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Shiva Bilvashtakam Strot for removing sin

Shiva Bilvashtakam Strot for removing sin

शिव बिल्वाष्टकम् स्तोत्र: हर मनोकामना पूरी होगी

पाप से मुक्ति दिलाने वाला शिव बिल्वाष्टकम् स्तोत्र भगवान शिव की महिमा का पाथ करने वाला एक अद्भुत स्तोत्र है। इसमें बिल्व पत्र का महत्व बताया गया है, जो भगवान शिव को अत्यंत प्रिय होता है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से शिव भक्तों को विशेष कृपा प्राप्त होती है।

संपूर्ण शिव बिल्वाष्टकम् स्तोत्र और उसका हिंदी अर्थ

श्लोक 1:
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधम्।
त्रिजन्मपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम्॥

श्लोक 2:
त्रिशाखैः बिल्वपत्रैश्च अच्चिद्रैः कोमलैः शुभैः।
तवपूजां करिष्यामि एकबिल्वं शिवार्पणम्॥

श्लोक 3:
अखण्ड बिल्वपत्रेण पूजिते नन्दिकेश्वरम्।
शुद्ध्यन्ति सर्वपापेभ्यो एकबिल्वं शिवार्पणम्॥

श्लोक 4:
शालिग्राम शिलामेकं विप्राणां जातु चार्पयेत्।
सोमयज्ञ महापुण्यं एकबिल्वं शिवार्पणम्॥

श्लोक 5:
दन्ति कोटि सहस्राणि वाजपेय शतानि च।
कोटिकन्या महादानं एकबिल्वं शिवार्पणम्॥

श्लोक 6:
लक्ष्म्या स्थिरत्वमभिलाषयन्तो भक्त्या बिल्वं समर्पयन्ति।
लभन्ते सुखमक्षयं तस्य पुण्यं भवत्यनल्पम्॥

श्लोक 7:
सहस्रपत्र समर्पणं शङ्कराय सदास्मृतम्।
एकं बिल्वं शिवार्पणम् महापुण्यं भवत्यनल्पम्॥

श्लोक 8:
लक्ष्म्यास्तरुणाईश्वर्यं लब्ध्वा लभन्ते भोगान्।
यथारूपं महापुण्यं तदा शिवाय समर्पणम्॥

संपूर्ण अर्थ

बिल्व पत्र में तीन पत्ते होते हैं, जो तीन गुणों (सत्त्व, रज, तम) का प्रतीक है, तीन नेत्रों वाले शिव को अर्पित होता है। इससे तीन जन्मों के पाप नष्ट होते हैं। ऐसा बिल्व पत्र शिव को अर्पित करता हूँ।

जिस बिल्व पत्र में तीन पत्ते होते हैं, वह सुकोमल और शुभ होता है। ऐसे पत्तों से भगवान शिव की पूजा करता हूँ। यह बिल्व पत्र अर्पित करता हूँ।

जिस बिल्व पत्र से नन्दिकेश्वर की पूजा होती है, वह सारे पापों को नष्ट कर देता है। ऐसा बिल्व पत्र शिव को अर्पित करता हूँ।

जो कोई भी एक शालिग्राम शिला ब्राह्मणों को अर्पित करता है, उसे सोमयज्ञ के समान महापुण्य प्राप्त होता है। ऐसा बिल्व पत्र शिव को अर्पित करता हूँ।

कोटि हाथियों का दान, हजारों वाजपेय यज्ञ, और कोटि कन्याओं का महादान भी एक बिल्व पत्र के समान नहीं हो सकता, जो शिव को अर्पित होता है।

जो लोग लक्ष्मी की स्थिरता चाहते हैं, वे भक्तिभाव से बिल्व पत्र अर्पित करते हैं। ऐसा करने से उन्हें असीम सुख और पुण्य की प्राप्ति होती है।

हजारों कमल पुष्पों के अर्पण से जो पुण्य प्राप्त होता है, वही पुण्य एक बिल्व पत्र अर्पित करने से प्राप्त होता है। ऐसा बिल्व पत्र शिव को अर्पित करता हूँ।

जो लोग लक्ष्मी की असीम कृपा पाना चाहते हैं, वे भगवान शिव को बिल्व पत्र अर्पित करते हैं। इससे उन्हें भोग और मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं।

लाभ

  1. पापों का नाश: इस स्तोत्र के नियमित पाठ से व्यक्ति के पूर्वजन्मों के पाप नष्ट होते हैं।
  2. धन और समृद्धि: बिल्वाष्टकम् का पाठ करने से माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
  3. मानसिक शांति: इस स्तोत्र के पाठ से मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है।
  4. आध्यात्मिक उन्नति: शिव महिम्न स्तोत्र की तरह ही, यह स्तोत्र भी व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।
  5. भय से मुक्ति: इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति सभी प्रकार के भय से मुक्त होता है।
  6. संतान सुख: जिनके संतान नहीं हो रही है, वे इस स्तोत्र का पाठ करें, उन्हें संतान सुख प्राप्त होता है।
  7. दुष्टों से रक्षा: इस स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति को दुष्टों से रक्षा मिलती है।
  8. स्वास्थ्य लाभ: इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है।
  9. मोक्ष प्राप्ति: भगवान शिव की कृपा से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  10. आध्यात्मिक शक्ति: शिव बिल्वाष्टकम् स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति को आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है।
  11. शत्रुओं से मुक्ति: इस स्तोत्र का पाठ करने से शत्रुओं का नाश होता है।
  12. कर्मों का शुद्धिकरण: इस स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति के कर्म शुद्ध होते हैं।
  13. परिवार में सुख और शांति: शिव बिल्वाष्टकम् के पाठ से परिवार में सुख और शांति का वातावरण बना रहता है।
  14. धन वैभव: इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के घर में धन वैभव की कमी नहीं होती।
  15. शिव कृपा: इस स्तोत्र के नियमित पाठ से भगवान शिव की कृपा सदा बनी रहती है।

विधि

  1. समय और अवधि: इस स्तोत्र का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) सबसे उत्तम होता है। इस पाठ को 41 दिनों तक लगातार करना शुभ माना जाता है।
  2. मूर्ति या चित्र: भगवान शिव के सामने दीपक जलाएं और उन्हें बिल्व पत्र अर्पित करें।
  3. आसन: पाठ करते समय कुश का आसन श्रेष्ठ माना जाता है, अन्यथा स्वच्छ कपड़ा बिछाकर बैठें।
  4. व्रत और उपवास: इस स्तोत्र के पाठ के दौरान उपवास रखना अत्यधिक शुभ माना जाता है, विशेषकर प्रदोष व्रत के दिन।
  5. संख्या: इस स्तोत्र का पाठ 108 बार करना अत्यंत फलदायी होता है।

नियम

  1. शुद्धता: पाठ से पहले शारीरिक और मानसिक शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
  2. गोपनीयता: साधना और पाठ को गुप्त रखना चाहिए, ताकि इसका फल अधिक प्रभावी हो।
  3. नियमितता: पाठ को नियमित रूप से करना चाहिए, बिना किसी रुकावट के।
  4. दिशा: शिव स्तोत्र का पाठ उत्तर दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए।

Kamakhya sadhana shivir

सावधानियाँ

  1. आहार: पाठ के दौरान सात्विक आहार का सेवन करें।
  2. वाणी: पाठ के दौरान अपशब्दों का प्रयोग नहीं करें।
  3. शुद्धता: पाठ के समय और पाठ के बाद शुद्धता बनाए रखें।
  4. समर्पण: पूरे मन से भगवान शिव की आराधना करें और उन्हें समर्पित करें।

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शिव बिल्वाष्टकम् स्तोत्र के सामान्य प्रश्न

शिव बिल्वाष्टकम् स्तोत्र क्या है?

  • यह भगवान शिव की महिमा का वर्णन करने वाला स्तोत्र है, जिसमें बिल्व पत्र (बेल के पत्ते) की महिमा का वर्णन किया गया है। इसे भगवान शिव को अर्पित किया जाता है।

बिल्वाष्टकम् का पाठ क्यों किया जाता है?

  • बिल्वाष्टकम् का पाठ भगवान शिव की कृपा प्राप्ति के लिए किया जाता है। इसे शिवरात्रि और सावन के महीने में विशेष रूप से पढ़ा जाता है।

इस स्तोत्र का पाठ करने का समय कब है?

  • इसे प्रातःकाल या संध्याकाल में पढ़ा जा सकता है। सोमवार, शिवरात्रि, और सावन के महीने में इसका पाठ विशेष फलदायी माना जाता है।

बिल्व पत्र का शिव पूजन में क्या महत्व है?

  • बिल्व पत्र को भगवान शिव के पूजन में अत्यंत पवित्र माना गया है। यह त्रिदेवता का प्रतीक है और शिवजी को अत्यंत प्रिय है।

शिव बिल्वाष्टकम् के पाठ से क्या लाभ होते हैं?

  • इसे पढ़ने से पापों का नाश, शिवजी की कृपा, और मनोकामना की पूर्ति होती है। यह आध्यात्मिक शांति और आंतरिक बल प्रदान करता है।

क्या बिल्वाष्टकम् का पाठ केवल सोमवार को ही करना चाहिए?

  • नहीं, इसे किसी भी दिन पढ़ा जा सकता है, लेकिन सोमवार को इसका विशेष महत्व है।

बिल्वाष्टकम् का पाठ कितनी बार करना चाहिए?

  • इसे 3, 11, या 21 बार पढ़ा जा सकता है। इसका नियमित पाठ अत्यधिक फलदायी माना गया है।

क्या महिलाएँ भी बिल्वाष्टकम् का पाठ कर सकती हैं?

  • हां, महिलाएँ भी इसे पढ़ सकती हैं। इसमें कोई प्रतिबंध नहीं है।

बिल्वाष्टकम् का स्रोत क्या है?

  • यह स्तोत्र शिवपुराण, स्कंद पुराण, और अन्य पुराणों में मिलता है।

क्या बिल्वाष्टकम् के पाठ के दौरान विशेष नियमों का पालन करना चाहिए?

  • हां, पाठ के समय स्वच्छता, एकाग्रता, और भगवान शिव की भक्ति का ध्यान रखना चाहिए।

Shiva Mahima Strot for Wealth & Family Peace

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शिव महिम्न स्तोत्र: रोग व आर्थिक समस्या से मुक्ति

सबका दुख नष्ट करने वाले शिव महिम्न स्तोत्र भगवान शिव की महिमा का गुणगान करता है। इसे रावण के भक्ति भाव से प्रेरित होकर पुष्पदन्त नामक गन्धर्व द्वारा रचित माना जाता है। यह स्तोत्र शिवभक्तों के बीच अत्यंत लोकप्रिय है और इसे पढ़ने या सुनने से भक्तों के जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि का आगमन होता है।

शिव महिम्न स्तोत्र: संपूर्ण पाठ और हिंदी अर्थ

शिव महिम्न स्तोत्र भगवान शिव की महिमा का गुणगान करता है और इसे भगवान शिव के प्रति भक्ति का श्रेष्ठ स्तोत्र माना जाता है। इस स्तोत्र को पुष्पदन्त नामक गन्धर्व द्वारा रचित माना जाता है। आइए, संपूर्ण शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ और उसका हिंदी अर्थ समझें:

१. महिम्नः पारं ते परमविदुषो यद्यसदृशी

स्तोत्रं ब्रह्मादीनामपि तदवसन्नास्त्वयि गिरः।
अथाऽवाच्यः सर्वः स्वमतिपरिणामावधि गृणन्
ममाप्येष स्तोत्रे हर निरपवादः परिकरः॥ १ ॥

अर्थ:
हे भगवान शिव! आपकी महिमा का पार पाना संभव नहीं है। यदि मैं आपकी महिमा का वर्णन करने का प्रयास करता हूँ, तो वह प्रयास भी अपूर्ण होगा। आपके गुणों की सही-सही व्याख्या नहीं की जा सकती। जो लोग आपकी स्तुति करने का प्रयास करते हैं, वे अपने सामर्थ्य के अनुसार ही आपकी स्तुति कर पाते हैं।


२. अतीतः पन्थानं तव च महिमा वाङ्मनसयोः

अतद्व्यावृत्त्या यं चकितमभिधत्ते श्रुतिरपि।
स कस्य स्तोतव्यः कतिविधगुणः कस्य विषयः
पदे तुर्वत्स्ना वणिगिव लिखितं नैव गति:॥ २॥

अर्थ:
भगवान शिव! आपकी महिमा वाणी और मन से परे है। वेद भी आपकी महिमा का पूर्णतः वर्णन करने में असमर्थ हैं। आपकी स्तुति कोई कैसे कर सकता है, जब आपके गुण और स्वरूप का सही ज्ञान ही संभव नहीं है। आपकी महिमा को समझने और वर्णन करने के लिए हमारा ज्ञान और हमारी बुद्धि पर्याप्त नहीं है।


३. मधुस्फीता वाचः परमममृतं निर्मितवतः

तव ब्रह्मन् किं वागपि सुरगुरोर्विस्मयपदम्।
मम त्वेतां वाणीं गुणकथनपुण्येन भवतः
पुनामीत्यर्थेऽस्मिन् पुरमथन बुद्धिर्व्यवसिता॥ ३॥

अर्थ:
हे भगवान शिव! आपकी वाणी मधुर और अमृत के समान है। आपकी महिमा का वर्णन करने में वेद भी असमर्थ हैं। मैं आपकी स्तुति करने का प्रयास कर रहा हूँ, यह जानते हुए भी कि मेरी वाणी अपर्याप्त है। फिर भी, मैं इस प्रयास को एक पुण्य कार्य मानकर इसे करता हूँ।


४. तवैश्वर्यं यत्तज्जगदुदयरक्षाप्रलयकृत्

त्रयीवस्तु व्यस्तं तिसृषु गुणभिन्नासु तनुषु।
अभव्यानामस्मिन् वरद रमणीयामरमणीं
विहन्तुं व्याक्रोशीं विधिहरिहरन्ते जगदिदम्॥ ४॥

अर्थ:
भगवान शिव! आपकी महिमा इतनी महान है कि आपने सम्पूर्ण जगत् की उत्पत्ति, संरक्षण और विनाश का कार्य किया है। आप तीनों गुणों (सत्त्व, रज, तम) में भिन्न रूप धारण करते हैं और सृष्टि को संचालित करते हैं।


५. हरिस्ते साहस्रं कमलबलिमाधाय पदयोः

यदेकोने तस्मिन्निजमुदहरन्नेत्रकमलम्।
गतो भक्त्युद्रेकः परिणतिमसौ चक्रवपुषा
त्रयाणां रक्षायै त्रिपुरहर जागर्ति जगताम्॥ ५॥

अर्थ:
भगवान विष्णु ने आपकी पूजा में सहस्रों कमल चढ़ाए, और जब एक कमल कम पड़ गया, तो उन्होंने अपनी आँख का कमल चढ़ा दिया। आपकी भक्ति में उनका यह अद्वितीय समर्पण देखने लायक है। त्रिपुरों के नाश के लिए आपका यह रूप जगत के लिए अमूल्य है।


६. क्रतौ सुप्ते जाग्रत् त्वमसि फलयोगे क्रियाफले

यथा प्रार्थ्यां प्रीतीं विधदति सतमर्णाय च।
अतः साक्षी त्वं न स्थिरदरिवन्दं गिरिसुतां
नटत्वं चाधीशं शरणद रमन्ते सकलभूः॥ ६॥

अर्थ:
जब सभी यज्ञ क्रियाएँ समाप्त हो जाती हैं, तब भी आप जागृत रहते हैं और यज्ञों के फल को वितरित करते हैं। आप ही साक्षी हैं और सम्पूर्ण सृष्टि आपकी शरण में है। आप इस सृष्टि के सर्वोच्च नियंत्रक और पालनकर्ता हैं।


७. अशेषं देवानां बलमसुरेणापि निहतम्

यदेतस्मिन्नुपेक्षितविकृतिरलक्षितविभु:।
अयि स्त्रैणं विद्ध्यं सुकृतमखिलं त्वन्मुखकम्
क्व वा शीतलं भवति परिपालनं तेऽत्र सकृती॥ ७॥

अर्थ:
जब असुरों ने देवताओं की शक्ति को समाप्त कर दिया था, तब आपने अपनी कृपा से उन्हें पुनः सशक्त किया। आपकी कृपा से ही देवता अपनी शक्तियों को पुनः प्राप्त कर सके। आपकी इस महानता के कारण ही आप सदा पूजनीय हैं।


८. कृतज्ञायां कान्तं पदमुपचितं रामसुभगे

पदं तत्र चैवं प्रमथपतिना तन्त्रितमिदम्।
निविश्य स्वे वस्त्रं समुपहितमिन्द्रं पुरमथ
दधाना क्षेमेण श्रियमभिसमीचीनपदवीं॥ ८॥

अर्थ:
आपकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान राम ने आपको अर्चना की। आपके चरणों में निवास करने से ही सभी देवताओं को मोक्ष की प्राप्ति होती है।


