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Gopika Ashtakam Stotra to Peace and Spiritual Growth

Gopika Ashtakam Stotra to Peace and Spiritual Growth

गोपिका अष्टकम्: भक्ति, शांति और मोक्ष की ओर एक दिव्य मार्ग

गोपिका अष्टकम् स्तोत्र, श्रीकृष्ण की गोपियों की भक्ति और प्रेम का आदर करता है। यह अष्टकम् उन गोपियों के प्रति समर्पित है, जिन्होंने अपने निस्वार्थ प्रेम और समर्पण से भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में अपना संपूर्ण जीवन अर्पित कर दिया। गोपिका अष्टकम् का पाठ भक्तों को श्रीकृष्ण के प्रति अपार श्रद्धा और भक्ति प्रदान करता है और उनकी आत्मा को शुद्ध करता है।

गोपिका अष्टकम् के लाभ

गोपिका अष्टकम् का नियमित पाठ मानसिक शांति, प्रेम, और आत्मिक शुद्धि प्रदान करता है। यह न केवल भक्तों को श्रीकृष्ण की अनंत कृपा का अनुभव कराता है, बल्कि उनके जीवन में शांति और संतोष का संचार करता है। गोपिका अष्टकम् का पाठ करते हुए व्यक्ति की आत्मा में भक्ति और प्रेम की भावना जागृत होती है, जो उसे मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।

संपूर्ण गोपिका अष्टकम् व उसका अर्थ

श्री गोपिका अष्टकम्

1.सच्चिदानन्दरूपाय कृष्णाय क्लेशनाशिने ।
नन्दगोपकुमाराय गोविन्दाय नमो नमः ॥ 1 ॥

2.गोपीजनविनोदाय गोवर्धनधराय च ।
गोपालाय परमानन्दाय माधवाय नमो नमः ॥ 2 ॥

3.श्रीकृष्णाय वसुदेवाय देवकीनन्दनाय च ।
नन्दगोपकुमाराय गोविन्दाय नमो नमः ॥ 3 ॥

4.व्रजजनार्तिहाराय गोपीजनविनोदिने ।
यशोदानन्दनाय श्रीगोविन्दाय नमो नमः ॥ 4 ॥

5.नन्दकुमाराय कृष्णाय यामुनातीरविहारिणे ।
श्रीकृष्णाय परमानन्दाय गोविन्दाय नमो नमः ॥ 5 ॥

6.यमुनाकूलविहाराय गोपीजनसंगिने ।
श्रीकृष्णाय परमात्मने गोविन्दाय नमो नमः ॥ 6 ॥

7.कंसविध्वंसनायैव केशवाय नमो नमः ।
व्रजजनार्तिहारिणे श्रीकृष्णाय नमो नमः ॥ 7 ॥

8.श्रीकृष्णाय नमस्तुभ्यं नमस्ते मधुसूदन ।
प्रपन्नक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः ॥ 8 ॥

गोपिका अष्टकम् का अर्थ हिंदी में

  1. सच्चिदानंदरूप श्रीकृष्ण को नमस्कार, जो सभी कष्टों का नाश करते हैं, नंदगोप के पुत्र हैं, और गोविंद के रूप में पूजनीय हैं।
  2. गोपियों को आनंदित करने वाले, गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले, ग्वालों के प्रिय और परमानंद स्वरूप माधव को नमस्कार।
  3. श्रीकृष्ण को नमस्कार, जो वसुदेव और देवकी के पुत्र हैं, नंदगोप के घर जन्मे गोविंद हैं।
  4. व्रजवासियों के दुखों को हरने वाले और गोपियों के मन को प्रसन्न करने वाले, यशोदा के आनंद स्वरूप पुत्र श्री गोविंद को प्रणाम।
  5. नंद के पुत्र कृष्ण को नमस्कार, जो यमुना किनारे खेलते हैं और परमानंद स्वरूप हैं।
  6. यमुना के किनारे विहार करने वाले और गोपियों के संग में रहने वाले परमात्मा श्रीकृष्ण को प्रणाम।
  7. कंस का संहार करने वाले केशव को नमस्कार, जो व्रजवासियों के कष्ट दूर करते हैं, उन्हें श्रीकृष्ण को नमन।
  8. मधुसूदन श्रीकृष्ण को नमस्कार, जो समर्पित भक्तों के सारे कष्टों का नाश करते हैं, उन गोविंद को प्रणाम।

गोपिका अष्टकम् पाठ की विधि

इस अष्टकम् का पाठ 41 दिन तक नित्य एक विशेष मुहूर्त में करना चाहिए। गोपिका अष्टकम् के पाठ के लिए प्रातःकाल या संध्या समय उपयुक्त माना जाता है। भक्तों को एक स्वच्छ और पवित्र स्थान पर बैठकर इस स्तोत्र का मनन करना चाहिए।

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गोपिका अष्टकम् पाठ के नियम

  1. साधना और पूजा को गुप्त रखें।
  2. पाठ के दौरान पूर्ण समर्पण और निष्ठा रखें।
  3. नियमितता बनाए रखें।

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गोपिका अष्टकम् पाठ की सावधानियाँ

  1. बिना किसी व्यवधान के पाठ करें।
  2. एक ही स्थान और समय पर पाठ करने का प्रयास करें।

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गोपिका अष्टकम् के पाठ से संबंधित प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1: गोपिका अष्टकम् क्या है?
उत्तर: गोपिका अष्टकम् श्रीकृष्ण की गोपियों के प्रेम और भक्ति को समर्पित स्तोत्र है।

प्रश्न 2: गोपिका अष्टकम् का पाठ क्यों करना चाहिए?
उत्तर: इसका पाठ भक्तों को शांति, भक्ति और श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त कराने में सहायक है।

प्रश्न 3: गोपिका अष्टकम् का पाठ कितने दिनों तक करना चाहिए?
उत्तर: इसे 41 दिनों तक नित्य एक ही समय पर करना चाहिए।

प्रश्न 4: गोपिका अष्टकम् का पाठ कब करना चाहिए?
उत्तर: प्रातः या संध्या का समय इस स्तोत्र पाठ के लिए उपयुक्त माना गया है।

प्रश्न 5: गोपिका अष्टकम् के पाठ के मुख्य लाभ क्या हैं?
उत्तर: यह स्तोत्र मानसिक शांति, प्रेम और आत्मिक शुद्धि का अनुभव कराता है।

प्रश्न 6: पाठ के समय कौन से नियम पालन करने चाहिए?
उत्तर: भक्त को पूजा गुप्त रखनी चाहिए और पूर्ण समर्पण के साथ नियमितता बनाए रखनी चाहिए।

प्रश्न 7: गोपिका अष्टकम् किसके प्रति समर्पित है?
उत्तर: यह श्रीकृष्ण की परम भक्त गोपियों को समर्पित है।

प्रश्न 8: क्या इसे किसी विशेष स्थान पर ही करना चाहिए?
उत्तर: हाँ, स्वच्छ और पवित्र स्थान पर ही पाठ करना चाहिए।

प्रश्न 9: गोपिका अष्टकम् में कितने श्लोक होते हैं?
उत्तर: इसमें कुल आठ श्लोक होते हैं, जो श्रीकृष्ण को समर्पित हैं।

प्रश्न 10: गोपिका अष्टकम् में किस प्रकार की भक्ति का वर्णन है?
उत्तर: इसमें निस्वार्थ प्रेम और समर्पण की भक्ति का वर्णन है।

प्रश्न 11: क्या गोपिका अष्टकम् का पाठ केवल अकेले ही करना चाहिए?
उत्तर: हाँ, इसे एकांत में ध्यानपूर्वक करना चाहिए।

प्रश्न 12: क्या गोपिका अष्टकम् का पाठ सभी कर सकते हैं?
उत्तर: हाँ, जो श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम रखते हैं, वे इसका पाठ कर सकते हैं।

Radha Kavacham – Divine Armor of Protection & Peace

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राधा कवचम्: एक अद्भुत सुरक्षा कवच

राधा कवचम् श्री राधा रानी के अनंत कृपा व प्रेम का वह कवच है, जो साधकों को आध्यात्मिक और भौतिक संकटों से रक्षा प्रदान करता है। इस पवित्र स्तोत्र का पाठ भक्तों के लिए अनेक सिद्धियों को प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करता है। राधा रानी को प्रेम, करुणा और भक्ति का अद्वितीय स्वरूप माना गया है, और उनके कवच के माध्यम से भक्तों को आत्मिक शांति और सुरक्षा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

श्री राधा कवचम् व उसका अर्थ

राधा कवचम् का संपूर्ण पाठ इस प्रकार है। इस कवच का पाठ भक्तों के लिए श्री राधा रानी की कृपा पाने और सभी प्रकार के संकटों से सुरक्षा के लिए अति शुभ माना गया है। राधा कवचम् का नियमित, श्रद्धा और भक्ति से किया गया पाठ साधक के जीवन में आनंद, शांति और प्रेम का संचार करता है।

श्री राधा कवचम्

ध्यानम्:

वन्देऽहं राधिकां नित्यं भक्तकष्टविनाशिनीम्।
प्रेममङ्गलमूर्तिं तां करुणामृतसागरम्॥

कवचम्:

श्री राधायै च विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि।
तन्नो राधा प्रचोदयात्॥

श्री राधायाः पातु शीर्षं, श्रीकृष्णप्राणवल्लभा।
भ्रूयुगं पातु सा राधा, नेत्रे गोपीजनप्रिया॥

घ्राणं पातु मुखं पातु, रासेश्वरी च सर्वदा।
कर्णौ पातु कृपा-सिन्धुः, कान्तं कृष्णस्यवल्लभा॥

स्कन्धौ मे रासक्रीडा, हृदयं गोपिकेश्वरी।
नाभिं पातु जगन्माता, कटिं रासोत्सवप्रिया॥

ऊरू मे गोवर्धनधारिण्याः पातु सर्वदा।
जानुनी पातु पवित्रा, चरणौ गोपवन्दिता॥

अङ्गानि सर्वदा पातु श्रीराधा रासमण्डले।
यस्य स्मरणमात्रेण, पातकं नश्यते नरः॥

फलश्रुति:

इति ते कथितं देवि कवचं परमाद्भुतम्।
त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं सर्वान् कामानवाप्नुयात्॥

राधा कवच का संपूर्ण अर्थ

श्री राधा कवचम् का अर्थ इस प्रकार है:

  • इस कवच में श्री राधा रानी का आह्वान किया गया है, जो भक्तों के कष्टों का नाश करती हैं और प्रेम और करुणा का सागर हैं।
  • श्री राधा रानी को श्री कृष्ण की प्रिया के रूप में स्मरण किया जाता है, और उनसे सुरक्षा और मार्गदर्शन की प्रार्थना की जाती है।
  • इसमें श्री राधा से विभिन्न अंगों की रक्षा के लिए प्रार्थना की गई है जैसे कि सिर, आँखें, हृदय, और चरण।
  • यह कवच कहता है कि श्री राधा रानी के स्मरण मात्र से पापों का नाश होता है और व्यक्ति को सुरक्षा प्राप्त होती है।
  • इस कवच का त्रिसंध्या पाठ करने से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

राधा कवच का पाठ करने से प्रमुख लाभ

  1. आध्यात्मिक सुरक्षा: सभी प्रकार के संकटों से रक्षा।
  2. अखंड भक्ति: श्री कृष्ण के प्रति प्रगाढ़ भक्ति।
  3. दिव्य प्रेम: हृदय में शुद्ध प्रेम का संचार।
  4. मन की शांति: मानसिक शांति और संतोष की प्राप्ति।
  5. आध्यात्मिक ज्ञान: गूढ़ ज्ञान की प्राप्ति।
  6. आश्चर्यजनक सिद्धियां: जीवन में अद्भुत सिद्धियों का आशीर्वाद।
  7. कष्टों का निवारण: जीवन के सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति।
  8. अवसाद से मुक्ति: मन के नकारात्मक विचारों का नाश।
  9. भौतिक सुख: सभी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति।
  10. विराट रूप दर्शन: श्री राधा-कृष्ण के विराट रूप का अनुभव।
  11. समृद्धि का आशीर्वाद: भौतिक संपन्नता का संचार।
  12. कष्टों का नाश: सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति।
  13. अंतरात्मा का विकास: चेतना का शुद्धिकरण।
  14. दिव्य शक्तियां: दिव्य शक्तियों का संचार।
  15. राधा कृपा: श्री राधा की कृपा का अनुभव।

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राधा कवच के पाठ की विधि

राधा कवचम् का पाठ करने के लिए निम्नलिखित विधि अपनानी चाहिए:

  1. दिन: किसी भी शुक्रवार से प्रारंभ करें।
  2. अवधि: 41 दिनों तक प्रतिदिन पाठ करें।
  3. मूहुर्त: प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त का समय सर्वोत्तम।

राधा कवच साधना के नियम

  1. पूजा का गुप्त रहना: साधना के दौरान इसे गुप्त रखें।
  2. पूर्ण श्रद्धा: श्री राधा पर अटूट श्रद्धा होनी चाहिए।
  3. मनोविकारों से दूर रहें: साधना में मन शांत और विचार शुद्ध रहें।

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सावधानियां

  1. सात्विक आहार: साधना के दौरान सात्विक आहार ग्रहण करें।
  2. समर्पण भाव: हृदय में समर्पण की भावना बनाए रखें।
  3. धैर्य रखें: जल्द परिणाम की उम्मीद न करें।

