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Trijata Aghori mystery

Trijata Aghori mystery

तंत्र जगत के प्रख्यात तांत्रिक त्रिजटा अघोरी का जीवन और उनकी साधना की कहानी अत्यंत रोमांचक व प्रेरणादायक है। त्रिजटा अघोरी एक प्रमुख अघोरी संत थे जिनका जीवन अघोर पंथ की गहन साधनाओं और तपस्याओं मे बीता था। इनकी साधना करने के लिये बडे से बडे तांत्रिक भी तरसते है। उनके बारे में कई कथाएं और दंतकथाएं प्रचलित हैं जो उनकी आध्यात्मिक यात्रा और सिद्धियों को दर्शाती हैं।

त्रिजटा अघोरी का जीवन परिचय

प्रारंभिक जीवन

त्रिजटा अघोरी का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ, जहां माता-पिता धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे।
बचपन से ही उनके जीवन में आध्यात्मिकता का बीज अंकुरित हो चुका था।
युवा अवस्था में उन्होंने संसार के मोह-माया से विमुख होकर साधना की ओर अपने कदम बढ़ाए।

अघोर पंथ की दीक्षा

त्रिजटा अघोरी ने एक अनुभवी अघोर गुरु के सान्निध्य में अपनी दीक्षा प्राप्त की।
दीक्षा के बाद उन्होंने कठोर तप और साधना का मार्ग अपनाया।
उन्होंने शमशान में रहकर साधना की, जो अघोर पंथ की मुख्य परंपराओं में से एक है।
शमशान में उन्होंने मृत शरीरों और भस्म का प्रयोग अपनी साधना में किया।

कठोर साधना व तपस्या

त्रिजटा अघोरी की साधना अत्यंत कठिन और गहन अनुशासन से पूर्ण थी।
उन्होंने कई वर्षों तक एकांतवास में रहकर ध्यान और योग का अभ्यास किया।
उनकी कठोर तपस्या ने उन्हें गहन आध्यात्मिक अनुभव और सिद्धियां प्रदान कीं।

सिद्धियाँ और चमत्कार

त्रिजटा अघोरी ने कठोर साधना के परिणामस्वरूप कई आध्यात्मिक सिद्धियां प्राप्त कीं।
वे भूत-प्रेत और नकारात्मक शक्तियों को नियंत्रित करने में सक्षम हो गए।
उन्होंने अपने जीवन में अनेक चमत्कार किए, जिनसे लोगों को सहायता और प्रेरणा मिली।

समाज सेवा

त्रिजटा अघोरी ने अपनी आध्यात्मिक शक्तियों का उपयोग समाज की भलाई के लिए किया।
उन्होंने रोगों से पीड़ित लोगों को ठीक किया और उन्हें आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने धर्म और आध्यात्मिकता के प्रसार के लिए कई स्थानों की यात्रा की।
अपने उपदेशों और कार्यों से उन्होंने लोगों को जागरूक किया और जीवन में संतुलन का महत्व समझाया।

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त्रिजटा अघोरी का महत्व

  • आध्यात्मिक प्रेरणा: त्रिजटा अघोरी का जीवन और साधना आज भी अनेक साधकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी तपस्या और सिद्धियों की कहानियाँ आध्यात्मिक यात्रा में मार्गदर्शन का कार्य करती हैं।
  • धर्म और समाज सेवा: त्रिजटा अघोरी ने अपने जीवन को धर्म और समाज की सेवा के लिए समर्पित किया। उनकी समाज सेवा और चमत्कारों की कहानियाँ आज भी लोगों के बीच प्रचलित हैं।

त्रिजटा अघोरी का जीवन एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे कठोर तपस्या और साधना से आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति संभव है। उनका जीवन और कार्य आज भी आध्यात्मिक साधकों के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्रोत है।

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स्कंद षष्ठी 2025- मनोकामना के साथ भौतिक सुख प्राप्त करे

संतान व सुरक्षा का आशिर्वाद देने वाले स्कंद षष्ठी हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है, जिसे भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की पूजा के लिए मनाया जाता है। इस दिन भगवान कार्तिकेय (स्कंद) व उनकी पत्नी माता षष्ठी की पूजा की जाती है। यह पर्व मुख्य रूप से तमिलनाडु और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। स्कंद षष्ठी कार्तिकेय के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है और इसे साल में दो बार मनाया जाता है – एक बार नवंबर-दिसंबर (कृष्ण पक्ष) और एक बार जून-जुलाई (शुक्ल पक्ष) में।

स्कंद षष्ठी 2025 का मुहूर्त

स्कंद षष्ठी व्रत 2025 में 1 नवंबर को मनाया जाएगा। इस दिन विशेष रूप से भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है। स्कंद षष्ठी व्रत के दिन व्रति ब्रह्म मुहूर्त से स्नान करके, व्रत का संकल्प लें और भगवान कार्तिकेय की पूजा करें।

व्रत की तिथि: 8 नवंबर 2024 (शुक्रवार)
षष्ठी तिथि का प्रारंभ: 7 नवंबर 2024 को सुबह 06:01 बजे
षष्ठी तिथि का समापन: 8 नवंबर 2024 को सुबह 07:52 बजे

व्रत की तिथि: 1 नवंबर 2025 (शनिवार)
षष्ठी तिथि का प्रारंभ: 31 अक्टूबर 2025 को सुबह 10:43 बजे
षष्ठी तिथि का समापन: 1 नवंबर 2025 को सुबह 08:38 बजे

स्कंद षष्ठी के दिन विशेष पूजा विधियों का पालन करके और व्रत की श्रद्धा से भगवान कार्तिकेय की कृपा प्राप्त की जाती है।

इस दिन का महत्व

  1. भगवान कार्तिकेय का जन्म: इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र, भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ था।
  2. महिषासुर का वध: इस दिन भगवान कार्तिकेय ने महिषासुर नामक दैत्य का वध किया था, जिससे देवताओं को उनकी ताड़ना से मुक्ति मिली।
  3. शक्ति और साहस का प्रतीक: भगवान कार्तिकेय को युद्ध और विजय का देवता माना जाता है, इसलिए स्कंद षष्ठी का पर्व शक्ति, साहस और विजय का प्रतीक है।
  4. मंत्रः “ॐ वज्रकायाय विद्महे सुब्रह्मण्याय धीमहि तन्नो स्कंद प्रचोदयात्” “OM VAJRAKAAYAAY VIDYAMAHE SUBRAMANYAAY DHEEMAHI TANNO SKANDA PRACHODAYAT”

पूजा और अनुष्ठान

  1. व्रत और उपवास: स्कंद षष्ठी के दिन भक्त व्रत रखते हैं और पूरे दिन निर्जल उपवास करते हैं।
  2. स्नान और पूजा: सुबह जल्दी स्नान करके भगवान कार्तिकेय की मूर्ति या चित्र की पूजा की जाती है।
  3. अभिषेक: भगवान कार्तिकेय का अभिषेक दूध, दही, शहद, घी और शक्कर से किया जाता है।
  4. आरती और भजन: विशेष आरती और भजनों का आयोजन किया जाता है।
  5. कथाएँ: भगवान कार्तिकेय की जीवन गाथा और उनके पराक्रम की कथाएँ सुनी और सुनाई जाती हैं।

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इस दिन की मान्यताएँ

  1. कष्टों से मुक्ति: माना जाता है कि स्कंद षष्ठी का व्रत और पूजा करने से जीवन के कष्टों और कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है।
  2. संतान प्राप्ति: जिन दंपत्तियों को संतान सुख की प्राप्ति नहीं हो रही होती, वे इस दिन व्रत रखकर भगवान कार्तिकेय की पूजा करते हैं।
  3. विजय और सफलता: व्यापार या कार्य में सफलता और विजय के लिए भी इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है।

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विशेष प्रसाद

इस स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय को खास प्रसाद अर्पित किए जाते हैं, जिनमें प्रमुख रूप से ‘पानकम’, ‘संदल’, और ‘लड्डू’ शामिल होते हैं।

स्कंद षष्ठी के लाभ

पापों से मुक्ति
स्कंद षष्ठी व्रत से पिछले पापों और गलतियों की क्षति होती है, और आत्मा को शुद्धि मिलती है।

दुष्ट शक्तियों से रक्षा
स्कंद षष्ठी व्रत से जीवन में दुष्ट शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा मिलती है।

भय और चिंता से मुक्ति
भगवान कार्तिकेय की पूजा से मानसिक तनाव, भय, और चिंता से मुक्ति प्राप्त होती है।

स्वास्थ्य में सुधार
व्रत से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। रोगों से बचाव होता है।

सुख-समृद्धि की प्राप्ति
व्रत करने से परिवार में सुख और समृद्धि का वास होता है।

आध्यात्मिक उन्नति
व्रत के माध्यम से आत्मिक उन्नति और ईश्वर के प्रति गहरा संबंध स्थापित होता है।

सच्चे मित्र और सहयोगी मिलते हैं
सच्चे मित्र और सहायक मिलने की संभावना बढ़ जाती है।

