावण सोमवार व्रत का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से समस्त इच्छाएं पूरी होती हैं, स्वास्थ्य लाभ मिलता है, आर्थिक समृद्धि होती है, और जीवन के सभी संकट दूर होते हैं।

3. श्रावण सोमवार व्रत कैसे रखें?

श्रावण सोमवार व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र धारण करें, शिवलिंग की पूजा करें, जल, दूध, दही, घी, शहद, और गंगा जल से अभिषेक करें, और व्रत रखें।

4. श्रावण सोमवार व्रत के क्या लाभ हैं?

श्रावण सोमवार व्रत के लाभों में मनोकामना पूर्ति, स्वास्थ्य लाभ, आर्थिक समृद्धि, संकटों से मुक्ति, विवाह में विलंब दूर होना, मानसिक शांति, संतान सुख, शत्रुओं से सुरक्षा, आध्यात्मिक उन्नति, और परिवारिक सुख शामिल हैं।

5. क्या श्रावण सोमवार व्रत में फलाहार किया जा सकता है?

हाँ, श्रावण सोमवार व्रत में फलाहार किया जा सकता है। यदि संभव हो तो निराहार रहें, अन्यथा फल, दूध, और जल का सेवन करें।

6. श्रावण सोमवार व्रत में कौन से मंत्र का जाप करें?

श्रावण सोमवार व्रत में ओम नमः शिवाय और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें। इससे भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

7. श्रावण सोमवार व्रत में किन चीजों से बचना चाहिए?

श्रावण सोमवार व्रत में झूठ बोलने, किसी को दुख पहुंचाने, और अन्न का सेवन करने से बचना चाहिए। इसके अलावा, शारीरिक और मानसिक शुद्धता का ध्यान रखें।

8. श्रावण सोमवार व्रत में शिवलिंग की पूजा कैसे करें?

शिवलिंग की पूजा में जल, दूध, दही, घी, शहद, और गंगा जल से अभिषेक करें, बिल्वपत्र, धतूरा, आक, और फूल अर्पित करें, धूप और दीप जलाएं, और मंत्र जाप करें।

9. श्रावण सोमवार व्रत की कथा क्या है?

श्रावण सोमवार व्रत की कथा में भगवान शिव की महिमा और उनके भक्तों की कथा होती है। यह कथा व्रत के दौरान पढ़ी या सुनी जाती है और इससे व्रत का महत्व समझ में आता है।

10. श्रावण सोमवार व्रत के लिए कौन सा समय उपयुक्त है?

श्रावण सोमवार व्रत के लिए ब्रह्म मुहूर्त सबसे उपयुक्त समय है। इस समय में पूजा और व्रत करने से अधिक लाभ प्राप्त होते हैं।

Patal Bhairav Mantra Sadhana for wish & protection

पाताल भैरव साधना एक अत्यंत शक्तिशाली तांत्रिक साधना है, जो विशेष रूप से उन्नति, सुरक्षा और बाधाओं को दूर करने के लिए की जाती है। इस साधना में Patal Bhairav की उपासना की जाती है, जो शनि के प्रकोप को शांत करने और अति शीघ्र इच्छाओं को पूर्ण करने में सक्षम माने जाते हैं।

पाताल भैरव साधना के लाभ

  1. विपत्तियों से मुक्ति: साधक को जीवन में आने वाली सभी प्रकार की विपत्तियों से मुक्ति मिलती है।
  2. शत्रुओं का नाश: शत्रुओं की चालों को विफल करने में सहायक।
  3. धन-संपत्ति की प्राप्ति: आर्थिक स्थिति को सुधारने में सहायक।
  4. स्वास्थ्य लाभ: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार।
  5. बाधाओं का निवारण: सभी प्रकार की बाधाओं का निवारण होता है।
  6. कर्ज से मुक्ति: ऋण से मुक्ति पाने में मददगार।
  7. व्यवसाय में उन्नति: व्यापार और व्यवसाय में सफलता।
  8. नौकरी में प्रमोशन: नौकरी में प्रमोशन पाने में सहायक।
  9. परिवारिक सुख-शांति: परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
  10. विवाह में आने वाली रुकावटों का निवारण: विवाह में आने वाली सभी प्रकार की रुकावटें दूर होती हैं।
  11. मनोकामना पूर्ति: साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
  12. वास्तु दोष निवारण: घर और कार्यालय में वास्तु दोषों का निवारण।
  13. कृषि कार्य में सफलता: कृषि कार्य में उन्नति और सफलता।
  14. शांति और संतोष: मन की शांति और संतोष मिलता है।
  15. संतान सुख: संतान प्राप्ति और उनके स्वास्थ्य में सुधार।
  16. अध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक उन्नति और आत्मज्ञान की प्राप्ति।
  17. मुकदमे में विजय: कानूनी मामलों में विजय प्राप्त होती है।
  18. जादू-टोना से सुरक्षा: काले जादू और तंत्र-मंत्र से सुरक्षा।
  19. यात्रा में सुरक्षा: यात्राओं में सुरक्षा मिलती है।
  20. धार्मिक उन्नति: धार्मिक गतिविधियों में सफलता और उन्नति।

साधना विधि

  1. साधना का दिन: पाताल भैरव साधना का श्रेष्ठ दिन मंगलवार या शनिवार होता है।
  2. साधना सामग्री:
  • काले वस्त्र
  • पाताल भैरव की प्रतिमा या चित्र
  • काले तिल
  • सरसों का तेल
  • काली हल्दी
  • काली हकीक माला
  • सिंदूर और कुमकुम
  • धूप-दीप
  1. स्थापना:
  • पूजा स्थान को स्वच्छ करें और आसन बिछाएं।
  • पाताल भैरव की प्रतिमा को स्थापित करें।
  • धूप-दीप प्रज्वलित करें।
  1. पूजन विधि:
  • काले वस्त्र धारण करें।
  • पाताल भैरव को सिंदूर और कुमकुम से तिलक करें।
  • सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
  • काले तिल और काली हल्दी का प्रयोग करें।
  • पाताल भैरव के मंत्र का जाप करें।

मंत्र (Mantra)

॥ॐ भ्रं पाताल भैरवाय सर्व विघ्न उच्चाटय भ्रं फट्ट॥

इस मंत्र का जाप कम से कम ११/२१/४१ दिन और रोज ११ माला (११८८) बार मंत्र जप करे।

सावधानियां (Precautions)

  1. साधना के समय पूर्ण एकाग्रता बनाए रखें।
  2. साधना के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  3. पूजा स्थान को साफ और शुद्ध रखें।
  4. साधना के समय किसी प्रकार का डर मन में न रखें।
  5. साधना को बीच में अधूरा न छोड़ें।

क्या करें (Do’s)

  1. साधना के दौरान सकारात्मक विचार रखें।
  2. पूजन सामग्री को शुद्ध रखें।
  3. नियमित रूप से साधना करें।
  4. पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ साधना करें।
  5. साधना के समय किसी भी प्रकार की नकारात्मकता से बचें।

क्या न करें (Dont’s)

  1. साधना के समय किसी भी प्रकार का डर मन में न रखें।
  2. साधना को अधूरा न छोड़ें।
  3. साधना के दौरान असत्य बोलने से बचें।
  4. साधना के समय अनावश्यक वार्तालाप से बचें।
  5. साधना के बाद पूजा स्थान को गंदा न करें।

Kaalbhairav mantra vidhi

पाताल भैरव साधना – सामान्य प्रश्न

1. पाताल भैरव साधना क्या है?

उत्तर: पाताल भैरव साधना एक शक्तिशाली तांत्रिक साधना है जो विशेष रूप से उन्नति, सुरक्षा और बाधाओं को दूर करने के लिए की जाती है। इसमें पाताल भैरव की उपासना की जाती है।

2. पाताल भैरव साधना के प्रमुख लाभ क्या हैं?

उत्तर: इस साधना से विपत्तियों से मुक्ति, शत्रुओं का नाश, धन-संपत्ति की प्राप्ति, स्वास्थ्य लाभ, बाधाओं का निवारण, कर्ज से मुक्ति, व्यवसाय में उन्नति, नौकरी में प्रमोशन, परिवारिक सुख-शांति, विवाह में आने वाली रुकावटों का निवारण, मनोकामना पूर्ति, वास्तु दोष निवारण, कृषि कार्य में सफलता, शांति और संतोष, संतान सुख, अध्यात्मिक उन्नति, मुकदमे में विजय, जादू-टोना से सुरक्षा, यात्रा में सुरक्षा, और धार्मिक उन्नति मिलती है।

3. पाताल भैरव साधना के लिए सबसे उपयुक्त दिन कौन-से होते हैं?

उत्तर: पाताल भैरव साधना के लिए मंगलवार, शनिवार या अष्टमी को सबसे उपयुक्त दिन माना जाता है।

4. पाताल भैरव साधना के लिए कौन-कौन सी सामग्री आवश्यक है?

उत्तर: काले वस्त्र, पाताल भैरव की प्रतिमा या चित्र, काले तिल, सरसों का तेल, काली हल्दी, काली हकीक माला, सिंदूर और कुमकुम, धूप-दीप इत्यादि आवश्यक हैं।

5. पाताल भैरव साधना का मंत्र क्या है?

उत्तर:

॥ॐ भ्रं पाताल भैरवाय सर्व विघ्न उच्चाटय भ्रं फट्ट॥

6. पाताल भैरव साधना करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

उत्तर: साधना के समय पूर्ण एकाग्रता बनाए रखें, ब्रह्मचर्य का पालन करें, पूजा स्थान को साफ और शुद्ध रखें, साधना के दौरान किसी प्रकार का डर मन में न रखें, और साधना को बीच में अधूरा न छोड़ें।

7. पाताल भैरव साधना के दौरान क्या करना चाहिए?

उत्तर: साधना के दौरान सकारात्मक विचार रखें, पूजन सामग्री को शुद्ध रखें, नियमित रूप से साधना करें, पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ साधना करें, और साधना के समय किसी भी प्रकार की नकारात्मकता से बचें।

8. पाताल भैरव साधना के दौरान क्या नहीं करना चाहिए?

उत्तर: साधना के समय किसी भी प्रकार का डर मन में न रखें, साधना को अधूरा न छोड़ें, साधना के दौरान असत्य बोलने से बचें, साधना के समय अनावश्यक वार्तालाप से बचें, और साधना के बाद पूजा स्थान को गंदा न करें।

9. क्या पाताल भैरव साधना सभी के लिए सुरक्षित है?

उत्तर: हां, यदि इसे सही तरीके से किया जाए और सभी सावधानियों का पालन किया जाए, तो यह साधना सभी के लिए सुरक्षित है। हालांकि, किसी भी प्रकार की अनिश्चितता होने पर अनुभवी गुरु से मार्गदर्शन लेना उचित है।

10. पाताल भैरव साधना का परिणाम कितने समय में मिलता है?

उत्तर: साधना के परिणाम साधक की निष्ठा, विश्वास और एकाग्रता पर निर्भर करते हैं। नियमित और सच्ची श्रद्धा से की गई साधना से शीघ्र परिणाम मिलते हैं।

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अंत में

पाताल भैरव साधना एक अत्यंत प्रभावशाली साधना है, जो साधक को जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता दिलाती है। यह साधना विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है जो शत्रु बाधाओं, वित्तीय समस्याओं और स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं। साधना को पूरी निष्ठा और विश्वास के साथ करना आवश्यक है।

Kal Bhairav Mantra Sadhana for Strong Protection

भगवान Kaal Bhairav हिंदू धर्म के एक महत्वपूर्ण देवता माने जाते हैं, जिन्हें भगवान शिव का एक उग्र और शक्तिशाली रूप माना जाता है। काल भैरव की साधना भय, बुरी आत्माओं और नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा, न्याय, और मनोकामना को पूर्ण करने में सहायता प्रदान करती है। काल भैरव साधना करने से साधक को असाधारण शक्ति, ज्ञान, और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।

मंत्रः “ॐ भ्रं कालभैरवाय भ्रं फट्ट” OM BHRAM KAALBHAIRAVAAY BHRAM FATT.