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राधा कवचम् प्रश्न-उत्तर

  1. राधा कवचम् क्या है?
    राधा कवचम् श्री राधा का स्तोत्र है, जो साधकों को सुरक्षा और शांति प्रदान करता है।
  2. इसका उद्देश्य क्या है?
    भक्तों को भौतिक और आध्यात्मिक संकटों से रक्षा करना।
  3. कौन इस कवच का पाठ कर सकता है?
    कोई भी श्रद्धालु, चाहे स्त्री हो या पुरुष।
  4. राधा कवच का अर्थ क्या है?
    राधा का दिव्य प्रेम और रक्षा कवच।
  5. इससे कौन-कौन से लाभ प्राप्त होते हैं?
    मानसिक शांति, संकटों से मुक्ति, भक्ति का अनुभव।
  6. पाठ करने का सर्वोत्तम समय क्या है?
    ब्रह्म मुहूर्त में पाठ करना सर्वोत्तम है।
  7. कितने दिनों तक इसका पाठ करना चाहिए?
    41 दिनों तक इसका पाठ करना उत्तम है।
  8. इसमें क्या सावधानियां रखनी चाहिए?
    सात्विक आहार लें, साधना को गुप्त रखें।
  9. इसका पाठ कहां करना चाहिए?
    एकांत में, जहां किसी प्रकार का विक्षेप न हो।
  10. क्या साधना करते समय कुछ नियम पालन करना अनिवार्य है?
    हां, नियमबद्धता और समर्पण आवश्यक हैं।
  11. क्या इसका पाठ हर व्यक्ति कर सकता है?
    हां, प्रत्येक भक्त इसका पाठ कर सकता है।
  12. राधा कवच से प्रेम का अनुभव कैसे प्राप्त होता है?
    राधा रानी के प्रेम का अनुभव हृदय से श्रद्धा भाव में पाठ करने से मिलता है।

Shri Krishna Kavach Mantra – Divine Tool for Protection

Shri Krishna Kavach Mantra - Divine Tool for Protection and Peace

श्रीकृष्ण कवच मंत्र: सुरक्षा, शांति और समृद्धि

श्रीकृष्ण कवच मंत्र एक अत्यंत शक्तिशाली मंत्र है जो भक्तों को सुरक्षा, शांति और समृद्धि प्रदान करने के लिए प्रसिद्ध है। यह मंत्र भगवान श्री कृष्ण के भक्तों को उनके जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सुरक्षा और मानसिक शांति प्रदान करता है। श्रीकृष्ण कवच मंत्र का पाठ न केवल आध्यात्मिक लाभ देता है, बल्कि यह मानसिक तनाव और शारीरिक परेशानियों को दूर करने में भी सहायक होता है।

दसों दिशाओं का दिग्बंधन मंत्र और उसका अर्थ

यह मंत्र प्रत्येक दिशा में सुरक्षा प्रदान करता है। इस मंत्र के जप से पूरे वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, और शत्रुओं से बचाव के लिए यह अत्यंत प्रभावी है।
मंत्र:
ॐ ह्लीं श्रीं क्लीं कृष्णाय सर्व शत्रुं स्तंभय हुं फट्ट
हर दिशा की तरफ मुंह करके एक बार इस मंत्र का जप कर चुटकी बजाये। इस मंत्र के माध्यम से व्यक्ति की सुरक्षा का एक अदृश्य कवच बनता है, जो उसे किसी भी प्रकार की शारीरिक और मानसिक हानि से बचाता है।

कवच मंत्र का संपूर्ण अर्थ

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कृष्णाय सर्व शत्रुं स्तंभय हुं फट्ट

यह मंत्र भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। यह शत्रुओं के प्रभाव को समाप्त करने और जीवन में शांति बनाए रखने में सहायक है।

मंत्र का शब्दार्थ

  1. : यह ब्रह्मांड की ऊर्जा का प्रतीक है, जो ध्यान और शक्ति को जाग्रत करता है।
  2. ह्रीं: मां लक्ष्मी का बीज मंत्र है, जो ऐश्वर्य और समृद्धि प्रदान करता है।
  3. श्रीं: धन, सुख और सौभाग्य को आकर्षित करने का बीज मंत्र है।
  4. क्लीं: यह आकर्षण और मोहिनी शक्ति का बीज मंत्र है।
  5. कृष्णाय: भगवान श्रीकृष्ण को संबोधित करता है, जो प्रेम, शांति और शक्ति के प्रतीक हैं।
  6. सर्व शत्रुं: सभी शत्रुओं को इंगित करता है, जो किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न करते हैं।
  7. स्तंभय: शत्रुओं की शक्ति और प्रभाव को रोकने का आदेश।
  8. हुं: सुरक्षा और शक्ति प्रदान करने वाला बीज मंत्र।
  9. फट्: सभी नकारात्मक ऊर्जा को तुरंत नष्ट करने की शक्ति।

मंत्र का भावार्थ

यह मंत्र भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करता है कि वह सभी शत्रुओं की शक्ति को नष्ट करें। यह साधक को आत्मविश्वास, सुरक्षा और मनोबल प्रदान करता है। मंत्र का नियमित जाप जीवन से बाधाओं को दूर करता है और शत्रुओं के दुष्प्रभाव से रक्षा करता है।

इस मंत्र को श्रद्धा और विश्वास के साथ जपने से चमत्कारी लाभ मिलता है। उचित विधि और नियमों का पालन करते हुए इसका जाप करें।

जप काल में इन चीजों के सेवन पर ध्यान दें

मंत्र जप के दौरान कुछ विशेष आहार और व्यवहार की सलाह दी जाती है, जिससे जप का प्रभाव और भी मजबूत हो जाता है।

  • सादा और सात्विक आहार का सेवन करें
  • पानी का सेवन अधिक करें
  • ताजे फल और हरे-भरे पौधे उपयोग में लाएं
  • जप के दौरान मौन रखें, ताकि ध्यान केंद्रित हो सके

श्रीकृष्ण कवच मंत्र के लाभ

  1. सुरक्षा: यह मंत्र शारीरिक और मानसिक सुरक्षा प्रदान करता है।
  2. समृद्धि: यह मंत्र धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए अत्यंत प्रभावी है।
  3. शत्रु पर विजय: यह शत्रुओं को परास्त करता है।
  4. स्वास्थ्य में सुधार: इससे शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।
  5. सुख और शांति: यह मानसिक शांति और संतुलन स्थापित करता है।
  6. नकारात्मकता का नाश: यह मंत्र किसी भी नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करता है।
  7. समय और अवसर की पहचान: यह व्यक्ति को सही समय पर निर्णय लेने की शक्ति देता है।
  8. धार्मिक आस्था को प्रगाढ़ करता है: यह भक्त की आस्था और श्रद्धा को बढ़ाता है।
  9. संसारिक बंधनों से मुक्ति: यह संसारिक परेशानियों से मुक्त करने में मदद करता है।
  10. मानसिक संतुलन: यह मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करता है।
  11. शक्ति का अनुभव: मंत्र के जप से व्यक्ति में अद्भुत शक्ति का अनुभव होता है।
  12. द्वारपाल से सुरक्षा: यह किसी भी तरह के शारीरिक या मानसिक संकट से सुरक्षा देता है।
  13. प्राकृतिक विपत्तियों से बचाव: यह प्राकृतिक आपदाओं से बचाने में भी सहायक है।
  14. सकारात्मक दृष्टिकोण: यह जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करता है।
  15. भय और दुख से मुक्ति: यह भय और दुख को समाप्त करता है।
  16. ध्यान और ध्यान में शक्ति: यह ध्यान और साधना को सशक्त बनाता है।
  17. जीवन में उन्नति: यह व्यक्ति को जीवन में निरंतर उन्नति की दिशा में अग्रसर करता है।
  18. मुक्ति का मार्ग: अंत में यह मंत्र आत्मा को मुक्ति की ओर ले जाता है।

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पूजा सामग्री और मंत्र विधि

पूजा सामग्री:

  • एक शुद्ध स्थान पर बैठकर मंत्र का जप करें।
  • ताजे फूल, अगरबत्तियाँ, और दीपक रखें।
  • जल, घी, और सफेद वस्त्र का प्रयोग करें।
  • मंत्र जप के दौरान भगवान श्री कृष्ण की तस्वीर या मूर्ति रखें।

मंत्र विधि:

  1. मंत्र जप का दिन: सोमवार और शनिवार को विशेष रूप से लाभकारी होते हैं।
  2. अवधि: 20 मिनट तक जप करें।
  3. मुहूर्त: प्रात:काल और संध्याकाल में जप करने का उत्तम समय है।

मंत्र जप के नियम

  • उम्र: केवल 20 वर्ष और उससे ऊपर के लोग ही इस मंत्र का जप करें।
  • स्त्री-पुरुष कोई भी इस मंत्र का जप कर सकते हैं।
  • कपड़े: नीले या काले कपड़े न पहनें, सफेद या हल्के रंग के कपड़े पहनें।
  • धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार से बचें।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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जप सावधानियाँ

  • मंत्र का जप शुद्ध मन और भाव से करें।
  • हर दिन नियमित रूप से 11 दिन तक जप करें।
  • जप के दौरान अन्य किसी काम में मन न लगाएं, केवल मंत्र और भगवान श्री कृष्ण पर ध्यान केंद्रित करें।

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श्रीकृष्ण कवच मंत्र – पृश्न उत्तर

क्या इस मंत्र को किसी विशेष समय में ही जपना चाहिए?
इस मंत्र का जप किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन प्रात: और संध्या समय में इसका प्रभाव अधिक होता है।

क्या श्रीकृष्ण कवच मंत्र का जप रोज़ करना आवश्यक है?
हां, मंत्र का नियमित जप विशेष रूप से लाभकारी होता है। यह आपको शांति, सुरक्षा और मानसिक संतुलन प्रदान करता है।

श्रीकृष्ण कवच मंत्र के जप से क्या लाभ होते हैं?
यह मंत्र शत्रुओं से सुरक्षा, मानसिक शांति, शारीरिक स्वास्थ्य, और समृद्धि की प्राप्ति में सहायक है।

क्या यह मंत्र शत्रुओं के खिलाफ प्रयोग किया जा सकता है?
हां, यह मंत्र शत्रुओं को निष्क्रिय करने में सहायक होता है।

कितने दिन तक श्रीकृष्ण कवच मंत्र का जप करना चाहिए?
इसे 11 दिन तक रोज़ 20 मिनट जपने का महत्व है। आप इसे सप्ताह में कुछ बार जप सकते हैं।

क्या महिलाओं के लिए यह मंत्र जप करना सही है?
हां, पुरुष और महिला दोनों इस मंत्र का जप कर सकते हैं, कोई भी भेदभाव नहीं है।

क्या श्रीकृष्ण कवच मंत्र का जप शुद्ध मन से करना चाहिए?
हां, जप करते समय शुद्ध मन और समर्पण होना चाहिए। मंत्र का प्रभाव तभी अधिक होता है।

श्रीकृष्ण कवच मंत्र का जप कब करना चाहिए?
प्रात: काल और संध्याकाल में जप करना सबसे अधिक लाभकारी होता है।

क्या इस मंत्र का जप किसी विशेष स्थान पर करना चाहिए?
नहीं, आप किसी भी पवित्र और शांत स्थान पर इस मंत्र का जप कर सकते हैं।

क्या श्रीकृष्ण कवच मंत्र के जप से स्वास्थ्य में सुधार होता है?
हां, यह मानसिक शांति और शारीरिक ऊर्जा को बढ़ाता है, जिससे आपका स्वास्थ्य बेहतर होता है।

Madhurashtakam Path to Inner Peace & Prosperity

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मधुराष्टकम्: श्रीकृष्ण की मधुर भक्ति का दिव्य स्तोत्र

मधुराष्टकम् पाठ भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति का एक अनुपम स्तोत्र है, जिसे श्रीवल्लभाचार्य जी ने रचा। यह स्तोत्र श्रीकृष्ण के दिव्य स्वरूप की मधुरता का गुणगान करता है, जिसमें उनके अद्वितीय सौंदर्य और दिव्य लीलाओं का वर्णन किया गया है। ‘मधुर’ शब्द से ही इसका नाम मधुराष्टकम् पड़ा, जो भक्त को भगवान की ओर आकर्षित करता है।

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मधुराष्टकम् का संपूर्ण स्तोत्र एवं उसका अर्थ

मधुराष्टकम् पाठ में श्रीकृष्ण की वाणी, वेश, चाल, मुस्कान, और हर लीला को मधुर कहा गया है। यह स्तोत्र प्रेमी भक्तों को श्रीकृष्ण के प्रति गहन भक्ति और प्रेम में डूबा देता है।

अधरं मधुरं वदनं मधुरं
नयनं मधुरं हसितं मधुरम्।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥१॥

वचनं मधुरं चरितं मधुरं
वसनं मधुरं वलितं मधुरम्।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥२॥

वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः
पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥३॥

गीतं मधुरं पीतं मधुरं
भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम्।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥४॥

करणं मधुरं तरणं मधुरं
हरणं मधुरं रमणं मधुरम्।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥५॥

गुंफं मधुरं मलं मधुरं
यमुनामधुरं वीचिर्मधुरा।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥६॥

गोप्यो मधुरा लीलामधुरा
युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम्।
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥७॥

