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Raj Rajeshwar Mahadev Mantra-Protection & Success

Raj Rajeshwar Mahadev Mantra-Protection & Success

राज राजेश्वर महादेव मंत्र: सर्व कार्य सिद्धि और सफलता का रहस्य

राज राजेश्वर महादेव मंत्र शिव जी के एक विशेष और शक्तिशाली स्वरूप को समर्पित है, जो समस्त ब्रह्मांड के राजा हैं। ये “राजन्ना महादेव” के नाम से भी जाने जाते है। इस मंत्र का जाप साधक को कार्य सिद्धि, सफलता, और समृद्धि प्रदान करता है। शिवजी के इस रूप की पूजा से जीवन में हर प्रकार के संकट दूर होते हैं और साधक को आध्यात्मिक उन्नति मिलती है।

दसों दिशाओं का दिग्बंधन मंत्र व उसका अर्थ

मंत्र जप के समय नकारात्मक शक्तियों से रक्षा के लिए दिग्बंधन मंत्र का जाप किया जाता है। यह मंत्र दसों दिशाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
दिग्बंधन मंत्र:
“ॐ ह्रौं ह्रीं क्लीं राज राजेश्वराय स्वाहा।”
अर्थ: इस मंत्र से शिव जी की कृपा से सभी दिशाओं से सुरक्षा प्राप्त होती है और साधक का ध्यान मंत्र जाप में बना रहता है।

राज राजेश्वर महादेव मंत्र व उसका संपूर्ण अर्थ

मंत्र:
“ॐ ह्रौं राज राजेश्वराय सर्व कार्य सिद्धिं कुरु कुरु ह्रौं नमः।”
अर्थ: इस मंत्र में शिव जी के राज राजेश्वर स्वरूप का आह्वान करते हुए साधक उनसे जीवन के सभी कार्यों की सिद्धि की प्रार्थना करता है। मंत्र की शक्ति साधक को मानसिक शांति, सफलता, और हर प्रकार की बाधाओं को दूर करने में मदद करती है।

Raj Rajeshwar Mahadev- Video

राज राजेश्वर महादेव मंत्र से लाभ

  1. सभी कार्यों की सिद्धि
  2. मंत्र सिद्धि
  3. साधना सिद्धि
  4. मानसिक शांति
  5. भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति
  6. व्यापार में सफलता
  7. मान-सम्मान में वृद्धि
  8. पारिवारिक सुख-शांति
  9. शत्रु बाधा नाश
  10. आत्मविश्वास में वृद्धि
  11. स्वास्थ्य लाभ
  12. गुरु कृपा प्राप्ति
  13. आर्थिक उन्नति
  14. वैवाहिक जीवन में सुख
  15. आध्यात्मिक जागरण
  16. नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा
  17. सभी इच्छाओं की पूर्ति

पूजा सामग्री के साथ मंत्र विधि

पूजा सामग्री:

  • सफेद या लाल वस्त्र
  • चंदन का लेप
  • बिल्व पत्र
  • घी का दीपक
  • धूप
  • अक्षत
  • पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर)
  • शुद्ध जल

मंत्र जप का दिन, अवधि और मुहूर्त

मंत्र जप के लिए सोमवार या शिवरात्रि के दिन को शुभ माना जाता है। मंत्र का जाप सूर्योदय या सूर्यास्त के समय करना उत्तम होता है। साधक को इस मंत्र का जाप ११ से २१ दिनों तक लगातार करना चाहिए।

मंत्र जप विधि

जाप संख्या: साधक को प्रतिदिन ११ माला (यानी ११८८ मंत्र) का जाप करना चाहिए।
जाप की अवधि: ११ से २१ दिन तक लगातार जाप करना आवश्यक है।
जाप का समय: सूर्योदय या सूर्यास्त के समय मंत्र जाप करना शुभ होता है।

मंत्र जप के नियम

  • साधक की आयु २० वर्ष से ऊपर होनी चाहिए।
  • स्त्री-पुरुष दोनों इस मंत्र का जाप कर सकते हैं।
  • मंत्र जाप के समय ब्लू और ब्लैक कपड़े न पहनें।
  • धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार का सेवन न करें।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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जप सावधानी

  • जाप करते समय पूर्ण एकाग्रता और शुद्धता का पालन करना जरूरी है।
  • मंत्र जाप के दौरान मानसिक और शारीरिक स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें।
  • आसन और दिशा का ध्यान रखना आवश्यक है। साधक को उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए।
  • मंत्र जाप के समय कोई नकारात्मक विचार मन में नहीं आने चाहिए।

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राज राजेश्वर महादेव मंत्र से संबंधित प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1: क्या राज राजेश्वर महादेव मंत्र का जाप केवल पुरुष ही कर सकते हैं?
उत्तर: नहीं, स्त्री और पुरुष दोनों ही इस मंत्र का जाप कर सकते हैं।

प्रश्न 2: क्या मंत्र जाप के लिए विशेष दिन जरूरी है?
उत्तर: हां, सोमवार या शिवरात्रि जैसे विशेष दिन इस मंत्र जाप के लिए उत्तम माने जाते हैं।

प्रश्न 3: मंत्र जाप में किन वस्त्रों का उपयोग करना चाहिए?
उत्तर: साधक को सफेद या लाल वस्त्र पहनने चाहिए। ब्लू और ब्लैक कपड़े वर्जित हैं।

प्रश्न 4: क्या धूम्रपान और मद्यपान की अनुमति है?
उत्तर: नहीं, मंत्र जाप के दौरान धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार से दूर रहना चाहिए।

प्रश्न 5: क्या इस मंत्र का जाप रोज करना जरूरी है?
उत्तर: हां, मंत्र की सिद्धि के लिए साधक को ११ से २१ दिनों तक प्रतिदिन इसका जाप करना चाहिए।

प्रश्न 6: मंत्र जाप का उचित समय कौन सा है?
उत्तर: सूर्योदय या सूर्यास्त का समय मंत्र जाप के लिए सबसे उत्तम होता है।

प्रश्न 7: क्या मंत्र जाप के लिए किसी विशेष स्थान की आवश्यकता है?
उत्तर: हां, मंत्र जाप के लिए स्वच्छ और शांत स्थान चुनना चाहिए, जहां साधक बिना किसी बाधा के ध्यान केंद्रित कर सके।

प्रश्न 8: मंत्र जप के दौरान क्या कोई विशेष आसन का उपयोग करना चाहिए?
उत्तर: हां, साधक को किसी शुद्ध आसन पर बैठकर उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके मंत्र जाप करना चाहिए।

प्रश्न 9: मंत्र जाप के दौरान कौन-कौन सी चीजों से परहेज करना चाहिए?
उत्तर: मंत्र जाप के दौरान ब्लू और ब्लैक कपड़े न पहनें, धूम्रपान, मद्यपान, मांसाहार, और नकारात्मक विचारों से दूर रहें।

प्रश्न 10: क्या मंत्र जाप से शत्रु बाधा दूर होती है?
उत्तर: हां, इस मंत्र का जाप शत्रु बाधा नाश और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा प्रदान करता है।

प्रश्न 11: क्या राज राजेश्वर महादेव मंत्र से आर्थिक उन्नति हो सकती है?
उत्तर: हां, यह मंत्र साधक को आर्थिक उन्नति और समृद्धि दिलाने में सहायक होता है।

Lona Chamari Shabar Mantra – Power & Prosperity

लोना चमारी शाबर मंत्र: जीवन में कार्य सिद्धि और आकर्षण शक्तियों का रहस्य

लोना चमारी शाबर मंत्र एक प्राचीन तांत्रिक मंत्र है जिसका उपयोग जीवन के विभिन्न कार्यों को सिद्ध करने, आकर्षण शक्तियों को जागृत करने और सफलता प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस मंत्र का संबंध गुरु गोरखनाथ और तांत्रिक लोना चमारी से है, जिनकी शक्ति से यह मंत्र अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है। इसके नियमित जाप से साधक को कार्य सिद्धि, साधना सिद्धि, और जीवन में हर प्रकार की उन्नति प्राप्त होती है। इस मंत्र को सही विधि से और अनुशासन के साथ जपने से चमत्कारिक परिणाम मिलते हैं।

दसों दिशाओं का दिग्बंधन मंत्र व उसका अर्थ

मंत्र जप के दौरान दसों दिशाओं को सुरक्षित करने के लिए दिग्बंधन मंत्र का जाप करना आवश्यक है। यह मंत्र नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है और साधना के दौरान ध्यान को एकाग्र रखने में मदद करता है।
दिग्बंधन मंत्र
“ॐ ह्रीं क्रीं लोना चमारी स्वाहा।”
अर्थ: इस मंत्र से दसों दिशाओं में देवी लोना चमारी की शक्ति से सुरक्षा प्राप्त होती है।

लोना चमारी शाबर मंत्र व उसका संपूर्ण अर्थ

मंत्र:
“ॐ ह्रीं क्रीं लोना चमारी, कीजो हमारे काज, न करे तो गुरु गोरखनाथ की आन, गुरु की शक्ति, मेरी भक्ति, फुरो मंत्र इश्वरोवाचा।”
अर्थ: इस मंत्र में देवी लोना चमारी और गुरु गोरखनाथ को साधक के कार्य सिद्ध करने और जीवन में उन्नति प्रदान करने के लिए आह्वान किया गया है। इसमें गुरु की शक्ति और साधक की भक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। साधक की सच्ची भक्ति और श्रद्धा से यह मंत्र सिद्ध होता है और कार्यों में सफलता मिलती है।

लोना चमारी शाबर मंत्र से लाभ

  1. कार्य सिद्धि
  2. मंत्र सिद्धि
  3. साधना सिद्धि
  4. भौतिक उन्नति
  5. व्यापारिक उन्नति
  6. मान-सम्मान में वृद्धि
  7. पारिवारिक सुख-शांति
  8. शत्रु बाधा नाश
  9. मानसिक शांति
  10. आत्मबल में वृद्धि
  11. सुरक्षा प्राप्ति
  12. आध्यात्मिक जागरण
  13. वैवाहिक सुख
  14. प्रेम संबंधों में सुधार
  15. शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार
  16. गुरु कृपा प्राप्ति
  17. भौतिक समृद्धि

पूजा सामग्री के साथ मंत्र विधि

साधक को मंत्र जाप करते समय विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है, जो पूजा को प्रभावी बनाती है।
पूजा सामग्री:

  • लाल वस्त्र
  • सफेद फूल
  • चंदन का लेप
  • घी का दीपक
  • धूप
  • अक्षत (चावल)
  • तांबे का कलश

मंत्र जप का दिन, अवधि, मुहूर्त

मंत्र जाप किसी शुभ दिन जैसे पूर्णिमा या अमावस्या को शुरू करना उत्तम माना जाता है। जाप की अवधि ११ से २१ दिनों तक होनी चाहिए और इसे सूर्योदय या सूर्यास्त के समय करना शुभ होता है।

Lakshmi pujan shivir

मंत्र जप विधि

जाप संख्या: साधक को रोज ११ माला (११८८ मंत्र) का जाप करना चाहिए।
जाप की अवधि: ११ से २१ दिनों तक लगातार जाप किया जाता है।
समय: सुबह या शाम का समय उपयुक्त होता है।

मंत्र जप के नियम

  • साधक की आयु २० वर्ष से ऊपर होनी चाहिए।
  • स्त्री-पुरुष कोई भी इस मंत्र का जाप कर सकता है।
  • नीले या काले कपड़े न पहनें।
  • धूम्रपान, मद्यपान, और मांसाहार का सेवन न करें।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें।

know more about trijata aghori mantra vidhi

जप सावधानी

  • मंत्र जाप के दौरान साधक को ध्यान और एकाग्रता बनाए रखनी चाहिए।
  • आसन, दिशा और समय का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।
  • शुद्धता का पालन करना चाहिए और किसी भी प्रकार की नकारात्मक सोच से दूर रहना चाहिए।

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लोना चमारी शाबर मंत्र से संबंधित प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1: क्या लोना चमारी शाबर मंत्र केवल पुरुष ही कर सकते हैं?
उत्तर: नहीं, स्त्री-पुरुष कोई भी यह मंत्र कर सकता है। केवल साधना के नियमों का पालन करना आवश्यक है।

प्रश्न 2: क्या इस मंत्र का जाप किसी भी दिन किया जा सकता है?
उत्तर: मंत्र जाप शुभ दिन जैसे पूर्णिमा, अमावस्या या विशेष तिथियों पर शुरू करना उत्तम होता है।

प्रश्न 3: मंत्र जाप में किस प्रकार की सामग्री का उपयोग करना चाहिए?
उत्तर: लाल वस्त्र, सफेद फूल, घी का दीपक, चंदन का लेप, धूप और अक्षत का उपयोग करना चाहिए।

प्रश्न 4: मंत्र जाप के दौरान क्या वस्त्र पहनने चाहिए?
उत्तर: मंत्र जाप करते समय सफेद या लाल वस्त्र पहनने चाहिए। नीले और काले वस्त्र वर्जित होते हैं।

प्रश्न 5: क्या धूम्रपान और मद्यपान की अनुमति है?
उत्तर: नहीं, मंत्र जाप के दौरान धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार से दूर रहना चाहिए।

प्रश्न 6: मंत्र सिद्धि कैसे प्राप्त होती है?
उत्तर: नियमपूर्वक और श्रद्धा से मंत्र का जाप करने पर मंत्र सिद्धि प्राप्त होती है।

प्रश्न 7: क्या मंत्र जाप के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है?
उत्तर: हां, ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य है।