ऋण से मुक्ति
व्रत से वित्तीय समस्याओं और ऋण से मुक्ति मिलती है।

परिवार में सौहार्द बढ़ता है
स्कंद षष्ठी व्रत परिवार के सदस्यों के बीच रिश्तों में सुधार लाता है।

मन की शांति
व्रत से मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।

सपने साकार होते हैं
व्रति की इच्छाएं और सपने जल्दी साकार होते हैं।

कष्टों से राहत
व्रत से जीवन की कठिनाइयों और कष्टों में राहत मिलती है।

आध्यात्मिक ज्ञान में वृद्धि
भगवान कार्तिकेय की आराधना से आध्यात्मिक ज्ञान और समझ में वृद्धि होती है।

समाज में सम्मान
व्रत के माध्यम से समाज में सम्मान और मान प्राप्त होता है।

शांति और संतुलन
व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में शांति और संतुलन बना रहता है।

सफलता और समृद्धि
व्यापार और करियर में सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है।

विवाह में सुख
विवाहित जीवन में सुख और समर्पण की भावना बढ़ती है।

Mata Ekjata matra for strong protection

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सबका कष्ट दूर करने वाली माता एकजटा मंत्र (Ekajata Mantra) का उपयोग सुरक्षा व सुख समृद्धि के लिये किया जाता है। देवी एकजटा दस महाविद्या में से एक महाविद्या माता तारा का स्वरूप मानी जाती है। इनकी पूजा से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। यह मंत्र विशेष रूप से शक्ति, सुरक्षा और समृद्धि के लिए जप किया जाता है।

एकजटा मंत्र

मंत्र “ॐ स्त्रीं एकजटे स्त्रीं नमः” “OM STREEM EKJATE STREEM NAMAHA”

एकजटा मंत्र से लाभ

  1. बाधाओं का नाश: मंत्र जाप से जीवन में आने वाली बाधाएं और संकट दूर होते हैं।
  2. शत्रुओं पर विजय: यह मंत्र शत्रुओं पर विजय दिलाने में सहायक होता है।
  3. मन की शांति: मंत्र जाप से मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है।
  4. सुरक्षा का कवच: यह मंत्र भक्त को नकारात्मक ऊर्जाओं और बुरी शक्तियों से बचाता है।
  5. धन-संपत्ति में वृद्धि: देवी एकजटा का आशीर्वाद धन और संपत्ति में वृद्धि लाता है।
  6. स्वास्थ्य लाभ: मंत्र जाप से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  7. परिवार में सुख-शांति: परिवार में सुख-शांति और समरसता बनी रहती है।
  8. आध्यात्मिक उन्नति: मंत्र जाप से साधक की आध्यात्मिक यात्रा में उन्नति होती है।
  9. कार्य में सफलता: व्यापार या नौकरी में सफलता प्राप्त होती है।
  10. विवाह में अड़चनें दूर: मंत्र जाप से विवाह संबंधित बाधाएं दूर होती हैं।
  11. सकारात्मक ऊर्जा का संचार: जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और नई उम्मीदें आती हैं।
  12. पारिवारिक कलह का निवारण: पारिवारिक विवाद और कलह को समाप्त करता है।
  13. विद्या और बुद्धि में वृद्धि: छात्रों और विद्या-अध्ययन करने वालों के लिए लाभकारी।
  14. साहस और आत्मविश्वास बढ़ाना: यह मंत्र साहस और आत्मविश्वास बढ़ाने में सहायक होता है।
  15. कर्ज से मुक्ति: कर्ज से छुटकारा पाने के लिए यह मंत्र लाभदायक है।
  16. भाग्य में सुधार: दुर्भाग्य दूर करके भाग्य में सुधार लाता है।
  17. मनोकामना पूर्ति: साधक की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करता है।

एकजटा मंत्र जप की विधि:

  1. शुभ मुहूर्त: मंत्र जप किसी भी मंगलवार से कर सकते हैं।
  2. स्वच्छता: मंत्र जप से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  3. पूजा स्थल: देवी एकजटा का चित्र या मूर्ति पूजा स्थल पर स्थापित करें।
  4. पूजा सामग्री: धूप, दीप, फूल, चंदन, अक्षत (चावल), मिठाई आदि पूजा सामग्री तैयार रखें।
  5. आसन: किसी स्वच्छ आसन पर बैठें और पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके मंत्र जप करें।
  6. मंत्र जाप:
    • मंत्र का जाप रुद्राक्ष माला या स्फटिक माला से करें।
    • प्रतिदिन 108 बार मंत्र का जाप करें।
  7. नैवेद्य: देवी एकजटा को फल, फूल और मिठाई का नैवेद्य अर्पित करें।
  8. आरती: मंत्र जप के बाद देवी की आरती करें और धूप-दीप दिखाएं।

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विशेष :

  • नियमित रूप से मंत्र का जाप करें और साधना में नियम का पालन करें।
  • मन को एकाग्र करके और पूर्ण श्रद्धा भाव से मंत्र का उच्चारण करें।
  • मंत्र जप के दौरान ध्यान रखें कि उच्चारण सही और स्पष्ट हो।

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एकजटा मंत्र -FAQs

प्रश्न: एकजटा मंत्र से कितने दिनों में फल प्राप्त होता है? उत्तर: साधक की भक्ति और समर्पण पर निर्भर करता है, फल जल्दी भी मिल सकता है।

प्रश्न: एकजटा मंत्र क्या है? उत्तर: यह देवी एकजटा को समर्पित एक शक्तिशाली मंत्र है, जो संकटों का नाश करता है।

प्रश्न: एकजटा मंत्र का जाप कब करना चाहिए? उत्तर: इस मंत्र का जाप सूर्योदय के समय या रात्रि के समय करना श्रेष्ठ होता है।

प्रश्न: एकजटा मंत्र का जाप कैसे करें? उत्तर: मंत्र का जाप स्वच्छ स्थान पर, देवी की प्रतिमा के सामने, मन को शांत करके करना चाहिए।

प्रश्न: क्या एकजटा मंत्र सभी के लिए उपयुक्त है? उत्तर: हां, यह मंत्र सभी उम्र के लोगों के लिए लाभकारी है।

प्रश्न: एकजटा मंत्र के जाप की न्यूनतम संख्या क्या है? उत्तर: मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करना चाहिए।

प्रश्न: एकजटा मंत्र के जाप के लिए कौन से नियम हैं? उत्तर: शुद्धता, एकाग्रता, और सच्चे मन से जाप करना आवश्यक है।

प्रश्न: क्या एकजटा मंत्र का जाप बिना गुरु के किया जा सकता है? उत्तर: हां, साधारण जाप बिना गुरु के भी किया जा सकता है, लेकिन दीक्षा से अधिक फल प्राप्त होता है।

प्रश्न: क्या एकजटा मंत्र का जाप संकट में ही करना चाहिए? उत्तर: नहीं, इसे नियमित रूप से करने से संकट आने से पहले ही टल जाते हैं।

प्रश्न: क्या एकजटा मंत्र का जाप विशेष पूजा के साथ करना चाहिए? उत्तर: हां, विशेष पूजा या हवन के साथ मंत्र का जाप अधिक शक्तिशाली माना जाता है।

Bhairavi pratyangira mantra for strong protection

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माता भैरवी प्रत्यांगिरा- सुरक्षा व भौतिक सुख देने वाली

महाविद्या भैरवी प्रत्यंगिरा मंत्र तंत्र साधना में अत्यंत शक्तिशाली देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उन्हें भैरवी व प्रत्यांगिरा का संयुक्त रूप माना जाता है, जो अपने भक्तों को नकारात्मक शक्तियों और शत्रुओं से बचाती हैं। भैरवी प्रत्यंगिरा की साधना साधक को दिव्य शक्ति और सिद्धियों की प्राप्ति में सहायक होती है। उनकी कृपा से साधक के जीवन में समृद्धि, सुख, और शांति का वास होता है।

भैरवी प्रत्यांगिरा मंत्र “ॐ ह्रां ह्रीं भैरवीये क्लीं प्रत्यंगिरा फट्ट” “OM HRAAM JREEM BHAIRAVIYE KLEEM PRTYANGIRA FATT”