गोपा मधुरा गावा मधुरा
यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥८॥

मधुराष्टकम् का अर्थ

  1. श्रीकृष्ण के होंठ, मुख, नेत्र, हंसी, हृदय और उनकी चाल सभी मधुर हैं। वास्तव में उनके सम्पूर्ण स्वरूप में मधुरता का वास है।
  2. उनकी वाणी, चरित्र, वस्त्र, उनकी चाल और सभी गतिविधियाँ मधुर हैं। श्रीकृष्ण का सम्पूर्ण अस्तित्व मधुरता से परिपूर्ण है।
  3. उनकी बांसुरी मधुर है, उनका पवित्र धूल मधुर है, उनके हाथ, पैर, नृत्य और सखा भाव भी मधुर हैं।
  4. उनका गीत, पीने का ढंग, भोजन, सोना, रूप, और उनके तिलक सभी मधुर हैं।
  5. उनके कान, तैरने का ढंग, सबको आकर्षित करना और उनकी रति (प्रेम) सभी मधुर हैं।
  6. उनकी फूलों की माला, उनके बाल, यमुना नदी, उसकी लहरें, जल और कमल सभी मधुर हैं।
  7. गोपियाँ मधुर हैं, उनकी लीलाएँ मधुर हैं, उनके मिलने का तरीका और मुक्ति देने का भाव भी मधुर है।
  8. गोप बालक, गायें, उनकी छड़ी, उनकी सृष्टि, उनके द्वारा फलित कार्य और उनकी समस्त लीला भी मधुर हैं।

सार: भगवान श्रीकृष्ण का सम्पूर्ण स्वरूप और हर क्रिया मधुरता से परिपूर्ण है, जिससे उनके प्रति गहन भक्ति और प्रेम उत्पन्न होता है।

मधुराष्टकम् पाठ के लाभ

मधुराष्टकम् का नित्य पाठ करने से मन की शांति, आध्यात्मिक ऊर्जा और भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। इसके नियमित अभ्यास से जीवन में सकारात्मकता और आनंद की अनुभूति होती है।

मधुराष्टकम् पाठ की विधि

  1. दिन और अवधि: इस पाठ को विशेष रूप से 41 दिनों तक प्रतिदिन करना लाभकारी होता है।
  2. मुहूर्त: ब्रह्म मुहूर्त में यह पाठ करना सर्वोत्तम होता है।
  3. नियम और विधि: पाठ से पहले स्नान और ध्यान करें। श्रीकृष्ण के सामने दीपक जलाकर उनका ध्यान करें।

मधुराष्टकम् पाठ के नियम

  1. पूजा गुप्त रखें: साधना और पाठ को किसी के सामने प्रकट न करें, गुप्त भक्ति में अधिक फल मिलता है।
  2. भक्ति का अनुशासन: पूर्ण समर्पण और श्रद्धा के साथ ही पाठ का आरंभ करें।

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मधुराष्टकम् पाठ के दौरान सावधानियां

  1. शुद्धता: मानसिक और शारीरिक शुद्धता बनाए रखें।
  2. संयम: साधना के समय अन्य विचारों से मन को दूर रखें और केवल भगवान का ध्यान करें।

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पाठ के दौरान पुछे जाने वाले सामान्य प्रश्न और उत्तर

  1. प्रश्न: क्या मधुराष्टकम् का पाठ किसी विशेष दिन करना चाहिए?
    उत्तर: इसे प्रतिदिन, विशेषकर ब्रह्म मुहूर्त में करना चाहिए।
  2. प्रश्न: क्या इस पाठ के लिए किसी विशेष पूजा सामग्री की आवश्यकता है?
    उत्तर: दीपक और श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने किया जाए तो श्रेष्ठ माना गया है।
  3. प्रश्न: क्या इस पाठ को मन में दोहराया जा सकता है?
    उत्तर: हाँ, मन में दोहराना भी लाभकारी होता है।
  4. प्रश्न: क्या मधुराष्टकम् पाठ से मानसिक शांति मिलती है?
    उत्तर: हाँ, यह पाठ मानसिक शांति और आनंद प्रदान करता है।
  5. प्रश्न: क्या इस पाठ के दौरान मन में संदेह आना गलत है?
    उत्तर: संदेह नहीं होना चाहिए, पूर्ण श्रद्धा के साथ पाठ करें।
  6. प्रश्न: क्या मधुराष्टकम् पाठ केवल भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों के लिए है?
    उत्तर: नहीं, इसे कोई भी व्यक्ति शांति और आध्यात्मिकता के लिए कर सकता है।
  7. प्रश्न: क्या पाठ के दौरान श्रीकृष्ण की छवि का ध्यान करना आवश्यक है?
    उत्तर: हाँ, श्रीकृष्ण का ध्यान करना अत्यंत लाभकारी होता है।
  8. प्रश्न: क्या पाठ की अवधि को कम किया जा सकता है?
    उत्तर: नियमितता बनाए रखना अधिक लाभकारी है, अवधि कम न करें।
  9. प्रश्न: क्या इसे परिवार के साथ मिलकर किया जा सकता है?
    उत्तर: हाँ, पूरे परिवार के साथ करने पर भी लाभ मिलता है।
  10. प्रश्न: क्या स्तोत्र का पाठ मन्नतों के लिए किया जा सकता है?
    उत्तर: हाँ, इस पाठ से मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं।
  11. प्रश्न: क्या पाठ की समाप्ति पर किसी विशेष मंत्र का जाप करना चाहिए?
    उत्तर: हाँ, श्रीकृष्ण को धन्यवाद देते हुए उनकी स्तुति करें।
  12. प्रश्न: क्या मधुराष्टकम् का पाठ जीवन में प्रेम और सुख की प्राप्ति में सहायक है?
    उत्तर: निस्संदेह, यह पाठ जीवन में प्रेम, शांति और समृद्धि लाता है।

Baglamukhi Sadhana Shivir – Success & Overcome Obstacles

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बगलामुखी साधना शिविर: शत्रु मुक्ति व जीवन में शांति पाने का शक्तिशाली मार्ग

बगलामुखी साधना शिविर एक विशेष अवसर है, जहां आप अपनी जीवन में आ रही कठिनाइयों और समस्याओं का समाधान पा सकते हैं। बगलामुखी माँ की साधना से व्यक्ति को जीवन की अनगिनत बाधाओं से मुक्ति मिलती है। इस शिविर का आयोजन वज्रेश्वरी में किया जा रहा है, जो धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यहां आपको बगलामुखी पूजा और साधना के विधियों से अवगत कराया जाएगा, जो आपके जीवन में होने वाले शत्रुओं और ऊपरी बाधाओं से रक्षा करती हैं।

बगलामुखी साधना शिविर – 2024

शिविर की तिथि:
स्थान: बगलामुखी आश्रम कानडी, शहापुर

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बगलामुखी साधना शिविर के लाभ

  1. शत्रु पर विजय प्राप्त करें – बगलामुखी साधना से आपके छुपे शत्रु नष्ट होते हैं।
  2. ऊपरी बाधाओं से रक्षा – मानसिक और शारीरिक बाधाओं से छुटकारा मिलता है।
  3. कानूनी विवादों में सफलता – कोर्ट कचहरी के मामलों में विजय प्राप्त होती है।
  4. व्यापार में वृद्धि – व्यापार में आ रही रुकावटें और नुकसान दूर होते हैं।
  5. कर्ज से मुक्ति – आर्थिक संकट और कर्ज के बोझ से राहत मिलती है।
  6. व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान – व्यक्तिगत जीवन में शांति और समाधान मिलता है।
  7. दुश्मनों से सुरक्षा – मानसिक शांति और शत्रुओं से सुरक्षा प्राप्त होती है।
  8. मानसिक तनाव का निवारण – मन की अशांति और तनाव को दूर करने में मदद मिलती है।
  9. शरीर की स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान – शारीरिक बीमारियों में भी सुधार होता है।
  10. समाज में सम्मान प्राप्त करें – सामाजिक प्रतिष्ठा और सम्मान में वृद्धि होती है।
  11. परिवारिक विवादों का समाधान – पारिवारिक समस्याओं और कलह से मुक्ति मिलती है।
  12. नौकरी में सफलता – नौकरी में प्रमोशन और पदोन्नति की संभावना बढ़ती है।
  13. विवाह और रिश्तों में सुधार – वैवाहिक जीवन में शांति और रिश्तों में मजबूती आती है।
  14. आध्यात्मिक उन्नति – बगलामुखी साधना से आध्यात्मिक प्रगति और शांति प्राप्त होती है।
  15. सुरक्षा कवच का निर्माण – यह साधना एक शक्तिशाली सुरक्षा कवच प्रदान करती है।

बगलामुखी साधना शिविर में कौन भाग ले सकता है?

यह शिविर उन सभी के लिए उपयुक्त है, जो किसी न किसी प्रकार की मानसिक या शारीरिक समस्या का सामना कर रहे हैं। खासकर निम्नलिखित लोग इस शिविर का हिस्सा बन सकते हैं:

  • राजनीतिक व्यक्ति: यदि आप राजनीति में सक्रिय हैं और शत्रुओं या विरोधियों से परेशान हैं, तो यह साधना आपकी मदद कर सकती है।
  • पुलिस प्रशासन और सरकारी विभाग में काम करने वाले: सरकारी विभाग में कार्यरत लोग, जो मानसिक दबाव या बाधाओं का सामना कर रहे हैं, इस शिविर से लाभ उठा सकते हैं।
  • वकील और न्यायिक अधिकारी: जो कोर्ट कचहरी में उलझे हुए हैं, उनके लिए यह साधना लाभकारी हो सकती है।
  • जो लोग दूसरों के द्वारा सताए जा रहे हैं: इस शिविर में वे लोग भी भाग ले सकते हैं, जो मानसिक, शारीरिक या सामाजिक शोषण का शिकार हो रहे हैं।
  • व्यापारी और व्यवसायी: जो व्यापार में लगातार नुकसान उठा रहे हैं या आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं, वे भी इस साधना से लाभ उठा सकते हैं।

Bagalamukhi Sadhana shivir Booking

शिविर में भाग लेने के नियम

बगलामुखी साधना शिविर में भाग लेने के कुछ विशेष नियम हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य है:

  1. उम्र सीमा: शिविर में केवल वे लोग भाग ले सकते हैं, जिनकी उम्र 20 वर्ष या उससे अधिक है।
  2. आदमी और महिला दोनों: इस साधना शिविर में महिलाएं और पुरुष दोनों भाग ले सकते हैं।
  3. पहनावा: शिविर में भाग लेने के लिए नीले और काले रंग के कपड़े पहनने की मनाही है। अन्य रंग के साधारण कपड़े पहनें।
  4. मांसाहार, शराब और धूम्रपान: शिविर में भाग लेने वाले व्यक्तियों को मांसाहार, शराब और धूम्रपान से दूर रहना चाहिए।
  5. ब्रह्मचर्य का पालन: साधना के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य है, ताकि साधना के प्रभाव अच्छे हों।
  6. पति-पत्नि को अधिक लाभ: यदि पति-पत्नि दोनों इस साधना में भाग लेते हैं, तो उनके लिए यह विशेष रूप से लाभकारी होता है।

साधना सामग्री

  • बगलामुखी यंत्र
  • बगलामुखी माला
  • बगलामुखी पारद गुटिका
  • आसन
  • श्रंगार (Devi Shrangar)
  • देवी चुनरी
  • चिरमी दाना
  • बगला कवच (Bagala Raksha Kavach)

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बगलामुखी साधना शिविर में ऑनलाइन भी भाग ले सकते है

आजकल की डिजिटल दुनिया में, शिविर में भाग लेने के लिए आपको कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। यदि आप वज्रेश्वरी में आने में असमर्थ हैं, तो आप ऑनलाइन बगलामुखी साधना शिविर में भी भाग ले सकते हैं। ऑनलाइन माध्यम से भी आप बगलामुखी साधना की पूरी प्रक्रिया और लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

बगलामुखी साधना से जुड़ी सामान्य प्रश्न और उनके उत्तर

प्रश्न 1: बगलामुखी साधना का उद्देश्य क्या है?

उत्तर: बगलामुखी साधना का मुख्य उद्देश्य शत्रुओं, ऊपरी बाधाओं, और मानसिक शांति की रक्षा करना है। यह साधना व्यक्ति के जीवन में आने वाली परेशानियों और संकटों से मुक्ति दिलाने में मदद करती है।

प्रश्न 2: बगलामुखी साधना शिविर में कौन-सी विधियाँ सिखाई जाती हैं?

उत्तर: शिविर में बगलामुखी माँ की पूजा विधि, मंत्र जाप, ध्यान और अन्य शक्तिशाली साधना विधियों का अभ्यास कराया जाता है।

प्रश्न 3: क्या यह साधना हर किसी के लिए उपयुक्त है?

उत्तर: हां, यह साधना सभी के लिए उपयुक्त है, लेकिन इसमें भाग लेने के लिए कुछ नियमों का पालन करना जरूरी है।

प्रश्न 4: शिविर में भाग लेने के बाद मुझे कब तक लाभ मिलेगा?

उत्तर: बगलामुखी साधना का प्रभाव तुरंत महसूस नहीं होता, लेकिन निरंतर साधना से आप 1-3 महीनों में इसके परिणाम देख सकते हैं।

प्रश्न 5: क्या बगलामुखी साधना से किसी प्रकार का मानसिक तनाव कम हो सकता है?