कालभैरव साधना सामग्री

काल भैरव साधना के लिए आवश्यक सामग्री निम्नलिखित है:

  1. काल भैरव की मूर्ति या चित्र
  2. लाल कपड़ा या आसन
  3. पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर)
  4. सिंदूर और रोली
  5. काले तिल
  6. सरसों का तेल
  7. नींबू और लाल फूल
  8. धूप और दीपक
  9. भैरव मंत्र की पुस्तक
  10. मिठाई (विशेषकर लड्डू)
  11. काले धागे की माला
  12. भोग के लिए काले तिल और गुड़ का प्रसाद

साधना विधि

  1. स्थान चयन: साधना के लिए शांत और पवित्र स्थान चुनें। इसे स्वच्छ रखें और वहां लाल कपड़ा बिछाएं।
  2. मूर्ति स्थापना: काल भैरव की मूर्ति या चित्र को स्थान पर स्थापित करें।
  3. स्नान और पवित्रता: स्वयं स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। साधना के लिए मानसिक और शारीरिक पवित्रता महत्वपूर्ण है।
  4. दीप और धूप: दीपक और धूप जलाकर साधना स्थान को पवित्र करें।
  5. पंचामृत अभिषेक: काल भैरव की मूर्ति या चित्र का पंचामृत से अभिषेक करें।
  6. मंत्र जप: काल भैरव मंत्र का 108 बार जप करें। मंत्र है: “ॐ कालभैरवाय नमः”
  7. प्रसाद अर्पण: मूर्ति को फूल, सिंदूर, और मिठाई अर्पण करें।
  8. ध्यान और प्रार्थना: कुछ समय ध्यान करें और काल भैरव से अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें।
  9. अंतिम आरती: साधना के अंत में आरती करें और प्रसाद वितरण करें।

साधना अवधि और दिन

काल भैरव साधना की अवधि साधक की इच्छानुसार 21 दिन, 40 दिन, या 108 दिन तक हो सकती है। साधना के लिए विशेष दिन मंगलवार और शनिवार को शुभ माना जाता है।

उपयोग और लाभ

काल भैरव साधना के अनेक लाभ हैं:

  1. भय और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा
  2. न्याय प्राप्ति में सहायता
  3. समय प्रबंधन में सुधार
  4. शत्रुओं से रक्षा
  5. आध्यात्मिक उन्नति
  6. तंत्र बाधाओं से मुक्ति
  7. भूत-प्रेत बाधाओं से मुक्ति
  8. परिवार में शांति और सद्भावना
  9. आर्थिक समृद्धि
  10. मानसिक शांति
  11. स्वास्थ्य लाभ
  12. आत्मविश्वास में वृद्धि
  13. दुर्घटनाओं से सुरक्षा
  14. आध्यात्मिक जागरूकता
  15. अच्छे संबंधों की स्थापना
  16. ज्ञान और बुद्धि की वृद्धि
  17. व्यावसायिक सफलता
  18. मान-सम्मान में वृद्धि
  19. बुरी आदतों से मुक्ति
  20. सकारात्मक ऊर्जा का संचार

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सावधानियाँ

  1. साधना के दौरान पूर्ण पवित्रता बनाए रखें।
  2. साधना के समय नियमितता और अनुशासन का पालन करें।
  3. साधना के दौरान नकारात्मक विचारों और तामसिक आहार से बचें।
  4. किसी योग्य गुरु का मार्गदर्शन प्राप्त करें।
  5. मंत्र का उच्चारण शुद्ध और स्पष्ट करें।
  6. साधना के समय एकाग्रता बनाए रखें।
  7. साधना स्थल को स्वच्छ और पवित्र रखें।
  8. साधना के दौरान साधना को किसी भी प्रकार की बाधा न आने दें।
  9. साधना के अंत में आरती और प्रसाद वितरण अवश्य करें।
  10. साधना के दौरान सकारात्मक मानसिकता बनाए रखें।

Paatal bhairav mantra vidhi

काल भैरव साधना FAQ

1. काल भैरव कौन हैं?

काल भैरव हिंदू धर्म में भगवान शिव का एक उग्र और शक्तिशाली रूप हैं। उन्हें समय, न्याय, और सुरक्षा के देवता के रूप में पूजा जाता है। काल भैरव का नाम ‘काल’ यानी समय और ‘भैरव’ यानी डरावना या भयानक, से मिलकर बना है।

2. काल भैरव साधना क्या है?

काल भैरव साधना एक आध्यात्मिक अभ्यास है जिसमें साधक भगवान काल भैरव की आराधना करता है। इस साधना का उद्देश्य साधक को नकारात्मक ऊर्जा, भय, और बाधाओं से मुक्त करना, न्याय प्राप्त करना, और समय प्रबंधन में सहायता करना है।

3. काल भैरव साधना के प्रमुख लाभ क्या हैं?

काल भैरव साधना के अनेक लाभ हैं, जिनमें शामिल हैं:

  1. भय और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा
  2. न्याय प्राप्ति में सहायता
  3. समय प्रबंधन में सुधार
  4. शत्रुओं से रक्षा
  5. आध्यात्मिक उन्नति
  6. तंत्र बाधाओं से मुक्ति
  7. भूत-प्रेत बाधाओं से मुक्ति
  8. परिवार में शांति और सद्भावना
  9. आर्थिक समृद्धि
  10. मानसिक शांति
  11. स्वास्थ्य लाभ
  12. आत्मविश्वास में वृद्धि
  13. दुर्घटनाओं से सुरक्षा
  14. आध्यात्मिक जागरूकता
  15. अच्छे संबंधों की स्थापना
  16. ज्ञान और बुद्धि की वृद्धि
  17. व्यावसायिक सफलता
  18. मान-सम्मान में वृद्धि
  19. बुरी आदतों से मुक्ति
  20. सकारात्मक ऊर्जा का संचार

4. काल भैरव साधना के लिए कौन-सा दिन और समय उचित है?

काल भैरव साधना के लिए मंगलवार और शनिवार का दिन अत्यंत शुभ माना जाता है। साधना का सर्वोत्तम समय रात्रि का होता है, विशेषकर मध्यरात्रि में।

5. काल भैरव साधना कितने दिनों की होती है?

काल भैरव साधना की अवधि साधक की इच्छानुसार हो सकती है। इसे 21 दिन, 40 दिन, या 108 दिन तक किया जा सकता है। साधना की अवधि के दौरान नियमितता और अनुशासन बनाए रखना आवश्यक है।

6. काल भैरव साधना के लिए क्या सामग्री आवश्यक है?

काल भैरव साधना के लिए निम्नलिखित सामग्री आवश्यक है:

  1. काल भैरव की मूर्ति या चित्र
  2. लाल कपड़ा या आसन
  3. पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर)
  4. सिंदूर और रोली
  5. काले तिल
  6. सरसों का तेल
  7. नींबू और लाल फूल
  8. धूप और दीपक
  9. भैरव मंत्र की पुस्तक
  10. मिठाई (विशेषकर लड्डू)
  11. काले धागे की माला
  12. भोग के लिए काले तिल और गुड़ का प्रसाद

7. काल भैरव साधना की विधि क्या है?

काल भैरव साधना की विधि इस प्रकार है:

  1. स्थान को स्वच्छ करें और लाल कपड़ा बिछाएं।
  2. काल भैरव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  3. स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  4. दीपक और धूप जलाएं।
  5. पंचामृत से अभिषेक करें।
  6. काल भैरव मंत्र का 108 बार जप करें: “ॐ कालभैरवाय नमः”
  7. मूर्ति को फूल, सिंदूर, और मिठाई अर्पित करें।
  8. ध्यान करें और प्रार्थना करें।
  9. अंत में आरती करें और प्रसाद वितरित करें।

8. साधना के दौरान क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए?

साधना के दौरान निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी चाहिए:

  1. शारीरिक और मानसिक पवित्रता बनाए रखें।
  2. सात्विक आहार का पालन करें।
  3. साधना नियमित रूप से करें और बीच में बाधा न आने दें।
  4. साधना को पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ करें।
  5. साधना स्थल को साफ और पवित्र रखें।
  6. मंत्र का उच्चारण शुद्ध और स्पष्ट रूप से करें।
  7. ध्यान और एकाग्रता बनाए रखें।
  8. सकारात्मक और शांत मानसिकता बनाए रखें।

9. क्या काल भैरव साधना में किसी गुरु का मार्गदर्शन आवश्यक है?

यदि संभव हो तो किसी योग्य गुरु का मार्गदर्शन प्राप्त करना लाभकारी होता है। गुरु के मार्गदर्शन से साधना अधिक प्रभावशाली और सफल हो सकती है।

10. काल भैरव साधना से कौन-कौन सी सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं?

काल भैरव साधना से साधक को भयमुक्ति, शत्रुओं से रक्षा, आध्यात्मिक जागरूकता, न्याय प्राप्ति, और समय प्रबंधन में सुधार जैसी सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं।

11. साधना के दौरान क्या वर्जित है?

साधना के दौरान नकारात्मक विचारों, तामसिक भोजन, अनुचित आचरण, और शारीरिक अस्वच्छता से बचें। साधना को पूर्ण पवित्रता और अनुशासन के साथ करें।

12. काल भैरव साधना का प्रमुख उद्देश्य क्या है?

काल भैरव साधना का प्रमुख उद्देश्य साधक को भय, नकारात्मकता, और बाधाओं से मुक्त करना, न्याय प्राप्त करना, और समय प्रबंधन में सुधार करना है।

13. क्या काल भैरव साधना से सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं?

काल भैरव साधना से साधक की सभी इच्छाएँ पूर्ण हो सकती हैं यदि वह साधना को विधिपूर्वक और श्रद्धापूर्वक करता है।

14. साधना के दौरान मंत्र जप कैसे करें?

साधना के दौरान काले धागे की माला से काल भैरव मंत्र का 108 बार जप करें। मंत्र जप करते समय ध्यान और एकाग्रता बनाए रखें।

15. क्या काल भैरव साधना से शत्रुओं से रक्षा हो सकती है?

हाँ, काल भैरव साधना से साधक के शत्रु उससे दूर रहते हैं और उसे कोई हानि नहीं पहुंचा सकते। साधना शत्रुओं से रक्षा करने में सहायक होती है।

16. साधना के दौरान क्या आहार लेना चाहिए?

साधना के दौरान सात्विक आहार का पालन करें और तामसिक भोजन से बचें। शुद्ध और पौष्टिक भोजन का सेवन करें जिससे शारीरिक और मानसिक ऊर्जा बनी रहे।

17. क्या काल भैरव साधना में किसी विशेष पूजा विधि का पालन करना आवश्यक है?

काल भैरव साधना में विधिपूर्वक पूजा विधि का पालन करना आवश्यक है, जिसमें मूर्ति स्थापना, अभिषेक, मंत्र जप, और आरती शामिल हैं।

18. साधना के बाद क्या करना चाहिए?

साधना के बाद काल भैरव की आरती करें, प्रसाद वितरित करें और साधना का संकल्प पूर्ण करें। साधना के बाद प्राप्त अनुभवों और सिद्धियों को दैनिक जीवन में सकारात्मक उपयोग में लाने का प्रयास करें।

19. साधना की सफलता के लिए क्या आवश्यक है?