९. नमोऽन्तः पारे स्थिरचरविकरैरप्रथयसे

यथाऽव्यक्तं ते ब्रह्म सदसदिति भावेन जनम्।
तमोयुक्तस्त्वामभिदधति विष्णुः स्तुतिषु च
शिवः श्रेयोऽभ्येति क्वचिदपि स वैरोप्यमियते॥ ९॥

अर्थ:
आपको नमस्कार है, जो सृष्टि के चर और अचर दोनों रूपों में व्याप्त हैं। आपको न जानने वाले भी आपकी स्तुति करते हैं, और इस प्रकार आप सभी के लिए कल्याणकारी हैं। आपके बिना कोई भी कार्य पूर्ण नहीं हो सकता।


१०. प्रणामाचार्याणां तव परिरक्षीणमखिलं

कियन्तं यान्तं मम परममङ्गं परमिशम्।
न यथान्य: कार्ये त्रिभुवननितान्तं च विदितं
स्वयं प्रपन्नं त्वां किल किलिकिनाः संत्यजसि॥ १०॥

अर्थ:
आप सृष्टि के सभी कार्यों को नियंत्रित करते हैं और त्रिभुवन के प्रभु हैं। जब भी कोई भक्त आपकी शरण में आता है, तो आप उसे कभी नहीं छोड़ते। आप सदा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें मोक्ष प्रदान करते हैं।


११. अनादेराद्यं त्वां पुरुषमनिशं ब्रह्मशिरसि

प्रसादाद्दत्तं ते हृदयमश्वत्थमुनिनः।
इति त्वामारब्धे ध्रुवचरमुदेत्येव मनसो
जगत्क्रतौ वैरं विधियति हि ते दण्डकपटः॥ ११॥

अर्थ:
आप अनादि और अनंत हैं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश, सभी आपके ही अंश हैं। जब भी सृष्टि में कोई विपत्ति आती है, तो आप ही उसका निवारण करते हैं और अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।


१२. न भूतो न भूयो भवति भवताप्यौपनिषद:

कृपणाः सङ्घोषं करिष्यमणशास्यस्य सुचराः।
अतः प्रातः कालं खलु भवतु मे संहितमिदं
नतु त्रातुः सत्यं हृदये न भवेयामलवपुः॥ १२॥

अर्थ:
आपकी महिमा का कोई अंत नहीं है। आप न तो भूतकाल में थे, न ही भविष्य में होंगे, आप सदा वर्तमान हैं। इस प्रकार आपकी स्तुति करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।


१३. न त्वां पश्यन्नु स्फुटमपि च मिथ्येत्यवधरो

न चास्मिन्वक्तव्य

ं मम वद मृषा त्वत्कथनम्।
अतोऽन्यं वन्दे प्रचलमखिलं त्वां सुकृतिनः
श्रयन्ते साक्षात् पततशि तु योऽत्युत्तरशतम्॥ १३॥

अर्थ:
आपका स्वरूप अद्वितीय है और आपकी महिमा अनंत है। आपकी स्तुति करने वाला भक्त सदा आपका ही गुणगान करता है। जो भी भक्त आपकी शरण में आता है, वह कभी भी असफल नहीं होता।


१४. निन्दा गर्ह्यां वा लवमणुसमानं न शरणं

प्रवृत्तं न ज्ञातं भवतुनि विपाकस्य समये।
इति द्वन्द्वं द्वन्द्वं ध्रुवमिह जनिः पुनरपि
ध्रुवं विष्णुर्हन्तुं सुखमधिवसन्तः सुखकृतः॥ १४॥

अर्थ:
आपके भक्तों की कोई निंदा नहीं कर सकता। आप सदा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें सुख प्रदान करते हैं। आपकी कृपा से भक्तों को संसार के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।


१५. स्तुतिं वैरं कृत्वा हर शिव हर मामीह भयतः

अकारं सारा त्वरितमपि मातः किल शुभे।
अयं मृत्युः शम्भो रजतमणिवद्धृष्टभवतु
त्वतस्तत्तद्बन्धुं दृढततमनन्तं जगदिति॥ १५॥

अर्थ:
हे शिव! आपकी स्तुति करने से भक्तों के सभी भय समाप्त हो जाते हैं। आपकी कृपा से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। आप सदा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें संसार के सभी बंधनों से मुक्त करते हैं।

लाभ

  1. मानसिक शांति:
    शिव महिम्न स्तोत्र के नियमित पाठ से मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है।
  2. सकारात्मक ऊर्जा:
    यह स्तोत्र सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है, जिससे जीवन में सुख और समृद्धि का आगमन होता है।
  3. आध्यात्मिक उन्नति:
    शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।
  4. रोगों से मुक्ति:
    इस स्तोत्र का पाठ रोगों से मुक्ति और स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।
  5. आर्थिक समृद्धि:
    शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करने से आर्थिक समृद्धि प्राप्त होती है।
  6. शत्रुओं से रक्षा:
    यह स्तोत्र शत्रुओं से रक्षा करता है और व्यक्ति को सुरक्षित रखता है।
  7. घर में सुख-शांति:
    शिव महिम्न स्तोत्र के पाठ से घर में सुख-शांति और समृद्धि का माहौल बनता है।
  8. मोक्ष की प्राप्ति:
    इस स्तोत्र का पाठ मोक्ष प्राप्ति में सहायक होता है।
  9. संतान सुख:
    यह स्तोत्र संतान सुख प्रदान करता है और परिवार में खुशियों का आगमन होता है।
  10. कष्टों से मुक्ति:
    शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं।
  11. धन-धान्य की प्राप्ति:
    इस स्तोत्र का पाठ धन-धान्य और भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति में सहायक होता है।
  12. कार्य में सफलता:
    शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करने से कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
  13. मनोकामना पूर्ति:
    यह स्तोत्र मनोकामनाओं की पूर्ति में सहायक होता है।
  14. शांति और समृद्धि:
    इस स्तोत्र का पाठ जीवन में शांति और समृद्धि लाता है।
  15. दिव्य आभा:
    शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के चेहरे पर दिव्य आभा आती है।

विधि

  1. शुद्धता:
    इस स्तोत्र का पाठ करने से पहले शुद्धता का ध्यान रखें। स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. आसन:
    साधना करते समय कुश या ऊनी आसन का प्रयोग करें।
  3. मूर्ति या चित्र:
    भगवान शिव के सामने उनकी मूर्ति या चित्र रखें और दीप प्रज्वलित करें।
  4. पाठ का समय:
    इसका पाठ प्रातःकाल या संध्याकाल में करें। सोमवार का दिन विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
  5. ध्यान और ध्यान मुद्रा:
    शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करते समय ध्यान मुद्रा में बैठें और भगवान शिव का ध्यान करें।

नियम

  1. साधना को गुप्त रखें:
    अपनी साधना और पूजा को गुप्त रखें।
  2. नियमितता:
    इस स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करें।
  3. शुद्धता:
    पूजा के समय शरीर, मन, और वातावरण की शुद्धता बनाए रखें।
  4. उत्तम आचरण:
    साधना के दौरान उत्तम आचरण का पालन करें और नकारात्मक विचारों से दूर रहें।
  5. आसन का पालन:
    साधना के दौरान एक ही आसन का प्रयोग करें।

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सावधानियाँ

  1. शुद्धता का ध्यान रखें:
    पूजा और साधना के दौरान शरीर और मन की शुद्धता का ध्यान रखें।
  2. नकारात्मक विचारों से दूर रहें:
    साधना के समय केवल सकारात्मक विचारों का ध्यान करें।
  3. नियमितता बनाए रखें:
    शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए।
  4. पूजा सामग्री का ध्यान रखें:
    सभी पूजा सामग्री को शुद्ध और पवित्र रखें।

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सामान्य प्रश्न

  1. शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए?
    • इसका पाठ सुबह और शाम के समय करना उत्तम होता है।
  2. क्या इसे किसी विशेष दिन करना चाहिए?
    • इसे किसी भी दिन कर सकते हैं, लेकिन सोमवार को विशेष लाभ मिलता है।
  3. क्या महिलाएं भी इसे कर सकती हैं?
    • हाँ, महिलाएं भी शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं।
  4. क्या इसे घर पर कर सकते हैं?
    • हाँ, इसे घर पर किसी पवित्र स्थान पर कर सकते हैं।
  5. इसका पाठ कितनी बार करना चाहिए?
    • शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ दिन में एक बार करना पर्याप्त है।
  6. इसका पाठ कितने दिनों तक करना चाहिए?
    • इसे 41 दिनों तक नियमित रूप से करें।
  7. क्या इसे गुप्त रूप से करना चाहिए?
    • हाँ, साधना को गुप्त रखना उत्तम होता है।
  8. क्या इसे मंदिर में करना आवश्यक है?
    • नहीं, इसे घर पर भी किया जा सकता है।
  9. क्या पाठ करते समय विशेष मंत्र का जाप करना चाहिए?
    • पाठ के दौरान “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करना चाहिए।
  10. क्या शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ आर्थिक लाभ देता है?
    • हाँ, इसका पाठ आर्थिक समृद्धि प्रदान करता है।
  11. क्या इससे शत्रुओं से रक्षा होती है?
    • हाँ, यह स्तोत्र शत्रुओं से रक्षा करता है।
  12. क्या इस स्तोत्र का प्रभाव तुरंत दिखाई देता है?
    • इसका प्रभाव धीरे-धीरे दिखाई देता है।
  13. क्या इसे रोज़ करना आवश्यक है?
    • हाँ, इसे रोज़ाना करने से इसका प्रभाव अधिक होता है।
  14. क्या यह मानसिक शांति देता है?
    • हाँ, यह स्तोत्र मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करता है।
  15. क्या इसका पाठ मोक्ष प्राप्ति के लिए लाभकारी है?
    • हाँ, यह स्तोत्र मोक्ष प्राप्ति में सहायक होता है।

Lingashtakam Strot for Wealth & Family Peace

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लिंगाष्टकम् स्त्रोत- पारिवारिक सुख प्रदान करे

ग्रहस्थ जीवन का सुख देने वाला लिंगाष्टकम् एक प्रसिद्ध स्तोत्र है, जो भगवान शिव के लिंग रूप की स्तुति के लिए रचा गया है। इसमें आठ श्लोक होते हैं जिनमें शिवलिंग की महिमा और उसके पूजन से मिलने वाले फल का वर्णन किया गया है। लिंगाष्टकम् का पाठ करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और भक्त के सभी पापों का नाश होता है। यह स्तोत्र भगवान शिव के प्रति भक्तिभाव को बढ़ाने और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

संपूर्ण लिंगाष्टकम् एवं उसका हिंदी में अर्थ

श्लोक 1:

ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिंगं निर्मलभासितशोभितलिंगम्।
जनममुक्तिसदाखृतलिंगं तत् प्रणमामि सदाशिवलिंगम्॥

हिंदी अर्थ:
जो शिवलिंग ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवताओं द्वारा पूजित है, जो निर्मल प्रकाश से शोभायमान है, जो जनम-मरण के बंधन से मुक्ति देने वाला है, मैं उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ।

श्लोक 2:

देवमुनिप्रवरार्चितलिंगं कामदहनकरुणाकरलिंगम्।
रविधोषविनाशितलिंगं तत् प्रणमामि सदाशिवलिंगम्॥

हिंदी अर्थ:
जो शिवलिंग देवताओं और श्रेष्ठ मुनियों द्वारा पूजित है, जो कामदेव को भस्म करने वाला है और करुणा का सागर है, जो सूर्य और चंद्र दोषों का नाश करता है, मैं उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ।

श्लोक 3:

सर्वसुगन्धिसुलेपितलिंगं बुद्धिविवर्धनकारणलिंगम्।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिंगं तत् प्रणमामि सदाशिवलिंगम्॥

हिंदी अर्थ:
जो शिवलिंग सभी सुगंधित द्रव्यों से अलंकृत है, जो बुद्धि का विकास करने वाला है, जिसे सिद्ध, देवता और असुर भी वंदना करते हैं, मैं उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ।

श्लोक 4:

कनकमहामणिभूषितलिंगं फणिपतिवेष्टितशोभितलिंगम्।
दक्षसुप्रणमणीयार्चितलिंगं तत् प्रणमामि सदाशिवलिंगम्॥

हिंदी अर्थ:
जो शिवलिंग स्वर्ण और महान रत्नों से अलंकृत है, जो सर्पराज (शेषनाग) द्वारा आवेष्टित होकर शोभायमान है, जिसे दक्ष प्रजापति ने वंदना की थी, मैं उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ।

श्लोक 5:

कुंकुमचन्दनलेपितलिंगं पङ्कजहारसुशोभितलिंगम्।
सञ्चितपापविनाशनलिंगं तत् प्रणमामि सदाशिवलिंगम्॥

हिंदी अर्थ:
जो शिवलिंग कुंकुम और चन्दन से अलंकृत है, जो कमल के हार से सुशोभित है, जो संचित पापों का नाश करने वाला है, मैं उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ।

श्लोक 6:

देवगणार्चितसेवितलिंगं भावैर्भक्तिभिरेव च लिंगम्।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिंगं तत् प्रणमामि सदाशिवलिंगम्॥

हिंदी अर्थ:
जो शिवलिंग देवताओं द्वारा पूजित और सेवित है, जिसे भक्तगण भक्ति-भाव से पूजते हैं, जो करोड़ों सूर्यों की प्रभा से प्रकाशित है, मैं उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ।

श्लोक 7:

अष्टदलोपविनाशितलिंगं सर्वसमुद्भवकारणलिंगम्।
अष्टदरिद्रविनाशितलिंगं तत् प्रणमामि सदाशिवलिंगम्॥

हिंदी अर्थ:
जो शिवलिंग अष्टदल कमल के विनाश का कारण है, जो समस्त सृष्टि के कारण है, जो अष्ट दरिद्रताओं का नाश करने वाला है, मैं उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ।

श्लोक 8:

सुरगुरुसुरवरपूजितलिंगं सुरवनपुष्पसदार्चितलिंगम्।
परात्परं परमात्मकलिंगं तत् प्रणमामि सदाशिवलिंगम्॥

हिंदी अर्थ:
जो शिवलिंग देवगुरु और देवताओं द्वारा पूजित है, जो देवताओं के वन के पुष्पों से सदैव पूजित है, जो परमात्मा का परात्पर स्वरूप है, मैं उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ।

फलश्रुति (लिंगाष्टकम् का फल)

लिंगाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

हिंदी अर्थ:
जो भी भक्त शिवलिंग के समक्ष इस लिंगाष्टक का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त करता है और भगवान शिव के साथ आनंदित होता है।

लिंगाष्टकम् स्त्रोत के लाभ

  1. मोक्ष की प्राप्ति: लिंगाष्टकम् का पाठ करने से भगवान शिव की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  2. मन की शांति: यह स्तोत्र मन को शांत और स्थिर करता है।
  3. कष्टों का निवारण: जीवन में आने वाले सभी कष्टों और विपत्तियों का नाश होता है।
  4. स्वास्थ्य लाभ: यह स्तोत्र शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधरता है।
  5. धन और समृद्धि: लिंगाष्टकम् का पाठ करने से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
  6. शत्रु बाधाओं से मुक्ति: यह स्तोत्र शत्रु बाधाओं का नाश करता है।
  7. आध्यात्मिक उन्नति: लिंगाष्टकम् का पाठ आध्यात्मिक उन्नति के लिए सहायक है।
  8. धार्मिकता का संचार: यह स्तोत्र भक्त के जीवन में धार्मिकता का संचार करता है।
  9. परिवार की सुरक्षा: यह स्तोत्र परिवार की सुरक्षा और कल्याण के लिए अत्यंत लाभकारी है।
  10. भय से मुक्ति: लिंगाष्टकम् का पाठ करने से भक्त भयमुक्त हो जाता है।
  11. सभी इच्छाओं की पूर्ति: यह स्तोत्र भक्त की सभी इच्छाओं की पूर्ति करता है।
  12. सुख-शांति की प्राप्ति: जीवन में सुख और शांति का आगमन होता है।
  13. बुद्धि का विकास: लिंगाष्टकम् का पाठ बुद्धि का विकास करता है।
  14. दरिद्रता का नाश: यह स्तोत्र दरिद्रता का नाश करता है और समृद्धि का संचार करता है।
  15. भगवान शिव की कृपा: यह स्तोत्र भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करने का साधन है।

लिंगाष्टकम् का पाठ: विधि और नियम

पाठ की विधि:

  • दिन: लिंगाष्टकम् का पाठ सोमवार या प्रदोष व्रत के दिन शुरू करना शुभ माना जाता है।
  • अवधि: इसे 41 दिनों तक निरंतर करना उत्तम माना जाता है।
  • मुहूर्त: प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त (4:00 से 6:00 बजे के बीच) इस स्तोत्र के पाठ के लिए सर्वोत्तम समय है।

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सावधानियाँ और नियम:

  1. शुद्धता का पालन: पाठ से पहले शारीरिक और मानसिक शुद्धता आवश्यक है।
  2. आसन का चयन: कुशासन या ऊनी आसन पर बैठकर पाठ करें।
  3. पूजा सामग्री: शिवलिंग का पूजन करें, जिसमें बिल्व पत्र, गंगाजल, धूप, दीप आदि का प्रयोग करें।
  4. गुप्त साधना: साधना को गुप्त रखें, इसे सार्वजनिक रूप से प्रचारित न करें।
  5. संकल्प: पाठ के प्रारंभ में संकल्प करें और भगवान शिव से अपनी इच्छाओं की पूर्ति की प्रार्थना करें।
  6. नियमितता: नियमित रूप से पाठ करें और किसी भी कारणवश इसे न छोड़ें।
  7. ध्यान और ध्यान की अवस्था: पाठ के बाद ध्यान अवश्य करें और भगवान शिव का ध्यान करें।

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लिंगाष्टकम् से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न

  1. लिंगाष्टकम् का पाठ किस समय करना चाहिए?
    • प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में (4:00 से 6:00 बजे) यह पाठ करना उत्तम माना जाता है।
  2. क्या महिलाएं भी लिंगाष्टकम् का पाठ कर सकती हैं?
    • हां, महिलाएं भी शुद्धता और श्रद्धा के साथ इस स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं।
  3. लिंगाष्टकम् का पाठ कितने दिनों तक करना चाहिए?
    • इसे 41 दिनों तक नियमित रूप से करना चाहिए।
  4. क्या लिंगाष्टकम् का पाठ किसी विशेष दिन शुरू करना चाहिए?
    • सोमवार या प्रदोष व्रत के दिन प्रारंभ करना शुभ माना जाता है।
  5. लिंगाष्टकम् का पाठ किस उद्देश्य से किया जा सकता है?
    • मोक्ष प्राप्ति, कष्ट निवारण, और सुख-शांति के लिए इसका पाठ किया जा सकता है।
  6. लिंगाष्टकम् का पाठ करते समय कौन-कौन से नियमों का पालन करना चाहिए?
    • शुद्धता, नियमितता और गुप्त साधना के नियमों का पालन करना चाहिए।
  7. क्या लिंगाष्टकम् का पाठ किसी अन्य की सहायता से किया जा सकता है?
    • साधारणतः स्वयं ही पाठ करना उचित होता है, परंतु आवश्यकतानुसार अन्य की सहायता ली जा सकती है।
  8. क्या लिंगाष्टकम् का पाठ करने से शत्रु बाधाएं दूर होती हैं?
    • हां, शत्रु बाधाओं का नाश होता है।
  9. क्या लिंगाष्टकम् का पाठ करने से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है?
    • हां, भगवान शिव की कृपा से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
  10. लिंगाष्टकम् का पाठ क्या केवल संस्कृत में करना चाहिए?
    • हां, इसे संस्कृत में ही पाठ करना चाहिए क्योंकि इसके मंत्रात्मक प्रभाव से ही लाभ प्राप्त होता है।
  11. क्या लिंगाष्टकम् का पाठ करने से विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं?
    • हां, विवाह में आ रही बाधाओं का नाश होता है।

Rudrashtakam Strot for Victory

Rudrashtakam Strot for Victory

रुद्राष्टकम्: हर कार्य मे विजयी

हर क्षेत्र मे विजय दिलाने वाली रुद्राष्टकम्, श्रीमद्गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित एक अत्यंत लोकप्रिय स्तोत्र है, जिसमें भगवान शिव की स्तुति की गई है। इसमें आठ श्लोक होते हैं, जिनमें भगवान शिव के विभिन्न गुणों और लीलाओं का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र भगवान शिव के प्रति गहरी भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है। रुद्राष्टकम् का पाठ करना भक्तों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है और इसे पढ़ने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।

संपूर्ण रुद्राष्टकम् एवं उसका हिंदी में अर्थ

श्लोक 1:

विधि-निन्दकं शील-निन्दकं (वेद-निन्दकं) रुण्डमालं चन्दनप्रियं ।
शंकरमित्येव गीयते मुनिवर्यैः श्रुतिमूलकं चिन्त्य-रूपं ह्यनादिम् ॥

हिंदी अर्थ:
जो विधाता (ब्रह्मा) और शील (कुमारियों) का निन्दक है, जिसकी माला में सिरों की मालाएँ हैं, जो चन्दनप्रिय है, जिसे मुनिगण शंकर के नाम से पुकारते हैं, जो वेदों के मूल रूप हैं, जो चिन्तनीय स्वरूप हैं और जो अनादि है, उन भगवान शिव को मैं नमन करता हूँ।

श्लोक 2:

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्॥

हिंदी अर्थ:
मैं उस ईश्वर, ईशान, निर्वाणस्वरूप, सर्वव्यापी, ब्रह्म और वेद के स्वरूप, निजस्वरूप, निर्गुण, निर्विकल्प, और निरीह भगवान शिव को नमन करता हूँ। मैं उन्हें नमन करता हूँ जो चिदाकाश हैं, आकाश में वास करते हैं और समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त हैं।

श्लोक 3:

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसार पारं नतोऽहम्॥

हिंदी अर्थ:
जो निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय अवस्था से परे, वाणी, ज्ञान और गोचरता से परे हैं, जो गिरीश (पर्वतराज के ईश्वर) हैं, जो भयानक हैं, जो महाकाल, काल और कृपालु हैं, गुणों के भंडार और संसार सागर के पार लगाने वाले हैं, ऐसे भगवान शिव को मैं नमन करता हूँ।

श्लोक 4:

तुषाराद्रिसंकाश गौरं गभीरं मनोभूतकोटिप्रभा श्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारुगंगा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥

हिंदी अर्थ:
जो हिमालय के समान गौरवर्ण, गंभीर, अनंत मनोभूत कोटियों की प्रभा से युक्त, श्रीस्वरूपधारी हैं। जिनके मस्तक पर कल्याणकारी गंगा बह रही है, जिनके भाल पर चंद्रमा की छटा और गले में सर्प है, उन भगवान शिव को मैं नमन करता हूँ।

श्लोक 5:

चलत्कुण्डलं भ्रूलताफेरमत्कं प्रलयाकुलं भेकपादं किरीटम्।
त्रिसूलं कराभ्यां केशं च वामे ह्यहंकाररूपं नमामि शंकरम्॥

हिंदी अर्थ:
जिनके कानों में कुंडल हिल रहे हैं, भौंहों में लता की भाँति क्रीड़ा हो रही है, जो प्रलयकाल के समान विकराल हैं, जिनके सिर पर मुकुट है, जिनके हाथों में त्रिशूल और मस्तक के केश हैं, उन अहंकाररहित भगवान शंकर को मैं नमन करता हूँ।

श्लोक 6:

धनुर्बाणपाशान्वयं क्षीरधारा नमामि सुरेशं पवित्रं शरण्यं।
महेशं गिरिशं चन्द्रचूड़ं त्रिनेत्रं त्रयीमूलकं देवदेवं नमामि॥

हिंदी अर्थ:
जिनके पास धनुष, बाण, पाश और अंकुश हैं, जो क्षीरधारा के समान शीतल हैं, जो सुरेश (देवताओं के ईश्वर) हैं, पवित्र हैं, शरण्य हैं, महेश हैं, गिरिश हैं, चंद्रचूड़ हैं, त्रिनेत्र हैं और वेदों के मूल हैं, उन देवाधिदेव महादेव को मैं नमन करता हूँ।

श्लोक 7:

कला कालरुद्रं च कालात्ययादं नमामि सुरेशं पवित्रं शरण्यं।
महेशं गिरिशं चन्द्रचूड़ं त्रिनेत्रं त्रयीमूलकं देवदेवं नमामि॥

हिंदी अर्थ:
जो कला, काल, रुद्र और काल से भी परे हैं, जो देवताओं के ईश्वर, पवित्र और शरण्य हैं, जो महेश्वर, गिरिश, चंद्रचूड़, त्रिनेत्र, और वेदों के मूल रूप हैं, उन भगवान शिव को मैं नमन करता हूँ।

श्लोक 8:

नमः सोमाय शम्भोर्मे गंगाधराय नमोऽस्तुन्द्रमौलये।
नमः पार्वतीपतये ऊमापतये नमः शिवाय हराय॥

हिंदी अर्थ:
मैं भगवान सोम, शम्भु, गंगाधर, चंद्रमौलि, पार्वतीपति, उमा पति और शिव को नमन करता हूँ। हे हर, आपको मेरा नमस्कार है।

रुद्राष्टकम् के लाभ

  1. मन की शांति: रुद्राष्टकम् का नियमित पाठ करने से मन में शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।
  2. कष्टों का निवारण: जीवन में आने वाले कष्टों और विपत्तियों का निवारण होता है।
  3. स्वास्थ्य लाभ: यह स्तोत्र शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
  4. धन और समृद्धि: भगवान शिव की कृपा से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और समृद्धि आती है।
  5. मुक्ति प्राप्ति: मोक्ष की प्राप्ति और भगवान शिव के चरणों में स्थान प्राप्त होता है।
  6. विवाह में समस्याओं का समाधान: जिनके विवाह में बाधाएं आ रही हों, उन्हें भी इस स्तोत्र के पाठ से लाभ मिलता है।
  7. भय से मुक्ति: भूत-प्रेत, भय और अज्ञात आशंकाओं से मुक्ति मिलती है।
  8. शत्रुओं पर विजय: शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और उनके द्वारा उत्पन्न कष्टों का निवारण होता है।
  9. धार्मिक लाभ: धार्मिक कार्यों में रुचि बढ़ती है और जीवन में धार्मिकता का संचार होता है।
  10. धैर्य और साहस में वृद्धि: रुद्राष्टकम् का पाठ धैर्य और साहस को बढ़ाता है।
  11. आध्यात्मिक उन्नति: यह स्तोत्र आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत सहायक है।
  12. सुख-शांति की प्राप्ति: जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है।
  13. मनोकामना की पूर्ति: भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
  14. शिव की कृपा: भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है, जो जीवन के हर क्षेत्र में सुख-समृद्धि का कारण बनती है।
  15. परिवार की सुरक्षा: परिवार के सदस्यों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित होता है।

रुद्राष्टकम् का पाठ: विधि और नियम

पाठ की विधि:

  • दिन: रुद्राष्टकम् का पाठ सोमवार को प्रारंभ करना शुभ माना जाता है।
  • अवधि: इस स्तोत्र का पाठ 41 दिनों तक लगातार करना चाहिए। यह साधना का एक पूर्ण चक्र माना जाता है।
  • मुहूर्त: प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त (4:00 से 6:00 बजे के बीच) सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। इस समय पाठ करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

सावधानियाँ और नियम:

  1. शुद्धता का पालन: पाठ करने से पहले शारीरिक और मानसिक शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए।
  2. आसन का ध्यान: साधक को कुशासन या ऊनी आसन पर बैठकर पाठ करना चाहिए।
  3. पूजा सामग्री: पाठ से पहले भगवान शिव का पूजन करना चाहिए, जिसमें बिल्व पत्र, गंगाजल, धूप, दीप आदि का प्रयोग करें।
  4. गुप्त साधना: साधना को गुप्त रखना चाहिए, इसे सार्वजनिक रूप से प्रचारित नहीं करना चाहिए।
  5. संकल्प: पाठ के प्रारंभ में भगवान शिव के समक्ष संकल्प करना चाहिए कि आप यह साधना किस उद्देश्य से कर रहे हैं।
  6. नियमितता: पाठ को नियमित रूप से करना चाहिए और किसी भी परिस्थिति में इसे छोड़ना नहीं चाहिए।
  7. ध्यान और ध्यान की अवस्था: पाठ के बाद ध्यान अवश्य करना चाहिए, जिसमें भगवान शिव के स्वरूप का ध्यान करें।

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सावधानियाँ

  1. अनियमितता से बचें: पाठ के दौरान अनियमितता से बचें। यह साधना में विघ्न उत्पन्न कर सकता है।
  2. सामग्री का ध्यान: पूजा सामग्री शुद्ध और स्वच्छ होनी चाहिए। अशुद्ध सामग्री का प्रयोग न करें।
  3. मन का नियंत्रण: पाठ के दौरान मन को एकाग्र रखें और किसी भी तरह के विकारों से बचें।
  4. परिणाम की चिंता न करें: साधना के दौरान किसी भी परिणाम की चिंता न करें, भगवान शिव की कृपा से सभी कष्ट दूर होंगे।

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महत्वपूर्ण प्रश्न

  1. रुद्राष्टकम् का पाठ किस समय करना चाहिए?
    • प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त (4:00 से 6:00 बजे के बीच) सबसे उत्तम समय है।
  2. क्या महिलाएं भी रुद्राष्टकम् का पाठ कर सकती हैं?
    • हां, महिलाएं भी शुद्धता के साथ इस स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं।
  3. रुद्राष्टकम् का पाठ कितने दिनों तक करना चाहिए?
    • साधारणतः इसे 41 दिनों तक नियमित रूप से करना चाहिए।
  4. क्या रुद्राष्टकम् का पाठ किसी विशेष दिन शुरू करना चाहिए?
    • सोमवार को प्रारंभ करना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह भगवान शिव का प्रिय दिन है।
  5. रुद्राष्टकम् का पाठ किस उद्देश्य से किया जा सकता है?
    • शांति, समृद्धि, कष्ट निवारण, स्वास्थ्य लाभ, और मोक्ष की प्राप्ति के लिए यह पाठ किया जा सकता है।
  6. रुद्राष्टकम् का पाठ करते समय कौन-कौन से नियमों का पालन करना चाहिए?
    • शुद्धता, नियमितता, और गुप्त साधना के नियमों का पालन करना चाहिए।
  7. रुद्राष्टकम् का पाठ किस प्रकार की सामग्री से किया जाना चाहिए?
    • भगवान शिव की पूजा सामग्री, जैसे बिल्व पत्र, गंगाजल, धूप, दीप आदि का उपयोग किया जाना चाहिए।
  8. क्या रुद्राष्टकम् का पाठ करने के बाद ध्यान करना आवश्यक है?
    • हां, पाठ के बाद भगवान शिव के स्वरूप का ध्यान करना अत्यंत आवश्यक है।
  9. रुद्राष्टकम् का पाठ क्या केवल समस्या के समय किया जाना चाहिए?
    • नहीं, इसे नियमित रूप से करना चाहिए। इससे जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान स्वयं हो जाएगा।
  10. क्या रुद्राष्टकम् का पाठ करने से शत्रु बाधाएं दूर होती हैं?
    • हां, रुद्राष्टकम् का पाठ करने से शत्रु बाधाओं का निवारण होता है।
  11. क्या रुद्राष्टकम् का पाठ करने से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है?
    • हां, भगवान शिव की कृपा से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
  12. रुद्राष्टकम् का पाठ क्या केवल संस्कृत में करना चाहिए?
    • हां, इसे मूल संस्कृत में ही पाठ करना चाहिए, क्योंकि इसके मंत्रात्मक प्रभाव से ही लाभ प्राप्त होता है।

Shiva Tandav Strot for Peace & Security

Shiva Tandav Strot for Peace & Security

शिव तांडव स्तोत्र: शत्रुओं को भयभीत करने वाला

शत्रुओं मे भय उत्मन्न करने वाला शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना मनुष्य के लिये उपयोगी माना जाता है। यह स्तोत्र रावण द्वारा भगवान शिव की आराधना के समय रचा गया था, जिसमें भगवान शिव के तांडव नृत्य का वर्णन किया गया है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि आती है। यह स्तोत्र शिव भक्ति का प्रतीक है और इसके माध्यम से भगवान शिव की महिमा का गुणगान किया जाता है।

शिव तांडव स्तोत्र: संपूर्ण पाठ और हिंदी अर्थ

शिव तांडव स्तोत्र इस प्रकार है:

स्तोत्रम्:

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥ 1॥

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी-
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम॥ 2॥

धराधरेंद्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसंततिप्रमोदमानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥ 3॥

जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदान्धसिंधुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥ 4॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः॥ 5॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिङ्गभा-
निपीतपंचसायकं नमन्निलिंपनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तुनः॥ 6॥

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम॥ 7॥

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्-
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वह्नि॥ 8॥

स्फुरन्महाप्रभावलं तटित्तडित्कनोत्कटं
धरा धरेन्द्रनन्दिनी तनोतु कृत्तिसिन्धुरम्।
निशीथिनीमशीत्करं चशीतिकल्पनीरजं
विवृत्तचेतनं मनः शिवे तनोतु नः शिवम्॥ 9॥

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-
वलम्बिकण्ठकन्धरा ररुन्धमालिकाकुला।
स्फुरत्कुहूनिशीथिनी तमोनिवृत्तितस्त्रसन्-
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥ 10॥

सशङ्कराखिलात्मकं जगद्विडम्बितात्मकं
सदाशिवं भजे नहं प्रणम्य पादपङ्कजम्।
अनादिभारकम्बिनी निसर्गमुल्लसद्वने
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥ 11॥

शिवे ते शुध्दवक्त्रचन्द्रमण्डले भवन्मनः
समस्तदोषशान्तये तनोतु नः शिवं शिवम्।
जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी-
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि॥ 12॥