भैरवी प्रत्यांगिरा की साधना के लाभ

  1. शत्रु बाधा से मुक्ति: भैरवी प्रत्युंगिरा की साधना से शत्रुओं का नाश होता है और साधक को शत्रु भय से मुक्ति मिलती है।
  2. नकारात्मक ऊर्जा का नाश: सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा, टोने-टोटके, और जादू-टोने का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
  3. आध्यात्मिक उन्नति: साधक को आध्यात्मिक उन्नति और उच्चतर योगिक शक्तियों की प्राप्ति होती है।
  4. समृद्धि और धनलाभ: जीवन में समृद्धि, धन और भौतिक सुखों की वृद्धि होती है।
  5. मानसिक शांति: साधक के मन को शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।
  6. स्वास्थ्य लाभ: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  7. रक्षा कवच: साधक के चारों ओर एक दिव्य सुरक्षा कवच निर्मित होता है।
  8. विवाह में बाधा का निवारण: विवाह संबंधी बाधाओं और विलंब का निवारण होता है।
  9. संतान सुख: नि:संतान दंपत्तियों को संतान सुख प्राप्त होता है।
  10. व्यवसाय में सफलता: व्यवसाय और करियर में सफलता और उन्नति प्राप्त होती है।
  11. दुर्घटनाओं से रक्षा: दुर्घटनाओं और अनहोनी घटनाओं से रक्षा होती है।
  12. न्यायिक मामलों में सफलता: न्यायिक मामलों में विजय प्राप्त होती है।
  13. दैनिक जीवन में संतोष: दैनिक जीवन में संतोष और आनंद की अनुभूति होती है।
  14. आत्मविश्वास में वृद्धि: साधक का आत्मविश्वास और साहस बढ़ता है।
  15. संकटों से मुक्ति: जीवन के विभिन्न संकटों और कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है।

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भैरवी प्रत्यांगिरा मंत्र FAQs

  1. प्रश्न: भैरवी प्रत्यांगिरा कौन हैं?
    उत्तर: ये भैरवी व प्रत्यांगिरा देवी का संयुक्त रूप हैं और तंत्र साधना की शक्तिशाली देवी मानी जाती हैं।
  2. प्रश्न: भैरवी प्रत्यांगिरा मंत्र का जाप क्यों किया जाता है?
    उत्तर: इस मंत्र का जाप शत्रुओं से रक्षा, नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करने और दिव्य शक्तियां प्राप्त करने के लिए होता है।
  3. प्रश्न: भैरवी प्रत्यांगिरा की साधना के लिए कौन सा समय श्रेष्ठ है?
    उत्तर: रात्रि के समय, विशेषकर अमावस्या या चतुर्दशी को, भैरवी प्रत्यांगिरा की साधना करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
  4. प्रश्न: भैरवी प्रत्यांगिरा मंत्र का जाप कैसे करें?
    उत्तर: मंत्र का जाप एकांत, स्वच्छ और शुद्ध स्थान पर, मन को शांत करके, विधिवत रूप से करना चाहिए।
  5. प्रश्न: क्या भैरवी प्रत्यांगिरा मंत्र सभी के लिए उपयुक्त है?
    उत्तर: यह मंत्र विशेष तंत्र साधना के लिए है, इसलिए इसे योग्य गुरु की देखरेख में ही करना चाहिए।
  6. प्रश्न: भैरवी प्रत्यांगिरा मंत्र के जाप की न्यूनतम संख्या क्या है?
    उत्तर: इस मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करना चाहिए, हालांकि अधिक संख्या लाभकारी होती है।
  7. प्रश्न: क्या भैरवी प्रत्यांगिरा मंत्र का जाप बिना गुरु के किया जा सकता है?
    उत्तर: नहीं, इस मंत्र का जाप गुरु की दीक्षा और मार्गदर्शन के बिना करना अनुचित और हानिकारक हो सकता है।
  8. प्रश्न: भैरवी प्रत्यांगिरा की साधना के क्या लाभ हैं?
    उत्तर: साधना से साधक को सुरक्षा, शत्रु विजय, सिद्धियां, और जीवन में समृद्धि एवं शांति प्राप्त होती है।
  9. प्रश्न: क्या भैरवी प्रत्यांगिरा मंत्र का जाप विशेष पूजा के साथ करना चाहिए?
    उत्तर: हां, विशेष पूजा, हवन, या तांत्रिक अनुष्ठान के साथ मंत्र जाप करना अधिक शक्तिशाली और फलदायी होता है।
  10. प्रश्न: भैरवी प्रत्यांगिरा मंत्र का प्रभाव कितने समय में दिखता है?
    उत्तर: मंत्र का प्रभाव साधक की निष्ठा, साधना की विधि, और देवी की कृपा पर निर्भर करता है।

Bhagawat Ekadashi Vrat – Importance & story

Importance and story of Bhagawat Ekadashi fast

भागवत एकादशी व्रत का आध्यात्मिक महत्व- एक संपूर्ण मार्गदर्शन

भागवत एकादशी व्रत हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और इस दिन भक्त पूरी श्रद्धा और आस्था से उपवास रखते हैं। भागवत एकादशी व्रत न केवल आध्यात्मिक शुद्धिकरण करता है, बल्कि व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता भी लाता है।

व्रत का मुहूर्त २०२५

भागवत एकादशी व्रत का समय चंद्र मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि में आता है। भागवत एकादशी, जिसे ‘श्री कृष्ण एकादशी’ भी कहा जाता है, का व्रत आमतौर पर हर माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। २०२५ के लिए भागवत एकादशी के मुहूर्त की जानकारी निम्नलिखित है:

  • जनवरी 2025 – 13 जनवरी (सोमवार)
  • फरवरी 2025 – 12 फरवरी (बुधवार)
  • मार्च 2025 – 13 मार्च (गुरुवार)
  • अप्रैल 2025 – 11 अप्रैल (शुक्रवार)
  • मई 2025 – 11 मई (रविवार)
  • जून 2025 – 10 जून (सोमवार)
  • जुलाई 2025 – 10 जुलाई (बुधवार)
  • अगस्त 2025 – 9 अगस्त (शनिवार)
  • सितंबर 2025 – 8 सितंबर (सोमवार)
  • अक्टूबर 2025 – 8 अक्टूबर (मंगलवार)
  • नवंबर 2025 – 7 नवंबर (शुक्रवार)
  • दिसंबर 2025 – 7 दिसंबर (रविवार)

व्रत विधि और मंत्र

व्रत करने वाले को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करते समय नीचे दिया गया मंत्र पढ़ना चाहिए:
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः”
इस मंत्र के साथ भगवान विष्णु की पूजा, धूप-दीप और नैवेद्य अर्पित करें। पूरे दिन भगवान का ध्यान करते हुए उपवास रखें।

व्रत में क्या खाएं और क्या न खाएं

व्रत के दौरान फलाहार और सात्विक भोजन करना चाहिए। अनाज, चावल, दाल, और मसालेदार भोजन से परहेज करें। शुद्ध दूध, फल, और मेवा का सेवन कर सकते हैं।

कब से कब तक व्रत रखें

भागवत एकादशी व्रत सूर्योदय से प्रारंभ होकर द्वादशी के सूर्योदय तक रखा जाता है। इस दौरान व्रतधारी को निराहार या फलाहार पर रहना चाहिए।

भागवत एकादशी व्रत के लाभ

  1. मानसिक शांति प्राप्त होती है।
  2. भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है।
  3. जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
  4. हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
  5. शरीर की शुद्धि होती है।
  6. पापों का नाश होता है।
  7. कष्टों से मुक्ति मिलती है।
  8. मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
  9. परिवार में शांति और समृद्धि बढ़ती है।
  10. आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
  11. रोगों से मुक्ति मिलती है।
  12. जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।
  13. आत्मा की शुद्धि होती है।
  14. मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  15. पवित्रता और धर्म की वृद्धि होती है।
  16. समाज में मान-सम्मान बढ़ता है।
  17. भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है।

व्रत के नियम

  • जरूरतमंदों को दान दें।
  • पूरे दिन संयमित रहें।
  • व्रत के दौरान सात्विक भोजन ही करें।
  • भगवान विष्णु का ध्यान करें और मंत्र का जाप करें।
  • दिन में क्रोध, झूठ और अहंकार से बचें।

भागवत एकादशी व्रत कथा

पुराणों के अनुसार, सत्ययुग में एक समय की बात है कि एक राजा था जिसका नाम महिध्वज था। राजा महिध्वज धर्मात्मा और भगवान विष्णु का परम भक्त था। उसका एक छोटा भाई था, जिसका नाम वज्रध्वज था। वज्रध्वज स्वभाव से अधर्मी और पापी था। उसे अपने भाई से ईर्ष्या थी और उसने राजा महिध्वज की हत्या कर दी। उसके बाद वज्रध्वज ने राजा महिध्वज के शव को एक पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया।

राजा महिध्वज का आत्मा पीपल के पेड़ पर प्रेत बनकर निवास करने लगा और अपने हत्यारे भाई से बदला लेने के लिए पीड़ा भोगने लगा। इस प्रकार कई वर्ष बीत गए। एक दिन, महान संत धौम्य ऋषि उस वन से गुजर रहे थे। उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से यह सब देखा और प्रेत को मुक्त करने का संकल्प लिया।

धौम्य ऋषि ने उस पीपल के पेड़ के नीचे जाकर प्रेत से बात की और उसे आश्वासन दिया कि वह उसे मुक्त कर देंगे। ऋषि ने भागवत एकादशी का व्रत करने का निश्चय किया और प्रेत को भी इस व्रत की महिमा और विधि बताई। धौम्य ऋषि ने व्रत का संकल्प लिया और पूर्ण विधि-विधान से एकादशी का व्रत किया।