साधना की सफलता के लिए पूर्ण श्रद्धा, विश्वास, नियमितता, अनुशासन, और सकारात्मक मानसिकता आवश्यक हैं। साधना को विधिपूर्वक और नियमों का पालन करते हुए करें।

Cheti Yakshini Mantra Sadhana for Antiaging & Wish

चेटी यक्षिणी साधना- सुख समृद्धि के लिये

चेटी यक्षिणी साधना एक रहस्यमयी और शक्तिशाली साधना है जिसे करने से साधक को यक्षिणी की कृपा प्राप्त होती है। चेटी यक्षिणी एक दिव्य शक्ति है जो साधक को धन, समृद्धि, और आकर्षण शक्ति प्रदान करती है। इस साधना का उद्देश्य जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करना है।

लाभ

  1. सभी इच्छाओं की पूर्ति: साधना से साधक की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
  2. धन और समृद्धि: साधना करने से धन और समृद्धि प्राप्त होती है।
  3. आकर्षण शक्ति: साधक में अद्वितीय आकर्षण शक्ति विकसित होती है।
  4. वशीकरण: साधक दूसरों को अपने वश में करने की शक्ति प्राप्त करता है।
  5. संकटों से मुक्ति: जीवन के सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है।
  6. सुख और शांति: साधना से साधक के जीवन में सुख और शांति का वास होता है।
  7. सिद्धियों की प्राप्ति: साधना से साधक को अनेक सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
  8. साहस और आत्मविश्वास: साधक का साहस और आत्मविश्वास बढ़ता है।
  9. स्वास्थ्य लाभ: साधना से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  10. शत्रुओं से रक्षा: साधक के शत्रु उससे दूर रहते हैं और उसे कोई हानि नहीं पहुंचा सकते।
  11. आध्यात्मिक उन्नति: साधक की आध्यात्मिक उन्नति होती है।
  12. शुभ फल: साधना से साधक को जीवन के हर क्षेत्र में शुभ फल प्राप्त होते हैं।
  13. परिवार का कल्याण: साधक के परिवार का कल्याण होता है।
  14. मान-सम्मान: साधक को समाज में मान-सम्मान प्राप्त होता है।
  15. कार्य सिद्धि: साधक के सभी कार्य बिना किसी बाधा के सिद्ध होते हैं।
  16. सकारात्मक ऊर्जा: जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और प्रेरणा का संचार होता है।
  17. दुष्प्रभावों से रक्षा: साधक नकारात्मक ऊर्जाओं और दुष्प्रभावों से सुरक्षित रहता है।
  18. सच्चे मित्रों की प्राप्ति: साधक को सच्चे मित्र और शुभचिंतक मिलते हैं।
  19. कुंडली दोषों का नाश: साधना से कुंडली के दोष दूर होते हैं।
  20. दीर्घायु: साधक को दीर्घायु का वरदान मिलता है।

सामग्री

  1. चेटी यक्षिणी की मूर्ति या चित्र: साधना स्थल पर स्थापित करने के लिए।
  2. पीले वस्त्र: साधना के समय पहनने के लिए।
  3. हल्दी की माला: मंत्र जप के लिए।
  4. गुलाब के फूल: पूजा और अर्पण के लिए।
  5. धूप और दीपक: आरती और पूजा के लिए।
  6. पंचामृत: अर्पण और अभिषेक के लिए।
  7. सिंदूर: यक्षिणी को अर्पित करने के लिए।
  8. मिठाई: प्रसाद के रूप में।

विधि

  1. स्थान चयन: साधना के लिए एक शांत और पवित्र स्थान का चयन करें।
  2. स्वच्छता: स्नान करके स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें।
  3. मूर्ति या चित्र स्थापना: चेटी यक्षिणी की मूर्ति या चित्र को स्वच्छ स्थान पर स्थापित करें।
  4. पूजा सामग्री की व्यवस्था: सभी पूजा सामग्री को सामने रखें।
  5. आरंभिक प्रार्थना: भगवान गणेश का ध्यान और प्रार्थना करें ताकि साधना बिना विघ्न के संपन्न हो।
  6. अभिषेक: पंचामृत और गंगाजल से यक्षिणी की मूर्ति या चित्र का अभिषेक करें।
  7. धूप और दीपक: धूप और दीपक जलाएं।
  8. फूल अर्पण: गुलाब के फूल चेटी यक्षिणी को अर्पित करें।
  9. मंत्र जप: हल्दी की माला से चेटी यक्षिणी मंत्र का ५४० बार जप यानी ५ माला रोज करें।
  • चेटी यक्षिणी मंत्र: “ॐ ह्रीं श्रीं चेटी यक्षिणी कार्य सिद्धिम् देही देही स्वाहा”
  1. आरती: सिंदूर अर्पित करके दीपक से आरती करें।
  2. प्रसाद: मिठाई का प्रसाद अर्पित करें और बाद में स्वयं ग्रहण करें।

साधना की अवधि

चेटी यक्षिणी साधना की अवधि साधक की सुविधानुसार हो सकती है। इसे निम्नलिखित अवधि में किया जा सकता है:

  • 21 दिन
  • 40 दिन
  • 108 दिन

साधना का दिन और समय

  • दिन: चेटी यक्षिणी साधना किसी भी शुभ दिन जैसे पूर्णिमा, अमावस्या, या शुक्रवार को शुरू कर सकते हैं। शुक्रवार को विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
  • समय: साधना का सर्वोत्तम समय रात्रि का होता है। यह समय यक्षिणी साधना के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।

साधना के उपयोग

चेटी यक्षिणी साधना का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है:

  • धन और समृद्धि प्राप्ति: धन, समृद्धि और भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए।
  • वशीकरण: किसी व्यक्ति को अपने वश में करने या प्रभावित करने के लिए।
  • संकटों से मुक्ति: जीवन के विभिन्न संकटों और समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए।
  • आकर्षण शक्ति: दूसरों को आकर्षित करने और प्रभावित करने की शक्ति प्राप्त करने के लिए।
  • स्वास्थ्य लाभ: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए।
  • आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक जागरूकता और उच्च अनुभव प्राप्त करने के लिए।

Lakshmi yakshini mantra vidhi

साधना के दौरान सावधानियाँ

  1. पवित्रता का ध्यान: साधना के दौरान शरीर और मन की पवित्रता बनाए रखें।
  2. आहार: सात्विक आहार का पालन करें और तामसिक भोजन से बचें।
  3. नियमितता: साधना नियमित रूप से करें और बीच में बाधा न आने दें।
  4. श्रद्धा और विश्वास: साधना को पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ करें।
  5. संकल्प: साधना शुरू करने से पहले संकल्प लें और साधना समाप्ति पर इसे पूर्ण करें।
  6. गुरु का मार्गदर्शन: यदि संभव हो तो किसी योग्य गुरु का मार्गदर्शन प्राप्त करें।
  7. साधना स्थल की शुद्धता: साधना स्थल को साफ और पवित्र रखें।
  8. मंत्र उच्चारण की शुद्धता: मंत्र का उच्चारण शुद्ध और स्पष्ट रूप से करें।
  9. ध्यान और एकाग्रता: साधना के दौरान ध्यान और एकाग्रता बनाए रखें।
  10. सकारात्मक मानसिकता: साधना के दौरान सकारात्मक और शांत मानसिकता बनाए रखें।

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चेटी यक्षिणी साधना FAQ

1. चेटी यक्षिणी साधना क्या है?

चेटी यक्षिणी साधना एक प्राचीन और शक्तिशाली साधना है जिसमें साधक यक्षिणी देवी की आराधना करता है। इस साधना का उद्देश्य साधक को धन, समृद्धि, आकर्षण शक्ति और विभिन्न सिद्धियां प्राप्त करना है।

2. चेटी यक्षिणी कौन हैं?

चेटी यक्षिणी एक दिव्य शक्ति हैं जो साधक को आशीर्वाद देती हैं और उसकी इच्छाओं को पूर्ण करती हैं। यक्षिणी देवी का प्रमुख कार्य साधक की सभी मनोकामनाओं को पूरा करना और उसे समृद्धि प्रदान करना है।

3. चेटी यक्षिणी साधना के प्रमुख लाभ क्या हैं?

चेटी यक्षिणी साधना के अनेक लाभ हैं, जिनमें धन और समृद्धि की प्राप्ति, सभी इच्छाओं की पूर्ति, आकर्षण शक्ति, वशीकरण, संकटों से मुक्ति, स्वास्थ्य लाभ, आध्यात्मिक उन्नति, और शत्रुओं से रक्षा शामिल हैं।

4. चेटी यक्षिणी साधना के लिए क्या सामग्री आवश्यक है?

चेटी यक्षिणी साधना के लिए निम्नलिखित सामग्री आवश्यक है:

  • चेटी यक्षिणी की मूर्ति या चित्र
  • पीले वस्त्र
  • हल्दी की माला
  • गुलाब के फूल
  • धूप और दीपक
  • पंचामृत
  • सिंदूर
  • मिठाई

5. चेटी यक्षिणी साधना कब और कैसे की जाती है?

चेटी यक्षिणी साधना किसी भी शुभ दिन जैसे पूर्णिमा, अमावस्या, या शुक्रवार को की जा सकती है। साधना का सर्वोत्तम समय रात्रि का होता है, विशेषकर मध्यरात्रि में। साधना विधि में मूर्ति या चित्र स्थापना, अभिषेक, धूप-दीप जलाना, फूल अर्पण, मंत्र जप, आरती और प्रसाद अर्पण शामिल हैं।

6. चेटी यक्षिणी साधना कितने दिनों की होती है?

चेटी यक्षिणी साधना की अवधि साधक की सुविधानुसार हो सकती है। इसे 21 दिन, 40 दिन, या 108 दिन तक किया जा सकता है। साधना की अवधि के दौरान नियमितता और अनुशासन बनाए रखना आवश्यक है।

7. चेटी यक्षिणी साधना का उपयोग किसके लिए किया जा सकता है?

चेटी यक्षिणी साधना का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है जैसे धन और समृद्धि प्राप्ति, वशीकरण, संकटों से मुक्ति, आकर्षण शक्ति प्राप्त करना, स्वास्थ्य लाभ, और आध्यात्मिक उन्नति।

8. साधना के दौरान कौन-कौन सी सावधानियाँ बरतनी चाहिए?

साधना के दौरान निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी चाहिए:

  • शरीर और मन की पवित्रता बनाए रखें।
  • सात्विक आहार का पालन करें।
  • साधना नियमित रूप से करें और बीच में बाधा न आने दें।
  • साधना को पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ करें।
  • साधना स्थल को साफ और पवित्र रखें।
  • मंत्र का उच्चारण शुद्ध और स्पष्ट रूप से करें।
  • ध्यान और एकाग्रता बनाए रखें।
  • सकारात्मक और शांत मानसिकता बनाए रखें।

9. क्या चेटी यक्षिणी साधना में किसी गुरु का मार्गदर्शन आवश्यक है?

यदि संभव हो तो किसी योग्य गुरु का मार्गदर्शन प्राप्त करना लाभकारी होता है। गुरु के मार्गदर्शन से साधना अधिक प्रभावशाली और सफल हो सकती है।

10. चेटी यक्षिणी साधना में कौन-कौन से मंत्र का उपयोग किया जाता है?

चेटी यक्षिणी साधना में निम्नलिखित मंत्र का उपयोग किया जाता है:

  • मंत्र: “ॐ ह्रीं श्रीं चेटी यक्षिणी कार्य सिद्धिम् देही देही स्वाहा”

11. साधना के दौरान क्या सावधानी रखनी चाहिए?

साधना के दौरान शारीरिक और मानसिक स्वच्छता बनाए रखें, साधना का समय नियमित रखें, ध्यान और एकाग्रता बनाए रखें, और सकारात्मक मानसिकता बनाए रखें।

12. साधना के बाद क्या करना चाहिए?

साधना के बाद यक्षिणी देवी की आरती करें, प्रसाद वितरित करें और साधना का संकल्प पूर्ण करें। साधना के बाद प्राप्त अनुभवों और सिद्धियों को दैनिक जीवन में सकारात्मक उपयोग में लाने का प्रयास करें।

13. साधना के लिए किस प्रकार का आहार लेना चाहिए?

साधना के दौरान सात्विक आहार का पालन करें और तामसिक भोजन से बचें। शुद्ध और पौष्टिक भोजन का सेवन करें जिससे शारीरिक और मानसिक ऊर्जा बनी रहे।

14. साधना के दौरान क्या वर्जित है?

साधना के दौरान नकारात्मक विचारों, तामसिक भोजन, अनुचित आचरण, और शारीरिक अस्वच्छता से बचें। साधना को पूर्ण पवित्रता और अनुशासन के साथ करें।

15. साधना की सफलता के लिए क्या आवश्यक है?

साधना की सफलता के लिए पूर्ण श्रद्धा, विश्वास, नियमितता, अनुशासन, और सकारात्मक मानसिकता आवश्यक हैं। साधना को विधिपूर्वक और नियमों का पालन करते हुए करें।

16. चेटी यक्षिणी साधना से क्या-क्या सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं?

चेटी यक्षिणी साधना से धन-संपत्ति, वशीकरण शक्ति, आकर्षण शक्ति, संकटों से मुक्ति, स्वास्थ्य लाभ, आध्यात्मिक जागरूकता, और शत्रुओं से रक्षा जैसी सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं।

17. क्या चेटी यक्षिणी साधना से सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं?