उत्तर: हां, बगलामुखी साधना मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करती है, जिससे तनाव कम हो सकता है।

प्रश्न 6: क्या बगलामुखी साधना से व्यापार में लाभ होगा?

उत्तर: अगर व्यापार में कोई रुकावट या नुकसान हो रहा है, तो बगलामुखी साधना से उसमें सुधार हो सकता है।

प्रश्न 7: क्या यह साधना केवल वज्रेश्वरी में ही करनी होती है?

उत्तर: नहीं, आप ऑनलाइन भी इस साधना में भाग ले सकते हैं।

प्रश्न 8: क्या इस शिविर में केवल समस्या वाले लोग ही भाग ले सकते हैं?

उत्तर: हां, मुख्य रूप से वे लोग जो शत्रु या मानसिक परेशानियों का सामना कर रहे हैं, वे इस शिविर में भाग ले सकते हैं।

प्रश्न 9: क्या यह साधना कोई विशेष पूजा से जुड़ी है?

उत्तर: हां, बगलामुखी माँ की विशेष पूजा और मंत्र जाप के द्वारा इस साधना को पूरा किया जाता है।

प्रश्न 10: क्या बगलामुखी साधना से परिवारिक समस्याएँ हल हो सकती हैं?

उत्तर: हां, यह साधना परिवारिक कलह और विवादों को सुलझाने में मदद करती है।

प्रश्न 11: क्या मुझे इस साधना के लिए कोई विशेष तैयारी करनी होगी?

उत्तर: हां, साधना के लिए मानसिक और शारीरिक तैयारी आवश्यक है। आप शुद्ध मानसिकता से साधना में भाग लें।

प्रश्न 12: शिविर में भाग लेने के बाद क्या मुझे नियमित रूप से साधना करनी होगी?

उत्तर: हां, शिविर में भाग लेने के बाद आपको नियमित रूप से बगलामुखी साधना का पालन करना होगा ताकि उसके लाभ को दीर्घकालिक रूप से अनुभव किया जा सके।

अंत में

बगलामुखी साधना शिविर एक अत्यंत शक्तिशाली साधना का अवसर है, जो आपको जीवन की समस्याओं से मुक्ति दिलाने में मदद करेगा। इस शिविर में भाग लेकर आप शत्रुओं, मानसिक बाधाओं और जीवन में आने वाली कठिनाइयों से छुटकारा पा सकते हैं। इसलिए, यदि आप अपनी जीवन की समस्याओं से उबरने और मानसिक शांति प्राप्त करने के इच्छुक हैं, तो इस शिविर में अवश्य भाग लें।

Shri Krishna Ashtaksham for Devotion & Peace

Shri Krishna Ashtaksham for Devotion & Peace

श्री कृष्णाष्टकम् – जीवन में शांति और भक्ति का स्रोत

श्री कृष्णाष्टकम् भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति का अद्भुत स्तोत्र है, जिसमें उनके दिव्य रूप, गुण और अद्वितीय लीलाओं का वर्णन किया गया है। यह ८ श्लोकों का मंत्र है, जो कृष्ण प्रेमियों के लिए अत्यंत लाभकारी और मनोरम होता है। इसे नित्य भावपूर्वक पाठ करने से, साधक की जीवन में सुख, शांति और आध्यात्मिक विकास के मार्ग खुलते हैं।

श्री कृष्णाष्टकम् के अद्भुत लाभ

  1. मन की शांति: श्री कृष्णाष्टकम् का नियमित पाठ मन को शांति प्रदान करता है।
  2. दुखों का नाश: यह पाठ जीवन के दुखों को दूर करता है।
  3. सद्गुणों की वृद्धि: साधक के भीतर सद्गुण और सहनशीलता उत्पन्न होती है।
  4. सुख-समृद्धि: इस पाठ से घर में सुख-समृद्धि आती है।
  5. धन-धान्य की प्राप्ति: यह आर्थिक समृद्धि और धन की प्राप्ति का मार्ग है।
  6. रोगों का नाश: शारीरिक एवं मानसिक रोगों का नाश होता है।
  7. कृष्ण का साक्षात्कार: साधक श्रीकृष्ण की कृपा का अनुभव करता है।
  8. भक्ति का विकास: इस पाठ से भक्ति में वृद्धि होती है।
  9. अहंकार का नाश: साधक के अहंकार का नाश होता है।
  10. संतुष्टि: यह मन और आत्मा को संतुष्टि प्रदान करता है।
  11. अशुभ शक्तियों से रक्षा: यह पाठ साधक को नकारात्मक शक्तियों से बचाता है।
  12. स्वप्न में शांति: इस पाठ के प्रभाव से साधक को शुभ स्वप्न आते हैं।
  13. कर्म बंधन से मुक्ति: पुराने कर्म बंधनों से मुक्ति मिलती है।
  14. परिवार में सुख-शांति: परिवार में प्रेम और स्नेह बढ़ता है।
  15. जीवन में सफलता: यह पाठ कार्यक्षेत्र में सफलता दिलाता है।
  16. सदबुद्धि की प्राप्ति: साधक के विचारों में पवित्रता आती है।
  17. कर्मों का सुधार: यह नकारात्मक प्रवृत्तियों को खत्म करता है।

कृष्णाष्टकम् व उसका अर्थ

यहाँ संपूर्ण कृष्णाष्टकम् (कृष्ण की स्तुति के लिए ८ श्लोक) प्रस्तुत है, जो भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन करता है। इसे पढ़ने और मनन करने से कृष्ण भक्ति का अनुभव मिलता है।

कृष्णाष्टकम्

  1. वसुदेव सुतं देवं, कंस-चाणूर मर्दनम्। देवकी परमानन्दं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥ अर्थ: वसुदेव के पुत्र, कंस और चाणूर का मर्दन करने वाले, देवकी के परमानंद, जगद्गुरु श्रीकृष्ण को मैं वंदन करता हूँ।
  2. अतसी पुष्प संकाशं, हार नूपुर शोभितम्। रत्न कङ्कण केयूरं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥ अर्थ: अतसी पुष्प के समान सुंदर, हार और नूपुर से शोभित, रत्न कंगन और बाजूबंद धारण किए हुए जगद्गुरु श्रीकृष्ण को मैं प्रणाम करता हूँ।
  3. कुटिलालक संयुक्तं, पूर्णचन्द्र निभाननम्। विलसत् कुंडल धरं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥ अर्थ: घुँघराले बालों से सुशोभित, पूर्णचन्द्र के समान मुखमंडल वाले, कानों में कुंडल धारण किए हुए श्रीकृष्ण को मैं प्रणाम करता हूँ।
  4. मन्दार गन्ध संयुक्तं, चारुहासं चतुर्भुजम्। बर्हि पिञ्छाव चूडाङ्गं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥ अर्थ: मंदार के पुष्पों की सुगंध से संयुक्त, मधुर हँसी वाले, चार भुजाओं वाले, सिर पर मोर पंख धारण किए हुए श्रीकृष्ण को मैं प्रणाम करता हूँ।
  5. उत्फुल्ल पद्म पत्राक्षं, नील जीमूत सन्निभम्। यदावदन्त्य संसेव्यं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥ अर्थ: पूर्ण खिले हुए कमल की पंखुड़ियों के समान नेत्रों वाले, नीले मेघ के समान शरीर वाले, जिनका सब लोग सेवा करते हैं, ऐसे श्रीकृष्ण को मैं वंदन करता हूँ।
  6. रुक्मिणी केलि संयुक्तं, पीताम्बर सुशोभितम्। अवाप्त तुलसी गन्धं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥ अर्थ: रुक्मिणी के साथ क्रीड़ा में मग्न, पीताम्बर धारण किए हुए, तुलसी की सुगंध से सुशोभित श्रीकृष्ण को मैं प्रणाम करता हूँ।
  7. गोपिकानां कुचद्वन्द्व कुंकुमाङ्कित वक्षसम्। श्री निकेतं महेश्वासं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥ अर्थ: गोपिकाओं के कुंकुम से अंकित वक्षस्थल वाले, श्री निवास, महान धनुर्धर श्रीकृष्ण को मैं वंदन करता हूँ।
  8. श्रीवत्साङ्कं महोरस्कं, वनमाला विराजितम्। शङ्खचक्र धरं देवं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥ अर्थ: श्रीवत्स के चिन्ह से सुशोभित, विशाल वक्षस्थल वाले, वनमाला और शंख-चक्र धारण किए हुए भगवान श्रीकृष्ण को मैं प्रणाम करता हूँ।

फलश्रुति

कृष्णाष्टकमिदं पुण्यं, प्रातरुत्थाय यः पठेत्। कोटि जन्म कृतं पापं, स्मरणेन विनश्यति॥

अर्थ: जो भक्त प्रातःकाल इस कृष्णाष्टकम् का पाठ करता है, उसके करोड़ों जन्मों के पाप स्मरण मात्र से नष्ट हो जाते हैं।

कृष्णाष्टकम् संपूर्णम्

श्री कृष्णाष्टकम् का विधि-विधान

दिन: किसी भी दिन श्री कृष्णाष्टकम् का आरंभ किया जा सकता है। किंतु श्रीकृष्णाष्टमी, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी या पूर्णिमा का दिन विशेष शुभ माना गया है।

अवधि: श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ नियमित रूप से ४१ दिन तक करना शुभफलदायी होता है। ४१ दिन के इस साधना काल में साधक को नियमपूर्वक अपने व्रत का पालन करना चाहिए।

मुहूर्त: प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ करना सर्वोत्तम होता है। यह मुहूर्त आध्यात्मिक उन्नति के लिए अनुकूल माना गया है।

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श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ करने के नियम

  1. पूजा विधि: सुबह स्नान कर पवित्र वस्त्र धारण करें। श्रीकृष्ण की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीपक जलाकर पाठ करें।
  2. साधना को गुप्त रखें: श्री कृष्णाष्टकम् की साधना में गोपनीयता बनाए रखना आवश्यक है। इसे गुप्त रखने से इसका प्रभाव अधिक बढ़ता है।
  3. पवित्रता बनाए रखें: पाठ करने वाले स्थान को पवित्र रखें। मानसिक एवं शारीरिक शुद्धता का ध्यान रखें।
  4. नियमितता का पालन: ४१ दिनों तक नित्य श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ करना अनिवार्य है। इस बीच पाठ में कोई विराम न हो।
  5. भक्ति का भाव: पूरे मन और श्रद्धा से इस स्तोत्र का पाठ करें। जितना भक्ति भाव रहेगा, उतना ही अधिक लाभ प्राप्त होगा।

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श्री कृष्णाष्टकम् पाठ के दौरान सावधानियाँ

  1. अशुद्ध शब्दों का प्रयोग न करें: श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ शुद्ध उच्चारण के साथ करें। अशुद्ध शब्दों से पाठ का प्रभाव कम हो जाता है।
  2. निर्धारित समय का पालन: एक निश्चित समय पर पाठ करना अच्छा होता है। समय का पालन न करने से साधना की ऊर्जा बिखर जाती है।
  3. खान-पान का ध्यान रखें: साधना के दौरान सात्त्विक भोजन का सेवन करें। तामसिक भोजन से बचें।
  4. नकारात्मक विचारों से दूर रहें: साधना काल में नकारात्मक विचारों और नकारात्मक लोगों से दूर रहें। इससे साधना पर बुरा असर नहीं पड़ता।
  5. धैर्य रखें: श्री कृष्णाष्टकम् का लाभ तुरंत प्राप्त नहीं हो सकता। धैर्य और नियमितता से लाभ निश्चित होता है।

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श्री कृष्णाष्टकम् पाठ के प्रश्न-उत्तर

1. श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ क्यों करना चाहिए?

भगवान श्रीकृष्ण की कृपा पाने और जीवन के दुखों को दूर करने के लिए श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ करना चाहिए।

2. इसका पाठ किस समय करना उचित है?

प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में इसका पाठ सर्वोत्तम होता है।

3. श्री कृष्णाष्टकम् में कितने श्लोक होते हैं?

श्री कृष्णाष्टकम् में कुल ८ श्लोक होते हैं।

4. क्या इसका पाठ करने के लिए किसी विशेष दिन का चयन करना चाहिए?

श्रीकृष्णाष्टमी, जन्माष्टमी या पूर्णिमा को इसका प्रारंभ करना शुभ होता है।

5. क्या इसका पाठ रोज़ करना आवश्यक है?

हाँ, ४१ दिनों तक नित्य पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है।

6. पाठ के दौरान किन नियमों का पालन करना चाहिए?

पवित्रता, नियमितता, गोपनीयता, और भक्ति भाव रखना आवश्यक है।

7. क्या किसी विशेष वस्त्र पहनना चाहिए?

सफेद या पीले वस्त्र पहनना शुभ माना गया है।

8. श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ कहाँ करना चाहिए?

शुद्ध, शांत और पवित्र स्थान पर करना चाहिए।

9. क्या इसका पाठ अकेले करना चाहिए?

हाँ, अकेले और गोपनीय रूप से पाठ करना चाहिए।

10. क्या साधना के दौरान मौन रहना चाहिए?

हां, साधना के समय मौन धारण करना उचित होता है।

11. क्या स्तोत्र पाठ के लिए मूर्ति की आवश्यकता है?

मूर्ति या तस्वीर के सामने पाठ करने से भक्ति भाव बढ़ता है।

12. क्या श्री कृष्णाष्टकम् से हर कष्ट दूर हो सकता है?