हिंदी अर्थ:

शिव तांडव स्तोत्र के श्लोकों में भगवान शिव की विभिन्न महिमा और उनके तांडव नृत्य का वर्णन किया गया है। इसके पहले श्लोक में शिव के जटाजूट से गिरती हुई गंगाजी का वर्णन किया गया है, जो उनके गले में लटके हुए सांपों के हार को धोती रहती है। शिव जी की वेशभूषा, उनके जटाओं में लहराती हुई गंगा, और उनके ललाट पर शोभायमान चन्द्रमा के साथ उनके तेजस्वी रूप का वर्णन करते हुए रावण शिव जी का गुणगान करता है। शिव जी की यह छवि अद्वितीय है और उनके इस रूप से समस्त भूत, पिशाच, और राक्षस भयभीत रहते हैं।

लाभ

  1. मन और मस्तिष्क की शांति: इस स्तोत्र का पाठ करने से मन और मस्तिष्क में शांति बनी रहती है और व्यक्ति को मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है।
  2. शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार: शिव तांडव स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति का शारीरिक स्वास्थ्य सुधरता है और उसे विभिन्न बीमारियों से मुक्ति मिलती है।
  3. धन और समृद्धि: यह स्तोत्र व्यक्ति को धन और समृद्धि प्राप्त करने में सहायक होता है।
  4. अशुभ घटनाओं से सुरक्षा: शिव तांडव स्तोत्र का पाठ व्यक्ति को जीवन की अशुभ घटनाओं से बचाने में सहायक होता है।
  5. सकारात्मक ऊर्जा का संचार: इस स्तोत्र का पाठ सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और जीवन में उत्साह और उमंग लाता है।
  6. भय और अवसाद से मुक्ति: इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के अंदर के भय और अवसाद को दूर करता है।
  7. आध्यात्मिक उन्नति: यह स्तोत्र व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है और उसे मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।
  8. परिवार में सुख-शांति: इस स्तोत्र का पाठ परिवार में सुख-शांति और प्रेम बनाए रखने में मदद करता है।
  9. विघ्नों का नाश: शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाले सभी विघ्नों और बाधाओं का नाश होता है।
  10. संतान प्राप्ति: यह स्तोत्र उन दंपत्तियों के लिए विशेष रूप से लाभकारी होता है जो संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं।
  11. शत्रुओं से रक्षा: यह स्तोत्र शत्रुओं से रक्षा करता है और व्यक्ति को शक्ति प्रदान करता है।
  12. स्वप्न दोष से मुक्ति: शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से स्वप्न दोष से मुक्ति मिलती है।
  13. संकल्प सिद्धि: इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के संकल्प पूरे होते हैं और उसकी इच्छाएँ पूरी होती हैं।

शिव तांडव स्तोत्र की विधि

1. पाठ का समय:
शिव तांडव स्तोत्र का पाठ सुबह और शाम के समय करना उत्तम माना जाता है।

2. पाठ की अवधि:
विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए इस स्तोत्र का पाठ 41 दिनों तक नियमित रूप से करें।

3. मुहूर्त:
इस स्तोत्र का पाठ किसी भी दिन कर सकते हैं, लेकिन सोमवार, महाशिवरात्रि, और अन्य शुभ अवसरों पर इसका विशेष लाभ होता है।

4. आसन:
पाठ के

समय कुश या ऊनी आसन का उपयोग करें।

5. पूजन सामग्री:
भगवान शिव की पूजा के लिए जल, बेलपत्र, धतूरा, आक के फूल, गाय का दूध, और धूप-दीप का उपयोग करें।

नियम

  1. साधना को गुप्त रखें:
    अपनी साधना और पूजा को गुप्त रखें।
  2. शुद्धता बनाए रखें:
    पूजा के समय शरीर, मन, और वातावरण की शुद्धता बनाए रखें।
  3. नियमितता:
    शिव तांडव स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करें।
  4. उत्तम आचरण:
    इस साधना के दौरान उत्तम आचरण का पालन करें और किसी भी प्रकार के नकारात्मक विचारों से दूर रहें।
  5. आसन का पालन:
    साधना के दौरान एक ही आसन का प्रयोग करें।

Kamakhya sadhana shivir

सावधानियाँ

  1. शुद्धता का ध्यान रखें:
    पूजा और साधना के दौरान शरीर और मन की शुद्धता का ध्यान रखें।
  2. सकारात्मक विचार:
    नकारात्मक विचारों और भावनाओं से दूर रहें।
  3. नियमितता बनाए रखें:
    इस स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए।
  4. पूजा सामग्री का ध्यान:
    सभी पूजा सामग्री को शुद्ध और पवित्र रखें।

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शिव तांडव स्तोत्र: सामान्य प्रश्न

  1. शिव तांडव स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए?
    • इसका पाठ सुबह और शाम के समय करना उत्तम होता है।
  2. क्या इसे किसी विशेष दिन करना चाहिए?
    • इसे किसी भी दिन कर सकते हैं, लेकिन सोमवार को विशेष लाभ मिलता है।
  3. क्या महिलाएं भी इसे कर सकती हैं?
    • हाँ, महिलाएं भी शिव तांडव स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं।
  4. क्या इसे घर पर कर सकते हैं?
    • हाँ, इसे घर पर किसी पवित्र स्थान पर कर सकते हैं।
  5. इसका पाठ कितनी बार करना चाहिए?
    • शिव तांडव स्तोत्र का पाठ दिन में एक बार करना पर्याप्त है।
  6. इसका पाठ कितने दिनों तक करना चाहिए?
    • इसे 41 दिनों तक नियमित रूप से करें।
  7. क्या इसे गुप्त रूप से करना चाहिए?
    • हाँ, साधना को गुप्त रखना उत्तम होता है।
  8. क्या इसे मंदिर में करना आवश्यक है?
    • नहीं, इसे घर पर भी किया जा सकता है।
  9. क्या पाठ करते समय विशेष मंत्र का जाप करना चाहिए?
    • पाठ के दौरान “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करना चाहिए।

Shri Ganesha Strot for wishes

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श्री गणेश स्तोत्र: विघ्न नष्ट होकर कार्य सिद्धी

श्री गणेश स्तोत्र का पाठ नियमित करने मनुष्य के जीवन मे सभी इच्छाये पूरी होती है। यह स्तोत्र भक्तों को भगवान गणेश की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद करता है, जिससे उनके जीवन की सभी बाधाएँ और विघ्न दूर होते हैं। इसका पाठ करने से व्यक्ति को मानसिक शांति, समृद्धि, और सफलता प्राप्त होती है।

गणेश स्तोत्र: संपूर्ण पाठ और हिंदी अर्थ

स्तोत्रम्:

प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थसिद्धये॥ 1॥

प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्।
तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्॥ 2॥

लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥ 3॥

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥ 4॥

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो॥ 5॥

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम्॥ 6॥

जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलम् लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः॥ 7॥

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत्।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः॥ 8॥

हिंदी अर्थ:

प्रणाम करते हुए, मैं भगवान गणेश का स्मरण करता हूँ, जो गौरी के पुत्र और विनायक हैं। उन्हें स्मरण करने से भक्तों को आयु, कामना और अर्थ की सिद्धि प्राप्त होती है।

पहले वक्रतुण्ड, फिर एकदन्त, तीसरे कृष्णपिंगाक्ष, और चौथे गजवक्त्र। पाँचवे लम्बोदर, छठे विकट, सातवें विघ्नराजेन्द्र, और आठवें धूम्रवर्ण। नौवें भालचन्द्र, दसवें विनायक, ग्यारहवें गणपति, और बारहवें गजानन।

इन बारह नामों का जो व्यक्ति तीनों संध्याओं में पाठ करता है, उसे कोई विघ्न भय नहीं होता और उसे सभी प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती है। विद्यार्थी को विद्या, धनार्थी को धन, पुत्रार्थी को पुत्र, और मोक्षार्थी को मोक्ष प्राप्त होता है। इस गणपति स्तोत्र का जप छह महीनों तक करने से फल की प्राप्ति होती है और एक वर्ष में सिद्धि मिल जाती है। यदि इसे आठ ब्राह्मणों को लिखकर समर्पित किया जाए, तो गणेश जी की कृपा से उसकी सभी विद्याएँ पूरी होती हैं।

लाभ

श्री गणेश स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। यहाँ 15 प्रमुख लाभों का वर्णन किया गया है:

  1. विघ्नों का नाश: भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है, और इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं।
  2. संकट से मुक्ति: यह स्तोत्र व्यक्ति को जीवन के सभी संकटों से बचाता है और उसे शांति और सुरक्षा प्रदान करता है।
  3. धन और समृद्धि: गणेश जी की कृपा से व्यक्ति को धन, समृद्धि, और भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।
  4. स्वास्थ्य लाभ: इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है और उसकी शारीरिक स्थिति में सुधार होता है।
  5. ज्ञान और बुद्धि का विकास: इस स्तोत्र का नियमित पाठ व्यक्ति के अंदर ज्ञान और बुद्धि का विकास करता है।
  6. परिवार में सुख-शांति: इस स्तोत्र का पाठ करने से परिवार में सुख-शांति और प्रेम बना रहता है।
  7. कार्य सिद्धि: इस स्तोत्र का पाठ करने से किसी भी कार्य की सिद्धि आसानी से होती है।
  8. शत्रुओं से रक्षा: गणेश जी की कृपा से शत्रुओं और विरोधियों से रक्षा होती है।
  9. सकारात्मक ऊर्जा का संचार: इस स्तोत्र का पाठ सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
  10. अद्वितीय कृपा: गणेश जी की अद्वितीय कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन के सभी क्षेत्रों में उन्नति होती है।
  11. भक्तिभाव का विकास: इस स्तोत्र का पाठ करने से भगवान गणेश के प्रति भक्तिभाव और श्रद्धा में वृद्धि होती है।
  12. संकल्प सिद्धि: इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति का संकल्प पूरा होता है।
  13. सुख-समृद्धि: व्यक्ति को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है और जीवन में संतुलन बना रहता है।
  14. आत्मविश्वास में वृद्धि: इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  15. संकटों से मुक्ति: इस स्तोत्र का पाठ संकटों और समस्याओं से मुक्ति दिलाने में सहायक है।

विधि

1. पाठ का समय:
श्री गणेश स्तोत्र का पाठ प्रातः काल में ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे के बीच) करना शुभ माना जाता है।

2. पाठ की अवधि:
विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए इस स्तोत्र का पाठ 41 दिनों तक लगातार करना चाहिए।

3. मुहूर्त:
इस स्तोत्र का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन इसे शुभ दिनों जैसे बुधवार, गणेश चतुर्थी, या किसी अन्य विशेष अवसर पर करना और भी लाभकारी होता है।

4. आसन:
पाठ करते समय सफेद या लाल रंग के आसन का उपयोग करना शुभ माना जाता है। यह आसन स्वच्छ और पवित्र होना चाहिए।

5. विधि:
पाठ से पहले भगवान गणेश का ध्यान करें और उनकी प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक और अगरबत्ती जलाएं। गणेश जी को फूल, फल, और मिठाई अर्पित करें। इसके बाद संकल्प लेकर पाठ प्रारंभ करें।

6. मंत्र जाप:
इस स्तोत्र के साथ “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र का जाप करें।

7. संकल्प:
पाठ के प्रारंभ में अपने संकल्प को स्पष्ट करें और भगवान गणेश से प्रार्थना करें कि वह आपके संकल्प को पूरा करें।

8. ध्यान:
पाठ करते समय मन को एकाग्र रखें और अन्य विचारों को मन में न आने दें।

नियम

  1. पूजा और साधना को गुप्त रखें:
    किसी भी साधना का प्रभाव तभी अधिक होता है जब इसे गुप्त रखा जाए। इसलिए इस स्तोत्र का पाठ भी गुप्त रूप से करना चाहिए।
  2. सात्विक आहार:
    पाठ के दौरान सात्विक आहार का पालन करना चाहिए।
  3. शुद्धता:
    पाठ करते समय मन, वचन, और शरीर की शुद्धता का ध्यान रखें। यह स्तोत्र तभी फलदायक होता है जब इसे शुद्ध मन और भावना से किया जाए।
  4. नियमितता:
    यदि आप 41 दिन की साधना कर रहे हैं तो इस दौरान पाठ को नियमित रूप से करें। किसी भी दिन इसे छोड़ने से बचें।
  5. स्वच्छता:
    पाठ करते समय स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पाठ के लिए एक विशेष स्थान का चयन करें जिसे स्वच्छ और पवित्र रखा गया हो।
  6. साधना का पालन:
    इस स्तोत्र का पाठ करते समय अन्य साधनाओं को भी यदि कर सकते हैं तो करें, जैसे गणेश जी का मंत्र जाप, ध्यान, या भजन गाना।

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सावधानियाँ

  1. सचेत रहना:
    इस स्तोत्र को करते समय मन को अन्य विचारों से मुक्त रखें और इसे पूर्ण एकाग्रता के साथ करें।
  2. अन्य कार्यों से बचें:
    पाठ के दौरान अन्य कार्यों में मन नहीं लगाएं और पाठ को ध्यानपूर्वक पूरा करें।
  3. नियमों का पालन:
    साधना के दौरान दिए गए नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। नियमों का उल्लंघन करने से साधना का प्रभाव कम हो सकता है।
  4. अपवित्रता से बचें:
    इस दौरान अपवित्र कार्यों, विचारों, और भोजन से बचें।
  5. पूजा सामग्री की शुद्धता:
    पूजा की सभी सामग्रियों की शुद्धता का ध्यान रखें।

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श्री गणेश स्तोत्र के सामान्य प्रश्न

  1. श्री गणेश स्तोत्र का पाठ किस समय करना चाहिए?
    • श्री गणेश स्तोत्र का पाठ प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में करना सबसे उत्तम माना जाता है।
  2. क्या इसे किसी भी दिन किया जा सकता है?
    • हाँ, इसे किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन बुधवार, गणेश चतुर्थी, और अन्य शुभ दिनों पर इसका विशेष लाभ होता है।
  3. क्या महिलाएं भी श्री गणेश स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं?
    • हाँ, महिलाएं भी इस स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं।
  4. क्या इसे घर पर कर सकते हैं?
    • हाँ, इसे घर पर किसी पवित्र स्थान पर कर सकते हैं।
  5. किस प्रकार के आसन का उपयोग करना चाहिए?
    • सफेद या लाल रंग के आसन का उपयोग करना शुभ माना जाता है।
  6. पाठ की अवधि क्या होनी चाहिए?
    • विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए इसे 41 दिनों तक नियमित रूप से करना चाहिए।
  7. इसका पाठ करने से क्या आर्थिक लाभ मिलता है?
    • हाँ, इस स्तोत्र का पाठ करने से आर्थिक समृद्धि और धन प्राप्ति होती है।
  8. क्या यह शत्रुओं से रक्षा करता है?
    • हाँ, यह स्तोत्र शत्रुओं से रक्षा करता है और सुरक्षा प्रदान करता है।
  9. क्या इस स्तोत्र का पाठ बच्चों के लिए किया जा सकता है?
    • हाँ, बच्चों की सुरक्षा और शुभकामना के लिए भी यह स्तोत्र प्रभावी है।
  10. क्या इसे गुप्त रूप से करना चाहिए?
    • हाँ, साधना को गुप्त रखना बेहतर होता है क्योंकि यह साधना की शक्ति को बढ़ाता है।
  11. क्या इसे मंदिर में करना आवश्यक है?
    • नहीं, इसे घर पर भी कर सकते हैं।

Shri Ganesha Kavach for Health Weakth & Prosperity

Shri Ganesha Kavach for Health Weakth & Prosperity

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने वाला श्री गणेश कवच

श्री गणेश कवच का पाठ नियमित करने से मनुष्य बिमारी व बाधाओं से दूर रहता है। यह भगवान गणेश की महिमा का एक अद्भुत स्त्रोत है जो उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाने में सहायक होता है। यह कवच एक शक्तिशाली स्त्रोत पाठ होता है जो भक्तों को जीवन की समस्याओं और बाधाओं से रक्षा करता है।

गणेश कवच: संपूर्ण पाठ और हिंदी अर्थ

ध्यान:
ॐ सिन्दूर-वर्णं द्विरदाभ-दाननं गोक्षीर-दुग्धोपमम।
धूम्रारि-मीशान-हेमाम्बरं सुमुन्दं सौम्यं गणेशं भजे॥

श्री गणेश कवचम्
विनायको वक्षसि मे सदा स्थिरो,
सिद्धि-प्रद: सिद्ध-गणाधिपोऽवतु।
ऊर्ध्वे लम्बो-धर एक-दन्तक:
सदा पायान्मूर्धनि मे गणाधिप:॥ 1॥

मस्तकं सदा पातु गजानन:
श्री-हस्तयो: पातु सुरेश्वरोवतु।
दिशं पातु सर्वां गिरिजात्मजोऽवतु।
त्रिनेत्रोऽवतु: पातु सिद्धि-विनायक:॥ 2॥