हाँ, चेटी यक्षिणी साधना से साधक की सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं यदि वह साधना को विधिपूर्वक और श्रद्धापूर्वक करता है।

18. साधना के दौरान मंत्र जप कैसे करें?

साधना के दौरान हल्दी की माला से चेटी यक्षिणी मंत्र का 108 बार जप करें। मंत्र जप करते समय ध्यान और एकाग्रता बनाए रखें।

19. क्या चेटी यक्षिणी साधना से शत्रुओं से रक्षा हो सकती है?

हाँ, चेटी यक्षिणी साधना से साधक के शत्रु उससे दूर रहते हैं और उसे कोई हानि नहीं पहुंचा सकते। साधना शत्रुओं से रक्षा करने में सहायक होती है।

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Maha Mrtyunjaya Mantra Sadhana – How to perform?

महामृत्युंजय साधना – अकस्मात हादसों से सुरक्षा

महामृत्युंजय साधना एक अत्यंत शक्तिशाली और पवित्र साधना है जो भगवान शिव को समर्पित है। यह साधना जीवन की विभिन्न समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए की जाती है, विशेषकर स्वास्थ्य, दीर्घायु और कल्याण के लिए। इस साधना के मुख्य रूप से भगवान शिव के महामृत्युंजय मंत्र का जप किया जाता है:

मंत्र

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥

OM TRYAMBAKAMM YAJAAMAHE SUGANDHIMM PUSHTHIVARDHANAMM URVAARUKAMIV BANDHANAANMRUTYORMUKSHIYA MAAMRUTAATT

साधना का उद्देश्य

महामृत्युंजय साधना का उद्देश्य मृत्युभय, बीमारियों, और जीवन की विभिन्न समस्याओं से मुक्ति पाना है। इसे ‘मृत्यु को जीतने वाला’ भी कहा जाता है। यह साधना अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली मानी जाती है और इसे करने वाले साधक को भगवान शिव की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।

साधना की अवधि और दिन

महामृत्युंजय साधना की अवधि और दिन निम्नलिखित हैं:

  1. अवधि: यह साधना 21 दिनों, 40 दिनों, या 108 दिनों तक की जा सकती है, साधक की श्रद्धा और समय के अनुसार।
  2. दिन: यह साधना सोमवार को प्रारंभ करना अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि सोमवार भगवान शिव का दिन है। इसके अतिरिक्त, शिवरात्रि के दिन भी यह साधना प्रारंभ की जा सकती है।

महामृत्युंजय साधना सामग्री

  1. भगवान शिव की मूर्ति या चित्र: शिवलिंग या भगवान शिव की मूर्ति या चित्र आवश्यक है।
  2. अष्टगंध: भगवान शिव का अभिषेक करने के लिए अष्टगंध का उपयोग किया जाता है।
  3. बिल्वपत्र: भगवान शिव को अर्पित करने के लिए बिल्वपत्र आवश्यक है।
  4. धूप: पूजा के दौरान धूप जलाना आवश्यक है।
  5. दीपक: एक शुद्ध घी या तेल का दीपक आवश्यक है।
  6. फूल: भगवान शिव को अर्पित करने के लिए ताजे फूलों का उपयोग करें।
  7. पंचामृत: अभिषेक के लिए पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर) तैयार रखें।
  8. गंगाजल: अभिषेक और शुद्धिकरण के लिए गंगाजल आवश्यक है।
  9. रुद्राक्ष माला: मंत्र जप के लिए रुद्राक्ष माला का उपयोग करें।
  10. कपूर: आरती के लिए कपूर आवश्यक है।
  11. शहद: पंचामृत में शहद शामिल करें।
  12. दूध: अभिषेक के लिए ताजे दूध का उपयोग करें।
  13. दही: पंचामृत में दही शामिल करें।
  14. घी: पंचामृत में घी शामिल करें।
  15. शक्कर: पंचामृत में शक्कर शामिल करें।
  16. चंदन: अभिषेक के लिए चंदन आवश्यक है।
  17. तांबे का लोटा: अभिषेक के लिए तांबे का लोटा आवश्यक है।
  18. पुष्पांजलि: भगवान शिव को अर्पित करने के लिए पुष्पांजलि तैयार रखें।
  19. भस्म: भगवान शिव को भस्म अर्पित करें।
  20. जल पात्र: जल अर्पित करने के लिए जल पात्र तैयार रखें।

साधना के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें

  1. स्थान की शुद्धि: साधना स्थल को साफ और पवित्र रखें।
  2. स्वयं की शुद्धि: साधना से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  3. नियमितता: साधना प्रतिदिन एक ही समय पर करें।
  4. ध्यान और एकाग्रता: साधना के दौरान ध्यान और एकाग्रता बनाए रखें।
  5. सात्विक आहार: साधना के दौरान सात्विक आहार का सेवन करें।

महामृत्युंजय साधना सामग्री और विधि के साथ साधना करना भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। इस साधना से साधक को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं।

महामृत्युंजय साधना के लाभ

  1. मृत्यु भय से मुक्ति: यह साधना व्यक्ति को मृत्यु भय से मुक्त करती है।
  2. बीमारियों से रक्षा: साधक को विभिन्न बीमारियों से सुरक्षा मिलती है।
  3. आयु वृद्धि: साधक की आयु लंबी होती है।
  4. स्वास्थ्य लाभ: शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं।
  5. आध्यात्मिक विकास: साधक का आध्यात्मिक विकास होता है।
  6. नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा: साधक नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षित रहता है।
  7. मनोबल में वृद्धि: साधक का मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ता है।
  8. शांति और संतोष: मन में शांति और संतोष की भावना आती है।
  9. संकटों से मुक्ति: जीवन के विभिन्न संकटों से मुक्ति मिलती है।
  10. भगवान शिव की कृपा: साधक को भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
  11. भयमुक्त जीवन: साधक का जीवन भयमुक्त होता है।
  12. कर्मों का शुद्धिकरण: साधक के बुरे कर्मों का शुद्धिकरण होता है।
  13. विपत्तियों का नाश: जीवन की विपत्तियाँ और परेशानियाँ नष्ट होती हैं।
  14. समृद्धि और सम्पन्नता: साधक के जीवन में समृद्धि और सम्पन्नता आती है।
  15. मानसिक स्थिरता: मानसिक स्थिरता और दृढ़ता प्राप्त होती है।
  16. सकारात्मक ऊर्जा: जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  17. परिवार की रक्षा: साधक के परिवार को भी सुरक्षा मिलती है।
  18. धार्मिक जागरूकता: धार्मिक और आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ती है।
  19. कर्म सुधार: साधक के कर्मों में सुधार आता है।
  20. सर्वांगीण विकास: साधक का सर्वांगीण विकास होता है।

साधना के उपयोग

  1. स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ: यदि कोई गंभीर बीमारियों से ग्रसित है, तो यह साधना उसे राहत देती है।
  2. मनोवैज्ञानिक समस्याएँ: मानसिक शांति और स्थिरता के लिए भी इस साधना का उपयोग किया जाता है।
  3. आयु वृद्धि: जो लोग दीर्घायु की कामना करते हैं, वे इस साधना का पालन कर सकते हैं।
  4. जीवन में शांति: जीवन की विभिन्न समस्याओं और कठिनाइयों से निपटने के लिए भी इस साधना का उपयोग किया जा सकता है।
  5. परिवार की सुरक्षा: परिवार की सुरक्षा और कल्याण के लिए भी इस साधना का पालन किया जाता है।

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साधना के लिए सावधानियाँ

  1. पवित्रता: साधना के समय शारीरिक और मानसिक पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए।
  2. संकल्प: साधना आरंभ करने से पहले दृढ़ संकल्प लेना चाहिए।
  3. नियमितता: साधना नियमित रूप से, बिना किसी विघ्न के करनी चाहिए।
  4. समय: प्रतिदिन एक ही समय पर साधना करनी चाहिए।
  5. आहार: सात्विक आहार का पालन करना चाहिए और तामसिक भोजन से बचना चाहिए।
  6. ध्यान और ध्यानावस्था: साधना के दौरान ध्यान और ध्यानावस्था में रहना चाहिए।
  7. व्रत: साधना के दौरान व्रत रखना अत्यंत लाभकारी होता है।
  8. शांति और एकाग्रता: साधना शांतिपूर्ण और एकाग्रचित्त मन से करनी चाहिए।
  9. मंत्र उच्चारण: मंत्र का उच्चारण शुद्ध और स्पष्ट होना चाहिए।
  10. स्थान: साधना का स्थान स्वच्छ और पवित्र होना चाहिए।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. महामृत्युंजय साधना क्या है?

महामृत्युंजय साधना भगवान शिव की एक विशेष साधना है, जिसमें महामृत्युंजय मंत्र का जप किया जाता है। इसका उद्देश्य मृत्यु भय, बीमारियों, और जीवन की विभिन्न समस्याओं से मुक्ति पाना है।

2. महामृत्युंजय मंत्र क्या है?

महामृत्युंजय मंत्र इस प्रकार है:

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥

3. महामृत्युंजय साधना किस दिन शुरू करनी चाहिए?

महामृत्युंजय साधना को सोमवार के दिन शुरू करना सबसे शुभ माना जाता है, क्योंकि यह भगवान शिव का दिन होता है। शिवरात्रि का दिन भी इस साधना को शुरू करने के लिए बहुत शुभ होता है।

4. महामृत्युंजय साधना की अवधि कितनी होनी चाहिए?

साधक अपनी सुविधानुसार 21 दिन, 40 दिन, या 108 दिनों की साधना कर सकते हैं।

5. महामृत्युंजय साधना के लिए कौन-कौन सी सामग्री आवश्यक है?

महामृत्युंजय साधना के लिए भगवान शिव की मूर्ति या चित्र, अष्टगंध, बिल्वपत्र, धूप, दीपक, फूल, पंचामृत, गंगाजल, रुद्राक्ष माला, कपूर, शहद, दूध, दही, घी, शक्कर, चंदन, तांबे का लोटा, पुष्पांजलि, भस्म, और जल पात्र आवश्यक हैं।

6. महामृत्युंजय साधना के लाभ क्या हैं?

महामृत्युंजय साधना के कई लाभ हैं, जैसे मृत्यु भय से मुक्ति, बीमारियों से रक्षा, आयु वृद्धि, स्वास्थ्य लाभ, आध्यात्मिक विकास, नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा, मनोबल में वृद्धि, शांति और संतोष, संकटों से मुक्ति, भगवान शिव की कृपा, भयमुक्त जीवन, कर्मों का शुद्धिकरण, विपत्तियों का नाश, समृद्धि और सम्पन्नता, मानसिक स्थिरता, सकारात्मक ऊर्जा, परिवार की रक्षा, धार्मिक जागरूकता, कर्म सुधार, और सर्वांगीण विकास।

7. क्या महामृत्युंजय साधना के दौरान कोई विशेष आहार लेना चाहिए?

साधना के दौरान सात्विक आहार का सेवन करना चाहिए और तामसिक भोजन से बचना चाहिए।

8. महामृत्युंजय साधना कैसे की जाती है?

साधना के लिए भगवान शिव की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर पंचामृत और गंगाजल से अभिषेक करें, बिल्वपत्र अर्पित करें, धूप और दीपक जलाएं, रुद्राक्ष माला से महामृत्युंजय मंत्र का जप करें, ताजे फूल अर्पित करें, और कपूर जलाकर आरती करें।

9. साधना के दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

साधना के दौरान शारीरिक और मानसिक पवित्रता बनाए रखें, नियमित रूप से एक ही समय पर साधना करें, ध्यान और एकाग्रता बनाए रखें, और साधना स्थल को साफ और पवित्र रखें।

10. क्या महामृत्युंजय साधना के लिए कोई विशेष नियम हैं?

हाँ, साधना के दौरान पवित्रता, संकल्प, नियमितता, समय का पालन, सात्विक आहार, ध्यान और ध्यानावस्था, व्रत, शांति और एकाग्रता, मंत्र उच्चारण की शुद्धता, और साधना स्थल की पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए।

11. क्या महामृत्युंजय साधना को कोई भी कर सकता है?