नियमित और श्रद्धापूर्वक पाठ से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।

Ekadashmukhi Hanuman Mantra -Protection from Evil & Enemies

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एकादशमुखी हनुमान मंत्र: शत्रु और तंत्र बाधा से सुरक्षा का गूढ़ रहस्य

हनुमानजी के “एकादशमुखी हनुमान मंत्र” को अत्यंत प्रभावशाली और रक्षक माना गया है। यह मंत्र साधक को शत्रु, तंत्र बाधा, और ऊपरी बाधाओं से सुरक्षा प्रदान करता है, साथ ही धन, परिवार और विवाहित जीवन में सुख-समृद्धि लाने वाला है।

विनियोग मंत्र और उसका अर्थ

विनियोग:
“ॐ अस्य श्री एकादशमुखी हनुमान मंत्रस्य, महर्षि हनुमान ऋषिः, गायत्री छंदः, श्री एकादशमुखी हनुमान देवता, खल नाशय नाशय कार्य सिद्धये जपे विनियोगः।”

अर्थ: इस मंत्र का विनियोग हनुमानजी के एकादश रूपों की आराधना द्वारा शत्रुओं का नाश करने और कार्य सिद्धि के लिए है।

दसों दिशाओं का दिग्बंधन मंत्र और उसका अर्थ

दिग्बंधन मंत्र:
“ॐ हं हुं हुं फट्”

अर्थ: यह दिग्बंधन मंत्र दसों दिशाओं में सुरक्षा घेरा बनाता है, जिससे साधक किसी भी नकारात्मक ऊर्जा या बाहरी बाधा से सुरक्षित रहता है।

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एकादशमुखी हनुमान मंत्र और अर्थ

एकादशमुखी हनुमान मंत्र
“ॐ हं एकादशमुखी हनुमंते खल नाशय नाशय फ्रौं नमः”

मंत्र का अर्थ

इस मंत्र का प्रत्येक शब्द विशेष शक्ति और उद्देश्य के साथ जुड़ा हुआ है:

  • : यह परम शांति और ऊर्जा का प्रतीक है, जो साधक की चेतना को उच्च स्तर पर पहुंचाने में सहायक है।
  • हं : यह हनुमानजी की शक्ति का प्रतीक है। यह ध्वनि साधक को मानसिक और शारीरिक शक्ति प्रदान करती है।
  • एकादशमुखी हनुमंते : हनुमानजी के ग्यारह मुखों का आह्वान। यह विशेष रूप से हनुमानजी के ग्यारह रूपों को समर्पित है, जो शत्रुओं और नकारात्मक शक्तियों का नाश करने में सक्षम हैं।
  • खल नाशय नाशय : इसका अर्थ है “दुष्टों का नाश करो, नाश करो।” साधक प्रार्थना करता है कि हनुमानजी उसकी रक्षा करें और उसके जीवन से सभी शत्रु, तंत्र बाधाएं और अन्य नकारात्मक शक्तियों को दूर करें।
  • फ्रौं : यह बीज मंत्र शक्ति और साहस का प्रतीक है। यह साधक को भयमुक्त रखता है और उसमें आत्मविश्वास का संचार करता है।
  • नमः : इसका अर्थ है “नमस्कार” या “आत्मसमर्पण”। साधक विनम्रता से हनुमानजी के चरणों में अपने आप को समर्पित करता है।

मंत्र का संपूर्ण अर्थ

इस मंत्र के द्वारा साधक हनुमानजी के ग्यारह रूपों का आह्वान करता है और उनसे प्रार्थना करता है कि वे उसके जीवन से सभी दुष्ट, तंत्र-मंत्र बाधाओं और शत्रुओं का नाश करें। यह मंत्र साधक को साहस, शक्ति, और सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा प्रदान करता है।

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जप काल में इन चीजों का सेवन अधिक करें

एकादशमुखी हनुमान मंत्र के जप के दौरान साधक को सात्त्विक और ऊर्जा देने वाले आहार का सेवन करना चाहिए। इससे मन में शांति और शरीर में ऊर्जा बनी रहती है, जो साधना में मददगार होती है।

1. दूध और दूध से बने पदार्थ

  • जप के समय दूध, छाछ, दही आदि का सेवन लाभकारी माना जाता है। यह शुद्ध और ऊर्जा देने वाले पदार्थ होते हैं, जो साधक की शक्ति और सहनशक्ति को बढ़ाते हैं।

2. फल और सूखे मेवे

  • फल जैसे केला, सेब, अनार, और संतरा आदि का सेवन करें। सूखे मेवे जैसे बादाम, अखरोट और किशमिश मानसिक शक्ति और एकाग्रता बढ़ाते हैं। यह सात्त्विक आहार भी माने जाते हैं।

3. पानी और जड़ी-बूटियों का सेवन

  • जप के समय अधिक मात्रा में पानी पीने से शरीर में तरलता बनी रहती है। तुलसी, गिलोय या अदरक का पानी पीना भी लाभदायक होता है, क्योंकि यह शरीर को शुद्ध और ऊर्जावान बनाए रखते हैं।

4. मिठास के लिए शहद

  • शुद्ध शहद का सेवन करें, जो कि शक्ति और मिठास प्रदान करता है। इससे शरीर की ऊर्जा और मानसिक स्थिरता में वृद्धि होती है।

5. सात्त्विक भोजन

  • बिना मसाले या हल्के मसाले का सात्त्विक भोजन करें। हरी सब्जियां, मूंग की दाल, और चावल जैसे आहार ग्रहण करें। इससे शरीर में शांति और संतुलन बना रहता है।

6. अन्न से अधिक आहार का त्याग करें

  • साधक को अत्यधिक भारी भोजन का त्याग करना चाहिए। केवल हल्का, सात्त्विक भोजन लेने से ऊर्जा और एकाग्रता बनी रहती है।

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एकादशमुखी हनुमान मंत्र के लाभ

  1. शत्रुओं से सुरक्षा
  2. तंत्र-मंत्र बाधा से रक्षा
  3. ऊपरी बाधाओं से सुरक्षा
  4. धन की रक्षा
  5. परिवार की रक्षा
  6. वैवाहिक जीवन में सुख
  7. जीवन में स्थिरता
  8. मानसिक शांति
  9. आत्मबल में वृद्धि
  10. कठिन समय में आत्मविश्वास
  11. किसी भी दुर्घटना से सुरक्षा
  12. संतान सुख
  13. व्यापार में उन्नति
  14. स्वास्थ्य की सुरक्षा
  15. करियर में सफलता
  16. यात्रा में सुरक्षा
  17. घर की सुख-समृद्धि
  18. शत्रुओं पर विजय

पूजा सामग्री और विधि

  • सामग्री: हनुमानी सिंदूर,तिल के तेल का दीपक, लाल आसन
  • विधि: हनुमानजी की तस्वीर के सामने तिल के तेल का दीपक जलाएं, उसमें एक बूंद चमेली का तेल डालें। हनुमान मुद्रा या सूकरी मुद्रा में बैठकर मंगलवार से 20 मिनट तक प्रतिदिन 9 दिन तक इस मंत्र का जप करें। 9 दिन बाद भोजन या अन्न का दान करें। अब हनुमानी सिंदूर को लाल कपड़े मे बांधकर घर के मंदिर, ऑफिस, दुकान मे रखे।

मंत्र जप के दिन, अवधि और मुहुर्त

  • मंगलवार से आरंभ करें
  • दिन में 20 मिनट प्रतिदिन जप करें
  • शुभ मुहुर्त में जप प्रारंभ करना लाभकारी होता है

मंत्र जप के नियम

  • उम्र 20 वर्ष से अधिक
  • स्त्री-पुरुष दोनों कर सकते हैं
  • नीले या काले वस्त्र न पहनें
  • धूम्रपान, मद्यपान, और मांसाहार का त्याग करें
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें

जप के दौरान सावधानियाँ

  • पवित्रता बनाए रखें
  • किसी भी नकारात्मक विचार को मन में न आने दें
  • समर्पण और श्रद्धा के साथ जप करें

एकादशमुखी हनुमान मंत्र से संबंधित प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1: एकादशमुखी हनुमान मंत्र क्या है?
उत्तर: यह हनुमानजी के ग्यारह रूपों की आराधना का मंत्र है, जो साधक को शत्रु, तंत्र-मंत्र बाधाओं से सुरक्षा और कार्य सिद्धि में मदद करता है।

प्रश्न 2: इस मंत्र का जप कब किया जा सकता है?
उत्तर: यह मंत्र मंगलवार से शुरू करना शुभ माना जाता है। इसे प्रतिदिन सुबह या शाम के समय जप सकते हैं।

प्रश्न 3: इस मंत्र का कितने दिनों तक जप करना चाहिए?
उत्तर: लगातार 9 दिनों तक प्रतिदिन 20 मिनट के लिए जप करें।

प्रश्न 4: इस मंत्र के कौन-कौन से लाभ हैं?
उत्तर: यह मंत्र शत्रु से सुरक्षा, तंत्र बाधा से मुक्ति, धन और परिवार की रक्षा जैसे लाभ प्रदान करता है।

प्रश्न 5: क्या स्त्री और पुरुष दोनों इस मंत्र का जप कर सकते हैं?
उत्तर: हां, स्त्री और पुरुष दोनों इस मंत्र का जप कर सकते हैं, लेकिन नियमों का पालन करना आवश्यक है।

प्रश्न 6: मंत्र जप के समय किस प्रकार के वस्त्र पहनने चाहिए?
उत्तर: लाल, पीले या सफेद वस्त्र पहनना शुभ है; नीले या काले वस्त्र से बचना चाहिए।

प्रश्न 7: मंत्र जप के दौरान किन चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए?
उत्तर: मांसाहार, मद्यपान, धूम्रपान का सेवन न करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।

प्रश्न 8: इस मंत्र के जप के लिए कौन-कौन सी सामग्री चाहिए?
उत्तर: हनुमानी सिंदूर, तिल के तेल का दीपक, लाल आसन, और हनुमानजी की तस्वीर।

प्रश्न 9: क्या इस मंत्र का प्रभाव तुरंत दिखता है?
उत्तर: इस मंत्र का प्रभाव धीरे-धीरे साधक की श्रद्धा और समर्पण के अनुसार दिखता है।

प्रश्न 10: क्या इसे घर या ऑफिस में जप सकते हैं?
उत्तर: हां, घर और ऑफिस में एकांत स्थान पर इस मंत्र का जप किया जा सकता है।

प्रश्न 11: क्या इस मंत्र के लिए कोई विशेष दिशा में बैठना जरूरी है?
उत्तर: उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना शुभ माना जाता है।

प्रश्न 12: क्या यह मंत्र तंत्र-मंत्र बाधा से मुक्त कर सकता है?
उत्तर: हां, यह मंत्र तंत्र बाधाओं और ऊपरी बाधाओं से सुरक्षा प्रदान करता है, जिससे साधक सुरक्षित रहता है।

Tulsi Vivah Pujan Shivir – Solve Marital Issues or Find Life Partner

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तुलसी विवाह पूजन शिविर -१३ नवंबर २०२४

तुलसी विवाह पूजन शिविर का उद्देश्य लोगों को तुलसी पूजन के माध्यम से अपने जीवन में संबंधों को मजबूत करना, आत्मिक शांति प्राप्त करना और जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान करना है। तुलसी विवाह भारतीय परंपरा में अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है, जो संबंधों में मधुरता, विवाह में आने वाली बाधाओं या दांपत्य जीवन की समस्याओं से जूझ रहे हैं। इस वर्ष, 13 नवम्बर 2024 को वज्रेश्वरी में तुलसी विवाह पूजन शिविर का आयोजन किया जा रहा है। यह शिविर लोगों को मानसिक शांति, आत्मिक संतुलन, और उनके जीवन में सुख-समृद्धि लाने का एक अद्वितीय अवसर प्रदान करेगा। इसमें भाग लेने के इच्छुक प्रतिभागी शिविर स्थल पर या ऑनलाइन भी जुड़ सकते हैं।

शिविर का उद्देश्य (Tulsi Vivah Poojan Shivir Objective)

तुलसी विवाह पूजन शिविर का उद्देश्य लोगों को तुलसी पूजन के माध्यम से अपने जीवन में संबंधों को मजबूत करना, आत्मिक शांति प्राप्त करना और जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान करना है।

शिविर की तिथि, स्थान और समय (Shivir Date, Place, and Timing)

तिथि: 13 नवम्बर 2024
स्थान: वज्रेश्वरी, महाराष्ट्र
समय: सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक

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तुलसी विवाह पूजन शिविर के लाभ (Benefits of Tulsi Vivah Poojan Shivir)

तुलसी विवाह पूजन से मिलने वाले मुख्य लाभ इस प्रकार हैं:

  1. संबंधों में मधुरता: पूजन से दांपत्य संबंधों में प्रेम और सामंजस्य बढ़ता है।
  2. जीवन साथी का चयन: अविवाहितों को मनचाहा जीवन साथी मिलने में सहायता मिलती है।
  3. विवाहित जीवन की समस्याएं: दांपत्य जीवन में आने वाले संघर्षों का समाधान मिलता है।
  4. गृहस्थ जीवन की समस्याएं: पारिवारिक विवादों और जीवन में आने वाले संघर्षों में कमी आती है।
  5. आर्थिक बाधाएं दूर करना: आर्थिक समस्याओं का समाधान होता है और परिवार में संपन्नता आती है।
  6. विवाह में देरी का समाधान: जिनके विवाह में देरी हो रही हो, उनके विवाह में शुभ संयोग बनते हैं।
  7. मानसिक शांति: मानसिक शांति और आत्मिक संतुलन प्राप्त होता है।
  8. धन-समृद्धि में वृद्धि: तुलसी पूजन से धन और संपत्ति में वृद्धि होती है।
  9. संतान प्राप्ति: नि:संतान दंपत्ति के लिए यह पूजन फलदायी है।
  10. सफलता के मार्ग प्रशस्त करना: जीवन में सफलता प्राप्ति के मार्ग खुलते हैं।
  11. स्वास्थ्य में सुधार: स्वास्थ्य लाभ मिलता है और रोगों से छुटकारा मिलता है।
  12. बाधाओं से मुक्ति: सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं।
  13. प्राकृतिक संतुलन: तुलसी पर्यावरण शुद्ध करती है, जिससे सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
  14. ग्रह दोषों का निवारण: कुंडली में ग्रह दोषों से मुक्ति मिलती है।
  15. प्रेम संबंधों में मजबूती: प्रेम संबंधों में विश्वास और भावनात्मक लगाव बढ़ता है।
  16. जीवन में सकारात्मकता: नकारात्मकता दूर होती है और सकारात्मक दृष्टिकोण आता है।
  17. ईश्वर का आशीर्वाद: इस पूजन से ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है।
  18. आत्मिक संतोष: जीवन में संतोष और खुशी का अनुभव होता है।

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कौन इस शिविर में भाग ले सकता है? (Who Can Join the Tulsi Vivah Poojan Shivir)

यह शिविर उन सभी के लिए है, जो अपने जीवन में सुख-समृद्धि, शांति और संतुलन की तलाश में हैं।

  1. उम्र सीमा: 20 वर्ष से अधिक उम्र के लोग।
  2. महिला-पुरुष दोनों: कोई भी स्त्री या पुरुष इस शिविर में भाग ले सकता है।
  3. विशेष परिधान: शिविर में शामिल होते समय ब्लू और ब्लैक रंग के कपड़े न पहनें।
  4. धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार वर्जित: शिविर के दौरान धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार का सेवन न करें।
  5. ब्रह्मचर्य का पालन: शिविर के दौरान पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य है।

शिविर में आने और ऑनलाइन भाग लेने का विकल्प (In-Person and Online Participation Options)

जो लोग शिविर में सीधे उपस्थित नहीं हो सकते, वे ऑनलाइन भी इस पूजन में भाग ले सकते हैं।

तुलसी विवाह पूजन शिविर से संबंधित प्रमुख प्रश्न और उत्तर

1. तुलसी विवाह पूजन शिविर क्या है?

उत्तर: तुलसी विवाह पूजन शिविर एक धार्मिक आयोजन है, जिसमें तुलसी और शालिग्राम का विवाह किया जाता है। यह विवाह उन लोगों के लिए विशेष लाभकारी माना जाता है, जो वैवाहिक जीवन में समस्याओं का सामना कर रहे हैं, विवाह में देरी हो रही है या संबंधों में मधुरता लाना चाहते हैं।

2. तुलसी विवाह पूजन से क्या लाभ होते हैं?

उत्तर: इस पूजन से संबंधों में प्रेम और सामंजस्य बढ़ता है, विवाह में देरी दूर होती है, आर्थिक बाधाएं कम होती हैं, और परिवार में सुख-शांति का वातावरण बनता है।

3. इस शिविर में कौन भाग ले सकता है?

उत्तर: 20 वर्ष से अधिक उम्र के स्त्री-पुरुष कोई भी इस शिविर में भाग ले सकते हैं। इसमें विवाहित और अविवाहित दोनों ही शामिल हो सकते हैं।

4. शिविर में भाग लेने के नियम क्या हैं?

उत्तर: शिविर में शामिल होने वाले व्यक्ति को धूम्रपान, मद्यपान, और मांसाहार का त्याग करना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन, और नीले या काले कपड़े न पहनना अनिवार्य है।

5. क्या शिविर में ऑनलाइन भाग लिया जा सकता है?

उत्तर: जी हां, जो लोग शिविर स्थल पर उपस्थित नहीं हो सकते, वे ऑनलाइन माध्यम से भी इस शिविर में भाग ले सकते हैं।

6. क्या शिविर का असर आर्थिक समस्याओं पर होता है?

उत्तर: तुलसी पूजन से आर्थिक समस्याएं कम होती हैं। यह धन-संपत्ति में वृद्धि और आर्थिक स्थिरता लाने में सहायक है।

7. क्या अविवाहितों के लिए यह शिविर लाभकारी है?

उत्तर: हां, यह शिविर अविवाहितों के लिए भी अत्यंत लाभकारी है। यह विवाह में आ रही बाधाओं को दूर करने और शुभ संयोग बनाने में सहायक होता है।

8. इस पूजन का क्या स्वास्थ्य पर भी प्रभाव होता है?

उत्तर: तुलसी पूजन से वातावरण शुद्ध होता है, जो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। इससे सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।

9. क्या इस पूजन का असर संतान प्राप्ति में होता है?

उत्तर: नि:संतान दंपत्ति इस पूजन से संतान प्राप्ति की संभावना को बढ़ा सकते हैं, यह धार्मिक और आध्यात्मिक उपायों में एक महत्वपूर्ण माना गया है।

10. क्या दांपत्य जीवन में समस्या समाधान के लिए यह पूजन उचित है?

उत्तर: तुलसी विवाह पूजन से दांपत्य जीवन में मधुरता आती है, विवादों में कमी आती है और दांपत्य संबंधों में स्थिरता बढ़ती है।

11. क्या इसका असर प्रेम संबंधों पर भी होता है?

उत्तर: जी हां, यह पूजन प्रेम संबंधों में स्थिरता, विश्वास और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, जिससे संबंध मजबूत होते हैं।

12. क्या यह पूजन सभी प्रकार की बाधाओं को दूर कर सकता है?

उत्तर: तुलसी पूजन से व्यक्ति की कुंडली में ग्रह दोषों का निवारण होता है, जिससे जीवन में आ रही विभिन्न बाधाएं कम होती हैं।

अंत मे (Conclusion)

तुलसी विवाह पूजन शिविर में भाग लेना एक अद्वितीय अवसर है, जो न केवल आध्यात्मिक बल्कि जीवन के सभी क्षेत्रों में संतुलन, सुख और समाधान प्रदान करता है।

What to Offer and Avoid in Deity Worship

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देवी-देवताओं की पूजा: क्या चढ़ाना है और क्या है वर्जित?

देवी-देवताओं की पूजा में कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें चढ़ाना वर्जित माना गया है। यहाँ कुछ सामान्य वर्जनाएँ दी गई हैं:

  1. तुलसी के पत्ते: तुलसी के पत्तों का उपयोग भगवान शिव और देवी दुर्गा की पूजा में नहीं किया जाता है। तुलसी का पत्ता केवल भगवान विष्णु और उनके अवतारों को चढ़ाने के लिए उपयुक्त माना जाता है।
  2. केतु पुष्प (केतकी का फूल): भगवान शिव की पूजा में केतकी के फूल का उपयोग वर्जित है। पौराणिक कथा के अनुसार, केतकी के फूल ने झूठ का सहारा लिया था, इसलिए इसे शिव पूजा में वर्जित कर दिया गया।
  3. तूथपेस्ट और साबुन: पूजा से पहले स्नान करना और प्राकृतिक रूप से शुद्ध होना आवश्यक होता है, लेकिन कुछ लोग पूजा से पहले कृत्रिम चीजों का उपयोग करते हैं जो अनुचित माना जाता है।
  4. सूर्यास्त के बाद तुलसी और शंख: हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्यास्त के बाद तुलसी और शंख का उपयोग पूजा में नहीं किया जाता है।
  5. लाल मिर्च या खट्टा पदार्थ: पूजा में तीखी और खट्टी चीजों का चढ़ावा वर्जित है, क्योंकि ये अशुद्ध मानी जाती हैं। देवी-देवताओं को केवल सादा या मीठा प्रसाद ही अर्पित करना चाहिए।
  6. बासी फूल और फल: पूजा में ताजे फूल और फल ही चढ़ाए जाते हैं। बासी या मुरझाए हुए फूलों को देवी-देवताओं पर अर्पित करना वर्जित है।
  7. अर्क और मद्य पदार्थ: ज्यादातर पूजा में मद्य पदार्थ, जैसे शराब, का प्रयोग वर्जित माना जाता है। विशेष प्रकार की तांत्रिक पूजाओं में इनका उपयोग किया जाता है, लेकिन सामान्य पूजा में ये अर्पित नहीं किए जाते।
  8. कांटेदार और दूध वाले पौधे: कांटेदार पौधे और दूध छोड़ने वाले पौधे जैसे आक और मदार को सभी देवी-देवताओं की पूजा में वर्जित माना गया है, क्योंकि इन्हें अशुभ माना जाता है।
  9. प्लास्टिक या कृत्रिम फूल: पूजा में कृत्रिम फूलों का उपयोग नहीं करना चाहिए। देवी-देवताओं को केवल प्राकृतिक और ताजे फूल ही अर्पित किए जाने चाहिए।
  10. तांबे के बर्तन में दूध: पूजा में तांबे के बर्तन में दूध अर्पित करना वर्जित है, क्योंकि तांबा और दूध का संयोजन अपवित्र माना गया है।

इन वर्जित चीजों का ध्यान रखने से पूजा शुद्ध और पूर्ण मानी जाती है।

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पूजा नियम

सभी देवी-देवताओं की पूजा में कुछ विशेष वर्जनाएँ और नियम होते हैं जिनका पालन करना आवश्यक माना जाता है। यहां कुछ सामान्य वर्जनाएँ दी गई हैं:

  1. शराब और मांस: पूजा करते समय शराब और मांस का सेवन वर्जित होता है। इसे पूजा के स्थान के पवित्रता को भंग करने वाला माना जाता है।
  2. चमड़े का सामान: चमड़े के बने सामान जैसे कि बेल्ट, पर्स या जूते को पूजा स्थल पर ले जाना वर्जित है, क्योंकि इसे अपवित्र माना जाता है।
  3. अशुद्धता: शारीरिक और मानसिक रूप से शुद्ध होना महत्वपूर्ण है। महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान मंदिर या पूजा में शामिल नहीं होने की सलाह दी जाती है। इसी प्रकार शारीरिक रूप से अस्वच्छ व्यक्ति को पूजा में नहीं बैठना चाहिए।
  4. क्रोध और अहंकार: पूजा में शांत मन और विनम्रता जरूरी है। क्रोध, अहंकार, और किसी के प्रति द्वेष भावना से पूजा करना गलत माना जाता है।
  5. प्याज, लहसुन और तामसिक भोजन: देवी-देवताओं की पूजा में प्याज, लहसुन और अन्य तामसिक पदार्थों का सेवन वर्जित है। इसे शारीरिक और मानसिक शुद्धि के लिए अनुचित माना जाता है।
  6. अनुचित वेशभूषा: पूजा में साफ और उचित वस्त्र पहनना चाहिए। विशेषकर चमकीले, भड़कीले और अनुचित कपड़े पहनने से पूजा का महत्व कम हो सकता है।
  7. भोग और प्रसाद: पूजा में भोग चढ़ाने से पहले उसे खुद न खाएं। देवी-देवताओं को अर्पित भोग को प्रसाद बनने के बाद ही ग्रहण करना चाहिए।
  8. गलत मंत्रोच्चारण: पूजा में मंत्र का सही उच्चारण आवश्यक है। गलत मंत्रों का उच्चारण वर्जित माना जाता है, क्योंकि इससे पूजा का प्रभाव कम हो सकता है।

Shri Krishna Mahamantra – Wealth & Prosperity

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श्री कृष्ण महामंत्र: आध्यात्मिक उन्नति और इच्छापूर्ती

श्री कृष्ण महामंत्र का जप श्रीकृष्ण की कृपा, शांति और आंतरिक शक्ति को प्राप्त करने का विशेष साधन है। इस मंत्र के माध्यम से व्यक्ति को आत्मिक शांति और मानसिक शक्ति प्राप्त होती है। यह मंत्र जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और सभी दुखों का अंत करता है।

दसों दिशाओं का दिग्बंधन मंत्र और उसका अर्थ

दिग्बंधन मंत्र:

“ॐ ॐकाराय महादेवाय नमः। पूर्वस्यां दिशि आगच्छ आगच्छ, रक्ष रक्ष मम।
ॐ ॐकाराय महादेवाय नमः। आग्नेय्यां दिशि आगच्छ आगच्छ, रक्ष रक्ष मम।
ॐ ॐकाराय महादेवाय नमः। दक्षिणस्यां दिशि आगच्छ आगच्छ, रक्ष रक्ष मम।
ॐ ॐकाराय महादेवाय नमः। नैऋत्यां दिशि आगच्छ आगच्छ, रक्ष रक्ष मम।
ॐ ॐकाराय महादेवाय नमः। पश्चिमस्यां दिशि आगच्छ आगच्छ, रक्ष रक्ष मम।
ॐ ॐकाराय महादेवाय नमः। वायव्यां दिशि आगच्छ आगच्छ, रक्ष रक्ष मम।
ॐ ॐकाराय महादेवाय नमः। उत्तरस्यां दिशि आगच्छ आगच्छ, रक्ष रक्ष मम।
ॐ ॐकाराय महादेवाय नमः। ईशान्यां दिशि आगच्छ आगच्छ, रक्ष रक्ष मम।
ॐ ॐकाराय महादेवाय नमः। ऊर्ध्वस्यां दिशि आगच्छ आगच्छ, रक्ष रक्ष मम।
ॐ ॐकाराय महादेवाय नमः। अधस्यां दिशि आगच्छ आगच्छ, रक्ष रक्ष मम।”