हेरम्ब: पातु सर्वविग्नानं,
लक्ष्मीपतिर्विघ्न-विनाशनोऽवतु।
वक्र-तुण्डोऽवतु पायान्मुखं सदा,
सर्व-कायं पातु भवद्र्वन्धन:॥ 3॥

सर्वाङ्गं पातु गजवक्त्रोऽवतु,
हेरम्बोऽवतु पायाच्च सर्वदा।
भक्तानामिष्ट: सिद्धि-विनायक:
विघ्नानि पान्तु सिद्धि-प्रदायक:॥ 4॥

फलश्रुति:
य इदं कवचं दिव्यं पठते भीम-वर्जितं।
विघ्नानि तस्य नश्यन्ति सिद्धिर्भवति सर्वदा॥ 5॥

हिंदी अर्थ:

ध्यान:

जो भगवान गणेश सिंदूर के रंग जैसे शरीर वाले हैं, जिनका मुख हाथी के समान है, जो गोमूत्र और दुग्ध जैसे रंग वाले हैं, जो अपने भुजाओं में शस्त्र धारण करते हैं, जो सौम्य और शांत हैं, उन्हें मैं नमन करता हूँ।

श्री गणेश कवचम्:

विनायक मेरे वक्षस्थल की सदा रक्षा करें, जो सिद्धियों के प्रदाता हैं, सिद्ध गणों के अधिपति हैं। जो ऊर्ध्वाधर हैं, जिनका एक दन्त है, वे मेरे मस्तक की सदा रक्षा करें। गणाधिपति मेरे मस्तक की सदा रक्षा करें। श्रीगणेश मेरे मस्तक की सदा रक्षा करें, और श्रीहस्तों की सदा रक्षा करें। सभी दिशाओं से रक्षा करें, गिरिजा के पुत्र सिद्धि-विनायक रक्षा करें।

लाभ

श्री गणेश कवच का नियमित पाठ करने से व्यक्ति को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। यहाँ 15 प्रमुख लाभों का वर्णन किया गया है:

  1. विघ्नों का नाश: भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है। इस कवच का पाठ करने से जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं और सफलता प्राप्त होती है।
  2. संकट से रक्षा: यह कवच व्यक्ति को जीवन के सभी संकटों से बचाता है और उसे शांति और सुरक्षा प्रदान करता है।
  3. धन और समृद्धि: गणेश जी की कृपा से व्यक्ति को धन, समृद्धि, और भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।
  4. स्वास्थ्य लाभ: इस कवच का पाठ करने से व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है और उसकी शारीरिक स्थिति में सुधार होता है।
  5. ज्ञान और बुद्धि का विकास: इस कवच का नियमित पाठ व्यक्ति के अंदर ज्ञान और बुद्धि का विकास करता है।
  6. परिवार में सुख-शांति: इस कवच का पाठ करने से परिवार में सुख-शांति और प्रेम बना रहता है।
  7. कार्य सिद्धि: इस कवच का पाठ करने से किसी भी कार्य की सिद्धि आसानी से होती है।
  8. शत्रुओं से रक्षा: गणेश जी की कृपा से शत्रुओं और विरोधियों से रक्षा होती है।
  9. सकारात्मक ऊर्जा का संचार: इस कवच का पाठ सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
  10. भक्तिभाव का विकास: इस कवच का पाठ करने से भगवान गणेश के प्रति भक्तिभाव और श्रद्धा में वृद्धि होती है।
  11. संकल्प सिद्धि: इस कवच का पाठ करने से व्यक्ति का संकल्प पूरा होता है।
  12. सुख-समृद्धि: व्यक्ति को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है और जीवन में संतुलन बना रहता है।
  13. संकटों से मुक्ति: इस कवच का पाठ संकटों और समस्याओं से मुक्ति दिलाने में सहायक है।

श्री गणेश कवच की विधि

1. पाठ का समय:
श्री गणेश कवच का पाठ प्रातः काल में ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे के बीच) करना शुभ माना जाता है।

2. पाठ की अवधि:
विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए इस कवच का पाठ 41 दिनों तक लगातार करना चाहिए।

3. मुहूर्त:
इस कवच का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन इसे शुभ दिनों जैसे बुधवार, गणेश चतुर्थी, या किसी अन्य विशेष अवसर पर करना और भी लाभकारी होता है।

4. आसन:
पाठ करते समय सफेद या लाल रंग के आसन का उपयोग करना शुभ माना जाता है। यह आसन स्वच्छ और पवित्र होना चाहिए।

5. विधि:
पाठ से पहले भगवान गणेश का ध्यान करें और उनकी प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक और अगरबत्ती जलाएं। गणेश जी को फूल, फल, और मिठाई अर्पित करें। इसके बाद संकल्प लेकर पाठ प्रारंभ करें।

6. मंत्र जाप:
इस कवच के साथ “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र का जाप करें।

7. संकल्प:
पाठ के प्रारंभ में अपने संकल्प को स्पष्ट करें और भगवान गणेश से प्रार्थना करें कि वह आपके संकल्प को पूरा करें।

8. ध्यान:
पाठ करते समय मन को एकाग्र रखें और अन्य विचारों को मन में न आने दें।

नियम

  1. पूजा और साधना को गुप्त रखें:
    किसी भी साधना का प्रभाव तभी अधिक होता है जब इसे गुप्त रखा जाए। इसलिए इस कवच का पाठ भी गुप्त रूप से करना चाहिए।
  2. सात्विक आहार:
    पाठ के दौरान सात्विक आहार का पालन करना चाहिए।
  3. शुद्धता:
    पाठ करते समय मन, वचन, और शरीर की शुद्धता का ध्यान रखें। यह कवच तभी फलदायक होता है जब इसे शुद्ध मन और भावना से किया जाए।
  4. नियमितता:
    यदि आप 41 दिन की साधना कर रहे हैं तो इस दौरान पाठ को नियमित रूप से करें। किसी भी दिन इसे छोड़ने से बचें।
  5. स्वच्छता:
    पाठ करते समय स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पाठ के लिए एक विशेष स्थान का चयन करें जिसे स्वच्छ और पवित्र रखा गया हो।
  6. साधना का पालन:
    इस कवच का पाठ करते समय अन्य साधनाओं को भी यदि कर सकते हैं तो करें, जैसे गणेश जी का मंत्र जाप, ध्यान, या भजन गाना।

Kamakhya sadhana shivir

सावधानियाँ

  1. सचेत रहना:
    इस कवच को करते समय मन को अन्य विचारों से मुक्त रखें और इसे पूर्ण एकाग्रता के साथ करें।
  2. अन्य कार्यों से बचें:
    पाठ के दौरान अन्य कार्यों में मन नहीं लगाएं और पाठ को ध्यानपूर्वक पूरा करें।
  3. नियमों का पालन:
    साधना के दौरान दिए गए नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। नियमों का उल्लंघन करने से साधना का प्रभाव कम हो सकता है।
  4. विशेष परिस्थितियों में विराम:
    यदि आप बीमार हैं या किसी विशेष परिस्थिति में हैं, तो पाठ को स्थगित कर सकते हैं। ऐसे समय में आप केवल भगवान गणेश का ध्यान कर सकते हैं।
  5. संयम:
    साधना के दौरान संयम का पालन करें, चाहे वह आहार, वाणी, या विचारों में हो। यह पाठ की पवित्रता को बनाए रखता है।

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श्री गणेश कवच के सामान्य प्रश्न

  1. श्री गणेश कवच कब करना चाहिए?
    • सुबह के समय ब्रह्म मुहूर्त में पाठ करना सबसे उत्तम माना जाता है।
  2. क्या इसे केवल बुधवार को ही करना चाहिए?
    • नहीं, इसे किसी भी दिन कर सकते हैं, लेकिन बुधवार और गणेश चतुर्थी का दिन विशेष माना जाता है।
  3. क्या इसे घर पर भी कर सकते हैं?
    • हाँ, इसे घर पर किसी पवित्र स्थान पर भी कर सकते हैं।
  4. क्या महिलाएं भी श्री गणेश कवच का पाठ कर सकती हैं?
    • हाँ, महिलाएं भी इस कवच का पाठ कर सकती हैं।
  5. पाठ करते समय किस आसन का उपयोग करना चाहिए?
    • सफेद या लाल रंग के आसन का उपयोग करना शुभ माना जाता है।
  6. क्या पाठ के दौरान उपवास रखना आवश्यक है?
    • नहीं, उपवास आवश्यक नहीं है, लेकिन सात्विक आहार का पालन करना चाहिए।
  7. इस कवच का नियमित रूप से कितने दिनों तक करना चाहिए?
    • विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए इसे 41 दिनों तक नियमित रूप से करना चाहिए।
  8. क्या श्री गणेश कवच का पाठ जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान करता है?
    • हाँ, यह कवच जीवन की सभी बाधाओं और समस्याओं का समाधान करता है।
  9. क्या इस कवच का पाठ व्यक्ति को आर्थिक समृद्धि दिलाता है?
    • हाँ, यह पाठ आर्थिक समृद्धि और धन प्राप्ति में सहायक होता है।
  10. क्या इस कवच का पाठ करने से मानसिक शांति मिलती है?
    • हाँ, यह पाठ मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त करने में सहायक होता है।
  11. क्या इस कवच को करने से स्वास्थ्य लाभ होता है?
    • हाँ, यह कवच शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।

Ganesha Pancharatna Strot for Success

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श्री गणेश पंचरत्न स्त्रोत: हर कार्य मे सफलता

श्री गणेश पंचरत्न स्त्रोत भगवान गणेश की महिमा का गुणगान करता है और उनकी कृपा प्राप्ति का एक सशक्त माध्यम है। यह स्त्रोत आदि शंकराचार्य द्वारा रचित है और इसे नियमित रूप से पढ़ने से व्यक्ति को भगवान गणेश का आशीर्वाद मिलता है। इस स्त्रोत का पाठ करने से व्यक्ति को ज्ञान, समृद्धि, और सफलता प्राप्त होती है। इस लेख में हम श्री गणेश पंचरत्न स्त्रोत का संपूर्ण पाठ, इसके लाभ, विधि, नियम, सावधानियाँ और अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों (FAQ) की चर्चा करेंगे।

संपूर्ण श्री गणेश पंचरत्न स्त्रोत

श्री गणेश पंचरत्न स्त्रोत इस प्रकार है:

1.मुदाकरात्त मोदकं सदा विमुक्तिसाधकम्,
कलाधरावतंसकं विलासलोकरञ्जकम्।
अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकम्,
नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम्॥

2.नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं,
नमत्सुरारि निर्जरं नताधिकापदुद्धरम्।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरम्,
महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम्॥

3.समस्तलोकशङ्करं निरस्तदैत्यकुञ्जरम्,
दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम्।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करम्,
मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम्॥

4.अकिञ्चनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिभाजनं,
पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम्।
प्रपञ्चनाशभीषणं धनञ्जयादिभूषणम्,
कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम्॥

5.नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजम्,
अचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम्।
ह्रदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनाम्,
तमेकदन्तमेकमेव चिन्तयामि सन्ततम्॥

फलश्रुति

महागणेशपञ्चरत्नमादरेण यः पठेत्,
समाहितस्य चिन्तयन् गणेश्वरं सदा हृदि।
स मोग्धतामधीशवारितां स्वराट् तुरीयमारुह्य चित्तमुक्तिसंस्क्रमं,
न हि ध्वंसते कदाचिदप्यहो परात्परं निरन्तरम्॥

लाभ

  1. विघ्नों का निवारण: भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है। इस स्त्रोत का पाठ करने से जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं और सफलता प्राप्त होती है।
  2. बुद्धि और ज्ञान: इस स्त्रोत का नियमित पाठ व्यक्ति के अंदर बुद्धि और ज्ञान का विकास करता है, जिससे वह अपने जीवन में सही निर्णय ले पाता है।
  3. धन और समृद्धि: गणेश जी की कृपा से व्यक्ति को धन, समृद्धि, और भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।
  4. शांति और संतोष: इस स्त्रोत का पाठ करने से मन में शांति और संतोष का भाव जागृत होता है, जिससे मानसिक तनाव दूर होता है।
  5. स्वास्थ्य लाभ: गणेश पंचरत्न स्त्रोत का पाठ करने से व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है और उसकी शारीरिक स्थिति में सुधार होता है।
  6. परिवार में सुख-शांति: इस स्त्रोत का पाठ करने से परिवार में सुख-शांति और प्रेम बना रहता है और सभी प्रकार के विवादों का निवारण होता है।
  7. कार्य सिद्धि: इस स्त्रोत का पाठ करने से किसी भी कार्य की सिद्धि आसानी से होती है। व्यक्ति जो भी कार्य करता है, उसमें उसे सफलता मिलती है।
  8. संकल्प सिद्धि: यदि आप किसी विशेष कार्य के लिए संकल्पित हैं, तो इस स्त्रोत का पाठ आपके संकल्प को पूरा करने में सहायक होता है।
  9. शत्रुओं से रक्षा: गणेश जी की कृपा से शत्रुओं और विरोधियों से रक्षा होती है और व्यक्ति को भयमुक्त जीवन का अनुभव होता है।
  10. बाधाओं का नाश: इस स्त्रोत का पाठ करने से जीवन की सभी बाधाओं का नाश होता है और व्यक्ति को सफलता प्राप्त होती है।
  11. सुख-समृद्धि: व्यक्ति को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है और जीवन में संतुलन बना रहता है।
  12. संकटों से मुक्ति: इस स्त्रोत का पाठ संकटों और समस्याओं से मुक्ति दिलाने में सहायक है। जब भी जीवन में किसी प्रकार का संकट आता है, इसका पाठ किया जा सकता है।

विधि

1. पाठ का समय:
गणेश पंचरत्न स्त्रोत का पाठ प्रातः काल में ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे के बीच) करना शुभ माना जाता है।

2. पाठ की अवधि:
विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए इस स्त्रोत का पाठ 41 दिनों तक लगातार करना चाहिए। अगर नियमित रूप से पाठ किया जाए, तो इसे रोज़ाना एक बार करना पर्याप्त होता है।

3. मुहूर्त:
इस स्त्रोत का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन इसे शुभ दिनों जैसे बुधवार, गणेश चतुर्थी, या किसी अन्य विशेष अवसर पर करना और भी लाभकारी होता है।

4. आसन:
पाठ करते समय सफेद या लाल रंग के आसन का उपयोग करना शुभ माना जाता है। यह आसन स्वच्छ और पवित्र होना चाहिए।

5. विधि:
पाठ से पहले भगवान गणेश का ध्यान करें और उनकी प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक और अगरबत्ती जलाएं। गणेश जी को फूल, फल, और मिठाई अर्पित करें। इसके बाद संकल्प लेकर पाठ प्रारंभ करें।

6. मंत्र जाप:
इस स्त्रोत के साथ “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र का जाप करें। इससे पाठ का प्रभाव और भी अधिक हो जाता है।

7. संकल्प:
पाठ के प्रारंभ में अपने संकल्प को स्पष्ट करें और भगवान गणेश से प्रार्थना करें कि वह आपके संकल्प को पूरा करें।

8. ध्यान:
पाठ करते समय मन को एकाग्र रखें और अन्य विचारों को मन में न आने दें। पाठ के समय ध्यान केवल भगवान गणेश पर केंद्रित रखें।

नियम

  1. पूजा और साधना को गुप्त रखें:
    किसी भी साधना का प्रभाव तभी अधिक होता है जब इसे गुप्त रखा जाए। इसलिए इस स्त्रोत का पाठ भी गुप्त रूप से करना चाहिए।
  2. सात्विक आहार:
    पाठ के दौरान सात्विक आहार का पालन करना चाहिए। तामसिक और राजसिक आहार से बचें और शुद्ध, सात्विक भोजन ग्रहण करें।
  3. शुद्धता:
    पाठ करते समय मन, वचन, और शरीर की शुद्धता का ध्यान रखें। यह पाठ तभी फलदायक होता है जब इसे शुद्ध मन और भावना से किया जाए।
  4. नियमितता:
    यदि आप 41 दिन की साधना कर रहे हैं तो इस दौरान पाठ को नियमित रूप से करें। किसी भी दिन इसे छोड़ने से बचें।
  5. स्वच्छता:
    पाठ करते समय स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पाठ के लिए एक विशेष स्थान का चयन करें जिसे स्वच्छ और पवित्र रखा गया हो।
  6. साधना का पालन:
    इस स्त्रोत का पाठ करते समय अन्य साधनाओं को भी यदि कर सकते हैं तो करें, जैसे गणेश जी का मंत्र जाप, ध्यान, या भजन गाना।