प्रश्न 8: जाप के लिए सबसे उपयुक्त समय क्या है?
उत्तर: सूर्योदय या सूर्यास्त का समय मंत्र जाप के लिए उत्तम होता है।

प्रश्न 9: मंत्र जाप कितने दिन तक करना चाहिए?
उत्तर: ११ से २१ दिन तक रोजाना मंत्र जाप करना चाहिए।

प्रश्न 10: क्या मंत्र जाप करते समय कोई विशेष आसन का उपयोग करना चाहिए?
उत्तर: हां, साधक को किसी शुद्ध आसन पर बैठकर जाप करना चाहिए।

प्रश्न 11: क्या इस मंत्र का उपयोग व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान के लिए किया जा सकता है?
उत्तर: हां, यह मंत्र व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान के लिए अत्यंत प्रभावी है।

प्रश्न 12: क्या इस मंत्र से भौतिक और आध्यात्मिक दोनों लाभ मिलते हैं?
उत्तर: हां, इस मंत्र से साधक को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं।

Vijayadashami (Dashahara) Pujan – Success in every way

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विजयादशमी (दशहरा) पूजन २०२४: हर क्षेत्र, कार्य मे विजय व सफलता पायें

विजयादशमी, जिसे दशहरा भी कहते हैं, हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध कर अधर्म पर धर्म की जीत हासिल की थी। यह दिन जीवन के हर क्षेत्र में सफलता व विजय का प्रतीक माना जाता है। आइए जानें इस पावन दिन का महत्व, पूजा विधि, मुहूर्त और इससे मिलने वाले लाभ।

विजयादशमी पूजन मुहूर्त २०२४

२०२४ में विजयादशमी १२ अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस दिन विशेष मुहूर्त में पूजा की जाती है जो अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। शुभ मुहूर्त के अनुसार इस दिन प्रातः १०:१५ से १२:३० बजे तक का समय पूजा के लिए सबसे उत्तम रहेगा। इस समय देवी दुर्गा और भगवान राम की पूजा का विशेष महत्व है।

पूजन शिविर

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विजयादशमी की संपूर्ण कथा: अधर्म पर धर्म की विजय

विजयादशमी, जिसे दशहरा भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है। यह पर्व मुख्य रूप से भगवान राम और रावण के महाकाव्य युद्ध से जुड़ा है, जिसमें भगवान राम ने रावण का वध करके अधर्म पर धर्म की विजय प्राप्त की थी। इसके अलावा, देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय की कथा भी विजयादशमी के महत्व को बढ़ाती है।

भगवान राम और रावण की कथा

रामायण के अनुसार, भगवान राम, अयोध्या के राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र थे। एक दिन, अयोध्या में राजकुमार राम को १४ वर्षों के वनवास पर भेजा गया। राम के साथ उनके छोटे भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता भी वनवास के लिए साथ गए। वनवास के दौरान, लंका के राजा रावण ने छलपूर्वक माता सीता का हरण कर लिया और उन्हें अपनी राजधानी लंका ले गया।

सीता के अपहरण से क्रोधित और दुखी राम ने उन्हें वापस पाने के लिए समुद्र पार किया। उन्होंने वानर राजा सुग्रीव और हनुमान की सहायता से विशाल सेना तैयार की। राम और उनकी सेना ने लंका की ओर कूच किया। इसके बाद राम और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। कई दिनों तक चलने वाले इस युद्ध में रावण की शक्तियों का सामना करना पड़ा।

रावण, जो दस सिरों वाला असुर था, अत्यंत शक्तिशाली और महा विद्वान था। लेकिन उसकी शक्ति और बुद्धिमत्ता का इस्तेमाल गलत उद्देश्यों के लिए किया गया। अंततः भगवान राम ने रावण को परास्त कर दिया और उसका वध किया। इस प्रकार, अच्छाई ने बुराई पर विजय प्राप्त की और सीता माता को मुक्त कराया गया। यह विजयादशमी का मुख्य संदेश है – अधर्म पर धर्म की जीत।

देवी दुर्गा और महिषासुर की कथा

विजयादशमी सिर्फ भगवान राम की विजय का ही प्रतीक नहीं है, बल्कि यह देवी दुर्गा के महिषासुर पर विजय की भी याद दिलाती है। पुराणों के अनुसार, महिषासुर नाम का असुर अत्यंत शक्तिशाली था। उसने कठिन तपस्या करके ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान प्राप्त किया। वरदान के अनुसार, कोई भी देवता या मानव उसे मार नहीं सकता था, और वह अपने अहंकार और शक्ति के नशे में देवताओं को परेशान करने लगा।

महिषासुर ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया और सभी देवताओं को पराजित कर दिया। जब देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु, और शिव से सहायता मांगी, तब इन तीनों ने अपनी शक्तियों को मिलाकर देवी दुर्गा का निर्माण किया। देवी दुर्गा ने महिषासुर से युद्ध किया, जो नौ दिनों तक चला। दसवें दिन, देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया और बुराई पर जीत हासिल की। इसी विजय को विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है।

विजयादशमी का महत्व और संदेश

विजयादशमी का संदेश यही है कि चाहे बुराई कितनी भी बड़ी हो, अंततः अच्छाई की ही जीत होती है। यह पर्व समाज में नैतिकता, सत्य और न्याय की स्थापना का प्रतीक है। विजयादशमी हमें यह सिखाती है कि हमें अपने जीवन में धर्म, सच्चाई और सदाचार का पालन करना चाहिए, क्योंकि अंत में विजय उन्हीं की होती है जो सच्चाई के मार्ग पर चलते हैं।

विजयादशमी पूजन विधि मंत्र के साथ

पूजन सामग्री:

  1. सुपारी
  2. पुष्प माला
  3. नारियल
  4. सिंदूर
  5. गंगाजल
  6. धूप-दीप
  7. फल और मिठाई

पूजन विधि:

  1. सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. पूजन स्थान को साफ कर भगवान राम, देवी दुर्गा और अन्य देवताओं की प्रतिमा स्थापित करें।
  3. जल और अक्षत से देवताओं का आह्वान करें।
  4. फूल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
  5. अंत में आरती करें और प्रसाद वितरण करें।

मंत्र:

पूजा के दौरान ” ॐ रीं ह्रीं क्रीं प्रत्यंगिरे दुं हुं फट्ट” का जाप करें।

पूजा के दिन क्या खाएं और क्या नहीं

क्या खाएं:

  • फलाहार (फल, सूखे मेवे)
  • सात्विक भोजन (दूध, दही, हलवा)
  • नारियल पानी, मौसमी फल

क्या नहीं खाएं:

  • मांसाहार और तामसिक भोजन
  • लहसुन और प्याज
  • मदिरा और नशे की वस्तुएं

कब से कब तक पूजा करें

विजयादशमी का पूजा समय सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक होता है। खासतौर पर अपराह्न काल का समय पूजा के लिए सबसे श्रेष्ठ माना गया है, जो लगभग दोपहर २ बजे से शुरू होता है और शाम तक चलता है।

विजयादशमी (दशहरा) पूजन के नियम और सावधानियां

  1. पूजा करते समय मन और शरीर दोनों को शुद्ध रखें।
  2. पूजा में सात्विकता बनाए रखें, तामसिक आहार से परहेज करें।
  3. देवी-देवताओं की प्रतिमा को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
  4. सही मुहूर्त में पूजा करें, क्योंकि शुभ समय में पूजा करने से अधिक लाभ प्राप्त होते हैं।
  5. घर के सभी सदस्यों को पूजा में सम्मिलित करें और पूरे श्रद्धा भाव से पूजा करें।

विजयादशमी पूजन के लाभ

  1. जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
  2. शत्रुओं का नाश होता है।
  3. मानसिक शांति प्राप्त होती है।
  4. घर में समृद्धि और सुख-शांति का वास होता है।
  5. शरीर और मन को शुद्धता मिलती है।
  6. आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  7. भगवान राम और दुर्गा माता की कृपा बनी रहती है।
  8. पारिवारिक संबंधों में मधुरता आती है।
  9. समाज में मान-सम्मान मिलता है।
  10. व्यापार और नौकरी में उन्नति होती है।
  11. घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  12. स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  13. आर्थिक समृद्धि मिलती है।
  14. धार्मिक आस्था और विश्वास में वृद्धि होती है।
  15. अच्छे कर्मों का फल मिलता है।
  16. बच्चों के जीवन में भी शुभता का संचार होता है।
  17. सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

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विजयादशमी (दशहरा) पूजन संबंधित प्रश्न उत्तर

१. विजयादशमी पूजा क्यों की जाती है?

विजयादशमी पूजा अधर्म पर धर्म की विजय और बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाई जाती है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था।

२. विजयादशमी पर कौन से देवता की पूजा होती है?

विजयादशमी पर भगवान राम, देवी दुर्गा और शस्त्रों की पूजा का विशेष महत्व होता है।

३. विजयादशमी पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है?

२०२४ में विजयादशमी का शुभ मुहूर्त प्रातः १०:१५ से १२:३० बजे तक रहेगा।

४. विजयादशमी पर कौन से मंत्र का जाप करें?

“ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।” का जाप शुभ माना जाता है।

५. विजयादशमी पर कौन से नियमों का पालन करना चाहिए?

इस दिन पूजा करते समय सात्विकता का पालन करें और तामसिक भोजन और नशे से बचें।

६. विजयादशमी पर किस रंग के वस्त्र पहनें?

विजयादशमी पर पीले, लाल और नारंगी रंग के वस्त्र शुभ माने जाते हैं।

७. क्या विजयादशमी पर वाहन पूजा कर सकते हैं?

हाँ, विजयादशमी पर वाहन और शस्त्रों की पूजा का विशेष महत्व है।

८. विजयादशमी के दिन क्या खाना चाहिए?

सात्विक भोजन जैसे फल, दूध, दही और मिठाई खाना शुभ माना जाता है।

९. विजयादशमी पर क्या नहीं करना चाहिए?

मांसाहार, नशा और तामसिक वस्त्रों का परहेज करना चाहिए।

१०. विजयादशमी पर पूजा कब करनी चाहिए?

इस दिन पूजा का समय अपराह्न काल में होता है, जो दोपहर २ बजे से शुरू होता है।

११. विजयादशमी पर शस्त्र पूजा क्यों की जाती है?

शस्त्र पूजा करने से जीवन में शक्ति, साहस और सफलता की प्राप्ति होती है।

१२. विजयादशमी का धार्मिक महत्व क्या है?

यह दिन अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है, जिससे समाज में धर्म और न्याय की स्थापना होती है।

Chandra Vajra Mantra – Overcome Obstacles Powerfully

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चंद्र वज्र मंत्र – विघ्न और बाधाओं को दूर करने का शक्तिशाली उपाय

चंद्र वज्र मंत्र अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावी तांत्रिक मंत्र है जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में आने वाली बाधाओं को दूर करने और सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करने के लिए उपयोग किया जाता है। इस मंत्र का संबंध चंद्र ग्रह से होता है, जो मन की शांति, भावनात्मक स्थिरता और समृद्धि का प्रतीक है। इस मंत्र का उच्चारण व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक संतुलन प्रदान करता है, जिससे उसे जीवन में शांति, सुख और सफलता मिलती है। यह मंत्र विशेष रूप से विघ्नों, बाधाओं और जीवन की कठिनाइयों को दूर करने के लिए अत्यधिक प्रभावी माना जाता है।

चंद्र वज्र विनियोग मंत्र

इस मंत्र के विनियोग का उद्देश्य मंत्र जप को विधिवत प्रारंभ करना होता है। मंत्र के जप से पहले इसका सही उच्चारण करना अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि पूजा सफल हो सके।

विनियोग मंत्र:

“ॐ अस्य श्री चंद्र वज्र मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, चंद्र देवता, विघ्न बाधा नाशाय जपे विनियोगः।”

दसों दिशाओं का दिग्बंधन मंत्र व उसका अर्थ

दिग्बंधन मंत्र का उद्देश्य चारों दिशाओं और उनके बीच की दिशाओं की सुरक्षा करना होता है ताकि मंत्र जप के समय कोई नकारात्मक शक्ति या बाधा जपकर्ता को परेशान न करे।

दिग्बंधन मंत्र:

  • “ॐ भूर् भुवः स्वः पूर्वाय नमः,
  • ॐ भूर् भुवः स्वः दक्षिणाय नमः,
  • ॐ भूर् भुवः स्वः पश्चिमाय नमः,
  • ॐ भूर् भुवः स्वः उत्तराय नमः,
  • ॐ भूर् भुवः स्वः ईशानाय नमः,
  • ॐ भूर् भुवः स्वः नैऋत्याय नमः,
  • ॐ भूर् भुवः स्वः वायव्याय नमः,
  • ॐ भूर् भुवः स्वः आग्नेयाय नमः,
  • ॐ भूर् भुवः स्वः अधोराय नमः
  • ॐ भूर् भुवः स्वः उर्ध्वराय नमः

अर्थ:
मैं सभी दिशाओं को प्रणाम करता हूं—पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और मध्य दिशाओं में उपस्थित सभी देवताओं को नमन करता हूं। मेरी साधना को कोई विघ्न न पहुंचाए, कृपा करके मेरी रक्षा करें।

चंद्र वज्र मंत्र व उसका संपूर्ण अर्थ

मंत्र:
“ॐ ऐं श्रां श्रीं श्रौं सः सोमाय विघ्न बाधां नष्टय हुं फट्।”