हाँ, कोई भी व्यक्ति श्रद्धा और विश्वास के साथ इस साधना को कर सकता है।

12. क्या साधना के दौरान व्रत रखना आवश्यक है?

व्रत रखना लाभकारी होता है, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है। साधक अपनी शारीरिक क्षमता और सुविधा के अनुसार व्रत रख सकते हैं।

13. महामृत्युंजय साधना कितनी बार करनी चाहिए?

साधना की अवधि पूरी होने के बाद भी इसे नियमित रूप से करना लाभकारी होता है। साधक अपनी सुविधा के अनुसार इसे नियमित रूप से कर सकते हैं।

14. क्या महामृत्युंजय साधना से सभी समस्याओं का समाधान हो सकता है?

महामृत्युंजय साधना जीवन की विभिन्न समस्याओं को दूर करने में सहायक होती है, लेकिन इसका पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए श्रद्धा, विश्वास, और नियमितता आवश्यक है।

15. साधना के दौरान मंत्र का उच्चारण कैसे करना चाहिए?

मंत्र का उच्चारण शुद्ध, स्पष्ट और एकाग्रचित्त मन से करना चाहिए। उच्चारण में त्रुटि से बचने के लिए मंत्र का सही ढंग से अभ्यास करें।

16. क्या महामृत्युंजय साधना के लिए गुरु की आवश्यकता होती है?

गुरु का मार्गदर्शन सदैव लाभकारी होता है, लेकिन यदि गुरु उपलब्ध नहीं हैं, तो साधक स्वयं भी इस साधना को कर सकते हैं।

17. साधना के दौरान मन को एकाग्र कैसे रखें?

साधना के दौरान ध्यान और प्राणायाम का अभ्यास करें। मन को एकाग्र रखने के लिए शांत वातावरण में साधना करें।

18. साधना के लिए सबसे अच्छा समय कौन सा होता है?

प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) साधना के लिए सबसे शुभ समय माना जाता है।

Shiva mantra sadhana for family peace

Shiva mantra sadhana भगवान शिव की आराधना और उपासना का एक पवित्र मार्ग है। इसे करने से साधक को आत्मिक शांति, मानसिक स्थिरता, और भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होती है। शिव साधना को सही तरीके से करने से भगवान शिव की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।

शिव साधना के लिए सामग्री

  1. सफेद वस्त्र
  2. सफेद आसन
  3. भगवान शिव की प्रतिमा या चित्र
  4. बेल पत्र, धतूरा, और शमी के पत्ते
  5. कपूर, घी, और दीपक
  6. चावल, हल्दी, कुमकुम, अबीर, गुलाल
  7. रुद्राक्ष माला
  8. मिठाई, फल, और पंचामृत

साधना का समय

  • शुभ मुहूर्त में, जैसे महाशिवरात्रि, सोमवार, या पूर्णिमा।
  • ब्रह्म मुहूर्त (प्रातः काल) उत्तम माना जाता है।

लाभ

  1. आत्मिक शांति: शिव साधना से आत्मिक शांति प्राप्त होती है।
  2. मानसिक स्थिरता: मन की स्थिरता और मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है।
  3. भौतिक सुख: भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होती है।
  4. स्वास्थ्य लाभ: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  5. धन प्राप्ति: आर्थिक स्थिति में सुधार और धन की प्राप्ति होती है।
  6. संकट निवारण: जीवन के विभिन्न संकटों से मुक्ति मिलती है।
  7. शत्रु नाश: शत्रुओं और विरोधियों से सुरक्षा मिलती है।
  8. भय निवारण: भय और चिंता से मुक्ति मिलती है।
  9. कार्य सिद्धि: सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
  10. समृद्धि: घर में समृद्धि और खुशहाली आती है।
  11. आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक उन्नति और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
  12. प्रसन्नता: जीवन में प्रसन्नता और संतोष प्राप्त होता है।
  13. संतान सुख: संतान प्राप्ति और संतान सुख की प्राप्ति होती है।
  14. सद्गुणों का विकास: जीवन में सद्गुणों का विकास होता है।
  15. दीर्घायु: लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  16. भाग्यवृद्धि: भाग्य में वृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
  17. कर्म में उन्नति: कार्यक्षेत्र में उन्नति और प्रगति होती है।
  18. सकारात्मक ऊर्जा: घर में सकारात्मक ऊर्जा और शुभता का वास होता है।
  19. वास्तु दोष निवारण: घर के वास्तु दोष समाप्त होते हैं।
  20. मनोकामना पूर्ति: सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

साधना की अवधि

शिव साधना की अवधि साधक की श्रद्धा और आवश्यकतानुसार भिन्न-भिन्न हो सकती है। सामान्यतः 21 दिनों से लेकर 40 दिनों तक की साधना अवधि उत्तम मानी जाती है। कुछ साधक इसे अधिक दिनों तक भी कर सकते हैं।

साधना का दिन

शिव साधना के लिए सोमवार का दिन विशेष शुभ माना जाता है। इसके अलावा महाशिवरात्रि और पूर्णिमा के दिन भी इस साधना के लिए श्रेष्ठ माने जाते हैं।

उपयोग

  1. आत्मिक शांति: आत्मिक शांति और संतोष के लिए।
  2. मानसिक स्थिरता: मानसिक स्थिरता और तनाव मुक्त जीवन के लिए।
  3. भौतिक सुख: भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए।
  4. स्वास्थ्य लाभ: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए।
  5. धन प्राप्ति: आर्थिक स्थिति में सुधार और धन की प्राप्ति के लिए।
  6. संकट निवारण: जीवन के विभिन्न संकटों से मुक्ति के लिए।
  7. शत्रु नाश: शत्रुओं और विरोधियों से सुरक्षा के लिए।
  8. भय निवारण: भय और चिंता से मुक्ति के लिए।
  9. कार्य सिद्धि: सभी कार्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए।
  10. समृद्धि: घर में समृद्धि और खुशहाली लाने के लिए।
  11. आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक उन्नति और आत्मज्ञान के लिए।
  12. प्रसन्नता: जीवन में प्रसन्नता और संतोष प्राप्त करने के लिए।
  13. संतान सुख: संतान प्राप्ति और संतान सुख के लिए।
  14. सद्गुणों का विकास: जीवन में सद्गुणों के विकास के लिए।
  15. दीर्घायु: लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए।
  16. भाग्यवृद्धि: भाग्य में वृद्धि और सौभाग्य प्राप्त करने के लिए।
  17. कर्म में उन्नति: कार्यक्षेत्र में उन्नति और प्रगति के लिए।
  18. सकारात्मक ऊर्जा: घर में सकारात्मक ऊर्जा और शुभता लाने के लिए।
  19. वास्तु दोष निवारण: घर के वास्तु दोष समाप्त करने के लिए।
  20. मनोकामना पूर्ति: सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए।

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शिव साधना में सावधानियाँ

  1. शुद्धता: साधना के समय मन और शरीर की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
  2. साधना स्थल: शुद्ध और शांत स्थान पर ही साधना करें।
  3. वस्त्र: साधना के समय स्वच्छ और साधना के लिए उपयुक्त वस्त्र धारण करें।
  4. भोजन: साधना के दौरान सात्विक भोजन करें और तामसिक भोजन से बचें।
  5. ध्यान: साधना के समय ध्यान और एकाग्रता बनाए रखें।
  6. समय: नियमित समय पर ही साधना करें और साधना का समय न बदलें।
  7. नियम पालन: साधना के सभी नियमों और विधियों का पालन करें।
  8. आस्था और विश्वास: साधना के प्रति पूर्ण आस्था और विश्वास बनाए रखें।
  9. सकारात्मक सोच: साधना के दौरान और साधना के बाद सकारात्मक सोच बनाए रखें।
  10. गुरु का मार्गदर्शन: शिव साधना गुरु के मार्गदर्शन में ही करें या शिव को गुरु मानकर करे।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. शिव साधना क्या है?
शिव साधना भगवान शिव की आराधना और उपासना का एक पवित्र मार्ग है, जिससे आत्मिक शांति, मानसिक स्थिरता, और भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होती है।

2. शिव साधना कब करनी चाहिए?
शिव साधना का सबसे शुभ समय सोमवार का दिन, महाशिवरात्रि, और पूर्णिमा का दिन होता है। ब्रह्म मुहूर्त (प्रातः काल) भी उत्तम माना जाता है।

3. शिव साधना के लिए कौन-कौन सी सामग्री की आवश्यकता होती है?
सफेद वस्त्र, सफेद आसन, भगवान शिव की प्रतिमा या चित्र, बेल पत्र, धतूरा, शमी के पत्ते, कपूर, घी, दीपक, चावल, हल्दी, कुमकुम, अबीर, गुलाल, रुद्राक्ष माला, मिठाई, फल, और पंचामृत।

4. शिव साधना कैसे की जाती है?
शुद्ध और शांत स्थान पर सफेद वस्त्र धारण कर, भगवान शिव की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाकर, फूल, कपूर और घी से आरती करें। रुद्राक्ष माला से “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें और पंचामृत अर्पित करें।

5. शिव साधना के लिए कौन सा मंत्र जाप करना चाहिए?
“ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करना चाहिए।

6. शिव साधना के लिए कौन सा समय सबसे अच्छा है?
शिव साधना के लिए सोमवार का दिन और ब्रह्म मुहूर्त (प्रातः काल) सबसे शुभ माने जाते हैं।

7. क्या शिव साधना में कोई विशेष नियम हैं?
हाँ, शिव साधना में शुद्धता, नियमितता, और पूर्ण आस्था का पालन आवश्यक है। साधना के दौरान शुद्ध वस्त्र धारण करना, सात्विक भोजन करना और सभी विधियों का सही से पालन करना चाहिए।

8. शिव साधना के दौरान किन सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए?
शुद्धता, ध्यान, नियमितता, और आस्था का विशेष ध्यान रखना चाहिए। साधना शुद्ध और शांत स्थान पर ही करनी चाहिए और सभी नियमों का पालन करना चाहिए।

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कनकधारा लक्ष्मी साधना एक विशेष साधना है जो देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए की जाती है। यह साधना विशेष रूप से धन, संपत्ति, और समृद्धि की प्राप्ति के लिए जानी जाती है। “कनकधारा” का अर्थ है “सोने की धारा”, और इस साधना के माध्यम से साधक देवी लक्ष्मी की कृपा से धन-धान्य से परिपूर्ण होता है।

कनकधारा लक्ष्मी साधना के लिए सामग्री

  1. पीले वस्त्र
  2. पीला आसन
  3. देवी लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र
  4. पीले फूल (गुलाब, गेंदा)
  5. कपूर, घी, और दीपक
  6. चावल, हल्दी, कुमकुम, अबीर, गुलाल
  7. माला (कमल गट्टे की)
  8. मिठाई, फल, और पंचामृत

साधना का समय

  • शुभ मुहूर्त में, जैसे दीपावली, अक्षय तृतीया, शुक्रवार, या पूर्णिमा।
  • प्रदोष काल (संध्या समय) उत्तम माना जाता है।

साधना के लाभ

  1. धन की प्राप्ति: साधना से साधक को अपार धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है।
  2. समृद्धि: घर में समृद्धि और खुशहाली आती है।
  3. आर्थिक स्थिरता: आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और धन की कमी दूर होती है।
  4. व्यवसाय में सफलता: व्यापार और व्यवसाय में सफलता प्राप्त होती है।
  5. ऋण मुक्ति: कर्ज और ऋण से मुक्ति मिलती है।
  6. सुख-समृद्धि: परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
  7. वास्तु दोष निवारण: घर के वास्तु दोष समाप्त होते हैं।
  8. भौतिक सुख: भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होती है।
  9. धन-संचय: धन-संचय और निवेश में सफलता मिलती है।
  10. आर्थिक उन्नति: नौकरी और कैरियर में आर्थिक उन्नति होती है।
  11. समाज में सम्मान: समाज में प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त होता है।
  12. सकारात्मक ऊर्जा: घर में सकारात्मक ऊर्जा और शुभता का वास होता है।
  13. मन की शांति: मन की शांति और संतोष प्राप्त होता है।
  14. स्वास्थ्य लाभ: मानसिक तनाव और शारीरिक रोगों से मुक्ति मिलती है।
  15. कर्म में उन्नति: कार्यक्षेत्र में उन्नति और प्रगति होती है।
  16. संकल्प की पूर्ति: साधक के शुभ संकल्प और इच्छाओं की पूर्ति होती है।
  17. आध्यात्मिक उन्नति: साधक की आध्यात्मिक उन्नति और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
  18. शत्रुओं से रक्षा: शत्रुओं और विरोधियों से सुरक्षा मिलती है।
  19. भाग्यवृद्धि: भाग्य में वृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
  20. दीर्घायु और स्वास्थ्य: लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