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सावधानियाँ

  1. सचेत रहना:
    इस स्त्रोत को करते समय मन को अन्य विचारों से मुक्त रखें और इसे पूर्ण एकाग्रता के साथ करें।
  2. अन्य कार्यों से बचें:
    पाठ के दौरान अन्य कार्यों में मन नहीं लगाएं और पाठ को ध्यानपूर्वक पूरा करें।
  3. नियमों का पालन:
    साधना के दौरान दिए गए नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। नियमों का उल्लंघन करने से साधना का प्रभाव कम हो सकता है।
  4. विशेष परिस्थितियों में विराम:
    यदि आप बीमार हैं या किसी विशेष परिस्थिति में हैं, तो पाठ को स्थगित कर सकते हैं। ऐसे समय में आप केवल भगवान गणेश का ध्यान कर सकते हैं।
  5. संयम:
    साधना के दौरान संयम का पालन करें, चाहे वह आहार, वाणी, या विचारों में हो। यह पाठ की पवित्रता को बनाए रखता है।

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श्री गणेश पंचरत्न स्त्रोत के सामान्य प्रश्न

  1. श्री गणेश पंचरत्न स्त्रोत कब करना चाहिए?
    • सुबह के समय ब्रह्म मुहूर्त में पाठ करना सबसे उत्तम माना जाता है।
  2. क्या इसे केवल बुधवार को ही करना चाहिए?
    • नहीं, इसे किसी भी दिन कर सकते हैं, लेकिन बुधवार और गणेश चतुर्थी का दिन विशेष माना जाता है।
  3. क्या इसे घर पर भी कर सकते हैं?
    • हाँ, इसे घर पर किसी पवित्र स्थान पर भी कर सकते हैं।
  4. क्या महिलाएं भी श्री गणेश पंचरत्न स्त्रोत का पाठ कर सकती हैं?
    • हाँ, महिलाएं भी इस स्त्रोत को कर सकती हैं।
  5. पाठ करते समय किस आसन का उपयोग करना चाहिए?
    • सफेद या लाल रंग के आसन का उपयोग करना शुभ माना जाता है।
  6. क्या पाठ के दौरान उपवास रखना आवश्यक है?
    • नहीं, उपवास आवश्यक नहीं है, लेकिन सात्विक आहार का पालन करना चाहिए।
  7. इस स्त्रोत का नियमित रूप से कितने दिनों तक करना चाहिए?
    • विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए इसे 41 दिनों तक नियमित रूप से करना चाहिए।
  8. क्या श्री गणेश पंचरत्न स्त्रोत का पाठ जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान करता है?
    • हाँ, यह स्त्रोत जीवन की सभी बाधाओं और समस्याओं का समाधान करता है।
  9. क्या इस स्त्रोत का पाठ व्यक्ति को आर्थिक समृद्धि दिलाता है?
    • हाँ, यह पाठ आर्थिक समृद्धि और धन प्राप्ति में सहायक होता है।
  10. क्या इस स्त्रोत का पाठ करने से मानसिक शांति मिलती है?
    • हाँ, यह स्त्रोत मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त करने में सहायक होता है।
  11. क्या इस स्त्रोत को करने से स्वास्थ्य लाभ होता है?
    • हाँ, यह स्त्रोत शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।

Ganapati Atharvaseerasham Path for Wealth & Prosperity

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गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ जीवन बदल देगा

हर कार्य को को सफल बनाने वाला गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करना हर मनुष्य के लिये महत्वपूर्ण माना जाता है। यह एक पवित्र वैदिक स्तोत्र है जो भगवान गणेश की महिमा का वर्णन करता है। इस पाठ का नियमित रूप से जाप करने से व्यक्ति को जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त होती है और सभी बाधाओं का निवारण होता है।

संपूर्ण गणपति अथर्वशीर्ष पाठ

गणपति अथर्वशीर्ष १ से ७ श्लोक

ॐ नमस्ते गणपतये ।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि ।
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि ।
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि ।
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि ।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि ।
त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम् ॥ 1 ॥
ऋतं वच्मि ।
सत्यं वच्मि ॥ 2 ॥
अव त्वं माम् ।
अव वक्तारम् ।
अव श्रोतारम् ।
अव दातारम् ।
अव धातारम् ।
अवानूचानमव शिष्यम् ॥ 3 ॥
अव पाश्चातात् ।
अव पुरस्तात् ।
अवोत्तरात्तात् ।
अव दक्षिणात्तात् ।
अव चोध्वात्तात् ।
अवाधरतात् ।
सर्वतो मां पाहि पाहि समन्तात् ॥ 4 ॥
त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मयः ।
त्वमानन्दमयस्त्वं ब्रह्ममयः ।
त्वं सच्चिदानन्दाद्वितीयोऽसि ।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि ।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ॥ 5 ॥
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते ।
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति ।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति ।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रविशति ॥ 6 ॥
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः ।
त्वं चत्वारि वाक्पदानि ॥ 7 ॥
त्वं गुणत्रयातीतः ।
त्वं अवस्थात्रयातीतः ।
त्वं देहत्रयातीतः ।
त्वं कालत्रयातीतः ।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम् ।
त्वं शक्तित्रयात्मकः ।
त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम् ।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वमिन्द्रस्त्वमग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चन्द्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुवःस्वरोम् ॥ 8 ॥
गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादींस्तदनन्तरम् ।
अनुस्वारः परतरः ।
अर्धेन्दुलसितम् ।
तारेण ऋद्धम् ।
एतत्तव मनुस्वरूपम् ।
गकारः पूर्वरूपम् ।
अकारो मध्यरूपम् ।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपम् ।
बिन्दुरुत्तररूपम् ।
नादः संधानम् ।
संपट्टिसंहिताः सैषा गणेशविद्या ॥ 9 ॥
गणक ऋषिः ।
निचृद्गायत्री छन्दः ।
गणपतिर्देवता ।
ॐ गं गणपतये नमः ॥ 10 ॥
एकदन्ताय विद्महे ।
वक्रतुण्डाय धीमहि ।
तन्नोदन्तिः प्रचोदयात् ॥ 11 ॥
एकदन्तं चतुर्हस्तं पाशमङ्कुशधारिणम् ।
रदं च वरदं हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम् ॥
रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम् ।
रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गं रक्तपुष्पैः सुपूजितम् ॥
भक्तानुकम्पिनं देवं जगत्कारणमच्युतम् ।
आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्राकृतेः पुरुषात्परम् ॥ 12 ॥
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः ॥ 13 ॥
न मोक्षगामी न मोक्षगामी ॥ 14 ॥
स विध्नं न स विध्नं न करिष्यति ॥ 15 ॥
विनायकव्रतम् ॥ 16 ॥
एतदथर्वशीर्षं यः पठति स ब्रह्मभूयाय कल्पते स सर्वं बाधिते निर्बाधते स सर्वं बध्नाति ॥ 17 ॥
इदं अथर्वशीर्षं शिष्याणां शिष्याणां ॥ 18 ॥
संग्रह्यते संगृह्यते ॥ 19 ॥
एवं विद्वान् यदिच्छति तत्स वै यत्स वै ॥
इदं अथर्वशीर्षं माला मन्त्रं प्रजापतिं परं प्राप्नोति ॥ 20 ॥
न मोक्षगामी स मोक्षगामी ॥ 21 ॥
सर्वं जगदिदं त्वत्तः प्रभवते स कृत्स्नं स्वेन त्वया एव नित्यं स विसर्ज्यते ॥ 22 ॥
सकृत्संकीर्त्यमानम् सर्वदुःखोपशमनम् ॥
सर्वविघ्नानि यस्मात् स शिवो भवति ॥ 23 ॥
एवं स्तुतो महागणपतिः सदा सुखी भुक्तिमुक्तिप्रदः ॥ 24 ॥

ॐ नमः इतिच ॥ 25 ॥

लाभ

गणपति अथर्वशीर्ष का नियमित पाठ जीवन के सभी क्षेत्रों में समृद्धि और सफलता दिलाने में सहायक होता है। इसके कुछ महत्वपूर्ण लाभ इस प्रकार हैं:

  1. बाधाओं का निवारण: यह पाठ सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करता है और जीवन को सरल और सुखमय बनाता है।
  2. संकटों से मुक्ति: यह पाठ संकटों और समस्याओं से मुक्ति दिलाने में सहायक है। जब भी जीवन में किसी प्रकार का संकट आता है, इसका पाठ किया जा सकता है।
  3. धन और समृद्धि: गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ व्यक्ति को धन और समृद्धि प्रदान करता है। इसके जाप से आर्थिक समस्याओं का समाधान होता है।
  4. शत्रुओं से रक्षा: इस पाठ के प्रभाव से व्यक्ति को शत्रुओं और विरोधियों से रक्षा मिलती है।
  5. विद्या और बुद्धि की प्राप्ति: विद्यार्थी इस पाठ के माध्यम से विद्या और बुद्धि की प्राप्ति कर सकते हैं। यह पाठ ज्ञान और बुद्धिमत्ता में वृद्धि करता है।
  6. स्वास्थ्य लाभ: यह पाठ स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को दूर करता है और व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ बनाता है।
  7. परिवार में सुख-शांति: इस पाठ का जाप परिवार में सुख, शांति, और समृद्धि लाने में सहायक होता है।
  8. जीवन में सफलता: गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता दिलाने में सहायक होता है।
  9. संकल्प सिद्धि: यदि आप किसी विशेष कार्य के लिए संकल्पित हैं, तो यह पाठ आपके संकल्प को पूर्ण करने में सहायक होता है।
  10. कुंडली दोषों का निवारण: यह पाठ कुंडली के दोषों को दूर करता है और जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान करता है।
  11. संतान सुख: जिन लोगों को संतान सुख की प्राप्ति नहीं हो रही है, उनके लिए यह पाठ अत्यंत लाभकारी माना जाता है।

विधि

गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण विधियाँ और नियम हैं जिन्हें पालन करना चाहिए:

  1. पाठ का समय: इस पाठ का सबसे अच्छा समय सुबह ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे के बीच) माना जाता है। इस समय वातावरण शुद्ध और शांत होता है, जिससे पाठ का प्रभाव अधिक होता है।
  2. पाठ की अवधि: विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए इस पाठ को लगातार 41 दिनों तक करना चाहिए। यदि आप इसे नियमित रूप से करते हैं, तो इसे रोज़ाना एक बार करना पर्याप्त है।
  3. मुहूर्त: यदि संभव हो तो गणेश चतुर्थी, बुधवार, या किसी शुभ दिन पर इस पाठ को प्रारंभ करना चाहिए।
  4. आसन: पाठ करते समय सफेद या लाल रंग के आसन का उपयोग करना शुभ माना जाता है। यह आसन स्वच्छ और पवित्र होना चाहिए।
  5. विधि: पाठ से पहले भगवान गणेश का ध्यान करें और उनकी प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक और अगरबत्ती जलाएं। गणेश जी को फूल, फल, और मिठाई अर्पित करें। इसके बाद संकल्प लेकर पाठ प्रारंभ करें।
  6. मंत्र जाप: यदि संभव हो तो पाठ के साथ “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र का जाप करें। इससे पाठ का प्रभाव और भी अधिक हो जाता है।
  7. संकल्प: पाठ के प्रारंभ में अपने संकल्प को स्पष्ट करें और भगवान गणेश से प्रार्थना करें कि वह आपके संकल्प को पूरा करें।
  8. विशेष ध्यान: पाठ के दौरान मन को एकाग्र रखें और अन्य विचारों को मन में न आने दें। पाठ के समय ध्यान केवल भगवान गणेश पर केंद्रित रखें।

नियम

  1. पूजा और साधना को गुप्त रखें: किसी भी साधना का प्रभाव तभी अधिक होता है जब इसे गुप्त रखा जाए। इसलिए गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ भी गुप्त रूप से करना चाहिए।
  2. सात्विक आहार: पाठ के दौरान सात्विक आहार का पालन करना चाहिए। तामसिक और राजसिक आहार से बचें और शुद्ध, सात्विक भोजन ग्रहण करें।
  3. शुद्धता: पाठ करते समय मन, वचन, और शरीर की शुद्धता का ध्यान रखें। यह पाठ तभी फलदायक होता है जब इसे शुद्ध मन और भावना से किया जाए।
  4. नियमितता: यदि आप 41 दिन की साधना कर रहे हैं तो इस दौरान पाठ को नियमित रूप से करें। किसी भी दिन इसे छोड़ने से बचें।
  5. स्वच्छता: पाठ करते समय स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पाठ के लिए एक विशेष स्थान का चयन करें जिसे स्वच्छ और पवित्र रखा गया हो।
  6. साधना का पालन: गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करते समय अन्य साधनाओं को भी यदि कर सकते हैं तो करें, जैसे गणेश जी का मंत्र जाप, ध्यान, या भजन गाना।

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सावधानियाँ

  1. सचेत रहना: इस पाठ को करते समय मन को अन्य विचारों से मुक्त रखें और इसे पूर्ण एकाग्रता के साथ करें।
  2. अन्य कार्यों से बचें: पाठ के दौरान अन्य कार्यों में मन नहीं लगाएं और पाठ को ध्यानपूर्वक पूरा करें।
  3. नियमों का पालन: साधना के दौरान दिए गए नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। नियमों का उल्लंघन करने से साधना का प्रभाव कम हो सकता है।
  4. विशेष परिस्थितियों में विराम: यदि आप बीमार हैं या किसी विशेष परिस्थिति में हैं, तो पाठ को स्थगित कर सकते हैं। ऐसे समय में आप केवल भगवान गणेश का ध्यान कर सकते हैं।
  5. संयम: साधना के दौरान संयम का पालन करें, चाहे वह आहार, वाणी, या विचारों में हो। यह पाठ की पवित्रता को बनाए रखता है।

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गणपति अथर्वशीर्ष पाठ के सामान्य प्रश्न

  1. गणपति अथर्वशीर्ष पाठ कब करना चाहिए?
    • सुबह के समय ब्रह्म मुहूर्त में पाठ करना सबसे उत्तम माना जाता है।
  2. क्या इसे केवल बुधवार को ही करना चाहिए?
    • नहीं, इसे किसी भी दिन कर सकते हैं, लेकिन बुधवार और गणेश चतुर्थी का दिन विशेष माना जाता है।
  3. क्या इसे घर पर भी कर सकते हैं?
    • हाँ, इसे घर पर किसी पवित्र स्थान पर भी कर सकते हैं।
  4. क्या महिलाएं भी गणपति अथर्वशीर्ष पाठ कर सकती हैं?
    • हाँ, महिलाएं भी इस पाठ को कर सकती हैं।
  5. पाठ करते समय किस आसन का उपयोग करना चाहिए?
    • सफेद या लाल रंग के आसन का उपयोग करना शुभ माना जाता है।
  6. क्या पाठ के दौरान उपवास रखना आवश्यक है?
    • नहीं, उपवास आवश्यक नहीं है, लेकिन सात्विक आहार का पालन करना चाहिए।
  7. इस पाठ का नियमित रूप से कितने दिनों तक करना चाहिए?
    • विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए इसे 41 दिनों तक नियमित रूप से करना चाहिए।
  8. क्या गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान करता है?
    • हाँ, यह पाठ जीवन की सभी बाधाओं और समस्याओं का समाधान करता है।
  9. क्या इस पाठ का जाप व्यक्ति को आर्थिक समृद्धि दिलाता है?
    • हाँ, यह पाठ आर्थिक समृद्धि और धन प्राप्ति में सहायक होता है।
  10. क्या इस पाठ का पाठ करने से मानसिक शांति मिलती है?
    • हाँ, यह पाठ मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त करने में सहायक होता है।
  11. क्या इस पाठ को करने से स्वास्थ्य लाभ होता है?
    • हाँ, यह पाठ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।

Narsingh Sabar Mantra for Strong Protection

Narsingh Sabar Mantra for Strong Protection

नरसिंह साबर मंत्र: सुरक्षा व मनोकामना पूर्ण करने वाला

शत्रु से बचाने वाला नरसिंह साबर मंत्र, भगवान नरसिंह की आराधना के लिए एक शक्तिशाली मंत्र है। नरसिंह भगवान विष्णु का एक उग्र और साहसी रूप हैं, जो भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए अवतरित हुए थे। नरसिंह भगवान का रूप भक्तों की रक्षा और उनके शत्रुओं का विनाश करने के लिए जाना जाता है। इस मंत्र के जप से साधक को भगवान नरसिंह की कृपा प्राप्त होती है और उसे जीवन की कठिनाइयों और बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

नरसिंह साबर मंत्र का संपूर्ण अर्थ

॥ॐ क्ष्रौं नरसिंहाय, अस्त्र शस्त्र मारे भुज दंडा, अग्नि दाह कियो प्रचंडा, जो नर धरो तुमरो ध्याना, ताको होय सदा कल्याना, ॐ क्ष्रौं नमः॥