अर्थ:
हे सोम (चंद्र), आप समस्त विघ्न-बाधाओं का नाश करें। इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली सभी प्रकार की समस्याओं, बाधाओं, और अवरोधों का नाश होता है और सकारात्मकता का संचार होता है। यह मंत्र विशेष रूप से मन की शांति, मानसिक स्थिरता और समृद्धि लाने में सहायक है।

चंद्र वज्र मंत्र से लाभ

  1. मानसिक शांति की प्राप्ति।
  2. जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन।
  3. मन की चंचलता पर नियंत्रण।
  4. विघ्न-बाधाओं का नाश।
  5. आर्थिक समृद्धि और धन का आगमन।
  6. कार्यों में सफलता।
  7. शत्रुओं से रक्षा।
  8. स्वास्थ्य में सुधार।
  9. आत्मविश्वास में वृद्धि।
  10. मानसिक संतुलन।
  11. संतान सुख।
  12. विवाह में आ रही बाधाओं का नाश।
  13. शिक्षा में सफलता।
  14. समाज में प्रतिष्ठा की प्राप्ति।
  15. आध्यात्मिक उन्नति।
  16. अनुकूल ग्रहों का प्रभाव।
  17. भाग्य में वृद्धि।

चंद्र वज्र मंत्र पूजा सामग्री व मंत्र विधि

पूजा सामग्री:

  1. सफेद वस्त्र।
  2. सफेद चंदन।
  3. चावल (अक्षत)।
  4. दीपक (घी का)।
  5. कपूर।
  6. कमल का फूल।
  7. दूध और सफेद मिठाई।
  8. शुद्ध जल।

मंत्र विधि:

  1. सफेद वस्त्र धारण करें।
  2. पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
  3. दीपक जलाकर पूजा स्थल को पवित्र करें।
  4. चावल और सफेद फूलों से भगवान चंद्र की पूजा करें।
  5. ध्यान और साधना के साथ 11 माला (1188 बार) चंद्र वज्र मंत्र का जप करें।
  6. सफेद मिठाई का भोग अर्पित करें।
  7. जल अर्पित कर पूजा समाप्त करें।

चंद्र वज्र मंत्र जप का दिन, अवधि, मुहूर्त

जप का दिन:
सोमवार को प्रारंभ करना श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि यह चंद्र देव का दिन है।

अवधि:
मंत्र जप 11 से 21 दिन तक निरंतर करें।

मुहूर्त:
प्रातःकाल या रात्रि के समय, विशेषकर चंद्रमा की पूजा के समय, मंत्र जप करना शुभ होता है।

चंद्र वज्र मंत्र जप

चंद्र वज्र मंत्र का जप 11 माला यानी 1188 बार प्रतिदिन करना चाहिए। इससे मंत्र की शक्ति अधिक बढ़ती है और इसका प्रभाव शीघ्र होता है। मंत्र जप के लिए 11 से 21 दिन का समय निर्धारित किया जाता है।

मंत्र जप के नियम

  1. जपकर्ता की उम्र 20 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।
  2. स्त्री और पुरुष दोनों ही इस मंत्र का जप कर सकते हैं।
  3. नीले और काले वस्त्र न पहनें।
  4. धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार का सेवन न करें।
  5. ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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चंद्र वज्र मंत्र जप सावधानियाँ

  1. मंत्र का उच्चारण सही होना चाहिए।
  2. पवित्रता का पालन करें।
  3. जप के समय एकाग्रता बनाए रखें।
  4. मंत्र जप के दौरान अन्य विचारों को मन में न आने दें।
  5. स्थान का चयन शांति और एकांत वाला हो।

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चंद्र वज्र मंत्र: सामान्य प्रश्न

1. चंद्र वज्र मंत्र क्या है?

उत्तर:चंद्र वज्र मंत्र एक शक्तिशाली तांत्रिक मंत्र है, जिसका उद्देश्य जीवन की विघ्न-बाधाओं को दूर करना और मानसिक शांति प्रदान करना है। यह मंत्र चंद्र देव से संबंधित है, जो मन की शांति और समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं।

2. चंद्र वज्र मंत्र का जप कब करना चाहिए?

उत्तर:इस मंत्र का जप प्रातःकाल या रात्रि में चंद्रमा की उपस्थिति के समय करना सबसे शुभ माना जाता है। सोमवार को इसका जप प्रारंभ करना विशेष रूप से फलदायक होता है।

3. क्या चंद्र वज्र मंत्र का जप स्त्री-पुरुष दोनों कर सकते हैं?

उत्तर:हाँ, स्त्री और पुरुष दोनों इस मंत्र का जप कर सकते हैं। बस जप के दौरान शुद्धता, नियमों का पालन, और ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है।

4. मंत्र जप के लिए क्या नियम हैं?

उत्तर:

  • मंत्र जप के दौरान सफेद वस्त्र पहनें।
  • नीले और काले वस्त्र न पहनें।
  • धूम्रपान, मद्यपान, और मांसाहार का त्याग करें।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें और जप के समय एकाग्रता बनाए रखें।

    5. इस मंत्र का मुख्य उद्देश्य क्या है?

    उत्तर:चंद्र वज्र मंत्र का मुख्य उद्देश्य मानसिक शांति प्राप्त करना, विघ्न-बाधाओं को दूर करना, और जीवन में समृद्धि और सफलता लाना है।

    6. मंत्र का उच्चारण कैसे करना चाहिए?

    उत्तर:मंत्र का उच्चारण स्पष्ट और सही ढंग से करना आवश्यक है। यह मंत्र ध्यान और साधना के साथ किया जाना चाहिए ताकि इसका पूर्ण प्रभाव मिल सके।

    7. चंद्र वज्र मंत्र के जप की अवधि कितनी होती है?

    उत्तर:मंत्र जप की अवधि 11 से 21 दिन की होती है। प्रतिदिन 11 माला (1188 बार) मंत्र का जप किया जाता है।

    8. क्या इस मंत्र का जप किसी विशेष मुहूर्त में करना चाहिए?

    उत्तर: हाँ, इस मंत्र का जप प्रातःकाल या रात्रि के समय करना सर्वोत्तम है। चंद्रमा के दिन यानी सोमवार को मंत्र जप शुरू करना शुभ माना जाता है।

    9. चंद्र वज्र मंत्र से क्या लाभ होते हैं?

    उत्तर:इस मंत्र से 17 प्रमुख लाभ प्राप्त होते हैं, जैसे कि मानसिक शांति, विघ्नों का नाश, समृद्धि, सफलता, आत्मविश्वास में वृद्धि, और शत्रुओं से रक्षा।

    10. क्या मंत्र जप के दौरान कोई विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है?

    उत्तर: हाँ, मंत्र जप के लिए सफेद चंदन, चावल, दीपक, कपूर, कमल का फूल, दूध, और सफेद मिठाई का उपयोग किया जाता है। यह सामग्री चंद्र देवता की पूजा के लिए आवश्यक होती है।

    11. क्या इस मंत्र का जप किसी भी दिन किया जा सकता है?

    उत्तर: मंत्र का जप किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन सोमवार को इसका प्रारंभ करना विशेष फलदायी होता है। यह दिन चंद्र देव का होता है, जिससे इसका प्रभाव बढ़ जाता है।

    12. मंत्र जप के दौरान किन सावधानियों का पालन करना चाहिए?

    उत्तर: मंत्र जप के दौरान शुद्धता का पालन करें, ब्रह्मचर्य रहें, धूम्रपान और मद्यपान से बचें। मंत्र जप के लिए शांत और पवित्र स्थान का चयन करें और मानसिक रूप से एकाग्र रहें।

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    महालक्ष्मी पूजन (दीपावली) 2024: विधि, मुहूर्त और पूजा से जुड़े नियम

    महालक्ष्मी पूजन (दीपावली) का पर्व हर वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह पूजा विशेष रूप से धन, समृद्धि और सुख-शांति के लिए की जाती है। देवी लक्ष्मी को धन की देवी माना जाता है और इस दिन उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए लोग श्रद्धा भाव से पूजन करते हैं। महालक्ष्मी पूजन दीपावली के दिन मुख्य रूप से सायंकाल किया जाता है, जब सभी घरों में दीप जलाकर वातावरण को पवित्र और शुभ बनाया जाता है।

    महालक्ष्मी पूजन- दिवाली २०२४ मुहूर्त

    वर्ष २०२४ में महालक्ष्मी पूजन के लिए शुभ मुहूर्त १ नवंबर की सायंकाल ६:०० बजे से ८:०० बजे तक का रहेगा। यह समय देवी लक्ष्मी के पूजन के लिए अत्यंत लाभकारी और शुभ माना जाता है। इसी समय के भीतर पूजा संपन्न करने से देवी लक्ष्मी की कृपा अधिक प्राप्त होती है।

    महालक्ष्मी पूजन विधि : आरंभ से आरती तक

    1. स्नान और स्वच्छता: पूजन से पहले स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करें।
    2. पूजा स्थान की तैयारी: पूजा स्थल को स्वच्छ करके वहां रंगोली सजाएं। एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं और महालक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
    3. कलश स्थापना: कलश में जल भरकर, उसमें आम के पत्ते और नारियल रखें। इसे लक्ष्मीजी के बाईं ओर रखें।
    4. दीप प्रज्वलन: दीये जलाएं और चारों ओर रखें।
    5. आवाहन मंत्र: “ॐ महालक्ष्म्यै नमः” मंत्र का उच्चारण करके देवी को आमंत्रित करें।
    6. पुष्प अर्पण: लक्ष्मी जी को फूल, चावल और धनिया अर्पित करें।
    7. मंत्र पाठ:
    • “ॐ ऐं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः”
    • “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै स्वाहा” का जप करें।
    1. भोग और प्रसाद: देवी को मीठा प्रसाद जैसे खीर, लड्डू और फल अर्पित करें।
    2. आरती: अंत में लक्ष्मी जी की आरती “जय लक्ष्मी माता” गाकर करें।

    पूजा के दिन क्या खाएं और क्या न खाएं

    पूजा के दिन सात्विक भोजन करें। मांस, लहसुन, प्याज और मदिरा का सेवन वर्जित है। चावल, दाल, रोटी, सब्जी, और मिष्ठान्न खाएं। तामसिक वस्तुओं से परहेज करें।

    पूजा के नियम और सावधानियां

    1. पूजा के दिन स्वच्छ वस्त्र पहनें और शुद्धता का पालन करें।
    2. घर के दरवाजे और खिड़कियां खुले रखें ताकि देवी लक्ष्मी का प्रवेश हो सके।
    3. दीये जलाकर घर के कोने-कोने में रखें।
    4. कोई अशुभ कार्य न करें, जैसे कि झगड़ा या कटु वचन बोलना।
    5. पूजा में शांत मन से ध्यान लगाएं और कोई विकार मन में न लाएं।

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    महालक्ष्मी पूजन- दिवाली पूजा के लाभ

    1. धन की प्राप्ति और आर्थिक स्थिरता।
    2. मानसिक शांति और सुख-समृद्धि।
    3. ऋणों से मुक्ति।
    4. घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह।
    5. व्यापार में वृद्धि और सफलता।
    6. परिवार में सौहार्द्र और प्रेम बढ़ता है।
    7. स्वास्थ्य में सुधार।
    8. आलस्य और नकारात्मकता का नाश।
    9. मनोवांछित फल की प्राप्ति।
    10. सामाजिक मान-सम्मान में वृद्धि।
    11. बच्चों की शिक्षा और करियर में उन्नति।
    12. आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति।

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    महालक्ष्मी पूजन से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर

    1. महालक्ष्मी पूजन (दीपावली) का महत्व क्या है?

    महालक्ष्मी पूजन धन, समृद्धि और सुख-शांति प्राप्त करने के लिए किया जाता है। दीपावली की रात को देवी लक्ष्मी का विशेष पूजन किया जाता है ताकि घर में सकारात्मक ऊर्जा और आर्थिक उन्नति बनी रहे।

    2. महालक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त कब होता है?

    दीपावली के दिन सायंकाल का समय पूजन के लिए सबसे शुभ माना जाता है। 2024 में महालक्ष्मी पूजन का मुहूर्त शाम 6:00 बजे से 8:00 बजे तक है।

    3. महालक्ष्मी पूजन के लिए किन सामग्रियों की आवश्यकता होती है?

    पूजन सामग्री में लक्ष्मी जी की मूर्ति या चित्र, दीया, घी, कपूर, अगरबत्ती, फूल, चावल, कलश, नारियल, फल, मिठाई, पंचामृत, कुमकुम और पीला या लाल वस्त्र शामिल होते हैं।

    4. महालक्ष्मी पूजन कैसे करना चाहिए?

    पूजन के लिए सबसे पहले स्नान करें, पूजन स्थल सजाएं, लक्ष्मी जी की मूर्ति स्थापित करें। दीप जलाएं, फूल और चावल अर्पित करें, और “ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” मंत्र का जाप करें। अंत में आरती करें।

    5. क्या पूजा के दिन मांस और मदिरा का सेवन किया जा सकता है?

    नहीं, महालक्ष्मी पूजन के दिन सात्विक आहार करना चाहिए और मांस, मदिरा, लहसुन और प्याज से परहेज करना चाहिए। तामसिक आहार वर्जित है।

    6. क्या दीपावली पर उधार देना शुभ होता है?

    दीपावली के दिन उधार देना अशुभ माना जाता है। ऐसा करने से धन की हानि हो सकती है, इसलिए इस दिन उधार देने से बचना चाहिए।

    7. महालक्ष्मी पूजन के दिन कौन से रंग के वस्त्र पहनने चाहिए?