अवधि

कनकधारा लक्ष्मी साधना की अवधि साधक की श्रद्धा और आवश्यकतानुसार भिन्न-भिन्न हो सकती है। सामान्यतः 11 दिनों से लेकर 21 दिनों तक की साधना अवधि उत्तम मानी जाती है। कुछ साधक इसे अधिक दिनों तक भी कर सकते हैं, जैसे 40 दिनों तक।

साधना का दिन

कनकधारा लक्ष्मी साधना के लिए शुक्रवार का दिन विशेष शुभ माना जाता है। इसके अलावा दीपावली, अक्षय तृतीया, और पूर्णिमा के दिन भी इस साधना के लिए श्रेष्ठ माने जाते हैं।

उपयोग

  1. धन प्राप्ति: धन, संपत्ति, और समृद्धि के लिए।
  2. ऋण मुक्ति: कर्ज और ऋण से मुक्ति के लिए।
  3. व्यवसाय में उन्नति: व्यापार और व्यवसाय में सफलता के लिए।
  4. घर में समृद्धि: घर में सुख-शांति और समृद्धि लाने के लिए।
  5. वास्तु दोष निवारण: घर के वास्तु दोष समाप्त करने के लिए।
  6. भौतिक सुख: भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए।
  7. आर्थिक स्थिरता: आर्थिक स्थिरता और धन-संचय के लिए।
  8. कैरियर में उन्नति: नौकरी और कैरियर में आर्थिक उन्नति के लिए।
  9. सकारात्मक ऊर्जा: घर में सकारात्मक ऊर्जा और शुभता लाने के लिए।
  10. स्वास्थ्य लाभ: मानसिक तनाव और शारीरिक रोगों से मुक्ति के लिए।
  11. संकल्प की पूर्ति: शुभ संकल्प और इच्छाओं की पूर्ति के लिए।
  12. आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक उन्नति और आत्मज्ञान के लिए।
  13. भाग्यवृद्धि: भाग्य में वृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए।
  14. दीर्घायु और स्वास्थ्य: लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए।
  15. समाज में सम्मान: समाज में प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त करने के लिए।
  16. शत्रुओं से रक्षा: शत्रुओं और विरोधियों से सुरक्षा के लिए।

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कनकधारा लक्ष्मी साधना में सावधानियाँ

  1. शुद्धता: साधना के समय मन और शरीर की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
  2. साधना स्थल: शुद्ध और शांत स्थान पर ही साधना करें।
  3. वस्त्र: साधना के समय स्वच्छ और साधना के लिए उपयुक्त वस्त्र धारण करें।
  4. भोजन: साधना के दौरान सात्विक भोजन करें और तामसिक भोजन से बचें।
  5. ध्यान: साधना के समय ध्यान और एकाग्रता बनाए रखें।
  6. समय: नियमित समय पर ही साधना करें और साधना का समय न बदलें।
  7. नियम पालन: साधना के सभी नियमों और विधियों का पालन करें।
  8. आस्था और विश्वास: साधना के प्रति पूर्ण आस्था और विश्वास बनाए रखें।
  9. सकारात्मक सोच: साधना के दौरान और साधना के बाद सकारात्मक सोच बनाए रखें।
  10. गुरु का मार्गदर्शन: कनकधारा लक्ष्मी साधना गुरु के मार्गदर्शन में ही करें।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. कनकधारा लक्ष्मी साधना क्या है?
कनकधारा लक्ष्मी साधना देवी लक्ष्मी की एक विशेष साधना है, जिसे विशेष रूप से धन, संपत्ति, और समृद्धि की प्राप्ति के लिए किया जाता है।

2. कनकधारा लक्ष्मी साधना कब करनी चाहिए?
इस साधना को करने का सबसे शुभ समय शुक्रवार, दीपावली, अक्षय तृतीया, और पूर्णिमा का दिन होता है। प्रदोष काल (संध्या समय) भी उत्तम माना जाता है।

3. कनकधारा लक्ष्मी साधना के लिए कौन-कौन सी सामग्री की आवश्यकता होती है?
पीले वस्त्र, पीला आसन, देवी लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र, पीले फूल (गुलाब, गेंदा), कपूर, घी, दीपक, चावल, हल्दी, कुमकुम, अबीर, गुलाल, कमल गट्टे की माला, मिठाई, फल, और पंचामृत।

4. कनकधारा लक्ष्मी साधना के क्या लाभ हैं?
धन की प्राप्ति, आर्थिक स्थिरता, व्यवसाय में सफलता, ऋण मुक्ति, सुख-समृद्धि, वास्तु दोष निवारण, भौतिक सुख, धन-संचय, कैरियर में उन्नति, समाज में सम्मान, सकारात्मक ऊर्जा, मानसिक शांति, स्वास्थ्य लाभ, संकल्प की पूर्ति, आध्यात्मिक उन्नति, शत्रुओं से रक्षा, भाग्यवृद्धि, दीर्घायु और स्वास्थ्य।

5. कनकधारा लक्ष्मी साधना कैसे की जाती है?
शुद्ध और शांत स्थान पर पीले वस्त्र धारण कर, देवी लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाकर, फूल, कपूर और घी से आरती करें। कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें और पंचामृत अर्पित करें।

6. कनकधारा लक्ष्मी साधना के लिए कौन सा मंत्र जाप करना चाहिए?
कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। यह स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित है और इसमें देवी लक्ष्मी की स्तुति की गई है।

7. कनकधारा लक्ष्मी साधना के लिए कौन सा समय सबसे अच्छा है?
शुक्रवार और प्रदोष काल (संध्या समय) विशेष रूप से शुभ माने जाते हैं।

अंत में

कनकधारा लक्ष्मी साधना एक अत्यंत प्रभावी और पवित्र साधना है जो साधक को धन, संपत्ति और समृद्धि प्रदान करती है। इस साधना के माध्यम से साधक अपने जीवन में विभिन्न प्रकार के लाभ प्राप्त कर सकता है और सभी प्रकार की आर्थिक समस्याओं का समाधान पा सकता है। सही विधि और सावधानियों के साथ कनकधारा लक्ष्मी साधना करने से साधक को निश्चित रूप से माता लक्ष्मी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।

Saraswati mantra sadhana for wisdom

ये ज्ञान, विद्या, संगीत और कला की देवी माता सरस्वती की उपासना है। यह साधना विद्यार्थियों, कलाकारों, संगीतकारों, और विद्वानों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है। सरस्वती साधना से व्यक्ति को ज्ञान, बुद्धि, और मानसिक शांति प्राप्त होती है।

सरस्वती साधना के लिए निम्नलिखित वस्त्र और सामग्री की आवश्यकता होती है:

  1. सफेद वस्त्र
  2. सफेद आसन
  3. माता सरस्वती की प्रतिमा या चित्र
  4. सफेद फूल, विशेषकर चमेली या मोगरा
  5. कपूर, घी, और दीपक
  6. चावल, हल्दी, कुमकुम, अबीर, गुलाल
  7. माला (स्फटिक की)
  8. पुस्तकें और लेखन सामग्री (कलम, कॉपी)

साधना का समय

  • शुभ मुहूर्त में, जैसे वसंत पंचमी, पूर्णिमा, या गुरुवार के दिन।
  • प्रातःकाल का समय उत्तम माना जाता है।

लाभ

  1. ज्ञान की प्राप्ति: सरस्वती साधना से साधक को उच्च कोटि का ज्ञान और विद्या प्राप्त होती है।
  2. बुद्धि का विकास: यह साधना बुद्धि और तर्कशक्ति में वृद्धि करती है।
  3. विद्यार्थियों के लिए लाभकारी: विद्यार्थियों के लिए यह साधना परीक्षा में सफलता और अच्छे अंक दिलाती है।
  4. कलात्मक विकास: कलाकारों और संगीतकारों के लिए यह साधना कलात्मक विकास और रचनात्मकता में वृद्धि करती है।
  5. स्मरण शक्ति में वृद्धि: सरस्वती साधना से स्मरण शक्ति तेज होती है।
  6. बौद्धिक क्षमता में वृद्धि: यह साधना बौद्धिक क्षमता और मानसिक शक्ति में वृद्धि करती है।
  7. मानसिक शांति: साधक को मानसिक शांति और संतोष प्राप्त होता है।
  8. वाणी में मधुरता: सरस्वती साधना से वाणी में मधुरता और प्रभावशालीता आती है।
  9. लेखन क्षमता में सुधार: लेखकों और कवियों के लिए यह साधना लेखन क्षमता में सुधार करती है।
  10. संस्कार और संस्कृति: यह साधना संस्कार और संस्कृति की रक्षा करती है।
  11. समाज में सम्मान: समाज में प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त होता है।
  12. विद्याध्ययन में रूचि: सरस्वती साधना से विद्याध्ययन में रूचि और उत्साह बढ़ता है।
  13. मन की शुद्धि: मन की शुद्धि और विकारों से मुक्ति मिलती है।
  14. संकल्प की पूर्ति: साधक के शुभ संकल्प और इच्छाओं की पूर्ति होती है।
  15. आत्मज्ञान: साधक को आत्मज्ञान और जीवन की वास्तविकता का बोध होता है।
  16. कर्म में उन्नति: कार्यक्षेत्र में उन्नति और प्रगति होती है।
  17. स्वास्थ्य लाभ: मानसिक तनाव और शारीरिक रोगों से मुक्ति मिलती है।
  18. सकारात्मक सोच: साधक को सकारात्मक सोच और दृष्टिकोण प्राप्त होता है।
  19. आध्यात्मिक उन्नति: साधक की आध्यात्मिक उन्नति और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
  20. शत्रुओं से रक्षा: शत्रुओं और विरोधियों से सुरक्षा मिलती है।

अवधि

सरस्वती साधना की अवधि साधक की श्रद्धा और आवश्यकतानुसार भिन्न-भिन्न हो सकती है। सामान्यतः 7,11,21 दिनों से लेकर 41 दिनों तक की साधना अवधि उत्तम मानी जाती है। कुछ साधक इसे अधिक दिनों तक भी कर सकते हैं, जैसे 108 दिनों तक।

साधना का दिन

सरस्वती साधना के लिए गुरुवार का दिन विशेष शुभ माना जाता है। इसके अलावा वसंत पंचमी और पूर्णिमा के दिन भी इस साधना के लिए श्रेष्ठ माने जाते हैं।

उपयोग

  1. ध्यान और एकाग्रता: सरस्वती साधना से ध्यान और एकाग्रता की शक्ति में वृद्धि होती है।
  2. विद्या प्राप्ति: विद्यार्थियों और विद्वानों के लिए यह साधना विद्या प्राप्ति और अध्ययन में सहायता करती है।
  3. कला और संगीत: कलाकारों और संगीतकारों के लिए यह साधना कला और संगीत में उत्कृष्टता प्रदान करती है।
  4. लेखन और साहित्य: लेखकों और कवियों के लिए यह साधना लेखन और साहित्य में प्रगति करती है।
  5. वाणी और संवाद: वाणी में मधुरता और संवाद में प्रभावशीलता आती है।
  6. धार्मिक अनुष्ठान: यह साधना धार्मिक अनुष्ठानों और त्योहारों में विशेष रूप से उपयोगी होती है।
  7. मंत्र जाप: सरस्वती मंत्रों का जाप करने से मन और शरीर शुद्ध होते हैं।
  8. पूजा अर्चना: देवी सरस्वती की नियमित पूजा अर्चना से साधक का मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ता है।
  9. संस्कार और संस्कृति: यह साधना हमारे संस्कार और संस्कृति की रक्षा करती है।
  10. पारिवारिक एकता: परिवार में एकता और प्रेम बना रहता है।
  11. आध्यात्मिक ज्ञान: साधक को आध्यात्मिक ज्ञान और जीवन की वास्तविकता का बोध होता है।
  12. समाज सेवा: सरस्वती साधना से समाज सेवा के प्रति रुचि और उत्साह बढ़ता है।
  13. शुभ कार्यों की प्रेरणा: साधक को शुभ कार्यों की प्रेरणा और दिशा प्राप्त होती है।
  14. मानसिक शुद्धि: मानसिक शुद्धि और मानसिक विकारों से मुक्ति मिलती है।