  • ॐ: ब्रह्मांड की आदिशक्ति का प्रतीक, जो सभी ध्वनियों का स्रोत है और सभी मंत्रों का प्रारंभ होता है।
  • क्ष्रौं: यह नरसिंह भगवान के बीज मंत्र का स्वरूप है, जो उनके उग्र और शक्तिशाली रूप का प्रतिनिधित्व करता है।
  • नरसिंहाय: नरसिंह भगवान का आह्वान, जो भगवान विष्णु के उग्र अवतार हैं। वे आधे शेर और आधे मानव के रूप में प्रकट होते हैं और धर्म की रक्षा करते हैं।
  • अस्त्र शस्त्र मारे भुज दंडा: इसका अर्थ है कि नरसिंह भगवान अपने भुजाओं से अस्त्र-शस्त्र चलाकर शत्रुओं का विनाश करते हैं। उनकी भुजाओं की शक्ति अद्वितीय है।
  • अग्नि दाह कियो प्रचंडा: नरसिंह भगवान की शक्ति इतनी प्रचंड है कि वह अग्नि के समान दाहक है, जो सभी प्रकार की बुराइयों और असुरों का नाश कर देती है।
  • जो नर धरो तुमरो ध्याना: जो भी व्यक्ति आपके (नरसिंह भगवान के) ध्यान में लीन होता है, वह आपकी कृपा का पात्र बनता है।
  • ताको होय सदा कल्याना: ऐसा व्यक्ति सदैव कल्याण को प्राप्त करता है। उसके जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।
  • ॐ क्ष्रौं नमः: इस मंत्र का समापन फिर से ॐ क्ष्रौं के साथ होता है, जिसमें भगवान नरसिंह के प्रति समर्पण और सम्मान व्यक्त किया गया है।

इस मंत्र का सार यह है कि भगवान नरसिंह की आराधना और ध्यान करने से साधक के जीवन में सभी प्रकार की कठिनाइयों और शत्रुओं का नाश होता है। यह मंत्र साधक को भय, दुख और कष्टों से मुक्त करता है, और उसे सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करता है। मंत्र की शक्ति साधक के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है और उसे हर प्रकार के संकट से उबारती है।

नरसिंह साबर मंत्र के लाभ

इस मंत्र के नियमित जप से साधक को निम्नलिखित प्रमुख लाभ प्राप्त होते हैं:

  1. रक्षा: यह मंत्र साधक को हर प्रकार की नकारात्मक शक्तियों और शत्रुओं से रक्षा प्रदान करता है।
  2. संकट से मुक्ति: जीवन के किसी भी प्रकार के संकट से मुक्ति पाने के लिए यह मंत्र अत्यंत प्रभावी है।
  3. आध्यात्मिक उन्नति: इस मंत्र के जप से साधक की आध्यात्मिक उन्नति होती है और उसे भगवान की कृपा प्राप्त होती है।
  4. धन और समृद्धि: इस मंत्र के जप से साधक के जीवन में धन और समृद्धि का प्रवाह होता है।
  5. स्वास्थ्य लाभ: यह मंत्र साधक को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार देता है।
  6. शत्रु नाश: इस मंत्र के प्रभाव से शत्रु शांत हो जाते हैं और साधक के जीवन में बाधाएं समाप्त हो जाती हैं।
  7. सकारात्मकता: इस मंत्र का जप करने से साधक के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  8. मंगल कार्य में सफलता: यह मंत्र किसी भी मंगल कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि में सफलता दिलाता है।
  9. कुंडली दोष निवारण: यह मंत्र कुंडली में मौजूद दोषों को शांत करता है और ग्रहों के अशुभ प्रभावों को कम करता है।
  10. आध्यात्मिक जागरूकता: यह मंत्र साधक के मन को शांत करता है और उसे आध्यात्मिक जागरूकता प्रदान करता है।
  11. दुर्घटना से रक्षा: यह मंत्र दुर्घटनाओं से बचाव में सहायक होता है।
  12. संकल्प सिद्धि: साधक के मनोकामनाओं को पूर्ण करने में यह मंत्र सहायक होता है।
  13. सुख-शांति: यह मंत्र घर में सुख-शांति और समृद्धि लाता है।
  14. धैर्य और साहस: इस मंत्र के जप से साधक के भीतर धैर्य और साहस का संचार होता है।
  15. न्याय की प्राप्ति: यह मंत्र साधक को न्याय दिलाने और उसे उचित मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

नरसिंह साबर मंत्र विधि

इस मंत्र का जप एक विशेष विधि से किया जाना चाहिए ताकि उसका अधिकतम लाभ प्राप्त हो सके।

मंत्र जप का दिन, अवधि और मुहूर्त

  • दिन: इस मंत्र का जप मंगलवार, शनिवार या नरसिंह जयंती के दिन करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
  • अवधि: मंत्र जप को ११ से २१ दिनों तक नियमित रूप से करना चाहिए।
  • मुहूर्त: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह ४ से ६ बजे) या रात का पहला पहर (८ से १० बजे) मंत्र जप के लिए सबसे शुभ समय होता है।

मंत्र जप सामग्री

  • एक रुद्राक्ष या स्फटिक माला
  • पीले या सफेद वस्त्र
  • दीया, धूप, और अगरबत्ती
  • पीले फूल
  • नैवेद्य (मिठाई, फल आदि)
  • पीला चंदन और कुमकुम
  • ताम्बे का लोटा (जल से भरा हुआ)

नरसिंह साबर मंत्र जप संख्या

इस मंत्र का जप ११ माला (एक माला में १०८ मोती होते हैं) यानी ११८८ बार करना चाहिए। इस संख्या को प्रतिदिन जप करना चाहिए, और इसे ११ से २१ दिन तक जारी रखना चाहिए।

नियम

मंत्र जप करते समय कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है ताकि मंत्र का प्रभाव और भी शक्तिशाली हो सके:

  1. उम्र: इस मंत्र का जप २० वर्ष से ऊपर के स्त्री-पुरुष कर सकते हैं।
  2. वस्त्र: जप के समय नीले या काले रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए। पीले या सफेद वस्त्र पहनना शुभ होता है।
  3. धूम्रपान और मासाहार: मंत्र जप के दौरान धूम्रपान, शराब, पान, और मासाहार का सेवन नहीं करना चाहिए।
  4. ब्रह्मचर्य: मंत्र जप के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है।
  5. स्नान: जप से पहले स्नान करना और शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए।
  6. स्थान: जप के लिए शांत और पवित्र स्थान का चयन करना चाहिए।
  7. आसन: कुश या पीले कपड़े के आसन पर बैठकर जप करना चाहिए।
  8. आहार: मंत्र जप के दौरान हल्का और सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए।
  9. संकल्प: जप से पहले संकल्प लेकर भगवान नरसिंह से अपनी मनोकामना व्यक्त करें।
  10. नियमितता: जप में नियमितता बनाए रखें और प्रतिदिन एक ही समय पर जप करें।
  11. वाणी की शुद्धता: मंत्र जप के समय वाणी की शुद्धता बनाए रखें और अपशब्दों का प्रयोग न करें।
  12. ध्यान: मंत्र जप के साथ भगवान नरसिंह का ध्यान करें।
  13. मन का नियंत्रण: जप के समय मन को एकाग्र रखें और इसे भटकने न दें।
  14. अभिमान: मंत्र के प्रभाव से अहंकार से बचें और विनम्रता बनाए रखें।
  15. गुरु का आशीर्वाद: यदि संभव हो, तो गुरु से आशीर्वाद लेकर मंत्र जप शुरू करें।

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सावधानियां

मंत्र जप करते समय कुछ सावधानियों का पालन करना चाहिए ताकि मंत्र का अधिकतम लाभ प्राप्त हो सके:

  1. आत्म-विश्वास: मंत्र जप करते समय आत्म-विश्वास बनाए रखें, लेकिन अति-आत्मविश्वास से बचें।
  2. ध्यान: जप के दौरान किसी अन्य कार्य में मन न लगाएं।
  3. मंत्र की शक्ति: मंत्र की शक्ति को समझें और इसका सम्मान करें।
  4. समय: जप के लिए प्रतिदिन एक ही समय का चयन करें।
  5. वातावरण: जप के समय का वातावरण शांत और पवित्र होना चाहिए।
  6. विचार: नकारात्मक विचारों से बचें और सकारात्मक सोच बनाए रखें।
  7. धैर्य: मंत्र जप के परिणाम में समय लग सकता है, इसलिए धैर्य बनाए रखें।
  8. विश्रांति: जप के बाद ध्यान और विश्रांति करें।
  9. संपर्क: जप के दौरान किसी से बात न करें।
  10. भक्ति: मंत्र जप को श्रद्धा और भक्ति के साथ करें।
  11. संतोष: मंत्र जप के बाद जो भी फल प्राप्त हो, उसे संतोष के साथ स्वीकार करें।
  12. शुद्धता: मंत्र जप के दौरान शरीर और मन की शुद्धता बनाए रखें।
  13. वाणी: जप के दौरान मधुर और संयमित वाणी का प्रयोग करें।
  14. उत्तेजना से बचें: मंत्र जप के दौरान उत्तेजना और क्रोध से बचें।
  15. विनम्रता: मंत्र जप के बाद भी विनम्र और संयमित रहें।

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नरसिंह साबर मंत्र से संबंधित प्रश्न-उत्तर

  1. इस मंत्र का जप कब करना चाहिए? इस मंत्र का जप मंगलवार, शनिवार या नरसिंह जयंती के दिन करना शुभ होता है।
  2. मंत्र जप का समय कौन सा होता है? ब्रह्म मुहूर्त (सुबह ४ से ६ बजे) या रात का पहला पहर (८ से १० बजे)।
  3. क्या इस मंत्र को स्त्री और पुरुष दोनों जप सकते हैं? हां, यह मंत्र स्त्री और पुरुष दोनों के लिए उपयुक्त है।
  4. मंत्र जप के लिए किस प्रकार के वस्त्र पहनने चाहिए? पीले या सफेद वस्त्र पहनने चाहिए।
  5. मंत्र जप के दौरान क्या कोई आहार प्रतिबंध होता है? हां, मंत्र जप के दौरान सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए और मासाहार से बचना चाहिए।
  6. क्या इस मंत्र का जप आर्थिक स्थिरता प्रदान करता है? हां, यह मंत्र आर्थिक स्थिरता और धन की प्राप्ति में सहायक होता है।
  7. क्या मंत्र जप से नौकरी में प्रमोशन मिल सकता है? हां, मंत्र जप से नौकरी में प्रमोशन और तरक्की मिलती है।
  8. मंत्र जप का सबसे शुभ दिन कौन सा है? मंगलवार या शनिवार।
  9. क्या इस मंत्र का जप व्यवसाय में लाभ दिला सकता है? हां, मंत्र जप व्यवसाय में लाभ और सफलता दिलाता है।
  10. क्या इस मंत्र का जप घर में सुख-शांति लाता है? हां, यह मंत्र घर में सुख-शांति और समृद्धि लाता है।
  11. मंत्र जप के लिए कौन सी माला का प्रयोग करना चाहिए? स्फटिक या रुद्राक्ष माला का प्रयोग करना चाहिए।
  12. क्या इस मंत्र का जप विवाहित जीवन में शांति ला सकता है? हां, यह मंत्र विवाहित जीवन में शांति और सौहार्द्र ला सकता है।

Kanakadhara Lakshmi Sabar Mantra for strong Wealth

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कनकधारा लक्ष्मी साबर मंत्र: धन के साथ बड़े सपने भी पूरे करे

सुख समृद्धि देने वाली कनकधारा लक्ष्मी साबर मंत्र का जप जो भी मनुष्य करता है, उसके जीवन मे सभी तरह की आर्थिक बाधा नष्ट होने लगती है। यह मंत्र विशेष रूप से देवी कनक्धारा लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए जपा जाता है, जो धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी मानी जाती हैं। इस मंत्र के जप से साधक के जीवन में धन की धारा बहती है, और उसे भौतिक तथा आध्यात्मिक दोनों प्रकार की समृद्धि प्राप्त होती है।

कनकधारा लक्ष्मी साबर मंत्र का अर्थ

“॥ॐ श्रीं कनक लक्ष्मेय, कनक नाम की महिमा, सब बिधि मंगल होय, सकल संपत्ति सुख करे, धन संपत्ति की होय, ॐ कनक लक्ष्मेय नमः॥”

अर्थ इस प्रकार है:

  • ॐ: यह ब्रह्मांड की आदिशक्ति का प्रतीक है, जो समस्त सृष्टि की ध्वनि है।
  • श्रीं: यह लक्ष्मी जी का बीज मंत्र है, जो धन, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक है।
  • कनक लक्ष्मेय: यह देवी लक्ष्मी का आह्वान है, विशेष रूप से उस रूप में जो कनकधारा (स्वर्ण की धारा) को बहाने वाली हैं।
  • कनक नाम की महिमा: इसका अर्थ है स्वर्ण (कनक) के नाम की महिमा और शक्ति का वर्णन करना।
  • सब बिधि मंगल होय: इस वाक्यांश का अर्थ है कि सभी प्रकार के कार्यों में शुभता और मंगल हो।
  • सकल संपत्ति सुख करे: इसका अर्थ है कि देवी लक्ष्मी की कृपा से सभी प्रकार की संपत्ति और सुख की प्राप्ति हो।
  • धन संपत्ति की होय: इसका अर्थ है कि देवी की कृपा से धन और संपत्ति की निरंतर प्राप्ति हो।
  • ॐ कनक लक्ष्मेय नमः: इसका अर्थ है कनकधारा लक्ष्मी को नमन करना और उनकी कृपा की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करना।

कनकधारा लक्ष्मी साबर मंत्र के लाभ

इस मंत्र के नियमित जप से साधक को निम्नलिखित प्रमुख लाभ प्राप्त होते हैं:

  1. आर्थिक स्रोत: इस मंत्र के जप से व्यक्ति को नए आर्थिक स्रोतों की प्राप्ति होती है और उसकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है।
  2. नौकरी में पदोन्नति: यह मंत्र व्यक्ति की नौकरी में तरक्की और प्रमोशन के लिए अत्यंत प्रभावी होता है।
  3. सुख-शांति का बंधन: मंत्र का जप व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति लाता है और पारिवारिक जीवन को संतुलित करता है।
  4. मंगल कार्य में सफलता: इस मंत्र के जप से किसी भी मंगल कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि में सफलता प्राप्त होती है।
  5. विवाहित जीवन: यह मंत्र विवाहित जीवन में आ रही परेशानियों को दूर करता है और दांपत्य जीवन को सुखमय बनाता है।
  6. सही निर्णय: इस मंत्र के जप से व्यक्ति को सही निर्णय लेने में सहायता मिलती है।
  7. सुंदरता: मंत्र का जप चेहरे और शरीर की आभा को बढ़ाता है, जिससे व्यक्ति आकर्षक दिखाई देता है।
  8. आकर्षक व्यक्तित्व: यह मंत्र व्यक्तित्व में आकर्षण और प्रभावशीलता को बढ़ाता है।
  9. व्यवसाय में सफलता: यह मंत्र व्यक्ति के व्यवसाय में आ रही बाधाओं को दूर करता है और व्यापार में सफलता दिलाता है।
  10. धन की प्राप्ति: मंत्र का जप धन की प्राप्ति में सहायक होता है और आर्थिक स्थिरता प्रदान करता है।
  11. नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति: इस मंत्र के जप से व्यक्ति नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त होता है और सकारात्मकता का संचार करता है।
  12. स्वास्थ्य लाभ: यह मंत्र शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारता है।
  13. मन की शांति: मंत्र के जप से व्यक्ति के मन को शांति और संतुलन प्राप्त होता है।
  14. आध्यात्मिक उन्नति: यह मंत्र व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है।
  15. समृद्धि: यह मंत्र व्यक्ति के जीवन में समृद्धि और धन-धान्य की प्राप्ति में सहायक होता है।

कनकधारा लक्ष्मी साबर मंत्र विधि

इस मंत्र का जप एक विशेष विधि से किया जाना चाहिए ताकि उसका अधिकतम लाभ प्राप्त हो सके।

मंत्र जप का दिन, अवधि और मुहूर्त

  • दिन: इस मंत्र का जप शुक्रवार को शुरू करना अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि शुक्रवार देवी लक्ष्मी का विशेष दिन होता है।
  • अवधि: मंत्र जप को ११ से २१ दिनों तक नियमित रूप से करना चाहिए।
  • मुहूर्त: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह ४ से ६ बजे) या रात का पहला पहर (८ से १० बजे) मंत्र जप के लिए सबसे शुभ समय होता है।

मंत्र जप सामग्री

  • एक स्फटिक या चंदन माला
  • पीले या लाल वस्त्र
  • दीया, धूप, और अगरबत्ती
  • पीले फूल
  • नैवेद्य (मिठाई, फल आदि)
  • पीला चंदन और कुमकुम
  • ताम्बे का लोटा (जल से भरा हुआ)

कनकधारा लक्ष्मी साबर मंत्र जप संख्या

इस मंत्र का जप ११ माला (एक माला में १०८ मोती होते हैं) यानी ११८८ बार करना चाहिए। इस संख्या को प्रतिदिन जप करना चाहिए, और इसे ११ से २१ दिन तक जारी रखना चाहिए।