    पूजन के दिन लाल, पीले या सफेद रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। यह रंग देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति में सहायक होते हैं।

    8. क्या पूजा के दौरान कोई विशेष मंत्र का जाप करना चाहिए?

    हां, पूजा के दौरान “ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” और “ॐ ह्रीं महालक्ष्म्यै स्वाहा” का जाप करना चाहिए। इससे देवी लक्ष्मी की कृपा जल्दी प्राप्त होती है।

    9. क्या महालक्ष्मी पूजन केवल व्यापारियों के लिए ही है?

    नहीं, महालक्ष्मी पूजन सभी के लिए है। यह पूजा घर और व्यापार दोनों स्थानों पर की जा सकती है। जो लोग घर में शांति, समृद्धि और सुख चाहते हैं, वे भी यह पूजा कर सकते हैं।

    10. क्या लक्ष्मी पूजन के बाद घर के दरवाजे खुले रखने चाहिए?

    जी हां, लक्ष्मी पूजन के बाद कुछ समय के लिए घर के मुख्य दरवाजे खुले रखने चाहिए ताकि देवी लक्ष्मी घर में प्रवेश कर सकें और उनकी कृपा पूरे परिवार पर बनी रहे।

    11. क्या पूजा के समय घर के सभी सदस्य उपस्थित होने चाहिए?

    हां, पूजा के समय परिवार के सभी सदस्यों का उपस्थित रहना शुभ माना जाता है। यह परिवार में सामूहिक शांति और समृद्धि का प्रतीक है।

    12. महालक्ष्मी पूजन करने से क्या लाभ होता है?

    महालक्ष्मी पूजन करने से धन की वृद्धि, मानसिक शांति, आर्थिक स्थिरता, व्यापार में सफलता, परिवार में प्रेम और स्वास्थ्य में सुधार होता है। देवी लक्ष्मी की कृपा से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।

    Karni Mata Mantra for Success & Wealth

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    कर्ज मुक्ति और नौकरी में प्रमोशन के लिए करणी माता मंत्र

    करणी माता मंत्र देवी करणी माता के प्रति असीम श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है। करणी माता को देवी दुर्गा का अवतार माना जाता है, और उनके मंत्रों का जाप व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और सुरक्षा लाता है। करणी माता के मंत्रों से आर्थिक समृद्धि, नौकरी में उन्नति, कर्ज से मुक्ति और भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।

    दसों दिशाओं का दिग्बंधन मंत्र व उसका अर्थ

    दिग्बंधन मंत्र का जाप दुष्ट शक्तियों से सुरक्षा के लिए किया जाता है। यह मंत्र दसों दिशाओं में करणी माता की शक्ति का आह्वान करता है।
    “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं करणी मातायै क्लीं ह्रीं दिग्बंधाय स्वाहा।”
    इसका अर्थ है, “हे करणी माता, आपकी शक्ति से दसों दिशाओं की रक्षा करें, हमें सब दिशाओं से सुरक्षा प्रदान करें।”

    सभी दिशाओं की तरफ मुंह करके दिग्बंध मंत्र का जप करे।

    करणी माता मंत्र व उसका संपूर्ण अर्थ

    करणी माता का प्रमुख मंत्र इस प्रकार है:
    “ॐ ऐं श्री करणी मातायै क्लीं नमः।”
    इसका अर्थ है, “मैं करणी माता का स्मरण करता/करती हूं, उनकी शक्ति और आशीर्वाद से मेरा जीवन सुखमय हो।”

    करणी माता मंत्र जप से लाभ

    करणी माता के मंत्र का नियमित जप करने से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:

    1. भौतिक सुखों की प्राप्ति।
    2. आर्थिक समस्याओं से मुक्ति।
    3. कर्ज से छुटकारा।
    4. नौकरी में प्रमोशन।
    5. व्यापार में उन्नति।
    6. स्वास्थ्य में सुधार।
    7. पारिवारिक विवादों का समाधान।
    8. मानसिक शांति और स्थिरता।
    9. शत्रुओं से सुरक्षा।
    10. कानूनी समस्याओं का हल।
    11. शुभ विवाह।
    12. संतान प्राप्ति।
    13. घर में सुख-शांति का निवास।
    14. आत्मविश्वास में वृद्धि।
    15. यात्रा में सुरक्षा।
    16. जीवन में स्थायित्व।
    17. आध्यात्मिक उन्नति।

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    करणी माता मंत्र पूजा सामग्री और मंत्र विधि

    पूजा में निम्नलिखित सामग्री का उपयोग करना चाहिए:

    1. लाल वस्त्र
    2. केसर, हल्दी
    3. सफेद पुष्प
    4. चंदन
    5. धूप, दीपक
    6. गाय का घी

    मंत्र जप विधि

    करणी माता के मंत्र का जाप शुभ मुहूर्त में किया जाना चाहिए। दिन और समय का चयन पंचांग के अनुसार करें। नवरात्रि, मंगलवार और शुक्रवार का दिन विशेष रूप से उत्तम माना जाता है। मंत्र का जाप कम से कम ११ से २१ दिनों तक करना चाहिए। एक दिन में ११ माला यानी ११८८ बार मंत्र का जाप करें।

    मंत्र जप के नियम

    1. उम्र 20 वर्ष के ऊपर होनी चाहिए।
    2. स्त्री-पुरुष कोई भी कर सकता है।
    3. नीले या काले कपड़े न पहनें।
    4. धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार से दूर रहें।
    5. ब्रह्मचर्य का पालन करें।
    6. साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।

    जप में सावधानियां

    1. मंत्र जप के दौरान ध्यान एकाग्र रखें।
    2. हर दिन निश्चित समय पर जाप करें।
    3. किसी अन्य विचार या नकारात्मक सोच से बचें।
    4. पूजा स्थल पर पवित्रता बनाए रखें।

    करणी माता की संपूर्ण कथा

    करणी माता का जन्म 1387 ई. में राजस्थान के चारण कुल में हुआ था। उनका असली नाम रिद्धि बाई था। बाल्यावस्था से ही उनमें असाधारण शक्तियों के लक्षण दिखाई देने लगे थे। करणी माता को देवी दुर्गा का अवतार माना जाता है। उनकी अलौकिक शक्तियों और चमत्कारी घटनाओं ने उन्हें एक पूजनीय देवी का स्थान दिलाया।

    रिद्धि बाई का विवाह साठिका गांव के किपोजी चारण से हुआ। विवाह के कुछ समय बाद, उन्होंने सांसारिक जीवन छोड़ने और भगवान की भक्ति में लीन रहने का निर्णय लिया। करणी माता ने अपने पति की सहमति से अपनी छोटी बहन गुलाब की शादी अपने पति से करवाई। इसके बाद, उन्होंने समाज और धर्म की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।

    कहते हैं, करणी माता ने कई चमत्कारी कार्य किए। राजस्थान के बीकानेर और जोधपुर राज्यों की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। बीकानेर के राजा राव बीका और जोधपुर के राजा राव जोधा उनके परम भक्त थे। करणी माता ने अपने आशीर्वाद से उन्हें युद्ध में विजय दिलाई और उनके राज्य की स्थापना की। करणी माता की कृपा से राठौड़ वंश का विस्तार हुआ और बीकानेर एक समृद्ध राज्य बना।

    करणी माता के चमत्कार

    करणी माता से जुड़ी कई चमत्कारी कहानियां प्रचलित हैं। कहते हैं, एक बार जब उनका सौतेला पुत्र लक्ष्मण एक तालाब में डूब गया, तो करणी माता ने अपनी अलौकिक शक्तियों से उसे जीवित कर दिया। लेकिन जब यमराज ने उसे वापस भेजने से इंकार किया, तब करणी माता ने उसे चूहे के रूप में पुनर्जन्म दिया। इसी घटना से करणी माता के मंदिर में चूहों की पूजा की परंपरा शुरू हुई।

    करणी माता के चमत्कार केवल उनके जीवन काल तक सीमित नहीं थे। उनकी मृत्यु के बाद भी लोग उनके चमत्कारी प्रभाव को महसूस करते रहे। बीकानेर के पास स्थित करणी माता का प्रसिद्ध मंदिर आज भी लाखों श्रद्धालुओं का केंद्र है। यह मंदिर अपने अनगिनत चूहों के लिए प्रसिद्ध है, जिन्हें करणी माता के भक्तों द्वारा “काबा” कहा जाता है। लोग मानते हैं कि ये चूहे उनके पूर्वजों का रूप हैं, और इन्हें भोजन कराना पुण्य का कार्य माना जाता है।

    करणी माता मंदिर का महत्व

    करणी माता का मंदिर राजस्थान के बीकानेर जिले के देशनोक गांव में स्थित है। इसे “चूहों वाला मंदिर” भी कहा जाता है। यह मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है और इसकी वास्तुकला अद्वितीय है। मंदिर में रहने वाले हजारों चूहों को देवी के आशीर्वाद से विशेष रूप से पवित्र माना जाता है। भक्त यहां आकर चूहों के दर्शन करते हैं और उन्हें प्रसाद खिलाते हैं।

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    करणी माता का आशीर्वाद और धार्मिक मान्यता

    करणी माता का आशीर्वाद उन लोगों के लिए विशेष रूप से शक्तिशाली माना जाता है, जो सच्चे दिल से उनकी पूजा करते हैं। माना जाता है कि करणी माता अपने भक्तों की हर मुश्किल को दूर करती हैं और उन्हें समृद्धि प्रदान करती हैं। उनका आशीर्वाद कई रूपों में प्रकट होता है – जैसे स्वास्थ्य में सुधार, परिवार की समस्याओं का समाधान, आर्थिक उन्नति, और शत्रुओं से सुरक्षा। करणी माता के भक्त उनकी कृपा से जीवन की हर बाधा को पार कर सकते हैं।

    करणी माता के मंदिर की महत्ता विशेष रूप से उन लोगों के लिए है, जो जीवन की कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। यहां आने वाले लोग देवी के आशीर्वाद से नई ऊर्जा और शक्ति प्राप्त करते हैं।

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    करणी माता मंत्र से संबंधित प्रश्न और उत्तर

    1. करणी माता मंत्र का क्या महत्व है?

    करणी माता मंत्र से देवी की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन की बाधाओं का निवारण होता है।

    2. मंत्र जाप का सर्वश्रेष्ठ समय कौन सा है?

    मंगलवार और शुक्रवार को सूर्योदय से पहले मंत्र जप करना उत्तम है।

    3. मंत्र जप के लिए कितने दिनों की आवश्यकता होती है?

    कम से कम ११ से २१ दिनों तक प्रतिदिन जाप करना चाहिए।

    4. मंत्र जप की संख्या क्या होनी चाहिए?

    रोजाना ११ माला यानी ११८८ बार मंत्र का जाप करें।

    5. क्या सभी लोग मंत्र जप कर सकते हैं?

    हाँ, २० वर्ष से ऊपर के स्त्री-पुरुष कोई भी मंत्र जाप कर सकता है।

    6. क्या मंत्र जाप के दौरान कुछ विशेष नियमों का पालन करना जरूरी है?

    हाँ, नीले या काले कपड़े न पहनें, धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार से दूर रहें।

    7. क्या मंत्र जप के दौरान कोई विशेष पूजन सामग्री की आवश्यकता होती है?

    हाँ, लाल वस्त्र, केसर, हल्दी, सफेद पुष्प, चंदन और गाय का घी का उपयोग किया जाता है।

    8. करणी माता के मंत्र जप से क्या लाभ होता है?

    भौतिक सुख, आर्थिक समस्याओं से मुक्ति, कर्ज से छुटकारा, नौकरी में प्रमोशन और व्यापार में उन्नति जैसे १७ लाभ प्राप्त होते हैं।

    9. क्या करणी माता का मंत्र घर में शांति लाता है?

    हाँ, इस मंत्र से घर में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन होता है।

    10. क्या करणी माता मंत्र से कर्ज मुक्ति संभव है?

    हाँ, नियमित जप से कर्ज से मुक्ति प्राप्त होती है।

    11. क्या मंत्र जप के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन जरूरी है?

    हाँ, मंत्र जप के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना अत्यंत आवश्यक है।

    12. क्या मंत्र जप के दौरान अन्य धार्मिक क्रियाओं का पालन करना चाहिए?