व्रत के प्रभाव से प्रेत रूप में बंधा राजा महिध्वज का आत्मा मुक्त हो गया और उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। उसने धौम्य ऋषि को धन्यवाद दिया और भगवान विष्णु के लोक में चला गया। इस प्रकार, भागवत एकादशी के व्रत ने प्रेत को मुक्ति दिलाई और उसके पापों का नाश किया।

भागवत एकादशी व्रत का महत्व:

इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि भागवत एकादशी व्रत के पालन से व्यक्ति के जाने अंजाने किये गये सभी पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का एक श्रेष्ठ साधन है और इसे करने से सभी प्रकार के दोषों और कष्टों से मुक्ति मिलती है।

भागवत एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति को भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उसका जीवन सुख, शांति और समृद्धि से भर जाता है। इसलिए हर व्यक्ति को इस पवित्र व्रत का पालन करना चाहिए और भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहना चाहिए।

भोग

व्रत के अंत में भगवान विष्णु को ताजे फल, मेवे, दूध और मिष्ठान्न का भोग अर्पित करें।

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व्रत की शुरुआत और समाप्ति

व्रत की शुरुआत एकादशी तिथि के सूर्योदय से पहले होती है और समाप्ति द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद। व्रत के दौरान संयमित और सात्विक रहें। मानसिक शुद्धि के साथ भगवान विष्णु का ध्यान करें।

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भागवत एकादशी व्रत संबंधित प्रश्न उत्तर

प्रश्न: व्रत का पालन कैसे करें?
उत्तर: श्रद्धा, आस्था और नियमों के अनुसार करें।

प्रश्न: भागवत एकादशी का महत्व क्या है?
उत्तर: यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और मोक्ष की प्राप्ति कराता है।

प्रश्न: क्या फलाहार के दौरान दूध पी सकते हैं?
उत्तर: हां, आप शुद्ध दूध का सेवन कर सकते हैं।

प्रश्न: व्रत में कौन से भोजन से बचना चाहिए?
उत्तर: अनाज, चावल, और मसालेदार भोजन से परहेज करना चाहिए।

प्रश्न: व्रत का समय कब से कब तक होता है?
उत्तर: एकादशी तिथि के सूर्योदय से द्वादशी तक।

प्रश्न: भागवत एकादशी के कितने लाभ होते हैं?
उत्तर: व्रत से 17 प्रमुख लाभ होते हैं।

प्रश्न: क्या यह व्रत कठिन है?
उत्तर: नहीं, यह व्रत आस्था और श्रद्धा से रखा जाता है।

प्रश्न: क्या व्रत के दौरान भगवान विष्णु की पूजा आवश्यक है?
उत्तर: हां, भगवान विष्णु की पूजा व्रत का प्रमुख हिस्सा है।

प्रश्न: व्रत में किस मंत्र का जाप करें?
उत्तर: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।

प्रश्न: व्रत में दान का क्या महत्व है?
उत्तर: व्रत के दौरान दान पुण्य करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।

प्रश्न: क्या व्रत में अन्य कार्य कर सकते हैं?
उत्तर: हां, लेकिन संयमित रहें और भगवान का ध्यान करें।

प्रश्न: क्या व्रत सभी के लिए है?
उत्तर: हां, इसे सभी उम्र के लोग रख सकते हैं।

Kalashtami – Security with remove obstacles in marriage

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भगवान काल भैरव की कृपा पाने का सरल मार्ग- कालाष्टमी व्रत 2025

कालाष्टमी (Kala bhairav ashtami ) व्रत भगवान काल भैरव को समर्पित एक महत्वपूर्ण भारत मे मनाया जाने वाला व्रत माना जाता है। काल भैरव शिव जी के रौद्र रूप माने जाते हैं। यह त्योहार हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, लेकिन विशेष रूप से मार्गशीर्ष (नवंबर-दिसंबर) के महीने की कालाष्टमी को महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

कालाष्टमी के दिन, भक्त उपवास रखते हैं और भगवान काल भैरव की पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन भगवान काल भैरव के मंत्रों का जाप, विशेष रूप से “ॐ भ्रं कालभैरवाय नमः” “OM BHRAMM KAALBHAIRAVAAY NAMAHA” का जाप, और उनके विशेष भजन और स्तोत्रों का पाठ करना शुभ माना जाता है। काल भैरव मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन होता है, और कई लोग रात्रि जागरण करते हैं।

व्रत मुहूर्त 2025

कालाष्टमी, जिसे काला अष्टमी भी कहा जाता है, हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। यह व्रत भगवान भैरव को समर्पित है, और भक्त इस दिन उपवास रखते हैं और उनकी पूजा करते हैं।

साल 2025 में मासिक कालाष्टमी व्रत की तिथियां निम्नलिखित हैं:

माहतिथिअष्टमी तिथि प्रारंभअष्टमी तिथि समाप्ति
जनवरी21 जनवरी 202521 जनवरी, 12:39 PM22 जनवरी, 03:18 PM
फरवरी20 फरवरी 202520 फरवरी, 09:58 AM21 फरवरी, 11:57 AM
मार्च22 मार्च 202522 मार्च, 04:24 AM23 मार्च, 05:23 AM
अप्रैल21 अप्रैल 202520 अप्रैल, 07:01 PM21 अप्रैल, 06:59 PM
मई20 मई 202520 मई, 05:52 AM21 मई, 04:55 AM
जून18 जून 202518 जून, 01:35 PM19 जून, 11:55 AM
जुलाई17 जुलाई 202517 जुलाई, 07:09 PM18 जुलाई, 05:02 PM
अगस्त16 अगस्त 202515 अगस्त, 11:50 PM16 अगस्त, 09:35 PM
सितंबर14 सितंबर 202514 सितंबर, 05:05 AM15 सितंबर, 03:06 AM
अक्टूबर13 अक्टूबर 202513 अक्टूबर, 12:25 PM14 अक्टूबर, 11:10 AM
नवंबर12 नवंबर 202511 नवंबर, 11:08 PM12 नवंबर, 10:58 PM
दिसंबर11 दिसंबर 202511 दिसंबर, 01:58 PM12 दिसंबर, 02:57 PM

कृपया ध्यान दें कि उपरोक्त तिथियां नई दिल्ली, भारत के समयानुसार हैं। मुंबई, महाराष्ट्र के लिए समय में मामूली अंतर हो सकता है। सटीक मुहूर्त के लिए स्थानीय पंचांग या विश्वसनीय ज्योतिषीय स्रोतों की सलाह लेना उचित होगा।

कालाष्टमी व्रत के लाभ

  1. भगवान काल भैरव की कृपा प्राप्त होती है।
    व्रत करने से काल भैरव की कृपा से जीवन में सभी संकट दूर होते हैं।
  2. नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा होती है।
    यह व्रत बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जा से बचाव करता है।
  3. शत्रुओं पर विजय मिलती है।
    व्रत रखने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और डर समाप्त होता है।
  4. धन और संपत्ति में वृद्धि होती है।
    भगवान काल भैरव की कृपा से आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
  5. मानसिक शांति मिलती है।
    यह व्रत मानसिक अशांति और तनाव को दूर करता है।
  6. स्वास्थ्य में सुधार होता है।
    व्रत करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  7. कानूनी मामलों में सफलता मिलती है।
    जिनके कानूनी मामले लंबित होते हैं, उन्हें इस व्रत से लाभ मिलता है।
  8. अकाल मृत्यु से रक्षा होती है।
    भगवान भैरव की उपासना अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति दिलाती है।
  9. रोगों से मुक्ति मिलती है।
    यह व्रत करने से असाध्य रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।
  10. संकटों से बचाव होता है।
    जीवन के किसी भी संकट से रक्षा करता है यह व्रत।
  11. आध्यात्मिक प्रगति होती है।
    यह व्रत आत्मिक उन्नति और ध्यान में वृद्धि करता है।
  12. परिवार में सुख और शांति रहती है।
    भगवान काल भैरव की पूजा से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
  13. विवाद और कलह समाप्त होते हैं।
    पारिवारिक और सामाजिक विवादों का समाधान होता है।
  14. यात्राओं में सुरक्षा मिलती है।
    भगवान भैरव यात्रा के देवता माने जाते हैं, इसलिए यात्रा सुरक्षित होती है।
  15. प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है।
    यह व्रत करने से भूत-प्रेत और अन्य अदृश्य बाधाओं से सुरक्षा होती है।
  16. रहस्यमयी और अज्ञात भय समाप्त होते हैं।
    जीवन से अज्ञात और रहस्यमयी भय समाप्त हो जाते हैं।
  17. धार्मिक शक्ति में वृद्धि होती है।
    व्यक्ति की धार्मिक और आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है।

पूजा विधि

  1. प्रातःकाल स्नान करके साफ वस्त्र पहनें।
  2. भगवान काल भैरव की प्रतिमा या तस्वीर के सामने दीपक और धूप जलाएं।
  3. चंदन, फूल, और नैवेद्य (भोग) अर्पित करें।
  4. काल भैरव के मंत्रों और स्तोत्रों का पाठ करें।
  5. काल भैरव की कथा सुनें या पढ़ें।
  6. अंत में आरती करें और प्रसाद वितरित करें।