मंत्र का अर्थ:

यह दिग्बंधन मंत्र दसों दिशाओं से सुरक्षा के लिए उच्चारित किया जाता है। इसमें भगवान महादेव के साथ अन्य देवताओं को आह्वान कर सभी दिशाओं से रक्षा की प्रार्थना की जाती है।

  • पूर्व (East): जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार।
  • आग्नेय (Southeast): साहस और शक्ति की प्राप्ति।
  • दक्षिण (South): भय से मुक्ति और मनोबल में वृद्धि।
  • नैऋत्य (Southwest): बुरी आत्माओं और नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा।
  • पश्चिम (West): शांति और आंतरिक शक्ति का संचार।
  • वायव्य (Northwest): मानसिक स्थिरता और संतुलन की प्राप्ति।
  • उत्तर (North): आत्मिक शांति और समृद्धि का आह्वान।
  • ईशान (Northeast): आध्यात्मिक उन्नति और देवताओं का संरक्षण।
  • ऊर्ध्व (Upwards): ब्रह्मांडीय ऊर्जा और दिव्य कृपा का संचार।
  • अधो (Downwards): पृथ्वी माता से सुरक्षा और स्थिरता की प्राप्ति।

सार:
यह मंत्र साधक के चारों ओर एक ऊर्जा कवच का निर्माण करता है, जिससे नकारात्मक शक्तियां दूर रहती हैं और चारों दिशाओं से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।

श्री कृष्ण महामंत्र और उसका संपूर्ण अर्थ

मंत्र: “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं कृष्णाय गोविंदाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा।”

अर्थ:

  • : यह ब्रह्मांड की परम ध्वनि है, जो हमें परमात्मा से जोड़ती है। यह ध्वनि सभी प्रकार की ऊर्जा का प्रतीक है और मन को शांति प्रदान करती है।
  • श्रीं: यह लक्ष्मी का बीज मंत्र है। इसे जपने से धन, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। श्रीकृष्ण के साथ इसे जोड़ने का अर्थ है उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करना, जो हर प्रकार की संपन्नता का कारण है।
  • ह्रीं: यह शक्ति और संरक्षण का प्रतीक है। ह्रीं के उच्चारण से मन को साहस और आत्मिक शक्ति मिलती है। इसका अर्थ है श्रीकृष्ण की दयालुता और उनकी शक्तिशाली उपस्थिति को अपने भीतर महसूस करना।
  • क्लीं: प्रेम, आकर्षण और संबंधों का बीज मंत्र है। यह भगवान कृष्ण के आकर्षण और प्रेम का प्रतीक है, जो भक्तों को उनके दिव्य प्रेम का अनुभव कराता है।
  • कृष्णाय: इसका अर्थ है ‘कृष्ण के लिए’ या ‘कृष्ण को समर्पित’। यह हमें उनकी दिव्य लीलाओं और शक्तियों का स्मरण कराता है।
  • गोविंदाय: इसका अर्थ है ‘गायों के रक्षक’ या ‘गोपियों का प्रिय’। इस नाम में श्रीकृष्ण की उन सभी लीलाओं का सार है जिनसे वे अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें आनंद प्रदान करते हैं।
  • गोपीजनवल्लभाय: इसका अर्थ है ‘गोपियों के प्रिय’। यह भगवान कृष्ण के उस रूप को दर्शाता है जो प्रेम और भक्ति का प्रतीक है।
  • स्वाहा: यह समर्पण का प्रतीक है। इसके उच्चारण से साधक भगवान कृष्ण के प्रति अपनी पूर्ण भक्ति और समर्पण प्रकट करता है।

संपूर्ण अर्थ:

इस मंत्र का जप करने से साधक श्रीकृष्ण के सभी दिव्य गुणों, उनकी कृपा, प्रेम और शक्ति को अपने जीवन में आमंत्रित करता है। यह मंत्र आत्मिक शांति, सुख-समृद्धि, और प्रेम के साथ-साथ सुरक्षा का अनुभव कराता है।

जप के दौरान सेवन की जाने वाली चीजें

  • दूध और फल
  • ताजे फल और हरी सब्जियां
  • तुलसी पत्ते का सेवन

श्री कृष्ण महामंत्र जप के लाभ

  1. आत्मिक शांति
  2. मानसिक स्पष्टता
  3. परिवार में प्रेम
  4. तनाव मुक्ति
  5. भौतिक सुख की प्राप्ति
  6. कार्य में सफलता
  7. रोगों से मुक्ति
  8. सकारात्मक ऊर्जा
  9. प्रेम में वृद्धि
  10. स्वाभाविक आकर्षण
  11. दुखों का नाश
  12. धन में वृद्धि
  13. भक्तिभाव जागृत
  14. मनोबल में वृद्धि
  15. सकारात्मक परिवर्तन
  16. सुख की प्राप्ति
  17. सभी संकटों का नाश
  18. पूर्णता की प्राप्ति

पूजन सामग्री और विधि

पूजा सामग्री में एक तुलसी का पत्ता, एक आसन, शुद्ध जल, पीले वस्त्र आदि सम्मिलित होते हैं। पूजा के दिन (अष्टमी,एकादशी, गुरुवार) और मुहूर्त (सुबह या सूर्यास्त के बाद) में करना उत्तम रहता है।

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श्री कृष्ण महामंत्र जप नियम

  • जप का समय: 20 मिनट प्रति दिन
  • जप की अवधि: 18 दिन तक
  • कपड़े: नीले और काले वस्त्र न पहनें।
  • अनुशासन: ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  • वर्जित आहार: धूम्रपान, मद्यपान, और मांसाहार का सेवन न करें।

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जप करते समय सावधानियाँ

  • शुद्ध स्थान पर बैठें।
  • मानसिक स्थिरता बनाए रखें।
  • जप के समय नकारात्मक विचार न लाएं।

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श्री कृष्ण महामंत्र से संबंधित प्रश्न और उत्तर

क्या यह मंत्र किसी विशेष देवी-देवता को समर्पित है?
हाँ, यह मंत्र भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है, जो प्रेम, आनंद और आशीर्वाद के प्रतीक हैं।

श्री कृष्ण महामंत्र का महत्व क्या है?
श्री कृष्ण महामंत्र का जप करने से आत्मिक शांति, मानसिक स्थिरता और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

कौन-कौन लोग इस मंत्र का जप कर सकते हैं?
20 वर्ष से अधिक आयु के स्त्री और पुरुष, चाहे वे किसी भी वर्ग के हों, इस मंत्र का जप कर सकते हैं।

मंत्र का जप कितने दिन करना चाहिए?
इस मंत्र का जप 18 दिनों तक, प्रतिदिन 20 मिनट के लिए किया जाना चाहिए।

क्या जप के लिए विशेष समय आवश्यक है?
हाँ, सूर्योदय या सूर्यास्त का समय जप के लिए श्रेष्ठ माना जाता है, लेकिन सुविधानुसार शांत और स्वच्छ वातावरण में किसी भी समय जप किया जा सकता है।

क्या इस मंत्र के जप में कोई विशेष आहार का पालन करना चाहिए?
हाँ, शुद्ध और सात्विक आहार लेना चाहिए। मांसाहार, मद्यपान, और धूम्रपान से बचना चाहिए।

मंत्र जप के दौरान किस प्रकार के वस्त्र पहनने चाहिए?
सफेद, पीले, या हल्के रंग के वस्त्र पहनने चाहिए। नीले और काले वस्त्र से बचना चाहिए।

इस मंत्र से क्या लाभ प्राप्त होते हैं?
मानसिक शांति, सुख-समृद्धि, संबंधों में प्रेम और आंतरिक शक्ति मिलती है।

क्या मंत्र जप के दौरान कोई विशेष नियम का पालन करना चाहिए?
हाँ, ब्रह्मचर्य का पालन करें और संयमित आचरण बनाए रखें।

मंत्र जप के दौरान किस मुद्रा में बैठना चाहिए?
साधक को सुखासन या पद्मासन में बैठना चाहिए।

मंत्र जप के समय मानसिक स्थिति कैसी होनी चाहिए?
मन को शांति और भक्ति भाव से भरकर जप करना चाहिए।

मंत्र जप से किस प्रकार की सुरक्षा मिलती है?
यह मंत्र नकारात्मक ऊर्जा और नकारात्मक विचारों से सुरक्षा प्रदान करता है।

Pitambara Mantra & Its Magical Effects

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पीतांबरा मंत्र: सफलता और समृद्धि के लिए शक्तिशाली साधना

पीतांबरा मंत्र को अत्यधिक शक्तिशाली और मंगलकारी माना जाता है। यह मंत्र माँ बगलामुखी का एक महत्वपूर्ण मंत्र है, जो सभी कार्यों को सफलता दिलाने, शत्रुओं को वश में करने और जीवन में सुख, समृद्धि एवं शांति लाने के लिए सिद्ध है। यह मंत्र न केवल हमारे भीतर आत्मबल का संचार करता है, बल्कि नकारात्मक ऊर्जा को भी समाप्त करता है।

पीतांबरा मंत्र और उसका संपूर्ण अर्थ

पीतांबरा मंत्र का उच्चारण करते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाए। यह मंत्र माँ बगलामुखी की कृपा को प्राप्त करने और सभी कार्यों में सफलता पाने के लिए जपा जाता है।

मंत्र:
ॐ ह्लीं पीतांबरे सर्वार्थ मंगलं सिद्धिम् देही ह्ल्रीं स्वाहा।

मंत्र का अर्थ

  • : यह एक परम ध्वनि है, जो सृष्टि के आरंभ और समापन का प्रतीक है। इसका उच्चारण करने से साधक की ऊर्जा सकारात्मक बनती है।
  • ह्लीं: यह बीज मंत्र है, जो माँ बगलामुखी की शक्तियों का प्रतीक है। इससे मानसिक बल और शक्ति का संचार होता है।
  • पीतांबरे: यहाँ “पीतांबरे” का अर्थ है पीले वस्त्रधारी। माँ बगलामुखी को पीले रंग का वस्त्र धारण करने वाली देवी माना जाता है, जो समृद्धि, सुख और संतोष का प्रतीक है।
  • सर्वार्थ: इसका अर्थ है सभी प्रकार के कार्य। यह शब्द यह दर्शाता है कि इस मंत्र का जाप सभी कार्यों में सफलता की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
  • मंगलं: इसका अर्थ है मंगल और शुभता। यह दर्शाता है कि साधक माँ से मंगलकारी फल की प्रार्थना कर रहा है।
  • सिद्धिम्: इसका अर्थ है सिद्धि या पूर्णता। यहाँ साधक यह प्रार्थना करता है कि माँ उसे सिद्धि प्रदान करें, जिससे उसके सभी कार्य पूर्ण हो सकें।
  • देही: इसका अर्थ है ‘मुझे दे’ या ‘मुझे प्रदान करें’। साधक माँ से उनके आशीर्वाद और कृपा की प्रार्थना कर रहा है।
  • ह्ल्रीं: यह भी एक बीज मंत्र है, जो विशेष रूप से शक्ति और समृद्धि के लिए जपा जाता है।
  • स्वाहा: इसका अर्थ है ‘स्वाहा’ या ‘स्वीकार करें’। यह शब्द आहुति या समर्पण के प्रतीक के रूप में प्रयोग किया जाता है।

संपूर्ण अर्थ:

इस मंत्र का संपूर्ण अर्थ है: “हे माँ पीतांबरा, आप मुझे सभी कार्यों में मंगल और सफलता प्रदान करें। आपकी शक्ति से मुझे पूर्णता एवं सिद्धि प्राप्त हो। आपकी कृपा से मेरे सभी कार्य सफल हों।”

जप के समय सेवन करने योग्य चीजें

जब आप मंत्र जप कर रहे होते हैं, तो कुछ विशेष आहार और चीजें हैं जिन्हें सेवन करने से लाभ मिलता है। यहाँ पर कुछ चीजें दी गई हैं जो जप के समय अधिक उपयुक्त मानी जाती हैं:

  1. दूध:
    दूध सेहत के लिए फायदेमंद होता है और यह मानसिक शांति भी प्रदान करता है। जप के समय दूध का सेवन करना शुभ माना जाता है।
  2. फलों का सेवन:
    ताजे फल, जैसे केला, सेब, संतरा, और अंगूर, जप के दौरान ऊर्जा प्रदान करते हैं और स्वास्थ्य को बनाए रखते हैं।
  3. हल्का आहार:
    जप के समय हल्का आहार लेना बेहतर होता है। चपाती, दाल, और सब्जी का सेवन करना शुभ माना जाता है।
  4. शहद:
    शहद प्राकृतिक ऊर्जा का स्रोत होता है और यह मन को शांत रखने में मदद करता है।
  5. सूखे मेवे:
    किशमिश, अखरोट, और बादाम जैसे सूखे मेवे मानसिक शक्ति बढ़ाते हैं और ध्यान केंद्रित करने में मदद करते हैं।
  6. पानी:
    जप के दौरान पर्याप्त मात्रा में पानी पीना जरूरी है, क्योंकि यह शरीर को हाइड्रेटेड रखता है और ऊर्जा बनाए रखता है।
  7. जड़ी-बूटियाँ:
    तुलसी और अदरक जैसे प्राकृतिक जड़ी-बूटियाँ शरीर को ताजगी और ऊर्जा प्रदान करती हैं।