    हाँ, साफ-सफाई, पवित्रता और नियमितता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

    Skandamata Chalisa Path- for child happiness

    Skandamata Chalisa Path- for child happiness

    स्कंदमाता चालीसा पाठ के अद्भुत लाभ: संतान सुख से लेकर समृद्धि तक

    स्कंदमाता चालीसा पाठ देवी स्कंदमाता की कृपा प्राप्त करने का सरल और प्रभावी साधन है। स्कंदमाता माँ दुर्गा के पाँचवें रूप में पूजी जाती हैं, जिन्हें विशेष रूप से संतान सुख देने वाली और कल्याणकारी देवी माना जाता है। स्कंदमाता भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता हैं, इसलिए उन्हें यह नाम मिला है। उनका आशीर्वाद भक्तों को मानसिक शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है। जो भक्त अपने जीवन में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, उनके लिए यह चालीसा अत्यंत लाभकारी मानी जाती है।

    स्कंदमाता चालीसा

    दोहा
    नमो नमो दुर्गे सुख करनी,
    नमो नमो अम्बे दुख हरनी।
    निरंकार है ज्योति तुम्हारी,
    तिहूं लोक फैली उजियारी॥

    शशि ललाट मुख महाविशाला,
    नेत्र लाल भृकुटि विकराला।
    रूप मातु को अधिक सुहावे,
    दरश करत जन अति सुख पावे॥

    तुम संसार शक्ति लै कीना,
    पालन हेतु अन्न धन दीना।
    अन्नपूर्णा हुई जग पाला,
    तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

    प्रलयकाल सब नाशन हारी,
    तुम गौरी शिवशंकर प्यारी।
    शिव योगी तुम्हरे गुण गावे,
    ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावे॥

    रूप सरस्वती को तुम धारा,
    दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा।
    धरयो रूप नरसिंह को अम्बा,
    परगट भई फाड़कर खम्बा॥

    रक्षा करि प्रहलाद बचायो,
    हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो।
    लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं,
    श्री नारायण अंग समाहीं॥

    क्षीरसिन्धु में करत विलासा,
    दयासिन्धु दीजै मन आसा।
    हिंगलाज में तुम्हीं भवानी,
    महिमा अमित न जात बखानी॥

    मातंगी अरु धूमावति माता,
    भुवनेश्वरी बगला सुखदाता।
    श्री भैरव तारा जग तारिणी,
    छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

    केहरि वाहन सोह भवानी,
    लांगुर वीर चलत अगवानी।
    कर में खप्पर खड्ग विराजे,
    जाको देख काल डर भाजे॥

    सोह महेश्वरी अत्यन्त सुहावे,
    भवानी पूरन जग पावे।
    त्रिभुवन में तू विख्यात रही,
    महाकाली का रूप तुहि॥

    चौपाई

    स्कंद माता माँ का रूप निराला।
    जीवन का हर संकट हल करने वाला।
    जो भी करे भक्तिपूर्वक ध्यान।
    उसे प्राप्त होय सुख अपार मान॥
    जयति जयति जगत में सदा हो।
    स्कंदमाता तेरा ही गुणगान॥

    चालीसा पाठ का अर्थ

    स्कंदमाता चालीसा का अर्थ

    दोहे का अर्थ

    हे माँ दुर्गा, आपको बार-बार प्रणाम है। आप सुख देने वाली और दुख हरने वाली हैं। आपकी ज्योति निराकार है, और तीनों लोकों में फैली हुई है।

    आपके मस्तक पर चंद्रमा है, आपका मुख विशाल है, और आपकी आँखें लाल हैं। आपकी भृकुटि (भौंहें) विकराल हैं। आपका स्वरूप अत्यधिक सुंदर है, और आपका दर्शन करने से भक्तों को अत्यंत सुख मिलता है।

    आपने इस संसार को चलाने के लिए शक्ति का रूप लिया और सभी जीवों की पालन के लिए अन्न-धन प्रदान किया। आप अन्नपूर्णा के रूप में समस्त जगत का पालन करती हैं और आदिशक्ति हैं।

    प्रलय के समय आप समस्त संसार का विनाश करती हैं। आप गौरी हैं और शिव की प्रिय हैं। योगी, ऋषि, ब्रह्मा और विष्णु निरंतर आपकी स्तुति करते हैं।

    चौपाई का अर्थ

    आपने सरस्वती का रूप धारण कर संसार में बुद्धि का प्रकाश फैलाया। नरसिंह रूप में प्रकट होकर आपने प्रहलाद की रक्षा की और हिरण्याक्ष का संहार किया।

    आप लक्ष्मी रूप में संसार की समृद्धि का कारण हैं और नारायण के साथ वास करती हैं। क्षीरसागर में आपकी करुणा का निवास है। हिंगलाज में भी आप भवानी के रूप में पूजी जाती हैं।

    आप मातंगी और धूमावति के रूप में पूजी जाती हैं, और भुवनेश्वरी, बगला, और भैरव के रूप में सुख प्रदान करती हैं। छिन्नमस्ता और तारा देवी के रूप में आप भक्तों के दुख दूर करती हैं।

    आपके वाहन सिंह (केहरि) पर सवारी करते हुए वीर हनुमान आपकी सेवा करते हैं। आपके हाथ में खप्पर (खून का पात्र) और खड्ग (तलवार) है, जिन्हें देखकर मृत्यु भी डर जाती है।

    आप महेश्वरी और महाकाली के रूप में भी विख्यात हैं, और जगत की रक्षा करती हैं।

    स्कंदमाता चालीसा पाठ के लाभ

    1. संतान सुख: माँ की कृपा से संतान प्राप्ति में सफलता मिलती है।
    2. सुख-समृद्धि: पाठ करने से घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है।
    3. मानसिक शांति: मानसिक तनाव और चिंता से मुक्ति मिलती है।
    4. बीमारियों से मुक्ति: स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का निवारण होता है।
    5. सफलता: कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
    6. दुश्मनों से रक्षा: शत्रुओं के बुरे प्रभाव से रक्षा होती है।
    7. आत्मबल में वृद्धि: आत्मबल और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
    8. आध्यात्मिक उन्नति: साधक की आध्यात्मिक उन्नति होती है।
    9. धन प्राप्ति: आर्थिक तंगी से मुक्ति मिलती है।
    10. सुखद दांपत्य जीवन: वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है।
    11. नकारात्मक ऊर्जा का नाश: घर से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।
    12. शांति और संतोष: जीवन में शांति और संतोष की भावना आती है।
    13. विवाह में बाधा दूर होती है: विवाह संबंधी समस्याओं का समाधान होता है।
    14. प्रेम और मेल-मिलाप: आपसी संबंधों में प्रेम और सौहार्द बढ़ता है।
    15. समाज में प्रतिष्ठा: समाज में प्रतिष्ठा और मान-सम्मान प्राप्त होता है।
    16. सद्गुणों का विकास: व्यक्तित्व में सकारात्मक बदलाव आते हैं।
    17. ईश्वरीय कृपा: माँ की कृपा से हर कार्य में ईश्वरीय सहयोग मिलता है।

    स्कंदमाता चालीसा पाठ विधि

    दिन: स्कंदमाता चालीसा पाठ के लिए शुक्रवार और नवरात्रि के पाँचवे दिन को उत्तम माना जाता है।
    अवधि: 41 दिनों तक लगातार पाठ करना अत्यधिक शुभ माना गया है।
    मुहूर्त: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) सर्वोत्तम समय है। इस समय देवी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।
    पूजा विधि: माँ स्कंदमाता की प्रतिमा या चित्र के सामने दीप जलाकर पाठ शुरू करें। पहले माँ का आह्वान करें और फिर चालीसा का पाठ करें।

    स्कंदमाता चालीसा पाठ नियम

    1. साधना को गुप्त रखें: यह अत्यधिक महत्वपूर्ण है कि साधना को गोपनीय रखें।
    2. नियमितता: 41 दिन तक रोज़ पाठ करें। बीच में कोई भी दिन न छोड़े।
    3. स्वच्छता: पाठ से पहले स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करें।
    4. सात्विक भोजन: इस दौरान सात्विक भोजन करें और मांसाहार से दूर रहें।
    5. ध्यान और एकाग्रता: मन को शांत और एकाग्र रखते हुए पाठ करें।
    6. दान: चालीसा पाठ समाप्त होने के बाद जरूरतमंदों को दान दें।
    7. साधना का उद्देश्य: ध्यान रखें कि साधना का उद्देश्य माँ की कृपा प्राप्त करना हो, न कि किसी अन्य लालसा के लिए।

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    स्कंदमाता चालीसा पाठ सावधानियाँ

    1. सत्यनिष्ठ रहें: पाठ के दौरान सत्य बोलें और असत्य से बचें।
    2. किसी से चर्चा न करें: अपनी साधना के बारे में किसी से चर्चा न करें।
    3. धैर्य रखें: साधना में धैर्य रखना अत्यंत आवश्यक है।
    4. नकारात्मक विचार न आने दें: पाठ के समय मन में नकारात्मक विचारों को आने न दें।
    5. भक्ति और विश्वास बनाए रखें: पाठ के दौरान माँ के प्रति पूर्ण भक्ति और विश्वास बनाए रखें।
    6. परिणाम की चिंता न करें: साधना का उद्देश्य केवल माँ की भक्ति हो, परिणाम की चिंता न करें।

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    स्कंदमाता चालीसा पाठ: प्रश्न और उत्तर

    प्रश्न 1: स्कंदमाता कौन हैं?

    उत्तर: स्कंदमाता माँ दुर्गा का पाँचवा रूप हैं, जो भगवान कार्तिकेय की माता हैं और भक्तों को आशीर्वाद देती हैं।

    प्रश्न 2: स्कंदमाता चालीसा पाठ क्या है?

    उत्तर: यह माँ स्कंदमाता की स्तुति और ध्यान के लिए किया जाने वाला पाठ है, जो भक्तों को अनेक लाभ प्रदान करता है।

    प्रश्न 3: स्कंदमाता चालीसा पाठ क्यों करें?

    उत्तर: यह पाठ जीवन में सुख-समृद्धि, संतान प्राप्ति और मानसिक शांति लाने के लिए किया जाता है।

    प्रश्न 4: किस दिन स्कंदमाता चालीसा पाठ करना शुभ होता है?

    उत्तर: शुक्रवार और नवरात्रि के पाँचवे दिन स्कंदमाता चालीसा पाठ करना शुभ होता है।

    प्रश्न 5: पाठ की अवधि कितनी होनी चाहिए?

    उत्तर: 41 दिनों तक निरंतर स्कंदमाता चालीसा पाठ करना अत्यधिक शुभ माना जाता है।

    प्रश्न 6: पाठ के दौरान किन नियमों का पालन करना चाहिए?

    उत्तर: स्वच्छता, नियमितता, ध्यान और सात्विक आहार का पालन करना आवश्यक है।

    प्रश्न 7: क्या स्कंदमाता चालीसा पाठ से संतान सुख प्राप्त होता है?

    उत्तर: हां, स्कंदमाता चालीसा पाठ से संतान सुख प्राप्त होता है।

    प्रश्न 8: पाठ करते समय किस प्रकार की पूजा विधि अपनाई जाए?

    उत्तर: माँ की प्रतिमा के सामने दीप जलाकर, शांत मन से ध्यान लगाकर पाठ करना चाहिए।

    प्रश्न 9: स्कंदमाता चालीसा पाठ के लाभ क्या हैं?

    उत्तर: मानसिक शांति, सुख-समृद्धि, संतान सुख, और कार्यों में सफलता प्रमुख लाभ हैं।

    प्रश्न 10: पाठ के दौरान क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?

    उत्तर: साधना को गुप्त रखना, असत्य से दूर रहना, और नकारात्मक विचारों से बचना आवश्यक है।

    प्रश्न 11: क्या चालीसा पाठ में कोई विशेष मंत्र भी शामिल होता है?

    उत्तर: स्कंदमाता चालीसा पाठ में देवी के शक्तिशाली मंत्रों का भी समावेश होता है, जो भक्तों को शक्ति और संरक्षण प्रदान करते हैं।

    प्रश्न 12: चालीसा पाठ के बाद क्या करना चाहिए?

    उत्तर: पाठ समाप्त होने के बाद, देवी को भोग लगाएं और जरूरतमंदों को दान दें।

    Chandraghanta Kavacham- Chant, Significance & Spiritual Benefits

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    चंद्रघंटा कवचम्: देवी की कृपा और आध्यात्मिक उन्नति

    चंद्रघंटा देवी मां दुर्गा का तृतीय स्वरूप हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन होती है। उनका स्वरूप सौम्य होने के साथ-साथ युद्ध के लिए तत्पर रहता है। उनके माथे पर चंद्र के आकार की घंटा की आकृति होती है, जिससे उन्हें चंद्रघंटा नाम से जाना जाता है। चंद्रघंटा कवचम् पाठ देवी की कृपा और सुरक्षा प्राप्त करने का शक्तिशाली साधन है। इस कवच के नियमित पाठ से साधक को भयंकर संकटों और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है।

    संपूर्ण चंद्रघंटा कवचम् और उसका अर्थ

    संपूर्ण चंद्रघंटा कवचम्

    शिरः पातु चंद्रघंटा,
    मस्तकं पातु चन्द्रमौली।
    नेत्रे पातु चन्द्रमुखी,
    कर्णौ रत्नमालिनी।

    नासिकां पातु चंद्रघंटा,
    वदनं पातु चंद्रिका।
    जिव्हां पातु चंद्रशोभा,
    कंठं पातु चंद्रमौली।

    स्कंधौ पातु चंद्रघंटा,
    हृदयं पातु चंद्रप्रिया।
    कटिं पातु चंद्रलेखा,
    पादौ मे चंद्रवल्ली।

    सर्वाङ्गं पातु चंद्रघंटा,
    सर्वदा सर्वरक्षाकरी॥

    कवच का अर्थ

    1. शिरः पातु चंद्रघंटा: मेरे सिर की रक्षा चंद्रघंटा देवी करें।
    2. मस्तकं पातु चन्द्रमौली: मेरे माथे की रक्षा चन्द्रमौली देवी करें।
    3. नेत्रे पातु चन्द्रमुखी: मेरे नेत्रों की रक्षा चंद्रमुखी देवी करें।
    4. कर्णौ रत्नमालिनी: मेरे कानों की रक्षा रत्नमालिनी देवी करें।
    5. नासिकां पातु चंद्रघंटा: मेरी नासिका की रक्षा चंद्रघंटा करें।
    6. वदनं पातु चंद्रिका: मेरे मुख की रक्षा चंद्रिका देवी करें।
    7. जिव्हां पातु चंद्रशोभा: मेरी जीभ की रक्षा चंद्र की शोभा वाली देवी करें।
    8. कंठं पातु चंद्रमौली: मेरे गले की रक्षा चंद्रमौली देवी करें।
    9. स्कंधौ पातु चंद्रघंटा: मेरे कंधों की रक्षा चंद्रघंटा करें।
    10. हृदयं पातु चंद्रप्रिया: मेरे हृदय की रक्षा चंद्रप्रिया देवी करें।
    11. कटिं पातु चंद्रलेखा: मेरी कमर की रक्षा चंद्रलेखा देवी करें।
    12. पादौ मे चंद्रवल्ली: मेरे पैरों की रक्षा चंद्रवल्ली देवी करें।
    13. सर्वाङ्गं पातु चंद्रघंटा: सम्पूर्ण शरीर की रक्षा चंद्रघंटा देवी करें।
    14. सर्वदा सर्वरक्षाकरी: देवी हमेशा मेरी रक्षा करें।