कनकधारा लक्ष्मी साबर मंत्र जप के नियम

  1. उम्र: इस मंत्र का जप २० वर्ष से ऊपर के स्त्री-पुरुष कर सकते हैं।
  2. वस्त्र: जप के समय नीले या काले रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए। पीले या लाल वस्त्र पहनना शुभ होता है।
  3. धूम्रपान और मासाहार: मंत्र जप के दौरान धूम्रपान, शराब, पान, और मासाहार का सेवन नहीं करना चाहिए।
  4. ब्रह्मचर्य: मंत्र जप के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है।
  5. स्नान: जप से पहले स्नान करना और शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए।
  6. स्थान: जप के लिए शांत और पवित्र स्थान का चयन करना चाहिए।
  7. आसन: कुश या पीले कपड़े के आसन पर बैठकर जप करना चाहिए।
  8. आहार: मंत्र जप के दौरान हल्का और सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए।
  9. संकल्प: जप से पहले संकल्प लेकर देवी से अपनी मनोकामना व्यक्त करें।
  10. नियमितता: जप में नियमितता बनाए रखें और प्रतिदिन एक ही समय पर जप करें।
  11. वाणी की शुद्धता: मंत्र जप के समय वाणी की शुद्धता बनाए रखें और अपशब्दों का प्रयोग न करें।
  12. ध्यान: मंत्र जप के साथ देवी लक्ष्मी का ध्यान करें।
  13. मन का नियंत्रण: जप के समय मन को एकाग्र रखें और इसे भटकने न दें।
  14. अभिमान: मंत्र के प्रभाव से अहंकार से बचें और विनम्रता बनाए रखें।
  15. गुरु का आशीर्वाद: यदि संभव हो, तो गुरु से आशीर्वाद लेकर मंत्र जप शुरू करें।

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मंत्र जप सावधानियां

मंत्र जप करते समय कुछ सावधानियों का पालन करना चाहिए ताकि मंत्र का अधिकतम लाभ प्राप्त हो सके:

  1. आत्म-विश्वास: मंत्र जप करते समय आत्म-विश्वास बनाए रखें, लेकिन अति-आत्मविश्वास से बचें।
  2. ध्यान: जप के दौरान किसी अन्य कार्य में मन न लगाएं।
  3. मंत्र की शक्ति: मंत्र की शक्ति को समझें और इसका सम्मान करें।
  4. समय: जप के लिए प्रतिदिन एक ही समय का चयन करें।
  5. वातावरण: जप के समय का वातावरण शांत और पवित्र होना चाहिए।
  6. विचार: नकारात्मक विचारों से बचें और सकारात्मक सोच बनाए रखें।
  7. धैर्य: मंत्र जप के परिणाम में समय लग सकता है, इसलिए धैर्य बनाए रखें।
  8. विश्रांति: जप के बाद ध्यान और विश्रांति करें।
  9. संपर्क: जप के दौरान किसी से बात न करें।
  10. भक्ति: मंत्र जप को श्रद्धा और भक्ति के साथ करें।
  11. संतोष: मंत्र जप के बाद जो भी फल प्राप्त हो, उसे संतोष के साथ स्वीकार करें।
  12. शुद्धता: मंत्र जप के दौरान शरीर और मन की शुद्धता बनाए रखें।
  13. वाणी: जप के दौरान मधुर और संयमित वाणी का प्रयोग करें।
  14. उत्तेजना से बचें: मंत्र जप के दौरान उत्तेजना और क्रोध से बचें।
  15. विनम्रता: मंत्र जप के बाद भी विनम्र और संयमित रहें।

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कनकधारा लक्ष्मी साबर मंत्र से संबंधित प्रश्न-उत्तर

  1. इस मंत्र का जप कब करना चाहिए?
    इस मंत्र का जप शुक्रवार को आरंभ करना अत्यंत शुभ होता है।
  2. मंत्र जप का समय कौन सा होता है?
    ब्रह्म मुहूर्त (सुबह ४ से ६ बजे) या रात का पहला पहर (८ से १० बजे)।
  3. क्या इस मंत्र को स्त्री और पुरुष दोनों जप सकते हैं?
    हां, यह मंत्र स्त्री और पुरुष दोनों के लिए उपयुक्त है।
  4. मंत्र जप के लिए किस प्रकार के वस्त्र पहनने चाहिए?
    पीले या लाल रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।
  5. मंत्र जप के दौरान क्या कोई आहार प्रतिबंध होता है?
    हां, मंत्र जप के दौरान सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए और मासाहार से बचना चाहिए।
  6. क्या इस मंत्र का जप आर्थिक स्थिरता प्रदान करता है?
    हां, यह मंत्र आर्थिक स्थिरता और धन की प्राप्ति में सहायक होता है।
  7. क्या मंत्र जप से नौकरी में प्रमोशन मिल सकता है?
    हां, मंत्र जप से नौकरी में प्रमोशन और तरक्की मिलती है।
  8. मंत्र जप का सबसे शुभ दिन कौन सा है?
    शुक्रवार का दिन सबसे शुभ माना जाता है।
  9. क्या इस मंत्र का जप व्यवसाय में लाभ दिला सकता है?
    हां, मंत्र जप व्यवसाय में लाभ और सफलता दिलाता है।
  10. क्या इस मंत्र का जप घर में सुख-शांति लाता है?
    हां, यह मंत्र घर में सुख-शांति और समृद्धि लाता है।
  11. मंत्र जप के लिए कौन सी माला का प्रयोग करना चाहिए?
    स्फटिक या रुद्राक्ष माला का प्रयोग करना चाहिए।

Kamakhya Sabar Mantra -Remove all types of obstructions

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कामख्या साबर मंत्र: आर्थिक व शत्रु बंधन तोड़े

आर्थिक बंधन तोड़ने वाली कामख्या साबर मंत्र का जप ग्रहस्थ ब्यक्तियों के लिये महत्वपूर्ण माना गया है। इसे विशेष रूप से बाधाओं को दूर करने, नकारात्मक प्रभावों से सुरक्षा, और विभिन्न प्रकार के बंधनों को तोड़ने के लिए उपयोग किया जाता है। यह मंत्र देवी कामख्या की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है, जो कि तंत्र विद्या की प्रमुख देवी मानी जाती हैं।

कामख्या साबर मंत्र का अर्थ

कामख्या साबर मंत्र “॥ॐ क्लीं कामख्या नज़र तोड़े, बंधन तोड़े, बाधा तोड़े, शत्रु की बुद्धि तोड़े, न तोडे तो उमानंद भैरव की आन॥” का अर्थ शक्तिशाली और गूढ़ है। इसे निम्नलिखित भागों में समझा जा सकता है:

  • ॐ: यह मंत्र की शुरुआत में प्रयुक्त ब्रह्मांड की आदिशक्ति का प्रतीक है, जो समस्त सृष्टि की ध्वनि है।
  • क्लीं: यह बीज मंत्र है जो शक्ति, आकर्षण और अभिलाषाओं की पूर्ति का प्रतीक है।
  • कामख्या: यह देवी कामख्या का आह्वान है, जो सभी बाधाओं को दूर करने वाली और भक्तों की इच्छाओं को पूर्ण करने वाली हैं।
  • नज़र तोड़े: इस वाक्यांश का अर्थ है बुरी नजर को समाप्त करना और नकारात्मक प्रभावों से रक्षा करना।
  • बंधन तोड़े: यह शब्द जीवन के सभी प्रकार के बंधनों को तोड़ने का अनुरोध करता है, चाहे वे आर्थिक, शारीरिक या मानसिक हों।
  • बाधा तोड़े: इसका अर्थ है सभी प्रकार की बाधाओं को समाप्त करना।
  • शत्रु की बुद्धि तोड़े: यह मंत्र शत्रुओं की बुद्धि को भ्रमित करने और उन्हें निष्क्रिय करने का काम करता है।
  • न तोडे तो उमानंद भैरव की आन: यह वाक्यांश देवी के नाम की शक्ति और उमानंद भैरव की प्रतिष्ठा की कसम खाता है, जो मंत्र को और भी प्रभावशाली बनाता है।

इस प्रकार, पूरे मंत्र का अर्थ है: “हे कामख्या देवी, बुरी नजर, बंधन, बाधाएं और शत्रुओं की बुद्धि को समाप्त करें, अगर ऐसा न हो तो उमानंद भैरव की आन है।”

कामख्या साबर मंत्र के लाभ

  1. नौकरी का बंधन तोड़े: यह मंत्र व्यक्ति को नौकरी में आने वाले अवरोधों और बंधनों से मुक्त करता है।
  2. दुकान का बंधन: इस मंत्र के जप से व्यापार या दुकान में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं, और व्यापार में वृद्धि होती है।
  3. सुख-शांति का बंधन: मंत्र का जप परिवार और व्यक्तिगत जीवन में सुख-शांति और सौहार्द्रता को बढ़ाता है।
  4. मंगल कार्य में सफलता: इस मंत्र का जप करते हुए किसी भी मंगल कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि में सफलता प्राप्त होती है।
  5. विवाहित जीवन: यह मंत्र विवाहित जीवन में आ रही परेशानियों और विवादों को दूर करता है, जिससे दांपत्य जीवन सुखमय होता है।
  6. सही निर्णय: इस मंत्र के जप से व्यक्ति को सही निर्णय लेने में सहायता मिलती है।
  7. सुंदरता: मंत्र का जप चेहरे और शरीर की आभा को बढ़ाता है, जिससे व्यक्ति आकर्षक दिखाई देता है।
  8. आकर्षक व्यक्तित्व: यह मंत्र व्यक्तित्व में आकर्षण और प्रभावशीलता को बढ़ाता है।
  9. शत्रु नाश: यह मंत्र शत्रुओं से रक्षा करता है और उनके बुरे इरादों को विफल करता है।
  10. नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति: इस मंत्र का जप नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करता है और सकारात्मकता का संचार करता है।
  11. धन और समृद्धि: मंत्र का जप करने से व्यक्ति को आर्थिक समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है।
  12. स्वास्थ्य लाभ: इस मंत्र का नियमित जप शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारता है।
  13. मन की शांति: मंत्र के जप से व्यक्ति के मन को शांति और संतुलन मिलता है।
  14. आध्यात्मिक उन्नति: यह मंत्र व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है और उसे मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।
  15. सभी बाधाओं से मुक्ति: यह मंत्र जीवन में आने वाली सभी प्रकार की बाधाओं और कठिनाइयों को समाप्त करता है।

विधि

कामख्या साबर मंत्र का जप एक विशेष विधि से किया जाना चाहिए, ताकि उसका अधिकतम लाभ प्राप्त हो सके।

मंत्र जप का दिन, अवधि और मुहूर्त

  • दिन: इस मंत्र का जप मंगलवार, शनिवार या रविवार को शुरू करना शुभ माना जाता है। ये दिन देवी के विशेष दिन होते हैं।
  • अवधि: मंत्र जप को ११ से २१ दिनों तक नियमित रूप से करना चाहिए।
  • मुहूर्त: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह ४ से ६ बजे) या रात का पहला पहर (८ से १० बजे) मंत्र जप के लिए सबसे शुभ समय होता है।

मंत्र जप सामग्री

  • एक रुद्राक्ष या लाल चंदन की माला
  • लाल वस्त्र (या सफेद वस्त्र)
  • दीया, धूप, और अगरबत्ती
  • लाल या सफेद फूल
  • नैवेद्य (मीठा, फल आदि)
  • पीला चंदन और कुमकुम

कामख्या साबर मंत्र जप संख्या

इस मंत्र का जप ११ माला (एक माला में १०८ मोती होते हैं) यानी ११८८ बार करना चाहिए। इस संख्या को प्रतिदिन जप करना चाहिए, और इसे ११ से २१ दिन तक जारी रखना चाहिए।

कामख्या साबर मंत्र जप के नियम

  1. उम्र: इस मंत्र का जप २० वर्ष से ऊपर के स्त्री-पुरुष कर सकते हैं।
  2. वस्त्र: जप के समय नीले या काले रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए।
  3. धूम्रपान और मासाहार: मंत्र जप के दौरान धूम्रपान, शराब, पान, और मासाहार का सेवन नहीं करना चाहिए।
  4. ब्रह्मचर्य: मंत्र जप के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है।
  5. स्नान: जप से पहले स्नान करना और शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए।
  6. स्थान: जप के लिए शांत और पवित्र स्थान का चयन करना चाहिए।
  7. आसन: कुश या लाल कपड़े के आसन पर बैठकर जप करना चाहिए।
  8. आहार: मंत्र जप के दौरान हल्का और सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए।
  9. संकल्प: जप से पहले संकल्प लेकर देवी से अपनी मनोकामना व्यक्त करें।
  10. नियमितता: जप में नियमितता बनाए रखें और प्रतिदिन एक ही समय पर जप करें।
  11. वाणी की शुद्धता: मंत्र जप के समय वाणी की शुद्धता बनाए रखें और अपशब्दों का प्रयोग न करें।
  12. ध्यान: मंत्र जप के साथ देवी कामख्या का ध्यान करें।
  13. मन का नियंत्रण: जप के समय मन को एकाग्र रखें और इसे भटकने न दें।
  14. अभिमान: मंत्र के प्रभाव से अहंकार से बचें और विनम्रता बनाए रखें।
  15. गुरु का आशीर्वाद: यदि संभव हो, तो गुरु से आशीर्वाद लेकर मंत्र जप शुरू करें।

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मंत्र जप सावधानियां

  1. आत्म-विश्वास: मंत्र जप करते समय आत्म-विश्वास बनाए रखें, लेकिन अति-आत्मविश्वास से बचें।
  2. ध्यान: जप के दौरान किसी अन्य कार्य में मन न लगाएं।
  3. मंत्र की शक्ति: मंत्र की शक्ति को समझें और इसका सम्मान करें।
  4. समय: जप के लिए प्रतिदिन एक ही समय का चयन करें।
  5. वातावरण: जप के समय का वातावरण शांत और पवित्र होना चाहिए।
  6. विचार: नकारात्मक विचारों से बचें और सकारात्मक सोच बनाए रखें।
  7. धैर्य: मंत्र जप के परिणाम में समय लग सकता है, इसलिए धैर्य बनाए रखें।
  8. विश्रांति: जप के बाद ध्यान और विश्रांति करें।
  9. संपर्क: जप के दौरान किसी से बात न करें।
  10. भक्ति: मंत्र जप को श्रद्धा और भक्ति के साथ करें।
  11. संतोष: मंत्र जप के बाद जो भी फल प्राप्त हो, उसे संतोष के साथ स्वीकार करें।
  12. शुद्धता: मंत्र जप के दौरान शरीर और मन की शुद्धता बनाए रखें।
  13. वाणी: जप के दौरान अपनी वाणी को शुद्ध और मधुर रखें।
  14. अनुशासन: मंत्र जप के सभी नियमों का पालन करें और अनुशासन बनाए रखें।
  15. गुरु-आज्ञा: यदि आप गुरु के मार्गदर्शन में जप कर रहे हैं, तो उनकी आज्ञा का पालन करें।

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कामख्या साबर मंत्र से संबंधित प्रश्न-उत्तर

  1. कामख्या साबर मंत्र किसके लिए उपयुक्त है?
    यह मंत्र उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो जीवन में बाधाओं का सामना कर रहे हैं और उन्हें दूर करना चाहते हैं।
  2. क्या इस मंत्र का जप किसी विशेष दिन करना चाहिए?
    हां, इस मंत्र का जप मंगलवार, शनिवार या रविवार को करना शुभ माना जाता है।
  3. मंत्र जप के लिए कौन से वस्त्र पहनने चाहिए?
    जप के समय लाल या सफेद वस्त्र पहनने चाहिए।
  4. क्या मंत्र जप के दौरान मांसाहार का सेवन कर सकते हैं?
    नहीं, मंत्र जप के दौरान मांसाहार, धूम्रपान और शराब का सेवन नहीं करना चाहिए।
  5. मंत्र जप के लिए क्या सामग्री की आवश्यकता होती है?
    रुद्राक्ष या लाल चंदन की माला, लाल वस्त्र, दीया, धूप, अगरबत्ती, लाल या सफेद फूल, नैवेद्य, और पीला चंदन।
  6. क्या मंत्र जप से व्यापार में वृद्धि हो सकती है?
    हां, मंत्र जप से व्यापार में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और व्यापार में वृद्धि होती है।
  7. मंत्र जप के दौरान किस आसन पर बैठना चाहिए?
    कुश या लाल कपड़े के आसन पर बैठकर जप करना चाहिए।
  8. क्या मंत्र जप से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है?
    हां, मंत्र जप से धन और समृद्धि प्राप्त होती है।
  9. मंत्र जप के लिए कौन सा समय सबसे अच्छा होता है?
    ब्रह्म मुहूर्त (सुबह ४ से ६ बजे) या रात का पहला पहर (८ से १० बजे) मंत्र जप के लिए सबसे अच्छा समय होता है।
  10. क्या इस मंत्र का जप बिना गुरु के किया जा सकता है?
    हां, इस मंत्र का जप बिना गुरु के भी किया जा सकता है, लेकिन गुरु का मार्गदर्शन हमेशा लाभकारी होता है।
  11. क्या इस मंत्र से शत्रुओं से रक्षा हो सकती है?
    हां, इस मंत्र का जप शत्रुओं से रक्षा करता है और उनके बुरे इरादों को विफल करता है।