सेवन से बचने योग्य चीजें

  • प्याज और लहसुन:
    इनका सेवन जप के समय नहीं करना चाहिए क्योंकि इन्हें तामसिक भोजन माना जाता है।
  • मांसाहार:
    जप के समय मांसाहार से दूर रहना चाहिए, क्योंकि यह मानसिक शांति को भंग कर सकता है।
  • धूम्रपान और मद्यपान:
    ये आदतें भी जप के दौरान नहीं अपनानी चाहिए, क्योंकि ये ऊर्जा को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती हैं।

जप के समय सही चीजों का सेवन करने से मन को शांति मिलती है और साधना में अधिक लाभ मिलता है।

पीतांबरा मंत्र के लाभ

  1. सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
  2. शादी व्याह मे सफलता।
  3. संतान सुख।
  4. भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होती है।
  5. मनपसंद जीवन साथी।
  6. मन की शांति मिलती है।
  7. संतान सुख की प्राप्ति होती है।
  8. जीवन में समृद्धि आती है।
  9. परिवार में सुख-शांति का वातावरण बनता है।
  10. मानसिक तनाव कम होता है।
  11. शारीरिक ऊर्जा में वृद्धि होती है।
  12. धन और संपत्ति में वृद्धि होती है।
  13. बुरे सपनों से मुक्ति मिलती है।
  14. आरोग्यता की प्राप्ति होती है।
  15. करियर में सफलता मिलती है।
  16. सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है।
  17. ग्रह दोषों से मुक्ति मिलती है।
  18. नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है।

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पीतांबरा मंत्र पूजा सामग्री और विधि

पूजा सामग्री:

  • चन्दन की माला, हल्दी का टुकड़ा, दीपक, धूप, पीले फूल, केसर, पीली मिठाई।

पूजा विधि

  1. पीले वस्त्र धारण करें।
  2. दीपक जलाएं और माँ बगलामुखी का ध्यान करें।
  3. हल्दी को सामने रखकर मंत्र जप करे।
  4. “ॐ ह्लीं पीतांबरे सर्वार्थ मंगलं सिद्धिम् देही ह्ल्रीं स्वाहा।” मंत्र का २० मिनट जप करें।
  5. जप के बाद हल्दी को किसी पीले कपड़े मे बांधकर अपने पूजाघर मे रखे।

पीतांबरा मंत्र जप का दिन, अवधि और मुहूर्त

  • दिन: मंगलवार या शनिवार से प्रारंभ करें।
  • अवधि: २१ दिन तक।
  • समय: ब्रह्म मुहूर्त में सुबह 4 से 6 बजे के बीच।
  • दैनिक जप: 20 मिनट तक मंत्र का जाप करें।

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पीतांबरा मंत्र जप के नियम

  1. 20 वर्ष से अधिक उम्र वाले स्त्री और पुरुष कोई भी इस मंत्र का जाप कर सकते हैं।
  2. ब्लू और ब्लैक कपड़े न पहनें।
  3. धूम्रपान, मद्यपान, और मांसाहार का त्याग करें।
  4. ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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पीतांबरा मंत्र जप में सावधानियाँ

  1. पूजा स्थल साफ और शांत हो।
  2. मन में संदेह न रखें।
  3. पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ जाप करें।

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पीतांबरा मंत्र से संबंधित प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1: पीतांबरा मंत्र क्या है?
उत्तर: पीतांबरा मंत्र माँ बगलामुखी का शक्तिशाली मंत्र है, जो सभी कार्यों को सफल बनाने और शत्रुओं से सुरक्षा के लिए जप किया जाता है।

प्रश्न 2: पीतांबरा मंत्र का जाप कब करना चाहिए?
उत्तर: मंत्र का जाप ब्रह्म मुहूर्त में सुबह 4 से 6 बजे के बीच करना श्रेष्ठ माना गया है। शनिवार या मंगलवार से प्रारंभ करना लाभकारी होता है।

प्रश्न 3: पीतांबरा मंत्र का जाप कितनी बार करना चाहिए?
उत्तर: इस मंत्र का जाप रोजाना 20 मिनट तक किया जा सकता है, या 108 बार एक माला पूरी करनी चाहिए।

प्रश्न 4: क्या पीतांबरा मंत्र सभी के लिए लाभकारी है?
उत्तर: हाँ, 20 वर्ष से अधिक उम्र वाले स्त्री-पुरुष दोनों इसे कर सकते हैं, अगर वे पूरी श्रद्धा और नियमों का पालन करें।

प्रश्न 5: क्या पीले वस्त्र पहनना अनिवार्य है?
उत्तर: हाँ, पीले वस्त्र पहनना मंत्र साधना में शुभ माना जाता है, और काले या नीले वस्त्र से बचना चाहिए।

प्रश्न 6: पीतांबरा मंत्र के जाप में क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?
उत्तर: जप के दौरान धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार का सेवन न करें। ब्रह्मचर्य का पालन भी अनिवार्य है।

प्रश्न 7: क्या पीतांबरा मंत्र का जाप विशेष मुहूर्त में करना आवश्यक है?
उत्तर: हाँ, शुभ मुहूर्त और ग्रहदोषों के निवारण के लिए उपयुक्त समय का चयन करने से मंत्र सिद्धि जल्दी मिल सकती है।

प्रश्न 8: क्या इस मंत्र से शत्रुओं से सुरक्षा मिलती है?
उत्तर: हाँ, यह मंत्र शत्रुओं को वश में करने और नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा प्रदान करता है।

प्रश्न 9: पीतांबरा मंत्र में कौन सा देवता साध्य है?
उत्तर: पीतांबरा मंत्र में माँ बगलामुखी साध्य हैं, जो कार्यों की सफलता एवं शत्रुनाश के लिए प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 1०: क्या महिलाओं को भी यह मंत्र जप करना चाहिए?
उत्तर: हाँ, महिलाएं भी इस मंत्र का जप कर सकती हैं, परंतु सावधानीपूर्वक नियमों का पालन करें।

प्रश्न 1१: पीतांबरा मंत्र का जाप कितने दिनों तक करना चाहिए?
उत्तर: इस मंत्र का जाप २१ दिन तक प्रतिदिन किया जा सकता है, जिससे इसका संपूर्ण लाभ प्राप्त होता है।

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मनोकामना पूर्ति के लिए बगलामुखी मंत्र: सफलता का मार्ग

मनोकामना पूर्ति बगलामुखी मंत्र का महत्व और प्रभावशाली शक्ति प्राचीन काल से ही मानी गई है। इस २० अक्षर के मंत्र का प्रयोग इच्छाओं की पूर्ति, शत्रुओं से सुरक्षा, और जीवन के विभिन्न कार्यों में सफलता पाने के लिए किया जाता है।

दसों दिशाओं का दिग्बंधन मंत्र व उसका अर्थ

“ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्व दिशायें आवृणय आवृणय स्वाहा॥”

दिग्बंधन मंत्र का प्रयोग पूजा और मंत्र जप के समय सुरक्षा के लिए किया जाता है:

अर्थ: “हे देवी बगलामुखी! सभी दिशाओं से हमारी रक्षा करें।”

बगलामुखी मंत्र व उसका संपूर्ण अर्थ

“ॐ ह्लीं बगलामुखे सर्व कार्य सिद्धिं देही देही ह्ल्रीं स्वाहा॥”

मंत्र अर्थ

  • : यह ब्रह्मांडीय ध्वनि है, जो किसी भी मंत्र की शुरुआत में उसका पवित्रता और शक्ति बढ़ाने के लिए उच्चारित किया जाता है।
  • ह्लीं: यह बीज मंत्र है, जो बगलामुखी देवी का शक्ति और नियंत्रण का प्रतीक है। यह मंत्र की शक्ति को सक्रिय करता है।
  • बगलामुखे: इसका अर्थ है देवी बगलामुखी, जो विशेष रूप से शत्रुओं के विनाश, बाधाओं को दूर करने और सुरक्षा प्रदान करने वाली देवी हैं।
  • सर्व कार्य सिद्धिं: इसका अर्थ है “सभी कार्यों की सिद्धि” यानी, जो भी कार्य करने की इच्छा हो, वह सफलतापूर्वक पूर्ण हो जाए।
  • देही देही: इसका अर्थ है “दे दो, दे दो” यानी देवी से प्रार्थना करना कि वह इच्छित सिद्धि प्रदान करें।
  • ह्ल्रीं: यह एक और बीज मंत्र है, जो देवी की शक्ति और उनके आशीर्वाद को मजबूती से प्रकट करता है।
  • स्वाहा: यह एक अंतिम शब्द है, जो ऊर्जा को समर्पण के साथ स्थिरता और पूर्णता देता है।

अर्थ: “हे बगलामुखी देवी! मुझे सभी कार्यों की सिद्धि प्रदान करें, मेरी सभी इच्छाओं को पूरा करें। मैं आपकी शरण में हूँ और आपसे आशीर्वाद चाहता हूँ।”

जप काल में इन चीजों का सेवन

  • दूध, फल, और सात्विक भोजन का सेवन करें।
  • अत्यधिक मसालेदार और तामसिक भोजन से बचें।

मनोकामना पूर्ति बगलामुखी मंत्र के लाभ

  1. कार्यों में सफलता।
  2. शत्रुओं से सुरक्षा।
  3. मानसिक शांति।
  4. आत्मविश्वास में वृद्धि।
  5. मनोकामना पूर्ति।
  6. नकारात्मकता से मुक्ति।
  7. आत्म-सुरक्षा।
  8. करियर में उन्नति।
  9. शांति और संयम।
  10. स्वास्थ्य में सुधार।
  11. निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि।
  12. समृद्धि का आशीर्वाद।
  13. रिश्तों में सामंजस्य।
  14. आर्थिक वृद्धि।
  15. कार्यों में अड़चनें दूर होना।
  16. विद्या में प्रगति।
  17. भयमुक्त जीवन।
  18. जीवन में सकारात्मकता।

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पूजा सामग्री के साथ मंत्र विधि

  • सामग्री: पीला कपड़ा, बगलामुखी देवी की मूर्ति या फोटो, चंदन, पीले फूल, हल्दी, जल पात्र, दीपक।
  • विधि: मूर्ति को स्नान कराएं, पीले वस्त्र पहनाएं। दीप प्रज्वलित कर हल्दी और चंदन अर्पित करें।

मनोकामना पूर्ति बगलामुखी मंत्र जप का दिन, अवधि, और मुहूर्त

  • दिन: मंगलवार या गुरुवार।
  • अवधि: 11 दिनों तक।
  • मुहूर्त: प्रातःकाल या संध्या काल।

मंत्र जप विधि

  • 20 मिनट तक रोज़ इस मंत्र का जप करें।
  • जप करते समय मन को शांत रखें।

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जप के नियम

  1. उम्र 20 वर्ष से ऊपर।
  2. कोई भी स्त्री या पुरुष कर सकते हैं।
  3. ब्लू या ब्लैक कपड़े न पहनें।
  4. धूम्रपान, मद्यपान, और मांसाहार न करें।
  5. ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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जप में सावधानियाँ

  • एकाग्रता और भक्ति के साथ जप करें।
  • बीच में मंत्र का उच्चारण बंद न करें।

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मनोकामना पूर्ति बगलामुखी मंत्र से संबंधित प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1: क्या यह मंत्र केवल शत्रुओं के लिए है?
उत्तर: नहीं, यह इच्छाओं की पूर्ति और सुरक्षा के लिए भी है।

प्रश्न 2: क्या महिलाएं जप कर सकती हैं?
उत्तर: हां, महिलाएं भी कर सकती हैं।

प्रश्न 3: किस रंग के कपड़े पहनें?
उत्तर: पीले रंग के कपड़े पहने।

प्रश्न 4: मंत्र जप का सबसे अच्छा समय कौन सा है?
उत्तर: प्रातः या संध्या काल।

प्रश्न 5: क्या मासिक धर्म के दौरान महिलाएं जप कर सकती हैं?
उत्तर: सलाह दी जाती है कि इस दौरान जप न करें।

प्रश्न 6: क्या मंत्र जप में मांसाहार वर्जित है?
उत्तर: हां, यह वर्जित है।

प्रश्न 7: इस मंत्र का नियमित जप करने से क्या लाभ होता है?
उत्तर: मानसिक शांति, कार्यसिद्धि, और सुरक्षा मिलती है।

प्रश्न 8: मंत्र कितनी बार जपना चाहिए?
उत्तर: 20 मिनट तक 11 दिनों तक।

प्रश्न 9: क्या इस मंत्र को विशेष तिथि पर जपना आवश्यक है?
उत्तर: मंगलवार और गुरुवार सर्वश्रेष्ठ हैं।

प्रश्न 10: क्या इस मंत्र का प्रभाव शत्रुओं पर होता है?
उत्तर: हां, यह शत्रुओं को परास्त करने में सहायक है।

प्रश्न 11: क्या इस मंत्र का जप करते समय ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक है?
उत्तर: हां, ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

प्रश्न 12: क्या मंत्र को गुरु दीक्षा के बिना जप सकते हैं?
उत्तर: इसे गुरु दीक्षा के साथ जपना श्रेष्ठ होता है, परन्तु स्वयं भी किया जा सकता है।