    यह कवच साधक को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की सुरक्षा प्रदान करता है और देवी की कृपा को आकर्षित करता है।

    चंद्रघंटा कवचम् के लाभ

    1. मानसिक शांति और आंतरिक शक्ति प्राप्त होती है।
    2. भय, चिंता और तनाव से मुक्ति मिलती है।
    3. साधक की आत्मिक और शारीरिक रक्षा होती है।
    4. नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा मिलती है।
    5. आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
    6. साधक में साहस और धैर्य का संचार होता है।
    7. देवी की कृपा से साधक को जीवन में सफलता मिलती है।
    8. आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ने में सहायता मिलती है।
    9. ग्रह दोष और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है।
    10. साधक के चारों ओर एक दिव्य कवच का निर्माण होता है।
    11. कठिन समय में साधक को मार्गदर्शन मिलता है।
    12. साधक के परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
    13. देवी की कृपा से आर्थिक समस्याओं का समाधान होता है।
    14. साधक के शत्रुओं का नाश होता है।
    15. साधक को देवी की शक्ति प्राप्त होती है।
    16. जीवन में शांति और संतुलन प्राप्त होता है।
    17. साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

    चंद्रघंटा कवचम् पाठ की विधि

    दिन: चंद्रघंटा कवचम् का पाठ नवरात्रि के तीसरे दिन शुरू करना विशेष फलदायी होता है।
    अवधि: इसका पाठ 41 दिनों तक नियमित रूप से करने से देवी की कृपा प्राप्त होती है।
    मुहूर्त: ब्रह्म मुहूर्त (प्रातः 4 बजे से 6 बजे) में इसका पाठ करना सबसे उत्तम माना जाता है।
    विधि: साधक को स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। देवी चंद्रघंटा के चित्र या मूर्ति के सामने दीपक जलाएं, फूल अर्पित करें और फिर शुद्ध मन से कवच का पाठ करें।

    चंद्रघंटा कवचम् पाठ के नियम

    1. साधना गुप्त रखें: अपने चंद्रघंटा कवचम् पाठ को गुप्त रखें, जिससे साधना में विघ्न न आए।
    2. नियमितता: इसका पाठ प्रतिदिन एक ही समय पर करें।
    3. स्वच्छता: पाठ करने से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
    4. शुद्ध मन: मन और विचारों की शुद्धता बनाए रखें।
    5. पूजा सामग्री: देवी को फूल, धूप, दीपक और नैवेद्य चढ़ाएं।
    6. संयम: पाठ के दौरान मांस, मदिरा से दूर रहें।
    7. श्रद्धा और समर्पण: देवी के प्रति पूर्ण श्रद्धा और समर्पण का भाव रखें।
    8. ध्यान: मन को एकाग्रचित्त करते हुए पाठ करें।
    9. पूजा स्थल की शुद्धि: पूजा का स्थान शांत और स्वच्छ रखें।
    10. भक्ति भाव: देवी की कृपा प्राप्ति के लिए पूर्ण भक्तिभाव से पाठ करें।

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    चंद्रघंटा कवचम् पाठ में सावधानियां

    1. संकल्प और ध्यान में अडिग रहें: साधना के दौरान ध्यान में भटकाव न हो।
    2. अशुद्ध वस्त्र और अवस्था से बचें: पाठ के समय अशुद्धता से दूर रहें।
    3. वातावरण की शांति: पाठ के समय आसपास का वातावरण शांत और सकारात्मक होना चाहिए।
    4. पूजा विधि में त्रुटि न हो: विधिपूर्वक पाठ और पूजा सामग्री का सही उपयोग करें।
    5. संकल्प का पालन करें: नियमितता में कोई भी लापरवाही न करें।

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    चंद्रघंटा कवचम् पाठ से जुड़े प्रश्न और उत्तर

    प्रश्न 1: चंद्रघंटा देवी कौन हैं?

    उत्तर: चंद्रघंटा मां दुर्गा का तृतीय स्वरूप हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है।

    प्रश्न 2: चंद्रघंटा कवचम् का पाठ क्या है?

    उत्तर: यह देवी चंद्रघंटा का एक दिव्य कवच है जो साधक की रक्षा करता है।

    प्रश्न 3: चंद्रघंटा कवचम् का पाठ कब करना चाहिए?

    उत्तर: नवरात्रि के तीसरे दिन या किसी शुभ मुहूर्त में इसका पाठ किया जा सकता है।

    प्रश्न 4: इस कवच का नियमित पाठ कितने दिनों तक करना चाहिए?

    उत्तर: इसका पाठ 41 दिनों तक नियमित रूप से करना अत्यधिक लाभकारी माना जाता है।

    प्रश्न 5: क्या चंद्रघंटा कवचम् साधना को गुप्त रखना चाहिए?

    उत्तर: हां, साधना को गुप्त रखने से साधक की ऊर्जा केंद्रित रहती है।

    प्रश्न 6: क्या इसका पाठ ग्रह दोषों को शांत करता है?

    उत्तर: हां, इसका नियमित पाठ ग्रह दोष और नकारात्मकता से मुक्ति दिलाता है।

    प्रश्न 7: क्या पाठ के दौरान विशेष नियमों का पालन करना होता है?

    उत्तर: हां, स्नान, स्वच्छता और मानसिक शांति का पालन करना आवश्यक है।

    प्रश्न 8: क्या इस पाठ से आर्थिक समस्याओं का समाधान हो सकता है?

    उत्तर: हां, देवी की कृपा से आर्थिक समस्याओं का समाधान भी प्राप्त होता है।

    प्रश्न 9: क्या यह कवच साधक को शारीरिक और मानसिक सुरक्षा प्रदान करता है?

    उत्तर: हां, यह कवच साधक की शारीरिक, मानसिक और आत्मिक सुरक्षा करता है।

    प्रश्न 10: क्या इसका पाठ केवल नवरात्रि में किया जा सकता है?

    उत्तर: नहीं, इसका पाठ किसी भी शुभ मुहूर्त या दिन में किया जा सकता है।

    प्रश्न 11: क्या चंद्रघंटा कवचम् साधक की आध्यात्मिक उन्नति में सहायक है?

    उत्तर: हां, इसका पाठ साधक की आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है।

    प्रश्न 12: क्या पाठ के दौरान कोई विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए?

    उत्तर: हां, पाठ के दौरान शुद्धता, शांत वातावरण और श्रद्धा का पालन करना चाहिए।

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    ब्रह्मचारिणी कवचम् पाठ: नियम, साधना विधि और महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर

    ब्रह्मचारिणी कवचम् का पाठ देवी ब्रह्मचारिणी की कृपा प्राप्ति का महत्वपूर्ण साधन है। देवी ब्रह्मचारिणी मां दुर्गा का दूसरा रूप मानी जाती हैं। उनका कवच व्यक्ति को आंतरिक शक्ति और मानसिक शांति प्रदान करता है। इस कवच का पाठ करने से साधक में अद्वितीय ऊर्जा का संचार होता है और जीवन की कठिनाइयों से लड़ने की क्षमता मिलती है।

    संपूर्ण ब्रह्मचारिणी कवचम् और उसका अर्थ

    संपूर्ण ब्रह्मचारिणी कवचम्

    शिरो मे पातु ब्रह्मचारिण्यनन्ता,
    फालं मां पातु चन्द्रार्धधारिणी।
    नयने पातु तारा सुशोभा,
    कपोलौ पातु पातु सुभ्रूः सदैव॥

    पातु नासिकां सत्यव्रता,
    मुखं पातु मां सोम्या सुभाषिणी।
    जिह्वां पातु चन्द्रकान्ति: सुभद्रा,
    कण्ठं पातु वरदायिनी शुभा॥

    स्कन्धौ पातु जयदा महादेवी,
    भुजौ पातु शंखिनी शुभवहा।
    करौ पातु तपस्विनी नित्यं,
    हृदयं पातु देवी हृषिकेशिनी॥

    मध्यं पातु तपःपूर्णा,
    नाभिं मे पातु वैष्णवी शक्तियुक्ता।
    कटिं पातु जगद्धात्री सर्वमङ्गलकारिणी,
    ऊरू पातु महादेवी महाप्रज्ञा॥

    जानुनी पातु कमलाकान्ता,
    पादौ मे पातु पद्मवसुंधरा।
    सर्वाङ्गं पातु मां ब्रह्मचारिणी,
    सर्वदा सर्वरक्षांकरिण्यस्तु॥

    इति ते कवचं दिव्यं,
    पठनीयं विशेषतः।
    मात्रा सह पठेद्यस्तु,
    सर्वकामफलमवाप्नुयात्॥

    संपूर्ण ब्रह्मचारिणी कवचम् का अर्थ

    मेरे सिर की रक्षा अनंत ब्रह्मचारिणी करें।
    मस्तक की रक्षा अर्धचंद्र धारण करने वाली देवी करें।
    आंखों की रक्षा तारा के समान चमकने वाली देवी करें।
    कपोलों (गालों) की रक्षा सुंदर भौहों वाली देवी करें।
    नासिका की रक्षा सत्य व्रत का पालन करने वाली देवी करें।
    मुख की रक्षा सौम्यता से बोलने वाली देवी करें।
    जीभ की रक्षा चंद्र की कांति वाली शुभ देवी करें।
    गले की रक्षा वरदान देने वाली देवी करें।
    कंधों की रक्षा विजय देने वाली देवी करें।
    भुजाओं की रक्षा शंखिनी (शक्ति संपन्न) देवी करें।
    हाथों की रक्षा तपस्विनी देवी करें।
    हृदय की रक्षा हृषिकेशिनी (ईश्वर की प्रेरणा वाली) देवी करें।
    मध्य भाग की रक्षा तप से पूर्ण देवी करें।
    नाभि की रक्षा शक्ति से युक्त देवी करें।
    कमर की रक्षा जगत की धात्री देवी करें।
    जांघों की रक्षा महादेवी करें।
    घुटनों की रक्षा कमल के समान शोभित देवी करें।
    पैरों की रक्षा धरती की देवी करें।
    सम्पूर्ण शरीर की रक्षा ब्रह्मचारिणी देवी हमेशा करें।

    यह कवच साधक को हर दिशा से सुरक्षा और देवी की कृपा प्रदान करता है।

    ब्रह्मचारिणी कवचम् के लाभ

    1. मानसिक शांति और स्थिरता मिलती है।
    2. साधक के अंदर साहस और आत्मविश्वास बढ़ता है।
    3. नकारात्मकता से सुरक्षा मिलती है।
    4. तनाव और चिंता से मुक्ति मिलती है।
    5. शारीरिक और मानसिक रोगों से सुरक्षा होती है।
    6. आध्यात्मिक जागरूकता का विकास होता है।
    7. आत्मसंयम और धैर्य की वृद्धि होती है।
    8. साधक को ईश्वर की उपासना में एकाग्रता प्राप्त होती है।
    9. परिवार और समाज में आदर बढ़ता है।
    10. मनोवांछित इच्छाओं की पूर्ति होती है।
    11. आर्थिक समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
    12. ग्रह दोष और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा मिलती है।
    13. जीवन में सुख-शांति का वास होता है।
    14. साधक के जीवन में हर क्षेत्र में सफलता मिलती है।
    15. साधक को आंतरिक और बाहरी शत्रुओं से सुरक्षा मिलती है।
    16. दैवीय कृपा प्राप्त होती है।
    17. साधक को समस्त प्रकार की सुरक्षा और समृद्धि मिलती है।

    ब्रह्मचारिणी कवचम् पाठ की विधि

    दिन: ब्रह्मचारिणी कवचम् का पाठ किसी भी दिन प्रारंभ किया जा सकता है, लेकिन शुभ मुहूर्त में करना अत्यधिक फलदायी होता है।
    अवधि: इसका नियमित रूप से 41 दिनों तक पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
    मुहूर्त: ब्रह्म मुहूर्त में (प्रातः 4 बजे से 6 बजे तक) इसका पाठ करने से अधिकतम लाभ प्राप्त होता है।
    विधि: साधक को स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। देवी ब्रह्मचारिणी के चित्र या मूर्ति के सामने दीपक जलाएं और फूल अर्पित करें। शुद्ध मन से कवच का पाठ करें।

    ब्रह्मचारिणी कवचम् पाठ के नियम

    1. साधना को गुप्त रखें: कवच का पाठ करते समय अपनी साधना को गुप्त रखना चाहिए।
    2. नियमितता: इसका नियमित रूप से पाठ करना आवश्यक है।
    3. स्नान: हर दिन स्नान करके पवित्र अवस्था में पाठ करें।
    4. शुद्ध मन: मन और विचारों की शुद्धता बनाए रखें।
    5. शांति: पाठ के दौरान शांत और एकाग्रचित्त रहें।
    6. पूर्ण श्रद्धा: देवी ब्रह्मचारिणी के प्रति श्रद्धा और समर्पण का भाव बनाए रखें।
    7. धूप-दीप: पाठ से पहले धूप, दीप और पुष्प चढ़ाएं।
    8. संयम: इस दौरान मांस, मदिरा का त्याग करें।
    9. समर्पण: देवी के प्रति समर्पण का भाव जरूरी है।
    10. भक्तिभाव: भक्ति और सच्चे मन से पाठ करें।

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    ब्रह्मचारिणी कवचम् पाठ में सावधानियां

    1. ध्यान में विघ्न न हो: पाठ के दौरान किसी भी प्रकार की विघ्न बाधा से बचें।
    2. अशुद्ध अवस्था से बचें: पाठ के दौरान अशुद्ध वस्त्र या अशुद्ध मन से पाठ न करें।
    3. सकारात्मक माहौल: पाठ के समय आसपास का वातावरण शांत और सकारात्मक होना चाहिए।
    4. ध्यान में भटकाव न हो: मन को एकाग्रचित्त रखते हुए पाठ करें।
    5. अपवित्र वस्त्र न पहनें: स्वच्छ वस्त्र पहनकर ही पाठ करें।

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    ब्रह्मचारिणी कवचम् पाठ से जुड़े प्रश्न और उत्तर

    प्रश्न 1: ब्रह्मचारिणी कवचम् पाठ क्या है?