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सरस्वती साधना में सावधानियाँ

  1. शुद्धता: साधना के समय मन और शरीर की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
  2. साधना स्थल: शुद्ध और शांत स्थान पर ही साधना करें।
  3. वस्त्र: साधना के समय स्वच्छ और साधना के लिए उपयुक्त वस्त्र धारण करें।
  4. भोजन: साधना के दौरान सात्विक भोजन करें और तामसिक भोजन से बचें।
  5. ध्यान: साधना के समय ध्यान और एकाग्रता बनाए रखें।
  6. समय: नियमित समय पर ही साधना करें और साधना का समय न बदलें।
  7. नियम पालन: साधना के सभी नियमों और विधियों का पालन करें।
  8. आस्था और विश्वास: साधना के प्रति पूर्ण आस्था और विश्वास बनाए रखें।
  9. सकारात्मक सोच: साधना के दौरान और साधना के बाद सकारात्मक सोच बनाए रखें।
  10. गुरु का मार्गदर्शन: सरस्वती साधना गुरु के मार्गदर्शन में ही करें।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. सरस्वती साधना क्या है?
सरस्वती साधना ज्ञान, विद्या, संगीत और कला की देवी माता सरस्वती की उपासना है, जिससे व्यक्ति को ज्ञान, बुद्धि और मानसिक शांति प्राप्त होती है।

2. सरस्वती साधना कब करनी चाहिए?
सरस्वती साधना के लिए शुभ मुहूर्त जैसे वसंत पंचमी, पूर्णिमा, गुरुवार या प्रातःकाल का समय उत्तम माना जाता है।

3. सरस्वती साधना के लिए कौन-कौन सी सामग्री की आवश्यकता होती है?
सफेद वस्त्र, सफेद आसन, माता सरस्वती की प्रतिमा या चित्र, सफेद फूल, कपूर, घी, दीपक, चावल, हल्दी, कुमकुम, अबीर, गुलाल और स्फटिक की माला।

4. सरस्वती साधना के क्या लाभ हैं?
सरस्वती साधना से ज्ञान, बुद्धि, स्मरण शक्ति, मानसिक शांति, कलात्मक विकास, वैदिक विद्या में उन्नति, और वाणी में मधुरता प्राप्त होती है।

5. सरस्वती साधना कैसे की जाती है?
शुद्ध और शांत स्थान पर सफेद वस्त्र धारण कर, माता सरस्वती की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाकर, फूल, कपूर और घी से आरती करें। सरस्वती मंत्रों का जाप करें और पंचामृत अर्पित करें।

6. सरस्वती साधना में कौन सा मंत्र जाप करना चाहिए?
सरस्वती साधना में “ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः” मंत्र का जाप करना चाहिए।

7. सरस्वती साधना के लिए कौन सा समय सबसे अच्छा है?
प्रातःकाल का समय उत्तम होता है। विशेष अवसरों पर जैसे वसंत पंचमी और गुरुवार को साधना करना विशेष फलदायी होता है।

8. क्या सरस्वती साधना में कोई विशेष नियम हैं?
हाँ, सरस्वती साधना में शुद्धता, नियमितता और पूर्ण आस्था का पालन आवश्यक है। साधना के दौरान शुद्ध वस्त्र धारण करना, सात्विक भोजन करना और सभी विधियों का सही से पालन करना चाहिए।

9. सरस्वती साधना के दौरान किन सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए?
शुद्धता, ध्यान, नियमितता और आस्था का विशेष ध्यान रखना चाहिए। साधना शुद्ध और शांत स्थान पर ही करनी चाहिए और सभी नियमों का पालन करना चाहिए।

अंत में

सरस्वती साधना एक प्रभावी और पवित्र साधना है जो साधक को ज्ञान, विद्या, और मानसिक शांति प्रदान करती है। इस साधना के माध्यम से साधक अपने जीवन में विभिन्न प्रकार के लाभ प्राप्त कर सकता है और सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान पा सकता है। सही विधि और सावधानियों के साथ सरस्वती साधना करने से साधक को निश्चित रूप से माता सरस्वती की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।

Lakshmi Mantra Sadhana for Wealth & Prosperity

Mahalakshmi mantra sadhana धन, सुख और समृद्धि प्राप्त करने के लिये की जाती है। लक्ष्मी साधना का मुख्य उद्देश्य जीवन में आर्थिक सम्पन्नता, भौतिक सुख, और मानसिक शांति प्राप्त करना है।

लक्ष्मी साधना करने के लिए निम्नलिखित वस्त्र और सामग्री की आवश्यकता होती है:

  1. लाल वस्त्र
  2. लाल आसन
  3. माता लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र
  4. सफेद कमल या अन्य फूल
  5. कपूर, घी, और दीपक
  6. चावल, हल्दी, कुमकुम, अबीर, गुलाल
  7. माला (रुद्राक्ष या स्फटिक की)
  8. पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर)
  9. लक्ष्मी मंत्रः ॐ श्रीं महालक्ष्मेय श्रीं नमः

साधना का समय

  • शुभ मुहूर्त में, जैसे पूर्णिमा, अमावस्या, दीपावली, या शुक्रवार के दिन।
  • प्रातःकाल या संध्याकाल का समय उत्तम माना जाता है।

लाभ

  1. धन की प्राप्ति: लक्ष्मी साधना से साधक को आर्थिक सम्पन्नता और धन की प्राप्ति होती है।
  2. व्यापार में वृद्धि: व्यापारी अपने व्यापार में वृद्धि और समृद्धि के लिए लक्ष्मी साधना कर सकते हैं।
  3. ऋणमुक्ति: इस साधना से व्यक्ति ऋणों से मुक्त हो सकता है और वित्तीय स्थिति में सुधार होता है।
  4. सुख-समृद्धि: लक्ष्मी साधना से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
  5. वैवाहिक सुख: जिनका वैवाहिक जीवन असंतुलित है, उनके लिए यह साधना लाभकारी है।
  6. सौभाग्य: जीवन में सौभाग्य और शुभ अवसरों की वृद्धि होती है।
  7. स्वास्थ्य लाभ: मानसिक तनाव और शारीरिक रोगों से मुक्ति मिलती है।
  8. मानसिक शांति: साधक को मानसिक शांति और संतोष प्राप्त होता है।
  9. सुखद भविष्य: भविष्य के लिए अच्छी संभावनाएँ और अवसर प्राप्त होते हैं।
  10. वास्तु दोष निवारण: घर में वास्तु दोषों का निवारण होता है।
  11. शत्रुओं से रक्षा: शत्रुओं और विरोधियों से सुरक्षा मिलती है।
  12. कर्मों का फल: अच्छे कर्मों का सकारात्मक फल मिलता है।
  13. भौतिक सुख: जीवन में सभी प्रकार के भौतिक सुख प्राप्त होते हैं।
  14. शुभ संकल्प की पूर्ति: साधक के शुभ संकल्प और इच्छाओं की पूर्ति होती है।
  15. मानवता का विकास: साधक के व्यक्तित्व में सकारात्मक विकास होता है।
  16. कर्म में उन्नति: कार्यक्षेत्र में उन्नति और प्रगति होती है।
  17. समाज में सम्मान: समाज में प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त होता है।
  18. विदेश यात्रा: विदेश यात्रा और उच्च शिक्षा के अवसर प्राप्त होते हैं।
  19. संतान सुख: संतान प्राप्ति और उनकी उन्नति में सहयोग मिलता है।
  20. आध्यात्मिक उन्नति: साधक की आध्यात्मिक उन्नति और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।

उपयोग

  1. ध्यान और एकाग्रता: लक्ष्मी साधना से ध्यान और एकाग्रता की शक्ति में वृद्धि होती है।
  2. धार्मिक अनुष्ठान: यह साधना धार्मिक अनुष्ठानों और त्योहारों में विशेष रूप से उपयोगी होती है।
  3. मंत्र जाप: लक्ष्मी मंत्रों का जाप करने से मन और शरीर शुद्ध होते हैं।
  4. पूजा अर्चना: देवी लक्ष्मी की नियमित पूजा अर्चना से साधक का मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ता है।
  5. संस्कार और संस्कृति: यह साधना हमारे संस्कार और संस्कृति की रक्षा करती है।
  6. पारिवारिक एकता: परिवार में एकता और प्रेम बना रहता है।
  7. आध्यात्मिक ज्ञान: साधक को आध्यात्मिक ज्ञान और जीवन की वास्तविकता का बोध होता है।
  8. समाज सेवा: लक्ष्मी साधना से समाज सेवा के प्रति रुचि और उत्साह बढ़ता है।
  9. शुभ कार्यों की प्रेरणा: साधक को शुभ कार्यों की प्रेरणा और दिशा प्राप्त होती है।
  10. मानसिक शुद्धि: मानसिक शुद्धि और मानसिक विकारों से मुक्ति मिलती है।

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लक्ष्मी साधना में सावधानियाँ

  1. शुद्धता: साधना के समय मन और शरीर की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
  2. साधना स्थल: शुद्ध और शांत स्थान पर ही साधना करें।
  3. वस्त्र: साधना के समय स्वच्छ और साधना के लिए उपयुक्त वस्त्र धारण करें।
  4. भोजन: साधना के दौरान सात्विक भोजन करें और तामसिक भोजन से बचें।
  5. ध्यान: साधना के समय ध्यान और एकाग्रता बनाए रखें।
  6. समय: नियमित समय पर ही साधना करें और साधना का समय न बदलें।
  7. नियम पालन: साधना के सभी नियमों और विधियों का पालन करें।
  8. आस्था और विश्वास: साधना के प्रति पूर्ण आस्था और विश्वास बनाए रखें।
  9. सकारात्मक सोच: साधना के दौरान और साधना के बाद सकारात्मक सोच बनाए रखें।
  10. गुरु का मार्गदर्शन: लक्ष्मी साधना गुरु के मार्गदर्शन में ही करें।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. लक्ष्मी साधना क्या है?
लक्ष्मी साधना धन, सुख और समृद्धि की देवी माता लक्ष्मी की उपासना है, जिससे आर्थिक सम्पन्नता और मानसिक शांति प्राप्त होती है।

2. लक्ष्मी साधना कब करनी चाहिए?
लक्ष्मी साधना के लिए शुभ मुहूर्त, जैसे पूर्णिमा, अमावस्या, दीपावली, या शुक्रवार का दिन श्रेष्ठ माना जाता है। प्रातःकाल या संध्याकाल का समय भी उत्तम है।

3. लक्ष्मी साधना के लिए कौन-कौन सी सामग्री की आवश्यकता होती है?
लक्ष्मी साधना के लिए लाल वस्त्र, लाल आसन, माता लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र, सफेद कमल या अन्य फूल, कपूर, घी, दीपक, चावल, हल्दी, कुमकुम, अबीर, गुलाल, और रुद्राक्ष या स्फटिक की माला आवश्यक हैं।

4. लक्ष्मी साधना के क्या लाभ हैं?
लक्ष्मी साधना से धन की प्राप्ति, व्यापार में वृद्धि, ऋणमुक्ति, सुख-समृद्धि, वैवाहिक सुख, सौभाग्य, स्वास्थ्य लाभ, मानसिक शांति, और शत्रुओं से रक्षा जैसे अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।

5. लक्ष्मी साधना कैसे की जाती है?
लक्ष्मी साधना के लिए शुद्ध और शांत स्थान पर लाल वस्त्र धारण कर, माता लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाकर, फूल, कपूर और घी से आरती करें। लक्ष्मी मंत्रों का जाप करें और पंचामृत अर्पित करें।