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काल भैरव मंत्र

  • ॐ कालभैरवाय नमः “OM KAAL BHAIRAVAAY NAMAHA”
  • ॐ भयहरणं चंडाय कालभैरवाय नमः “OM BHAYA HARANAM CHANDAAY KAALBHAIRAVAAY NAMAHA”
  • ॐ भ्रं कालभैरवाय नमः “OM BHRAMM KAALBHAIRAVAAY NAMAHA”

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कालाष्टमी व्रत – प्रश्नोत्तरी

कालाष्टमी का महत्व क्या है?
यह व्रत व्यक्ति के जीवन से नकारात्मकता को दूर करता है और शत्रुओं से रक्षा करता है।

यह व्रत क्यों मनाया जाता है?
कालाष्टमी व्रत भगवान काल भैरव को समर्पित है, जो धर्म, न्याय और समय के देवता हैं।

कालाष्टमी व्रत कब मनाया जाता है?
यह व्रत प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।

इस दिन क्या-क्या करना चाहिए?
इस दिन उपवास रखा जाता है, भगवान काल भैरव की पूजा की जाती है और रात्रि जागरण किया जाता है।

व्रत का समय कब से कब तक होता है?
अष्टमी तिथि के सूर्योदय से लेकर अगले दिन सूर्योदय तक व्रत किया जाता है।

व्रत के दौरान क्या नहीं खाना चाहिए?
इस दिन तामसिक भोजन, मांसाहार और शराब से परहेज करना चाहिए।

क्या कालाष्टमी व्रत महिलाएं भी रख सकती हैं?
हां, महिलाएं भी इस व्रत को रख सकती हैं और भगवान काल भैरव की पूजा कर सकती हैं।

क्या कालाष्टमी व्रत में रात्रि जागरण आवश्यक है?
हां, रात्रि जागरण का विशेष महत्व है। भैरव जी की पूजा रात्रि में की जाती है।

क्या विशेष मंत्र का उच्चारण करना चाहिए?
“ॐ कालभैरवाय नमः” का जाप इस दिन विशेष रूप से लाभकारी होता है।

व्रत की समाप्ति कैसे की जाती है?
व्रत की समाप्ति अगले दिन सुबह सूर्योदय के समय फलाहार या अन्न ग्रहण करके की जाती है।

कालाष्टमी के दिन क्या दान करना चाहिए?
गरीबों को वस्त्र, अन्न और धन का दान करना चाहिए। भैरव जी को दूध और हलवा अर्पित करें।

क्या कालाष्टमी पर कथा सुनना अनिवार्य है?
हां, भैरव जी की कथा सुनना और सुनाना व्रत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

Durva Ganesh mantra pujan for removing obstacles

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दुर्वा गणेश पूजा एक विशेष प्रकार की पूजा है जिसमें भगवान गणेश को दुर्वा (दूब) घास अर्पित की जाती है। भगवान गणेश को दुर्वा सबसे ज्यादा पसंद है। इस का विशेष महत्व है और इसे विधिपूर्वक करने से कई लाभ प्राप्त होते हैं। यहाँ दुर्वा गणेश के बारे में विस्तृत जानकारी, विधि, भोग और लाभों के बारे में जानकारी दी जा रही है:

दुर्वा, जिसे दूब भी कहा जाता है, एक प्रकार की घास है जिसे भगवान गणेश को अत्यंत प्रिय माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, दुर्वा में भगवान गणेश के शरीर का अंश है और इसे अर्पित करने से गणेश जी शीघ्र प्रसन्न होते हैं। दुर्वा का त्रिशूल जैसा आकार होता है, और इसे आमतौर पर गणेश जी की प्रतिमा पर अर्पित किया जाता है।

विधि

  1. सामग्री: गणेश प्रतिमा, दुर्वा घास, पंचामृत, दीपक, धूप, कपूर, फल, मिठाई, जल पात्र, अक्षत, फूल, मौली, नारियल, लाल कपड़ा।
  2. स्वच्छता: सबसे पहले पूजा स्थान और स्वयं को स्वच्छ करें।
  3. आसन: पूजा स्थान पर एक साफ आसन बिछाएं और गणेश प्रतिमा को स्थापित करें।
  4. पंचामृत स्नान: गणेश प्रतिमा को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर) से स्नान कराएं।
  5. दुर्वा अर्पण: गणेश जी को दुर्वा की 21 गांठें अर्पित करें। दुर्वा को त्रिशूल के आकार में बनाएं और ध्यानपूर्वक गणेश जी के चरणों में रखें।
  6. दीपक और धूप: दीपक और धूप जलाएं और गणेश जी की आरती करें।
  7. भोग: गणेश जी को फल, मिठाई और नारियल का भोग लगाएं।
  8. प्रार्थना: गणेश जी से विशेष प्रार्थना करें और अपने मनोकामना की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें।
  9. प्रसाद वितरण: अंत में प्रसाद को सभी भक्तों में वितरित करें।

भोग

गणेश जी को मोदक, लड्डू, गुड़, और नारियल का भोग विशेष रूप से पसंद है। आप इसे दुर्वा के साथ गणेश पूजा के दौरान अर्पित कर सकते हैं।

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पूजा से लाभ

  1. विघ्नों का नाश: जीवन में आने वाले सभी विघ्न और बाधाएं दूर होती हैं।
  2. मनोकामना पूर्ति: मनोकामनाएं शीघ्र पूरी होती हैं।
  3. धन-धान्य वृद्धि: आर्थिक समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है।
  4. स्वास्थ्य लाभ: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  5. शांति और सुख: परिवार में शांति और सुख का वास होता है।
  6. बुद्धि और ज्ञान: बुद्धि और ज्ञान में वृद्धि होती है।
  7. कार्य सिद्धि: सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
  8. रोगों से मुक्ति: गंभीर रोगों से मुक्ति मिलती है।
  9. कष्टों का निवारण: जीवन के कष्टों का निवारण होता है।
  10. आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक उन्नति और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
  11. विद्या प्राप्ति: शिक्षा और विद्या में उत्कृष्टता प्राप्त होती है।
  12. लंबी आयु: दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की प्राप्ति होती है।

दुर्वा गणेश मंत्र – “ॐ गं ग्लौं दुर्वा गणेशाय नमः” “OM GAMM GLAUM DURVA GANESHAAY NAMAHA”

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दुर्वा गणेश पूजा को नियमित रूप से करने से भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि का वास होता है।

Kurma jayanti- for strong protection

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कूर्म जयंती Monday, May 12, 2025 भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की स्मृति में मनाई जाती है। यह पर्व वैशाख पूर्णिमा को आता है, जब भगवान ने कछुए का रूप धारण कर समुद्र मंथन में देवताओं की सहायता की थी। इस दिन भक्त विष्णु पूजा, उपवास और दान-पुण्य करते हैं।

मंत्र: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय कूर्म स्वरूपे नमो नमः” “OM NAMO BHAGAVATE VASUDEVAAY KOORMA SVARUPE NAMO NAMAHA”

मंत्र लाभ

  1. व्यापार में सफलता
  2. धन संपत्ति में वृद्धि
  3. स्वास्थ्य और लम्बी आयु
  4. भय से मुक्ति
  5. परिवार में शांति और समृद्धि
  6. आर्थिक समस्याओं का समाधान
  7. विद्या और बुद्धि की वृद्धि
  8. नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति
  9. कर्ज से मुक्ति
  10. दुर्भाग्य से रक्षा
  11. विवाहित जीवन में सुख और समृद्धि
  12. आत्मिक उन्नति

विधि

  1. पूजा के लिए कुर्म अवतार की मूर्ति या चित्र को सजा कर रखें।
  2. कूर्म जयंती के दिन उषा काल में जागरण करें।
  3. स्नान करके विष्णु और कूर्म जी की पूजा करें।
  4. “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय कूर्म स्वरूपे नमो नमः” मंत्र का जाप करें।
  5. भगवान विष्णु और कूर्म जी को पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, और चादर चढ़ाएं।
  6. इस अवसर पर दान दें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
  7. अवतार कथा की कथा सुनें और इसका अर्थ समझें।

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कूर्म जयंती की संपूर्ण कथा

कूर्म अवतार की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है, जिसे देवताओं और असुरों ने मिलकर किया था। उस समय ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण देवताओं की शक्ति कमजोर हो गई थी, और असुरों ने उन्हें हराने का प्रयास किया। देवता बहुत चिंतित थे और अपनी रक्षा के लिए भगवान विष्णु के पास गए।

भगवान विष्णु ने उन्हें समुद्र मंथन करने का सुझाव दिया, जिससे अमृत प्राप्त होगा। यह अमृत देवताओं को अमरता प्रदान करता और उन्हें शक्तिशाली बनाता। मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी के रूप में चुना गया और नाग वासुकी को रस्सी बनाया गया।

जब मंथन शुरू हुआ, तो मंदराचल पर्वत समुद्र की गहराई में डूबने लगा। देवता और असुर, दोनों परेशान हो गए क्योंकि मंथन नहीं हो पा रहा था। तभी भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार धारण किया और विशाल कछुए का रूप लिया। उन्होंने अपनी पीठ पर मंदराचल पर्वत को उठाकर स्थिर कर दिया। इससे मंथन सुचारू रूप से प्रारंभ हो गया।

समुद्र मंथन के दौरान 14 प्रकार की अमूल्य वस्तुएं प्राप्त हुईं। इनमें से एक अमृत भी था, जिसे पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष हुआ। अंत में, भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत को देवताओं में वितरित किया, जिससे उन्हें अमरत्व प्राप्त हुआ। इस प्रकार कूर्म अवतार ने देवताओं की सहायता कर संसार की रक्षा की।

कूर्म अवतार की यह कथा हमें धैर्य, समर्पण और कर्तव्य पालन की शिक्षा देती है।

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कूर्म जयंती सामान्य प्रश्न

1. कूर्म जयंती क्या है?