    उत्तर: ब्रह्मचारिणी कवचम् देवी ब्रह्मचारिणी का विशेष स्तोत्र है, जो साधक की रक्षा करता है और उसे आशीर्वाद प्रदान करता है।

    प्रश्न 2: ब्रह्मचारिणी कौन हैं?

    उत्तर: ब्रह्मचारिणी देवी दुर्गा का दूसरा रूप हैं, जो तपस्या और समर्पण की प्रतीक हैं।

    प्रश्न 3: ब्रह्मचारिणी कवचम् का पाठ कब करना चाहिए?

    उत्तर: इसका पाठ ब्रह्म मुहूर्त (प्रातः 4 बजे से 6 बजे) में करना सबसे शुभ माना जाता है।

    प्रश्न 4: कितने दिनों तक इसका पाठ करना चाहिए?

    उत्तर: 41 दिनों तक नियमित रूप से इसका पाठ करने से अधिकतम लाभ मिलता है।

    प्रश्न 5: क्या इस पाठ को गुप्त रखना चाहिए?

    उत्तर: हां, साधना को गुप्त रखना चाहिए ताकि साधक की ऊर्जा बाधित न हो।

    प्रश्न 6: क्या पाठ के दौरान कोई विशेष नियम हैं?

    उत्तर: हां, स्नान, शुद्ध वस्त्र, और शांति का पालन करना चाहिए।

    प्रश्न 7: ब्रह्मचारिणी कवचम् के पाठ से क्या लाभ होते हैं?

    उत्तर: मानसिक शांति, सुरक्षा, आत्मविश्वास और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।

    प्रश्न 8: क्या पाठ में कोई सावधानी बरतनी चाहिए?

    उत्तर: हां, पाठ के दौरान किसी भी प्रकार की अशुद्धता से बचना चाहिए।

    प्रश्न 9: क्या यह पाठ ग्रह दोषों से मुक्ति दिलाता है?

    उत्तर: हां, इसका नियमित पाठ करने से ग्रह दोष और नकारात्मकता से मुक्ति मिलती है।

    प्रश्न 10: क्या पाठ में कोई विशेष पूजन सामग्री चाहिए?

    उत्तर: दीपक, धूप, पुष्प, और शुद्ध जल का उपयोग करना चाहिए।

    प्रश्न 11: क्या यह पाठ आर्थिक समस्याओं का समाधान करता है?

    उत्तर: हां, यह पाठ आर्थिक समस्याओं से मुक्ति दिलाता है।

    प्रश्न 12: क्या पाठ के दौरान मांस-मदिरा का त्याग करना चाहिए?

    उत्तर: हां, पाठ के दौरान मांस, मदिरा से दूर रहना चाहिए।

    प्रश्न 13: क्या यह पाठ सभी के लिए फलदायी है?

    उत्तर: हां, यह पाठ सभी साधकों के लिए लाभकारी होता है।

    प्रश्न 14: क्या देवी ब्रह्मचारिणी की साधना में एकाग्रता आवश्यक है?

    उत्तर: हां, एकाग्रता और श्रद्धा साधना में अनिवार्य हैं।

    प्रश्न 15: क्या ब्रह्मचारिणी कवचम् पाठ से व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति मिलती है?

    उत्तर: हां, इसका नियमित पाठ साधक की आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है।

    Katyayani Shabar Mantra- Secrets of Success Relationship

    Katyayani Shabar Mantra- Secrets of Success Relationship

    कात्यायनी शाबर मंत्र: प्रेम प्रणय व विवाहित जीवन की बाधायें नष्ट करे

    कात्यायनी शाबर मंत्र एक अत्यंत प्रभावी और सिद्ध मंत्र माना जाता है। इसे विशेष रूप से प्रेम प्रणय व शादी व्याह से संबंधित, मनोकामना पुर्ति, इच्छित कार्यों में सफलता और समृद्धि के लिए उपयोग किया जाता है। कात्यायनी देवी की पूजा शक्ति, समृद्धि और मंगल कार्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए की जाती है। इस मंत्र में माँ कात्यायनी का आह्वान किया जाता है, जो जग की पालनहारी और शक्ति की स्वरूपिणी हैं।

    दसों दिशाओं का दिग्बंधन मंत्र

    “ॐ ह्रीं क्लीं नमः सर्वतः रक्ष रक्ष कात्यायनी स्वाहा।”

    अर्थ:

    इस मंत्र द्वारा साधक दसों दिशाओं में सुरक्षा का घेरा बनाता है। यह मंत्र साधक के चारों ओर रक्षात्मक शक्ति का निर्माण करता है, जिससे नकारात्मक शक्तियाँ पास नहीं आ सकतीं।

    कात्यायनी शाबर मंत्र और उसका संपूर्ण अर्थ

    “ॐ ह्रीं कात्यायने, करे सिद्ध मंगल कार्य,
    तुम हो जग की पालनहारी,
    तुम हो शक्ति महा कुमारी,
    न करे काज तो बटुक भैरव की आन।”

    अर्थ:

    इस मंत्र का अर्थ है कि माँ कात्यायनी सभी मंगल कार्यों को सिद्ध करती हैं। वह जगत की पालनहारी और महाशक्ति स्वरूपिणी हैं। अगर कार्य सिद्ध नहीं हुआ तो भैरव की शक्ति साधक के पक्ष में खड़ी होगी।

    कात्यायनी शाबर मंत्र के लाभ

    1. इच्छित कार्यों में सफलता।
    2. प्रेम प्रणय के क्षेत्र मे सफलता
    3. धन-संपत्ति की प्राप्ति।
    4. परिवार में सुख-समृद्धि।
    5. स्वास्थ्य लाभ।
    6. विवाह में सफलता।
    7. नौकरी और व्यवसाय में उन्नति।
    8. संतान सुख की प्राप्ति।
    9. मानसिक शांति।
    10. आत्मविश्वास में वृद्धि।
    11. नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति।
    12. घर में शांति और समृद्धि।
    13. धार्मिक कार्यों में सफलता।
    14. मनोकामनाओं की पूर्ति।
    15. संकटों से मुक्ति।
    16. मानसिक स्थिरता।
    17. आध्यात्मिक उन्नति।

    पूजा सामग्री

    1. लाल वस्त्र।
    2. देवी कात्यायनी की प्रतिमा या चित्र।
    3. लाल फूल (विशेष रूप से गुड़हल)।
    4. सिंदूर।
    5. चंदन।
    6. घी का दीपक।
    7. नैवेद्य (मिठाई, फल)।
    8. पंचामृत।
    9. चावल, हल्दी, सुपारी।

    मंत्र विधि

    मंत्र जप का दिन, अवधि और मुहूर्त

    कात्यायनी शाबर मंत्र का जप नवरात्रि या किसी शुभ मुहूर्त में आरंभ करना चाहिए। साधक को ११ से २१ दिनों तक मंत्र का निरंतर जप करना चाहिए।

    मंत्र जप सामग्री

    लाल वस्त्र पहनकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। माँ कात्यायनी का ध्यान करें और ११ माला यानी ११८८ मंत्र प्रतिदिन जप करें।

    मंत्र जप संख्या

    १ माला में १०८ मंत्र होते हैं। साधक को रोजाना ११ माला का जप करना चाहिए।

    मंत्र जप के नियम

    • साधक की उम्र २० वर्ष से अधिक होनी चाहिए।
    • स्त्री-पुरुष दोनों जप कर सकते हैं।
    • साधक नीले या काले कपड़े न पहनें।
    • धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार से दूर रहें।
    • ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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    मंत्र जप में सावधानी

    • शुद्धता का पालन करें।
    • किसी भी प्रकार का विकार मन में न लाएं।
    • धैर्य और श्रद्धा बनाए रखें।

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    कात्यायनी शाबर मंत्र पृश्न-उत्तर

    पृश्न १: कात्यायनी शाबर मंत्र का जप कौन कर सकता है?

    उत्तर: इस मंत्र का जप कोई भी साधक, जिसकी उम्र २० वर्ष से अधिक हो, कर सकता है। स्त्री और पुरुष दोनों इस मंत्र का लाभ ले सकते हैं।

    पृश्न २: क्या जप के दौरान विशेष वस्त्र पहनने की आवश्यकता होती है?

    उत्तर: हां, साधक को लाल या सफेद वस्त्र पहनने चाहिए। नीले या काले रंग के कपड़े से बचना चाहिए।

    पृश्न ३: क्या मंत्र जप के दौरान खाने-पीने में कुछ सावधानियां रखनी चाहिए?

    उत्तर: हां, मंत्र जप के दौरान धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार का सेवन नहीं करना चाहिए। सात्विक आहार ग्रहण करना उचित है।

    पृश्न ४: मंत्र जप के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन क्यों आवश्यक है?

    उत्तर: ब्रह्मचर्य का पालन साधक की ऊर्जा को संचालित करने में सहायक होता है, जिससे मंत्र की शक्ति को सही दिशा मिलती है।

    पृश्न ५: कात्यायनी शाबर मंत्र का क्या परिणाम होता है?

    उत्तर: इस मंत्र का परिणाम साधक की इच्छित कार्यों में सफलता, समृद्धि और आत्मिक शांति के रूप में मिलता है।

    पृश्न ६: मंत्र जप में कौन सी दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए?

    उत्तर: साधक को पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए।

    पृश्न ७: क्या कोई विशेष दिन इस मंत्र का जप आरंभ करने के लिए है?

    उत्तर: इस मंत्र का जप नवरात्रि के दिनों में या किसी शुभ मुहूर्त में आरंभ करना अत्यंत लाभकारी होता है।

    पृश्न ८: क्या महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान मंत्र जप करना चाहिए?

    उत्तर: मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को मंत्र जप से बचना चाहिए।

    पृश्न ९: क्या इस मंत्र का जप बिना दीक्षा के किया जा सकता है?

    उत्तर: हां, साधक इस मंत्र का जप बिना दीक्षा के भी कर सकता है, परंतु गुरु दीक्षा लेना अधिक लाभकारी होता है।

    पृश्न १०: क्या इस मंत्र का जप केवल संकट के समय ही किया जा सकता है?

    उत्तर: नहीं, साधक किसी भी समय अपने इच्छित कार्यों की सिद्धि के लिए इस मंत्र का जप कर सकता है।

    पृश्न ११: कात्यायनी शाबर मंत्र से कौन से कार्य सिद्ध होते हैं?

    उत्तर: धन, संपत्ति, शत्रुओं पर विजय, स्वास्थ्य लाभ, विवाह और संतान सुख के कार्य इस मंत्र से सिद्ध होते हैं।

    पृश्न १२: क्या इस मंत्र का जप स्थायी सफलता दिलाता है?