6. लक्ष्मी साधना में कौन से मंत्र का जाप करना चाहिए?
लक्ष्मी साधना में “ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” या “श्रीसूक्त” मंत्र का जाप किया जा सकता है।

7. लक्ष्मी साधना के लिए कौन सा समय सबसे अच्छा है?
लक्ष्मी साधना के लिए प्रातःकाल या संध्याकाल का समय सर्वोत्तम होता है। विशेष अवसरों पर जैसे कि दीपावली या शुक्रवार को साधना करना विशेष फलदायी होता है।

8. क्या लक्ष्मी साधना में कोई विशेष नियम हैं?
हाँ, लक्ष्मी साधना में शुद्धता, नियमितता, और पूर्ण आस्था का पालन आवश्यक है। साधना के दौरान शुद्ध वस्त्र धारण करना, सात्विक भोजन करना, और सभी विधियों का सही से पालन करना चाहिए।

अंत में

लक्ष्मी साधना एक प्रभावी और पवित्र साधना है जो साधक को आर्थिक सम्पन्नता, सुख-शांति, और समृद्धि प्रदान करती है। इस साधना के माध्यम से साधक अपने जीवन में विभिन्न प्रकार के लाभ प्राप्त कर सकता है और सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान पा सकता है। सही विधि और सावधानियों के साथ लक्ष्मी साधना करने से साधक को निश्चित रूप से माता लक्ष्मी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।

Lingashtakam Stotra for Lord Shiva Blessing

हर इच्छा को पूरी करने वाली लिंगाष्टक स्त्रोत बहुत ही शक्तिशाली माना गया है। यह आपकी हर इच्छा मनोकामना को पूर्ण करता है, शत्रुओं को दूर कर घर मे सुख समृद्धि बढाता है। इस स्त्रोत का पाठ सोमवार शुरु करके लगातार ४१ दिन तक करना चाहिये।

लिङ्गाष्टकम् स्तोत्रम् संस्कृत

ब्रह्ममुरारि-सुरार्चितलिङ्गम्
निर्मलभासितशोभितलिङ्गम्।
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गम्
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥1॥

देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गम्
कामदहम् करुणाकरलिङ्गम्।
रावणदर्पविनाशनलिङ्गम्
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥2॥

सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गम्
बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम्।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गम्
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥3॥

कनकमहामणिभूषितलिङ्गम्
फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम्।
दक्षसु़यज्ञविनाशनलिङ्गम्
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥4॥

कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गम्
पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम्।
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गम्
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥5॥

देवगणार्चितसेवितलिङ्गम्
भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम्।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गम्
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥6॥

अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गम्
सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम्।
अष्टदर्शनविनाशितलिङ्गम्
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥7॥

सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गम्
सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम्।
परात्परं परमात्मकलिङ्गम्
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥8॥

लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥9॥

Kamakhya sadhana shivir

लिङ्गाष्टकम् स्तोत्रम् हिंदी

स्तोत्रम्

जो लिंग ब्रह्मा, विष्णु और देवताओं द्वारा पूजित है,
जो निर्मल और सुशोभित है।
जो जन्म और मृत्यु के दुखों को नष्ट करता है,
उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ॥1॥

जो देवताओं और श्रेष्ठ ऋषियों द्वारा पूजित है,
जो कामना का दहन करने वाला और करुणा का भण्डार है।
जो रावण के अहंकार को नष्ट करने वाला है,
उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ॥2॥

जो सभी सुगंधित पदार्थों से लेपित है,
जो बुद्धि को बढ़ाने वाला है।
जो सिद्ध, सुर और असुरों द्वारा पूजित है,
उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ॥3॥

जो स्वर्ण और रत्नों से सुशोभित है,
जो नागराज द्वारा घिरा है।
जो दक्ष के यज्ञ का विनाश करने वाला है,
उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ॥4॥

जो कुमकुम और चंदन से लेपित है,
जो कमल के हार से सुशोभित है।
जो संचित पापों का नाश करने वाला है,
उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ॥5॥

जो देवताओं द्वारा पूजा और सेवा किया जाता है,
जो भाव और भक्ति से पूजित है।
जो सूर्य के करोड़ों किरणों के समान प्रदीप्त है,
उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ॥6॥

जो अष्टदल कमल से घिरा है,
जो सभी सृष्टि का कारण है।
जो अष्ट दर्शन का विनाश करने वाला है,
उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ॥7॥

जो देवताओं के गुरु और श्रेष्ठ देवताओं द्वारा पूजित है,
जो सुरवन के पुष्पों से सदा अर्चित है।
जो परात्पर और परमात्मा है,
उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ॥8॥

लिंगाष्टक का यह पुण्य पाठ जो शिव के समक्ष करता है,
वह शिवलोक को प्राप्त करता है और शिव के साथ आनंदित होता है॥9॥

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Shiva Apradh Kshama Strot for sin removing

शिव अपराध क्षमा स्तोत्र भगवान शिव को समर्पित एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है, जिसमें भक्त अपनी भूलों और अपराधों के लिए भगवान शिव से क्षमा याचना करते हैं। कोई भी साधना, पूजा, व्रत करने के पहले इस स्त्रोत का एक पाठ अवश्य करना चाहिये। यह स्तोत्र आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा रचित है और भक्तों को उनकी गलतियों के लिए क्षमा प्राप्त करने का मार्ग प्रदान करता है।

शिव अपराध क्षमा स्तोत्र का पाठ

आदिगुरु शंकराचार्य रचित

अद्वैतामृतवर्षिणं भगवतः अष्टादशायुः स्तोत्रम्।

अतिपापस्य पापस्य दुष्कृतस्य च कर्तुः।
शरणागतवत्सलः शरणागतवात्सल्येन॥

मम वन्द्यश्च सर्वस्मिन्नापि गुणेऽपि दुष्कृतिनम्।
मम जन्मान्तरेऽप्येष क्षमेताशेषकृद्विपाकम्॥

आयुर्देहं धियं चापि लसद्भक्तेर्ददातु मे।
ईशानः सर्वविज्ञोऽपि न मां त्यजतु किञ्चन॥

एष सर्वगतः शम्भुर्मम रक्षां विधातु मे।
शिवनामैकदायानां ह्यपहत्यामयानपि॥

सर्वजापमपि स्तोत्रं शिवेभ्यः परमं महत्।
नान्या गत्या ममाप्येष सत्सङ्गमपरायणः॥

तस्मादपि परं धाम शम्भोः शरणं गतः।
शिवनामैकदायानां ममाभीष्टं करोतु सः॥

महेश्वरं गुरुं नन्दिं शर्वं च त्रिपुरान्तकम्।
कालं कालान्तकं कालकालं च स्मराम्यहम्॥

नन्दिकेश्वरसम्बन्धं परमानन्दकन्दलम्।
नमामि शिवरूपं च वन्दे देवेश्वरीम् अपि॥

नमः शम्भो महेशाय कृत्तिवासाय वन्दे च।
सुरेशं वरदं देवमनुग्राह्यं महेश्वरम्॥

ईश्वरः सर्वलोकानां सच्चिदानन्दविग्रहः।
श्रीकण्ठः पार्वतीनाथः श्रीशम्भुः शंकरः शिवः॥

एतत्संकीर्त्यमानस्य भक्तस्य गुरुशर्मणः।
अपि पापानि यान्त्याशु द्रुतं नाशमुपागताः॥

शिवे रुष्टे गुरुस्त्राता गुरौ रुष्टे न कश्चन।
लब्ध्वा कुलगुरुं सम्यक् त्रातारं न भयङ्करम्॥

वन्देऽहं विश्ववन्द्यं च पाण्ड्यवंशसमुद्भवम्।
शंकरं शंकराचार्यं शास्त्राचार्यं महेश्वरम्॥

शिवप्रोक्तं गुरुं नत्वा गुरुशास्त्रसमुद्भवम्।
नमः शिवाय शान्ताय गुरवे शान्तरूपिणे॥

गुरुशब्दस्य मन्वन्ते पार्वतीवल्लभप्रियः।
त्रिपुरारिर्गुरुस्त्राता जगद्गुरुरविर्भवः॥

गुरुं नत्वा गुरुं भक्त्या नान्यत् श्रेयः परं हि नः।
गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता हि तत्त्वतः॥

शिवे रुष्टे गुरुस्त्राता गुरौ रुष्टे न कश्चन।
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन श्रीशम्भुं शरणं गतः॥

प्रणम्य शिरसा देवं जगद्रक्षाकरं विभुम्।
सर्वव्याधिविनाशं च त्वामहं शरणं गतः॥

शम्भो शङ्करशर्वेश शरण्य शंकराच्युत।
प्रसीद जगतां नाथ प्रसीद परमेश्वर॥

यस्त्वां शरणमित्युक्त्वा त्वामेवानुपलालयेत्।
न तस्य पुनरावृत्तिरिति मे निश्चिता मतिः॥

प्रसीद जगतां नाथ प्रसीद करुणाकर।
प्रसीद देवदेवेश न युक्तं तदन्यथा॥

कृपया परमेशान करुणां कुरु मे विभो।
वरं वा वरदं देव मुक्तिं वा मुक्तिदायिन॥

यत्तु सर्वाणि पापानि ब्रह्महत्या समानि च।
महान्त्यपि सुदुष्कारं दहन्ति शिवनामतः॥

शिवनामैकसङ्कीर्णो यस्तु भक्त्या परायणः।
तस्य पापानि दह्यन्ते यथा काष्ठमिवानले॥

शिवे रुष्टे गुरुस्त्राता गुरौ रुष्टे न कश्चन।
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन शिवनामैकतत्त्वतः॥

सन्ततं सङ्कीर्यमाणं शिवनामैकसंयुतम्।
महापापोऽपि पापानी नयत्याशु शिवालयम्॥

प्रसीद शंकराधीश प्रसीद करुणाकर।
प्रसीद परमेशान तव भृङ्गीरिः परायणः॥

प्रसीद प्रसीद नाथ सर्वत्र तव शम्भो विभो।
प्रसीद जगतां नाथ तव पादाब्जं शरणम्॥

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स्तोत्र के लाभ

  1. अपराधों से मुक्ति: इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्त अपने सभी अपराधों और पापों से मुक्ति पा सकते हैं।
  2. आध्यात्मिक शुद्धि: यह स्तोत्र भक्त की आत्मा को शुद्ध करता है और उसे आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर करता है।
  3. शांति और सुख: इस स्तोत्र का पाठ करने से मानसिक शांति और सुख की प्राप्ति होती है।
  4. भगवान शिव की कृपा: यह स्तोत्र भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने में सहायक होता है।
  5. भय और कष्टों से रक्षा: इस स्तोत्र का पाठ करने से भय और कष्टों से रक्षा होती है।
  6. स्वास्थ्य में सुधार: इस स्तोत्र का नियमित पाठ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करता है।
  7. सकारात्मकता का संचार: यह स्तोत्र जीवन में सकारात्मकता और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।
  8. धन और समृद्धि: इस स्तोत्र का पाठ करने से आर्थिक समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है।
  9. आध्यात्मिक उन्नति: यह स्तोत्र भक्त की आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है।
  10. परिवार में शांति: यह स्तोत्र परिवार में शांति और सद्भावना बनाए रखने में सहायक होता है।
  11. मुक्ति की प्राप्ति: अंततः इस स्तोत्र का पाठ मोक्ष या मुक्ति की प्राप्ति में सहायक होता है।
  12. शत्रुओं से रक्षा: इस स्तोत्र का पाठ शत्रुओं से रक्षा करता है।
  13. संतान सुख: यह पाठ संतान सुख की प्राप्ति में सहायक होता है।
  14. विवाह में बाधा निवारण: इस स्तोत्र का पाठ विवाह में आने वाली बाधाओं को दूर करता है।
  15. आयु वृद्धि: यह स्तोत्र आयु वृद्धि और दीर्घायु का वरदान देता है।
  16. भक्ति और श्रद्धा में वृद्धि: यह स्तोत्र भक्त की भक्ति और श्रद्धा में वृद्धि करता है।
  17. समस्त रोगों से मुक्ति: यह स्तोत्र सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति दिलाता है।
  18. सुखद जीवन: इस स्तोत्र का पाठ सुखद और समृद्ध जीवन की प्राप्ति में सहायक होता है।