कूर्म जयंती वह दिन है जब भगवान विष्णु ने अपने कूर्म (कछुए) अवतार में सृष्टि की रक्षा की थी। इसे हिन्दू धर्म में श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।

2. कूर्म अवतार का महत्त्व क्या है?

भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार धारण कर समुद्र मंथन में देवताओं की सहायता की थी। उन्होंने मंदराचल पर्वत को अपने कछुए रूप में सहारा दिया था ताकि अमृत प्राप्त हो सके।

3. कूर्म जयंती कब मनाई जाती है?

यह पर्व वैशाख मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अप्रैल या मई में आता है।

4. इस दिन किस देवता की पूजा की जाती है?

कूर्म जयंती के दिन भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की पूजा की जाती है।

5. कूर्म जयंती का धार्मिक महत्त्व क्या है?

यह दिन भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की लीला का स्मरण कराता है और हमें यह सिखाता है कि हर परिस्थिति में धैर्य और समर्पण जरूरी हैं।

6. इस दिन कौन से व्रत या उपवास किए जाते हैं?

कूर्म जयंती के दिन विष्णु भक्त उपवास रखते हैं और भगवान विष्णु की विशेष पूजा करते हैं।

7. कूर्म जयंती पर क्या करना शुभ माना जाता है?

इस दिन भगवान विष्णु के कूर्म अवतार का ध्यान, मंत्र जाप, और उपवास करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

8. कूर्म जयंती के दिन कौन सा मंत्र जपना चाहिए?

कूर्म जयंती पर “ॐ कूर्माय नमः” मंत्र का जाप विशेष फलदायी माना जाता है।

9. क्या इस दिन विशेष प्रकार का भोग लगाया जाता है?

इस दिन भगवान विष्णु को विशेष रूप से तामसिक वस्तुएं छोड़कर सात्विक भोग जैसे फल, मिठाई, और तुलसी के पत्ते अर्पित किए जाते हैं।

10. कूर्म अवतार से जुड़ी प्रमुख कथा क्या है?

समुद्र मंथन की कथा कूर्म अवतार से जुड़ी है, जिसमें भगवान विष्णु ने कछुए का रूप धारण कर मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर टिकाया था।

11. इस दिन विशेष पूजा विधि क्या है?

इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ और कूर्म अवतार की मूर्ति का अभिषेक करना लाभकारी होता है।

12. क्या इस दिन कोई विशेष वस्त्र धारण करना चाहिए?

सफेद और पीले रंग के वस्त्र पहनना कूर्म जयंती पर शुभ माना जाता है, क्योंकि यह रंग भगवान विष्णु के प्रिय हैं।

13. इस दिन के व्रत का क्या फल मिलता है?

कूर्म जयंती का व्रत करने से जीवन में धैर्य, शांति, और सफलता मिलती है। इसके साथ ही विष्णु भक्तों को भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

14. क्या कूर्म जयंती का कोई ज्योतिषीय महत्त्व है?

यह दिन विशेष रूप से धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस दिन की पूजा से गृह दोषों का निवारण होता है।

15. क्या इस दिन कोई विशेष कर्मकांड किया जाता है?

इस दिन विष्णु पूजा के साथ-साथ गरीबों को अन्न दान, जल दान, और वस्त्र दान करना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है।

Lord Narasimha: The mystery of the fourth incarnation of Vishnu

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भगवान नरसिंह – विष्णु के चौथे अवतार का रहस्य

भगवान नृसिंह विष्णु के दशावतारों में चौथे अवतार के रूप में जाने जाते हैं। वे आधे मानव और आधे सिंह के रूप में प्रकट हुए थे, और उनका अवतार हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से भक्त प्रह्लाद की सुरक्षा के लिए हुआ था। नृसिंह अवतार का रहस्य, उनकी अद्वितीयता, और उनके प्रकट होने के समय और स्थान की विशिष्टता उन्हें एक महत्वपूर्ण धार्मिक और पौराणिक घटना बनाते हैं। इस अवतार ने न केवल अधर्म का नाश किया गया, बल्कि भक्तों के प्रति भगवान के अटूट प्रेम और उनकी सुरक्षा के वचन को भी सिद्ध किया।

नरसिंह अवतार की कथा

हिरण्यकश्यप का अहंकार और वरदान

हिरण्यकश्यप, एक शक्तिशाली असुर, ने कठोर तपस्या के माध्यम से भगवान ब्रह्मा जी से यह वर प्राप्त किया था कि उसे न कोई मनुष्य मार सकता है, न रात में; न दिन में, न कोई पशु; न घर के अंदर, न घर के बाहर; न आकाश में, न पाताल में; और न किसी हथियार से। इस वर को पाकर हिरण्यकश्यप अत्यंत अहंकारी बन गया, और उसने स्वयं को ईश्वर मान लिया।

प्रह्लाद की भक्ति

हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। उसके पिता ने उसे विष्णु भक्ति से रोकने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन प्रह्लाद ने हर बार विष्णु की भक्ति का ही आह्वान किया। हिरण्यकश्यप ने क्रोध में आकर प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया, परंतु हर बार वह असफल रहा।

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भगवान नरसिंह का प्रकट होना

अंततः, हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए उसे अपने महल के स्तंभ से बांध दिया और चुनौती देते हुये कहा कि यदि तुम्हारे भगवान हर जगह हैं, तो इस स्तंभ से प्रकट हों। तब भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार धारण किया। वे आधे मानव और आधे सिंह के रूप में संध्या के समय प्रकट हुए। उन्होंने हिरण्यकश्यप को महल के द्वार पर अपनी जांघों पर रखकर अपने नुकीले नाखूनों से मार डाला, जिससे सभी शर्तें पूरी हुईं: न दिन, न रात; न घर के अंदर, न बाहर; न आकाश में, न पाताल में; और न किसी हथियार से।

Mantra- “ॐ क्ष्रौं नरसिंहाय नमः” “OM KSHROUM NARASINHAAY NAMAHA”

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नरसिंह अवतार का रहस्य

समय और स्थान की अद्वितीयता

भगवान नरसिंह संध्या के समय प्रकट हुए, जो न दिन था और न ही रात।
उन्होंने महल के द्वार पर हिरण्यकश्यप का वध किया, जो न अंदर था और न बाहर।
यह घटना भगवान विष्णु की लीला और उनकी दिव्यता का अद्वितीय रहस्य प्रकट करती है।

अवधारणा की चुनौती

हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर स्वयं को अमर मान लिया था।
भगवान विष्णु ने यह सिद्ध किया कि ईश्वर की माया और लीला अनंत और अप्रतिरोध्य है।

भक्त की रक्षा

नरसिंह अवतार यह सिद्ध करता है कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए हर सीमा को पार कर सकते हैं।
प्रह्लाद की भक्ति ने दिखाया कि सच्चे भक्त की रक्षा स्वयं ईश्वर करते हैं।

धर्म की विजय

भगवान नरसिंह ने अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना के लिए हिरण्यकश्यप का अंत किया।
इस अवतार ने सत्य और धर्म की विजय का संदेश सम्पूर्ण संसार को दिया।

Lord Narasimha – Divine incarnation of half human and half lion

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भगवान नरसिंह – आधे मानव और आधे सिंह का दिव्य अवतार

भगवान नरसिंह की हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु के चौथे अवतार के रूप में पूजा उपासना की जाती है। वे आधे मानव और आधे सिंह के रूप में प्रकट हुए थे। नरसिंह अवतार को धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। उन्होंने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए असुर हिरण्यकश्यप का संहार किया था। इस कथा का महत्व भारतीय पौराणिक कथाओं में विशेष स्थान रखता है और भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

नरसिंह अवतार की कथा (Story of Narasimha Avatar)