    उत्तर: हां, इस मंत्र का जप साधक को स्थायी सफलता, समृद्धि और मानसिक शांति प्रदान करता है।

    Durga Shabar Mantra – For Strong Protection

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    दुर्गा शाबर मंत्र: शक्ति प्राप्ति और कष्टों से मुक्ति के अद्भुत उपाय

    दुर्गा शाबर मंत्र शक्ति और भक्ति का प्रतीक है। यह मंत्र माँ दुर्गा की कृपा पाने के लिए विशेष रूप से उपयोगी माना जाता है। इसकी साधना से जीवन में आने वाले कष्ट और विपत्तियों से मुक्ति मिलती है।

    मंत्र और उसका संपूर्ण अर्थ

    ॐ दुं दुर्गाय, नौ दिन तुम शक्ति अवतारी, महिमा अपरम्पार तुम्हारी, सभी तुम्हारे सुमिरन करते, भक्त सुखी दुख से छुटते, करो हमारे काज, न करे तो बटुक भैरव की आन।

    इस मंत्र का अर्थ है कि माँ दुर्गा नौ दिनों तक शक्ति की अवतारी रूप में विराजमान रहती हैं। उनकी महिमा अपरम्पार है, और जो भी भक्त उनकी आराधना करते हैं, उन्हें सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। माँ दुर्गा भक्तों के सभी कार्य सिद्ध करती हैं, और अगर कोई बाधा आती है, तो बटुक भैरव की सहायता से उसे दूर किया जाता है।

    दुर्गा शाबर मंत्र से मिलने वाले लाभ

    1. शारीरिक कष्टों से मुक्ति।
    2. मानसिक शांति।
    3. धन-धान्य की वृद्धि।
    4. परिवार में सुख और शांति।
    5. शत्रुओं से सुरक्षा।
    6. आत्मबल में वृद्धि।
    7. आध्यात्मिक उन्नति।
    8. कर्ज से मुक्ति।
    9. नौकरी में सफलता।
    10. वैवाहिक समस्याओं का समाधान।
    11. संतान प्राप्ति।
    12. कार्यों में सफलता।
    13. व्यापार में उन्नति।
    14. बुरी नजर से बचाव।
    15. शत्रुओं की पराजय।
    16. रोगों से मुक्ति।
    17. परिवार में समृद्धि और सुख।

    दुर्गा शाबर मंत्र पूजा सामग्री और विधि

    पूजा सामग्री:

    1. देवी दुर्गा की मूर्ति या चित्र।
    2. लाल पुष्प।
    3. कुमकुम।
    4. दीपक और घी।
    5. चावल।
    6. धूप या अगरबत्ती।
    7. नारियल।
    8. मिठाई या फल।
    9. सफेद वस्त्र या रेशमी वस्त्र।

    मंत्र विधि:

    • सबसे पहले स्नान कर शुद्ध हो जाएं।
    • लाल वस्त्र पहनें।
    • पूजा स्थल पर देवी दुर्गा की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
    • दीपक जलाएं और धूप जलाकर देवी का आह्वान करें।
    • मंत्र जप की शुरुआत से पहले विनियोग मंत्र पढ़ें।
    • मंत्र जप करते समय ध्यान दें कि आपका मन शांत और एकाग्र हो।
    • देवी को पुष्प, चावल, और नारियल अर्पित करें।
    • मिठाई या फल का भोग लगाएं।

    दुर्गा शाबर मंत्र जप का समय और विधि

    मंत्र जप का शुभ मुहूर्त सुबह के समय ब्रह्म मुहूर्त में होता है। जप 11 से 21 दिनों तक नियमित रूप से करना चाहिए। रोज 11 माला (1188 मंत्र) जपें।

    मंत्र जप के नियम

    1. उम्र 20 वर्ष से ऊपर होनी चाहिए।
    2. स्त्री और पुरुष दोनों इस मंत्र का जप कर सकते हैं।
    3. ब्लू और ब्लैक कपड़े न पहनें।
    4. धूम्रपान, मद्यपान, और मांसाहार से दूर रहें।
    5. ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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    मंत्र जप की सावधानियां

    मंत्र जप करते समय ध्यान रखें कि आपका मन विचलित न हो। कोई भी नकारात्मक विचार आपके मन में न आएं। जप के दौरान शुद्धता बनाए रखें।

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    दुर्गा शाबर मंत्र से संबंधित प्रश्न-उत्तर

    प्रश्न 1: दुर्गा शाबर मंत्र कब जपना चाहिए?

    उत्तर: इस मंत्र का जप ब्रह्म मुहूर्त में करना सबसे अच्छा माना जाता है।

    प्रश्न 2: क्या दुर्गा शाबर मंत्र से तुरंत लाभ मिलता है?

    उत्तर: हाँ, सही विधि और श्रद्धा से जप करने पर जल्दी लाभ प्राप्त होते हैं।

    प्रश्न 3: क्या महिलाएं इस मंत्र का जप कर सकती हैं?

    उत्तर: हाँ, स्त्री-पुरुष दोनों इस मंत्र का जप कर सकते हैं।

    प्रश्न 4: क्या इस मंत्र का जप किसी भी दिन किया जा सकता है?

    उत्तर: हाँ, लेकिन नवरात्रि के दिनों में इसका विशेष महत्व होता है।

    प्रश्न 5: दुर्गा शाबर मंत्र के जप के लिए कौन सा रंग पहनना चाहिए?

    उत्तर: लाल और पीले रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है।

    प्रश्न 6: क्या इस मंत्र से मनोकामना पूर्ण होती है?

    उत्तर: हाँ, इस मंत्र का जप करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

    प्रश्न 7: क्या इस मंत्र के जप के दौरान कुछ विशेष सावधानियां रखनी चाहिए?

    उत्तर: हाँ, शुद्धता और संयम का पालन करना आवश्यक है।

    प्रश्न 8: मंत्र जप के दौरान कौन-कौन सी चीजों का परहेज करना चाहिए?

    उत्तर: धूम्रपान, मद्यपान, और मांसाहार से परहेज करना चाहिए।

    प्रश्न 9: क्या इस मंत्र का जप किसी भी स्थान पर किया जा सकता है?

    उत्तर: हाँ, लेकिन पूजा स्थल शुद्ध और शांत होना चाहिए।

    प्रश्न 10: क्या इस मंत्र से घर में सुख-शांति आती है?

    उत्तर: हाँ, इस मंत्र से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।

    प्रश्न 11: क्या इस मंत्र से स्वास्थ्य लाभ होते हैं?

    उत्तर: हाँ, इस मंत्र का जप करने से शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।

    प्रश्न 12: क्या इस मंत्र से शत्रु पर विजय प्राप्त की जा सकती है?

    उत्तर: हाँ, यह मंत्र शत्रुओं से रक्षा करता है और विजय दिलाता है।

    Trishakti Beej Mantra – Path to Prosperity

    Trishakti Beej Mantra - Path to Prosperity

    त्रिशक्ति बीज मंत्र जप: देवी सरस्वती, लक्ष्मी और काली की कृपा से जीवन में समृद्धि कैसे पाएं

    त्रिशक्ति बीज मंत्र, (ऐं श्रीं क्रीं) एक अत्यधिक शक्तिशाली बीज मंत्र है जो देवी सरस्वती, लक्ष्मी और काली की शक्ति का प्रतीक है। इस मंत्र के नियमित जाप से व्यक्ति को अद्वितीय मानसिक, आध्यात्मिक और भौतिक लाभ मिलते हैं। इसका प्रयोग मन, आत्मा और शरीर को मजबूत करने के लिए किया जाता है।

    विनियोग मंत्र

    त्रिशक्ति बीज मंत्र की साधना के प्रारंभ में विनियोग मंत्र का उच्चारण किया जाता है। यह मंत्र साधक की प्रार्थना और इष्टदेवता को समर्पित होता है।

    “ॐ अस्य श्री त्रिशक्ति बीज मंत्रस्य, महाकाली सरस्वती लक्ष्मी देवता, ऐं बीजं, श्रीं शक्तिः, क्रीं कीलकं, मंत्रसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः।”

    दसों दिशाओं का दिग्बंधन मंत्र और उसका अर्थ

    साधना करते समय साधक को दिशाओं से सुरक्षा प्रदान करने के लिए दिग्बंधन मंत्र का जाप करना आवश्यक है। यह मंत्र सभी दिशाओं से आने वाली नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है।

    “ॐ कुम्भाय स्वाहा। उत्तराय स्वाहा। पूर्वाय स्वाहा। दक्षिणाय स्वाहा। नैऋत्याय स्वाहा। वायव्याय स्वाहा। आग्नेयाय स्वाहा। ईशानाय स्वाहा। ऊर्ध्वाय स्वाहा। अधोयाय स्वाहा।”

    अर्थ: यह मंत्र दसों दिशाओं से आने वाली सभी नकारात्मक शक्तियों का नाश करता है और साधक की हर दिशा से रक्षा करता है।

    त्रिशक्ति बीज मंत्र और उसका संपूर्ण अर्थ

    “ऐं श्रीं क्रीं “

    अर्थ:

    • ऐं: यह सरस्वती का बीज मंत्र है जो ज्ञान, बुद्धि और समझ को बढ़ाता है।
    • श्रीं: यह लक्ष्मी का बीज मंत्र है जो धन, सौभाग्य और समृद्धि लाता है।
    • क्रीं: यह काली का बीज मंत्र है जो बुरी शक्तियों को नष्ट करता है और सुरक्षा प्रदान करता है।

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    त्रिशक्ति बीज मंत्र के लाभ

    1. मानसिक शक्ति में वृद्धि।
    2. धन-संपत्ति की प्राप्ति।
    3. शत्रुओं का नाश।
    4. आत्मबल में वृद्धि।
    5. रोगों से मुक्ति।
    6. परिवार में शांति।
    7. आत्मविश्वास में वृद्धि।
    8. आध्यात्मिक उन्नति।
    9. करियर में सफलता।
    10. व्यापार में वृद्धि।
    11. सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह।
    12. शिक्षा में सफलता।
    13. भय से मुक्ति।
    14. दुष्ट आत्माओं से सुरक्षा।
    15. शांति और संतोष।
    16. इच्छाशक्ति में वृद्धि।
    17. देवी-देवताओं की कृपा प्राप्ति।

    पूजा सामग्री के साथ मंत्र विधि

    साधना के लिए आवश्यक सामग्री:

    1. गाय के घी का दीपक।
    2. अगरबत्ती और धूप।
    3. पुष्पमाला।
    4. लाल या पीले वस्त्र।
    5. जल का कलश।
    6. चावल और कुमकुम।
    7. स्फटिक या रुद्राक्ष माला।

    मंत्र जप का दिन, अवधि और मुहूर्त

    त्रिशक्ति बीज मंत्र का जप किसी भी शुभ दिन जैसे पूर्णिमा, अमावस्या, नवमी, अष्टमी या शुक्रवार को प्रारंभ कर सकते हैं।

    • अवधि: यह जप 11 से 21 दिन तक नियमित रूप से करना चाहिए।
    • मुहूर्त: प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त (4:00 AM से 6:00 AM) या शाम के समय संध्या मुहूर्त में जप करना सबसे उपयुक्त माना जाता है।

    मंत्र जप की विधि

    • साधक को प्रतिदिन 11 माला (यानी 1188 मंत्र) जप करने चाहिए।
    • मंत्र का उच्चारण स्पष्ट और ध्यानपूर्वक करना आवश्यक है।

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    मंत्र जप के नियम

    1. साधक की आयु 20 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।
    2. स्त्री और पुरुष दोनों इस साधना को कर सकते हैं।
    3. नीले या काले वस्त्र पहनने से बचें।
    4. धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार का सेवन न करें।
    5. ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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    जप की सावधानियाँ

    1. साधना के दौरान शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
    2. जप के समय एकाग्रचित्त रहें और ध्यान भंग न होने दें।
    3. साधना के समय कमरे में शांत वातावरण बनाएं।

    त्रिशक्ति बीज मंत्र पृश्न और उत्तर

    प्रश्न 1: क्या महिलाएँ त्रिशक्ति बीज मंत्र जप कर सकती हैं?
    उत्तर: हाँ, महिलाएँ भी इस मंत्र का जप कर सकती हैं, परंतु उन्हें अपने मासिक धर्म के दौरान इसे करने से बचना चाहिए।

    प्रश्न 2: त्रिशक्ति बीज मंत्र के जप के दौरान कौन से दिन शुभ होते हैं?
    उत्तर: पूर्णिमा, अमावस्या और शुक्रवार को त्रिशक्ति बीज मंत्र का जप शुरू करना अत्यधिक शुभ माना जाता है।

    प्रश्न 3: मंत्र जप के दौरान क्या खाने से परहेज करना चाहिए?
    उत्तर: साधना के दौरान धूम्रपान, मद्यपान और मांसाहार का सेवन वर्जित है।

    प्रश्न 4: त्रिशक्ति बीज मंत्र के जप से कौन-कौन से लाभ प्राप्त होते हैं?
    उत्तर: इस मंत्र के जप से साधक को भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं। धन, स्वास्थ्य, शांति और सुरक्षा प्रदान होती है।

    प्रश्न 5: क्या मंत्र जप के दौरान विशेष वस्त्र पहनने होते हैं?
    उत्तर: साधक को लाल या पीले वस्त्र पहनने चाहिए और नीले या काले कपड़ों से बचना चाहिए।

    प्रश्न 6: क्या मंत्र जप के दौरान किसी प्रकार की माला का प्रयोग होता है?
    उत्तर: हाँ, स्फटिक या रुद्राक्ष माला का प्रयोग सबसे उत्तम माना जाता है।

    प्रश्न 7: त्रिशक्ति बीज मंत्र जप से कितनी जल्दी परिणाम मिलते हैं?
    उत्तर: नियमित और विधिपूर्वक जप करने पर साधक को 11 से 21 दिनों में सकारात्मक परिणाम मिलने लगते हैं।

    प्रश्न 8: मंत्र जप के दौरान किन भावनाओं का ध्यान रखना चाहिए?
    उत्तर: मंत्र जप के दौरान साधक को एकाग्रचित्त होकर श्रद्धा, विश्वास और समर्पण के साथ मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।

    प्रश्न 9: त्रिशक्ति बीज मंत्र का उद्देश्य क्या है?
    उत्तर: इस मंत्र का उद्देश्य साधक को ज्ञान, धन और सुरक्षा प्रदान करना है।

    प्रश्न 10: त्रिशक्ति बीज मंत्र किसके लिए विशेष लाभकारी है?
    उत्तर: यह मंत्र उन व्यक्तियों के लिए विशेष लाभकारी है जो जीवन में शांति, समृद्धि और सुरक्षा की तलाश कर रहे हैं।

    प्रश्न 11: क्या इस मंत्र का प्रभाव स्थायी होता है?
    उत्तर: यदि साधक नियमित और विधिपूर्वक जप करता है, तो इसका प्रभाव लंबे समय तक रहता है।