हिरण्यकश्यप एक दुष्ट राजा था जिसने तपस्या करके भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया था कि उसे न कोई मनुष्य मार सकेगा, न कोई पशु; न दिन में, न रात में; न घर के अंदर, न बाहर; न आकाश में, न पाताल में; न किसी हथियार से। इस वरदान के कारण हिरण्यकश्यप अहंकारी हो गया और उसने स्वयं को ईश्वर मान लिया।

हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को विष्णु की भक्ति से रोकने का कई बार प्रयास किया, परंतु असफल रहा। अंततः हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया, तब भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार धारण किया। वे आधे मानव और आधे सिंह के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने हिरण्यकश्यप को संध्या के समय अपने महल के द्वार पर अपनी जांघों पर रखकर अपने नुकीले नाखूनों से मार डाला। इस प्रकार भगवान नरसिंह ने ब्रह्मा के वरदान को भी सत्य रखा और धर्म की स्थापना की।

अवतार का महत्व (Importance of Narasimha Avatar)

  1. धर्म की स्थापना:
    • भगवान नरसिंह ने अधर्म का नाश करके धर्म की स्थापना की, जिससे समाज में न्याय और सत्य की विजय हुई।
  2. भक्तों की रक्षा:
    • भगवान नरसिंह के अवतार ने यह संदेश दिया कि भगवान अपने सच्चे भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी रूप में आ सकते हैं।
  3. अहंकार का नाश:
    • हिरण्यकश्यप के अहंकार का नाश करके भगवान नरसिंह ने यह सिद्ध किया कि अहंकार का अंत निश्चित है।

नरसिंह जयंती

नरसिंह जयंती भगवान नरसिंह के अवतरण का पर्व है, जो वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन भक्त विशेष पूजा-अर्चना और व्रत रखते हैं। भगवान नरसिंह की आराधना करने से भय, रोग और शत्रुओं से मुक्ति मिलती है।

Mantra- ‘ॐ क्ष्रौं नरसिंहाय नमः’ “OM KSHROUM NARSINHAAY NAMAHA”

Kamakhya sadhana shivir

भगवान नरसिंह की पूजा विधि (Method of worship of Lord Narasimha)

  1. स्वच्छता:
    • पूजा स्थल को स्वच्छ करें और भगवान नरसिंह की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  2. आसन:
    • स्वयं स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा के लिए आसन पर बैठें।
  3. धूप-दीप:
    • धूप और दीप जलाएं और भगवान नरसिंह की आरती करें।
  4. मंत्र जाप:
    • “ऊं उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलंतं सर्वतोमुखम्। नरसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम्॥” मंत्र का जाप करें।
  5. प्रसाद:
    • भगवान नरसिंह को फल, मिठाई और पंचामृत का प्रसाद अर्पित करें।

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भगवान नरसिंह का अवतार हमें यह सिखाता है कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी रूप में प्रकट हो सकते हैं। यह अवतार अधर्म पर धर्म की विजय, अहंकार के नाश और सच्ची भक्ति की महत्ता को दर्शाता है। भगवान नरसिंह की आराधना से भय, रोग और शत्रुओं से मुक्ति मिलती है, और जीवन में शांति और समृद्धि का वास होता है।

Mahakal mantra for strong protection

Mahakal mantra for strong protection

भगवान महाकाल हिंदू धर्म में भगवान शिव के एक प्रमुख स्वरूप हैं जिन्हें समय (काल) के स्वामी के रूप में माना जाता है। उन्हें संहारक के रूप में भी जाना जाता है, जो समय के अंत में संसार का संहार करते हैं।

महाकाल का भोग

  • फल: विशेष रूप से बेर, बेल फल, नारियल, और अनार।
  • फूल: विशेष रूप से धतूरा, आक के फूल, और बेलपत्र।
  • धूप और दीप: दीपक जलाना और धूप देना महाकाल की पूजा में महत्वपूर्ण है।
  • मिठाई: महाकाल को विशेष रूप से गुड़, शहद, और लड्डू का भोग लगाया जाता है।

लाभ

  1. भय से मुक्ति:
    यह मंत्र सभी प्रकार के भय और अज्ञात आशंकाओं को समाप्त करता है।
  2. मृत्यु के भय से रक्षा:
    महाकाल मंत्र मृत्यु के भय को दूर कर जीवन में सुरक्षा की भावना प्रदान करता है।
  3. आध्यात्मिक उन्नति:
    इस मंत्र के नियमित जाप से व्यक्ति की आध्यात्मिक प्रगति होती है।
  4. शत्रुओं पर विजय:
    यह मंत्र शत्रुओं से बचाव और उनके नकारात्मक प्रभावों को समाप्त करता है।
  5. मानसिक शांति:
    महाकाल मंत्र मानसिक तनाव और अशांति को दूर कर मन में शांति लाता है।
  6. संकटों से रक्षा:
    जीवन के विभिन्न संकटों और विपत्तियों से यह मंत्र व्यक्ति की रक्षा करता है।
  7. रोगों से मुक्ति:
    यह मंत्र शारीरिक और मानसिक रोगों को ठीक करने में सहायक होता है।
  8. आयु में वृद्धि:
    महाकाल मंत्र के प्रभाव से व्यक्ति की आयु बढ़ती है और दीर्घायु प्राप्त होती है।
  9. धन-संपत्ति में वृद्धि:
    यह मंत्र व्यक्ति के जीवन में धन और संपत्ति की वृद्धि करता है।
  10. अकाल मृत्यु से बचाव:
    महाकाल मंत्र अकाल मृत्यु से रक्षा करता है और व्यक्ति को दीर्घजीवन का आशीर्वाद देता है।
  11. नकारात्मक ऊर्जा का नाश:
    यह मंत्र नकारात्मक ऊर्जाओं को समाप्त कर सकारात्मकता को बढ़ावा देता है।
  12. धार्मिक उन्नति:
    इस मंत्र के जाप से व्यक्ति की धार्मिक आस्था और विश्वास में वृद्धि होती है।
  13. कानूनी मामलों में सफलता:
    महाकाल मंत्र के प्रभाव से व्यक्ति को कानूनी मामलों में विजय प्राप्त होती है।

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महाकाल मंत्र मुहुर्थ

महाकाल की पूजा के लिए विशेष रूप से सोमवार का दिन महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि सोमवार भगवान शिव का दिन होता है। इसके अलावा, महाशिवरात्रि और प्रदोष व्रत के दिन भी महाकाल की पूजा अत्यंत शुभ मानी जाती है।

Mahakal mantra

‘ॐ ह्रौं महाकालाय ह्रौं नमः’ “OM HROUM MAHAAKAALAAY NAMAHA”

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महाकाल मंत्र के महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी

  1. महाकाल मंत्र क्या है?
    महाकाल मंत्र भगवान शिव के महाकाल रूप की आराधना का मंत्र है, जो समय और मृत्यु के स्वामी हैं।
  2. महाकाल मंत्र का क्या महत्व है?
    यह मंत्र व्यक्ति को भय, नकारात्मकता, और मृत्यु के डर से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है।
  3. महाकाल मंत्र कौन जप सकता है?
    कोई भी व्यक्ति, चाहे महिला हो या पुरुष, इस मंत्र का जाप कर सकता है।
  4. महाकाल मंत्र किस प्रकार से जपना चाहिए?
    यह मंत्र ध्यानपूर्वक, शुद्ध मन और शांत वातावरण में जपना चाहिए।
  5. मंत्र का जाप किस समय करना उत्तम है?
    ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) या रात्रि के समय यह मंत्र जपना श्रेष्ठ माना जाता है।
  6. क्या महाकाल मंत्र के जाप के लिए नियम हैं?
    हां, मंत्र जाप करते समय शुद्धता, संयम और श्रद्धा का पालन करना आवश्यक है।
  7. महाकाल मंत्र का जाप कितनी बार करना चाहिए?
    सामान्यतः 108 बार (1 माला) प्रतिदिन जप करना शुभ होता है।
  8. क्या महाकाल मंत्र विशेष परिस्थितियों में जपना चाहिए?
    जीवन में भय, संकट, रोग, शत्रुता या मानसिक अशांति के समय इस मंत्र का जाप विशेष रूप से लाभकारी होता है।
  9. क्या इस मंत्र का जाप केवल माला से करना चाहिए?
    माला से जाप करना अनुशंसित है, लेकिन ध्यान के समय बिना माला के भी इसे जपा जा सकता है।
  10. महाकाल मंत्र के लाभ क्या हैं?
    यह मंत्र व्यक्ति के जीवन से भय, नकारात्मक ऊर्जा, शत्रुता और मृत्यु के डर को समाप्त करता है।
  11. क्या महाकाल मंत्र के साथ पूजा की जाती है?
    हां, मंत्र जाप के साथ महाकाल शिवलिंग की पूजा और अभिषेक करना अत्यधिक लाभकारी होता है।
  12. क्या महाकाल मंत्र का जाप रुद्राक्ष माला से करना चाहिए?
    हां, रुद्राक्ष माला से मंत्र का जाप करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।
  13. महाकाल मंत्र का उच्चारण कैसे करना चाहिए?
    मंत्र को शुद्ध उच्चारण के साथ, स्पष्ट और धीमी गति में जपना चाहिए।

Shiva Tandav Strot for Strong protection

Shiva Tandav Strot for Strong protection

शिव तांडव स्तोत्र का अर्थ और इसके पाठ से मिलने वाले अद्भुत लाभ

शिव तांडव स्तोत्र, इसमे रावण ने भगवान शिव के प्रचंड और दिव्य तांडव नृत्य का वर्णन किया है। यह स्तोत्र भगवान शिव की महिमा, शक्ति, और अनुग्रह का उत्कृष्ट वर्णन है। इस स्त्रोत का पाठ से ही हर तरह की नकारात्मक उर्जा नष्ट होने लगती है.

लाभ

  1. शिव कृपा की प्राप्ति:
    इस स्तोत्र के नियमित पाठ से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
  2. मानसिक शांति:
    शिव तांडव स्तोत्र के पाठ से मानसिक शांति और संतुलन मिलता है।
  3. नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा:
    यह स्तोत्र नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से व्यक्ति की रक्षा करता है।
  4. संकटों से मुक्ति:
    इसके नियमित पाठ से जीवन के सभी संकटों और बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
  5. भय से मुक्ति:
    इसका पाठ करने से व्यक्ति के सभी प्रकार के भय समाप्त होते हैं।
  6. धन और समृद्धि:
    शिव तांडव स्तोत्र के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में धन और समृद्धि आती है।
  7. स्वास्थ्य में सुधार:
    इसके नियमित पाठ से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  8. आध्यात्मिक उन्नति:
    यह स्तोत्र व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से जागरूक करता है और ध्यान में गहरी स्थिति लाने में सहायक होता है।
  9. विनाशकारी तत्वों से सुरक्षा:
    इस स्तोत्र के पाठ से विनाशकारी शक्तियों से व्यक्ति की रक्षा होती है।
  10. रोगों से मुक्ति:
    शिव तांडव स्तोत्र के नियमित पाठ से शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है।
  11. आयु में वृद्धि:
    इसका पाठ करने से व्यक्ति की आयु बढ़ती है और दीर्घायु प्राप्त होती है।
  12. परिवार में सुख-शांति:
    परिवार में शांति और सौहार्द्र का वातावरण स्थापित होता है।
  13. शत्रुओं पर विजय:
    यह स्तोत्र शत्रुओं पर विजय दिलाने में सहायक होता है।
  14. कानूनी मामलों में सफलता:
    शिव तांडव स्तोत्र के प्रभाव से व्यक्ति को कानूनी मामलों में विजय प्राप्त होती है।
  15. कर्मों का शुद्धिकरण:
    इस स्तोत्र का नियमित पाठ व्यक्ति के बुरे कर्मों का शुद्धिकरण करता है और अच्छे कर्मों का फल मिलता है।

संपूर्ण शिव तांडव स्तोत्र और उसका अर्थ

शिव तांडव स्तोत्र भगवान शिव की स्तुति में रचित एक प्रभावशाली और शक्तिशाली स्तोत्र है, जिसे रावण ने रचा था। यह स्तोत्र भगवान शिव के तांडव नृत्य का वर्णन करता है, जो सृजन, संरक्षण, और विनाश के चक्र का प्रतीक है।

श्लोक 1:
जटाटवी-गलज्जलप्रवाह-पावितस्थले | गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग-तुङ्गमालिकाम् ||
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं | चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||

श्लोक 2:
जटाकटाह सम्भ्रम भ्रमन्निलिम्पनिर्झरी | विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ||
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके | किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ||

श्लोक 3:
धराधरेन्द्र नन्दिनी विलासबन्धु बन्धुर- स्फुरद्दिगन्त सन्ततिः प्र-फुल्ल नीलपङ्कज-प्रपञ्च कालिमाञ्चलः ||
विवर्त्तकुञ्चिताक्षं-इन्द्र गच्छदुर्जयं मदारिपुं च मन्दयन् ||

श्लोक 4:
जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा | कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ||
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे | मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ||

श्लोक 5:
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर | प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ||
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः | श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ||

श्लोक 6:
ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा | निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ||
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं | महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ||

श्लोक 7:
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल- द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ||
धराधरेन्द्रनन्दिनी कुचाग्रचित्रपत्रक- प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ||

श्लोक 8:
नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुर- न्नखच्चदन्मनोग्रकर्मधारयन्धराधरम् ||
समन्तशूलतङ्कजालध्वजाङ्कुशोज्ज्वल- धनञ्जयांतरिक्षमा त्रिविक्रमः मम ||

श्लोक 9:
जगत्तमोविमोचनं भवामिनेत्वतत्परं | विलम्बितारकं हरेऽपि हर्षजनकं विभो ||
विलासिताङ्गनाजनं रथाङ्गवद्धितं पिपासया रजो हरो ॥

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स्तोत्र का अर्थ:

जटाओं से गिरती गंगा के जल से पवित्र भूमि पर, और गले में सांपों की माला लटकाए हुए, शिव जी डमरू की ध्वनि के साथ भयानक तांडव कर रहे हैं।

भगवान शिव की जटाओं से गंगा की जलधारा निरंतर बह रही है और उनके मस्तक पर चन्द्रमा सुशोभित है। उनके ललाट में प्रज्वलित अग्नि जल रही है, जो उनके विकराल रूप को दर्शाती है। मुझे ऐसे शिव में हमेशा प्रेम और श्रद्धा बनी रहे।

शिव जी पर्वत राजकुमारी पार्वती के साथ उनके नृत्य में रत हैं। उनका नीला कंठ, जो विष पान से काला हो चुका है, उनकी शक्ति और पराक्रम को दर्शाता है।

भगवान शिव के जटा में सुशोभित सर्प की फुफकार उनकी महिमा को प्रदर्शित करती है। कदम्ब पुष्प और कस्तूरी से लिप्त उनकी कांति दिग्वधुओं के चेहरे पर चढ़ती हुई प्रतीत होती है। शिव जी का अद्भुत नृत्य देखने योग्य है।

शिव जी का चरण धूलि में सुशोभित हो रहा है क्योंकि देवता उनके चरणों में फूल अर्पित कर रहे हैं।

भगवान शिव के ललाट में जलती हुई अग्नि कामदेव के तीरों को जला चुकी है। वे देवताओं के स्वामी हैं और चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण किए हुए हैं।

शिव जी के ललाट में अग्नि जलती रहती है और कामदेव को भस्म करती है। ऐसे त्रिनेत्रधारी शिव में मेरा मन सदा रमा रहे।

भगवान शिव के अंगों पर नवीन बादलों की तरह तेजस्वी आभा छाई हुई है। वे अपने तांडव से संपूर्ण ब्रह्मांड को संचालित करते हैं। ऐसे त्रिलोचनधारी शिव हमारे जीवन में सुख और समृद्धि लाएं।

भगवान शिव संपूर्ण जगत के अंधकार का नाश करने वाले हैं।

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महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी

शिव तांडव स्तोत्र किस प्रकार का स्तोत्र है?
यह एक स्तोत्र है जो शिव के तांडव नृत्य की गति को प्रतीकात्मक रूप से दर्शाता है और इसमें शिव की अद्वितीय शक्ति का वर्णन है।

शिव तांडव स्तोत्र क्या है?
ये स्तोत्र भगवान शिव की महिमा का वर्णन करने वाला एक स्तोत्र है, जिसे रावण ने रचा था।

शिव तांडव स्तोत्र की रचना किसने की?
यह स्तोत्र रावण द्वारा रचित है, जब उसने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इसका गायन किया था।

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए?
इसका पाठ विशेष रूप से सोमवार के दिन, शिवरात्रि, या महाशिवरात्रि के दिन करना शुभ माना जाता है।

शिव तांडव स्तोत्र के क्या लाभ हैं?
इसका नियमित पाठ करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं।

क्या शिव तांडव स्तोत्र कठिन है?
हां, यह स्तोत्र संस्कृत में लिखा गया है और इसके छंदों की गति तेज होने के कारण इसे पढ़ना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ किस समय करना चाहिए?
इसका पाठ प्रातः काल या संध्याकाल में करना शुभ माना जाता है।

शिव तांडव स्तोत्र का महत्व क्या है?
यह स्तोत्र भगवान शिव के तांडव नृत्य का वर्णन करता है और शिव की शक्ति और उनके विध्वंसक रूप को दर्शाता है।

क्या शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं?
हां, इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और शिव जी की कृपा प्राप्त होती है।

क्या शिव तांडव स्तोत्र के साथ कोई विशेष अनुष्ठान करना चाहिए?
हां, पाठ के समय शिवलिंग पर जल और बिल्व पत्र अर्पित करना चाहिए।

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ कौन कर सकता है?
कोई भी व्यक्ति, चाहे महिला हो या पुरुष, इस स्तोत्र का पाठ कर सकता है।